कई सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ अपने आप में ही à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤› समेटे हà¥à¤¯à¥‡ होते है कि आप उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ नज़रंदाज़ नही कर सकते, à¤à¤²à¥‡ ही वो परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों के लिहाज़ से बिलकà¥à¤² मà¥à¤«à¤¼à¥€à¤¦ ना हों, सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ का घोर अà¤à¤¾à¤µ हो अथवा मà¥à¤•़मà¥à¤®à¤² तौर पर ही नदारद हों, पर उनकी फि़ज़ा में ही कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ घà¥à¤²à¤¾-मिला सा होता है कि देश-विदेश से लोग अपने आप ही उनकी तरफ आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ होते रहें हैं | पà¥à¤°à¤à¤¾à¤®à¤‚डल (aura), केवल देवतायों या मनà¥à¤·à¥à¤¯à¥‹à¤‚ की ही मिलà¥à¤•ियत नही, à¤à¤• à¤à¤°à¤¾ पूरा शहर à¤à¥€, अपने आवरण के चारों तरफ उसे समेट सकता है, ये बात पà¥à¤·à¥à¤•र में जा कर ही मालूम होती है, कि कैसे इसके मोहपाश में वशीà¤à¥‚त हà¥à¤¯à¥‡ लोग चारों दिशायों से इसकी और खिंचे चले आते हैं | आप कहेंगे, ये तो धारà¥à¤®à¤¿à¤•ता है जो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ यूठखींच ले आती है और लोग अकà¥à¤¸à¤° à¤à¤¸à¥€ जगहों की कमियों को à¤à¥€ इसी वज़ह से नज़रंदाज़ कर जाते हैं, जिससे उनकी धारà¥à¤®à¤¿à¤• à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ को चोट ना पहà¥à¤‚चे | आप आंशिक तौर पर सही à¤à¥€ हो सकते हैं, मगर यह पूरा सतà¥à¤¯ नही | कà¥à¤› तो है धरती के इस टà¥à¤•ड़े और इसकी आबो़-हवा में, जो इसे महज़ à¤à¤• तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ ना बनाकर तीरà¥à¤¥à¤°à¤¾à¤œ का दरà¥à¤œà¤¾ दिलवाती है | शायद, कà¥à¤› जगहों का अपने दौर में रà¥à¤•े रहना ही उनकी नियति है, आधà¥à¤¨à¤¿à¤•ता और आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤•ता में छतà¥à¤¤à¥€à¤¸ का आà¤à¤•ड़ा है, इसलिये अकारण नही कि तमाम सà¥à¤–-सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ को छोड़कर यूरोप और अमेरिका, जैसे विकसित देशों से आये हà¥à¤¯à¥‡ यायावर परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•, यहाठà¤à¤¸à¥€-à¤à¤¸à¥€ जगहों पर महीनों पड़े रहते हैं, यहाठउनके हाशिये पर रह रहे समाज के नागरिक à¤à¥€ रहना गवारा ना करें |
जी हाà¤, कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ ही जलवा है तीरà¥à¤¥à¤°à¤¾à¤œ पà¥à¤·à¥à¤•र का ! कà¥à¤¯à¤¾ गज़ब का शहर है ! ऊपरी तौर पर तो हो सकता है, इस शहर से सामना होते ही आप नाक-मà¥à¤à¤¹ सिकोड़ लें, छी…!!! इतनी गंदगी !, जगह जगह जानवर घूम रहें है, पहली नज़र में ही पà¥à¤·à¥à¤•र कà¥à¤› उनà¥à¤¨à¥€à¤‚दा और अलसाया सा शहर नज़र आता है और आप पूरे अधिकार से कह सकते हैं कि, कोई सिविक सेनà¥à¤¸ नही है लोगों में, टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¼à¤¿à¤• free for all है, आपसे आगे वाला आपको साइड दे या ना दे, ये उसकी मरà¥à¤œà¥€ पर मय़सà¥à¤¸à¤° है, यदि कोई सड़क पार कर रहा है तो अपनी ही धà¥à¤¨ में चलेगा, अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ पूरे इतà¥à¤®à¤¿à¤¨à¤¾à¤¨ से और अपना पूरा समय लेता हà¥à¤†, कहीं कोई जलà¥à¤¦à¥€ नही ! आखिर जितना हक़ आपका इस सड़क पर है उतना तो उसका और सड़क पर खà¥à¤²à¥‡ घूम रहे अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤•ार के जानवरों का à¤à¥€ है, आप तो आज आयें है, आज नही तो कल चले जायेंगे पर ये सब तो सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ है, à¤à¤• आपके कहने à¤à¤° से या आपकी कà¥à¤› पलों की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ के लिठये शहर अपने मिज़ाज़ को à¤à¤²à¤¾ कà¥à¤¯à¥‚ठबदलें !
“कबीरा कà¥à¤†à¤ à¤à¤• है, पानी à¤à¤°à¥‡à¤‚ अनेक |
à¤à¤¾à¤‚डे में ही à¤à¥‡à¤¦ है, पानी सबमे à¤à¤• ||”
जयपà¥à¤° से करीब 140 किमी तथा अजमेर से लगà¤à¤— 12-13 किमी दूर, धरा के इस à¤à¥‚-à¤à¤¾à¤— पर à¤à¤• अलग ही रंग का हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ बसता है, à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ जिसे केवल देखने नही, बलà¥à¤•ि महसूस करने, इसे जीने और इसकी आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤•ता में डूबने, दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ à¤à¤° से लोग इसकी तरफ खिंचे चले आते हैं | हो सकता है, आप इसे सिरà¥à¤« इस वज़ह से जानते हों कि यहाठबà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी का à¤à¤• मनà¥à¤¦à¤¿à¤° है जो दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में इकलौता ही है, वैसे मैंने सà¥à¤¨à¤¾ है कि à¤à¤• मनà¥à¤¦à¤¿à¤° बाली (इंडोनेशिया) में à¤à¥€ है, मगर आम हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ लोगों की पहà¥à¤à¤š में तो यह ही à¤à¤• मनà¥à¤¦à¤¿à¤° है, सो उनका आना तो लाजिमी है और समठमें à¤à¥€ आता है, मगर किस कारण से और किसकी तलाश में, इतने रंग-बिरंगे, विदेसी लोग जाने कहाà¤-कहाठसे यहाठआते हैं और फिर, आते हैं तो ठहर ही जाते हैं, महीनों-महीनों à¤à¤° ! और फिर जिन जगहों पर ठहरते हैं वहाठकà¥à¤› अपनी à¤à¤¸à¥€ यादें छोड़ जाते हैं कि जब उनका कोई और करीबी यहाठआता है तो उसी होटल, गेसà¥à¤Ÿà¤¹à¤¾à¤‰à¤¸ या धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ का वही कमरा माà¤à¤—ता हैं, जिसमे उसका कोई संगी, कोई साथी या देशवासी कà¥à¤› समय गà¥à¤œà¤¾à¤° कर गया था | शहर तो आप ने अनेकों देखे होंगे, अनेकों जगहों पर कà¥à¤› दिन गà¥à¤œà¤¾à¤°à¥‡ à¤à¥€ होंगे, पर कà¥à¤¯à¤¾ कà¤à¥€ आपने किसी सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ à¤à¤¸à¥€ आसकà¥à¤¤à¤¿ दिखाई कि जिस जगह को मेरा परिचित जिस हाल में छोड़ कर गया था, मà¥à¤à¥‡ वही कमरा, उसी हालत में चाहिये, उसी रंग में पà¥à¤¤à¥€ दीवालें, वो उघड़ा हà¥à¤¯à¤¾ दीवाल का पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤°, वही टूटे हà¥à¤ कांच वाली खिड़की, वो पंखें का तिरछा बà¥à¤²à¥‡à¤¡, जो उसके किसी पूरà¥à¤µà¤µà¤°à¥à¤¤à¤¿ साथी ने अपने धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ के कà¥à¤› अदà¤à¥à¤¤ कà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ में किसी à¤à¤• खास दिशा में मोड़ दिया था, वो दीवाल पर लिखी इबारत, और अगले आने वाले के लिठà¤à¤• संदेशा, जिस वजह से जगह का मालिक सालों-साल चाह कर à¤à¥€ सफेदी नही करवा पाता, कि कब इसका कोई दूसरा मितà¥à¤° आयेगा और मà¥à¤à¤¸à¥‡ वही दरों-दीवार मांगेगा, तो फिर, मैं कैसे वो उसे ला कर दे पाऊंगा ! मालिक, मालिक ना हो कर केवल à¤à¤• रखवाला (केयर टेकर) बन जाये, वो à¤à¥€ किसी दबाव या जबरदसà¥à¤¤à¥€ से नही, अपनी ही ख़à¥à¤¶à¥€ से… ये इस शहर के मिज़ाज़ का à¤à¤• ज़़ायका है !
