सुबह जल्दी उठ्कर नित्य-कर्म से निपट कर फिर गंगा जी में स्नान करने के लिये नीचे गये । नहाने के बाद जल्दी से तैयार होकर मन्दिर में गये। मन्दिर में आरती चल रही थी। आरती खतम होने के बाद महाराज जी मिले ओर चलने कि इजाजत माँगीं। महाराज जी ने नाश्ता करके जाने को कहा, लेकिन नाश्ता त्तैयार होने में अभी समय लगना था। इसलिये हम वहाँ से बिना कुछ खाए ही लगभग सुबह 6 बजे निकल लिये। क्योंकि इन दिनो हेमकुन्ठ साहिब की यात्रा भी चल रही थी, रास्ते में कुछ जगह लोगों ने यात्रीयों के लिये भन्डारे लगाये हुए थे्। ऐसा ही एक भन्डारा हमें आश्रम से थोड़ा आगे चलने के बाद मिला, जहां चाय, पकोडे और शक्कर-पारे मिल रहे थे। भन्डारे के सेवक गाड़ियाँ रुकवा-2 कर वहाँ आने के लिये कह रहे थे। हमने भी अपनी गाड़ी से उतर कर सड़क के किनारे लगे इस भन्डारे में चाय, पकोडे और शक्कर-पारे खाये। पेट पूजा करने के बाद हमने आगे की यात्रा जारी की।
थोडी ही देर बाद मौसम ख्रराब होने लगा और हलकी बारिश होने लगी। रास्ता पूरी तरह पहाडी था और इसलिये गाड़ी भी धीरे चल रही थी। धीरे-2 बादल काले होने लगे और अन्धेरा छा गया तथा मुसलाधार बारिश होने लगी। इतना अन्धेरा छा गया कि हमें सुबह 7:30 बजे भी गाड़ी की लाईट जलानी पडी। बहुत सी गाड़ियाँ सुरक्षित स्थानो पर रुक गयी, लेकिन हमारी गाड़ी धीरे-2 चलती रही। लगभग एक घंटे के बाद बारिश बन्द हुई तथा मौसम साफ़ हो गया। ठीक 9 बजे हम देवपर्याग पहुँच गये । वहाँ पहुँच कर गाड़ी रोकी और हम थोड़ी देर घुमने के लिये गाड़ी से बाहर निकले।
उत्तराखंड के प्रसिद्ध पंच प्रयाग देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नन्दप्रयाग तथा विष्णुप्रयाग मुख्य नदियों के संगम पर स्थित हैं । नदियों का संगम भारत में बहुत ही पवित्र माना जाता है विशेषत: इसलिए कि नदियां देवी का रूप मानी जाती हैं। पहला प्रयाग विष्णु प्रयाग है जहाँ अलकनंदा से धौली गंगा मिलती है। दूसरा प्रयाग नन्दप्रयाग है यहाँ नन्दकिनी नदी अलकनंदा मे मिलती है। तीसरा प्रयाग कर्ण प्रयाग है यहाँ पिंडर नदी अलकनंदा मे मिलती है। चौथा प्रयाग रुद्रप्रयाग है, रुद्रप्रयाग मे मंदाकिनी अलकनंदा से मिलती हैं और पाँचवा देव प्रयाग में अलक्नन्दा और भागीरथी नदी का संगम होता है और यहीं से गंगा नदी की शुरुआत भी होती है। मुख्य मार्ग से देखें तो बायीं तरफ़ से भागीरथी जी आती हैं और दायी तरफ़ से अलक्नन्दा जी। संगम स्थल पर अलक्नन्दा में जल-प्रवाह भागीरथी की तुलना में काफ़ी ज्यादा है लेकिन पानी भागीरथी जी का ज्यादा साफ़ है। भागीरथी जी सीधे गंगोत्री से आ रही हैं और अलक्नन्दा जी बद्रीनाथ से। थोड़ी देर वहाँ रुकने के बाद श्रीनगर की तरफ़ चल दिये।
थोडा आगे चलते ही एक पुलिसकर्मी ने हाथ देकर गाड़ी रुकवा ली। वहाँ पहले से ही कई गाड़ीयां खडी थी और वाहनों के दस्तावेजों की जाँच हो रही थी। सड़क के किनारे पुलिसकर्मियों की गाड़ी खडी थी और काफ़ी पुलिसकर्मी भी। हमने अपने चालक से दस्तावेजों के बारे में पूछा और उसने बताया कि उसके पास पूरे दस्तावेज हैं । हमसे आगे वाली गाड़ी पंजाब से थी और जैसे ही पुलिसकर्मी ने उससे गाड़ी के दस्तावेज मांगे, गाड़ी चालक ने उसे 50 का नोट पकड़ा दिया।पुलिसकर्मी ने भी उसे जाने दिया। पुलिसकर्मी हमारी गाड़ी पर आया और दस्तावेज मांगे। चालक ने सारे दस्तावेज दिखाये लेकिन पुलिसकर्मी ने उसे बाहर आने को कहा और उसे अपने अफ़सर के पास ले गया। इसे देखते ही हमारे सीटी जी उर्फ़ ASI साहिब तुंरत हरकत में आये और चालक के साथ चले गये और थोड़ी देर बाद निपट कर वापिस आये तथा चालक को चलने को कहा। चलने के बाद हम सीधा श्रीनगर पहुचे।
