सुबह उठ्कर नहा-धोकर आश्रम पर नाश्ता करने के बाद महाराज जी से मिले और उनका आशीर्वाद लेकर हरिद्वार की ओर चल दिये। ऋषिकेश से निकलते ही तेज बारिश शुरु हो गयी और हरिद्वार तक पुरे रास्ते में बारिश होती रही और इसलिये हरिद्वार पहुँचने में हमें काफ़ी समय लग गया। मुझे, शुशील और सीटी को छोड़कर बाकी पाँच लोगों की यह पहली हरिद्वार यात्रा थी।
“हिन्दी में, हरिद्वार का अर्थ हरि “(ईश्वर)” का द्वार होता है। हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों (सप्त पुरी -अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार ,वाराणसी, कांचीपूरम्, उज्जैन, द्वारका) में से एक है। 3139 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गौमुख (गंगोत्री हिमनद) से 253 किमी की यात्रा करके गंगा नदी हरिद्वार में गंगा के मैदानी क्षेत्रो में प्रथम प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को गंगाद्वार के नाम सा भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं। गंगा नदी के किनारे बसा हरिद्वार अर्थात् हरि तक पहुंचने का द्वार सदियों से पर्यटकों और श्रद्धालुओं को आकर्षित करता रहा है। इस शहर की पवित्र नदी में डुबकी लगाने और अपने पापों का नाश करने के लिए साल भर श्रद्धालुओं का आना जाना यहां लगा रहता है। गंगा नदी पहाड़ी इलाकों को पीछे छोड़ती हुई हरिद्वार से ही मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है। उत्तराखंड क्षेत्र के चार प्रमुख तीर्थस्थलों का प्रवेशद्वार हरिद्वार ही है। संपूर्ण हरिदार में सिद्धपीठ, शक्तिपीठ और अनेक नए पुराने मंदिर बने हुए हैं।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से aअमृत-क्लश से तब गिर गयीं जब खगोलीय पक्षी गरुड़ उस aअमृत-क्लश को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। जिन चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं वे स्थान हैं:- उज्जैन, हरिद्वार, नासिक, और प्रयाग| आज ये वही स्थान हैं जहां कुम्भ मेला चारों स्थानों में से किसी भी एक स्थान पर प्रति 3 वर्षों में और हर 12वें वर्ष इलाहाबाद में महाकुम्भ के रुप में आयोजित किया जाता है। पूरी दुनिया से करोडों तीर्थयात्री, भक्तजन, और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं।
हरिद्वार में जिस स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थी उसे हर-की-पौडी पर ब्रह्म कुंड माना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ईश्वर के पवित्र पग’। हर-की-पौडी, हरिद्वार के सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है”।
हरिद्वार पहुँच कर हम हर की पौडी के पास मौजुद पार्किंग में चले गये। सीटी भी अपनी मौसी के घर से वहाँ पहुँच गया था। गाड़ी से नहाने के लिये कपड़े निकाल कर सभी गंगा जी में नहाने के लिये चल दिये। गुप्ता जी आज सुबह से ही बिल्कुल चुप बैठे थे। वो अब सबसे नाराज थे। हमसे तो उनकी नाराजगी पुरानी हो गयी थी लेकिन बाकी लोगों से उनकी नाराजगी नयी-2 थी। मैने गुप्ता जी को बुलाया और उनसे गंगा जी में नहाने के लिये चलने को कहा लेकिन उन्होनें मना कर दिया, मैने फिर कहा, गुप्ता जी नाराजगी छोड़ दो, पहली बार आप हरिद्वार आये हो, गंगा जी में स्नान तो कर लो लेकिन उन्होनें फिर मना कर दिया और कहा कि मेरी आँखे दुःख रही हैं इसलिये मैं नहीं जा रहा, नाराजगी की कोई बात नहीं है। इसके बाद हम लोग हर की पौडी की ओर चल दिये। मैं ,शुशील और सीटी तो हर की पौडी पर नहाने चले गये लेकिन बाकी साथी उससे पहले ही एक अन्य घाट पर नहाने लग गये।