à¤à¤• बेहद छोटा सा शहर, जिसे à¤à¤• छोर से दूसरे छोर तक आप पैदल ही माप सकते हैं, मगर अपने आप में पूरी सृषà¥à¤Ÿà¤¿ का रहसà¥à¤¯ समेटे, à¤à¤• निहायत ही अलग सी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ ! कà¥à¤› à¤à¤¸à¥€ दैवीय शकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤, कà¥à¤› आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤•ता, और निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ रूप से बहà¥à¤¤ सा पà¥à¤°à¤•ृति का वरदहसà¥à¤¤ अपने ऊपर लिये हà¥à¤¯à¥‡, नाग पहाड़ी, पà¥à¤°à¤•ृति दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अजमेर और पà¥à¤·à¥à¤•र के बीच खींची गयी à¤à¤• à¤à¥Œà¤—ोलिक सीमा रेखा है | ये शहर तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरा हà¥à¤† है, और इनके मधà¥à¤¯ है, कà¥à¤›-कà¥à¤› वलयाकार सी आकृति लिठहà¥à¤¯à¥‡ यह बेतरतीब सा सरोवर, जो इसकी समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤•ता और दरà¥à¤¶à¤¨ का आधार है | कितने हाथ गहरा है, ये तो हम नही जानते मगर इसका होना ही अपने आप में महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ है | पà¥à¤·à¥à¤•र के साथ जो à¤à¥€ दà¤à¤¤-किवà¤à¤¦à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾, कहानियाठऔर चमतà¥à¤•ार जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ हà¥à¤¯à¥‡ हैं, यूठलगता है जैसे इसी सरोवर की कोख से ही उपजें हों | इस सरोवर की उतà¥à¤ªà¤¤à¥à¤¤à¤¿ के साथ जो मिथक जà¥à¤¡à¤¼à¥‡ हैं, वो à¤à¥€ कà¥à¤› कम दिलचसà¥à¤ª नही, कहते हैं, जब दानव वजà¥à¤°à¤¨à¤¾à¤ ने बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी की संतानों का वध कर दिया तो उसे मारने के लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपना असà¥à¤¤à¥à¤°, जो कि कमल है, चलाया | उस कमल के फूल की à¤à¤• पंखà¥à¤¡à¤¼à¥€ छिटक कर इस रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ धरती पर गिरी, जिससे इस धरती पर पानी का शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤° फूट पड़ा, जिसने à¤à¤• à¤à¥€à¤² का रूप ले लिया और आज, यह à¤à¤• सरोवर के रूप में हमारे सामने है | बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी के नाम का सरोवर, बीच à¤à¥€à¤² में à¤à¤• मनà¥à¤¦à¤¿à¤° नà¥à¤®à¤¾ इमारत है, पर उसमे कहीं कोई मूरà¥à¤¤à¥€ नही, कà¤à¥€ देखा सà¥à¤¨à¤¾ नही कोई à¤à¤¸à¤¾ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° जिसमे उसके देवता की मूरà¥à¤¤à¥€ ही ना हो ! सà¥à¤¨à¤¾ है, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी ने इस जगह पर यजà¥à¤ž करवाया परनà¥à¤¤à¥ उनकी पतà¥à¤¨à¥€ सावितà¥à¤°à¥€ ने हार-शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गार में बहà¥à¤¤ अधिक समय लगा दिया और इधर आहà¥à¤¤à¤¿ का समय निकला जा रहा था तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने यहीं की à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ महिला ‘गायतà¥à¤°à¥€â€™ को अपनी पतà¥à¤¨à¥€ की जगह बिठा, सà¤à¥€ विधियाठपूरी कर ली, पर जैसे ही सावितà¥à¤°à¥€ उस जगह पहà¥à¤‚ची और अपनी जगह किसी और महिला को पतà¥à¤¨à¥€ के आसन पर बैठे देखा तो बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी को शà¥à¤°à¤¾à¤ª दिया और सà¥à¤µà¤¯à¤‚ पास ही के रतà¥à¤¨à¤¾à¤—िरी के जंगल में चली गयी जिस वजह से इस जगह पर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ का मनà¥à¤¦à¤¿à¤° तो है पर इस मंदिर में उनकी कोई मूरत नही, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि à¤à¤• शà¥à¤°à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ देवता की मूरà¥à¤¤à¥€ की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ शासà¥à¤¤à¥à¤° समà¥à¤®à¤¤ नही |

बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® सरोवर में मनà¥à¤¦à¤¿, जिसमे कोई मूरà¥à¤¤à¥€ नही
पà¥à¤·à¥à¤•र, जिसका इतिहास ईसा पूरà¥à¤µ दूसरी से चौथी शताबà¥à¤¦à¥€ तक जाता है, इतना विलकà¥à¤·à¤£ और समरà¥à¤¦à¥à¤§ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨, कि जो कालिदास के अà¤à¤¿à¤œà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¶à¤¾à¤•à¥à¤¨à¥à¤¤à¤²à¤® में à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पा गया, जिसका जिकà¥à¤° रामायण और महाà¤à¤¾à¤°à¤¤ में आदि तीरà¥à¤¥ के तौर पर हà¥à¤†, बà¥à¤¦à¥à¤§ के सà¥à¤¤à¥‚पों में, चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤—à¥à¤ªà¥à¤¤ यà¥à¤— के समय के पाये गये सिकà¥à¤•ों में à¤à¥€, और जिस जगह पर हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ के जà¥à¤žà¤¾à¤¤ इतिहास के सबसे बड़े घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ गà¥à¤°à¥ नानक के साथ-साथ गà¥à¤°à¥ गोबिंद सिंह जी à¤à¥€ आये, आप उसे यूठखारिज नही कर सकते | कà¤à¥€ सोच कर देखो तो हैरानी होती है कि चारो तरफ रेत के विशाल रेगिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ से घिरा यह छोटा सा टापू नà¥à¤®à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨, और इसके मधà¥à¤¯ में बनी यह à¤à¥€à¤², जिसे हम और आप बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® सरोवर के नाम से जानते हैं, कैसे अपना असà¥à¤¤à¤¿à¤¤à¥à¤µ बचा कर रख पाया होगा ! वाकई, जिस पà¥à¤°à¤•ार इस सृषà¥à¤Ÿà¥€ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ à¤à¤• अदà¥à¤à¥à¤¤ और विलकà¥à¤·à¤£ घटना है, उसी पà¥à¤°à¤•ार से इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का, इतनी विकट परीसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में à¤à¥€ अपने आप को जीवित रख पाना à¤à¥€ असाधारण ही रहा होगा !
