औरंगाबाद (महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤°) में, अगर आपका सिरà¥à¤« दो दिनों का पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ हो, तो आप वो दो दिन कैसे बिताà¤à¤‚गे? यदि घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी पसंद हो, तो आपके लिठमैं अपने अनà¥à¤à¤µ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करता हूà¤. उस समय मारà¥à¤š-अपà¥à¤°à¥ˆà¤² का महीना चल रहा था. गरà¥à¤®à¥€ के महीने अà¤à¥€ पूरी तरह शà¥à¤°à¥‚ à¤à¥€ नहीं हà¥à¤ होंगे कि औरंगाबाद में गरà¥à¤®à¥€ बढ चली थी.  टोपी और सन-सà¥à¤•à¥à¤°à¥€à¤¨ फायदेमंद थे. लगता है कि यहाठबरसात के मौसम में आना चाहिà¤. शायद बरसात में गीले और हरे हो चà¥à¤•े वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के बीच यह शहर और यहाठकी वादियाठऔर à¤à¥€ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° लगतीं. यातà¥à¤°à¤¾-मारà¥à¤— की दिशा व दूरी और गंतवà¥à¤¯ पर पहà¥à¤šà¤¨à¥‡ की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ के खà¥à¤¯à¤¾à¤² से पà¥à¤°à¤¥à¤® दिवस को हमलोगों ने “गà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥à¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤°à¤®à¤‚दिर – à¤à¤²à¥à¤²à¥‹à¤°à¤¾ गà¥à¤«à¤¾â€, “à¤à¤¦à¥à¤° मारà¥à¤¤à¥€ मंदिर – औरंगजेब का मक़बरा†तथा “पनचकà¥à¤•ी – बीबी का मकबरा†देखने का निशà¥à¤šà¤¯ किया. आप चाहें तो इसी यातà¥à¤°à¤¾ मारà¥à¤— पर “दौलताबाद का किला†à¤à¥€ जा सकते हैं.

औरंगाबाद का दिलà¥à¤²à¥€ गेट
पूरà¥à¤µ-लिखित निशà¥à¤šà¤¯ के आधार पर हमारी पà¥à¤°à¤¥à¤® दिन की शà¥à¤°à¥à¤µà¤¾à¤¤ पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ ०à¥.४५ को हà¥à¤ˆ, जब हमलोग अपने होटल से निकल कर गà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥à¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° मंदिर में पूजन हेतॠचल पड़े. थोड़ी-ही दूर पर à¤à¤• मधà¥à¤¯-कालीन दरवाज़ा (दिलà¥à¤²à¥€ गेट) मिला. पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ मधà¥à¤¯à¤•ालीन शहरों की यह à¤à¤• परंपरा रहती है कि जिसमें दीवारों-से घिरा हà¥à¤† शहर होगा, जिसमें कई दरवाज़े होंगे.  औरंगाबाद à¤à¥€ दरवाजों का शहर था. दिलà¥à¤²à¥€ दरवाज़े से निकल कर आगे बà¥à¤¨à¥‡ पर , करीब २५ मिनटों की दूरी पर (कार से), “दौलताबाद का किला†आ गया. किला à¤à¤• पहाड़ी पर था. साथ ही उसके अनà¥à¤¯ अवशेष तलहटी पर à¤à¥€ à¤à¤• बड़े इलाके में फैले हà¥à¤ थे. उसके पास से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ हà¥à¤ उसे देखने का बड़ा-ही लालच होता था. पर शायद उसके लिठपà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ और à¤à¥€ जलà¥à¤¦à¥€ उठकर यातà¥à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठकरनी चाहिठथी. (पर अचà¥à¤›à¤¾ रहेगा कि इस किले की यातà¥à¤°à¤¾ के लिठअलग से à¤à¤• दिन का पà¥à¤²à¤¾à¤¨ बना लें.) समय की थोड़ी कमी तथा सूरज की निरंतर बà¥à¤¨à¥‡ वाले तपिश से कारण हमलोगों को इस किले की यातà¥à¤°à¤¾ छोड़नी पड़ी.