हर की पौडी पर स्नान करने के बाद हम सब ने 2-2 लीटर की कैन ली और उसमें घर के लिये गंगाजल भर लिया और फिर वहाँ की मशहूर पुरी-कचोरी खाई। खाना- पीना करने के बाद बच्चों के लिये थोड़ी खरीददारी की गयी और फिर हम वापिस गाड़ी की ओर चल दिये। इन सब कामों में काफ़ी समय लग गया था और हम सोच रहे थे कि सब हमारा इन्तज़ार कर रहे होगें लेकिन गाड़ी पर जाकर मालुम हुआ कि अभी कोई नहीं पहुँचा था। थोड़ा इन्तज़ार के बाद बाकी साथी भी गाड़ी पर पहुँच गये। सारे सामान को फिर से दुबारा पैक किया और सारा सामान गाड़ी के उपर रखकर तिरपाल से ढक कर अच्छी तरह से रस्सी से बाँध दिया और यात्रा के आखिरी चरण, अम्बाला वापसी के लिये चल दिये। हरिद्वार से निकलते -2 लगभग दोपहर के एक बज चुके थे। हरिद्वार से अम्बाला तक के सफ़र में एक बार सहारनपुर चाय के लिये रुके और इस तरह हम लोग रास्ते में मस्ती करते हुए ,खाते-पीते शाम पाँच बजे तक अम्बाला पहुँच गये और खट्टी –मिठ्ठी यादों के साथ यात्रा को विराम दिया।
आठ व्यस्क व एक दस साल के बच्चे का आठ दिन की यात्रा का खरचा:
गाड़ी का किराया 1300 * 8 दिन = 13400
डीजल+ पार्किंग +टोल टैक्स +ड्राईवर खाना = 6000
आश्रम पर आते व जाते स्वेच्छापूर्वक दिये (500*2) = 1000 (दो रातें आश्रम पर रुके थे)
कमरों का किराया (Cचार रातों का ) = 7800
खाने-पीने का खरचा = 9700
ड्राईवर को इनाम = 600
टोट्ल
मेरे लिये यह विराम अल्प- विराम ही था क्योंकि 6-7 दिन बाद ही मुझे अमरनाथ यात्रा पर निकलना था। इस लम्बी और थकाऊ यात्रा से आने के बाद सभी लोगों को थकावट, खाँसी ,गला खराब और छाती में जकडन की शिकायत हो गयी थी जो शायद तापमान में आये अचानक परिवर्तन के कारण थी क्योंकि लगभग दो दिन में हम लोग 0 डिग्री से 44-45 डिग्री तापमान में आ गये थे्। इसीलिए मेरे साथ अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिये कोई भी तैयार नहीं था और अमरनाथ यात्रा के स्थाई साथी शुशील ने भी मना कर दिया लेकिन मैं चाहता था कि इस लम्बी यात्रा पर अकेला जाने की बजाय किसी के साथ जाया जाये ताकि सफ़र में बोरियत ना हो।
इधर पिछ्ले कई सालों से मेरी पत्नी मेरे साथ अमरनाथ यात्रा पर जाने के लिये कह रही थी लेकिन बच्चे छोटे होने के कारण कभी जा नहीं पाई थी। बच्चे तो अभी भी छोटे ही थे और मेरी छोटी बिटिया उस समय सिर्फ़ चार साल की ही थी। मेरी पत्नी मुझे इस वर्ष अकेला जाते देख मेरे साथ चलने की जिद्द करने लगी, लेकिन मेरी पत्नी के मेरे साथ अमरनाथ यात्रा पर जाने में कुछ दिक्कतें थी। पहली, आज तक बच्चे कभी भी,कहीं भी मेरी पत्नी से अलग, अकेले नहीं रुके थे और दुसरी, हमारा उनके स्कूल खुलने से पहले लौटना भी जरुरी था। इसके अलावा एक दिक़्क़त मुझे थी्। मैं अभी 8 दिन की छुट्टियाँ काटकर कार्यालय में आया था और फिर से 5-6 दिन की छुट्टियाँ मिलना बहुत मुश्किल था। लेकिन जिसे भोले नाथ बुलाते हैं तो उसके आने के सारे रास्ते भी खोलते हैं । हमने बच्चों को उनकी नानी के घर छोड़ने का फ़ैसला किया लेकिन उनको अपने जाने की बात नहीं बताई और मेरी दोनो बेटियाँ इसके लिये आराम से तैयार हो गयी। मेरे कार्यालय में 7 दिन कार्य का प्रावधान होने के कारण मेरे अधीनस्थ अधिकारियों/कर्मचारियों में से एक को रविवार को अवश्य आना पड़ता था। मैनें आने वाले रविवार को सबको छुट्टी दे दी और खुद कार्य पर चला गया। इससे मेरा एक अवकाश देय हो गया और तीन दिन की आकस्मिक छुट्टी ले ली तथा एक अगला रविवार मिलाकर पाँच छुट्टियाँ हो गयी। जरुरत पड़ने पर एक अन्य आकस्मिक छुट्टी बाद में फोन पर लेने का निशचय कर तत्काल आरक्षण से हेमकुंड एक्सप्रेस में जम्मूतवी की दो बर्थ बुक करवा ली। मैने अपने कार्यालय में किसी को भी अमरनाथ यात्रा पर जाने के बारे में नहीं बताया।
