लेह – पैंगोंग – लेह…………… भाग6

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धुप ना होने की वजह से यहाँ पर ज़बरदस्त ठंड लग रही थी। मुझे छोड़ कर सब नीचे उतर गए। मेरी तो पहले से ही लगी पड़ी थी और गरम सीट को छोड़ कर बाहर ठंड मे जाने का मेरा कोई विचार नहीं था। तभी हरी ने कहा की चाय बनवा ली है और यहीं पर कुछ खा भी लेते हैं। मैंने मन मे सोचा यहाँ तो पत्थर ही मिलेंगे खाने को। मरा हुआ मन लेकर मैं हरी के साथ चल दिया। अरे वाह क्या बात है यहाँ तो मुफ्त का एक डिसपेंसरी थी, “चांग ला” बाबा का मंदिर और एक रेस्त्रौंत था। गाड़ी से बाहर निकल कर अच्छा लगा और हरी के साथ मैं रेस्त्रौंत मे घुस गया। यहाँ एक बोर्ड पर लिखा था “1st Highest Cafeteria in the world”.

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लेह – खर्दुंग ला – हुन्डर (नुब्रा वैली) – लेह – भाग5

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अब हरी का दिल तेजी से धड़कने लग गया था। इस बार मैं मज़ाक नहीं कर रहा, सही मे हरी घबरा गया था। वो इंग्लिश मे बोला “टेल हिम टु ड्राइव केयरफुली” Or “आस्क हिम टु स्टॉप एंड यू ड्राइव”। उसकी ये बात सुनकर हम हंसने लगे। इस बार अंकल की छटी इंद्री जाग गई और बोले कि “हरी तू बहुत घबराता है, मनोज भी तो पहली बार आया है वो तो चुप-चाप बैठा है”। अब अंकल को क्या पता की मनोज तो इतना घबराया हुआ था कि मुह से एक शब्द भी नहीं बोल पा रहा था। लेकिन अंकल अपनी चाल मे ही गाड़ी चलाते रहे और हरी भी “खर्दुंग ला” तक इंग्लिश मे कुछ ना कुछ बडबडाता ही रहा। सही बोलूँ तो राहुल और मेरा अच्छा एन्जोयमेंट होता रहा। हम “खर्दुंग ला” टॉप पहुँच गए। हरी ने जल्दी गाड़ी से नीचे उतरने की शिफारिश की और चैन की साँस भरी। अब जाकर बेचारा मुस्कराया था।

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भाग4: पैंग – ताग्लंगला ला – उप्शी – कारू– लेह……………12-सितम्बर

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आज हम पैंग से 185km का सफ़र तेय करके लेह पहुँच गए। लेह पहुँच कर बिना समय ख़राब किए हमारा सबसे पहला काम था “DC” ऑफिस जाना। वहाँ जाकर हमे “नुब्रा वेली” (nubra valley) और “पेंगोंग सो” (pangong so) जाने के लिए “Inner-Line Permit” लेना था। “DC” ऑफिस मे ज्यादा भीड़ तो नहीं थी पर ऑफिस बंद ना हो जाए इस बात का भय सता रहा था। ऊपर से सरकारी ऑफिसर कब अपनी सीट छोड़ कर चला जाए क्या भरोसा। सीमित छुटियाँ होने की वजह से हम एक दिन की देरी भी नहीं झेल सकते थे। हरी और मनोज ने तो दिल्ली से हेदराबाद का हवाई टिकेट भी करा दिया था। अगर देरी होती तो इन दोनों को मोटी चपत लगने वाली थी। परमिट का काम राहुल को सौंप दिया गया। मैं, हरी और मनोज “DC” ऑफिस के बाहर फ़ोटो लेने लगे।

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लेह लद्दाख – मनाली – केलोंग – दार्चा – बरालाचा ला – लाचुलुंग ला – पैंग – 3

