सà¥à¤¬à¤¹ चार बजे से पहले ही कानो मे आस पास के मंदिरो मे हो रही आरती की आवाज़ गूंजने लगी और मेरी आà¤à¤– खà¥à¤² गयी पर थकान के कारण उठà¥à¤¨à¥‡ का मन नहीं कर रहा था। तà¤à¥€ गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी ने उठकर, शौच आदि से निवरà¥à¤¤ हो, सबको उठाना शà¥à¤°à¥ कर दिया और सब लोग जलà¥à¤¦à¥€ से उठà¤à¥€ गये। हमारा मंदिर के पास बने हà¥à¤ तपà¥à¤¤ कà¥à¤‚ड (नारद कà¥à¤‚ड) मे सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® था। गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी पहले ही à¤à¤• जोड़ी कपड़े लेकर चलने को tतैयार थे। लेकिन कमरे में शौचालय à¤à¤• ही था जिसके कारण थोड़ी समसà¥à¤¯à¤¾ à¤à¥€ हो रही थी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि à¤à¤• समय में à¤à¤• आदमी ही उसे इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² कर सकता था । गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी काफ़ी वà¥à¤¯à¤—à¥à¤° हो रहे थे और गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ à¤à¥€à¥¤ 10-15 मिनटों में पाà¤à¤š लोग और चलने को tतैयार थे सिरà¥à¤«à¤¼ शà¥à¤¶à¥€à¤² और पिता-पà¥à¤¤à¥à¤° अà¤à¥€ तैयार होना बाकी थे। गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी ने कहा चलो हम लोग चलते हैं ये लोग बाद में आ जाà¤à¤à¤‚गे, मैनें उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ 10 मिनट और इनà¥à¤¤à¤œà¤¼à¤¾à¤° करने को कहा लेकिन गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी काफ़ी उतावले हो रहे थे और चार साथियों के साथ मंदिर की तरफ़ चले गये। मैं तैयार तो था लेकिन उनके साथ नहीं गया और अपने दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ से जलà¥à¤¦à¥€ से तैयार होने को कहा। मेरे दोसà¥à¤¤ उनके इस तरह चले जाने से थोड़ा नाराज़ थे और मà¥à¤ पर बिगड़ रहे थे। थोड़ी ही देर में वो à¤à¥€ तैयार हो गये और मà¥à¤à¤¸à¥‡ बोले तू बाहर जाकर रासà¥à¤¤à¤¾ देख किस तरफ़ जाना है, हम लोग कमरे को ताला लगाकर आते हैं ।
हमारा कमरा बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड के पास ही था और वहाठसे मंदिर की दूरी 500-600 मीटर थी, हम सब यहाठपर पहली बार आये थे और हमें मंदिर कि सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ का बिलà¥à¤•à¥à¤² à¤à¥€ अनà¥à¤¦à¤¾à¤œà¤¾ नहीं था। मैं कमरे से बाहर आया तो करीब सà¥à¤¬à¤¹ के 4:45 बज चूके थे। बाहर आ कर देखा तो चारो तरफ़ अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ था और समठनहीं आ रहा था कि किस तरफ़ जाना है और मैं अपने अनà¥à¤¦à¤¾à¤œà¥‡ से ,रात को जिस दिशा से आये थे उसके विपरीत दिशा की ओर चल पड़ा। आगे काफ़ी लोग मंदिर जाते मिल गये। मैं à¤à¤• चौराहे पर खड़ा होकर अपने साथियों का इनà¥à¤¤à¤œà¤¼à¤¾à¤° करने लगा और उनको आता देखकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ इशारा कर आगे चल दिया और थोड़ी ही देर में हम मंदिर के पास पहà¥à¤à¤š गये।
परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ है कि दरà¥à¤¶à¤¨ से पहले मंदिर के नीचे बने हà¥à¤ तपà¥à¤¤ कà¥à¤‚ड मे सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ किया जाता है, हमारे लिठतो सब कà¥à¤› नया था और हम à¤à¥€ पूछते हà¥à¤ वहाठपहà¥à¤à¤šà¥‡à¥¤ तब तक गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी और हमारे अनà¥à¤¯ साथी सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कर चà¥à¤•े थे। हमने उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ रà¥à¤•ने के लिये कहा लेकिन गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी जलà¥à¤¦à¥€ में थे और हमसे बोले कि हम जाकर लाइन में लग रहें हैं, तà¥à¤® लोग तैयार होकर आ जाना। à¤à¤¸à¤¾ कहकर वो पाà¤à¤šà¥‹à¤‚ साथी चले गये।
