सà¥à¤¬à¤¹ 3:30 बजे अलारà¥à¤® बजा। मैंने शà¥à¤¶à¥€à¤² को उठाया और उसे राजू के बेटे तनॠके साथ दोबारा बस की टिकट लेने यातà¥à¤°à¥€ निवास à¤à¥‡à¤œ दिया उनके जाते ही मैं नहाने के लिठचला गया। थोड़ी देर बाद ही सà¥à¤¶à¥€à¤² का फ़ोन आया और उसने बताया की बसें नहीं आई और टिकट नहीं मिल रही है। मैंने उसे कहा की तà¥à¤® बाहर से कोई पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ गाड़ी पता करो और 6 सीट बà¥à¤• करवा दो मैं à¤à¥€ थोड़ी देर में वहीठआ रहा हूà¤à¥¤ थोड़ी देर बाद सà¥à¤¶à¥€à¤² का फिर फ़ोन आया और उसने बताया की उसने à¤à¤• मिनी बस में सीटें बà¥à¤• करवा दी हैं और वो वापिस कमरे पर आ रहा है । सरकारी बस का किराया 510 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ था जबकि यहाठ650 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡à¥¤ हमें 6:30 पर आने को कहा गया। ये सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ गाड़ियां ,सरकारी काफिला निकलने के बाद ही चलती हैं और यातà¥à¤°à¥€ निवास से सरकारी काफिला 5 बजे निकल जाता है। सरकारी काफ़िला सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ बालों की निगरानी में चलता है जबकि पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ वाहन अपनी मरà¥à¤œà¥€ से चलते हैं।
5:30 तक हम सब लोग तैयार हो चà¥à¤•े थे और कमरा छोड़कर सब लोग 6 बजे मà¥à¤–à¥à¤¯ चौराहे पर आ गठजहाठसे सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ छोटी बसें और जीपें चलती हैं। हम लोग उस टूर ऑपरेटर के पास गठजहाठसे सीटें बà¥à¤• करवाई थी। उसने सामने कड़ी à¤à¤• मिनी बस की तरफ इशारा करके कहा उसमे बैठजाओ। हमने पà¥à¤›à¤¾ यह बताओ बस चलेगी कब ? उसने कहा जब à¤à¤° जाà¤à¤—ी तो चल पड़ेगी। अà¤à¥€ दस सीटें à¤à¤°à¥€ हैं 12 ख़ाली हैं। हमें लगा की इसका जाना तो मà¥à¤¶à¥à¤•िल है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि बालटाल की सवारी बहà¥à¤¤ कम थी अधिकतर लोग पहलगाम जाने वाले थे। हमने वहां टाइम खराब करने की बजाय दूसरे टूर ऑपरेटरों से पता करना शà¥à¤°à¥‚ कर दिया। मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› आशंका हो रही थी की कहीं हमारा आज का दिन बेकार न चला जाय । à¤à¤• बोलेरो वाले से बात की उसने à¤à¤• हजार रूपठà¤à¤• सवारी के मांगे और साथ में यह शरà¥à¤¤ कि पूरी à¤à¤°à¥‡à¤—ी तो जायेंगे। उससे मोलà¤à¤¾à¤µ किया 800 रूपठà¤à¤• सवारी का तय हो गया। बाकि तीन सवारी उसने à¤à¤• हजार रूपठमें ही बिठाई। थोड़ा तनाव दूर हà¥à¤†à¥¤ ठीक 7:30 बजे हमारी गाड़ी जमà¥à¤®à¥‚ से चल दी।यहाठ, à¤à¤—वती नगर से बालटाल व पहलगाम के लिठपà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¥‡à¤Ÿ गाड़ियां 8-9 बजे तक मिलती रहती हैं। यदि हम कल सà¥à¤¬à¤¹ की टà¥à¤°à¥ˆà¤¨ से आने की बजाय रात की टà¥à¤°à¥ˆà¤¨ से à¤à¥€ आते तो सà¥à¤¬à¤¹ 5-6 बजे तक यहाठआराम से पहà¥à¤à¤š जाते और हमारा à¤à¤• दिन बच सकता था। चलो à¤à¤• चीज नयी पता चली ,अगली बार रात की टà¥à¤°à¥ˆà¤¨ से ही आà¤à¤‚गे।
