मैनगà¥à¤°à¥‹à¤µ के जंगल दलदली और नमकीन पानी वाले दà¥à¤·à¥à¤•र इलाके में अपने आपको किस तरह पोषित पलà¥à¤²à¤µà¤¿à¤¤ करते हैं ये तथà¥à¤¯ à¤à¥€ बेहद दिलचसà¥à¤ª है। अपना à¤à¥‹à¤œà¤¨ बनाने के लिठमैनगà¥à¤°à¥‹à¤µ को à¤à¥€ फà¥à¤°à¥€ आकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ à¤à¤µà¤®à¥ खनिज लवणों की आवशà¥à¤¯à¤•ता होती है। चूंकि ये पानी में हमेशा डूबी दलदली जमीन में पलते हैं इसलिठइनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¥‚मि से ना तो आकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ मिल पाती है और ना ही खनिज लवण। पर पà¥à¤°à¤•ृति की लीला देखिठजो जड़े अनà¥à¤¯ पौधों में जमीन की गहराइयों में à¤à¥‹à¤œà¤¨ बनाने के लिठफैल जाती हैं वही मैनगà¥à¤°à¥‹à¤µ में ऊपर की ओर बरछी के आकार में बढ़ती हैं। इनकी ऊंचाई 30 सेमी से लेकर 3 मीटर तक हो सकती है। जड़ की बाहरी सतह में अनेक छिदà¥à¤° बने होते हैं जो हवा से आकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ लेते हैं और नमकीन जल में घà¥à¤²à¥‡ सोडियम लवणों से मैनगà¥à¤°à¥‹à¤µ को छà¥à¤Ÿà¤•ारा दिलाते हैं। मैनगà¥à¤°à¥‹à¤µ की पतà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की संरचना à¤à¥€ à¤à¤¸à¥€ होती है जो सोडियम लवण रहित जल को जलà¥à¤¦ ही वाषà¥à¤ªà¥€à¤•ृत नहीं होने देती।
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