देवप्रयाग से श्रीनगर की दूरी लगभग 34 किलोमीटर है। पूरे रास्ते में सड़क के साथ-2 अलकनंदा नदी बहती है।श्रीनगर शहर भी अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है । शहर से बाहर निकलते ही अलकनन्दा नदी पर जल विधुत परियोजना का कार्य चल रहा था, वहीं जाकर रुके। 2-4 फोटोग्राफ खिंचने के बाद हम रुद्रप्रयाग की और चल दिये। श्रीनगर से रुद्रप्रयाग की दूरी लगभग 33 किलोमीटर है और दोपहर एक बजे के करीब हम रुद्रप्रयाग पहुँच गये। वहाँ हम सबने खाना खाया, चाय पी और आगे की यात्रा जारी की। यहीं से एक मार्ग बायीं तरफ़ मुड़ कर केदारनाथ के लिए जाता है और दुसरा दायीं तरफ़ से मुख्य यात्रा मार्ग सीधा बद्रिनाथ के लिये।
“रुद्रप्रयाग : मन्दाकिनी तथा अलकनंदा नदियों के संगम पर रुद्रप्रयाग स्थित है । संगम स्थल के समीप चामुंडा देवी व रुद्रनाथ मंदिर दर्शनीय है । रुद्र प्रयाग ऋषिकेश से 137 किमी० की दूरी पर स्थित है । यह नगर बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर स्थित है । यह माना जाता है कि नारद मुनि ने इस पर संगीत के गूढ रहस्यों को जानने के लिये “रुद्रनाथ महादेव” की अराधना की थी। पुराणों में इस तीर्थ का वर्णन विस्तार से आया है। यहीं पर ब्रह्माजी की आज्ञा से देवर्षि नारद ने हज़ारों वर्षों की तपस्या के पश्चात भगवान शंकर का साक्षात्कार कर सांगोपांग गांधर्व शास्त्र प्राप्त किया था। यहीं पर भगवान रुद्र ने श्री नारदजी को `महती’ नाम की वीणा भी प्रदान की। संगम से कुछ ऊपर भगवान शंकर का `रुद्रेश्वर’ नामक लिंग है, जिसके दर्शन अतीव पुण्यदायी बताये गये हैं। यहीं से यात्रा मार्ग केदारनाथ के लिए जाता है, जो ऊखीमठ, चोपता, मंडल, गोपेश्वर होकर चमोली में बदरीनाथजी के मुख्य यात्रा मार्ग में मिल जाता है ”।
ऋषिकेश से लेकर रुद्रप्रयाग तक के रास्ते में पहाडो पर काफ़ी कम हरियाली है और ये काफ़ी रेतीले लगते हैं लेकिन रुद्रप्रयाग से केदारनाथ की तरफ़ मुडते ही दृश्य एकदम बदल जाता है। चारों तरफ़ हरियाली ही हरियाली है ,घाटियॉ बहुत खुबसुरत हैं। हम इन खुबसुरत वादियों का आनंद लेते हुए अगस्त्यमुनि से होते हुए गुप्तकाशी पहुँच गये ।वहाँ गाड़ी रुकवा कर चाय पी और आस पास के सुन्दर नजारों को निहारने लगे। गुप्तकाशी से घाटी के दूसरी तरफ़ ऊखीमठ साफ़ दिखाई देता है। चाय वाले ने हमें बताया कि आगे सोनप्रयाग में आपको काफ़ी देर रुकना पड़ सकता है क्योंकि गौरीकुंड में पार्किंग की जगह बहुत कम है और जितनी गाड़ीयाँ वहाँ से आती हैं उतनी ही गाड़ीयाँ को आगे जाने दिया जाता है। उसकी यह बात सुनकर हम जल्दी से गाड़ी में बैठे और गौरीकुंड की तरफ़ चल दिये । जैसा कि चाय वाले ने हमें बताया था वैसा ही हुआ। सोनप्रयाग में बहुत सी गाड़ीयाँ लाइन में लगी हुई थी और अपने गौरीकुंड जाने का इन्तज़ार कर रही थी। बसें तथा अन्य बडी गाड़ीयाँ गौरीकुंड जाकर वहाँ यात्रियों को उतार कर वापिस सोनप्रयाग में आकर खडी हो रही थी क्योंकि गौरीकुंड में पार्किंग की जगह खाली नही थी । लगभग दो घन्टे बाद हमारी गाड़ी भी गौरीकुंड कि ओर चल दी। जब हम गौरीकुंड पहुँचे तो अन्धेरा हो चुका था और हमारी गाड़ी तवेरा को पार्किंग में जगह भी मिल गयी। गौरीकुंड में बस अड्डा इतना छोटा है कि एक समय में एक ही बस घूम सकती है। अब थोडी सी जानकारी रुद्रप्रयाग से गौरीकुंड के रास्ते में पड़ने वाले महत्वपूर्ण स्थानो के बारे में …
