मथुरा एवं गोकुल – नन्हे कन्हैया की मधुर स्मृतियाँ………..
गोकुल की गलियों का ग्वाला, नटखट बड़ा नंदलाला
Read Moreगोकुल की गलियों का ग्वाला, नटखट बड़ा नंदलाला
Read MoreThere is a separate line for women there, usually that is longer. And you would have a bunch of touts who would offer you options to by pass the long queue. Totally avoidable. The line moves fast and shouldn’t take you more than 10 minutes. 20 bucks per ticket, if you are an Indian citizen and INR 250 for foreign tourists. Also kids up to the age of 15 have free entry. Do not carry anything except your camera and phone inside. Usually the security would withhold everything else, even my son’s dinosaur toys.
It is usually crowded and stuffed inside the tomb. Do not try to click a pic inside with your mobile. There is an old caretaker who would snatch your phone and throw it outside. Yes. Once you are out and on your way back, at the exit there would be people trying to sell you small mementos of Taj. The fair price is 20 bucks, so don’t get tricked like me. I paid 50 per piece and was superbly excited about my skills to bargain when another kid walked up and offered me the same for 15-20 bucks per piece.
Read Moreतो साब! ऐसे बना हमारा हरिद्वार का प्रोग्राम जिसमें मेरा कतई कोई योगदान नहीं था। घर के ताले – कुंडे बन्द कर के हम चारों अपनी बुढ़िया कार में बैठे, रास्ते में सबसे पहले पंपे पर गाड़ी रोकी, पांच सौ रुपल्ली का पैट्रोल गाड़ी को पिलाया, गाड़ी में फूंक भरी (मतलब हवा चैक कराई) और हरिद्वार की दिशा में चल पड़े! मारुति कार में और चाहे कितनी भी बुराइयां हों, पर एक अच्छी बात है! हवा-पानी-पैट्रोल चैक करो और चल पड़ो ! गाड़ी रास्ते में दगा नहीं देती !
चल तो दिये पर कहां ठहरेंगे, कुछ ठिकाना नहीं ! गर्मी के दिन थे, शनिवार था – ऐसे में हरिद्वार में बहुत अधिक भीड़ होती है। नेहा इतनी impulsive कभी नहीं होती कि बिना सोचे – विचारे यूं ही घूमने चल पड़े पर बच्चों की इच्छा के आगे वह भी नत-मस्तक थी! मन में यह बात भी थी कि अगर हरिद्वार में कोई भी सुविधाजनक जगह ठहरने के लिये नहीं मिली तो किसी न किसी रिश्तेदार के घर जाकर पसर जायेंगे! “आपकी बड़ी याद आ रही थी, कल रात आपको सपने में देखा, तब से बड़ी चिन्ता सी हो रही थी ! सोचा, मिल कर आना चाहिये!” अपनी प्यारी बड़ी बहना को छोटी बहिन इतना कह दे तो पर्याप्त है, फिर आवाभगत में कमी हो ही नहीं सकती!
कार ड्राइव करते हुए मुझे अक्सर ऐसे लोगों पर कोफ्त होती है जो ट्रैफिक सैंस का परिचय नहीं देते। मैं यह कह कर कि “इन लोगों को तो गोली मार देनी चाहिये” अपना गुस्सा अभिव्यक्त कर लिया करता हूं! बच्चे मेरी इस आदत से परिचित हैं और उन्होंने अब इसे एक खेल का रूप दे दिया है। जब भी सड़क पर कुछ गलत होता दिखाई देता है तो मेरे कुछ कहने से पहले ही तीनों में से कोई न कोई बोल देता है, “आप शांति से ड्राइव करते रहो! गोली तो इसे हम मार देंगे।” मुझे भी हंसी आ जाती है और गुस्सा काफूर हो जाता है।
Read Moreलंगर से बाहर निकल कर पुनः वही प्रश्नचिह्न सम्मुख आ खड़ा हुआ – “अब क्या?“ अचानक मुझे याद आया कि एक मित्र ने रामबाग समर पैलेस यानि, महाराजा रणजीत सिंह के महल का ज़िक्र किया था और कहा था कि मैं उसे अवश्य देख कर आऊं। रिक्शे वालों से पूछना शुरु किया तो सबने 30 रुपये बताये। मुझे लगा कि अमृतसर के रिक्शे वालों को तीस का आंकड़ा कुछ ज्यादा ही पसन्द है। रामबाग पैलेस चलने के लिये एक रिक्शा कर लिया। स्वर्ण मंदिर में हर किसी को कार सेवा में तन्मयता से लगे हुए देखते देखते, मुझे लग रहा था कि यह रिक्शावाला भी तो इस विशाल समाज के लिये एक अत्यन्त उपयोगी कार सेवा ही कर रहा है। अतः उसके प्रति सम्मान की भावना रखते हुए मैं रिक्शे में ऐसे सिमट कर बैठा जैसे मेरे सिमट कर बैठने मात्र से मेरा 82 किलो वज़न घट कर 60 किलो रह जायेगा। मेरा वज़न घटे या न घटे ये तो वाहेगुरु जी की इच्छा पर निर्भर है, पर मुझे उम्मीद है कि उन्होंने मेरी भावनाओं को तो अवश्य ही समझ लिया होगा।
Read MoreTwo centuries ago when the Nawabs were driving around in their horse drawn buggies they would give way of right to the horse drawn buggy of the fellow Nawab, both on their way to Hazratganj for shopping. This was perfectly normal in the true spirit of Pehle Aap (after you) culture of Lucknow. After all, that was the era of leisure, languidness and laid back, aptly depicted in Satyajit Ray’s ‘Shatranj ke Khiladi’.
Times have definitely changed now. Goons – elected or otherwise – sitting in their Endeavours, with number plates emblazoned with their self-christened designations, pressure horns on full blast, bulldoze their way through the crowded streets. Of course the number plates do not carry registration numbers and the horn has to sound the loudest. Few moments caught in this decibelly deafening din will bring in the worst headache and probably convulsions. Guantanamo Bay authorities could play this cacophonic recording and the Al-Qaeda inmates would start singing like canaries instead of paying royalties to music companies for playing their metal rock.
You are startled and jump off the street when you hear a truck horn, only to see a motorcycle whizz past you. In Punjab, your vehicle needs to be shod with the flashiest alloys. In Lucknow, people get turned on by going sadistic on your ears. It is auditory mayhem on the roads.
Read MoreThere are 4 things to see in Fatehpur Sikri fort complex Buland Darwaza, Fatehpur Sikri Fort, Tomb of Salim Chishti, and the Panch Mahal.All these places are architectural marvels of that time.The paintings on the main fort structure are exceptional.Many movies like Pardes, mere brother ki dulhan etc were shot here.
The Dargah of salim chisti was the best thing after Buland Darwaza which is the highest in the world The magnificent size of the buland darwaza was eye catching ..there are about 100-150 stairs then the gigantic structure called Buland Darwaza. Akbar later built the fort here and Jahangir did the marble art on Salim Chisti Dargah .In salim chisti dargah one can pray and can tie a knot to make a wish.As Akbar also wished for a child here and his wish got fulfilled.Even today people make wishes here.
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