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गढ़वाल घुमक्कडी: कर्णप्रयाग – विष्णुप्रयाग – बद्रीनाथ

आज हमारा छोटा सा काफिला कर्णप्रयाग संगम दर्शन करके जोशिमठ, विष्णुप्रयाग होते हुए भगवान बद्रीनाथ के दरबार मे हाज़िरी लगाने वाला था. हम लोग आज सुबह के सुहाने अनुभव (जिसकी ब्यौरा आप पिछले लेख मे पढ़ चुके हैं) की आपस मे चर्चा करते हुए बाज़ार के रास्ते संगम की ओर बढ़ रहे थे जिसके दर्शन हमने कल अंधेरे मे किए थे. वैसे तो बद्रीनाथ की यात्रा करने वाले हर साथी घुमक्कड़ को कर्णप्रयाग के बारे मे पता होगा पर जो लोग ये यात्रा अभी तक नही कर पाए हैं उनके लिए संगम दर्शन से पहले कर्णप्रयाग की थोड़ी सी जानकारी. भगवान बद्रीनाथ के दर्शन के लिए हरिद्वार से आने वाले हर यात्री के रास्ते मे माँ अलकनंदा के पाँच प्रयाग आते हैं जहाँ माँ अलकनंदा का संगम भागीरथी (देवप्रयाग), मंदाकिनी (रुद्रप्रयाग), पिंडर (कर्णप्रयाग), नंदाकिनी (नंदप्रयाग) और धौलीगंगा (विष्णुप्रयाग) से होता है. इन्ही पाँच प्रयागों मे से एक कर्णप्रयाग दो पावन नदियों का मनमोहक संगम स्थल होने के अलावा उत्तरांचल के दो प्रमुख प्रदेशों (गढ़वाल और कुमांऊ) का एक बड़ा जंक्शन भी है. यहीं से एक रास्ता जोशिमठ होते हुए भगवान बद्रिश के दरबार की ओर जबकि दूसरा रास्ता ग्वाल्दम होते हुए बागेश्वर व कुमांऊ के अन्य दर्शनीय स्थलों की ओर जाता है. यहाँ से रानीखेत की दूरी लगभग उतनी ही बताई जाती है जितनी की यहाँ से बद्रीनाथ की, है ना रोचक स्थान! कर्णप्रयाग का ये नाम महाभारत के एक वीर और दानी योद्धा कर्ण के नाम पर पड़ा है, ऐसी मान्यता है कि कर्णप्रयाग दानवीर कर्ण की तपस्थली थी जहाँ उन्होने अपने तप से सूर्यदेव को प्रसन्न करके उनसे अमोघ सुरक्षा कवच प्राप्त किया था. यहाँ संगम के किनारे कर्ण को समर्पित एक मंदिर भी है जहाँ पिछली रात हम लोग खुले मे सोने आए थे.

अलकनंदा (बाँयी ओर) और पिंडर (दाँयी ओर) का लुभावना संगम दृश्य

शानदार घाटियों को चीरते हुए बद्रिधाम से आती हुई माँ अलकनंदा

संगम को इंगित करते हुए पुनीत (पिंडर) और मैं (अलकनंदा)

संगम पर मस्ती करते 3 ईडियट्स (बाँये से दीपक, पुनीत और मैं)

मंज़िल की और इशारा करता साइनबोर्ड, कभी नीचे वाले रास्ते पर भी जाएँगे!

