यमुनोत्री यात्रा- हनुमानचट्टी से यमुनोत्री

20 अप्रैल, 2010। सुबह के साढे नौ बजे मैं उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री मार्ग पर स्थित हनुमानचट्टी गांव में था। यहां से आठ किलोमीटर आगे जानकीचट्टी है और चौदह किलोमीटर आगे यमुनोत्री। जानकीचट्टी तक मोटर मार्ग है और जीपें, बसें भी चलती हैं। बडकोट से जानकीचट्टी की पहली बस नौ बजे चलती है और वो दो घण्टे बाद ग्यारह बजे हनुमानचट्टी पहुंचती है। अभी साढे नौ ही बजे थे। मुझे पता चला कि जानकीचट्टी जाने के लिये केवल वही बस उपलब्ध है। अब मेरे सामने दो विकल्प थे – या तो डेढ घण्टे तक हनुमानचट्टी में ही बैठा रहूं या पैदल निकल पडूं। आखिर आठ किलोमीटर की ही तो बात है। दो घण्टे में नाप दूंगा। और एक कप चाय पीकर, एक कटोरा मैगी खाकर मैं हनुमानचट्टी से जानकीचट्टी तक पैदल ही निकल पडा।

कहते हैं कि यहां पर एक समय हनुमान जी ने बैठकर अपने शरीर को बढाया था। उनकी पूंछ भी इतनी बढ गयी थी कि एक पर्वत की चोटी को छूने लगी थी। उस पर्वत को आज बन्दरपूंछ पर्वत कहते हैं। बन्दरपूंछ की ही छत्रछाया में यमुनोत्री है। हनुमानचट्टी में हनुमान जी का एक छोटा सा मन्दिर है। यहां एक नदी भी आकर यमुना में मिलती है। इस नदी का नाम हनुमानगंगा है। यहां से हिमालयी बर्फीली चोटियां भी दिखाई देती हैं। हनुमानचट्टी से एक रास्ता डोडीताल भी जाता है। डोडीताल जाने के लिये हनुमानचट्टी से हनुमानगंगा के साथ साथ ऊपर चढना पडता है और आखिर में एक दर्रा लांघकर उसके पार नीचे उतरकर डोडीताल पहुंचा जा सकता है।

हनुमानचट्टी से आगे का सारा मार्ग बेपनाह प्राकृतिक खूबसूरती से भरा है। पर्वत, नदी, झरने, पेड-पौधे; सब अतुलनीय हैं। यहां यमुना बहुत गहरी घाटी बनाकर बहती है। यमुना के उस तरफ वाले पर्वत की चोटी को देखने के लिये सिर गर्दन से मिलाना पडता है, इसी तरह नीचे बहती यमुना को देखने के लिये ठोडी छाती को छूने लगती है। दो-एक किलोमीटर चलने पर ही मुझे चक्कर आने लगे। आज तक कभी भी मुझे चक्कर नहीं आये थे। इसका कारण गहरी यमुना घाटी और ऊंचे शिखर थे।

चार-पांच किलोमीटर के बाद फूलचट्टी गांव आता है। यह एक बेहद छोटा सा गांव है। गांव एक थोडी सी समतल जमीन पर बसा हुआ है। यहां तक आते आते मुझे भी थकान होने लगी थी। फूलचट्टी से दो किलोमीटर आगे यमुना पर एक पुल है। पुल से एक किलोमीटर आगे जानकीचट्टी दिखने लगा है। इसी पुल के पास बडकोट से आने वाली बस ने मुझे पार किया। बेशक बस मुझसे पहले चली गयी हो, लेकिन इसका मुझे कोई अफसोस नहीं है। साढे बारह बजे के आसपास मैं जानकीचट्टी में था। तय किया कि यहां से यमुनोत्री के लिये दो बजे के बाद ही चलूंगा। लेकिन कहीं भी बैठने के लिये जगह नहीं मिली। हालांकि यह काफी बडा गांव है। बहुत सी दुकानें भी हैं, होटल भी हैं लेकिन सभी बन्द थे। क्योंकि अभी यात्रा सीजन शुरू नहीं हुआ था। सोलह मई (2010) के बाद यहां रौनक हो जायेगी। अभी तो हर तरफ निर्माण और मरम्मत कार्य चल रहा है।