दौलताबाद क़िला का à¤à¤• बिहंगम दृशà¥à¤¯
किले से अगले लगà¤à¤— आधे घंटे के सफ़र बाद हमलोग गà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥à¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° मंदिर परिसर (वेरà¥à¤² गाà¤à¤µ) तक पहà¥à¤à¤š गà¤. हमलोग यहाठरà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤à¤¿à¤·à¥‡à¤• पूजन के पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤œà¤¨ से ही आये थे. मंदिर के बाहर फूल, नारियल à¤à¤µà¤‚ अनà¥à¤¯ पूजन सामगà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की कई दूकानें थीं.  वहाठसे पूजन सामगà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ लेते हà¥à¤ हमलोग मंदिर के पà¥à¤°à¤¾à¤‚गन में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ कर गà¤. पà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ को मंदिर के गरà¥à¤-गृह में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ हेतॠशरà¥à¤Ÿ इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ उतारने पड़ते हैं. जिसके लिठहमलोगों को यहाठके पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¨à¤¿à¤• कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ से à¤à¥€ समà¥à¤šà¤¿à¤¤ सहायता मिल गई. वहीठसे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ à¤à¤• शाल अपने शरीर पर लपेट कर मैंने अपने परिवार सहित  गरà¥à¤-गृह में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया तथा वहां सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ की देख-रेख में निशà¥à¤šà¤¿à¤‚त मन से जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग का पूजन किया. पूजन के बाद परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ की परंपरा है, जिसका हमलोगों ने पालन किया. गà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥à¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° की परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ आधी-ही की जाती है, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यहाठà¤à¤—वन शिव की ही पूजा होती है. मानà¥à¤¯à¤¤à¤¾ है कि पूरी परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ उसी शिव मंदिर की होती है, जिसमें शिव के साथ-साथ विषà¥à¤£à¥ का à¤à¥€ विगà¥à¤°à¤¹ हो. गà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥à¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° मंदिर में à¤à¤• और पà¥à¤°à¤¥à¤¾ है कि गरà¥à¤-गृह में जाने के पहले पà¥à¤°à¤¾à¤‚गन में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ “कोकिला देवी†को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करें. लोकोकà¥à¤¤à¤¿ है कि कोकिला देवी à¤à¤—वानॠको आपके आने की सूचना देतीं हैं. खैर, हमें इस पà¥à¤°à¤¥à¤¾ का पता बाद में चला, जिसके कारण हमलोग à¤à¤¸à¤¾ नहीं कर पाà¤. परनà¥à¤¤à¥, पूजन-परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ के बाद हमलोग मंदिर के पà¥à¤°à¤¾à¤‚गन में ही कà¥à¤› देर तक बैठे रहे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वहाठà¤à¤• अलौकिक शांति का अनà¥à¤à¤µ हो रहा था. गà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥à¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤°à¥à¤²à¤¿à¤‚ग का इतिहास तो पूरà¥à¤µ-वरà¥à¤£à¤¿à¤¤ है.

