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गढ़वाल घुमक्कड़ी: भविष्य बद्री

किचन में रोटियाँ सेकते जाट जोगी...

इस यात्रा में वे सभी जगहें जहाँ हमें मुफ्त रहने का ठिकाना मिला हमारे लिए सबसे यादगार रही, चाहे वो रुद्रप्रयाग में स्वामीजी के साथ उमरा नारायण मंदिर हो या कर्णप्रयाग में मास्टर सलीम का आशियाना या पिछली रात आश्रम में जोगियों संग, ये ना सिर्फ रहने के ठिकाने थे बल्कि यहाँ हमें सीखने को भी बहुत कुछ मिला और ये किसी भी घुमक्कड़ी को काफी हद तक सार्थक बनाता है. आज सुबह जब हम उठे तो स्वामीजी ने बताया कि कल रात आश्रम के बाहर किसी जीव की आवाजें सुनाई दी थी और सम्भवतः ये भालू ही था, ऐसा सुनकर हमारे तो रोंगटे खड़े हो गए थे. रोजमर्रा की जरुरी गतिविधियों को अंजाम देकर, हम लोग आश्रम के किचन में नाश्ते के लिए आमंत्रित किये गए जहाँ हरियाणा से आये युवा मस्त मलंग जोगी महाराज अपने मोबाइल में भजन सुनते हुए रोटियां सेक रहे थे…हाई-टैक जोगी…वैसे इस आश्रम के सभी जोगी साधक जीवन का सही मायनों में अनुसरण कर रहे थे.

किचन में रोटियाँ सेकते जाट जोगी…

वास्तव में घुमक्कड़ प्रजाति की असली नुमाईंदगी तो ये जोगी ही करते हैं, ना कहीं पहुँचने की चिंता ना कहीं ठहरने की, ना खाने की फ़िक्र ना पहनने की, ना समय की टेंशन ना किसी वाहन की, ना कोई सर्दी ना कोई गर्मी, बस चलते रहते हैं इसी आशा में कि उपरवाला कुछ ना कुछ बंदोबस्त तो कर ही देगा. अपनी पिछली यात्राओं में कुछ ऐसे जोगियों से मुलाकात हुई जो भारत के विभिन्न कोनों से देशाटन पर निकले थे और इनमे से कई तो मीलों मीलों की दूरी पैदल ही नाप जाते हैं और यहाँ पर भी सभी साधू देश के विभिन्न प्रान्तों से आये थे, धन्य हो ऐसे महान घुमक्कड़! खैर नाश्ता करने के बाद अब वक्त था आश्रम और जोगियों को अलविदा कहने का, वैसे ये जगह इतनी पावन और दिलकश लगी कि यहाँ से जाने का मन ही नहीं कर रहा था. यहाँ हमें इतना कुछ मिला और इसपर जाते जाते एक और उपहार, रास्ता दिखाने के लिए एक गाइड (एक प्यारा सा डॉगी) और वो भी मुफ्त, घुमक्कड़ों की हो गई बल्ले बल्ले! तो बस फिर क्या, गाइड साब आगे आगे और हम सब पीछे पीछे चल पड़े इन खुबसूरत फिज़ाओं का मजा लेते हुए.

मार्गदर्शन करते हुए गाइड साब और उनके पीछे पुनीत, दीपक और मैं…

रास्ते की साथी, एक मीठी जल धारा…

जलधारा का आनंद लेते हुए विपिन…

आश्रम से मंदिर तक का रास्ता घनी झाड़ियों के बीच से गुजरते हुए बेहद खुबसूरत है जहाँ कहीं कहीं बहते हुए मीठे जल की धारा ना चाहते हुए भी आपको दो पल रुकने को मजबूर कर देती है. चढाई इस कदर थी कि योगियों द्वारा वर्णित दृश्य अभी भी आँखों से दूर ही लग रहे थे जबकि हम मंदिर के आस पास ही थे. ऐसा सोचते हुए हम लोग चले ही जा रहे थे कि अचानक से झाड़ियाँ ख़त्म सी होने लगी और ये क्या…ओह माय गॉड…आँखों के सामने एक ऐसा दृश्य था मानो कोई खुबसूरत सा ‘पिक्चर पोस्टकार्ड’ देख रहे हों! ऐसा मनमोहक नज़ारा आज से पहले कभी नहीं देखा था, दूर दूर तक फैला विशाल कुदरती हरा कारपेट, उसके पीछे असंख्य पेड़ों के झुरमुट और उसके भी पीछे स्तब्ध कर देने वाली हिमालय की बर्फ़ीली चोटियाँ…अविस्मरनीय व अद्वितीय नज़ारा! यहाँ आने पर हमें प्रकृति की गोद में ऐसा शानदार तोहफ़ा मिलेगा इसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी, ना जाने कहाँ से पूरे शरीर में एक नई उर्जा की लहर सी दौड़ पड़ी. और हम लोग बावलों की तरह उस कुदरती मंज़र को एकटक निहारते हुए उसका मजा लेने लगे.