जानकीचट्टी पार हो गया, तब एक दुकान मिली। घर में ही दुकान बना रखी थी। दुकान के एक हिस्से में चूल्हा जल रहा था, घर के सदस्यों के लिये खाना बन रहा था। जब एक मुसाफिर दुकान के सामने पडी बेंच पर आ बैठा तो एक सदस्य उठकर आया और पूछने लगा कि क्या लाऊं। चाय मंगा ली। आठ-नौ किलोमीटर पैदल चलकर आया था, बहुत थका हुआ था। दो-ढाई बजे से पहले उठने का मन नहीं था। जब चाय खतम हो गयी तभी मेरे पास में ही कुछ लोग आये। उनमें दो पुरुष, एक महिला, दो बच्चे थे। उनके पहनावे को देखकर मैने अन्दाजा लगा लिया कि ये भी कहीं बाहर से आये हैं और यमुनोत्री जा रहे हैं। वे ज्यादा देर रुके नहीं। मालूम करने पर पता चला कि वे राजस्थान के भरतपुर से आये थे। असल में वे कुम्भ में आये थे, समय था तो यमुनोत्री की तरफ चले आये। उनके साथ उनका ड्राइवर भी था। मैं भी इनके साथ ही हो लिया। सोचा कि साथ चलने से पांच किलोमीटर का पैदल सफर कट जायेगा। जब उन्हे पता चला कि मैं दिल्ली से आया हूं और अकेला ही आया हूं तो आश्चर्य करने लगे। पता नहीं क्या बात है कि मैं जहां भी जाता हूं और किसी को पता चल जाता है कि मैं इतनी दूर अकेला ही आ गया हूं तो आश्चर्य करने लगते हैं।

हनुमानचट्टी में हनुमानगंगा पर बना पुल

हनुमानगंगा

जानकीचट्टी की ओर जाता रास्ता और नीचे यमुना

हनुमानचट्टी से बर्फीली चोटियां दिखनी शुरू हो जाती हैं

यमुना के उस पार बसा गणेशचट्टी गांव

गणेशचट्टी के पृष्ठभूमि में खुद लिया गया फोटू

सडक का मरम्मत कार्य चल रहा है

फूलचट्टी

जानकीचट्टी - यहां से यमुनोत्री की पैदल चढाई शुरू होती है

यमुनोत्री छह किलोमीटर लेकिन पैदल रास्ता पांच किलोमीटर ही है।

जानकीचट्टी में जहां चाय पी थी, उनका बच्चा

जानकीचट्टी से मैने दोपहर दो बजे के करीब चढाई शुरू कर दी। तारीख थी बीस अप्रैल दो हजार दस। मैं थोडी देर पहले ही आठ किलोमीटर पैदल चलकर हनुमानचट्टी से आया था। थक भी गया था। फिर समुद्र तल से लगभग 2500 मीटर की ऊंचाई पर हवा की कमी भी महसूस होने लगती है। हल्के-हल्के चक्कर भी आ रहे थे। यहां से मेरे साथ एक परिवार और भी चल रहा था। वे लोग भरतपुर से आये थे। हरिद्वार में कुम्भ स्नान करने आये थे। समय बच गया तो ड्राइवर से कहा कि कहीं भी घुमा लाओ। ड्राइवर यमुनोत्री ले आया। ड्राइवर समेत पांच जने थे। ड्राइवर तो तेज-तेज चल रहा था लेकिन वे चारों बेहद धीरे-धीरे। दो-चार कदम चलते और सिर पकडकर बैठ जाते। उनका इरादा था कि यमुनोत्री घूम-घामकर आज ही वापस आयेंगे और कल गंगोत्री जायेंगे। उधर मेरा इरादा था कि आज रात को ऊपर यमुनोत्री में ही रुकना है। इसलिये मुझे भी तेज चलने में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