गà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥à¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° मंदिर का à¤à¤• दृशà¥à¤¯
वैसे तो गà¥à¤°à¤¿à¤¶à¥à¤¨à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° परिसर से बाहर निकलने के बाद, यदि आप चाहें तो आसपास सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ कà¥à¤› आशà¥à¤°à¤® इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ देख सकतें हैं, पर मंदिर परिसर से बाहर आने के बाद हमलोग à¤à¥‹à¤œà¤¨ करना चाहते थे. जिसके लिठवहीठसे लगà¤à¤— आधे किलोमीटर पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ “होटल कैलाश†आ गये. यह होटल à¤à¤²à¥à¤²à¥‹à¤°à¤¾ की गà¥à¥žà¤¾à¤“ं के लिठजाने वाली सड़क पर उसके बिलकà¥à¤² नज़दीक था. सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤œà¤¨à¤• पारà¥à¤•िंग à¤à¥€ मौजूद थी. à¤à¥‹à¤œà¤¨ इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ से निवृतà¥à¤¤ हो कर हमलोग यहीं से “à¤à¤²à¥à¤²à¥‹à¤°à¤¾ की गà¥à¥žà¤¾à¤“ं†की और चले. पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ सà¥à¤¥à¤² पर आजकल “महावीर सà¥à¤¤à¤®à¥à¤â€ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हà¥à¤† है, जिसमें समय तथा तापमान दिखने वाली डिजिटल घड़ी लगी हà¥à¤ˆ है. सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोग à¤à¤¾à¤‚ति-à¤à¤¾à¤‚ति के खादà¥à¤¯ पदारà¥à¤¥ ले कर वहाठबेचने के लिठà¤à¥€ आते हैं. फोटोगà¥à¤°à¤¾à¤«à¤° तथा गाइड सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ à¤à¥€ मिलती है. लंगूरों की टोलियाठà¤à¥€ काफ़ी संखà¥à¤¯à¤¾ में यहाठमौजूद थीं, जो असावधान यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के खाने की वसà¥à¤¤à¥à¤“ं पर अचानक  à¤à¤ªà¤Ÿ सकते हैं. खैर, टिकट खिड़की से टिकट लेने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ हमलोगों ने गà¥à¥žà¤¾ परिसर में लगà¤à¤— १०.४५ पूरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¹ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया. इस वक़à¥à¤¤ तक सूरज मानों बिलकà¥à¤² सर पर चमकने लगा था और काफ़ी गरà¥à¤®à¥€ हो चली थी. मराठवाडा की विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से हमारा पहला परिचय था.

महावीर सà¥à¤¤à¤®à¥à¤
शà¥à¤•à¥à¤° था कि हम सबने अपनी-अपनी टोपियाठसाथ रखीं थीं और पानी की बोतलें à¤à¥€ ले लीं थीं. विशà¥à¤µà¤¦à¤¾à¤¯ सà¥à¤¥à¤² à¤à¤²à¥à¤²à¥‹à¤°à¤¾ के बाहरी पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° से à¤à¥€à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते ही à¤à¤• फूलों का बाग़ आता है. उस बगिया के पीछे विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ कैलाश मंदिर वाली गà¥à¥žà¤¾ नज़र आती है और आपका आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯-चकित होने का कà¥à¤°à¤® शà¥à¤°à¥‚ हो जाता है. इस गà¥à¥žà¤¾ को गà¥à¥žà¤¾ संखà¥à¤¯à¤¾ १६ से अंकित किया जाता है.  