लोजी आप भी लेलो कुदरत के नजारों के मजे…

दो बावले, पुनीत और दीपक…

तीसरा बावला, विपिन…

उस सम्मोहन से थोडा बाहर आये तो महसूस किया कि अरे ये सब तो दिख गया पर भई भगवान् बद्रीश कहाँ छुपे बैठे हैं…सामने एक छोटी कुटिया दिखाई दी तो बढ़ चले उसी ओर, पूछ्तात करने. कुटिया के बाहर एक भाई साहब स्नान में मग्न थे, हमने आवाज़ लगाई और मंदिर के बारे में पूछा तो बोले “रुको कपड़े पहनकर आता हूँ”. भाई साहब अपने साथ कुछ सामग्री लिए कुटिया से बाहर आये और बोले “चलो मैं ले चलता हूँ मंदिर, पूजा भी करवा दूंगा”. बाद में पता चला भाई साहब पुजारी थे और अपने साथ पूजा की सामग्री लेकर आये थे. यहाँ मंदिर के पास पहुँचते ही एक बड़ा असभ्य सा अनुभव हुआ हमारे साथ, जिस समय हम लोग मंदिर के अन्दर जा रहे थे तो वहीँ पास एक कुटिया के बाहर खड़े एक साधू ने ऐसे अपशब्दों के बाण चलाने शुरू किये कि कुछ समय के लिए तो हमारे होश ही उड़ गए थे. पहले तो हमें लगा कि कोई पागल है लेकिन बाद में पता चला कि कुटिया के अन्दर तपस्या में लीन अघोरी साधू का चेला है. ऐसा पता चलने पर हमें पिछली रात अघोरियों के बारे में बताई गई बातों का प्रमाण मिलने लगा. मंदिर में दर्शन करने के बाद जब हम लोग कुटिया के समीप गए तो वो चेला हमें भी गुस्से से कहने लगा कि बाबा अभी तपस्या में लीन हैं, थोड़ी देर सब्र करो, अभी दर्शन देंगे. हमने मन ही मन सोचा जिसका चेला ऐसा है तो गुरु कैसा होगा…ऐसा सोचते हुए हम लोग बिना अघोरी बाबा के दर्शन किये आस पास घूमने लगे.

टोली पूजा सामग्री लिए हुए पंडित जी के साथ…

अघोरी बाबा की कुटिया के बाहर दीपक, भगवा वस्त्र पहने उनका चेला और स्वेत वस्त्र धारी एक बाबा जिन्हें हिंदी नहीं आती थी…

अब जरा मंदिर के बारे में जानकारी! घने जंगलात के बीच एक साधारण और छोटा सा पत्थरों का ढ़ांचा जिसके अन्दर विराजमान हैं शिलारूप में भगवान् बद्रीश. इस शिला के बारे में यहाँ एक कथा प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार एक ग्वाला अपनी गाय को ढूंढ़ते ढूंढ़ते इस शिला के पास पहुंचा जहाँ उसकी गाय आश्चर्यजनक रूप से शिला पर दूध अर्पण करती पायी गई. ऐसा निरंतर रूप से कुछ दिनों तक चलता रहा तो ग्वाले ने पाया कि इस शिला पर कोई आकृति सी उभर रही थी और जब धीरे धीरे इस बात की खबर लोगों तक पहुँची तो लोगों ने इसे दिव्य चमत्कार मानते हुए यहाँ इस शिला को भगवान् बद्रीश के रूप में पूजना शुरू कर दिया. यहाँ का मंदिर व माहौल हर मायने में वर्तमान बद्रीनाथ मंदिर से बिलकुल विपरीत है, चाहे वो मंदिर का भवन हो, मंदिर की साज सज्जा हो, भगवान् की मूर्ति की साज सज्जा हो, मानवीय हस्तक्षेप हो, या इसके आस पास की अचंभित कर देने वाली खूबसूरती, इस पावन स्थल पर देखने में सब कुछ बिलकुल साधारण व बिलकुल सरल सा लगता है, पर महसूस करने में अद्वितीय जिसकी कहीं कोई बराबरी नहीं, भगवान् बिलकुल अपने अछूते रूप में, न्यूनतम मानवीय साज सज्जा के साथ. यहाँ आकर लगता है मानो भगवान् बद्रीश मंदिर के अन्दर और माता बाहर, प्रकृति के रूप अपने शुद्धतम और साक्षात रूप में विराजमान हैं, ईश्वर के इस रूप में दर्शन पाकर वाकई हम लोग अपने आप आप को धन्य समझते हैं! शायद इन्ही सब वजहों से इस घाटी को तपोवन कहा जाता है. लेकिन शायद आने वाली पीढ़ियों को ये दृश्य और इस तरह का मंदिर देखने को ना मिले.

