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जम्मू से श्रीनगर राजमार्ग पर एक अविस्मरणीय यात्रा

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ऐसे ही एक विलक्षण और ऐतिहासिक ट्रैफिक जाम में पंकज और मैं कार से उतरे और काफी आगे तक जाकर जायज़ा लिया कि करीब कितने किलोमीटर लंबा जाम है। यातायात पुलिस के सिपाहियों को जाम खुलवाने के कुछ गुरुमंत्र भी दिये क्योंकि सहारनपुर वाले भी जाम लगाने के विशेषज्ञ माने जाते हैं। हम अपनी कार से लगभग १ किलोमीटर आगे पहुंच चुके थे जहां गाड़ियां फंसी खड़ी थीं और जाम का कारण बनी हुई थीं। आगे-पीछे कर – कर के उन तीनों गाड़ियों को इस स्थिति में लाया गया कि शेष गाड़ियां निकल सकें। वाहन धीरे – धीरे आगे सरकने लगे और हम अपनी टैक्सी की इंतज़ार में वहीं खड़े हो गये। सैंकड़ों गाड़ियों के बाद कहीं जाकर हमें अपनी सफेद फोर्ड आती दिखाई दी वरना हमें तो यह शक होने लगा था कि कहीं बिना हमें लिये ही गाड़ी आगे न चली गई हो। ड्राइवर ने गाड़ी धीमी की और हमें इशारा किया कि हम फटाफट बैठ जायें क्योंकि गाड़ी रोकी नहीं जा सकती। जैसे धोबी उचक कर गधे पर बैठता है, हम कार के दरवाज़े खोल कर उचक कर अपनी अपनी सीटों पर विराजमान हो गये। पांच सात मिनट में ही पंकज का दर्द में डूबा हुआ स्वर उभरा! “मैं तो लुट गया, बरबाद हो गया।“ मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि पंकज एक मिनट के लिये भी मेरी दृष्टि से ओझल नहीं हुआ था तो फिर ऐसा क्या हुआ कि वह लुट भी गया और मुझे खबर तक न हुई। रास्ते में ऐसा कोई सुदर्शन चेहरा भी नज़र नहीं आया था, जिसे देख कर पंकज पर इस प्रकार की प्रतिक्रिया होती। गर्दन घुमा कर पीछे देखा तो पंकज भाई आंखों में ढेर सारा दर्द लिये शून्य में ताक रहे थे। उनकी पत्नी चीनू ने कुरेदा कि क्या होगया, बताइये तो सही तो बोला,

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