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केदार यात्रा: ऋषिकेश – रुद्रप्रयाग – केदारनाथ

आज सुबह करीब 2 बजे अलार्म बजने से पहले ही मेरी आँख खुल गयी, लगता था जैसे हमारे मच्छर मित्र भी चाहते थे कि हम रात भर माँ गंगा के अलौकिक रूप का दर्शन करते रहे और इसमें इन मच्छरों ने कोई कसर बाकी ना छोड़ी. ये मच्छर मित्र ही थोड़ी थोड़ी देर में हमें जगा दिया करते, ऐसे में भला अलार्म की क्या जरुरत! उठते ही कुंदन को जगाया कि चल भाई, कहीं ये बस भी निकल गई तो फिर कहीं मझधार में ना लटक जाएँ. कुंदन कल रात की थकान के मारे उठने के मूड में नहीं था पर फिर हिम्मत दिखाकर उठ ही गया. गंगा की दो चार बूँदें अपने ऊपर छिडकी और हो गया गंगा स्नान…तीन बजे से पहले ऋषिकेश बस स्टैंड पर पहुँचना था दिन की पहली बस पकड़ने के लिए, इसलिए जल्दी जल्दी अपने अपने झोले टांगकर निकल पड़े हम लोग. सुनसान गलियों से गुजरते हुए, शुरुआत में ही हमें कुछ कुत्तों से दो चार होना पड़ा जिन्हें देखकर अपनी हालत थोड़ी ढीली हो जाती है, बिना कोई प्रतुय्तर दिए और ऐसा ढोंग रचकर कि जैसे इन्हें देखा ही नहीं पतली गली से निकल लिए. थोड़ी दूर तक तो ये पीछा करते रहे, पर जब इनका प्रातःकालीन राग बंद हुआ, तब कहीं जाकर जान में जान आयी. झूला पुल पर पहुँचकर, सुबह के दो बजे गंगा की पावन लहरें असीम शान्ति और शीतलता सी प्रदान करती प्रतीत हो रही थी, ऐसे में कुछ क्षण यहाँ इस अप्रतिम आनंद का सुख भोगकर फिर यात्रा शुरू कर दी. लोजी पुल पार करते ही कुत्तों का एक और झुंड हमारा स्वागत करने को तत्पर बैठा था, पर यहाँ कुछ और लोग मौजूद थे जिससे हमें कुछ साहस मिला और हम इन कुत्तों से पीछा छुड़ाकर मुख्य सड़क पर पहुँच गए. प्रातः के इस पहर में भी अध्यात्मिक नगरी में हमारे सिवा कुछ अन्य लोगों के चहलकदमी जारी थी. घूमते घामते इस प्रातःकालीन बेला का मजा लेते हुए और फोटो खींचते हुए चले जा रहे थे, ऐसे में समय का पता ही नहीं चला. देखा तो तीन बजने में लगभग 15 मिनट ही बाकी थे. ऐसे में कुछ उतावली सी होने लगी और कदमों की रफ़्तार बढ़ाने लगे, चलते चलते सोचा की कोई वाहन आदि मिल जाता तो अच्छा रहता. वैसे इस समय भी यहाँ सडकों पर कुछ वाहन चल रहे थे. एक विक्रम वाला आता दिखाई दिया तो हाथ देकर रोका और पूछा कि बस स्टैंड चलोगे और वो सहर्ष ही राजी हो गया और रास्ते से कुछ और सवारियाँ भी उठा ली.

ऋषिकेश में प्रातः पद यात्रा के दौरान…

हम लोग समय से पहले ही यहाँ पहुँच गए थे पर टिकट काउंटर अभी भी बंद था, लेकिन एक मिनी बस चलने को तैय्यार खड़ी थी. पता चला कि रुद्रप्रयाग तक जाएगी, बिना समय गवाँए, हम लोग बस में चढ़ गए. मैंने बस में चढ़ने से पहले ही कुंदन को बताया था कि देख भाई अगर खुबसूरत दृश्यों का आनंद लेते हुए सफ़र करना हो तो आगे कि सीट में बैठेंगे और अगर सोना हो तो पीछे वाली किसी भी सीट पर बैठ जाना. मैंने हमेशा की तरह अपनी पसंदीदा चालक के साथ वाली सीट चुनी और कुंदन ने भी इसमें मेरा साथ दिया. बस के चलने के साथ ही हमारी केदार यात्रा को हरी झंडी मिली और हम बड़े उत्साहित से यात्रा का आनंद लेने लगे. आज का हमारा लक्ष्य केदारधाम में बसेरा करने का था. फिर भी अगर कहीं फंस गए तो कम से कम गौरीकुंड तो पहुँचना ही था. रास्ता सीधा साधा था देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, गुप्तकाशी होते हुए सीधा गौरीकुंड जहाँ से केदारधाम की 14 किमी की पैदल यात्रा शुरू होती है.