साधारण से लगने वाले भविष्य बद्री मंदिर के बाहर विपिन और पुनीत…

चलिए अब जरा इस मंदिर के धार्मिक महत्व की जानकारी भी पहुंचा दें आप तक. जैसा कि नाम से ज्ञात है भविष्य बद्री (2744 मी), अथार्त भगवान् बद्रीश का भविष्य का ठिकाना. पर भई ऐसा क्यों? जब भगवान् बद्रीनाथ में विराजमान हैं तो इस मंदिर की क्या आवश्यकता? वो इसलिए कि एक प्रचलित मान्यता के अनुसार जोशीमठ के वर्तमान नरसिंह मंदिर में रखी भगवान् नरसिंह की स्वयंभू शिलारूपी मूर्ति का एक हाथ धीरे धीरे पतला होता जा रहा है और जिस दिन ये हाथ पूरी तरह से गायब हो जायेगा उसी दिन बद्रीनाथ में मौजूद नर नारायण पर्वत आपस में मिल जायेंगे और इसी के साथ बद्रीनाथ जाना लोगों के लिए असंभव हो जायेगा. ऐसा होने पर भगवान् को अपने नए घर भविष्य बद्री में पूजा जायेगा.

लोजी आप भी दर्शन करलो शिलारूप में भगवान् बद्री नारायण के!

मंदिर दर्शन के पश्चात् मेरे मन में तीव्र इक्छा थी जंगलों के पीछे बर्फ़ीली चोटियों की ओर जाने की. मेने साथियों को चलने को कहा तो थकान के मारे दोनों ने साफ़ ना कर दी, पुनीत वैसे ही जख्मी था. मैंने उनसे कहा कि तुम लोग रुको मैं जरा ऊपर तक होकर आता हूँ, यहाँ भी हमारे गाइड साब (प्यारे डॉगी) ने हमारा साथ नहीं छोड़ा और उनके मार्गदर्शन में हम लोग घने जंगल की ओर बढ़ने लगे, जंगल के पास आते ही एक अजीब तरह का डराने वाला सन्नाटा सब तरफ पसरा पड़ा था. गाइड साब मुझसे लगभग 20 – 30 मी आगे ही रहते मार्गदर्शन के लिए और बीच बीच में पीछे मुड़कर देखते कि बंदा आ रहा है कि नहीं. जंगल इतना घना था कि कुछ डर सा लगने लगा और पिछली रात वाली भालू की घटना भी रह रहकर मन में आती रही और फिर पुनीत और दीपक को ऐसे अकेले छोड़ना भी अच्छा नहीं लग रहा था. इसलिए इस कार्यक्रम को यहीं रद्द करके गाइड साब को आवाज़ लगाई और वापिस अपनी टोली में शामिल होने चल पड़े.

जंगलों की बीच से झाँकती बर्फ़ीली चोटियाँ…

एक और मनोहारी दृश्य…

जंगल से लिया गया हरे कुदरती कारपेट का एक फोटो…

नीचे उतरते हुए एक जलधारा के पास दीपक और विपिन…

मंदिर से वापसी भी कुछ कम रोमांचकारी नहीं थी, उतरते वक्त हम किसी दूसरी पगडंडी पर थे यहाँ भी रास्ते में हमें कुछ छोटे आश्रम मिले, इसलिए यहाँ रुकने के लिए इन आश्रमों के आलावा दूसरा कोई उपाय नहीं है. अगर कोई चाहे तो रात को तपोवन रूककर जहाँ रुकने के लिए कुछ अतिथि विश्राम गृह और लॉज उपलब्ध हैं, अगले दिन सुबह सुबह चढ़ाई करके और दर्शन करके शाम तक रुकने के जोशीमठ या आगे जा सकता है, कोई भीड़ भाड़ नहीं है इसलिए आराम से दर्शन किये जा सकते हैं.