तपà¥à¤¤ कà¥à¤‚ड à¤à¤• छोटा सा टैंक था जिसमे कà¥à¤› लोग नहा रहे थे कà¥à¤› लोग बाहर बैठकर मग से तपà¥à¤¤ कà¥à¤‚ड का पानी ले कर नहा रहे थे। तपà¥à¤¤ कà¥à¤‚ड का जल काफ़ी गरà¥à¤® था। बाहर मौसम मे ठंडक थी पर फिर à¤à¥€ तपà¥à¤¤ कà¥à¤‚ड का जल शरीर पर डाला नही जा रहा था। लोग इसके अंदर नहा रहे थे। तà¤à¥€ वहाठनहा रहे लोगो ने बताया की पहले जल को मग से अपने उपर डाले । जब शरीर सहने लायक हो जाय तो जलà¥à¤¦à¥€ से इस कà¥à¤‚ड मे उतर आà¤à¥¤ वहीं लोगो ने बताया की गरà¥à¤® जल सर पर ज़à¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ नही डालना चाहिठवरना तबीयत खराब हो सकती है. हमने à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ ही किया। तब तक उजाला हो चà¥à¤•ा था और हमारे चारो ओर विशालकाय परà¥à¤µà¤¤ खड़े थे। इन पहाड़ो की चोटियो पर पड़ी वरà¥à¤«à¤¼ सूरà¥à¤¯ की रोशनी मे चमक रही थी. सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के बाद जलà¥à¤¦à¥€ जलà¥à¤¦à¥€ तैयार होकर हम पूजा की थाली लेने और जà¥à¤¤à¥‡ तथा सामान जमा करवाने के लिये à¤à¤• दà¥à¤•ान पर गये। à¤à¥€à¤¡à¤¼ काफ़ी जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ थी और मैं धकà¥à¤•ापेल से बचने के लिये à¤à¤• दूसरी दà¥à¤•ान में चला गया और जब वापिस आया तो दोनो साथी गायब थे और मैने सोचा कि शायद वो दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठचले गये। मैं à¤à¥€ à¤à¤—वान बदà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤¶à¤¾à¤² के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठचल दिया, काफ़ी लमà¥à¤¬à¥€ लाइन लगी हà¥à¤ˆ थी और लाइन में पीछे की तरफ़ मà¥à¤à¥‡ पाà¤à¤šà¥‹à¤‚ साथी मिल गये लेकिन वो दोनो अà¤à¥€ यहॉ नहीं पहà¥à¤à¤šà¥‡ थे। मैं à¤à¥€ दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठउनके साथ लाइन में खड़ा हो गया और उन दोनो की पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करने लगा। (वैसे आजकल यहाठलाइन लगनी बदं हो गयी है और गà¥à¤°à¥à¤ª सिसà¥à¤Ÿà¥à¤® शà¥à¤°à¥ हो गया है। आपको वहाठपहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ पर आपका गà¥à¤°à¥à¤ª नमà¥à¤¬à¤° मिल जायेगा और दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के लिये समà¥à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤¤ समय à¤à¥€à¥¤ तब तक आप लाइन में खड़े होने कि बजाय आसपास घूम सकते है या बाजार में शापिंग कर सकते हैं।)
लाइन धीरे-2 चल रही थी और हम आसपास के पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक सौंदरà¥à¤¯ का नज़ारा लेते हà¥à¤ तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚ लेते रहे। 15-20 मिनट और बीत गये पर वो दोनो नहीं आये। अब मà¥à¤à¥‡ उनके बारे में चिनà¥à¤¤à¤¾ होने लगी कि वो कहाठरह गये ? मेरे मन में à¤à¤• खà¥à¤¯à¤¾à¤² यह à¤à¥€ आ रहा था कि कहीं उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ लमà¥à¤¬à¥€ लाइन देखकर दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठकोई दूसरा जà¥à¤—ाड़ तो नहीं कर लिया। 5-7 मिनट के बाद मैं लाइन में लगे साथियों से कहकर उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ ढूढ़ने चल दिया और जैसे ही मैं मंदिर के दà¥à¤µà¤¾à¤° के पास पहà¥à¤à¤šà¤¾ वो मà¥à¤à¥‡ मंदिर से बाहर आते दिखे। उनके माथे पर तिलक लगा देख कर मैं समठगया कि वो दरà¥à¤¶à¤¨ कर चà¥à¤•े हैं और वो मà¥à¤à¤¸à¥‡ बोले कि हम तो VIP लाइन से दरà¥à¤¶à¤¨ कर चà¥à¤•े हैं , तà¥à¤® आ जाओ तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥€ करवा देते हैं। मैने उनको कहा कि सब लोग तो लाइन में लगे हैं और तà¥à¤®à¤¨à¥‡ दरà¥à¤¶à¤¨ कर लिये…यार ये ठीक नहीं किया और जबाब मिला कि जब वो लोग हमें कमरे पर छोड़ कर आ गये थे कà¥à¤¯à¤¾ वो ठीक था ? तà¥à¤¨à¥‡ दरà¥à¤¶à¤¨ करने हैं तो आजा, हमने तेरे लिये बात कर ली है नही तो जाके लाइन में लग जा। à¤à¤¸à¤¾ कहकर मà¥à¤à¥‡ अपने पीछे आने को कहा और मैं किवंकरà¥à¤¤à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¿à¤®à¥à¤¢ उनके पीछे चल पडा और मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में जाकर मालूम हà¥à¤† कि अनà¥à¤¦à¤° à¤à¤• छोटी सी VIP लाइन लगी हà¥à¤ˆ है। VIP लाइन में लगने के लिये मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के अनà¥à¤¦à¤° ही दान-परà¥à¤šà¥€ कटती है और जो मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का सेवादार VIP लाइन को कंटà¥à¤°à¥‹à¤² कर रहा था उसे वो कहकर गये थे कि हमारा à¤à¤• साथी ओर आयेगा लेकिन जब मैं वहाठगया तो उसने मना कर दिया और उससे बहस हो गयी लेकिन थोड़ी देर बाद वो मान गया और उसने मà¥à¤à¥‡ मà¥à¤–à¥à¤¯ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में जाने दिया। मंदिर मे à¤à¥€à¤¡à¤¼ बहà¥à¤¤ थी। वहाठगदà¥à¤¦à¥€ पर बैठे रावल जी बताने लगे की à¤à¤—वान बदà¥à¤°à¥€à¤µà¤¿à¤¶à¤¾à¤² पदà¥à¤®à¤¾à¤¸à¤¨ मे धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ मे है।
मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में बदरीनाथ की दाहिनी ओर कà¥à¤¬à¥‡à¤° की मूरà¥à¤¤à¤¿ है। उनके सामने उदà¥à¤§à¤µà¤œà¥€ हैं तथा उतà¥à¤¸à¤µà¤®à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ है। उतà¥à¤¸à¤µà¤®à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ शीतकाल में बरफ जमने पर जोशीमठमें ले जायी जाती है। उदà¥à¤§à¤µà¤œà¥€ के पास ही चरणपादà¥à¤•ा है। बायीं ओर नर-नारायण की मूरà¥à¤¤à¤¿ है। इनके समीप ही शà¥à¤°à¥€à¤¦à¥‡à¤µà¥€ और à¤à¥‚देवी है। à¤à¤—वान के ललाट पर हीरा लगा हà¥à¤† है। मसà¥à¤¤à¤• पर लगे हीरे को देख कर à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था की हरे रंग का ज़ीरो वाट का वलà¥à¤µ जल रहा हो। मैं थोड़ी देर वहाठà¤à¤• टक निहारता रहा। रावल जी मंतà¥à¤°à¥‹à¤šà¤¾à¤° करने लगे, हमे लगा कि इससे पहले हमको बाहर जाने के लिठकहे , बाहर चलना चाहिà¤à¥¤ à¤à¤—वान के सामने से हट कर बाहर को निकालने लगा तà¤à¥€ मंतà¥à¤°à¥‹à¤šà¤° करते हà¥à¤ रावल जी ने इशारे से अपने पास बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ और माथे पर चंदन का लेप पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के रूप मे लगा दिया। यहाठका चरणामà¥à¤°à¤¤ केसरयà¥à¤•à¥à¤¤ मीठा था। दरà¥à¤¶à¤© के बाद मंदिर की परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ करके हम तीनों मंदिर के पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में ही बैठगये और अपने बाकी साथियों के आने का इनà¥à¤¤à¤œà¤¼à¤¾à¤° करने लगे। इसी दौरान VIP दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ का समय समापà¥à¤¤ हो गया। VIP दरà¥à¤¶à¤¨ सिरà¥à¤«à¤¼ सà¥à¤¬à¤¹ -2 ही होते हैं । सेवादारों ने मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के सामने के दà¥à¤µà¤¾à¤° को बंद कर दिया और मà¥à¤–à¥à¤¯ लाइन के लोगों को बायें दà¥à¤µà¤¾à¤° से आने को कहा। हमने मौक़े का फ़ायदा उठाया और à¤à¤¾à¤— कर बायें दà¥à¤µà¤¾à¤° के आगे खड़े हो गये। जैसे ही दà¥à¤µà¤¾à¤° खà¥à¤²à¤¾, हम दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गये और जी à¤à¤° कर बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी व उनकी पंचायत के दरà¥à¤¶à¤¨ किये।
“ बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ मंदिर , जिसे बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤°à¤¾à¤¯à¤£ मंदिर à¤à¥€ कहते हैं, अलकनंदा नदी के किनारे उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड राजà¥à¤¯ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यह मंदिर à¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ के रूप बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ को समरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ है। यह हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं के चार धाम में से à¤à¤• धाम à¤à¥€ है। ऋषिकेष से यह 294 किलोमीटर की दूरी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है । पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• हिनà¥à¤¦à¥‚ की यह कामना होती है कि वह बदरीनाथ का दरà¥à¤¶à¤¨ à¤à¤• बार अवशà¥à¤¯ ही करे।ये पंच-बदà¥à¤°à¥€ में से à¤à¤• बदà¥à¤°à¥€ हैं। उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड में पंच बदà¥à¤°à¥€, पंच केदार तथा पंच पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤— पौराणिक दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से तथा हिनà¥à¤¦à¥‚ धरà¥à¤® दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ हैं।यहाठपर शीत के कारण अलकननà¥à¤¦à¤¾ में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करना अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ ही कठिन है। अलकननà¥à¤¦à¤¾ के तो दरà¥à¤¶à¤¨ ही किये जाते हैं। यातà¥à¤°à¥€ तपà¥à¤¤à¤•à¥à¤£à¥à¤¡ में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करते हैं। वनतà¥à¤²à¤¸à¥€ की माला, चले की कचà¥à¤šà¥€ दाल, गिरी का गोला और मिशà¥à¤°à¥€ आदि का पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ चढ़ाया जाता है।
