इंदौर के रंग, देखिये मेरे संग…..
वैसे तो आए दिन इंदौर किसी न किसी काम से आना जाना लगा ही रहता है लेकिन अपना ही शहर होने की वजह से…
Read Moreवैसे तो आए दिन इंदौर किसी न किसी काम से आना जाना लगा ही रहता है लेकिन अपना ही शहर होने की वजह से…
Read Moreकृष्णपुरा की छत्रियां (Cenotaphs), इंदौर के होलकर राजवंश के पूर्व शासकों की समाधियाँ हैं. ये छत्रियां इंदौर की खान नदी के किनारे पर निर्मित हैं तथा वास्तुकला की दृष्टि से एक उत्कृष्ट निर्माण हैं. सैकड़ों वर्षों से विद्यमान ये छत्रियां होलकर मराठा राजवंश के गौरवशाली ईतिहास की द्यौतक हैं. मराठा वास्तुकला शैली में निर्मित ये छत्रियां पर्यटकों को बहुत लुभाती हैं तथा आमंत्रित करती हैं. ये छत्रियां मालवा की शासिका महारानी कृष्णाबाई, महाराजा तुकोजीराव तथा महाराजा शिवाजीराव की समाधियों पर निर्मित हैं तथा इन्हीं शासकों को समर्पित हैं. इन छत्रियों में सभाग्रह तथा गर्भगृह हैं, गर्भगृह में इन शासकों की मूर्तियों के साथ अब हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियाँ भी स्थापित कर दी गई हैं.
Read Moreट्रेज़र आईलेंड के मुख्य आकर्षणों में Max Retail, PVR, McDonalds, Pizza Hut आदि हैं, और ये सब मध्य प्रदेश में सबसे पहले यहीं यानी इंदौर के ट्रेज़र आईलेंड में ही शुरू हुए. हर बजट को सूट करती हुई शौपिंग के लिए इंदौर में ट्रेज़र आईलेंड से बढ़कर और कोई जगह नहीं है. इंदौर के युवाओं की तो यह जगह पहली पसंद है. लैंडमार्क ग्रुप ने भारत में अपने पहले रिटेल स्टोर की शुरुआत ट्रेज़र आईलेंड इंदौर से ही की थी. यह मॉल नॉएडा तथा गुडगाँव के मॉल्स की टक्कर का है. सभी उम्दा ब्रांड्स के शोरूम्स से सजे धजे इस मॉल में स्टेट ऑफ़ आर्ट एस्केलेटर्स भी लगे हैं. यह इंदौर ही नहीं समूचे मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा मॉल है. इंदौर के लोगों के लिए तो ट्रेज़र आईलेंड किसी टूरिस्ट स्पॉट से कम नहीं है.
Read Moreनवम्बर 2011 कि बात है, अपनी ज्योतिर्लिंग यात्रा के अगले स्थान के रुप में हमने चुना था भिमाशंकर को। विशाल राठोड़ से उस समय…
Read Moreअल्टीमेटली हम उस भीमकाय भवन के निकट जा पहुंचे जो दूर से एक छोटा सा बुर्ज महसूस हो रहा था। वहां लिखा था – रानी रूपमती का महल ! वहां हमने थोड़ी देर तक इमली वाले ठेले पर इमली के रेट को लेकर बहस की। ये मांडू की विशेष इमली थी जिसके बारे में मुकेश ने बताया कि ये सिर्फ यहां मांडू की जलवायु का ही प्रताप है कि यहां ये इमली उगती है। मैं अपने जन्म से लेकर आज तक इमली के नाम पर अपने परचून वाले की दुकान पर जो इमली देखता आया हूं, वह तो छोटे – छोटे बीज होते हैं जिनके ऊपर कोकाकोला रंग की खटास चिपकी हुई होती है और बीज आपस में एक दूसरे से पेप्सी कलर के धागों से जुड़े रहते हैं। वह ये तो इमली के फल थे जिनके भीतर बीज होने अपेक्षित थे। बाहर से इस फल पर इतने सुन्दर रोयें थे कि बस, क्या बताऊं = एकदम सॉफ्ट एंड सिल्की ! दूर से देखो तो आपको लगेगा कि शायद बेल बिक रही है, पर पास जाकर देखें तो पता चलता है कि इमली के फल की शक्ल-सूरत बेल के फल से कुछ भिन्न है और साथ में रोयें भी हैं! जब रेट को लेकर सौदा नहीं पटा तो हम टिकट लेकर रानी रूपमती के महल या मंडप की ओर बढ़ चले जो नर्मदा नदी से 305 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर स्थित है। यह मुझे किसी भी एंगिल से महल या मंडप अनुभव नहीं हुआ। अब जैसा कि पढ़ने को मिला है, ये मूलतः सेना के उपयोग में आने वाली एक मचान हुआ करती थी जिसमें मध्य में एक बड़ा परन्तु नीची छत वाला हॉल व उसके दोनों ओर दो कमरे थे। पर बाद में उसमें विस्तार करके ऊपर बुर्ज व दो गुंबद बनाये गये। ये बुर्ज वास्तव में आकर्षक प्रतीत होती है। ये सब काम सिर्फ इसलिये कराने पड़े थे चूंकि रानी रूपमती को नर्मदा नदी के दर्शन किये बिना खाना नहीं खाना होता था, अतः वह यहां से ३०५ मीटर नीचे घाटी में एक चांदी की लकीर सी नज़र आने वाली नर्मदा की धारा को देख कर संतोष कर लिया करती थीं और एतदर्थ नित्य प्रति यहां आया करती थीं। इसी कारण बाज़ बहादुर ने इसमें कुछ परिवर्तन कराकर इसे इस योग्य कर दिया कि जब रूपमती यहां आयें तो वह रानी से कुछ अच्छे – अच्छे गानों की फरमाइश कर सकें और चैन से सुन सकें। जैसा कि आज कल के लड़के – लड़कियां मंदिर में जाते हैं तो भगवान के दर्शनों के अलावा एक दूसरे के भी दर्शन की अभिलाषा लेकर जाते हैं, ऐसे ही रानी रूपमती और बाज बहादुर भी यहां आकर प्रणय – प्रसंगों को परवान चढ़ाते थे। खैर जी, हमें क्या!
Read Moreइस संस्कृत विश्वविद्यालय का नाम अशर्फी महल क्यों कर पड़ गया, इसके बारे में मैने दो कहानियां सुनी हैं – एक उस गाइड के मुंह से जो मुकेश भालसे ने मांडू दर्शन कराने के लिये तय किया था। उस गाइड के अनुसार, “मुगल बादशाह जहांगीर की बेगम बहुत ज्यादा प्रेगनेंट थी और अशर्फी महल की सीढ़ियां चढ़ने में आनाकानी कर रही थी । इसके लिये बादशाह ने प्रत्येक सीढ़ी पर चढ़ने के लिये बेगम पर अशर्फी लुटाने का वायदा किया। अशर्फी के लालच में बेगम अपनी प्रेगनेंसी को भुला कर सीढ़ियां चढ़ती चली गई।” दूसरी कहानी आर. बी. देशपांडे अपनी पुस्तक “Glimpses of Mandu: Past and Present” में उद्धृत करते हैं, जो वास्तव में बादशाह जहांगीर की मुंह जबानी है –
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