कैलाश गà¥à¥žà¤¾ ततà¥à¤•ालीन नकà¥à¤•ाशी की पराकाषà¥à¤ ा है. शिलà¥à¤ªà¤•ारों ने पहाड़ की बेसालà¥à¤Ÿ की शिलाओं को ऊपर से तराशते हà¥à¤ à¤à¤• à¤à¤µà¥à¤¯ मंदिर-परिसर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया है. गà¥à¥žà¤¾ के बगल से à¤à¤• मारà¥à¤— गà¥à¤«à¤¾ के ऊपर तक जाता है, जहाठसे पूरे मंदिर की बाहरी नकà¥à¤•ाशियों की तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‡à¤‚ ली जा सकतीं हैं. चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को काट कर गà¥à¤¨à¥‡ वाले शिलà¥à¤ªà¤•रà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर घमणà¥à¤¡ और उनके अलौकिक कृतों पर चरम आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ आने लगता है. जी में आता है कि कई दिनों तक इसी गà¥à¤«à¤¾ को देखूं तथा à¤à¤• पूरा लेख सिरà¥à¤« इसी मंदिर के ऊपर लिख डालूà¤. पर अब आगे लिठचलता हूà¤.  इस गà¥à¤«à¤¾ कà¥à¤°à¤®à¤¾à¤‚क १६ से दाहिनी और की गà¥à¤«à¤¾à¤à¤‚ बौदà¥à¤§ –कालीन (गà¥à¥žà¤¾ संखà¥à¤¯à¤¾ १-१२)हैं और बायीं तरफ की गà¥à¤«à¤¾à¤à¤ जैन-धरà¥à¤® (गà¥à¥žà¤¾ संखà¥à¤¯à¤¾ ३०-३४) की. दोनों तरफ जाने के लिठगà¥à¤«à¤¾ नंबर १६ के सामने से परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• बसें à¤à¥€ चलाईं जातीं हैं.Â

à¤à¤²à¥à¤²à¥‹à¤°à¤¾ का गà¥à¤«à¤¾ संखà¥à¤¯à¤¾ १६ का à¤à¤• विहंगम दृशà¥à¤¯
उस दिन हम लोगों ने, सूरज की चà¥à¤¤à¥€ जाती गरà¥à¤®à¥€ से परेशान हो कर निरà¥à¤£à¤¯ किया कि केवल जैन गà¥à¥žà¤¾ ही देखें. इसलिठ१६ नंबर की गà¥à¥žà¤¾ से निकल कर, बस पर सवार हो कर, गà¥à¤«à¤¾ नंबर ३२ चले आये. इस गà¥à¥žà¤¾ में à¤à¥€ उसी पà¥à¤°à¤•ार से à¤à¤• परà¥à¤µà¤¤ की चटà¥à¤Ÿà¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ को ऊपर से तराश कर à¤à¤• दà¥à¤®à¤‚जिला  मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किया गया था. यहाठà¤à¤—वानॠमहावीर, जैन तीरà¥à¤¥à¤‚कर, मातंग और अमà¥à¤¬à¤¿à¤•ा इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ हैं. मातंग की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को कà¥à¤› लोग इनà¥à¤¦à¥à¤° और अमà¥à¤¬à¤¿à¤•ा की मूरà¥à¤¤à¥€ को इनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤£à¥€ की मूरà¥à¤¤à¥€ à¤à¥€ कहते हैं. जिस मंजिले पर जैन तीरà¥à¤¥à¤•रों की मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ लगीं हैं, उसका “जगनà¥à¤¨à¤¾à¤¥â€ हाल नाम à¤à¥€ वहाठसà¥à¤¨à¤¨à¥‡ को मिला. गरà¥à¤-गृह के बाहरी  खमà¥à¤¬à¥‹à¤‚ पर हाथों से आघात करने पर उनकी गूà¤à¤œ पूरे ककà¥à¤· में सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ देती है, जिसे सà¥à¤¨à¤¾ कर लोग-बाग़ पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ होते हैं मानों आज उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कोई बड़े रहसà¥à¤¯ का उदà¥à¤¬à¥‹à¤§à¤¨ किया हो. कà¥à¤› à¤à¤¿à¤¤à¥à¤¤à¤¿-चितà¥à¤°à¥‹à¤‚ के अवशेष à¤à¥€ यहाठकी छतों पर दिखाई देते हैं. पर इस गà¥à¥žà¤¾ में सरà¥à¤µà¥‹à¤¤à¥à¤¤à¤® शिलà¥à¤ª-कृतà¥à¤¯ का दरà¥à¤¶à¤¨ यहाठके खमà¥à¤¬à¥‹à¤‚ पर बने दीपसà¥à¤¤à¤‚ठसे होता है. à¤à¤¸à¤¾ लगता है की मोतियों-माणिकों  से à¤à¤°à¤¾ कोई चषक रखा हो. इन गà¥à¥žà¤¾à¤“ं में शिलà¥à¤ªà¤•ारों की पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा कितनी à¤à¥€ जाà¤, कम पड़ती है.