बदरीनाथ की मूरà¥à¤¤à¤¿ शालगà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¶à¤¿à¤²à¤¾ से बनी हà¥à¤ˆ, चतà¥à¤°à¥à¤à¥à¤œ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¤®à¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में है। कहा जाता है कि यह मूरà¥à¤¤à¤¿ देवताओं ने नारदकà¥à¤£à¥à¤¡ से निकालकर सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ की थी। सिदà¥à¤§, ऋषि, मà¥à¤¨à¤¿ इसके पà¥à¤°à¤§à¤¾à¤¨ अरà¥à¤šà¤• थे। जब बौदà¥à¤§à¥‹à¤‚ का पà¥à¤°à¤¾à¤¬à¤²à¥à¤¯ हà¥à¤† तब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने इसे बà¥à¤¦à¥à¤§ की मूरà¥à¤¤à¤¿ मानकर पूजा आरमà¥à¤ की। शंकराचारà¥à¤¯ की पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤°à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾ के समय बौदà¥à¤§ तिबà¥à¤¬à¤¤ à¤à¤¾à¤—ते हà¥à¤ मूरà¥à¤¤à¤¿ को अलकननà¥à¤¦à¤¾ में फेंक गà¤à¥¤ शंकराचारà¥à¤¯ ने अलकननà¥à¤¦à¤¾ से पà¥à¤¨: बाहर निकालकर उसकी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की। तदननà¥à¤¤à¤° मूरà¥à¤¤à¤¿ पà¥à¤¨: सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤°à¤¿à¤¤ हो गयी और तीसरी बार तपà¥à¤¤à¤•à¥à¤£à¥à¤¡ से निकालकर रामानà¥à¤œà¤¾à¤šà¤¾à¤°à¥à¤¯ ने इसकी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की।
बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ नाम की कथा
जब à¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ योग धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में तपसà¥à¤¯à¤¾ में लीन थे तो बहà¥à¤¤ ही जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ हिम पात होने लगा। à¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ बरà¥à¤« में पूरी तरह डूब चà¥à¤•े थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ का हà¥à¤°à¤¦à¤¯ दà¥à¤°à¤µà¤¿à¤¤ हो उठा और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ à¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ के समीप खड़े हो कर à¤à¤• बेर(बदà¥à¤°à¥€) के वृकà¥à¤· का रूप ले लिया और समसà¥à¤¤ हिम को अपने ऊपर सहने लगी। à¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ को धà¥à¤ª वरà¥à¤·à¤¾ और हिम से बचाने लगी। कई वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ बाद जब à¤à¤—वानॠविषà¥à¤£à¥ ने अपना तप पूरà¥à¤£ किया तो देखा की माता लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ बरà¥à¤« से ढकी पड़ी हैं। तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने माता लकà¥à¤·à¥à¤®à¥€ के तप को देख कर कहा की हे देवी! तà¥à¤®à¤¨à¥‡ à¤à¥€ मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मà¥à¤à¥‡ तà¥à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤°à¥‡ ही साथ पूजा जायेगा। और कà¥à¤¯à¥‚ंकि तà¥à¤®à¤¨à¥‡ मेरी रकà¥à¤·à¤¾ बदà¥à¤°à¥€ रूप में की है सो आज से मà¥à¤à¥‡ बदà¥à¤°à¥€ के नाथ-बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से à¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ का नाम बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ पड़ा। जहाठà¤à¤—वान बदà¥à¤°à¥€ ने तप किया तह वो ही जगह आज तपà¥à¤¤ कà¥à¤£à¥à¤¡ के नाम से जानी जाती है और उनके तप के रूप में आज à¤à¥€ उस कà¥à¤£à¥à¤¡ में हर मौसम में गरà¥à¤® पानी उपलबà¥à¤§ रहता है।â€
दà¥à¤¬à¤¾à¤°à¤¾ दरà¥à¤¶à¤¨ के बाद हमने कमरे पर चलने का निशà¥à¤šà¤¯ किया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वहाठठंड बहà¥à¤¤ थी और जब हम मनà¥à¤¦à¤¿à¤° से बाहर निकले तो हमारे अनà¥à¤¯ साथी à¤à¥€ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के मà¥à¤–à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° के पास पहà¥à¤à¤š चूके थे। वापसी में à¤à¤• बार फिर काफ़ी à¤à¥€à¤¡à¤¼ के कारण मैं उन दोनो से बिछà¥à¤¡à¤¼ गया लेकिन इस बार मैनें उनको ढूंढने कि बजाठसीधे कमरे पर जाने का निशà¥à¤šà¤¯ किया। कमरे पर पहà¥à¤à¤š कर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ आया कि चाबी तो सीटी या शà¥à¤¶à¥€à¤² के पास ही है और मैं कमरे के बाहर उनका इनà¥à¤¤à¤œà¤¼à¤¾à¤° करने लगा।