जमà¥à¤®à¥‚ से उधमपà¥à¤° के बीच सड़क को चार लेन बनाया जा रहा है। 65 किलोमीटर में से लगà¤à¤— 50 किलोमीटर पर काम पूरा हो चूका है। शानदार मारà¥à¤— बना है इस पर चलते हà¥à¤ मालूम ही नहीं होता की पहाड़ी रासà¥à¤¤à¤¾ है। गाड़ियां आराम से 80 की सà¥à¤ªà¥€à¤¡ से चलती हैं। लेकिन बीच -२ में अà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥€ है जिस कारण लगातार सà¥à¤ªà¥€à¤¡ नहीं बन पाती। उधमपà¥à¤° हम 9:30 से पहले ही पहà¥à¤‚च चà¥à¤•े थे। वहां à¤à¤• जगह रà¥à¤• कर गाड़ी की टंकी फà¥à¤² करवाई गयी फिर कूद ,पटनीटॉप होते हà¥à¤ नॉनसà¥à¤Ÿà¥‰à¤ª बटोट पहà¥à¤‚चे। बटोट के पास हमने सरकारी काफिले को कà¥à¤°à¥‰à¤¸ कर लिया। हमारी गाड़ी में हमारे अलावा दो नवयà¥à¤µà¤• जमà¥à¤®à¥‚ के पास के थे और पहली बार अमरनाथ जा रहे थे, तीसरे यातà¥à¤°à¥€ जो थोड़े बà¥à¥›à¤°à¥à¤— थे ,असम से आये थे।
जमà¥à¤®à¥‚ से शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र के बीच पटनीटॉप सबसे ऊंचाई पर है। उधमपà¥à¤° से चà¥à¤¾à¤ˆ शà¥à¤°à¥‚ होती है और पटनीटॉप तक खूब चà¥à¤¾à¤ˆ है। पटनीटॉप पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ से पहले ही ठंडी हवाओं से यह अहसास हो जाता है कि हम टॉप पर पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ वाले हैं। कूद के बाद से ही à¤à¤¸à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ हो जाता है। सड़क के दोनों तरफ लगे लमà¥à¤¬à¥‡ -लमà¥à¤¬à¥‡ देवदार के पेड़ों से पà¥à¤°à¤¾à¤•ृतिक सà¥à¤‚दरता में चार चाà¤à¤¦ लग जाते हैं। बादल आपसे बस à¤à¤• हाथ दूर ही होते हैं। पटनीटॉप पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के à¤à¤• दम बाद उतराई शà¥à¤°à¥‚ हो जाती है जो बटोट तक चलती है।
जमà¥à¤®à¥‚ से आगे पà¥à¤°à¥‡ रासà¥à¤¤à¥‡ में जगह-जगह अमरनाथ यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठलंगर लगे हà¥à¤ हैं। खाने-पीने की कोई समसà¥à¤¯à¤¾ नहीं। कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि हम लोग नाशà¥à¤¤à¤¾ करके नहीं आये थे और अब तक हमें काफी à¤à¥‚ख लग गयी थी। हमने गाड़ी वाले से कहा की किसी लंगर पर गाड़ी रोक दो, नाशà¥à¤¤à¤¾ करना है। डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने बटोट से थोड़ा आगे à¤à¤• लंगर पर गाड़ी रोक दी। लंगर राजपà¥à¤°à¤¾ के पास का था। लंगर में डोसा, पानी पूरी, आइस कà¥à¤°à¥€à¤®, कà¥à¤²à¥à¤«à¥€, कोलà¥à¤¡ डà¥à¤°à¤¿à¤‚क, जलजीरा, दाल चावल, रोटी सबà¥à¥›à¥€, पॉपकॉरà¥à¤¨, हलवा, खीर और गरमा गरम चाय सब कà¥à¤› मिल रहा था। जितना चाहे पà¥à¤¯à¤¾à¤° से खाओ पर à¤à¥‚ठा बचाना सखà¥à¤¤ मना है। खाओ मन à¤à¤°, न छोडो कण à¤à¤°à¥¤ वहां डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° सहित सà¤à¥€ लोगों ने नाशà¥à¤¤à¤¾ किया, गरà¥à¤®à¤¾à¤—रà¥à¤® चाय पी और पौने घंटे बाद ठीक 12 बजे दोबारा से यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥‚ कर दी। इसी à¤à¤‚डारे में हमने नाशà¥à¤¤à¤¾ किया थे। क़à¥à¤› तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚:
बटोट के बाद रामबन पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ से पहले ही चिनाब नदी सड़क के साथ साथ , दायीं तरफ, काफी गहरी घाटी बना कर चलती है। रामबन पहà¥à¤à¤š कर चिनाब नदी को à¤à¤• पà¥à¤² से कà¥à¤°à¥‰à¤¸ करने के बाद सड़क और नदी अपनी साइड बदल लेते हैं यानि अब चिनाब नदी सड़क के बायीं तरफ बहने लगती है। चिनाब नदी काफी गहरी और तेज बहने वाली नदी है।