मथà¥à¤°à¤¾ के बाद ये दूसरा शहर है, जिसमे घूमने का à¤à¤• अलग ही मज़ा है, हिंदà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ के सारे रंग, अपने सदाबहार à¤à¤¿à¤–ारियों और मदारियों से लेकर, औघड़ सनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ तक, सब इस सरोवर के अलग-अलग घाटों पर आप पा जायेंगे, कहीं कोई टोकरी में साà¤à¤ª रखे घूम रहा है, कहीं कोई सर पर बड़ा सा थाल सजाये, और उसमे बेहद करीने और नफ़ासत से मिटà¥à¤Ÿà¥€ के छोटे-छोटे कà¥à¤²à¥à¤¹à¤¡à¤¼ लगाये, चलता फिरता चाय वाला मिल जायेगा, तो कहीं, केवल अपनी गरà¥à¤¦à¤¨ à¤à¤° हिला कर, हामी à¤à¤° देने à¤à¤° से, आपकी सà¤à¥€ लौकिक और परालौकिक इचà¥à¤›à¤¾à¤à¤‚ पूरी कर देने वाली गाय माता, कोई à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤, जो केवल आपके ललाट पर तिलक ही लगाने à¤à¤° से अरà¥à¤œà¤¿à¤¤ अपनी आजीविका में पूरà¥à¤£ आनंद कमा लेता है, तो पास ही बैठा कोई सनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ आपकी पूरी जनà¥à¤®à¤ªà¤¤à¥à¤°à¥€ ही मिनटों में बना कर बाà¤à¤š à¤à¥€ देगा | जीवन और मोकà¥à¤· के वो सिदà¥à¤¦à¤¾à¤‚त, मौत के वो रहसà¥à¤¯, जिसे नचिकेता ने, पिता की आजà¥à¤žà¤¾ समठअपने जीवन तà¥à¤¯à¤¾à¤— को ही ततà¥à¤ªà¤° हो, सà¥à¤µà¤¯à¤‚ यम से सीखा, आप उसे यूठही राह किनारे खड़े किसी सनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€ से दस मिनट की चरà¥à¤šà¤¾ से जान सकते हो ! किसी पिनक में कोई साधू घूमता बीच सडक पर पकड़ लेता है आपको, और फिर जो आप पर उसके जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की घटा घनघोर वरà¥à¤·à¤¾ होती है कि आप तपते सूरज की तपिश में à¤à¥€ यूठà¤à¥€à¤— जाते हो जैसे सावन की à¤à¤¡à¤¼à¥€ से सामना हà¥à¤† हो | कà¥à¤¯à¤¾ बात है à¤à¤¾à¤ˆ ! आप कà¥à¤¯à¤¾ सोचते हैं, à¤à¤¸à¥‡ थोड़े ही इतने अà¤à¤—रेज़ पà¥à¤·à¥à¤•र में डेरा डाले बैठे रहते हैं, ये बाबा लोग, उनके आशà¥à¤°à¤®, और फिर ऊपर से चिलम का सà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¤¾ !Â

2. कà¤à¥€-कà¤à¥€ विकलांगता à¤à¥€ धन अरà¥à¤œà¤¨ का साधन बन जाती है

पà¥à¤·à¥à¤•र की गलियों में घà¥à¤®à¤¤à¥‡ सपेरे संग नाग देवता

गà¥à¤œà¤°à¥‡ ज़माने के सारंगी वादक के साथ कà¥à¤› बतकही के लमà¥à¤¹à¥‡
कहते हैं सन साठ-सतà¥à¤¤à¤° में अमरीका का नौजवान वरà¥à¤— हिपà¥à¤ªà¥€ विचारधारा से बहà¥à¤¤ पà¥à¤°à¥‡à¤°à¤¿à¤¤ था, बस कà¥à¤› दरà¥à¤¶à¤¨, कà¥à¤› समाज से बगावत का à¤à¤¾à¤µ, कà¥à¤› डà¥à¤°à¤—à¥à¤¸ ! और बस, फिर à¤à¥‚मते गाते, हरे रामा हरे कृषà¥à¤£à¤¾ करते रहना, इसी नाम और इसी विषय पर देवानंद ने à¤à¤• फ़िलà¥à¤® à¤à¥€ बनाई थी, और यहाठघूमते ही लगता है मानो उसी दौर में पहà¥à¤à¤š गये हों, à¤à¤¸à¥‡ ही शहरों में आकर लगता है जैसे समय का पहिया कà¥à¤› थम सा गया है, मगर इस सबका अनà¥à¤à¤µ है मजेदार !
