आइए ले चलें आपको नए पटना से पटना साहेब के सफ़र पर

पिछले साल पटना में तीन चार दिन की छुट्टियों पर जाना हुआ था। उसी समय ये लेख लिखा था। आज मन किया कि इसे यहाँ आप सब के साथ भी बाँट लिया जाए।

कई दिनों से बेटा सवाल कर रहा था कि पापा मंदिर और मस्जिद तो समझ आ गया पर ये गुरुद्वारा क्या होता है? पहली क्लॉस की परीक्षा में तो स्पेलिंग रट रटा कर और चित्र दिखा कर बेड़ा पार हो गया है पर पटना में इस सवाल की पुनरावृति होने से अचानक ख़्याल आता है कि अरे अर्सा हो गया तख़्त हर मंदिर साहब (Takht Harmandir Saheb) गए हुए। क्यूँ ना पुत्र की जिज्ञासा शांत करने के साथ साथ इस पवित्र स्थल की सैर कर ली जाए।

मेरा घर पटना के पश्चिमी किनारे पर है जबकि तख्त हरमंदिर साहब पुराने पटना के पूर्वी छोर पर है। इसलिए घर से सिटी के इस संकीर्ण इलाके में जाना आज के पटना और पुराने पटना के बदलते रंगों को देखने का एक अच्छा मौका प्रदान करता है। तो आज आपको भी ले चलता हूँ इस सफ़र पर ताकि पटना शहर की कुछ झांकियों से आप भी रूबरू हो जाएँ…
अप्रैल की तेज दोपहरी है। खाने के बाद एक घंटे के आराम के बाद हम निकल पड़े हैं पटना सिटी की ओर। कुछ ही देर में हम नए पटना के मुख्य मार्ग बेली रोड (Bailey Road) पर हैं। बेली रोड पश्चिमी पटना या नए पटना की पहचान है। चिड़ियाघर, सचिवालय, हाई कोर्ट, प्लेनेटोरियम, संग्रहालय अपने आंगुतकों के लिए सब इसी सड़क पर आश्रित हैं।
चित्र सौजन्य – पटना डेली. कॉम

पटना हाई कोर्ट (Patna High Court) अब भी मुझे विभिन्न राज्यों में देखे गए उच्च न्यायालयों में भव्य लगता है। पास ही पटना वीमेंस कॉलेज है जिसका शुमार महिलाओं के लिए बिहार के सबसे अग्रणी शिक्षण संस्थान के रूप में होता है।
दीदी जब यहाँ पढ़ती थीं तो मैं कॉलेज में एक बार किसी खेल प्रतियोगिता को देखने के लिए अंदर गया था और लड़कियों ने मेरी और मेरे दोस्तों की अच्छी खासी क्लॉस ले ली थी। बाद में दीदी यहीं पढ़ती है कहकर उनसे जान छुड़ाकर भाग लिये थे।
उस दिन के बाद फिर कभी कॉलेज के अंदर प्रवेश का साहस नहीं कर पाए।

चित्र सौजन्य : विकीपीडिया

अंग्रेज लेफ्टिनेंट गवर्नर के नाम पर बनी ये सड़क कई साल पहले ही जवाहर लाल नेहरू मार्ग में तब्दील हो गई थी पर आम जनता ने कभी बेली रोड को अपनी जुबान से हटाया नहीं। इस इलाके से गुजरना, मेरे पटना के आफिसर्स हॉस्टल में बिताए १५ सालों की छवियाँ को फिर से पुनर्जीवित कर देता है।

सचिवालय के पास ही एक पुरानी रेलवे लाइन (शायद १०-१५ किमी लंबी) बेली रोड को क्रास करती है जहाँ हमारी गाड़ी रुक गई है। बचपन और किशोरावस्था में गुजारे अपने पन्द्रह सालों के दौरान इस फाटक रहित रेलवे क्रासिंग से मैंने कभी किसी गाड़ी को गुजरते नहीं देखा। पर आज यहाँ से लालू जी की दया से एक रेलगाड़ी गुजर रही है, जो पटना को दीघा से जोड़ती है। दीघा की पुरानी पहचान बॉटा की फैक्ट्री से थी जो अब दानापुर से सटे लालू के प्रभाव वाले इलाके के तौर पर हो रही है। लोग कहते हैं इस गाड़ी में टिकट खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती। हाल ही में पिता के एक मित्र घूमने घामने के ख्याल से इसका टिकट लेने पहुँचे तो टिकट खिड़की पर उँघता बाबू आँखें फाड़ कर कौतुक से देखने लगा कि ये अजूबा सवारी कहाँ से आ गई। पता नहीं अगले साल क्या हो। बिहार में इस चुनाव में माहौल ऍसा है कि कहीं लालू जी का ही टिकट ना कट जाए।

