
रंगीला पंजाब – परिवार सहित अमृतसर यात्रा
तभी ट्रैन चलने की घोषणा हुई और जल्दी ही ट्रैन रेंगने लगी। वाइफ और बेटा खिड़की से बाहर देखते रहे और मैं आँखें बंद कर दिन भर की प्लानिंग करने लगा। कुछ देर में शताब्दी की सेवाएं शुरू हुई. पानी की बोतल, अखबार और फिर चाय, इन सबके सोचा की थोड़ा सो लेंगे। पर तभी टीटी जी आ पहुंचे। उनको टिकट देखा कर निबटे तो देखा कि बेटा सो गया था। हमने भी आधा घंटा नींद ली की तभी ब्रेकफास्ट आ गया। पंजाब की यात्रा हो तो छोले कुल्चे से बेहतर कुछ नहीं इसलिए हमने भी वही खाया। हिलती हुई ट्रैन में चाय का कप भी हिल रहा था और बेटा इसे देख देख हंस रहा था। ब्रेकफास्ट कर के सोचा कि कुछ और सोया जाये पर ऐसा हुआ नहीं. ट्रैन अम्बाला पहुंची और छोटे साहब के प्रश्न फिर शुरू हुए। यहाँ से ट्रैन चलने के बाद मेरी कमेंटरी भी शुरू हुई. क्यूंकि बाकी दोनों का पहला ट्रिप था, इसलिए मैंने अपना ज्ञान भर भर के बंट. राजपुरा से पंजाब शुरू होने के बाद तो ये ज्ञान और बढ़ा. NH 1 साथ दौड़ती ट्रैन, दोनों और गेंहूँ से भरे हुई खेत और बादलों की लुकाछिपी, सचमुच बहुत ही अच्छा सफर था. कुछ देर में ट्रैन लुधिअना पहुंची। यहाँ भूख लगने लगी थी तो हमने अपने साथ लए हुई स्नैक्स की तरफ ध्यान दिया. लुधिअना से चलने के बाद सतलुज नदी का चौड़ा पाट आया. वाइफ हैरान थीं की इस नदी का पानी इतना सफ़ेद कैसे है जबकि यमुना तो बिलकुल अलग है। इसके बाद फगवाड़ा और फिर जलांधर आया. जालंधर पर ट्रैन काफी खाली हो गए थी। क्यूंकि अब बेटा फिर ऊँघने लगा था तो उसे एक ३ वाली खाली सीट पर लिटा दिया और वह जल्दी सो भी गया। हम दोनों भी १ झपकी लेने लगे. ब्यास पहुँचने से पहले ब्यास नदी के दर्शन हुए. खेतों में हरियाली बढ़ चुकी थी. अपने तय समय से २० मिनट लेट, ट्रैन अमृतसर पहुंची. स्टेशन पर टूरिस्ट्स और ख़ास तौर पर स्कूल ग्रुप्स की बहुत भीड़ थी। हमने टैक्सी बुक की हुई थी जो हमें वाघा बॉर्डर घुमा कर वापस होटल छोड़ने वाली थी।
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