तंग और संकरी सड़क, दोनों तरफ लगी दà¥à¤•ाने, बीच में से आप का गà¥à¤œà¤°à¤¨à¤¾, हैरानी और विसà¥à¤®à¤¯ के à¤à¤¾à¤µ लिये, आप जैसे किसी मोहिनी के मोहपाश में बंधे, à¤à¤• के पीछे à¤à¤• होकर, यूठबढ़ते जा रहें है, जैसे जंगल में à¤à¤• मृगशावक के पीछे दूसरा मृगशावक हो लेता है, ठीक उसी पà¥à¤°à¤•ार से इक अनजानी सी मृगतृषà¥à¤£à¤¾ के मोहपाश में खिंचे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® सरोवर की तरफ अपने कदम बढायें जा रहें हैं | बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® सरोवर के करीब पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ ही, à¤à¤• पंडे नà¥à¤®à¤¾ गाइड से बात हो जाती है जो 50 रà¥à¤ªà¥ˆà¤¯à¤¾ लेगा, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® सरोवर की कथा बाà¤à¤šà¥‡à¤—ा और फिर बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी के मनà¥à¤¦à¤¿à¤° à¤à¥€ ले कर जायेगा | कथा तो वही है, जो मैंने ऊपर उचरी, पर ये सरोवर तो अपने पà¥à¤°à¤–ों की मोकà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ के यतà¥à¤¨ का à¤à¤• साधन à¤à¥€ है | बस आप जेब ढीली कीजिये, शà¥à¤°à¤®, साधà¥à¤¯ और साधक मिल कर उस फल पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ का आपके अंतरà¥à¤®à¤¨ को अहसास करवाने का बीड़ा उठा लेते हैं, बस शरà¥à¤¤ यही है आप वो सब करते जाà¤à¤ जो आपसे करवाया जा रहा है, कà¥à¤¯à¥‚ंकि डर तो अनदेखे अनजाने का है और उसी से मà¥à¤•à¥à¤¤à¤¿ का यहाठवà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° है, तथा धरà¥à¤® हमारी इसी मनोवैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥à¥€ को समà¤à¤¨à¥‡ और छलने का औजार ! जीते जी जिन माà¤-बाप के लिठना तो समय निकल पाया, ना पैसा और ना ही कà¥à¤› करने की नीयत, बस उनके नारायण वाहन होते ही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ मोकà¥à¤· दिलवाने का कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ लोठकि घाट पर तरà¥à¤ªà¤£ करवाने वालों की à¤à¥€à¤¡à¤¼ बड़ती जा रही है, और इधर सूरà¥à¤¯ देवता à¤à¥€ मंतà¥à¤°à¤®à¥à¤—à¥à¤§ हो जैसे अपनी जà¥à¤µà¤¾à¤²à¤¾ इस सरोवर में उड़ेलते जा रहें हों | धरà¥à¤®, आसà¥à¤¥à¤¾, विजà¥à¤žà¤¾à¤¨, विशà¥à¤µà¤¾à¤¸, अविशà¥à¤µà¤¾à¤¸ सब यहाठआकर गडमड हो जाते हैं, जग रचना मिथà¥à¤¯à¤¾ है, हम सब जानते हैं पर यहाठतो उसका अवलमà¥à¤¬à¤¨ करना ही है | दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ की परà¥à¤šà¥€ कटवाते हà¥à¤¯à¥‡ फिर से पकà¥à¤•ा कर लिया, à¤à¤¾à¤ˆ कà¥à¤› कमी तो नही रह गयी ! 50 रà¥à¤ªà¤²à¥à¤²à¥€ में आपको बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® सरोवर का इतिहास, पूजा विधि बताने के साथ-साथ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के अलावा कà¥à¤› और मनà¥à¤¦à¤¿à¤° तथा घाट वगैरह à¤à¥€ दिखला देने का सौदा कà¥à¤› बà¥à¤°à¤¾ नही ! बाकी यदि दकà¥à¤·à¤¿à¤£à¤¾ की परà¥à¤šà¥€ में उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कमीशन मिलती हो, तो वो हमारी जानकारी में नही ! कà¤à¥€ यहाठगà¥à¤°à¥ नानक à¤à¥€ आये थे और गà¥à¤°à¥ गोबिंद सिंह à¤à¥€ और यहाठसरोवर के à¤à¤• घाट का नाम à¤à¥€ गोविनà¥à¤¦ घाट है जिसे कà¥à¤› लोग अब गाà¤à¤§à¥€ घाट à¤à¥€ कहने लगे हैं…. समय-समय की बात है !

घाट से गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ साहिब का नज़र आता गà¥à¤¬à¤‚द

पà¥à¤·à¥à¤•र सरोवर में पितरों के मोकà¥à¤· निमित पूजा
वैसे, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® सरोवर की आमदनी अचà¥à¤›à¥€ है, मगर यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ की दरकार है, अत: à¤à¤¸à¥‡ में यदि यहाठकी संसà¥à¤¥à¤¾à¤à¤‚ अपनी आय का कà¥à¤› हिसà¥à¤¸à¤¾ कà¥à¤› बà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤¦à¥€ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥‹à¤‚ पर खरà¥à¤š कर दें तो बढ़िया हो जाये ! खैर, चलिये अब यहाठसे कà¥à¤› आगे बढ़ते हैं, सरोवर से कà¥à¤› दूरी पर ही बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी का काफी पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° है, वैसे आपको बताता चलूं कि मथà¥à¤°à¤¾, वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ के बाद पà¥à¤·à¥à¤•र à¤à¤• à¤à¤¸à¤¾ शहर है जिसके चपà¥à¤ªà¥‡-चपà¥à¤ªà¥‡ पर आपको मनà¥à¤¦à¤¿à¤° मिलेंगे और पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• मनà¥à¤¦à¤¿à¤° पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ से पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤¤à¤® ! हर मनà¥à¤¦à¤¿à¤° अपने में à¤à¤• अलग इतिहास समेटे हà¥à¤¯à¥‡ है, मगर इतनी जगहों पर à¤à¤• साथ ना तो जाना समà¥à¤à¤µ हो पाता है और ना ही उन पर ईमानदारी से लिखा जा सकता है इसलिठहम अपने आप को सिरà¥à¤« बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° तक ही सीमित रखेंगे | कà¥à¤› ऊंचे से चबूतरे पर सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ ये मनà¥à¤¦à¤¿à¤° अपने आप में विलकà¥à¤·à¤£ इस वजह से à¤à¥€ है कि इस के फ़रà¥à¤¶ के पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• हिसà¥à¤¸à¥‡ और सीढ़ी पर सिकà¥à¤•े गà¥à¤¦à¥‡ हà¥à¤¯à¥‡ हैं, कहते हैं कà¥à¤› तो चनà¥à¤¦à¥à¤°à¤—à¥à¤ªà¥à¤¤ के यà¥à¤— के à¤à¥€ हैं, पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° के समीप à¤à¤• कछà¥à¤ की आकृति है, जिसका मà¥à¤–, मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के गरà¥à¤-गà¥à¤°à¤¹ की तरफ है, अब चूंकि बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ का वाहन मोर है, सो अकारण नही कि आप को मोर के अनेकों à¤à¤¿à¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤šà¤¿à¤¤à¥à¤° मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की दीवारों पर à¤à¥€ नज़र आयें और सबसे बड़ी बात पूरे मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का परिदृशà¥à¤¯ ही नीला है, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾ जी की चार मà¥à¤– वाली à¤à¤• मूरà¥à¤¤à¥€ à¤à¥€, जिसे चौमूरà¥à¤¤à¤¿ कहा जाता है, यहाठसà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है | कà¥à¤² मिलाकर, à¤à¤µà¥à¤¯à¤¤à¤¾ के मामले में यह मनà¥à¤¦à¤¿à¤° यूठतो साधारण है पर इस शहर के मिजाज से पूरी तरह मेल खाता है, इसी मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के पà¥à¤°à¤¾à¤à¤—ण में कà¥à¤› और à¤à¥€ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° हैं, जिनमे से à¤à¤• बेसमेंट में शिवालय था, और जैसा कि हमे बताया गया कि यह शिवलिंग कई हजार वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ है, इस जगह के इतिहास और इसकी पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨à¤¤à¤¾ को देखते हà¥à¤¯à¥‡ विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ à¤à¥€ हो जाता है कि शायद वासà¥à¤¤à¤µ में ही रहा होगा |Â