जैसा कि मुझे पता था थोड़ी देर में जब नींद सताने लगेगी तो कुंदन अपने आगे बैठने के निर्णय पर पछतायेगा और हुआ भी कुछ ऐसा ही. उजाला होते ही कुंदन अपने लिए पीछे एक सीट की तलाश करने लगा और भाग्यवश एक सीट पर उसने कब्ज़ा जमा ही लिया. बस इस बार ब्यासी ना रूककर सीधे देवप्रयाग जाकर रुकी जहाँ हम लोगों ने शौच आदि से निवृत होकर, एक ढाबे पर जमकर चाय पराँठे पेले. बस फिर श्रीनगर होते हुए रुद्रप्रयाग की और अग्रसर हो चली. यहाँ पहुँचकर हमें गौरीकुंड की बस लेनी थी, बस का पता किया तो इसके आने में अभी थोडा समय था. पर समय हमारे लिए बड़ा कीमती था, इसलिए जीप वालों से पूछतात करने पर एक जीप सीधा गौरीकुंड के लिए मिल ही गयी, पर वो भी फिलहाल सवारियों की बाट जोह रही थी. हालाँकि मेरी पसंदीदा आगे वाली सीट पर पहले ही किसी और ने कब्ज़ा किया हुआ था, इसलिए पीछे की सीट से ही संतुष्ट रहना पड़ा. जल्द ही जीप फुल हो गयी और यात्रा फिर शुरू. यहाँ से आगे की यात्रा में हमें सौभाग्यवश कहीं कुछ खास ट्रैफिक जाम नहीं मिला. और हम लोग अगस्तमुनि, गुप्तकाशी होते हुए लगभग दो बजे गौरीकुंड पहुंचे. हमारी आज की प्लानिंग सफल रही, ऋषिकेश से गौरीकुंड हमें कुल मिलाकर लगभग 11 घंटे लगे बस/जीप में सफ़र करते हुए.

एक पहाड़ी दंपत्ति अपने बाजों के साथ…

 

तप्त कुंड…

 

गौरीकुंड पहुँचकर बड़ा सुकून मिला पर थोडा अचरज भी जरुर हुआ जब हमने यहाँ सेना की टुकड़ियों को इतनी तादात में काम करते हुआ पाया. सारा माजरा थोड़ी देर में वहां हो रही अनाउंसमेंट से समझ में आया. दरअसल केदारनाथ में कपाट खुलने के पहले से ही लगातार बर्फ़बारी हो रही थी और 50 साल से ऊपर के लोगों और ह्रदय के मरीजों को ऊपर जाने से रोका जा रहा था जिसका कारण था अब तक यहाँ ठण्ड के कारण हुई यहाँ 5 मौतें, यह एक ह्रदय विदारक घटना थी. सेना के जवान यात्रियों को सभी प्रकार की मेडिकल सुविधाएँ प्रदान कर रहे थे. चूँकि कुंदन इस तरह की ऊंचाई पर पहली बार आया था, इसलिए उसने भी सेना के शिविर में जाकर अपनी डॉक्टरी जाँच कराई और अपने लिए कुछ आवश्यक दवाईयाँ ली. गौरीकुंड से केदारनाथ की 14 किमी की पद यात्रा कोई भी स्वस्थ व्यक्ति लगभग 6 या 7 घंटे में पूरी कर सकता है. पद यात्रा के अलावा यात्रियों के लिए खच्चर, पालकी और हेलिकॉप्टर की सुविधा भी मौजूद है. यात्रा के शुरू में ही डंडी व कंडी वाले काउंटर हैं जहाँ से आप इनकी बुकिंग करा सकते हैं जबकि हेलिकॉप्टर की बुकिंग फाटा से की जा सकती है.