हवा बहà¥à¤¤ ठंडी थी और टांगों में खडे होने की बिलà¥à¤•à¥à¤² हिमà¥à¤®à¤¤ नहीं थी। मैं होटल वाले के पास गया और उससे पूछा कि कया उनके पास कमरे की दूसरी चाबी है ,उसने कहा कि उनके पास ताले की à¤à¤• ही चाबी थी जो वो पहले ही हमें दे चà¥à¤•ा था। मैनें उससे बैठने के लिये à¤à¤• कà¥à¤°à¥à¤¸à¥€ मांगी और मà¥à¤à¥‡ à¤à¤• कà¥à¤°à¥à¤¸à¥€ मिल गयी। मैं कà¥à¤°à¥à¤¸à¥€ को धूप में ले जाकर उस पर बैठगया और अपने लिये à¤à¤• चाय का आरà¥à¤¡à¤° दिया। धूप में बैठकर चाय पीने से मà¥à¤à¥‡ काफ़ी सकà¥à¤¨ मिला। लगà¤à¤— 40 मिनट बाद वे दोनो आये और मालूम हà¥à¤† कि सीटी अपने बेटे के लिये शापिगं करने और खाने-पीने लग गया था। 10-15 मिनट बाद सà¤à¥€ लोग आ गये। आते ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¤¸à¥‡ पà¥à¤›à¤¾ कि तà¥à¤® उनà¥à¤¹à¥‡ ढूंढने गये और खà¥à¤¦ ही गायब हो गये और मैने उनको सारी बात बता दी लेकिन गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी बहà¥à¤¤ गà¥à¤¸à¥à¤¸à¥‡ में थे और मà¥à¤ पर बà¥à¤°à¥€ तरह à¤à¤¡à¤¼à¤• गये। मैने चà¥à¤ª रहने में ही à¤à¤²à¤¾à¤ˆ समà¤à¥€à¥¤
गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी, शरà¥à¤®à¤¾ जी के साथ शेव करवाने चले गये और बाकी लोग नाशता करने। आलू के पराठों का नाशता करते हà¥à¤ मैने उन तीनो (नरेश सरोहा, सोनॠà¤à¤µà¤® सतीश ) से सारी बात की और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¤¸à¥‡ कहा वो बिलà¥à¤•à¥à¤² नाराज नहीं है, दरà¥à¤¶à¤¨ ही करने थे, पहले करो या बाद में और इससे कोई फ़रक नहीं पड़ता है। उनकी बातचीत से à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ ही लग रहा था और उनका वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° सामानà¥à¤¯ था । मà¥à¤à¥‡ अà¤à¥€ तक समठनहीं आया कि मेरा पहले दरà¥à¤¶à¤¨ ठीक था या गलतà¥à¥¤ इसका फ़ैसला मैं पाठकों पर ही छोड़ता हूठ। शायद गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी को यह बात हजम नही हà¥à¤ˆ कि उनके पहले उठà¥à¤¨à¥‡, पहले कमरे से जाने, पहले नहाने और पहले लाइन में लगने के बावजूद ,उनसे पहले हमने दरà¥à¤¶à¤¨ कयों किये। गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी ने हम तीनो से ‘कà¥à¤Ÿà¤Ÿà¥€â€™ कर दी। बड़े गà¥à¤°à¥à¤ª में à¤à¤¸à¤¾ होना सà¥à¤µà¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• ही है और बड़े गà¥à¤°à¥à¤ª में अकसर छोटे गà¥à¤°à¥à¤ª बन जाते हैं। मैं à¤à¤¸à¥‡ हालात से पहले à¤à¥€ दो-चार हो चूका हूं।
जब सब लोग आलू के पराठों का नाशता कर चà¥à¤•े तो सबने फिर से अपने-2 बैग गाड़ी के उपर अचà¥à¤›à¥€ तरह से रख कर बाà¤à¤§ दिये और बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी से चलने को तैयार हो गये। कल शाम को टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• जाम के कारण जो समय का नà¥à¤•सान हà¥à¤† उस कारण हमें आज बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी से थोड़ी आगे माना गाà¤à¤µ व आसपास की जगह घà¥à¤®à¤¨à¥‡ का विचार तà¥à¤¯à¤¾à¤—ना पड़ा कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि पहले से तय कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° हमें आज गोबिंद घाट से हेमकà¥à¤¨à¥à¤¡ यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥ करनी थी और 13 किलोमीटर की चढ़ाई के बाद रात को घाघंरिया पहà¥à¤à¤šà¤¨à¤¾ था। इसलिये हम दोपहर 12 बजे के करीब बदà¥à¤°à¥€à¤¨à¤¾à¤¥ जी से गोबिंद घाट कि ओर चल दिये। लगà¤à¤— 2 घंटे की छोटी सी यातà¥à¤°à¤¾ के बाद हम गोबिंद घाट पहà¥à¤à¤š गये। इस छोटी सी यातà¥à¤°à¤¾ के दौरान गाड़ी में ‘तूफ़ान के बाद की शांति’ पसरी रही।