अमरनाथ यात्रा 2011 का संक्षिप्त वर्णन: केदारनाथ-बद्रीनाथ यात्रा से लौटने के ठीक आठ दिन बाद 27-जुन-2011, दिन सोमवार ,रात्रि 9:30 पर हम हेमकुंडएक्सप्रेस में अमरनाथ यात्रा के लिये जम्मु के लिये रवाना हो गये। सुबह 5 बजे जम्मु रेलवे स्टेशन पहुँचकर सीधा जम्मु बस स्टैंड चले गये। वहाँ से s सुबह 6 बजे साझी टैक्सी में 600 रुपये प्रति सवारी के हिसाब से श्रीनगर के लिये निकल गये। शाम 4 बजे तक हम श्रीनगर पहुँच गये पर वहाँ से उस समय बा्लटाल जाने के लिये कोई साधन उपलब्ध नहीं था। पता करने पर मालूम हुआ कि बालटाल जाने के लिये श्रीनगर के पर्यटक स्वागत केन्द्र से सुबह 6 बजे से साझी टैक्सी और बस मिल जायेगी। हम लोग वहाँ से डल झील की तरफ़ चले गये और वहाँ एक होटल में एक कमरा ले लिया। मैं तो पहले भी 10-11 बार श्रीनगर जा चूका था और सारा शहर अच्छी तरह घुमा हुआ था लेकिन मेरी पत्नी पहली बार यहाँ आई थी इसलिये कमरे में थोड़े आराम के बाद तरोताजा होकर जल्दी से श्रीनगर घुमने के लिये निकल गये। आधा घंटा शिकारे में बैठ्कर डल झील में नौका विहार किया और उसके बादडल झील के आस-पास के महत्वपूर्ण स्थानों और बाजारों में घुमते रहे। मेरी पत्नी की ‘थोड़ी सी’ खरीददारी और रात्रिभोज के बाद कमरे में आकर सो गये।
सुबह 5 बजे उठकर, जल्दी से तैयार होकर, श्रीनगर पर्यटक स्वागत केन्द्र चले गये और वहाँ से कि बालटाल जाने के लिये सुबह 6 बजे साझी टैक्सी में 400 रुपये प्रति सवारी के हिसाब से श्रीनगर से निकल गये। वैसे तो 100 किलोमीटर के इस सफ़र के लिये सिर्फ़ तीन घंटे लगते हैं लेकिन रास्ते में काफ़ी जगह ट्रैफ़िक जाम के कारण हम 10:30 तक हीबालटाल पहुँच सके। गहन जाँच paपडताल के बाद हम बालटाल आधार-शिवर में प्रवेश कर गये। अपना सारा फ़ालतू सामान हमने एक बैग में कर दिया और उसे वहीं क्लाक रुम में जमा करवा दिया। अपने पिठ्ठू बैग में वर्षा से बचने के लिये रेन-कोट और गर्म कपड़े डाल लिये थे। नाश्ता करने के बाद , गहन सुरक्षा के बीच हमने लगभग 11:30 बजे अमरनाथ यात्रा के लिये चड़ाई शुरु कर दी। आसपास के प्राकृतिक सौंदर्य का नज़ारा लेते हुए, सुन्दर घाटियों को निहारते हुए हम धीरे-2 चलते गये और लगभग शाम 7 बजे अमरनाथ गुफ़ा के पास पहुँच गये।उस समय दर्शन बदं होने वाले थे इसलिये वहाँ पहुँचकर रात्री के लिये एक छोटा टैन्ट 350 रुपये में लिया और भड़ारे में लंगर खाकर सो गये।
सुबह 6 बजे उठकर, जल्दी से तैयार होकर, दर्शनों के लिये लाइन में लग गये और थोड़ी ही देर बाद हम अमरनाथ गुफ़ा में पहुँच गये। भोले नाथ के दर्शनों से अभिभूत हो अपनी भुख, प्यास, थकावट सब कुछ भुल काफ़ी देर वहीं रुके रहे। दर्शनों के बाद हमने नाश्ता किया और वापसी शुरु कर दी और शाम चार बजे तक बालटाल आधार-शिवर में पहुँच गये। वहाँ पहुँचकर खाना खाया और थोड़ी देर आराम करने के बाद गरम पानी लेकर स्नान किया। उसके बाद बालटाल में थोड़ा घूमने के बाद रात को अपनी रुकने की जगह आकर सो गये। सुबह उठकर बालटाल से सीधा जम्मू के लिये बस ली और रात 11 बजे जम्मू रेलवे स्टेशन पहुँच गये और विश्रामालय में जाकर सो गये। सुबह उठकर 9:30 बजे मालवा एक्सप्रेस पकड़ कर दोपहर 3:30 बजे अम्बाला रेलवे स्टेशन पहुँच गये और शाम चार बजे तक अपने घर पहुँच गये। इस तरह पाँच दिन में अमरनाथ यात्रा पूरी कर जुन के महीने में ही केदारनाथ से अमरनाथ तक की यात्रा का सफ़र समाप्त किया।