नए बने प्लेनेटोरियम और मुख्य कोतवाली को छोड़ते हुए हम जा पहुँचे हें पटना के व्यस्ततम चौराहे के पास। डाक बँगला के चौराहे पर दिन के समय भी भीड़ है। बस इतनी कृपा हे कि जॉम नहीं है। वैसे भी इस इलाके के खासमखास मार्केटिंग कॉम्पलेक्स हीरा प्लेस (Hira Place) और मौर्य लोक ( Maurya Lok ) के होने से इस भीड़ भाड़ से निज़ात पाना निकट भविष्य में आसान नहीं है। चौराहे से बेली रोड को छोड़ते हुए हम पटना के नृत्य कला मंदिर से गुजर रहे हैं। बचपन के दिनों में रेडिओ स्टेशन से लगे इस अहाते में कुछ कार्यक्रमों को देखने का अवसर मिला है। इमारत का नवीनीकरण होने से इसमें नई जान आई दीखती है।

चित्र सौजन्य : विकीपीडिया

मौर्य होटल, संत जेवियर्स, गोलघर बाँकीपुर हाई स्कूल, गाँधी संग्रहालय के पास से गुजरते हुए हम अब पटना के विशाल गाँधी मैदान का चक्कर लगा रहे हैं। कभी इसी मैदान में कक्षा चार में करीब पाँच किमी पैदल चलते हुए स्कूल की परेड में भाग लेने आया था। वो आधी रात भी यहीं कटी थी जब दशहरा में सालाना होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम में पॉस नहीं मिलने के कारण बाहर बैठना पड़ा था। आज इसी मैदान के बगल में बिस्कोमान भवन के ऊपर एक रिवाल्विंग रेस्ट्राँ खुल गया है जो आज के पटना की नई पहचान है।

गाँधी मैदान का चक्कर खत्म करते ही हम एक दूसरी ऍतिहासिक सड़क की ओर बढ़ रहे हैं जो पुराने पटना यानि पटना सिटी का प्रवेश द्वार है। इस सड़क का नाम है अशोक राजपथ (Ashok Rajpath)। ये सड़क पटना विश्वविद्यालय के सभी मुख्य शिक्षण संस्थानों के लिए प्रवेश मार्ग है। इनमें से अधिकांश अंग्रेजों के जमाने के बने हैं। गंगा नदी के समानान्तर चलती ये सड़क बी एन कॉलेज, पटना कॉलेज, मेडिकल कॉलेज (PMCH),साइंस कॉलेज , इंजीनियरिंग कॉलेज (NIT, Patna) होती हुई पटना सिटी की ओर बढ़ जाती है। अशोक राजपथ पर ही दुर्लभ पुरानी पांडुलिपियों से भरपूर खुदाबख्श लाइब्रेरी , बिहार का सबसे पुराना रोमन कैथलिक चर्च पादरी की हवेली, और मुगल सम्राट जहाँगीर के बेटे परवेज़ की बनाई पत्थर की मस्जिद भी है। इंजीनियरिंग कॉलेज से आगे का रास्ता राज पथ से ज्यादा जन पथ हो जाता है। इसलिए पटना के बाशिंदे भी अपनी इन प्राचीन धरोहरों की ओर बिड़ले ही रुख करते हैं। रिक्शों और ठेलों से पटी सड़क के साथ किरासन तेल पर चलते आटो वस्तुतः आपकी नाम में दम करना वाले मुहावरे को चरितार्थ कर देते हैं।

छोटी पाटन देवी के मंदिर, गाय घाट के गुरुद्वारे की बगल से होते हुए हम जर्जर हो रहे करीब 5.5 किमी भारत के सबसे लंबे सेतु, महात्मा गाँधी सेतु (जो पटना को उत्तर बिहार से जोड़ता है) के नीचे से गुजर रहे हैं। ये पुल सरकार को भारी राजस्व प्रदान करता है। पर पिछले कुछ सालों से इसके खंभों में निरंतर आती दरारों से इंजीनियर परेशान हैं।