बनिहाल रेलवे – दायीं तरफ नयी बनी 13 किलोमीटर लमà¥à¤¬à¥€ सà¥à¤°à¤‚ग का मà¥à¤– दिख रहा है
बटोट से आगे रामबन ,रामसà¥, बनिहाल होते हà¥à¤ ठीक तीन बजे जवाहर सà¥à¤°à¤‚ग के पास पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤ यहाठ8-10 लंगर à¤à¤• साथ हैं और आने जाने वाली अधिकतर सà¤à¥€ गाड़ियां यहाठखाने-पीने के लिठरà¥à¤•ती है। यहाठकाफी à¤à¥€à¥œ रहती है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यहाठसे आगे रासà¥à¤¤à¥‡ में लंगर नहीं है। सिरà¥à¤« मणिगाम, बालटाल या पहलगाम यातà¥à¤°à¥€ कैंप में ही हैं। यहाठरà¥à¤•ते ही हमसे डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने कहा की आप लोग खाओ- पियो मैं थोड़ा सोऊंगा। उसके सोने के कारण यहाठà¤à¤• घंटा लग गया। ठीक चार बजे यहाठसे चले।

जवाहर सà¥à¤°à¤‚ग के पास लगे लंगरों का नजारा

जवाहर सà¥à¤°à¤‚ग के पास लगे लंगरों का नजारा

जवाहर सà¥à¤°à¤‚ग के आस पास के पहाड़ों का नजारा

जवाहर सà¥à¤°à¤‚ग के आस पास के पहाड़ों का नजारा
यहाठसे शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र 100 किलोमीटर दूर है। मतलब कि किसी à¤à¥€ हालत में 6 बजे से पहले शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र नहीं पहà¥à¤à¤š सकते थे। शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र से 30 किलोमीटर आगे मणिगाम यातà¥à¤°à¥€ कैंप है। जहाठसे किसी à¤à¥€ गाड़ी को 6 बजे के बाद बालटाल की तरफ नहीं जाने दिया जाता। सà¤à¥€ को वहीठरà¥à¤•ना पड़ता है। वहां ठहरने के लिठटेंट किराये पर मिलते हैं और खाने पिने की लिठ4-5 लंगर हैं । सही लंगरों में खाना सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ ,साफ सà¥à¤§à¤°à¤¾ वॠविà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•ार का मिलता है। पंजाबी ,गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤à¥€ वॠदकà¥à¤·à¤¿à¤£ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ वà¥à¤¯à¤‚जन मिल जाते हैं।
“यहाठमणिगाम कैंप में रोकने का मà¥à¤–à¥à¤¯ कारण यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यहाठसे लेट चलकर अà¤à¤§à¥‡à¤°à¥‡ होने से पहले किसी à¤à¥€ हालत में बालटाल पहà¥à¤‚चना मà¥à¤¶à¥à¤•िल है और रात के समय पहाड़ी पर डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤¿à¤‚ग काफी मà¥à¤¶à¥à¤•िल है , दूसरा कारण रात के समय सड़क पर सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ बलों की गशà¥à¤¤ बंद हो जाती है और यह रासà¥à¤¤à¤¾ काफी संवेदनशील इलाकों से होकर गà¥à¤œà¤°à¤¤à¤¾ है जैसे गांदरबल ,कंगन, गà¥à¤‚ड आदि और जरा सा à¤à¥€ तनाव हो तो इन इलाकों में यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की गाड़ियों पर पथराव होना आम बात है। पिछले साल वापसी में हमारी बस पर इनà¥à¤¹à¥€ इलाकों में तीन पतà¥à¤¥à¤° फेंके गठथे लेकिन बचाव हो गया था इसीलिठयातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को जोखिम में डालने की बजाय यहाठमणिगाम कैंप में ठहरा दिया जाता है।â€

जवाहर सà¥à¤°à¤‚ग पार करते ही घाटी का पहला नजारा