एक-डेढ किलोमीटर चले होंगे तभी बूंदाबांदी होने लगी। ऐसी ठण्डी जगह पर भीगने में नुकसान ही नुकसान होता है, खासतौर से सिर भीगने पर। बचने की कोई जगह तो थी नहीं, फिर कहीं छोटी-मोटी गुफा में बैठते तो क्या पता कि कितनी देर तक बारिश होती रहे, फिर भरतपुर वालों को आज ही वापस जाना था; इसलिये बूंदाबांदी के बीच चलते रहे। हां, मैने सिर पर एक पन्नी रख ली ताकि सिर बचा रहे। अगर बुखार-वुखार चढ गया तो दवाई-पट्टी तो दूर, कोई हाल-चाल पूछने वाला भी नहीं मिलेगा। यहां पिछले कई दिनों से मौसम खराब चल रहा था, इसलिये यमुना में भी पानी बढ गया था और जगह-जगह झरने भी पूरे जोश में थे।

तभी ड्राइवर ने मुझसे कहा कि भाई साहब, चलो हम तेज-तेज चलते हैं। ये लोग धीरे-धीरे आ जायेंगे। तब तक हम ऊपर बैठकर आराम करेंगे और इनकी प्रतीक्षा कर लेंगे। बस, हम चल पडे। चलते-चलते वो बोला कि यह घाटी इतनी दुर्गम है कि यहां पैदल चलने में भी डर लग रहा है, फिर कौन यहां पहली बार आया होगा। किसने यमुनोत्री की खोज की होगी? फिर आकर वापस भी गया होगा, तभी तो दुनिया को पता चला होगा कि कहीं यमुनोत्री भी है। मैने कहा कि हां, हो सकता है कि कोई डाकपत्थर से यमुना के साथ-साथ आया हो, या बडकोट से भी आया हो, फिर इसी दुर्गम घाटी से होकर वहां तक गया हो जहां आज यमुनोत्री है। हो सकता है कि उससे आगे जाना उसके बस की बात ना हो, उसने वहीं पर मन्दिर बनवा दिया हो। और सबसे बडी मेहनत तो उसकी है जिसने इस पैदल मार्ग का निर्माण करवाया है।

बातों-बातों में हम यमुनोत्री पहुंच गये। यहां एक छोटा लोहे का पुल तो था, एक उससे बडा पुल बनाया जा रहा था। हम सीधे स्नान कुण्ड पर पहुंचे। मैं पहले भी बता चुका हूं कि अभी यात्रा सीजन शुरू नहीं हुआ है, इसलिये यहां कोई पर्यटक या श्रद्धालु नहीं था। दिन भर में एकाध आ गये, बहुत हैं। आज भी यहां मजदूर काम पर लगे हुए थे, रास्ते में जगह जगह मरम्मत कर रहे थे, मन्दिर के पास पुल बन रहा है; और भी छोटे-मोटे काम चल रहे हैं। ड्राइवर ने थोडी देर तक तो उनकी प्रतीक्षा की, फिर सोचा कि हो सकता है वे वापस चले जायें। इसके बाद ड्राइवर भी चला गया। मैं अकेला रह गया। मुझे आज रात को यही रुकना था। मेरा इरादा कल सप्तऋषि कुण्ड जाने का था। सप्तऋषि कुण्ड से ही यमुना की उत्पत्ति मानी गयी है। यह यमुनोत्री से कुछ ऊपर है और वहां जाने का मार्ग बेहद दुर्गम है।