चित्र सौजन्य : विकीपीडिया

हरमंदिर साहब अभी भी कुछ दूरी पर है। पटना साहिब का रेलवे चौक आने पर हमें लगता है कि कहीं गुरुद्वारा पीछे तो नहीं छूट गया पर सड़क चलते राहगीर हमें आश्वस्त करते हैं कि हम सही रास्ते पर हैं। पटना के प्रमुख पहचान चिन्हों से गुजरते, पटना सिटी के आटो और ठेलों से बचते बचाते करीब डेढ़ घंटे की सड़क यात्रा कर हम इस गुरुद्वारे के सामने थे।
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गुरुद्वारे के सामने की सड़क तो उतनी ही संकरी है पर राहत की बात ये हे कि गुरुद्वारे के प्रांगण में गाड़ी रखने की विशाल जगह है। गुरुद्वारे के ठीक सामने रुमालों की दुकान है इसलिए अगर सर पर साफा बाँधने के लिए गर कोई कपड़ा ना भी लाएँ हों तो कोई बात नहीं।

वैसे क्या ये प्रश्न आपके दिमाग में नहीं घूम रहा कि झेलम, चेनाब, रावी, सतलज और व्यास के तटों को छोड़कर, पंजाब से इतनी दूर इस गंगा भूमि में गुरु गोविंद सिंह का जन्म कैसे हुआ? इस प्रश्न का जवाब देने के लिए इतिहास के कुछ पुराने पन्नों को उलटना होगा।

इतिहासकार मानते हैं कि 1666 ई में सिखों के नवें धर्मगुरु गुरु तेग बहादुर धर्म के प्रचार प्रसार के लिए पूर्वी भारत की ओर निकले. 1666 ई के आरंभ में वो पटना पहुँचे और अपने अनुयायी जैतमल (Jaitmal )के यहाँ ठहरे। पास के इलाके में ही सलिस राय जौहरी की संगत (Salis Rai Johri”s Sangat) थी जिसके कर्ताधर्ता घनश्याम, गुरु का आशीर्वाद लेने के लिए उन्हें अपने परिवार सहित इस संगत में ले आए। बाद में गुरु तेग बहादुर अपनी पत्नी माता गुजरी को यहाँ छोड़ बंगाल और आसाम की ओर निकल पड़े। 23 दिसंबर 1666 को इसी सलिस राय चौधरी संगत में बालक गुरु गोविंद सिंह का जन्म हुआ।

ये गुरुद्वारा एक विशाल हिस्से मे् फैला हुआ है। मुख्य गुरुद्वारे के चारों ओर दूर से आए हुए भक्तों के रहने की व्यवस्था है। गुरुद्वारे के ठीक सामने और पिछवाड़े में खुला हिस्सा है जहाँ भक्तगण बैठ सकते हैं। गुरुद्वारे के मुख्य द्वार को पार कर हम सीधे चल पड़े। नीचे चित्र में दिख रहा है प्रागण के अंदर से मुख्य द्वार की तरफ का नज़ारा…

तेज धूप में फर्श बुरी तरह जल रही थी। चप्पल उतारते ही हम छायादार चादर के नीचे बने रास्ते की ओर भागे। संगमरमर की सीढ़ियों पर कदम रखते ही तलवों के नीचे की गर्मी गायब हो गई. बगल से स्वादिष्ट हलवे का प्रसाद ले कर हम जन्मस्थान की ओर बढ़े।

गुरुद्वारे में घुसने के पहले ही इस पीले रंग के इनक्लोसर में कुछ पात्र रखे थे और गुरुमुखी में कुछ लिखा था। इसका क्या मतलब था ये तो कोई इस लिपि को जानने वाला ही बता सकेगा।

ये है गुरु गोविंद सिंह का जन्म स्थान। गुरु गोविंद सिंह इस स्थान पर करीब साढ़े छः साल रहे। इस परिसर के ऊपरी कमरों में उनकी स्मृति से जुड़ी कई धरोहरें जैसे चप्पलें, उनके द्वारा प्रयुक्त बाण, पवित्र तलवार, उनके बचपन का पालना आदि मौजूद है।