जय भोले की……………॥
जय भोले की……………॥
अमरनाथ यात्रा 2011 की कुछ तस्वीरें
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Thanks Lakshay …
Detailed Amarnath Yatra report covering both tracks i.e. Pahalgam and Baltal will be written and published soon before the beginning of this year Amarnath Yatra. This was the main reason that I have kept it short here.
Hi Mr. Naresh Sehgal,
All series is very good and photos are excellent. Amarnath yatra so fast, thanks sharing with us.
Thanks Surinder Sharma Ji …
Detailed Amarnath Yatra report covering both tracks i.e. Pahalgam and Baltal will be written and published soon before the beginning of this year Amarnath Yatra. This was the main reason that I have kept it short here.
Naresh Ji, Namaskar.
Bahut achchi post hai. Aapke dwara diya gaya varnan bahut hi sajeev hai.
Rakesh Bawa ji.
Thanks. Aapki Kashmir series mein agli post kab aa rahi hai?
Naresh Ji,
Thanks for sharing the valuable information through this series with us.
All the photos are beautifully captured.
Thanks Ajay Bhai..
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Thanks Saurabh Gupta ji..
Thanks for sharing the series. It is written so simple and heart touching.
Thanks Nishi for liking the series..
Naresh Sehgal first of all congratulations for selection of your story as Featured story of the month.
The series was quite descriptive with beautiful fotos. But you should not have added Amarnath to it. Amarnath is such a place and this journey is so fascinating that unless we present it in minimum 4-5 posts, we are not actually doing justice to this magnificent journey….?? ???? ??? ? ????? ?? ?? ?? ????? ? ?? ??????…
I enjoyed the whole series of course w/o the Amarnath part.
Thanks SilentSoul…
Detailed Amarnath Yatra report covering both tracks i.e. Pahalgam and Baltal will be written and published soon before the beginning of this year Amarnath Yatra. This was the main reason that I have kept it short here.
Grand finale of the big series with a teaser of Amarnatah Yatra. Traveling takes a lot of endurance and effort and to go to a tough trek, just after a roller-coaster ride indeed talks a lot about you. Kudos.
Congratulations once more for the recognition of ‘Ghumakkar Featured Story of March 2013’. Wishes.
Thanks Nandan Ji..
Naresh Ji Namaskar…
Saal me ek ya 2 baar aapke saare blogs zaroor padhta hu amarnath yatra se jude hue.Aaj bhi aapka blog padhte hue kedarnath or badrinath wala blog mila padhke bhot accha laga har choti baatien aapne cover ki hai or itti detail me likhna wakai me mushkil hota hai.2015 ki amarnath yatra aapne daali hui hai agar me galat nhi hu toh 2015 ke baad ki jitni bhi aapne yatra ki unhe aap kab publish kar rhe hai bhot lambe samay se intezaar hai… Dhanyawad.