यहां मुख्य मन्दिर के बराबर में ही एक गुफा है। इस गुफा में सालों से एक महाराज जी रहते हैं। वे कभी नीचे नहीं जाते, सर्दियों में कपाट बन्द होने के बाद भी। अकेले ही रहते हैं। कहा जाता है कि नीचे जाना तो दूर, उन्होने कभी सामने बहती यमुना को भी पार नहीं किया है। कुछ भक्तों ने उस गुफा के सामने मन्दिर भी बनवा दिया है। महाराज उसी में रहते हैं, खुद बनाते हैं, खाते हैं। बाद में अगले दिन मैने उनकी फोटो लेनी चाही तो उन्होने मना कर दिया। तो मैने उनका फोटो लिया ही नहीं। आज जब कोई नहीं दिखा तो मैं उनके पास ही पहुंचा –“बाबा, आज रुकने के लिये कोई कमरा मिल जायेगा क्या यहां?” बोले कि मिल जायेगा, अभी थोडी देर सामने खडे होकर कुदरत का मजा लो।

सामने यानी महिला स्नान कुण्ड की छत पर मैं खडा हो गया। शोर करती यमुना को देखने लगा। मेरे पास में ही एक मजदूर सरिये का काम कर रहा था। पीछे से एक और मजदूर टाइप का बन्दा आता दिखाई दिया। मैने उससे अपनी समस्या बताई। हल्की फुल्की पूछताछ करके उसने कहा कि मैं यहां का सरकारी चौकीदार हूं। सारा काम मेरी ही देखरेख में हो रहा है। अभी चूंकि सभी धर्मशालायें, होटल वगैरा बन्द पडे हैं, इसलिये आपको रात रुकने में वो मजा नहीं आयेगा जो आना चाहिये था। ऐसा करो कि आप हमारे पास ही रुक जाओ, खाना भी मैं ही बना दूंगा। मुझे और चाहिये ही क्या था। तुरन्त हां।

जिस स्थान पर यमुनोत्री मन्दिर बना हुआ है, उसी के ठीक नीचे चौकीदार के दो कमरे हैं। एक में एक तखत और चूल्हा है, दूसरे में दो तखत और अन्य सामान रखे हुए हैं। चौकीदार के साथ उसका पन्द्रह साल का लडका भी रहता है। उनके साथ वही सरिये वाला मजदूर भी रहता है जोकि मूलरूप से नेपाली है। वे तीनों इकट्ठे हो गये। दोनों कमरों में घुप्प अन्धेरा था। थोडी देर बाद जब आंखें अन्धेरे में देखने की अभ्यस्त हुईं तो कुछ दिखने लगा। उस समय ना तो मैने किराये की कोई बात की ना ही उन्होनें। नेपाली झाडू लगाने लगा, लडका तखत पर बिछे गद्दे झाडने लगा। लडके ने बताया कि भैया पता है, आज आपकी वजह से यहां झाडू लगी है। इससे पहले यहां झाडू लगी थी पिछले साल जब कपाट बन्द हुए थे, उससे भी पहले।

और जैसे ही लडके ने एक गद्दा उठाया, उसमें से दस-बारह काकरोच झड पडे – सभी एक-एक उंगली जितने लम्बे। चूंकि वहां नमी, सीलन और अन्धेरा था, साफ-सफाई भी नहीं होती थी, इसलिये काकरोच तो होने ही थे। मैने पूछा कि भई, यहां तो काकरोच हैं, खटमल तो नहीं हैं। बोले कि खटमल? ये क्या होता है? मैने बताया कि रात को सोते समय छोटे-छोटे चींटी जैसे काले-काले कीट, जो शरीर में काटते रहते हैं, वे हैं या नहीं। बोले कि नहीं, केवल काकरोच ही हैं, और कुछ नहीं हैं। खटमल से मुझे दिक्कत होती है, काकरोच चलेंगे। अगर खटमल होते तो मैं उसी समय वापस चला आता।

थोडा ऊपर से जानकीचट्टी का नजारा

सीधे खडे पहाड, नीचे बहती यमुना और यमुनोत्री जाने का रास्ता

बारिश हुई तो सिर पर पन्नी रख ली।

इस तरह के कई झरने रास्ते में पडते हैं।

पर्वतों पर जमी बर्फ

रास्ते में मरम्मत कार्य चल रहा है

यमुनोत्री के प्रथम दर्शन

यमुनोत्री मन्दिर

यहां तीन कुण्ड हैं गर्म जल के। सूर्य कुण्ड, द्रौपदी कुण्ड और विष्णु कुण्ड। इनमें सूर्य कुण्ड महत्वपूर्ण है।