à¤à¤²à¥à¤²à¥‹à¤°à¤¾ के गà¥à¥žà¤¾ संखà¥à¤¯à¤¾ ३२ का à¤à¤• दृशà¥à¤¯
इधर समय की सà¥à¤ˆ à¤à¥€ धीरे-धीरे बà¥à¤¤à¥€ चली जा रही थी. सूरज की असà¤à¤–à¥à¤¯ रशà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के तले धरती à¤à¥€ लगà¤à¤— सà¥à¤²à¤— रही थी. पानी की बोतलें à¤à¥€ खतà¥à¤® होती जा रहीं थीं. अंततः लौटती हà¥à¤ˆ बस यातà¥à¤°à¤¾ कर हम गà¥à¥žà¤¾ संखà¥à¤¯à¤¾ १६ के सामने आ गठऔर वहाठसे à¤à¤²à¥à¤²à¥‹à¤°à¤¾ परिसर के बाहर निकल गà¤. सही थी या फिर ग़लत, पर “महावीर सà¥à¤¤à¤®à¥à¤â€ पर लगी डिजिटल घड़ी उस वक़à¥à¤¤ का तापमान ४ॠडिगà¥à¤°à¥€ सेलà¥à¤¸à¤¿à¤…स बता रही थी और समय हà¥à¤† था १२.४५ अपरानà¥à¤¹. वहाठसे लगà¤à¤— ६-ॠकिलोमीटर पर à¤à¤• शहर है “खà¥à¤²à¤¤à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦â€. वहाठमà¥à¥šà¤² बादशाह “औरंगज़ेब†का मक़बरा है. इसी बादशाह के नाम पर औरंगाबाद का नाम पड़ा है. दिलà¥à¤²à¥€ में “हà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥‚à¤â€, सिकंदरा में “अकबर†और आगरे में “शाहजहाà¤â€ के मक़बरे पहले ही देख चà¥à¤•ा था. इसीलिठà¤à¤²à¥à¤²à¥‹à¤°à¤¾ से निकल कर खà¥à¤²à¤¤à¤¾à¤¬à¤¾à¤¦ के लिठहमलोग चल पड़े. उसी शहर में हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी का à¤à¤• मंदिर पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है, जिसका नाम “à¤à¤¦à¥à¤° मारà¥à¤¤à¤¿ मंदिर†है. यहाठशयन-मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾ में हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी की पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ है. मंदिर के बाहर कई दà¥à¤•ाने हैं जिनमें खोये के पेड़े बिकते हैं. जब हम उस मंदिर में पहà¥à¤à¤šà¥‡, उस वक़à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ का सिनà¥à¤¦à¥‚र से शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गार चल रहा था. शीघà¥à¤°à¤¤à¤¾ से पूजन-अरà¥à¤šà¤¨ कर हमलोग लगà¤à¤— १.१५ बजे मंदिर से निकल पड़े.

à¤à¤¦à¥à¤° मारà¥à¤¤à¥€ मंदिर का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤°
करीब आधे किलोमीटर चलने के बाद वह इलाक़ा आ गया जहाठऔरंगज़ेब की मज़ार थी. गाड़ी कà¥à¤› दूर पर ही पारà¥à¤• करनी थी कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि बाकी का रासà¥à¤¤à¤¾ बाज़ारों के बीच से जाता था. इतरों की खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ से à¤à¤°à¥‡ उस  बाज़ार को, जिसमें खास कर विदेशी परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों का दिल जीतने के लिठरखे हेंडीकà¥à¤°à¤¾à¤«à¥à¤Ÿ थे, पैदल पार कर हमलोग à¤à¤• मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ में जा पहà¥à¤à¤šà¥‡. उसी में खà¥à¤²à¥‡ आकाश के नीचे à¤à¤• जालीदार संगेमरमर की चाहरदीवारी के à¤à¥€à¤¤à¤° औरंगज़ेब की मज़ार थी. उस मज़ार की मिटà¥à¤Ÿà¥€ में à¤à¤• तà¥à¤²à¤¸à¥€ का पौधा लगा था. वहाठके सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोगों ने à¤à¤• नेतà¥à¤°-हीन विशà¥à¤µà¤¾à¤¸à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ को तैनात कर रखा था, जो हर परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• को मà¥à¥šà¤² बादशाह के यहाठदफ़न किये जाने और उसकी अंतिम दिनों में बिताये मितवà¥à¤¯à¤¯à¤¿à¤¤à¤¾ के किसà¥à¤¸à¥‡ सà¥à¤¨à¤¾à¤¤à¤¾ था. बदले में उसे परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• कà¥à¤› रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ देते थे. हमलोगों ने à¤à¥€ तनà¥à¤®à¤¯à¤¤à¤¾ के साथ वो किसà¥à¤¸à¥‡ सà¥à¤¨à¥‡ और फिर मज़ार परिसर से बाहर आ गà¤. इस वक़à¥à¤¤ लगà¤à¤— १.३० अपरानà¥à¤¹ के बज चà¥à¤•े थे. गरà¥à¤®à¥€ इतनी जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ थी कि à¤à¥‚ख से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पà¥à¤¯à¤¾à¤¸ लगती जाती थी. वातानà¥à¤•ूलित गाड़ी में बैठकर, तरल पदारà¥à¤¥ की अपनी तलब पानी तथा बोतल-बंद जूस से पूरी करते-करते, दौलताबाद किले को à¤à¤• बार फिर बाहर से ही देखते हà¥à¤, वहाठसे २४ किलोमीटर का सफ़र तय कर,  लगà¤à¤— ०२.०० बजे अपरानà¥à¤¹ पर हमलोग औरंगाबाद शहर में “पनचकà¥à¤•ी†के पास खड़े थे.

औरंगज़ेब के मज़ार का दृशà¥à¤¯
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पनचकà¥à¤•ी मधà¥à¤¯à¤¯à¥à¤—ीन यांतà¥à¤°à¤¿à¤•ी (सन १à¥à¥ªà¥ª) का à¤à¤• उदहारण है. उस समय मिटà¥à¤Ÿà¥€ की पाइपों से जल आता था और उसे à¤à¤• जलाशय में रखा जाता था. पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ की चकà¥à¤•ी के नीचे लगे हà¥à¤ लोहे के फलकों पर जब जल गिरता था तो गति के नियमों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° चकà¥à¤•ी चल पड़ती थी. अनवरत चलती हà¥à¤ˆ उसी चकà¥à¤•ी से मधà¥à¤¯à¤•ाल में  अनà¥à¤¨ पीसने का कारà¥à¤¯ à¤à¥€ किया जाता था. चकà¥à¤•ी तो बिजली की सहायता से आज à¤à¥€ चलाई जा रही थी ताकि परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• अनà¥à¤®à¤¾à¤¨ लगा सकें कि वह कैसे कारà¥à¤¯ करती होगी. वहाठà¤à¤• बरगद का वृकà¥à¤· à¤à¥€ था, जिसपर लगे बोरà¥à¤¡ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° वह ६०० वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ था. जलाशय में पानी था, जिसमें लोग वहीठखरीद कर मछलियों को चारा डाल सकते थे. पनचकà¥à¤•ी आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤œà¤¨à¤• तो थी, परनà¥à¤¤à¥ यदि आप वहाठसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ बाज़ार में धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ केनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¿à¤¤ नहीं करें तो उसे देखने में जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समय नहीं लगता. आप इसी से अंदाज़ लगा सकते हैं कि पनचकà¥à¤•ी देखने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ लगà¤à¤— २.१५ अपरानà¥à¤¹ तक हमलोग वहाठसे मातà¥à¤° २ किलोमीटर पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ “बीबी का मकबरा†पहà¥à¤à¤š गà¤. Â

पनचकà¥à¤•ी का à¤à¤• विहंगम दृशà¥à¤¯