“ अगस्त्यमुनि : रूद्रप्रयाग से अगस्त्यमुनि की दूरी 18 किलोमीटर है। यह समुद्र तल से 1000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है। यह वहीं स्थान है जहां ऋषि अगस्त्य ने कई वर्षों तक तपस्या की थी। इस मंदिर का नाम अगस्तेश्रवर महादेव ने ऋषि अगस्त्य के नाम पर रखा था। बैसाखी के अवसर पर यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं और अपने इष्ट देवता से प्रार्थना करते हैं।
गुप्तकाशी- गुप्तकाशी का वहीं महत्व है जो महत्व काशी का है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांण्डव भगवान शिव से मिलना चाहते थे और उनसे आर्शीवाद प्राप्त करना चाहते हैं। लेकिन भगवान शिव पांडवों से मिलना नहीं चाहते थे इसलिए वह गुप्ताकाशी से केदारनाथ चले गए। गुप्तकाशी समुद्र तल से 1319 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह एक स्तूप नाला पर स्थित है जो कि ऊखीमठ के समीप स्थित है। कुछ स्थानीय निवासी इसे राणा नल के नाम से बुलाते हैं। इसके अलावा पुराना विश्वनाथ मंदिर, अराधनेश्रवर मंदिर और मणिकारनिक कुंड गुप्तकाशी के प्रमुख आकर्षण केन्द्र है।
सोनप्रयाग- सोनप्रयाग समुद्र तल से 1829 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह केदारनाथ के प्रमुख मार्ग पर स्थित है। सोन प्रयाग प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है। ऐसा कहा जाता है कि सोन प्रयाग के इस पवित्र पानी को छू लेने से बैकुठ धाम पंहुचाने में मदद मिलती है। सोनप्रयाग से केदारनाथ की दूरी 19 किलोमीटर है। सोनप्रयाग से त्रियुगीनारायण की दूरी बस द्वारा 14 किलोमीटर है और इसके बाद पांच किलोमीटर पैदल यात्रा करनी होगी। त्रियुगीनारायण वहीं स्थान है जहां भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था।
गौरीकुंड- सोन प्रयाग से गौरीकुंड की दूरी 5 किलोमीटर है। यह समुद्र तल से 1982 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। केदारनाथ मार्ग पर गौरीकुंड अंतिम बस स्टेशन है। केदारनाथ में प्रवेश करने के बाद लोग यहां पर स्थित गर्म पानी के कुन्ड में स्नान करते हैं। इसके बाद गौरी देवी मंदिर दर्शन के लिए जाते हैं। यह वहीं स्थान है जहां माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की थी। यहाँ से केदारनाथ की दूरी 14 किमी. है, जो पैदल अथवा घोड़े, डाँडी या कंडी में तय करते हैं। ”
गौरीकुंड पहुँच कर सारा सामान गाड़ी से बाहर निकाल कर एक जगह इकट्ठा किया और ठ्हरने के लिये कमरो की तलाश शुरु कर दी। मैं और हरिश गुप्ता बाकी सभी लोगों को सामान के पास खडा करके कमरे ढूढ़ने लगे । यात्रा सीजन शबाब पर होने के कारण कमरा मिलने में काफ़ी मुश्किल हो रही थी इसलिये हमारे दो अन्य साथी भी कमरा ढूढ़ने लगे और 15-20 मिनट के बाद दो कमरे 500 रुपये प्रति कमरा के हिसाब से मिल गये या यूँ कहो कि धक्के से ले लिये। वहाँ सामान रख कर थोड़ी देर आराम किया और फिर हम सब बारी-बारी से तप्तकुंड में नहाने गये। तप्तकुंड हमारे कमरोँ के पास ही था। कुन्ड छोटा सा ही है सिर्फ़ एक कमरे के आकार का।महिलाओं व पुरुषों के लिए यहां पर अलग-अलग स्नानकुन्ड बनाए गए है।आराम से नहा धो कर वापिस कमरे पर आये और तैयार होकर बाहर टहलने निकले।