मुख्य द्वार से दिखती हुई गुरुद्वारे की पूरी इमारत। फिलाहल इसकी गुंबद में कुछ काम चल रहा था।

और ये हैं हमारे सुपुत्र जो सामने के खुले प्रागण में कबूतरों के साथ चित्र खिंचाने के लिए जलते तलवों की परवाह किए बिना दौड़े चले आए।

तो जब भी पटना आएँ तो इस पवित्र स्थल की सैर अवश्य करें और अगर खास इसी को देखने आ रहे हों तो पटना स्टेशन पर ना उतर कर अगले स्टेशन पटना साहेब पर उतरें। वहाँ से ये मात्र एक किमी की दूरी पर है।

22 Comments

  • manish khamesra says:

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  • Mahesh Semwal says:

    Dear Manish,

    I have been to this post earlier also through your blog. Thanks a lot for refreshing the memories once again. I want to visit Patna , Budh Gaya & Vaishali along with family, lets see when the wish will be completed.

    Prof. Sab (Manish Khamesra) – How you type in Hindi ?

  • Nandan says:

    My father was posted at Patna for about 5-6 years. His office was at ‘Ashok Rajpath’ (Publications Division) and my visits to Patna mostly meant spending evenings at Gandhi Maidaan. I haven’t explore Patna in great detail (done the tourist circuit thing though) in my many visits in the past.

    I guess next time, I drive down to my hometown , I would try to take a break of couple of days at Patna and probably drive back via Gaya.

    Thanks a lot Manish.

    • Manish Kumar says:

      I think Patna Sahib, Patna Museum & Gol Ghar are the must see monuments of Patna. There was also a scheme for tourist boat with restraunt in River Ganges but I am not sure whether it is fully functional. But two days will be sufficient to cover Patna in totality.

  • Excellent writeup in Hindi.
    Patna and Bihar are going through a change hopefully this time it will be a good one.

  • JATINDER SETHI says:

    Manish,
    Being out of touch with Hindi,I managed to go through the the whole piece.The slow reading ,and at little audible voice which I could hear myself ,was to take full “Maza” of the dish you have offered.Your style…”April KI TEZ DOPEHAR”..”Sarak Ki oar burh rehay hain”(I wonder if my Roman is right? Wish I could write in Hindi) “Tez dhoop mein fursh buri terha jul…” Your way of expressing reminded me like it was a LIVE commentary of slow march of the procession going on, making the listener walk in step with you.
    I read it little loudly the second time to my grand-daughter,sitting behind me,and she was in Patna walking through Bailey road to Courts and finally to the “hot burning ground of the the holy place;even though we have never been to Patna
    “Aap nein sama bandh diya” Janab

  • Manish Kumar says:

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    http://www.google.com/transliterate/

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  • pravesh says:

    Hi Manish,

    This was one of its kind brief.

    Congratulations to you for posting such a nice experience.

    Keep it up.

  • Ram Dhall says:

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    • Manish Kumar says:

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  • abhishek sharma says:

    very gud

  • Patna says:

    Really, the content you have written here Manish is way too good. wakai dilchasp and pictures provided here are really awesome.

    Loads of appreciation for u!

    • Manish Kumar says:

      Firstly I want to clarify that as mentioned in the post some of the pictures of High Court, Gandhi Maidaan, PWC, Biscoman. Gandhi Setu are not taken by me. I used them to support my narrative.

      You loved the content, I am not surprised. Because its our city. Isn’t it ?

  • Dear Manish,
    Today, I read your post again because Patna is on my wish list now – thanks to an invitation from a friend to visit the historical city.
    I can’t understand why all Hindi comments are being rendered in garbled state these days. It can’t be fault of wordpress because many other wp sites are fully supportive to the Hindi Unicode fonts. I complained about it to the team also but may be Hindi is no more their area of concern! Nandan! Are you reading this or not?

    Well, I am bookmarking this post because I would be needing all the details soon. Thank you for explaining Patna in such a lucid manner. Bye for now.

    • Nandan Jha says:

      Yes Sushant Sir. I am. Not been able to spend time to figure out the reason. We had to move Ghumakkar to a new host (and then again to another one) and this thing broke in between. Would try to fix.

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