“बीबी का मकबरा†देखते ही ताजमहल की याद आ गई. वह à¤à¤• छोटा ताजमहल के जैसा दीखता था. पर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से देखने पर पता चल ही जाता है कि संगमरमर पतà¥à¤¥à¤°à¥‹à¤‚ का जो इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² ताजमहल में किया गया था, वैसा बीबी के मकबरे में नहीं किया जा सका था. इसे औरंगजेब के à¤à¤• बेटे ने अपनी माताजी की याद में बनवाया था, जो बादशाह औरंगज़ेब की तीसरी बेगम थीं. यह ईमारत १६५१-१६६१ ईसà¥à¤µà¥€ में बनी है. इसे “दकà¥à¤·à¤¿à¤£ का ताजमहल†à¤à¥€ कहा जाता है. मà¥à¤–à¥à¤¯ ईमारत, चारबाग़ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ से निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ बगीचे के मधà¥à¤¯ में, à¤à¤• विशाल चबूतरे पर बनी है. पीतल के दरवाज़े काफ़ी अलंकृत हैं. हैदराबाद के निज़ाम के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनवाई à¤à¤• मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ à¤à¥€ यहाठमौजूद है. Â

बीबी का मकबरा का à¤à¤• विहंगम दृशà¥à¤¯
कà¥à¤² मिला कर ईमारत-संकà¥à¤² दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ है तथा लोगों के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ लिठजाने वाले फ़ोटो के अवसर बेहिसाब हैं. शायद ही कोई होगा जो वहाठसे बिना फ़ोटो लिठबाहर आया होगा. à¤à¤¸à¤¾ ही हमलोगों ने à¤à¥€ किया. लगà¤à¤— ३.०० बज चà¥à¤•े थे. हमसब काफ़ी थक चà¥à¤•े थे और à¤à¥‚ख से à¤à¥€ बेहाल थे. दोपहर के खाने का समय पार à¤à¥€ कर चà¥à¤•ा था. परनà¥à¤¤à¥, बीबी के मकबरे से निकल कर हमलोग “शिवाजी संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯â€ चले गà¤. पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¤•à¥à¤· में सारे सहयातà¥à¤°à¥€-गण गरà¥à¤®à¥€ और à¤à¥‚ख से वà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤² हो चà¥à¤•े थे. अतः जैसे ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने देखा कि किसी सरकारी अवकाश दिवस होने की वजह से शिवाजी संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ बंद था, तो सबके चेहरे खिल गà¤. अब तो à¤à¥‹à¤œà¤¨ और à¤à¥‹à¤œà¤¨-पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ आराम करने के सिवा कोई और महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ कारà¥à¤¯ बचे à¤à¥€ तो नहीं थे. इस पà¥à¤°à¤•ार औरंगाबाद की दो दिवसीय यातà¥à¤°à¤¾ का पà¥à¤°à¤¥à¤®-दिवस का लगà¤à¤— समापन हो गया.
नमसà¥à¤•ार उदय जी |
काफी दिनों बाद आपका लेख आया है | मैं कà¤à¥€ औरंगाबाद नहीं गया पर न जाने कितनी बार मैप पर इसे देखा और तिकड़में लगाई की शायद दिलà¥à¤²à¥€ से मà¥à¤‚बई की रोड यातà¥à¤°à¤¾ पर यहाठरात को रà¥à¤•ा जा सकता है, कà¤à¥€ किसी होटल का वाउचर हाथ में था तो सोचा की इसे यहाठइसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² किया जा सकता है पर मेरे पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸à¥‹à¤‚ को घर पर कà¤à¥€ शह नहीं मिली तो मैं अà¤à¥€ à¤à¥€ औरंगाबाद पर लिखे लेख पढ़ रहा हूठ|