गौरीकुंड में होटल, लॉज, धर्मशालाओं और भोजनालयों के अलावा पूजा सामग्री तथा केदारनाथ यात्रा में काम आने वाली जरूरी चीजों (ऊनी कपड़े, छड़ी, छाता आदि) की दुकानों की भरमार है । यहाँ एक गरम पानी का कुंड (तप्त कुंड ), पार्वती मंदिर और गोरखनाथ मंदिर प्रसिद्ध स्थल हैं। यात्रा सीजन में हजारों तीर्थयात्रियों व सैलानियों की भीड़भाड़ देखकर लगता नहीं कि केदारनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिये बंद होते ही यहाँ वीरानी छा जाती होगी। काशीपुर के एक व्यावसायिक घराने के सौजन्य से गौरीकुंड व केदारनाथ में सौंदर्यीकरण तथा जीर्णोद्धार का अच्छा प्रयास हुआ है, लेकिन अत्यधिक मकानों के कारण यहाँ प्राकृतिक सुंदरता को खोजना कठिन लगता है। कूड़े-कचरे तथा मलमूत्र के समुचित निस्तारण का भी कोई इंतजाम नजर नहीं आया। पर्यावरण संरक्षण योजनाओं के नाम पर कुछ शौचालय और कूड़ादान दिखे, लेकिन उनका उपयोग होता नहीं दिखा या वे इस लायक थे ही नहीं। पवित्र मंदाकिनी नदी को प्रदूषित होते देखना संवेदनशील मनुष्यों के लिये दुःखद अनुभव है।
खाने के लिए कमरे के पास ही के एक साफ़ से ढाबे वाले के पास खाना खाया और कमरे में आकर अपना सारा सामान हमने एक बैग में कर दिया अपने पिठ्ठू बैग में वर्षा से बचने के लिये सिर्फ़ रेन-कोट डाल लिया। अगली सुबह हमें जल्दी केदारनाथ जाना था इसलिये सुबह 3:30 का आलर्म लगाकर सब सो गये।
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Thanks Mahesh ji..
you are always first to comment..
Lovely journey… one correction … 3rd and 4th pic are devprayag, not rudrprayag.
Thanks Deepak..
You are right, 3rd and 4th pic are of Devprayag, not Rudrprayag.
thanks for correction.
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Bhupender Ji..
as mentioned in the first post that Gangotri and Yamunotri were dropped and Hemkund was selected.
Thanks you enjoyed reading
So far so good Naresh. I guess during Yatra season, it gets a little tough to find space (roads as well as hotels). May be in off season (post rains), it would be simpler/easier. I have only been to Ukhimath. May be this summers. :-)
Thank you for all the mytho details.
Yor are right Nandan ,
May- June is considered as peak season for Char Dham Yatra of Uttrakhand and due to this all things cost more.
October is the best month to visit these Places.
thanks..
Thanx for interesting post… & vry nice pics tooooo…..
Nice description.
This will surely help many of us.
Lovely Naresh
This yatra is getting in my skin . I want to do this as early as possible.
Thanks Vishal Bhai..
Jai Bhole ki.. Aamin.. May Baba kedar Call you this year.
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