सूर्य कुण्ड

यह है चौकीदार का लडका यशपाल रावत। यमुना के उस तरफ पडे तख्ते को ला रहा है। तख्ते से नदी को पार किया जाता है।

यमुनोत्री

पुरुष स्नान कुण्ड। इसके पास में ही महिला स्नान कुण्ड भी है। दोनों कुण्डों का पानी गर्म रहता है। मैं पहले दिन तो महिला कुण्ड में नहाया था, अगले दिन पुरुष कुण्ड में। पुरुष कुण्ड का पानी ज्यादा गर्म है, इसलिये शरीर को ज्यादा चुभता है।

यशपाल यमुना पार करता हुआ

ले भई, यशपाल, मेरा एक फोटू खींचना

37 Comments

  • SilentSoul says:

    बहुत बढ़िया विवरण… चित्र भी काफी अच्छे हैं… पर इतने दिनों से गायब कहां हो

    बेमोसम बदरीनाथ तो नहीं चले गये ??

    • सही नब्ज पकडी आपने , इन महाशय के ब्लाग पर लिखा है जोशीमठ और औली का प्रोग्राम 2 से 6 अप्रैल तक तो वहीं होंगें क्योंकि पहले केदारनाथ और यमुनोत्री जा चुके हैं ना बेमौसम

    • Neeraj Jat says:

      सही कह रहे हो साइलेण्ट साहब। मैं अभी भी चमोली में हूं। 7 तारीख को दिल्ली लौटूंगा।

  • नीरज भाई हमेशा की तरह बहुत ही सुंदर लेख , यशपाल का फोटो भी अच्छा है और हां लेडीज हों ना हों लेडीज कुंड में मत नहाया करो हा हा हा , आपकी इस पोस्ट को पढकर मजा आया , ऐसे ही लिखते रहिये और घूमते रहिये ताकि हम भी आपको पढते रहें

    • Sanjay Kaushik says:

      mannu, bhaai dhanyavaad, photu to aa jana chahiye…. font next comment main try karta hoon…

      • फोटो आ गया है और आप बडे सुंदर लग रहे हो …….वो क्या कहते हैं ? डैशिंग …..कोई और दिक्कत हो तो मुझसे फोन,फेसबुक आदि जैसे चाहे सम्पर्क कर सकते हैं

        • Sanjay Kaushik says:

          धन्यवाद भाई मनु
          हिन्दी भी लिखनी आ गई लेकिन “गूग्लेहिन्दिइन्पुत” वाला मजा नही है..
          फोतो की तारीफ़ का शुक्रिया
          ये फोतो एल्लोरा कि गुफ़ा के बाहर ली थी, मुझे भी अच्च्ची लगी सो, यहान तक पहुन्च गई…

          • व्यक्ति जिस भी ​चीज का अभ्यस्त हो जाता है उसी में मजा आने लगता है । नीरज और संदीप भाई बारहा में ही काम करते हैं लिखते रहिये

            miss u jaat Devta

    • Neeraj Jat says:

      मनु भाई, ऐसा है कि पुरुष कुण्ड में पानी ज्यादा गरम था जबकि महिला कुण्ड में ज्यादा आरामदायक था। इसीलिये वहां के सभी मजदूर आदि उसी में नहाते थे। मैं भी लगे हाथों नहा लिया। जिन्दगी में हमें ऐसी जगहों पर नहाने धोने के मौके दुर्लभ ही मिलते हैं।

  • Ritesh Gupta says:

    नीरज भाई…..
    बहुत ही रोमांचक लेख लिखा हैं आपने | सच में पढ़कर मजा आ गया | यमनोत्री की फोटो बहुत ही अच्छी हैं साथ साथ सभी फोटो भीअच्छी लगी…..|
    धन्यवाद
    रीतेश

