
अमृतसर – रामतीरथ – शà¥à¤°à¥€ गà¥à¤°à¥à¤°à¤¾à¤®à¤¦à¤¾à¤¸ पà¥à¤°à¤•ाश परà¥à¤µ – घर वापसी
सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ उतर कर उस सूखे सरोवर को पगडंडी के रासà¥à¤¤à¥‡ पार करके मैं सामने वाली उस बसà¥à¤¤à¥€ में पहà¥à¤‚चा तो लगने लगा कि किसी दूसरी ही दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में पहà¥à¤‚च गया हूं। यह कहना जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ सही लगता है कि वह सरोवर à¤à¤• टाइम मशीन था, जिसमें पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया तो कलयà¥à¤— था पर जब उस पार जाकर मशीन से बाहर निकला तो तà¥à¤°à¥‡à¤¤à¤¾à¤¯à¥à¤— में आ गया था। सीता मैया की à¤à¥‹à¤‚पड़ी जिसमें वह रहती थीं, रसोई जिसमें वह खाना बनाया करती होंगी, वह सरोवर जिसमें सà¥à¤¨à¤¾à¤¨-धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ चलता होगा, वह कà¥à¤†à¤‚ जो सीता मैया के लिये उनके अननà¥à¤¯ सेवक हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी ने खोद कर दिया था, सब कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था कि बस! शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ में वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ कर पाना मेरे लिये कठिन हो रहा है। पराकाषà¥à¤ ा यह है कि सीता मैया की रसोई के पास सरोवर की सीà¥à¥€ पर à¤à¤• à¤à¥à¤®à¤•ा पड़ा दिखाई दिया तो मन में à¤à¤•दम खà¥à¤¯à¤¾à¤² आया कि शायद ये à¤à¥à¤®à¤•ा उस समय से यहीं पड़ा हà¥à¤† है जब रावण दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ हरण कर लेने के बाद वह आकाश मारà¥à¤— से लंका ले जाये जाते समय रासà¥à¤¤à¥‡ में यह सोच कर अपने आà¤à¥‚षण गिरा रही थीं कि शायद इनको देख कर किसी को उनका अता-पता मिल सके ।
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