 

खच्चर मंडी…

 

पालकी…

 

अभी लगभग 2 ही बजे थे हमने सोचा पद यात्रा शुरू करते हैं, केदार ना सही तो कम से कम रामबाड़ा तक तो पहुँच ही सकते हैं रात बिताने के लिए. तप्त कुंड के पास पहुंचे तो एक बार मन किया कि एक डुबकी लगा ही ली जाये, पर फिर समय की दुहाई देकर स्नान रद्द कर दिया गया. रंगबिरंगे बाज़ार से गुजरते हुए, हम लोगों ने चढ़ाई शुरू कर दी. चूँकि यात्रा अभी शुरुआती दौर में ही थी इसलिए यात्रियों से ज्यादा सामान ढोने वाले लोगों की तादात ज्यादा थी जो अपनी दुकानों और यात्रियों के लिए आवश्यक सामग्री ले जा रहे थे. हमारे लिए ये अच्छा ही था, कम भीडभाड में यात्रा का ज्यादा आनंद लिया जा सकता है.

पहाड़ों को चीरकर आती माँ मन्दाकिनी…

 

एक मील के पत्थर के पास कुंदन…

 

हरीभरी घाटी…

 

कुछ मेहनतकश कदम…

 

रास्ते भर कुछ तीर्थ यात्रियों के अलावा कई संतों की टोली के भी दर्शन हुए. पर एक विदेशी महिला यहाँ लोगों के आकर्षण का केंद्र लगातार बनी रही, ये भगवा वस्त्रधारी महिला भक्ति भावना से अभिभूत नंगे पैर ही पद यात्रा कर रही थी और थोड़ी थोड़ी हिंदी भी जानती थी, हमारे लिए ये अनुभव किसी प्रेरणा से कम नहीं था. मनमोहक वादियाँ, कलकल बहती हुई मन्दाकिनी, खुबसूरत झरने और सहयात्रियों का उत्साह सब मिलकर यात्रा को आनंददायी बना रहा था, अब बस इंतज़ार था बर्फ़ीली चोटियों के दर्शन का. और रामबाड़ा पहुँचने से पहले ही इस विस्मयकारी दृश्य के दर्शन हो गए. लगभग 5 बजे से पहले ही हम लोग रामबाड़ा पहुँच चुके थे, ऐसे में कुंदन का थकान से बुरा हाल था. पर फिर भी हम दोनों ने यात्रा जारी रखने का निश्चय किया. जैसे जैसे रामबाड़ा से परे जा रहे थे कुदरत हम पर अपना जादू बिखेरे जा रही रही थी.

खुबसूरत झरना…

 

घाटी में रामबाड़ा और पीछे हिमशिखर…

 

सामान ले जाते लोग…

 

खुबसूरत घाटी…

 

गरूड़चट्टी के नजदीक ही हमें प्रकृति की तरफ से एक खुबसूरत उपहार मिला, हमारे जीवन की पहली बर्फ़बारी. ऐसा मंज़र आज से पहले कभी नहीं देखा था, हलके हलके रुओं की तरह गिरती बर्फ एक खुबसूरत एहसास दिला रही थी. ये मौका भला हम अपने हाथ से कैसे जाने देते और हम लोग बर्फ़बारी का आनंद लेते हुए आगे बढ़ने लगे. धीरे धीरे अंधेरा सा होने लगा और अब रास्ता देखने में भी दिक्कत आने लगी थी. पर चिंता की कोई बात नहीं थी क्योंकि हम केदारधाम से नजदीक ही थे.

रामबाड़ा ऊपर से…

 

बर्फ़बारी का आनंद लेता कुंदन…

 

बर्फ़बारी जारी है…

 

चूँकि रास्ते भर हलकी हलकी पिघली हुई बर्फ पड़ी थी जिस पर चलना थोडा मुश्किल हो रहा था, पर हमने कर डाला और आखिरकार हम पहुँच ही गए भोले के द्वारे लगभग 8 बजे. स्वागत द्वार से पहले और इसके बाद बर्फ का अम्बार लगा था, किसी तरह एक दुसरे को सहारा देते देते हम लोग ऊपर पहुंचे. चूँकि अभी यात्रियों की आवाजाही ज्यादा नहीं हुई थी इसलिए हमें 300 रुपए में रात बिताने का एक ठिकाना मिल गया. थकान और ठण्ड के मारे हाल इतना बुरा हाल था का कि दुबारा बाहर जाने की हिम्मत ही नहीं पड़ी और हम लोग कल सुबह जल्दी उठकर भोले के दर्शन का वायदा करके सो गए…क्रमशः…

केदार यात्रा: ऋषिकेश – रुद्रप्रयाग – केदारनाथ was last modified: January 19th, 2025 by Vipin
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