हजार वरà¥à¤· पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾, शिवलिंग, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में
मनà¥à¤¦à¤¿à¤° से बाहर आ जायो तो ये शहर वही है, जिसका तिलिसà¥à¤® आपको चà¥à¤®à¥à¤¬à¤• की तरह से अपनी और आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ करता है | शहर की आबो-हवा मसà¥à¤¤, गलियाठमसà¥à¤¤, जगह-जगह आवारा घूमती गायें मसà¥à¤¤ और सबसे मसà¥à¤¤ और फकà¥à¤•ड़ तबियत लिये हैं इस शहर के आम जन और साधू | हर मत, समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ के साधू आपको पà¥à¤·à¥à¤•र की गलियों में मिल जायेंगे, हाà¤, ये बात अलग है कि असली कौन है और फरà¥à¤œà¥€ कौन इसकी परख आसान नही | मोटे तौर पर सबकी निगाह फिरंगियों पर होती है और फिर फिरंगी à¤à¥€ बड़े मसà¥à¤¤ à¤à¤¾à¤µ से महीनो इनके साथ ही घूमते रहते हैं, पता नही à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ दरà¥à¤¶à¤¨ के बारे में कितना वो जान पाते होंगे या कितना ये बाबा लोग उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ समà¤à¤¾ पाते होंगे पर इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखकर तो पहली नज़र में कà¥à¤› यूठलगता है जैसे गà¥à¤°à¥ और à¤à¤•à¥à¤¤ दोनों ही à¤à¤•à¥à¤¤à¤¿ के किसी à¤à¤¸à¥‡ रस में लींन हैं जिसकी थाह पाना आसान नही, जी हाठपà¥à¤·à¥à¤•र इस के लिठà¤à¥€ जाना जाता है | वैसे, ये बाबा लोग अपने इन फिरंगी à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर अपना पूरा अधिकार रखते हैं और आपको इन से घà¥à¤²à¤¨à¥‡-मिलने नही देते |
इस शहर की धारà¥à¤®à¤¿à¤•ता, और आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤•ता के इस बेà¤à¥‹à¤¡à¤¼ और आलौकिक रस में डूबे-डूबे से आप आगे बढ़तें हैं तो घाट के दूसरी तरफ ही गà¥à¤°à¥ नानक और गà¥à¤°à¥ गोबिंद सिंह जी की पà¥à¤·à¥à¤•र यातà¥à¤°à¤¾ की याद में बना ये शानदार गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ है, पà¥à¤·à¥à¤•र में आकर इस गà¥à¤°à¥‚दà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के à¤à¥€ दरà¥à¤¶à¤¨ ! और ऊपर से लंगर का समय ! लगता है ऊपर जरà¥à¤° कोई मà¥à¤¸à¥à¤•रा कर अपना आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ हम पर बरसा रहा है…ज़हे नसीब !!! Â

गà¥à¤°à¥ नानक देव जी की याद में बना इतिहासिक गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾
यदि बात पà¥à¤·à¥à¤•र की हो रही हो तो, यहाठà¤à¤• बात का जिकà¥à¤° और कर लें कि यहाठबनà¥à¤¦à¤° बहà¥à¤¤ है और उनमे à¤à¥€ ख़ास तौर पर उनकी à¤à¤• पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤¤à¤¿ लंगूर का तो वरà¥à¤šà¤¸à¥à¤µ है, पà¥à¤·à¥à¤•र आने वाले रासà¥à¤¤à¥‡ से लेकर घाट तक, हर जगह आप इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पा सकते हैं और हमारे जैसे तो अपने घर से निकलते ही अपने सामान के साथ-साथ गà¥à¤¡ और चना जरूर रखते हैं इनके लिये, बीच राह कहीं कार किनारे पर लगा, इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ कà¥à¤› खिलाने पर à¤à¤• अजब सी संतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ मिलती है | चलिà¤, अब लगे हाथ     यहाठकारà¥à¤¤à¤¿à¤• मास में लगने वाले उन दो मेलों का जिकà¥à¤° à¤à¥€ कर लें जिनके कारण पà¥à¤·à¥à¤•र देश विदेश में जाना जाता है, पहला मेला पूरे तौर पर धारà¥à¤®à¤¿à¤• है जो 5 दिन चलता है और इस दौरान आने वाले शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ इस बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® सरोवर में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ कर के मोकà¥à¤· की कामना करते हैं और दूसरा पà¥à¤·à¥à¤•र के ही बाहरी à¤à¤¾à¤— में लगने वाला पशॠमेला है, जिसमे पूरे राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ और आस-पास के राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से लोग अपने जानवरों जैसे ऊà¤à¤Ÿ, गाय, à¤à¥ˆà¤‚स, बकरी, गधा, à¤à¥‡à¤¡à¤¼ आदि बेचने-खरीदने आते है और अब तो यह मेले अंतरà¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤¤à¤° पर à¤à¥€ अपनी पहचान बना चà¥à¤•े हैं, और इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ देखने हजारों विदेशी परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• à¤à¥€ आते हैं | आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤•ता और धारà¥à¤®à¤¿à¤•ता के इस अनूठे मेल में रंगे हà¥à¤¯à¥‡ इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° का ये à¤à¥€ à¤à¤• अनूथा ही रंग है | धारà¥à¤®à¤¿à¤•ता से थोड़ा इतर मगर हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ की परंपरागत कृषि आधारित अरà¥à¤¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ और उसमे पशॠधन के महतà¥à¤µ को रेखांकित करता हà¥à¤† à¤à¤• परà¥à¤µ !

कà¥à¤› तो इतनी मितà¥à¤°à¤¤à¤¾ गांठलेते हैं कि कार पर ही सवार हो जाते हैं
पà¥à¤·à¥à¤•र में घूमते हà¥à¤¯à¥‡ महसूस होता है कि समय की यहाठकोई बंदिश नही, जितना à¤à¥€ समय हो, यहाठकम पढ़ जाता है, कà¥à¤¯à¥‚ंकि यह शहर तो हर बदलते पल के साथ à¤à¤• नये रंग के साथ आपके सामने आता है, यदि मà¥à¤–à¥à¤¯ सड़क से घाट तक आप गये तो à¤à¤• रंग, वापिस लौटे तो बिलकà¥à¤² बदला हà¥à¤† रंग, दिन में दस बार गà¥à¤œà¤°à¤¿à¤¯à¥‡, दस à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ पà¥à¤°à¤•ार के रंगो से आपका सामना होगा, इतनी विलकà¥à¤·à¤£à¤¤à¤¾ ! परनà¥à¤¤à¥ समनà¥à¤µà¤¯ à¤à¥€ इतना कि हर रंग दूजे में गà¥à¤‚ठा ही मिलेगा, हर बार !
