
A place above the clouds
This was my first trip to a place which lies beyond the claws of the tourism departments. And believe you me, it has been…
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Read Moreअगली सुबह हमारे कहने के मुताबिक होटल स्टाफ ने हमे पाँच बजे उठा दिया। नहा धो कर हम अपना सामन लेकर टैक्सी स्टैंड स्टैंड पहुँच गए। वहां ऋषिकेश के लिए जीप लगी हुई थिस लेकिन हम ही पहली सवारी थे। जब तक सवारी पूरी न हो जाये मतलब ही नहीं बनता की जीप चले। वहीँ एक टेम्पो ट्रवेलेर भी खड़ा था जो देहरादून जा रहा था। उसमे कई सवारियां बैठी हुई थी और उम्मीद थी की वो पहले चलेगा। ड्राइवर से बात की तो पता चला की पहले भी चलेगा और जितनी देर हमे ऋषिकेश पहुँचने में लगेगी उससे डेड घंटे पहले ही वो हमे देहरादून पंहुचा देगा। फिर सोचना क्या था, हम टेम्पो ट्रवेलेर में सवार हो गए और गाडी फुल होते ही देहरादून के ओर चल पड़े जहाँ से मुझे वापस दिल्ली की गाड़ी पकड़नी थी। केदारताल यात्रा लगभग समाप्त हो चुकी थी और ये मेरी सबसे यादगार यात्राओं में से एक रही…
Read More19 जून 2017 – कपिल ने बताया की भोज खड़क से केदार खड़क के बीच दूरी ज्यादा नहीं है लेकिन रास्ता काफी दुर्गम है। पहले दो घंटे तो रास्ता कल जैसा ही खड़ी चढाई वाला था लेकिन कोई ख़ास परेशानी नहीं हुई। कुछ और आगे बढ़ने पर हम एक ऐसी जगह पर पहुंचे जहाँ पर कोई रास्ता ही नहीं था। भूस्खलन से रास्ता गायब हो गया था। अब हमे एकदम नीच केदार गंगा तक जाना था जहाँ से रास्ता ढूंढ़ने की कोशिश करनी थी। नीचे पहुँच कर समझ में आया की पानी में उतर कर ही आगे बड़ा जा सकता है। एक तरफ केदार गंगा का हड्डियों को जमा देने वाला पानी था और दूसरी तरफ ऊपर पहाड़ी से पत्थर गिर रहे थे।
Read Moreअगली सुबह यानि 18 जून 2017 को नींद तो छै बजे ही खुल गयी थी लेकिन ठण्ड के कारण रजाई से बहार निकलते निकलते सात बज गए। तब तक कपिल भी हमारे कमरे में आ गया और फटा फट सामान बांधने में हमारी मदद करने लगा। ठीक आठ बजे हम फॉरेस्ट ऑफिस पहुंचे और परमिट की एंट्री करवाई तथा कैंपिंग चार्जेज़ और गार्बेज चार्जेज़ जमा करवा के वापस अपने कमरे पे सामन उठाने पहुँच गए। ट्रेक शुरू करने से पहले फॉरेस्ट डिपार्टमेंट वाले गार्बेज चार्जेज लेते हैं जो की ट्रेक के दौरान आपके द्वारा फैलाये गए कूड़े कटकर के लिए होते हैं। ये चार्जेज रिफंडेबल होते हैं अगर आप ट्रेक से वापस आने के बाद अपना सारा कूड़ा वापस लेके आये हों तो। सारी तैयारियां पूरी होने के बाद हम अपने सफर पर निकल पड़े जो की सूर्य कुंड को पार करके शुरू से ही खड़ी चढाई से शुरू होता है।
Read Moreजिस नंबर पर आप संपर्क करना कहते हैं वो अभी स्विच ऑफ है या नेटवर्क छेत्र से बहार है… ऋषिकेश में शुबह के 4:30 बज रहे थे और मेरी इस यात्रा के साथी प्रशांत ने मुझे यहीं मिलना था लेकिन उसका फ़ोन स्विच ऑफ आ रहा था। मै दिल्ली से 16 जून की रात को चला था और प्रशांत देहरादून से आकर रात बिताने के लिए ऋषिकेश में किसी होटल में ठहरा हुआ था और सुबह हम दोनों को मिलकर उत्तरकाशी की ओर रवाना होना था। प्रशांत ने मुझे रात को ही बता दिया था की वो किस होटल में ठहरा है लेकिन मुझे होटल का नाम याद नहीं था, बस इतना याद था की होटल त्रिवेणी घाट के पास है। अब समझ में नहीं आ रहा था की क्या किया जाए। सुबह सुबह सड़क पर एकदम सन्नाटा था और मै इधर उधर टहल कर टाइम पास करने लगा की तक़रीबन बीस मिनट बाद मेरे फ़ोन की घंटी बजी, देखा की प्रशांत का ही फ़ोन है। मै प्रशांत के बताये हुए रस्ते पे चल पड़ा और कुछ ही मिनटों में उसके होटल के कमरे में पहुँच गया।
Read Moreहम २:३० दोपहर को दयारा बुघयाल पहुच गए. हर तरफ सफेद रंग बिखरा था. बहुत ज्यादा बर्फवारी हो रही थी. रूफटोप के नीचे हम आराम कर रहे थे एंव आगे की रणनीति सोच ही रहे थे कि हमने देखा कि एक विदेशी पर्यटक , ३0 की उम्र , अकेले, हमारे थोडे बाद ही दयारा पहुचा है. स्पैन के उस बन्दे से १५-२०मिनट तक भिन्न भिन्न मुददो पर बात हुई जैसे मोदी,वीजां ,स्पैन का मौसम,लेह – लदाख आदि। घूमने का असली मकसद ही नई- नई जगह देखना और लोगौ को जानना है.
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