गोविंदघाट, चमोली जिले में अलकनंदा और लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ गंगा नदियों के संगम पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¤• शहर है. यह NH58 पर जोशीमठसे लगà¤à¤— 22 किलोमीटर के आसपास 6000 फीट की ऊंचाई पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है. यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ हेमकà¥à¤‚ड साहिब और फूलों की घाटी के लिठटà¥à¤°à¥ˆà¤•िंग के लिठपà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठबिंदॠहै। अलकनंदा नदी के दाहिने किनारे पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾, कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में सबसे महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ मील का पतà¥à¤¥à¤° है. यह तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठआवास à¤à¥€ उपलबà¥à¤§ कराता है. सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ बाजार में कई होटल, अतिथि गृह और रेसà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤‚ है. यहाठकी अरà¥à¤¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ पूरी तरह यातà¥à¤°à¤¾ पर निरà¥à¤à¤° है जो मई के अंत से शà¥à¤°à¥ होकर सितमà¥à¤¬à¤° तक होती है। सà¤à¥€ आवशà¥à¤¯à¤• सामान, जिसकी à¤à¤• टà¥à¤°à¥‡à¤•िंग के लिठआवशà¥à¤¯à¤•ता हो सकती है, सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ बाजार में उपलबà¥à¤§ है । हेमकà¥à¤‚ड साहिब और फूलों की घाटी का दौरा करने के लिठघाघंरिया के आधार शिविर तक 13 किलोमीटर टà¥à¤°à¥ˆà¤•िंग के लिठयहां खचà¥à¤šà¤°à¥‹à¤‚ और कà¥à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की काफ़ी उपलबà¥à¤§à¤¤à¤¾ हैं।दूरसंचार के लिठवहां केवल बी.à¤à¤¸.à¤à¤¨.à¤à¤² की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ ही उपलबà¥à¤§ है जो कि गोविंदघाट से आगे कारà¥à¤¯ नहीं करती।
गोबिंद घाट पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के बाद सबने अपना-2 पिठू बैग तैयार किया और शरीर के ना चाहते हà¥à¤ à¤à¥€, à¤à¤• दà¥à¤¸à¤°à¥‡ की देखा-देखी,हाथ में डंडा लिठपैदल चढ़ाई शà¥à¤°à¥ कर दी।इस समय दोपहर के दो बज चूके थे। पà¥à¤°à¥€ घाटी पर सूरज चमक रहा था इसलिये चढ़ाई शà¥à¤°à¥ करते ही गरà¥à¤®à¥€ लगने लगी हमने सà¥à¤µà¥‡à¤Ÿà¤° उतार कर पिठू बैग में रख दिये। पà¥à¤°à¤•ृति का मजा लेते हà¥à¤ हम मसà¥à¤¤à¥€ में चल रहे थे तà¤à¥€ हमें (मैं, शà¥à¤¶à¥€à¤² और सीटी à¤à¤• ही गांव से हैं )अपने गांव के कà¥à¤› साथी उतरते हà¥à¤ मिले। वे लोग हेमकà¥à¤‚ड साहिब से दरà¥à¤¶à¤¨ करने के बाद नीचे गोबिंद घाट कि ओर जा रहे थे। उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡à¤‚ हमें बताया कि घाघंरिया (गोबिंद धाम) में यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की बहà¥à¤¤ à¤à¥€à¤¡à¤¼ है और वहाठरà¥à¤•ने के लिये होटल थोड़े ही हैं इसलिये वहाठजाते ही ठहरने का इतंजाम कर लेना नहीं तो रात खà¥à¤²à¥‡ में ही काटनी पड़ेगी। हमने अपने साथियों से कह दिया कि जो à¤à¥€ घाघंरिया पहले पहà¥à¤à¤š जायेगा वो ठहरने का इतंजाम कर लेगा।
शà¥à¤°à¥ में तो हम लोग सà¤à¥€ à¤à¤• साथ ही चल रहे थे लेकिन धीरे – धीरे अलग-2 गति के कारण आगे पिछे हो गये। सोनॠव सतीश सबसे आगे चल रहे थे और उनके पीछे मैं चल रहा था और बाकी सब लोग पीछे…। हमारा आज का रासà¥à¤¤à¤¾ 13 कि.मी. का था और चढ़ाई à¤à¥€ थी । गोबिंद घाट से घाघंरिया तक शà¥à¤°à¥ के दो किलोमीटर और आखिर के तीन किलोमीटर काफ़ी मà¥à¤¶à¤¿à¤•ल चढ़ाई है बाक़ी के आठकिलोमीटर सामानà¥à¤¯ सà¥à¤¤à¤° की चढ़ाई है। रासà¥à¤¤à¤¾ काफ़ी रमणीक था कदम कदम पर जल धाराà¤à¤‚ व पहाडि़यों से फूटते à¤à¤°à¤¨à¥‹à¤‚ ने यातà¥à¤°à¤¾ को अतà¥à¤¯à¤¨à¥à¤¤ मनोरम बना दिया। रासà¥à¤¤à¥‡ के साथ-2 ‘लकà¥à¤·à¥à¤®à¤¨ गंगा’ नदी बह रही है जो बाद में गोविंदघाट में अलकनंदा नदी से मिल जाती है । यहाठनदी के पतà¥à¤¥à¤° à¤à¤•दम सफ़ेद है और कई जगह तो नदी में ही रासà¥à¤¤à¤¾ बना हà¥à¤† था। मैं काफ़ी तेज चल रहा था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ होने से पहले मैं घाघंरिया पहà¥à¤à¤šà¤¨à¤¾ चाहता था।
