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यादगार मसूरी – धनोल्टी की यात्रा

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जन्माष्टमी का दिन होने के करण मेरी श्रीमती जी ने व्रत रखा था. शाम ढल चुकी थी मैने सोंचा कुछ फल वगैरह ला दू. होटेल से बाहर आकर पूछने पर पता लगा थोड़ा सा आगे बस स्टॅंड है वहां पर फल मिल सकते हैं. थोड़ा सा आगे जाने पर भी दुकाने नही नजर आई फिर वहां से गुजरते पहाड़ी लोगो से पूछा, उनका वही जबाव , बस थोड़ा सा आगे चले जाओ. हमारे जैसे लोगो के लिये पहाड़ो पर 100-200 गज चलना ही काफी दूर हो जाता है पर पहाड़ी लोग एक किलोमीटर की दूरी भी थोड़ा सा आगे ही बताते है. जैसे-तैसे बस स्टॅंड पहुँचा. यहाँ पर केवल 2-3 दुकाने ही थी जिसमे से एक मे थोड़ी सी सब्जी, फल रखे थे. फल खरीद कर वापस लौटते समय तक शाम काफी गहरी हो गयी थी. बरसात का मौसम होने के कारण बादलो ने आस-पास का वातावरण ढक दिया था. दूर का साफ नही दिख रहा था. इस समय सड़क पर कोई चहलकदमी नही हो रही थी. मेरे आगे – आगे दो लड़के बाते करते हुए जा रहे थे अन्यथा वातावरण मे नीरवता छाई हुई थी. मै तेज कदमो से होटेल की तरफ बढ रहा था. ऐसे समय पर पुरानी बाते याद आ जाती हैं. इससे पिछले वर्ष मै मुक्तेश्वर गया था. मुक्तेश्वर उत्तराखंड मे ही एक हिल स्टेशन है. यहाँ से नेपाल की तरफ का हिमालय दिखता है. तो बात कर रहा था मुक्तेश्वर की ( बताना आवश्यक हो गया था , कई लोग मुक्तेश्वर के नाम से ग़ह्र मुक्तेश्वर समझने लगते हैं.) यहाँ मै रेड रूफ रिज़ॉर्ट मे ठहरा था. रिज़ॉर्ट के मलिक मिस्टर. प्रदीप विष्ट से बातो ही बातो मे पता लगा की शाम के समय कभी-कभी रिज़ॉर्ट के सामने ही बाघ आ जाता है. उन्होने एक बाघ की फोटो भी अपने रिज़ॉर्ट मे लगा रखी थी जो कि जाड़े के समय उनके रिज़ॉर्ट के सामने बैठा हुआ धूप सेक रहा था. उनके रिज़ॉर्ट के पास ही एक महिला को होटेल है. बताने लगे कि एक दिन शाम का अंधेरा ढल गया था, वह अपनी कार से मेरे रिज़ॉर्ट के सामने से गुजर रही थी कि तभी अचनक बाघ उनकी कार के सामने आकर खड़ा हो गया. उन्होने ने कार के ब्रेक लगाये, बाघ थोड़ी देर तक खड़ा कार को घूरता रहा फिर छलांग मार कर दूसरी तरफ चला गया. इस समय मुझे वही बात याद आ रही थी कि कहीं यहाँ पर भी अचनक बाघ आ गया तब क्या करेंगे. चलते समय होटेल वाले से पूछना भूल गया था कि इस इलाके मे बाघ तो, वह नही है. खैर रास्ते मे बाघ तो नही मिला, सकुशल होटेल पहुंच गया. अगर मिल जाता तो गया था श्रीमती जी के खाने का इंतजाम करने और बाघ के खाने का इंतजाम कर बैठता. वापस आकर पहले होटेल वाले से पूछा पता लगा यहाँ पर बाघ नहीं है.

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