  • Mahesh Semwal says:

    आप के लेख ने हमारी यमञोत्री की यात्रा याद दिला दिया, एक छोटी सी त्रुटि है ,पहेले परा में आप ने लिखा है की जानकीचट्टी से यमञोत्री चौदह किलोमीटर है जब की होनाचाहिए 6 किलोमीटर |

    • Neeraj Jat says:

      महेश जी, नहीं। मैंने ऐसा नहीं लिखा है। मैंने लिखा है कि:
      “सुबह के साढे नौ बजे मैं उत्तरकाशी जिले में यमुनोत्री मार्ग पर स्थित हनुमानचट्टी गांव में था। यहां से आठ किलोमीटर आगे जानकीचट्टी है और चौदह किलोमीटर आगे यमुनोत्री।”
      यानी हनुमानचट्टी से जानकीचट्टी आठ किलोमीटर और यमुनोत्री चौदह किलोमीटर। थोडा बहुत समझने में त्रुटि हुई है, लिखने में कोई त्रुटि नहीं हुई।

  • नीरज जी बहुत मजा आ गया. यमनोत्री मालूम नहीं मुझे क्यूँ चारो धमो में सबसे ज्यादा आकर्षित करती है. मुझे इसे जल्दी पूरा करना है………………..
    शायद इसी सितम्बर – अक्टूबर में. फोटोस बहुत सुंदर है. कोई मुझे यह बतायेगा कि चट्टी नाम के गाँव इतने क्यूँ है और एक ही जगह में.
    विवरण का तो कोई जवाब ही नहीं…………………………………..
    एक और बात . यह पोस्ट अचानक क्यूँ ख़तम कर दिया. कुछ समाज नहीं आया. न तो आगे आने वाले पोस्ट के बारे में बताया.

    • Neeraj Jat says:

      विशाल जी,
      ऐसा है कि पहले जब यह चारधाम यात्रा ऋषिकेश से शुरू होती थी तो सभी लोग पैदल ही जाते थे। ये सडकें तो ज्यादातर अंग्रेजों ने बनवाई हैं। पहले जमाने में यात्रा पैदल ही होती थी और महीनों में खत्म होती थी। लोगबाग घर से निकलते थे तो यह सोचकर निकलते थे कि यात्रा पूरी नहीं कर पायेंगे और कहीं बीच में ही टपक जायेंगे।
      तो जी, स्थानीय निवासी इन श्रद्धालुओं के लिये ठहरने की जगह-जगह व्यवस्था कर देते थे। इस व्यवस्था को ही चट्टी कहते हैं। अब हालांकि मोटर मार्ग से यात्रा सुगम हो गई है तो चट्टियों का जमाना खत्म हो गया है।
      यमुनोत्री मार्ग में कुछ चट्टियां हैं-स्यानाचट्टी रानाचट्टी, हनुमानचट्टी, फूलचट्टी, नारदचट्टी जानकीचट्टी। गंगोत्री मार्ग की प्रमुख चट्टी है- लंकाचट्टी। केदारनाथ की गरुडचट्टी और बद्रीनाथ की हनुमानचटटी हैं।

  • नीरज भाई २ से ६ तक आप औली जाने वाले थे न आज ३ को पोस्ट कैसे आ गयी.
    इतनी सुन्दर पोस्ट यमुनोत्री के बारे में देखकर अभी से मैं रोमांच से पागल हुआ जा रहा हूँ. ९ मई को मैं भी यमुनोत्री में ही रहूँगा.
    फोटो तो बहुत ही लाजबाब हैं. और क्या लिखते है… जैसे लगता है कि अभी-अभी वही पर बैठकर लिख रहे हैं.
    इस बेहतरीन पोस्ट के लिए धन्यवाद. ऐसे ही लगे रहिये…. अगली पोस्ट का बेसब्री से इन्तजार रहेगा …

    • Neeraj Jat says:

      चन्द्रेश जी, यहां घुमक्कड पर मैं मान्यता प्राप्त लेखक नहीं हूं यानी अपनी मर्जी से किसी भी दिन पोस्ट नहीं डाल सकता। मैंने यह पोस्ट कई दिन पहले ही लिखकर डाल दी थी। सम्पादकों ने 3 तारीख को छाप दी।

  • ashok sharma says:

    interesting write up containing fine details and very well supported by some good pics.

