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पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- चौथा दिन (द्वाली-पिण्डारी-द्वाली)

पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- चौथा दिन (द्वाली-पिण्डारी-द्वाली)

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हिमालय की ऊंचाईयों पर एक खास बात है कि दोपहर बाद बादल आने लगते हैं। ये बादल कहीं बंगाल की खाडी या अरब सागर से नहीं आते बल्कि यही बनते हैं। होता यह है कि जैसे ही सुबह होती है तो मौसम बिल्कुल साफ-सुथरा होता है। जैसे जैसे दिन चढता है, वातावरण में गर्मी बढती है तो हवा भी चलने लगती है। बस यही गडबड हो जाती है। हवा चलती है तो पर्वत इसे मनचाही दिशा में नहीं चलने देते बल्कि नदी घाटियों में धकेल देते हैं जहां से हवा नदियों के साथ धीरे धीरे ऊपर चढती जाती है। जितनी ऊपर चढेगी, उतनी ही ठण्डी होगी और आखिरकार संघनित होकर धुंध का रूप ले लेती है और बादल बन जाती है। बादल बनते बनते दोपहर हो जाती है।

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पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- तीसरा दिन (धाकुडी-खाती-द्वाली)

पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- तीसरा दिन (धाकुडी-खाती-द्वाली)

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ग्यारह बजे हम खाती गांव पहुंच जाते हैं। सुन्दरढूंगा और पिण्डारी दोनों घाटियों में खाती से आगे कोई गांव नहीं है। इसकी यही खासियत इसे एक समृद्ध गांव बनाती है। पिण्डारी, कफनी और सुन्दरढूंगा तीनों यात्रा मार्गों पर खातियों का ही वर्चस्व है। ये लोग कुमाऊं-गढवाल की परम्परा का निर्वाहन करते हुए अपने नाम के साथ गांव का नाम ‘खाती’ भी जोडते हैं। मान लो मैं खाती गांव का रहने वाला हूं तो मेरा नाम होता नीरज खाती। गांव के सभी लोग ग्लेशियर यात्रा से ही जुडे हुए हैं हालांकि आधुनिकीकरण की हवा भी चल रही है। हमारे साथ चल रहे बंगाली घुमक्कड का गाइड देवा और हमारा पॉर्टर प्रताप सिंह भी खाती के ही रहने वाले हैं। आगे रास्ते में हमें जितने भी लोकल आदमी मिलेंगे, सभी खाती निवासी ही होंगे। एक बात और बता दूं कि सुन्दरढूंगा ग्लेशियर जाने का रास्ता यही से अलग होता है। सुन्दरढूंगा जाने के लिये रहने-खाने का सामान ले जाना पडता है जो खाती में आराम से मिल जाता है।

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