चूँकि आज हमे सिर्फ़ बद्रीनाथ ही पहुँचना था (जो की यहाँ से मात्र 125 किमी ही है), इसलिए हम संगम पर काफ़ी देर बैठे मस्ती करते रहे. संगम का आनंद लेकर और दोनो नदियों के जल से विशुद्धि व उर्जा पाकर हम लोग आगे की यात्रा पर निकलने को तैय्यार थे. ढाबे पर नाश्ता करने के बाद, हम लोग सीधे बद्रीनाथ की बस लेने आ पहुँचे. थोड़ी देर इंतेज़ार के बाद, एकाध बसें आई पर सब खचाखच भारी हुई, पाँव रखने तक की जगह नही थी, यात्रा सीज़न मे ये एक आम नज़ारा है. काफ़ी देर तक ऐसा होने से कुछ बैचेनी सी होने लगी और अंत मे ये निर्णय लिया गया की अब जो भी बस आए अगर उसमे खड़े होने की भी जगह हो तो चल पड़ेंगे. इस बैचेनी की मुख्य वजह थी जोशिमठ से बद्रीनाथ के मार्ग पर यातायात को सुचारू रखने वाली ‘गेट प्रणाली’. अब ये क्या बला है, अरे भई बला नही भला है! जोशिमठ से बद्रीनाथ के बीच के रास्ते कुछ जगहों पर ख़तरनाक व संकरे हैं जिस कारण इस मार्ग पर दुर्घटनाओं को न्यूनतम करने व यातायात को काबू मे रखने के लिए ‘गेट प्रणाली’ अपनाई जाती है. इसके अनुसार इस मार्ग पर यातायात को एक निर्धारित समय पर दोनो और से (जोशिमठ से बद्रीनाथ और बद्रीनाथ से जोशिमठ) एक तरफ़ा करके बारी बारी व्यवस्थित रूप से छोड़ा जाता है. इसका मतलब जब एक तरफ से गेट खोला जाता है और गाड़ियों की आवाजाही शुरू होती है तो दूसरी और गेट बंद करके यातायात को कुछ देर के लिए रोक लिया जाता है ताकि दूसरी ओर से आ रही गाड़ियाँ सुरक्षित रूप से रास्ता तय कर सकें. जोशिमठ से बद्रीनाथ के लिए पहला गेट लगभग सुबह 6 बजे और फिर क्रमशः 9 बजे, 11:30 बजे, 2 बजे और अंतिम गेट लगभग 4 बजे (कृपया इस जानकारी को जाने से पूर्व एक बार सुनिश्चित कर लें) खोला जाता है और लगभग ऐसा ही बद्रीनाथ से जोशिमठ आते समय भी होता है.

थोड़ी देर मे हमे एक बस आती दिखाई दी, लेकिन ये क्या ये तो केवल जोशिमठ तक ही थी. हमने सोचा चलो जोशिमठ तक ही सही वहाँ से तो कोई जीप आदि भी मिल जाएगी लेकिन अगर गेट बंद हो गया तो रात जोशिमठ मे ही बितानी पड़ेगी. खुशकिस्मती से चढ़ते ही थोड़ी देर मे बैठने की सीट भी मिल गयी और हमारे रोमांचक सफ़र के पहिए फिर दौड़ने लगे. शानदार हरे भरे पहाड़, घुमावदार मोड़, माँ अलकनंदा का साथ और उस पर बस मे बज रहे मधुर पहाड़ी गीतों का तड़का सब मिलकर इसे एक रूहानी सफ़र बना रहे थे, लगता था मानो ये सफ़र बस यूँ ही चलता रहे. वाकई मंज़िल से खूबसूरत तो ये सफ़र लग रहा था, ऐसा सोचते हुए हम लोग चले ही जा रहे थे कि अचानक बस रुकने सी लगी, पूछा तो पता चला की दूसरी तरफ से वाहनों की आवाजाही की वजह से इस तरफ का यातायात रोक दिया गया था. जिस जगह पर हमारी बस रुकी थी, ये जगह थी बिरही जो की चमोली और पीपलकोटी के बीच एक छोटा सा दर्शनीय स्थल है और यहीं पर अलकनंदा का संगम बिरही गंगा से होता है. यहाँ हमारी बस लगभग 1 घंटे खड़ी रही और इस बीच हम आसपास की खूबसूरती का मज़ा लेते रहे.

