Uttar Pradesh

Golden Triangle – Agra, Fatehpur Sikri

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We then decided that we should go around Agra a bit like visiting Red Fort. So, we took a Tonga to go to Red Fort. We enjoyed the ride and Tonga wallah obliged by letting us take pictures with Tonga. Red Fort was another revelation with so many stories about it. We had hired a guide who was telling us all the places where Shahjahan lived or exiled, where his daughters lived, mosque, sheesh mahal, bombshell damage etc. Soon, it was dusk and there were lot of birds circling the fort and its courtyard. We imagined how it would have been for Shahjahan watching his beloved Taj Mahal and the Yamuna while in exile.

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लखनऊ में हैं गर तो इमामबाड़ा देखना ना भूलियेगा जनाब !

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लखनऊ में हैं आप और बड़ा इमामबाड़ा नहीं देखा तो ऐसा ही है जैसे आगरा जाकर ताजमहल ना देख पाए हों या दिल्ली में होकर भी इंडिया गेट नहीं देख पाये.

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लखनऊ का इमामबाड़ा और शाही बावली की घुम्मकड़ी

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इमामबाड़े की दूर तक फैली सीढ़ियां तथा बाईं ओर शाही बावली और दाईं और नायाब मस्जिद के चित्र तत्कालीन वास्तुकला की भव्यता का सजीव चित्रण कर रहे थे. मैंने जूते उतारकर इमामबाड़े …

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सरधना– मैरी का चर्च, बेगम सुमरू और उनका राजप्रासाद

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गेट के निकट ही गाड़ी दीवार से सटाकर खड़ी कर हम अपना कैमरे का बैग और पानी की बोतल लिए एंट्री को तैयार थे, लेकिन गेट पर तैनात दो लोगों ने रोकते हुए साफ़ पूछा कि “क्या आप लोग कैथोलिक हैं?”, हम प्रश्न के लिए तैयार नहीं थे, फिर भी हमने दृढ़ता से उनके प्रश्न का नकारात्मक उत्तर देते हुए अपनी सम्बद्धता स्पष्ट की. पर उसने हमें साफ़ तौर से एंट्री देने से मना कर दिया. कारण: संडे के दिन १२ बजे तक का समय प्रार्थना के लिए निर्धारित है और उसमे केवल क्रिस्चियन ही जा सकते हैं. और भी तमाम लोग एंट्री की अपेक्षा में वहां मौजूद थे.

कुछ देर बाद फिर से प्रयास करने पर गेटमैन ने एंट्री दे दी हालाँकि अभी १२ बजने में लगभग २० मिनट शेष थे.

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हिंदुस्तान का नाज़, यक़ीनन ताज….

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तकरीबन तीन घंटे की स्मूथ ड्राइव के बाद आगरा शहर में दिशा निर्देशो का पीछा करते हुए हम लोग होटल मधुश्री के सामने आकर खड़े हो गए. यमुना एक्सप्रेसवे से बाहर निकल कर जब आप आगरा शहर में प्रवेश करते है तो नाक की सीध में चलते चले जाने से एत्माददुल्ला के मकबरे (किले) की तरफ जाने वाले रस्ते पर एक टी पॉइंट आता है जिसमे यह होटल बिलकुल कोने पर ही बना हुआ है और इस होटल से दो मार्ग जाते है पहला आपको रामबाग, मथुरा, दिल्ली की तरफ ले जाता है और दूसरा मार्ग एत्माददुला और ताज महल की तरफ ले जाता है। इस होटल की एक बात मुझे और अच्छी लगी की आगरा की भीड़ से आप बचे भी रहेंगे और शांति भी बनी रहेगी अन्यथा जैसे-२ आप शहर के भीतर बढ़ते चले जाते है बेतहाशा ट्रैफिक और गन्दगी के ढेर आपको परेशान करते रहते है. और एक बात जिसकी हमे बहुत आवश्यकता थी वो थी कार पार्किंग जिसका बंद गलियो वाले रास्तो पर मिलना बहुत ही कठिन कार्य लग रहा था और एक पल को तो हमे लगा की कहीं हम इस भूल भुलैया में ही घूमते हुए न रह जाये। होटल के प्रांगण में कार पार्किंग का पर्याप्त स्थान मिल जाने के कारन एक मुसीबत तो हल हो चुकी थी और अब बारी थी उस जोर के झटके की जो धीरे से लगने वाला था अर्थात कमरे का किराया। होटल के अंदर स्वागत कक्ष में उपलब्ध प्रबंधक साहब ने बताया की यह होटल अधिकतर बिजनेस मीटिंग्स के लिए ही बुक रहता है जिसमे फॉरेन डेलीगेट्स आकर ठहरते है अतः आपको एक कमरा मिल तो जायेगा किन्तु चार्जेज लगेंगे पूरे पच्चीस सौ रूपए। अब मरता क्या न करता, आगरा के भीतर घुसकर ट्रैफिक से जूझने और कमरा ढूंढने की हिम्मत तो नहीं हो रही थी अतः महाशय को एडवांस में रूम चार्जेज का भुगतान करने के बाद अब हम लोग निश्चिंत होकर ताज देखने के लिए अपनी आगे की योजना बनाने लगे. वैसे यहाँ एक बात और बताना चाहूंगा की साफ़-सफाई और सुविधा की दृष्टि से होटल में कोई कमी नहीं थी, कार पार्किंग के अलावा अलमारी, सोफ़ा, एक्स्ट्रा पलंग, कलर टीवी, एयर कंडीशनर, संलग्नित बाथरूम, फ़ोन व् फ्री वाईफाई जैसे तमाम विकल्प मौजूद थे.

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श्रावस्ती संस्मरण – भाग १ ( Memories of Sravasti -1)

श्रावस्ती संस्मरण – भाग १ ( Memories of Sravasti -1)

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श्रावस्ती से भगवान्‌ बुद्ध का गहरा रिशता   रहा है । यह तथ्य इसी से प्रकट होता है कि जीवन के उत्तरार्थ के २५ वर्षावास( चार्तुमास ) बुद्ध ने श्रावस्ती मे ही बिताये । बुद्ध वाणी संग्रह त्रिपिटक के अन्तर्गत ८७१ सूत्रों ( धर्म उपदेशॊ )  को भगवान्‌ बुद्ध ने श्रावस्ती प्रवास मे ही दिये थे , जिसमें ८४४ उपदेशों को जेतवन – अनाथपिंडक महाविहार में व २३ सूत्रों को  मिगार माता पूर्वाराम मे उपदेशित किया था । शेष ४ सूत्रों समीप के अन्य स्थानों मे दिये गये थे । भगवान बुद्ध के महान आध्यात्मिक  गौरव का केन्द्र बनी श्रावस्ती का सांस्कृतिक प्रवाह मे भयानक विध्वंसों के बाद वर्तमान मे भी यथावत है ।

इतिहास मे दृष्टि दौडायें तो कई रोचक तथ्य दिखते हैं । प्राचीन काल में यह कौशल देश की दूसरी राजधानी थी। भगवान राम के पुत्र लव ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। श्रावस्ती बौद्ध व जैन दोनो का तीर्थ स्थान है।

माना गया है कि श्रावस्ति के स्थान पर आज आधुनिक सहेत महेत ग्राम है जो एक दूसरे से लगभग डेढ़ फर्लांग के अंतर पर स्थित हैं। यह बुद्धकालीन नगर था, जिसके भग्नावशेष उत्तर प्रदेश राज्य के, बहराइच एवं गोंडा जिले की सीमा पर, राप्ती नदी के दक्षिणी किनारे पर फैले हुए हैं।

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