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यहाँ पर बहुत से सरकारी दफ्तर और सेवाएँ है। एक बड़ा बाज़ार और सड़क से दाएं ओर नीचे बस स्टैंड भी है। यहाँ पर रुकने का पूरा इंतजाम है कई रेस्ट हाउस, सरकारी बंगलो और होटल भी है। केलोंग मे गाड़ी का हवा-पानी टिप-टॉप करने के बाद हम बिना रुके “जिस्पा”, “दार्च” होते हुए “zingzingbar” पहुँच गए। एक बात बता दूं की “zingzingbar” मे भी रात को रुकने का इंतजाम है। अभी दोपहर का समय था तो हमने रुकना ठीक नहीं समझा। ये हमारी बहुत बड़ी भूल थी। इसका ज़िक्र आगे चल कर दूंगा। “zingzingbar” से आगे खड़ी चढाई पार करने के बाद हमने “बारालाचा ला दर्रा” दर्रा पार कर लिया था। इस दर्रे की ऊंचाई 5030 मीटर या 16500 फीट है। यहाँ से लगातार उतरने के बाद हम लोग “भरतपुर” होते हुए “सार्चू” पहुँच गए।

“सार्चू” मे हिमाचल प्रदेश की सीमा समाप्त हो जाती है और जम्मू-कश्मीर की लाद्द्खी सीमा शुरू हो जाती है। यहाँ पर भारतीय सेना का बेस कैंप है और एक पुलिस चेक पोस्ट भी है। चेक पोस्ट पर गाड़ी सड़क के किनारे रोक दी गई। हमारा परमिट चेक किया और रजिस्टर मे दर्ज कर लिया गया। “सार्चू” मे सड़क एक दम सीधी है और गाड़ी की रफ़्तार आराम से 100-120km/h तक पहुँच जाती है। यहाँ पर गाड़ियाँ फर्राटे से दौड़ रहीं थी। तभी क्या देखा एक फिरंगी महिला साइकिल(आजकल तो bike बोलते हैं) पर सवार होते हुए चली आ रही थी। मुझे सड़क पर लेटा हुआ देख वो साइकिल से नीचे उतर गई और पैदल चलने लगी।

हम सब उसको देख कर हैरान हो गए। शायद हरी ने उससे पुछा की अकेले जा रही हो तो risk है। उसने बताया की उसके साथ के और लोग भी पीछे आ रहे हैं। वो और उसके साथी मनाली से लेह साइकिल से ही जाने वाले थे। और उसको आज “सार्चू” मे ही रुकना था। इतने दुर्गम, पथरीले, टूटे-फूटे, चढाई-उतराई, अनिश्चिताओ से भरपूर इलाके मे जहाँ 2.6L की Xylo का भी दम निकल जाता था ये फिरंगी इसको साइकिल से ही पार करने वाले थे। इनके जज़्बे और हिम्मत की तारीफ़ की गई और इनको सलाम बोल कर भोजन की तलाश मे चल दिए।

ठीक से याद नहीं है पर दोपहर के करीब 3 बज रहे थे और भूख लग चुकी थी। यह जगह एक बहुत बड़े समतल मैदान जैसी है। यहाँ पर भी रुकने के लिए बहुत सारे टेंट लगे हुए थे। ये सब देख कर समझ आ गया था की यहाँ के लोग काफी मेहनती है। साल के 6 महीने ही मनाली-लेह हाईवे खुलता है। इन्ही 6 महीनों मे इनकी कमाई होती है और बाकि के 6 महीने तो बर्फ पड़ी रहती है। यहाँ पर लगे एक टेंट खाने का इंतजाम था। हमसे पहले और लोग भी थे तो हमको 10-15 मिनट बाद का टाइम दे दिया गया। इस टाइम का हमने पूरा उपयोग करके फोटो session कर डाला। “सार्चू” मे ली गई कुछ फोटो। जानकारी के लिए बता दूँ यहाँ पर ली गई सारी फोटो मैंने नहीं बल्कि मनोज, हरी और राहुल ने खीचीं हैं।

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