पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- छठा दिन (खाती-सूपी-बागेश्वर-अल्मोडा)
पिछले चार दिनों से मैं इसी खाती-सूपी वाले रास्ते की जानकारी जुटाने में लगा था और अपेक्षा से ज्यादा सफलता भी मिल रही थी। सफलता मिल रही हो तो इंसान आगे क्यों ना बढे। सुबह खा-पीकर हमने भी सूपी वाला रास्ता पकड लिया। हालांकि मैं और अतुल तो एक ही पलडे के बाट थे, जबकि हल्दीराम का झुकाव दूसरे पलडे यानी बंगाली की ओर था। बंगाली एक गाइड देवा के साथ था। देवा ने इस सूपी वाले रास्ते से जाने से मना कर दिया। देवा की मनाही और हमारे जबरदस्त समर्थन के कारण हल्दीराम बीच में फंस गया कि जाट के साथ चले या बंगाली के। आखिरकार बंगाली भी हमारी ओर ही आ गया जब उसने कहा कि इस बार कुछ नया हो जाये। धाकुडी वाले पुराने रास्ते के मुकाबले सूपी वाला रास्ता नया ही कहा जायेगा। देवा को मानना पडा।
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