यहाठसे निकलने की इचà¥à¤›à¤¾ तो नही, परनà¥à¤¤à¥ वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤°à¤¿à¤•ता, दारà¥à¤¶à¤¨à¤¿à¤•ता पर हावी हो जाती है और फिर हम इस शहर के तिलिसà¥à¤® और आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤•ता से बाहर निकल, à¤à¤• बार फिर से जयपà¥à¤° का रासà¥à¤¤à¤¾ पकड़ लेते है, यूठही बीच राह à¤à¤• खà¥à¤¯à¤¾à¤² आता है जब à¤à¥€ आप à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में कà¥à¤› समय गà¥à¤œà¤¾à¤° कर जाते हो तो फिर अकेले वापिस नही जा पाते ! या कम से कम उन à¤à¤¾à¤µà¥‹à¤‚ के साथ नही जा पाते, जिनके साथ आये थे ! वो शहर, उसकी दारà¥à¤¶à¤¨à¤¿à¤•ता, उसके वासी, सब सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤ बनकर जà¥à¤¡à¤¼ जाती हैं आपके अंतरà¥à¤®à¤¨ में, और फिर वो आपके अवचेतन का à¤à¤• हिसà¥à¤¸à¤¾ बनकर आपके साथ वापिस जाता है | कोई à¤à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ अकारण नही होती, हर यातà¥à¤°à¤¾ का à¤à¤• मनोरथ और à¤à¤• उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ होता है, कà¥à¤› परिà¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤ तथा बहà¥à¤¤ सा अपरिà¤à¤¾à¤·à¤¿à¤¤, और आपकी नियति आपकी यातà¥à¤°à¤¾ की निरनà¥à¤¤à¤°à¤¤à¤¾ में ही समाहित है | अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ ये सरà¥à¤µà¤¦à¤¾ असमà¥à¤à¤µ है कि आप घर बैठे-बैठे, यूठही अचानक किसी रोज़, घर पर ताला डाल, सैंकड़ों किमी दूर किसी अंजान से शहर में निकल आयें… à¤à¤²à¥‡ ही हम अपनी तà¥à¤šà¥à¤› बà¥à¤¦à¥à¤§à¤¿ वश तातà¥à¤•ालिक रूप से उन कारणों को जान नही पाते, मगर कà¥à¤› à¤à¤¸à¤¾ निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ ही होता है, जो समय और समठके बोध से परे होता है | बहरहाल, यहाठसे जाते हà¥à¤¯à¥‡ निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ तौर पर इस बात का संतोष है कि दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में अपनी तरह के सरà¥à¤µà¤¥à¤¾ इकलौते बà¥à¤°à¤¹à¥à¤® सरोवर और बहम मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के हमें दरà¥à¤¶à¤¨ का अवसर मिला, साथ ही उस जगह की चरण धूली तथा उस माटी को पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करने का मौका à¤à¥€ मिला, जिसकी रज़-रज़ को आदि काल से ना जाने कितने ही महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ की चरण पादà¥à¤•ायों के सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ का दà¥à¤°à¥à¤²à¤ अवसर पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हà¥à¤† होगा. और अब, यहाठसे जाते हà¥à¤¯à¥‡ इस बात की संतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ के साथ जा रहें हैं कि हम à¤à¥€ इस परंपरा के वाहक बन सके कि इस सरोवर के माधà¥à¤¯à¤® से ही सही, à¤à¤• बार फिर से अपने पà¥à¤°à¤–ों और पितरों को सà¥à¤®à¤°à¤£ कर के उनके लिये मोकà¥à¤· की कामना कर सकें | à¤à¤¸à¥‡ ही कà¥à¤› सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ और उनकी माया, चेतन को चैतनà¥à¤¯ की तरफ कà¥à¤› यूठपरिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ कर देती है, जिसके लिये कबीर ने कà¤à¥€ कहा होगा-
” कबीरा मन निरà¥à¤®à¤² à¤à¤¯à¤¾, जैसे गंगा तीर |
पीछे लागा हरी फिरे, कहत कबीर कबीर || “
और बस यूठही विचारों की इस à¤à¤à¤à¤¾à¤µà¤¤ के बीच à¤à¤• बार फिर से हमारी कार जयपà¥à¤° की तरफ बढ़ी चली जा रही है |
जबरजस्त अवतार जी… मेरे लिहाज़ से आपकी ये कहानी तो पुष्कर का आईना है जिसमे आपने हमे सांस्कृतिक,सामाजिक,और पर्यटन से जुड़ी सभी गतिविधिया..जिसमे क्या वर्तमानऔर क्या भूतकाल,सभी चीज़ेदिखा दी है,अपने खूबसूरत शब्दो से पिरोकर आपकी ये कहानी पुष्कर की खूबसूरती दिखाती है…लेख पढ़कर काफ़ी आनंद आया,धन्यवाद….
Hi राकेशजी
Many thanx for your comment…
पुष्कर वैसे तो खूबसूरत है ही, लेकिन आप देखिएगा इस पोस्ट पर आलोचना भी बहुत मिलेगी…..
Avatar Ji very nice post indeed. Pushkar might have imbibed tonnes of history within itself. But when I visited the place I found not even an ounce of real spirituality there just commercial interests of so called religious persons. Maaf Kijiyega…
Hi Rakesh ji
Thanx for the comment.
Sir, regarding your other point, I would like to just here that it is our perception about the place, which makes all the difference.
Needless to say, in my all posts, you will find one thing in common, where ever we visit, we do not go for solely from religious point of view, because when you go for the sake of religion and then there you find people, who try to dupe you, your sentiments hurt, it is obvious.
Just visit a place for exploration, minus its face value and enjoy all the things which come your way… this will make a lot of difference….
Always remember, all religions are made by people on this very earth, in specific times while keeping certain ideology in their minds, so you will see all good and bad traits in the followers also, after all they too are human and members of this society. How can we expect, the religious people do not need money and our love, affection, respect and devotion are sufficient for them… After all no one survives only on air and water…
Rakesh ji, please do not take it personally and just chill, keep traveling and keep writing,,, thanx and regards.
पाहवाजी
आपने तो पुष्कर का गज़ब और सजीव यात्रा विवरण लिखा है पढ़ कर हमारी भी पुष्कर यात्रा की यादे ताजा हो गई आपने यात्रा को काफी विस्तार से लिखा है और पूरा लेख पढ़ कर लगा की हम भी आपके साथ ही यात्रा कर रहे है। फोटो काफी अच्छे आये है। पुष्कर में इतना विशाल गुरुद्वारा भी है ये हमने आज आपकी पोस्ट पढ़ कर ही जाना।
Thanx Laddha ji for your comment.
You are right, even it was a surprise for us that Pushkar has such a vast gurudwara, although we were aware that Guru Nanak been to this place.
मेरे उपरोक्त कमेन्ट में पता नहीं नाम की जगह क्यों ?????? मार्क आ गए है।
Very good description and Photos. I was there in Feb and stayed in same hotel, which was mentioned in Mr. Mukesh Bhalse post on Ghumakkar. As my knowldge Pushkar is favourite in tourists due to lot of accomodation and beauty of this place. Thanks for sharing with us.
Thank you Surinder Sharma ji for your nice words.
undoubtedly, although the city is small, but it has plenty to offer.
As usual a great post !
It will be great if you could write some detail regarding hotels / resturants.
Thanx Mahesh ji for your comment.
Mahesh ji, wherever we stayed and dine, we definitely put them in the post. Since, in this tour, our base was Jaipur, so you could not find name of hotels of Ajmer and Pushkar.
Apart from that, Ajmer and Pushkar are not known for its food, and we usually avoid the stuff from the places which do not have credentials. In that case, pack of biscuits, fruits or chips do the job for us.
अवतार जी,
तीर्थराज पुष्कर की संस्कृति, नियती तथा अंतरात्मा को परिभाषित करता एक सशक्त तथा सुन्दर लेख तथा नयनाभिराम चित्रावली.
धन्यवाद.
बहुत- बहुत धन्यवाद, मुकेश जी आपकी टीप के लिये |
बेहद शानदार भाषा का प्रयोग किया है आपने, बिल्कुल शुद्ध … दुर्भाग्यवश हम लोग ऐसी जगहों और ऐसे लोगों के सानिध्य में रहते हैं कि सब खिचड़ी सी बन गयी है | बोलचाल में भी ना पूरी अंग्रेजी, ना हिंदी और ना पूरी पंजाबी , बस सबका घालमेल सा बन गया है | Congrats for having such a great vocabulary !
अवतारजी फट्टे चक दित्ते… पुश्कर का अति सजीव वर्णन लग रहा है मानो आपके साथ ही यात्रा कर रहे थे. उसपर आपकी आध्यात्मिक इनसाईटस ..मानो सोने पर सुहागा ।
आपने लिखा – जिस वजह से इस जगह पर ब्रह्मा का मन्दिर तो है पर इस मंदिर में उनकी कोई मूरत नही, क्योंकि एक श्रापित देवता की मूर्ती की स्थापना शास्त्र सम्मत नही | — पर नीचे ही चित्र में ब्रह्मा जी की मूर्ति का चित्र भी लगा है… तो सच क्या है ???