बिरही का एक नज़ारा

बिरही मे यातायात खुलने का इंतेज़ार करते हुए

हम लोग पैदल घूमते घूमते कुछ आगे तक निकल आए थे कि यातायात खुलता दिखाई दिया और हम लोग अपनी बस का इंतेज़ार करने लगे. जैसे ही बस नज़दीक आई, हम लोगों ने अपनी अपनी सीटों पर वापिस क़ब्ज़ा कर लिया. यहाँ से जोशिमठ की दूरी लगभग 37 किमी थी जिसका मतलब हमे अभी 2 घंटे और बस का सफ़र करना था जोशिमठ पहुँचने के लिए. खैर हम लोग सही समय पर जोशिमठ पहुँच गये और यहाँ उपर जाने वाली गाड़ी का इंतेज़ार करने लगे जो संयोगवश हमे थोड़ी ही देर मे मिल गयी. हमारी जीप मे दो विदेशी युगल भी मौजूद थे जो पुनीत के लिए एक अच्छा टाइम पास साबित हुआ. पूरे रास्ते वह उन लोगों से हँसी मज़ाक करता रहा, यहाँ तक की उसने युवती से हिन्दी फिल्म का गाना तक गवा डाला. इन दोनो विदेशियों की एक रोचक कहानी हमे अगले दिन बद्रीनाथ मे पता चली जिसका ब्योरा अगले लेख मे दिया जाएगा. जोशिमठ से बद्रीनाथ के खूबसूरत रास्ते मे हमे पाँच प्रयागों मे अंतिम विष्णुप्रयाग के दर्शन होते हैं जो जोशिमठ से लगभग 12 किमी की दूरी पर है और अलकनंदा व धौलीगंगा का सुंदर संगम स्थल है. संगम से आगे का रास्ता हैरान कर देने वाली खूबसूरत उँची उँची पहाड़ी चट्टानों से होता हुआ जाता है और अलकनंदा भी यहाँ इन विशाल चट्टानों के बीच एक छोटी सी धारा के समान प्रतीत होती है.

धौलीगंगा (बाँये) और अलकनंदा (दाँये) का सुंदर संगम स्थल – विष्णुप्रयाग (किसी अन्य यात्रा के दौरान लिया गया फोटो)

उँची चट्टानों के बीच से बहती अलकनंदा की अविरल धारा (किसी अन्य यात्रा के दौरान लिया गया फोटो)

सुहाने सफ़र की गवाही देते सुहाने रास्ते

इन खूबसूरत रास्तों से गुज़रते हुए बद्रीनाथ से पहले अगला दर्शनीय स्थल है गोविन्दघाट जहाँ से अलकनंदा को पार करके सिखों के सर्वाधिक उँचाई पर बसे गुरुद्वारे श्री हेमकुंड साहिब जी और मनमोहक फूलों की घाटी की पैदल यात्रा शुरू होती है. हमारे कार्यक्रम मे वैसे ये दोनो खूबसूरत स्थल भी शामिल थे लेकिन यहाँ आने पर पता चला की इन जगहों की यात्रा तब तक खुली नही थी, इसलिए इन जगहों को किसी और यात्रा के लिए छोड़ दिया गया (इन दोनों जगहों की रोमांचक यात्रा इस साल पूरी कर ली गयी है जिसका लेखा जोखा किसी और दिन प्रस्तुत किया जाएगा). बद्रीनाथ से कुछ पहले हमारी जीप रास्ते मे 2/3 बार थोड़ी थोड़ी देर के लिए रुकी जिसकी वजह थी रास्ते मे पड़ी बरफ. पहले बार जीप काफ़ी देर तक खड़ी रहे तो मैने बद्रीनाथ तक पैदल चलने का सुझाव दिया जिसे खारिज कर दिया गया. हम वहीं खड़े खड़े बर्फ का मज़ा लेने लगे और उत्साहित होते रहे.  खैर सांझ ढलने से कुछ पहले हम लोग बद्रीनाथ पहुँच गये.