खैर, लेख आपका लाजवाब है | “कोकिला देवी†अधà¥à¤¯à¤¾à¤¯ के बारे में जानकारी नहीं थी, धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ | मैं आपकी बात से संगत रखता हूठकी à¤à¤²à¥à¤²à¥‹à¤°à¤¾ के बारे में थोड़ा और खà¥à¤²à¤¾à¤¸à¤¾ होना चाहिठ| जहाठतक पन -चकà¥à¤•ी की बात है, मà¥à¤à¥‡ याद आता है की सन २००० में हम लोग उतà¥à¤¤à¤°à¤•ाशी गठथे, और वहां à¤à¤• छोटे टà¥à¤°à¥‡à¤• पर निकले थे | à¤à¤• तरह का “टीम बिलà¥à¤¡à¤¿à¤‚ग पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® ” था, वहां मैने à¤à¤• चलती हà¥à¤ˆ, मतलब रोज़ मरà¥à¤°à¤¾ की ज़िनà¥à¤¦à¤—ी में इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² होती हà¥à¤ˆ, पन-चकà¥à¤•ी देखी | कमाल का आइटम है |
बीबी का मक़बरा तक तो ठीक था पर à¤à¤°à¥€ दà¥à¤ªà¤¹à¤°à¥€ में शिवाजी संघà¥à¤°à¤¾à¤²à¤¯ थोड़ा नॉट-हपà¥à¤ªà¥‡à¤¨à¤¿à¤‚ग हो जाता है |
à¤à¤• दिन में काफी समेटा आपने |
P.S. -> फोटोज की पà¥à¤°à¥‹à¤¸à¥‡à¤¸à¤¿à¤‚ग में कà¥à¤› गड़बड़ हà¥à¤ˆ है, मैने नोट छोड़ा है à¤à¤¡à¤¿à¤Ÿà¥‹à¤°à¤¿à¤¯à¤² डेसà¥à¤• में, ठीक कराता हूठ| कà¥à¤·à¤®à¤¾ |
बहà¥à¤¤ ही उमà¥à¤¦à¤¾ कमेंटà¥à¤¸ के लिठधनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦.
मà¥à¤‚बई पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¸ में थोड़ी वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤à¤¤à¤¾ बà¥à¥€ है, जिसके कारण मैं लेख लिखने में पहले थोडा असमरà¥à¤¥ था. पर इस बार सोचा कि जीवन में वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤à¤¤à¤¾ तो हमेशा रहेगी, इसीलिठउसी के बीच में लिखना à¤à¥€ हो.
घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ का à¤à¥€ बहà¥à¤¤ शà¥à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ कि इसकी वज़ह से à¤à¥€ पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ मिलता है.
धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦.
Uday ji,
Many thanks for such a wonderful post! We missed your engaging write-ups here..
I have always read your posts as if they are tour guides since they are really informative. This one too, is nothing less than one!
We look forward to more from you.
Regards.
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Due to somewhat hectic schedules these days, I was not able to write before.
Regards
बेहद खूबसूरत चितà¥à¤° है, पोसà¥à¤Ÿ तो और à¤à¥€ कमाल की है, गà¥à¤°à¥€à¤·à¥à¤® ऋतू में परà¥à¤¯à¤Ÿà¤¨ का à¤à¥€ अपना à¤à¤• अलग ही मजा होता है, घूमते रहिये घà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥‡ रहिये.
धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ अरà¥à¤£ जी, आपके उतà¥à¤¤à¤® टिपà¥à¤ªà¤£à¥€ के लिà¤.
आपको अचà¥à¤›à¤¾ लगा जान कर ख़à¥à¤¶à¥€ हà¥à¤ˆ.
नमसà¥à¤•ार उदय जी,
मैं अपने परिवार के साथ दो दिन के लिठऔरंगाबाद की यातà¥à¤°à¤¾ के लिठजà¥à¤²à¤¾à¤ˆ में जाना चाहता हूà¤à¥¤ पà¥à¤°à¤¥à¤® दिवस मैं औरंगाबाद में सà¥à¤¬à¤¹ ११.00बजे पहà¥à¤‚चूंगा l कà¥à¤¯à¤¾ आप मà¥à¤à¥‡ बता सकते हैं कि शहर में कहाठरहना ठीक रहेगा और घूमने के लिठकौन सा साधन ठीक रहेगा और कहाठसे मिलेगा। मैं अपने टà¥à¤°à¤¿à¤ª को कैसे पà¥à¤²à¤¾à¤¨ करूठl हमें शाम को दिलà¥à¤²à¥€ के लिठ5.00pm की फà¥à¤²à¤¾à¤‡à¤Ÿ लेनी है l
With Regards,
Rajeev