हम शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र 6 बजे पहà¥à¤‚चे और हमें मनीगांव पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ -पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ 7:30 बज गà¤à¥¤ पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वालों ने इशारा कर गाड़ी कैंप में ले जाने को कहा और गेट के पास पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ ही डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने गाड़ी फिर सीधी कर ली। पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वालों ने गाड़ी रोक ली और डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° को गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ करने लगे। डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° बोला, साहेब, इनकी सोनमरà¥à¤— के होटल में बà¥à¤•िंग है यह रात वहीठरà¥à¤•ेंगे। पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वालों ने हमसे कनà¥à¤«à¤°à¥à¤® किया, हमने à¤à¥€ हाठकह दी और उसने हमें जाने दिया। यहाठसे बालटाल 70 किलोमीटर की दà¥à¤°à¥€ पर है और रासà¥à¤¤à¤¾ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾à¤¤à¤° पहाड़ी है। यानि की कम से कम अà¥à¤¾à¤ˆ घंटे लगने थे। जहाठà¤à¤• तरफ इस समय जाना रिसà¥à¤•ी था वहीठदूसरी तरफ सà¥à¤¬à¤¹ समय की बचत à¤à¥€ थी। सà¥à¤¬à¤¹ अधिक वाहन होने से बहà¥à¤¤ जाम लग जाता है और इस समय सड़क पर कोई गाड़ी नहीं थी सिरà¥à¤« दो चार लोकल गाड़ियों को छोड़ कर।
मणिगाम से आगे निकलते ही डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने गाड़ी à¤à¤• चाय की दà¥à¤•ान पर रोक ली। सबने वहां चाय पी और गरà¥à¤®à¤¾à¤—रà¥à¤® पकोड़े खाà¤à¥¤ जमà¥à¤®à¥‚ पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ के बाद पहली बार खाने-पिने पर कà¥à¤› जेब खरà¥à¤š किया। चाय पकोड़े बà¥à¤¿à¤¯à¤¾ थे। फिर चले और 10 बजे सोनमरà¥à¤— पहà¥à¤à¤š गà¤, यहाठà¤à¥€ à¤à¤• बैरियर है। पà¥à¤²à¤¿à¤¸ वाले ने फिर गाड़ी रोक ली और कहा इस समय बालटाल जा रहे हो , गाड़ी यहीं लगाओ डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने उसकी कà¥à¤› जेब गरम की और उसने हमें आगे जाने दिया। यहाठसे बालटाल 14 किलोमीटर दूर है। अà¤à¥€ तक हमारी सारी यातà¥à¤°à¤¾ जमà¥à¤®à¥‚ -शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र- लेह मारà¥à¤— पर ही थी।
आगे à¤à¤• जगह मà¥à¤–à¥à¤¯ मारà¥à¤— से दायीं तरफ बालटाल के लिठरासà¥à¤¤à¤¾ मà¥à¥œà¤¤à¤¾ है वहां फौजियों ने गाड़ी रोक ली , बोले कहाठजा रहे हो, हमने बताया बालटाल। बोले- तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡ मणिगà¥à¤°à¤¾à¤® से इतनी लेट आने कैसे दिया। मैंने जबाब दिया सर वहां से तो पांच बजे ही निकल गठथे लेकिन रासà¥à¤¤à¥‡ में गाड़ी ख़राब होने से बहà¥à¤¤ समय ख़राब हो गया इसीलिठलेट हो गठहैं। वो बोले चलो ठीक है अपने-२ पंजीकरण दिखाओ। हमने बैग से निकालकर दिखा दिठलेकिन असम वाले बाबू को पंजीकरण मिल नहीं रहा था। कहीं संà¤à¤¾à¤² कर रख दिया था। फौजी बोला कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ डà¥à¤°à¤¾à¤®à¤¾ करते हो बोल दो कि नहीं है। असम वाले बाबू बोले – असम