कुछ आत्मा को छूने वाले वाक्य थे
-प्रभामंडल (aura), केवल देवतायों या मनुष्यों की ही मिल्कियत नही, एक भरा पूरा शहर भी, अपने आवरण के चारों तरफ उसे समेट सकता है ( ये वाकई एक जबरदस्त इनसाईट है… )
-जीवन और मोक्ष के वो सिद्दांत, मौत के वो रहस्य, जिसे नचिकेता ने, पिता की आज्ञा समझ अपने जीवन त्याग को ही तत्पर हो, स्वयं यम से सीखा, आप उसे यूँ ही राह किनारे खड़े किसी सन्यासी से दस मिनट की चर्चा से जान सकते हो ! (सचमुच क्या ये इतना आसान है )
-त: ऐसे में यदि यहाँ की संस्थाएं अपनी आय का कुछ हिस्सा कुछ बुनियादी सुविधायों पर खर्च कर दें तो बढ़िया हो जाये ! (काश हमारे मंदिर ये समझ पाते)
-कबीरा मन निर्मल भया, जैसे गंगा तीर |
पीछे लागा हरी फिरे, कहत कबीर कबीर ||
(प्रेम गली अति सांकरी… वा में दो ना समाये ।
जब हम थे तब हरि नही…अब हरि है हम नाय ।।
आपकी लेखन-शैली अनुपम है…. विचार उच्च हैं… व दृष्टि निर्मल… वाहे गुरु दी मेहर ए तुहाडे उत्ते
SS सर हार्दिक धन्यवाद सर आपकी सारगर्भित टिप्पणी के लिये |
सर, ब्रह्म सरोवर और ब्रह्म मन्दिर दो अलग स्थान हैं. ब्रह्म मन्दिर में ब्रह्मा जी की चोमूरती है मगर वो भी मुख्य स्थान पर ना होकर अलग से एक जगह पर रखी गई है, जैसा कि आप ने फोटो में भी देखा होगा | वैसे मैंने आपको fb पर सरोवर में उस स्थान की फोटो भेजने के आलावा नंदन जी को भी एक फोटो भेजी है, इसी पोस्ट में add करने के लिये |
बेहद धन्यवाद सर, दोहे के लिये !
Avtar Ji,
Nice Post..
Description is as usual….. Excellent.. supported by nicely captured photographs..
Many thanx Naresh ji for the comment.
The credit of photos goes to my friend tyagi ji and my son Ravi, who does bear all the pain to edit them suitably.
Mr. Singh, you have a way with words. I am sure that if PWD of Ajmer reads this post, they wont believe that it is about their city :-)
I was there in the famous Animal Fair few years back. Incidentally there was also a hot balloon festival (recommended) during the same time and we happened to get a invite for the same as well. We had initially planned to stay for the night there but later decided to head back to Jaipur. You have already mentioned about the traffic and overall hygiene. There are a few places where you would see a lot of foreigners (and mostly of one genre) and over time these have become popular hang-out places which in my opinion is not because of spiritualism but some thing else. Whether it is Kasol, Rishkesh, Gokarna (I have not been there), McleodGanj or Pushkar, you would see them doing similar things.
You are so right about utilising some of the funds towards the infrastructure. A very good account of your travel to Pushkar. Thank you for sharing. I have inserted the photo of the temple.
Hi Nandan,
Is it possible to increase font size of Hindi posts and also to increase spacing between lines? It will make Hindi reading for middle aged guys like you & me easier!
Yes, it is. But no quick-n-easy way to do so. Even English text would probably benefit from a better type-face (having a better readability). Noted. Till it really happens, lets remind each other to work hard (esp with time fast receding from ageing vision)
नंदन जी क्यूँ डरा रहे हो सर … LOL
Nirdesh Sir, last time too I echoed with your advice on this matter.
And this time too, I shall be with you on this.
I do hope, Nandan ji will oblige us on this soon….
Many Thanks Nandan Ji for your nice words… I shall take it as a compliment!!!
Thanks for inserting the additional pic.
Hot air balloon must be a great affair.
Foreigners are usually found in all such places, which you mentioned absolutely correct. It is also right to said that it has little to do with spirituality. In an indirect way, I tried to point out the reason. Hope you will be agreed on this.
Thanx again for all the support from your side.
Hi Avtarji,
Mazaa aa gaya!
I always take some time out to read your posts. Just like the movie Gravity outdid Avatar (almost inconceivable), your post on Pushkar has outdone all your previous posts.
I have never been to Pushkar but after reading this would certainly want to spend some time there. I used to visit Varanasi a lot but never visited the ghats for the reasons in your post but after watching Raanjhanaa yesterday want to go there!
Thanks for sharing!
Hi Nirdesh Sir
Your words are always encouraging for me. I must admit and acknowledge this with wishthe core of my heart.
Sir, Banaras is my wish list too since decades, but some how could not get the right opportunity. May be time has not ripened yet…!!!
Ranjhanaa, of course arose once again this longing to visit this place one day…
But, right now, I can only say…. बना रहे बनारस!!!
Thanx once again for all your support.
बहुत पहले पुष्कर की यात्रा करी थी शायद १५ साल पहले जब में १२ साल का था पर मुझे आभी भी अच्छी तरह याद है की ब्रह्म सरोवर में बहुत मछलिया थी और ब्रह्मा मंदिर में बहुत शांति। आपकी इस पोस्ट के माध्यम से एक बार फिर से पुष्कर घूम कर आच्छा लगा।
जितेन्द्र जी, आपका बहुत धन्यवाद…
जैसे-जैसे आवागमन के साधन सुलभ होते जा रहें हैं और आम लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर हो रही है, धार्मिक पर्यटन भी उसी अनुपात में बढ़ रहा है, बढ़ती आबादी एक और मुख्या कारण है, भीड़ का | मगर in सबके बावजूद छोटे सहरों में घूमने का एक अलग ही मज़ा है, आशा है, आप भी सहमत होंगे |
अवतार जी
आपके अन्य लेखो की तरह इस लेख में भी व्याप्त आकर्षण की अनुभूति हम तक पहुँच गयी है। अपनी लेखन शैली की प्रसंशा करने हेतु आपने पुष्कर यात्रा के वर्णन द्वारा पाठको को एक और मौक़ा दे दिया है। वैसे जहाँ तक मेरी समझ का दायरा पहुँच सकता है तो आपके लेख पढने के उपरांत यह ज्ञात होता है की आप यात्रा करने के साथ ही उस स्थान विशेष के विषय में गहन शोध भी करते है जो की एक उम्दा पर्यटक होने का उचित उदाहरण हम सभी पाठको के समक्ष प्रस्तुत करता है।
पुष्कर यात्रा वर्णन हेतु धन्यवाद।
अरुण
बहुत धन्यवाद अरुण जी आपकी टीप के लिए
आशा है आप भविष्य में भी यूँ ही अपना स्नेह बनाएँ रखेंगे…
एक जिंदा दिल शहर मथुरा से इस मंच पर अवतरित हुए अपनी सकारात्मक सोच के जड़त्व का परिचय, सुनहरे अतीत की परिछाइयों में शाब्दिक सतत्व के महत्व को अपनी गुरुता के गुरुत्व द्वारा किन्ही सिसकती हुई आहों की आखरी पनाहगार के घनत्व व ममत्व के समत्व को लपेटे हुए अहम ब्रह्मास्मि के विराटत्व को समझाते, मिट्टी की सौंधी खुश्बू समेटे गांव के अस्तित्व में राम राम सा का देस लिये अकथ प्रेम की अकथ कहानी के अखिलत्व को सार्थक कर परम फकीर पूज्य कबीर जी का सा निर्मल मन लिये हमें तीरथराज पुष्कर ले जाने वाले व्यक्तित्व को मेरा सादर नमस्कार है.