  • नीरज भाई घुमक्कड़ी कोई आप से सीखे, बिना सीजन के आपने यामुनोती की यात्रा की हैं, बिना भीड़ भाड़ के, लगे रहो मेरे भाई.

  • Nandan Jha says:

    उन्मुक्त घुमक्कड़ी नीरज | जैसा जब मन किया वैसे चल पड़े | मेरे हिसाब से अगर बीच बीच में फोटो आते रहे तो शायद लेख ज्यादा संयोजित लगता है |

    और जैसा विशाल ने कहा, ये अचानक ख़तम हो गया | अगले क्रम के इंतज़ार में |

    • Neeraj Jat says:

      नंदन जी, यह मेरा पसन्दीदा स्टाइल है। अपने ब्लॉग में भी मैं इसी तरह ही लिखता हूं।
      और यहां आप मालिक हो। जैसा चाहो, कर सकते हो। जो फोटो जहां चाहो, लगा सकते हो।

  • Mukesh Bhalse says:

    वाह नीरज भाई,
    इसे कहते हैं असली घुमक्कड़ी, बस नहीं मिली तो पैदल ही चल पड़े, खाने को कुछ नहीं मिला तो मैगी खा ली, बारिश में सिर छुपाने के लिए कुछ नहीं मिला तो पन्नी से ही सिर ढँक लिया, कोई साथी नहीं मिला तो अकेले ही चल पड़े, रास्ता काटने के लिए ड्राइवर को ही हमसफ़र बना लिया, ठहरने के लिए होटल नहीं मिला तो चौकीदार के कमरे में रात गुजार ली वो भी कोकरोचों के साथ…………………और भी बहुत कुछ लिख सकता हूँ लेकिन अभी इतना ही.

    इस बात में कोई दो राय नहीं की आप घुमक्कड़ी के गुरु हो, आप हम सब के आदर्श घुमक्कड़ हो. आपके जज्बे, आपके बुलंद हौसलों और घुमक्कड़ी के प्रति आपके जूनून को ……………………….सलाम.

    आप एवं संदीप भाई के लेख पढने से पहले मैं तो ये जानता ही नहीं था की दुनिया में ऐसे भी सिरफिरे जुनूनी लोग हैं जो अपने घुमक्कड़ी को शौक को पूरा करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं, कैसी भी परिस्थितियों में घुमक्कड़ी कर सकते हैं. आपकी हिम्मत और हौसले को देखकर मुझे ये पंक्तियाँ याद आती हैं.

    तूफानों से डरकर नौका पार नहीं होती.
    कोशिश करने वालों की हार नहीं होती.

    • Neeraj Jat says:

      मुकेश जी, आप जैसे पाठक और दोस्त हों तो घूमने और लिखने का मजा और भी बढ जाता है।

  • Harish Bhatt says:

    Like always; a wonderful narration Neeraj Bhai… I hope you had a good sleep at the chokidaars place and the cockroaches did not spoil your sleep :-)

    • Neeraj Jat says:

      नहीं, हरीश जी,
      काकरोचों ने बिल्कुल भी परेशान नहीं किया। पता ही नहीं चला कि मैं काकरोचों से घिरा हुआ सो रहा हूं।

      • SilentSoul says:

        कोई बेचारे काकरोचों से भी पूछे उन पर क्या बीती होगी.

        एक बात पक्की है नम्बर 1 घुमक्कड़ नीरज और नं 2 संदीप… बाकी पर्यटक.