पहाड़ो पर काफ़ी चड़ाई के बाद चलते -चलते à¤à¤•दम मैदानी à¤à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ आ गया, बहà¥à¤¤ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° जगह थी –यह à¤à¤• पारà¥à¤• जैसा लग रहा था, जहाठबहà¥à¤¤ से फà¥à¤² खिले हà¥à¤ थे । यहाठपर à¤à¤• हेलीपेड à¤à¥€ बना हà¥à¤† है और धनवान लोग यहाठतक हेलिकॉपà¥à¤Ÿà¤° से आ सकते हैं ।यहाठपर लकड़ी के काफी सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° मकान à¤à¥€ बने हà¥à¤ थे और यह सब वन विà¤à¤¾à¤— का था। यहाठसे गोविनà¥à¤¦ धाम 3किलो मीटर और दूर है । चढ़ाई होने के कारण रासà¥à¤¤à¤¾ कठिन था किंतॠरूक-रूककर पà¥à¤°à¤•ृति का आनंद लेते हà¥à¤ रासà¥à¤¤à¥‡ की कठिनाई पता नहीं चली। जब तक मैं घाघंरिया पहà¥à¤à¤šà¤¤à¤¾, अनà¥à¤§à¥‡à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥ हो चà¥à¤•ा था। घाघंरिया में तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के ठà¥à¤¹à¤°à¤¨à¥‡ के लिठà¤à¤• बड़ा गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾, गढ़वाल मंडल विकास निगम का à¤à¤• और बाकी अनà¥à¤¯ कई होटल हैं। तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की तादाद à¤à¥€ बहà¥à¤¤ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ थी और रà¥à¤•ने की सà¤à¥€ जगह à¤à¤°à¥€ पडी थी। सोनॠव सतीश मà¥à¤à¤¸à¥‡ पहले वहाठपहà¥à¤à¤š गये थे और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ बताया कि गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से पूरी तरह à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† है और बाकी सà¤à¥€ होटलों में à¤à¥€ वे पतà¥à¤¤à¤¾ कर चà¥à¤•े हैं। सिरà¥à¤«à¤¼ à¤à¤• होटल में à¤à¤• 4 बैड का कमरा खाली है जिसके वो 4000 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ मागठरहा है। इसके अलावा और कोई कमरा खाली नही था । ‘मरता कया ना करता’ वाली सà¥à¤¤à¤¿à¤¥à¤¿ बन गयी थी। सोनॠने होटल वाले को कमरा बà¥à¤• करवा दिया लेकिन उसे कोई अगà¥à¤°à¤¿à¤® à¤à¥à¤—तान नहीं दिया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि किराया जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ होने के कारण सरà¥à¤µà¤¸à¤®à¥à¤®à¤¤à¤¿ jजरà¥à¤°à¥€ थी, फ़िर से किसी तनाव से बचना चाहते थे। 30-35 मिनट तक तीन और साथी आ गये , उनसे à¤à¥€ विचार किया गया, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि सà¤à¥€ बà¥à¤°à¥€ तरह से थके हà¥à¤ थे और सà¥à¤¬à¤¹ फिर से यातà¥à¤°à¤¾ के लिये सोना बहà¥à¤¤ जरà¥à¤°à¥€ था और कोई अनà¥à¤¯ विकलà¥à¤ª ना होने के कारण कमरा ले लिया गया। मà¥à¤à¥‡ दà¥à¤¸à¤°à¥‹à¤‚ का तो पता नहीं ,मैं पहली बार इतने महंगे कमरे में रà¥à¤•ा था। कमरे के हालात महंगे किराये के बिलà¥à¤•à¥à¤² विपरीत थे, कमरा अà¤à¥€ निरà¥à¤®à¤¾à¤£à¤¾à¤§à¥€à¤¨ था और अà¤à¥€ उसमें लिपाई-पà¥à¤¤à¤¾à¤ˆ à¤à¥€ नहीं हà¥à¤ˆ थी, कमरे meमें शौचालय तो था लेकिन उसमें पानी नहीं था। पानी (ठंडे) के लिये कमरे के बाहर नल व बालà¥à¤Ÿà¥€ मौजà¥à¤¦ थे लेकिन होटल मालिक ने सà¥à¤¬à¤¹ à¤à¤• बालà¥à¤Ÿà¥€ गरम पानी की देने का वायदा किया। हालात पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•ूल थे और शायद किसी को à¤à¤• सचà¥à¤šà¤¾ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड बनने के लिये इन हालातों से रà¥à¤¬à¤°à¥ होना जरà¥à¤°à¥€ à¤à¥€ है। à¤à¤• सचà¥à¤šà¥‡ घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड को घà¥à¤®à¤•à¥à¤•डी के दौरान विलासिता व सà¥à¤–-सामगà¥à¤°à¥€ की इचà¥à¤›à¤¾à¤“ं से दूर ही रहना चाहिये।
लगà¤à¤— रात 8:30 तक सà¤à¥€ साथी कमरे पर पहà¥à¤à¤š गये और फिर हम खाने के लिये कमरे से बाहर आये लेकिन à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯à¥‹à¤‚ का à¤à¥€ à¤à¥€à¤¡à¤¼ के कारण बà¥à¤°à¤¾ हाल था, सà¤à¥€ à¤à¤°à¥‡ पड़े थे और हर à¤à¤• à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ के बाहर काफ़ी लोग पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤•à¥à¤·à¤¾ कर रहे थे। हम चलते-2 à¤à¤• छोटे से à¤à¥‹à¤œà¤¨à¤¾à¤²à¤¯ में गये और लगà¤à¤— आधा घंटे के बाद हमें खाना नसीब हà¥à¤†à¥¤ दाल à¤à¥€ à¤à¤¸à¥€ कि दाल कम और पानी जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ और रेट उससे à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¥¤ दाल ढूंढने के लिये कटोरी में डà¥à¤¬à¤•ी मारने की नौबत थी।किसी तरह खाना खाकर हम कमरे पर आये और सà¥à¤¬à¤¹ 4:00 का आलरà¥à¤® लगाकर सब सो गये।














नरेश जी….