से आ रहा हूठकà¥à¤¯à¤¾ बिना पंजीकरण के आऊंगा। थोड़ी देर बाद उसका फॉरà¥à¤® मिल गया और हम फिर से अपनी मंजिल की तरफ चल पड़े। बालटाल पहà¥à¤‚चते ही फिर से चेक पोसà¥à¤Ÿ पर गाड़ी को रà¥à¤•वा लिया और फिर डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° की à¤à¤¾à¤¡ पड़ी कà¥à¤¯à¥‹à¤ अपनी और यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की जान जोखिम में डालते हो , सारी रात गाड़ी चलाने का शौक है. यहाठà¤à¥€ गाड़ी ख़राब होने का बहाना लगाया और आखिरकार रात 10:30 बजे हम बालटाल पहà¥à¤à¤š गà¤à¥¤ वहां पहà¥à¤à¤š कर हमारे सारे सामान की तलाशी ली गयी और हम कैंप में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गà¤à¥¤ बहà¥à¤¤ से टेंट वाले बà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ लगे।
यहाठबाकि तीन लोग तो किसी टेंट में चले गठलेकिन हम लोग थोड़ा आगे आ गà¤à¥¤ हमने सलाह की कि अब कया करें ? टेंट में ठहरें या अपने लंगर की तरफ चलें। यहाठमैं सà¤à¥€ पाठकों को बताना चाहूà¤à¤—ा की हम लोग बरà¥à¤«à¤¾à¤¨à¥€ सेवा मंडल ,कैथल वालों के पिछले 15 सालों से मेंबर है। उनका à¤à¤‚डारा दोमेल में लगता है जो बालटाल बस सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड से दो किलोमीटर आगे है। हम इसी दà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ में थे कि अपने à¤à¤‚डारे पर चलें या टेंट में ठहरें। वैसे में हमेशा à¤à¤‚डारे पर रà¥à¤•ना पसंद करता हूà¤à¥¤ इसके कà¥à¤› कारण हैं à¤à¤• तो जगह साफ सà¥à¤¥à¤°à¥€ होती है , बिसà¥à¤¤à¤° साफ मिलते हैं , शौचालय व सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¤˜à¤° साथ ही होते हैं , गरम पानी की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ उपलबà¥à¤§ रहती है और अपनेपन का à¤à¤¹à¤¸à¤¾à¤¸ à¤à¥€ होता है। जबकि टेंट में à¤à¤¸à¥€ कोई सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ नहीं होती। बिसà¥à¤¤à¤° काफी गंदे होते हैं।
बालटाल से दोमेल तक बहà¥à¤¤ à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤°à¥‡ हैं। हमने फ़ैसला किया की दोमेल चलते हैं ,रासà¥à¤¤à¥‡ में अनà¥à¤¯ à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤°à¥‡ में पता कर लेंगे यदि जगह मिल गयी तो ठीक है नहीं तो चलते -२ अपने à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤°à¥‡ पर पहà¥à¤à¤š जायेंगे। लेकिन वहां जाने की नौबत नहीं आई , हमने जिस पहले à¤à¤£à¥à¤¡à¤¾à¤°à¥‡ में पता किया उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पà¥à¤¯à¤¾à¤° से बà¥à¤²à¤¾à¤•र कहा आओ पहले खाना खाओ अà¤à¥€ बिसà¥à¤¤à¤° लगा देते हैं ,फिर आराम से सो जाना। à¤à¤‚डारा पंजाब के मलोट शहर का था। हमने खाना खाया और बिसà¥à¤¤à¤° पर दो-दो कमà¥à¤¬à¤² लेकर सो गà¤à¥¤
शà¥à¤°à¥€à¤¨à¤—र और बालटाल के बीच के रासà¥à¤¤à¥‡ की कà¥à¤› तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚:










नरेश जी,
आपका लेख अत्यंत रोमांचक एवं उत्साहवर्धक है. यात्रा-वर्णन में प्रयुक्त सभी चित्र अपनी महत्ता प्रदर्शित करते है. अपने लेख के माध्यम से पाठकों को श्री अमरनाथजी की यात्रा में होने वाले अनुभवों से परिचित करने के लिए धन्यवाद.