प्रिय अवतार, नमस्कार, व्यस्त होने के कारण पोस्ट पर कम आ पाता हूँ यहाँ तक की प्रिय भालसे तथा सहगल जी के यात्रा वर्णन भी नहीं पड पाया. तीर्थराज पुष्कर का यात्रा वर्णन सजीव तथा सम्पूर्ण है, चित्र बहुत सुन्दर, आर.टी.आई. की कोई गुन्जाईश नही. धन्यवाद
आदरणीय त्रिदेव जी सादर प्रणाम
सर अभिभूत हूँ आपसे मिली सराहना से, केवल इस पोस्ट पर ही नही अपितु पहली ही पोस्ट से मिल रहे स्नेह से…
सर, जिस प्रकार आपने मेरी पिछली पोस्टों का जिक्र बेहद आत्मीयता से किया वो भाव विभोर कर गया…
सर, कभी किसी आलोचक की लिखी एक बात पड़ी थी कि आनंद लिखने वाले को नही, पड़ने वाले को आना चाहिए… लिखते हुए यही प्रयास रहता है, और आप की टिप्पणियाँ भी हमें यही एहसास करवाती है ।
सर, मुझे लगता है कि RTI तो घुमक्कड़ के लेखकों को लगानी होगी कि आखिर त्रिदेव जी इतनी बेहतरीन टिप्पणियां इतनी सरलता से कैसे कह जाते हैं… :)
Dear Pahwa Sir
As usual , i read this post also , seems to be real Darshan of Pushkar , Ghar baithe hi aap ki post se Complete awareness ho jati hai….
Please keep continue.
Although i found that some traveler write about their tea ,coffee , drinking water etc etc but thats their choice , in my opinion a Real Ghumakkar is the person who knows about the place deeply and spread the awareness to others also , like you…you seems to be right Ghumakkar.
So many thanks for giving such a nice awareness thru this website. Thansks
Another Ghumakkar
Parmender
Thanx Parminder ji for the comment. Sir सही कहा आपने घुमक्कड़ तो आप ही हैं, अपने राम तो साथ हो लेते हैं बस… :)
आदरणीय त्रिदेव जी सादर प्रणाम
सर अभिभूत हूँ आपसे मिली सराहना से, केवल इस पोस्ट पर ही नही अपितु पहली ही पोस्ट से मिल रहे स्नेह से…
सर, जिस प्रकार आपने मेरी पिछली पोस्टों का जिक्र बेहद आत्मीयता से किया वो भाव विभोर कर गया…
सर, कभी किसी आलोचक की लिखी एक बात पड़ी थी कि आनंद लिखने वाले को नही, पड़ने वाले को आना चाहिए… लिखते हुए यही प्रयास रहता है, और आप की टिप्पणियाँ भी हमें यही एहसास करवाती है ।
सर, मुझे लगता है कि RTI तो घुमक्कड़ के लेखकों को लगानी होगी कि आखिर त्रिदेव जी इतनी बेहतरीन टिप्पणियां इतनी सरलता से कैसे कह जाते हैं… :)
अवतार जी,
आपकी लेखन शैली बहुत ही बढ़िया है, आप किसी साधारण सी जगह का वर्णन भी इतने बढ़िया से करते है कि कोई भी प्राणी उस जगह की ओर खिंचा चला आए ! ब्रह्मा जी के बारे में जो जानकारी आपने दी वो काफ़ी रोचक है, ऐसे ही लिखते रहिए !
Many thanx Pradeep ji for your nice and kind words.
Just say one line, which I wrote to Shri Tridev ji
सर, कभी किसी आलोचक की लिखी एक बात पड़ी थी कि आनंद लिखने वाले को नही, पड़ने वाले को आना चाहिए…
अवतार सिंह….
असाधारण हिंदी भाषा शैली से शुशोभित आपका यह लेख मुझे बहुत अच्छा लगा | वैसे तीर्थराज पुष्कर के बारे में कई लेख पहले भी पढ़ चुका पर आपके लेख में कुछ नयापन लगा | आपके द्वारा खिची गयी फोटो ने वहाँ की संस्कृति, भिन्न प्रकार के रंगो और नजारों से बखूबी परिचय कराया |
वैसे पुष्कर के ब्रह्मा जी के मंदिर में कैमरा या मोबाईल फोन प्रतिबंधित है…तो आपने मंदिर के अंदर यह फोटो कहाँ लिए….
धन्यवाद
HI Ritesh Ji
Thanx for your nice words.
रितेश जी, वाकई पुष्कर घूमने के लिये और कुछ अन्य वजहों से एक अलग मिजाज का शहर है, जिसका अहसास आपको वहाँ की आबोहवा अपने आप ही दे देती है |
सही कहा आपने, यूँ तो फोटो खींचना मना है, मगर अक्सर ऐसी जगहों पर आपके गाइड काम आ जाते है |
Avtar ji,
Reading this after Nandan’s recommendation in monthly digest. Your philosophical manner of looking at the negatives of places like Mathura and Pushkar is very interesting. Indeed it is difficult to visit these places with only religion in mind due to overpowering greed and dishonesty prevalent there. Some of the quotes in this post are absolutely classic and demonstrate your strong grip on Hindi language, Indian culture, religion and human psychology. Keep writing.
Thanx Tarun ji for all the nice words you put in your comment.
You rightly said, greed etc are the part and parcel of such places, but one thing is sure, if you visit any small town in india, without keeping hype about the place in your mind, then you will definitely enjoy the place and content.
Thanx for reading and taking pain for registering your views.
dear avtar singh ji
बहुत ही प्रसन्नता होती है जब ऐसे सुन्दर सुरुचिपूर्ण भावो में पिरो कर आप अपने यात्रा वृतान्त प्रस्तुत करते हैं।
बहुत- बहुत बधाई के पात्र हैं।
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर,
ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर.
Hi Kamlansh ji
Thannk you very much for the comment and all the praise you showered in it.
Thanx for the nice doha, and please accept from my side too…
खुसरो पाती प्रेम की, बिरला बांचे कोय |
बेद, कुरआन, पोथी पड़े, प्रेम बिना का होय ||
इतनी खूबसूरती से आजतक मैंने किसी का ब्लॉग लिखा नहीं देखा ।खुद मैँ भी नहीं लिख पाती। एक महान और अनोखा मन्दिर जो सिर्फ धार्मिकता से जुड़ा है जहाँ जाना अक्सर लोग नहीं चाहते वहां के बारे में लिखना वो भी मन से लिखना कम लोग ही कर् पाते है। वहां गुरद्वारा भी हो सकता है मुझे मालूम नहीं था आज पहली बार आपका ब्लॉग पढ़ा ।इतनी ख़ुशी हुई की बता नहीं सकति।
Avar Singh Sir, Nice Descriptions . aur hindi me to Sone Pe Suhaga . I visited Pushkar in 2011 but not so minutely as described. keep it up sir G.
Good to see this getting re-published. Its always a delight to read Mr. Singh’s sublime take on a place. Thank you.