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हम चले अमृतसर की सैर को

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प्रोग्राम  अमृतसर जाने का तय हुआ, आरक्षण  कराया गया.४ नवम्बर की रात का स्वर्णमंदिर एक्सप्रेस (फ्रोंटिएर मेल) का जाने का तय हुआ, वापसी ६ नवम्बर को छत्तीसगढ़ एक्स्प. से थी. रेलवे स्टेशन पर जल्दी पहुँच कर, वंहा पर बैठ कर चाय वाय पीने का आनंद ही कुछ और होता हैं.

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अमृतसर – रामतीरथ – श्री गुरुरामदास प्रकाश पर्व – घर वापसी

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सीढ़ियां उतर कर उस सूखे सरोवर को पगडंडी के रास्ते पार करके मैं सामने वाली उस बस्ती में पहुंचा तो लगने लगा कि किसी दूसरी ही दुनिया में पहुंच गया हूं। यह कहना ज्यादा सही लगता है कि वह सरोवर एक टाइम मशीन था, जिसमें प्रवेश किया तो कलयुग था पर जब उस पार जाकर मशीन से बाहर निकला तो त्रेतायुग में आ गया था। सीता मैया की झोंपड़ी जिसमें वह रहती थीं, रसोई जिसमें वह खाना बनाया करती होंगी, वह सरोवर जिसमें स्नान-ध्यान चलता होगा, वह कुआं जो सीता मैया के लिये उनके अनन्य सेवक हनुमान जी ने खोद कर दिया था, सब कुछ ऐसा लग रहा था कि बस! शब्दों में व्यक्त कर पाना मेरे लिये कठिन हो रहा है। पराकाष्ठा यह है कि सीता मैया की रसोई के पास सरोवर की सीढ़ी पर एक झुमका पड़ा दिखाई दिया तो मन में एकदम ख्याल आया कि शायद ये झुमका उस समय से यहीं पड़ा हुआ है जब रावण द्वारा हरण कर लेने के बाद वह आकाश मार्ग से लंका ले जाये जाते समय रास्ते में यह सोच कर अपने आभूषण गिरा रही थीं कि शायद इनको देख कर किसी को उनका अता-पता मिल सके ।

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