मनाली का सुहाना सफ़र: सुंदरनगर, मण्डी के रास्ते मनाली और माँ हिडिम्बा देवी के दर्शन

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फिर भी उनमे से २ लड़को के ज्यादा जिद करने पर हमने आपनी गाड़ी उनकी बाईक के पीछे दौड़ा दी जो की हमें एक होटल में लेकर गए, ये होटल रोहतांग वाले रास्ते पर व्यास नदी के उलटे हाथ की तरफ था जो की हमें कुछ ठीक नहीं लगा इसीलिए हम वहाँ ना रूककर वापस मॉल रोड की तरफ आ गए और हिडिम्बा मंदिर वाले रोड पर हमें एक आच्छा होटल दिखायी दिया, मैं उस होटल में पूछताछ के लिए गया और वहाँ पता लगा की २ कमरे तो मिल जायेंगे पर ₹२००० /- प्रति कमरे के हिसाब से, रात ज्यादा होने और बहुत ज्यादा थकान होने की बजह से हमने वहाँ रुकने का फैसला करा, यही सोचकर की अगर अगली सुबह कोई दूसरा आच्छा होटल सस्ते में मिल जाता है तो हम वहाँ पर शिफ्ट कर जायेंगे। हमने होटल के बराबर से खली जगह पर गाड़ी पार्क करी और सामान निकालकर अपने अपने कमरे में सोने चल दिए।

अगली सुबह लगभग ६ बजे जीजा जी ने मुझे फ़ोन करके होटल के बहार का नजारा देखने के लिए कहा, आपने कमरे की बालकनी में आकर जो नजारा मुझे देखने को मिला मेरे लिए उसे शब्दो में लिखना बड़ा ही कठिन कार्य है क्युकी वो एक अनुभूति थी जो की मैंने उससे पहले कभी भी महसूस नहीं करी थी, सुबह ६ बजे होटल की बालकनी में बड़ी ही ठंडी हवा चल रही थी जो कि शरीर में कपकपी पैदा कर रही थी, होटल के नीचे की तरफ जहाँ हमारी गाड़ी खड़ी थी उसके पास ही “सेब का बाग़” था, और हमारी आँखों के ठीक सामने बर्फ के बड़े बड़े पहाड़ थे जिन्हे की हम रात को अँधेरे की बजह से देख नहीं पाये थे, बर्फ के उन पहाड़ों पर सूरज की किरणों के पड़ने के कारण वो एकदम चाँदी की तरह चमक रहे थे उनका रंग सफ़ेद ना होकर सुनहरा महसूस हो रहा था, इससे पहले मैंने पहाड़ों पऱ कभी भी बर्फ नहीं देखी थी पर आज तो पूरा बर्फ का पहाड़ ही मेरे सामने था, एक पल के लिए भी उस चमकदार पर्वत श्रंखला से नजरें हटाने का दिल नहीं कर रहा था शायद कुछ ऐसी ही अनुभूति साथ वाली बालकनी में जीजा जी भी कर रहे थे।

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एक सुहाना सफ़र मनाली का – अम्बाला, रोपड़ के रास्ते माँ नैना देवी के भवन (भाग १ )

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वहाँ चाय पीने के दोरान पता लगा की वहाँ से “नैना देवी” का मंदिर पास में ही है, तो सर्व सहमति से निर्णय लिया गया की पहले नैना देवी के दर्शन कर लेते है फिर आगे का सफ़र तय करा जायेगा . ढाबे से निकलने के बाद हमारा अगला उद्देश्य नैना देवी का मंदिर था, थोड़ी देर में शायद आनंदपुर साहिब से आगे निकलने पर हमें पहाड़िया मिलनी शुरू हो गयी जिन्हे देखकर हम सभी की ख़ुशी का कोई ठीकाना ही नहीं था, पहाड़ियो पर गाड़ी तो जीजा जी चला रहे थे पर अब हम भी पीछे की सीट पर सतर्क मुद्रा में बेठ कर ध्यान आगे के रास्ते पर लगाये हुए थे और सुन्दर नजरो का आनंद लिए जा रहे थे।

थोड़ी देर में हम पूछते पाछते नैना देवी के मंदिर के नीचे तक पहुच गए थे जहा पर गाड़िया बड़ी ही बेतरतीब से पार्क करी हुई थी, वहाँ मूलत जो पार्किंग थी वो बड़ी ही सीढ़ी सी पहाड़ी पर ऊपर जाकर थी जहाँ गाड़ी चढ़ाने की हिम्मत दिखने की हमने सोचा तक नहीं और वही पहाड़ी के नीचे ही और गाडियो की तरह ही हम भी आपनी गाड़ी एक तरफ खड़ी करके और सामने दुकान पर बेठी एक आंटी को कुछ पैसे देकर गाड़ी की देखभाल करने का बोल कर नंगे पैर माता के दर्शन को चल दिए।

सामने से देखने पर कुछ दुकानो के छोटे से झुण्ड की तरह दिखने वाले रास्ते से होते हुए हम आगे बढ़े तो मंदिर तक पहुचने के लिए सीडिया शुरू हो जाती है, वही ऊपर की तरफ चढ़ते हुए ही हमें कुछ भक्त देवी माँ की बड़ी सी छड़ी लेकर देवी के दरबार में जाते हुए दिखे जो की बड़े ही सुन्दर माँ के भजन गाते हुए जा रहे थे।

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