        हम लोग भी लगभग ऐसे ही घूमते थे जब नीरज की उम्र के थे, बाकि शादी होने के बाद देखेंगे ऩीरज की घुमक्कड़ी कितने नं पर पंहुचती है…. क्योंकि फिर इतना आज़ाद नहीं रहेगा

        • Neeraj Jat says:

          ओहोहोहो, साइलेण्ट साहब आपने तो घुमक्कडों की रेटिंग भी कर दी। मेरे विचार से दो तरह के घूमने वाले लोग होते हैं- एक घुमक्कड और दूसरे पर्यटक। मैं तो जी सभी घुमक्कडों को एक ही रेटिंग में रखता हूं।
          और, हकीकत ये है कि आपकी यह रेटिंग मुझे पसन्द है। अपनी तारीफ जो हो रही है। हाहाहा
          वैसे क्या आपको पता है कि मैं इस समय चमोली में हूं और सन्दीप भाई दिल्ली से जोधपुर वाली ट्रेन मण्डोर एक्सप्रेस में पडे सो रहे हैं।

          • SilentSoul says:

            हो सके तो तपोवन जो जोशीमठ के पास है, वहां खूबसूरत Geo-Thermal पानी के झरने है जैसे आईसलैड में है, देखकर फोटो लगाना, मै देख नही पाया था

  • Smita Dhall says:

    LoL! I hope the cockroaches had a good sleep :-D

    बहुत बढ़िया और दबंग यात्रा का विवरण है. यकायक ख़त्म हो गया पर फिर भी बहुत मज़ा आया. आगे का इंतज़ार रहेगा.

  • Stone says:

    Brilliant post Neeraj!

    Mazza aa gaya bhai, issey kehtey asli non-fussy ghumakkari :-)

  • D.L.Narayan says:

    Fantastic, Neeraj, absolutely marvellous. This post has it all – rivers, waterfalls, twisting mountain roads, snow capped peaks and above all, a spirit of pure adventure. Truly mind-blowing.

    I wonder why the concerned authorities cannot provide better facilities for pilgrims at important pilgrimage centres like Yamunotri. The protective grille above Suraj Kund could have been fabricated stainless steel and a proper bridge could have been built across the rivulet in the penultimate picture instead of a single log.

    • Neeraj Jat says:

      हां नारायण जी, आप सही कह रहे हो।
      लेकिन मेरा विचार है कि एक घुमक्कड को इन सुविधाओं और असुविधाओं से दूर ही रहना चाहिये।

  • vibha says:

    अगर ६-७ काकरोच मेरे सामने झङ पढते तो मैं तो पूरी रात बाहर ठंड में ठिठुरते हुए बिता देती। आपकी हिम्मत है।

    बहुत रोचक तथा मनोरंजक लेख है नीरज जी। अकेले ऐसी यात्रा पर जाना सचमुच किसी दीवाने या घुमक्कङ का ही काम हो सकता है।

  • vinaymusafir says:

    देरी से कमेन्ट के लिए माफ़ी! आज ही आपका ये पोस्ट पढ़ा! मज़ा आ गया, उत्तम यात्रा विवरण और सर्वोत्तम चित्र!

    आगे के लेख की प्रतीक्षा रहेगी!

  • यमुनौत्री, गंगौत्री, केदारनाथ व बद्रीनाथ उतराखण्ड के चार धाम कहे जाते है जबकि भारत के चार धाम बद्रीनाथ, पुरी रामेश्वरम व द्धारका ही है। अबकी बार यहाँ जब जाऊँगा जब डोडीताल जाना होगा। रही बात रेल में सोने की तो सुन लो जब कोई कार्यक्रम दो घन्टे पहले बने तो समझ लो कि ट्रेन में क्या हालत रही होगी, सोना तो दूर बैठने के भी लाले पड रहे थे।

  • Neeraj Jat says:

    जाने से पहले अगर ऐसी हालत थी तो सलाह क्यों नहीं ली? कुछ ना कुछ इलाज निकाल ही देता।
    चले जाओ डोडीताल। सीजन आ रहा है।

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