सुचारू रूप से आगे भी इसी प्रकार आपके अनुभवों को जानने का अवसर मिलेगा,
इसी कामना के साथ..
जय बाबा बर्फानी की.
Thanks Munesh Mishra Jee for continuously encouraging with your words.
जय बाबा बर्फानी की……..
For a seasoned traveler like you, I guess it was not that hard but for someone who is new to this whole process, it would have meant waiting for more time at Jammu and then spending another night at the Manigram. May be one should start by 6 from Jammu so that one can cross Srinagar in time.
Good to read that most of the Udhampur highway is done. When is the train connection coming ?
Nandan Jee, as long as we were using our own vehicle or hired one in previous years , we never stop at Manigram and cross it before 5 PM but the SRTC buses ply too slow to cross Manigram before cut off time.
Rail link between Banihal & Barmula via Anantnag and Srinagar is already working. Missing link between Katra to Banihal is expected to start in 2016. Then it will be very easy to reach Srinagar with comfort.
Another great post from your side to all the ghumakkars. Its shocking to know that the defense staff has easily accepted Bribe and violated the rules by allowing all of you to travel late night on such a risky hilly area, that’s why we are not coming out from the dark well of corruption…..
Thanks for sharing.
Jai Shiv Shambhu…..
Arun
Thanks Arun Ji,
The person who took bribe from driver was from JK police not from Defence . It is regular practice in all state . He was not supposed to stop us before Baltal , he did it intentionally for some earning.
Dear Naresh,
Another good one, surely is going to help the future pilgrims, also very nice pics. Yes, I have seen these open practice by J&K Police, perhaps the worst police in India, both in terms of harassing and taking bribe.
Will certainly read your next log in this series too.
Thanks.
Thanks Anupam ji for sparing some time to read the post and motivating me by your encouraging words.
great going… and hats off to those Langar people, who spend their hard money to comfort others.
Thnaks S.S jee. I am obliged .
Sehgal Sahab, got your email about the new post and I read it as first thing in the morning.
You’re such an inspirational person, hats off to your devotion and dedication.
You mentioned about your association with one of bhandara group, so a quick question (kind of extension of SS sir’s comment) , who are these people serving at these bhandaras? Are they professionals (cooks etc) or normal people doing ‘sewa’ out of devotion?
Thanks a lot for sharing such an informative series with us once again.
Now looking forward to next post.
Thanks Mr. Stone for your quick response and encouraging comment.
In every langar , there is a mixture of both as you asked . Cooks are always professionals and they along with other helpers are hired on payment for Yatra period. But management people and few others do it this sewa just for devotion.
Our contribution is just to collect donation from near and dear and send it to management but I have a wish to do sewa for 8-10 days in our langar. Last year I did it for two days but for another reason as it was strike in J&K and we were not able to move out from Baltal
Jai bhole ki
Naresh ji,
Very detailed narration and interesting too. Pictures are really great. I really appreciate the people who organize bhandaras for the service of yatries, I recall a great saying which perfectly fits here – Helping hands are a thousand times better than praying lips.
Thanks for sharing with us such a beautiful post.
Getting appreciation from a Senior writer and adherent Shiv bhakat is priceless.
Thanks Mukesh jee for your nice words.
Naresh jee once again good post. Pictures are very beautiful. Waiting for the next post. Thanks for sharing.
Thanks Sharma Jee .
superb……..
Thanks Mr. H kubavat..
बहुत ही सुंदर व विस्तृत वर्णन, लाजवाब चित्र, आनंद आ गया, बालटाल मार्ग से की गयी यात्राओं की यादें ताजां हो आंई. ये मार्गदर्शन भविष्य में बहुत से पाठकों के काम आयेगा.
धन्यवाद.
त्रिदेव जी,
टिप्पणी के लिए आपका बहुत -बहुत धन्यवाद।