दीपक (बाँये) और पुनीत (दाँये) बद्रीनाथ बस अड्डे पर

विपिन बस अड्डे के पास

दीपक एक महत्वपूर्ण स्थानों को दिखाते साइनबोर्ड के साथ

चूँकि आज सिर्फ़ मंदिर मे दर्शन करने का कार्यक्रम था इसलिए जल्दी से रहने का ठिकाना ढूँढने लगे जिसमे काफ़ी देर लग गयी. आज की रात हम लोग डौरमैट्री मे गुज़ार रहे थे, यहीं अपना सारा सामान छोड़कर हम लोग दर्शन करने से पहले सल्फर युक्त तप्त कुंड के जल मे स्नान करने निकल पड़े. सबसे पहले हम तप्त कुंड के पास गये पर उसका जल इतना गर्म था की हम लोगों की उसमे स्नान करने की हिम्मत नही पड़ी इसलिए हम लोग एक दूसरे कुंड नारद कुंड मे स्नान करने लगे जो की खुले स्थान मे था और कम गर्म था. नारद कुंड मे स्नान करना उस ठंडे माहौल मे इतना ताज़गी देने वाला और सुखद अहसास था कि कुंड से बाहर आने का मन ही नही कर रहा था.

तप्त कुंड के पास रंग बिरंगा पुल और पीछे बर्फ़ीली चोटियाँ

खौलता हुआ तप्त कुंड

जैसे जैसे सूरज ढल रहा था ठंड बढ़ती जा रही थी ऐसे मे पुनीत और दीपक ने अपने गर्म कपड़े निकाल लिए, पर ये क्या जल्दबाज़ी मे मैं तो अपनी जैकेट लाना ही भूल गया था. सोचा चलो कोई बात नही यहीं बाज़ार से गरम कपड़े ले लेंगे, पर जैसे ही स्नान के बाद हम लोग रंग बिरंगे बाज़ार से गुज़रते हुए मंदिर मे दर्शन के लिए जा रहे थे तो ठंड ने अपना असर दिखना शुरू कर दिया और शरीर मे कँपकपी होने लगी. ऐसे मे तो राहत तब ही मिली जब हमने बाज़ार से कुछ गरम कपड़े लिए. बद्रीनाथ (3133 मी.) उत्तरांचल के चारधामों मे से एक है जहाँ भगवान विष्णु एक रंग बिरंगे आकर्षक मंदिर के अंदर विराजमान हैं. बद्रीनाथ आकर वक्त जैसे रुक सा जाता है और यहाँ की बर्फ़ीली हसीन वादियाँ आप को इन वादियों मे खो जाने पर मजबूर कर देती हैं.

रात्रि मे बद्रीनाथ जी के दर्शन

हम लोग मंदिर मे दर्शन के लिए पहुँचे तो एक लंबी कतार देखकर पहले तो लगा कि आज दर्शन हो पाना लगभग मुश्किल ही है लेकिन ये सोचकर लाइन मे लगे रहे कि हो सकता है कि कल भी ऐसी ही भीड़ हो और अगले दिन हमे काफ़ी कुछ देखना था और वापस जोशिमठ भी पहुँचना था. खैर मंदिर बंद होने से कुछ पहले ही हमे मंदिर मे प्रवेश करने और भगवान बद्री के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. दर्शन करने के बाद हम लोग भूख से आतुर एक ढाबे मे लज़ीज़ खाने का स्वाद लेने पहुँचे और फिर घूमते घामते अपने रात के ठिकाने पर पहुँचे. आज ज़्यादा ना चलने के बावजूद भी थकान से हम सभी बेहाल थे इसलिए डौरमैट्री मे आते ही कल सुबह जल्दी उठने के वादे के साथ बिस्तर पर लमलोट हो गये और ना जाने कब आँख लग गयी पता ही नही चला. आज के लिए इतना ही लेकिन ये रोमांचक सफ़र आगे भी जारी रहेगा अगले लेख मे…

गढ़वाल घुमक्कडी: कर्णप्रयाग – विष्णुप्रयाग – बद्रीनाथ was last modified: October 26th, 2022 by Vipin
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