जय बद्री नाथ जी की….
आपकी यह सीरीज मुझे बहुत अच्छी लगी….और फोटो भी बहुत अच्छे लगे….|
धन्यवाद
धन्यवाद Ritesh जी….
नरेश जी
बहुत सुंदर वर्णन.
रास्ते के फोटो बहुत अच्छे है
चलो आपकी कृपा से हेमकुंड साहेब के दर्शन हो जावेगे.
भूपेंद्र सिंह रघुवंशी
Thanks Bhupendera ji.
Darshan of Hemkund Sahib in next post.
राम राम जी, बहुत अच्छी यात्रा और विवरण, सुन्दर चित्र, धन्यवाद, वन्देमातरम…
धन्यवाद , प्रवीन गुप्ता जी।
nice travelogue.
Thanks Sharma Ji..
बहुत बढ़िया वर्णन भगवान् बद्री विशाल का मजा आगे नरेश जी …
धन्यवाद पंकज जी,
जय बद्री विशाल ॥
बहुत ही उम्दा वर्णन नरेश जी।
हर इंसान की अलग सोच और एक ही सोच के सभी इंसान के साथ आप यात्रा नहीं कर सकते। ये सब कॉमन है और शिकवा शिकायते चलते रहते है लेकिन ये सब वही शुरू होकर वही ख़तम हो जाने चाहिए। आप के साथ हम भी बद्रीनाथ घूम रहे है और इससे ज्यादा क्या कहे। आप अपनी यात्रा जारी रखे .
धन्यवाद
धन्यवाद सौरभ जी,
अगली पोस्ट में हेम्कुन्ड साहिब के दर्शनों के लिये तैयार रहिए ।
नरेश जी…
जय बद्रीनाथ की…
बदरीनाथ धाम और उसके बाद गोविन्द धाम (घघरिया ) यात्रा वर्णन बड़ा ही सुन्दर और मनोहारी लगा….उसके लिए धन्यवाद…|
चलते है आपके साथ अगली पोस्ट में हेमकुंड साहिब के दर्शन पर
धन्यवाद…
धन्यवाद रितेश जी,
यात्रा के सबसे कठिन भाग का वर्णन अगली पोस्ट में जल्दी ही॥
सहगल जी कहानी बहुत अच्छी चल रही है.. चित्र भी लाजवाब है…
धन्यवाद SilentSoul जी,
When the going gets tough, the tough gets going. So far, it seems that with a family and kids, it would get very difficult. Probably this trip is best suited for a small group. I am also looking forward to read Mahesh Semwal’s log where he is taking us with family. Lets see.
To answer your question, I think you did what came naturally to you. There is no first and no second. I am sure Guptajee’s concern was short-lived. I especially liked the photos of the ‘Hemkund Sahib Trek’, that gives a good view of overall situation.
Looking forward to Darshan of Hemkund Sahib.
Thanks Nandan Ji,
You are right. Gupta ji’s concern was short lived. After returning to Ambala, all became normal.
Enjoying the journey Naresh Ji and recalling the good old days of my visits to Badrinath and Valley of flowers…
Thanks Bhatt Sahab for liking and enjoying the post..
Very nice travelogue Naresh.
Look forward to see the Heaven on Earth….”the Valley of Flowers” and Hemkund Sahib
Thanks Amitava..
Darshan of Hemkund Sahib in next Post.
baaki saari baate chhoriye ,ye batae guptaji ke saath fir safar par gae ya nahi? is tour ke baad.ya sahi me suffer kiye?
Thanks Rajesh ji..
Gupta ji is working with me but we never visited again together.
Nice series. Really enjoyed the Yatra with you Photos are so good specially the way to Hemkund sahib.
Thanks Ajay ,…
agli bar tum bhi sath chalna…
nice travelogue. I like your writing style.
Thanks Nishi..