रास्ते में मिले कुछ अन्य आश्रम…

रास्ते से नीति घाटी का एक विहंगम दृश्य…

नीचे उतरते वक्त हम लोग फिर उसी आश्रम से होते हुए गुजरे जहाँ रात बसेरा किया था तो स्वामी जी ने भोजन का न्योता भी दे डाला. चलिए एक बार फिर सही, कुछ और ज्ञान प्राप्त हो जायेगा. जब हमने उन्हें मंदिर पर घटी चेले वाली घटना के बारे में बताया तो उन्होंने हँसते हुए कहा कि वो अघोरी हैं और उनके लिए ये एक आम बात है. फिर उन्होंने पूछा कि क्या तुमने बाबा के दर्शन किये? हमने कहा ‘नहीं’ और उन्हें इसका कारण भी बताया तो वे बोले कि अरे वो अघोरी बाबा नहीं, वहाँ एक और गुफा है जिसमे एक सिद्ध तपस्वी ध्यान साधना करते हैं. इसके आलावा जब मैंने उनसे उन जंगलों के पीछे के माहौल के बारे में पूछा तो वो बोले “तुम लोग वहाँ भी नहीं गए?”. वे बोले जितनी खूबसूरती तुम लोगों में इस तरफ देखी थी उससे कहीं अद्भुत मंज़र तो जंगल के उस पार है, खुबसूरत खास के मैंदान और आँखों के सामने साक्षात खड़ी बर्फ़ीली हिमालयी चोटियाँ. ऐसा वर्णन सुनकर मुझे उस तरफ ना जा पाने का थोडा मलाल जरुर रहा, पर हमेशा की तरह इसे दुबारा यहाँ आने का एक अवसर मान कर मन को किसी तरह मना लिया.

आश्रम में भोजन का इंतज़ार करते पुनीत और विपिन…

भोजन के पश्चात, साधुजनों को साधुवाद देकर हम लोग नीचे उतरने लगे. हमारे गाइड साब अभी भी हमारा साथ छोड़ने को राज़ी नहीं थे, स्वामीजी ने भी कहा कि कोई बात नहीं तुम लोगों को नीचे छोड़कर चला आयेगा वापिस. यहाँ से नीचे के रास्ते में हम कई बार रास्ता भटके यहाँ तक कि हमारे गाइड साब भी रास्ता भटक गए, कई बार तो हमें ऐसी तीखी ढलानों से अपना रास्ता बनाना पड़ा जहाँ कोई रास्ता था ही नहीं, थोडा डर तो लग रहा था उतरने में, पर था बड़ा रोमांचकारी, ऐसे रोमांच में पुनीत भी जैसे अपना सारा दर्द भूल गया था और उतरने का आनंद ले रहा था.

एक बिना रास्ते के तीखी ढलान जिस पर से हमारी टोली नीचे उतरी थी…

घुमक्कड़ टोली सड़क पर जीत का जश्न मनाती हुई…

जीत को दर्शाता एक और खुबसूरत साथी जिसे हमने ‘विक्ट्री माउंटेन’ का नाम दिया…

पुनीत गाइड साब को वापिस जाने के लिए कहता हुआ…

वास्तव में हम एक गलत मार्ग पर आ गए थे जो कि सलधार (जहाँ से हमने चढ़ाई शुरू की थी) से भी करीब 4 – 5 किमी आगे नीति घाटी की ओर था. खैर जैसे जैसे हमें सड़क मार्ग नज़र आने लगा और हम लोग यत्र तत्र रास्ता बनाते बनाते आखिरकार सड़क मार्ग तक आ ही गए थे. एक निर्जन सड़क जहाँ हमारे सिवाय कोई मानव नहीं दिख रहा था, सड़क पर आकर अपनी विजय की ख़ुशी में कुछ फोटो खींचने लगे और फिर…

क्रमशः…

गढ़वाल घुमक्कड़ी: भविष्य बद्री was last modified: December 31st, 2024 by Vipin
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