उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में स्थित एक छोटा सा नगर है वृन्दावन जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाल्यकाल का अधिकाँश समय व्यतीत किया था। यह नगर श्री कृष्ण के जन्मस्थान मथुरा से मात्र 10 – 15 कोलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जहां राधा-कृष्ण के प्रेम रस की अनुभूति श्री बांके बिहारी मंदिर और प्रेम मंदिर के प्रांगण में कदम रखते ही हो जाती है।
धार्मिक यात्रा करने के नाम पर हमारा परिवार केवल हरिद्वार, ऋषिकेश, श्री बालाजी (मेहंदीपुर) और वैष्णो देवी तक ही सीमित रहा है तथा दिल्ली से अत्यंत ही समीप होने के बावजूद भी हम कभी मथुरा-वृन्दावन की यात्रा न कर सके। किन्तु यमुना एक्सप्रेस के नवनिर्माण और हमारी पारिवारिक कार के आगमन के पश्चात अब तो मन में यह आशा बलवती होती गयी की वृन्दावन अवश्य ही जाना है।
एक दिन बातो ही बातो में मैंने अपनी माताश्री और बहना से पूछा की यदि आगामी शनिवार-रविवार को हम वृन्दावन की एक छोटी सी यात्रा पर चलने की योजना बनाये तो कैसा रहेगा? विचार सभी को पसंद आया परिणमतः दिनांक 20.07.2013 को हम सभी (मम्मी, छोटी बहन, मैं और हमारी कार) तैयार थे अपनी पहली वृन्दावन यात्रा के लिए। आप सभी को लग रहा होगा की यहाँ कार का नाम लेना तो अनिवार्य नहीं था किन्तु मित्रो सुरक्षा एवं सुविधा की दृष्टि से परिवार के साथ लम्बी यात्रा पर जाने से पूर्व अपनी कार का निरीक्षण करवाना अत्यंत ही आवश्यक होता है।
पहली बार वृन्दावन की यात्रा करने हेतु हम सभी लोग अत्यंत ही उत्साहित थे और अपने इसी उत्साह के चलते उस दिन हम तीनो सुबह 04.30 बजे से उठाकर जुट गए अपनी पैकिंग करने और नाश्ता बनाने में। इन सब कामो को पूरा करते-2 हमें तकरीबन 08 बज गए घर से निकलते हुए लेकिन अभी तो पूरा दिन अपने पास था तो यही सोचते हुए हमने गाड़ी का इंजन स्टार्ट किया और निकल पड़े एक ऐसे सफ़र के लिए जिसका हमें बिलकुल भी पूर्वानुमान न था। दिल्ली के द्रैफिक का तो कोई जवाब ही नहीं है पाठको, सुबह-2 वो भी शनिवार का दिन जव अधिकतर सरकारी और अर्ध-सरकारी कार्यालय बंद रहते है, ऐसे में भी ट्रैफिक में रुक-2 कर चलना थोडा परेशान करता है, लेकिन अगर मन उत्साहित हो और एक अनजान सफ़र की सोची हुयी मंजिल आपके इंतज़ार में बैठी हो तो इन सब से आपका लक्ष्य प्राप्ति में कोई अधिक प्रभाव नहीं पड़ता। धीरे-2 नौएडा और फिर ग्रेटर नौएडा में प्रवेश करने के उपरांत मौसम भी समय के साथ अपने मूड में परिवर्तन कर रहा था। ग्रेटर नौएडा का हरियाली से ओत-प्रोत मार्ग जो सीघे परी-चौक तक जाता है तथा ग्रेटर नौएडा एक्सप्रेस वे की सीमा भी यही से आरंभ होती है, उसकी सुन्दरता और निरंतर चलते ट्रैफिक में आप शायद कभी निराश नहीं हो सकते। साफ़ सुथरी लम्बी सड़क और उसके दोनों तरफ फैली हरित आभा आपके सफ़र को और अधिक सुकून भरा बना देती है। पाठको यहाँ विशेष रूप से एक बात और आप सभी के सम्मुख बताना चाहूँगा की उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रेटर नौएडा एक्सप्रेस वे के निर्माण द्वारा एक अत्यंत ही सुगम पथ तैयार किया है जो दिल्ली को आसानी से अलिगढ़, वृन्दावन, मथुरा और आगरा से जोड़ता है। यह पथ न केवल आपके बहुमूल्य समय की बचत करता है अपितु आपको अवसर प्रदान करता है अपने मित्रो व् परिवारजनों के साथ खुले आकाश के नीचे दुनिया के शोरोगुल और प्रदूषित वायु से रहित कुछ पल बिताने का जहाँ दूर तक विस्तृत कृषि भूमि और उस पर उड़ाते पक्षियों का कलरव मात्र ही मन को एक अलग दुनिया से जोड़ देता है। किन्तु पाठको यह अवश्य ध्यान रखे की इस मार्ग पर कुछ ऐसे भी लोग यात्रा करते है जो केवल अपने गति प्रेम की प्राप्ति और संतुष्टि हेतु अपने वाहन को वायुयान बनाकर उसे बेतहाशा भगाते हुए हताशा का शिकार बन जाते है। अतः मेरा आप सभी से यह विनम्र निवेदन है की इस पथ पर 100 किमी प्रति घंटा की रफ़्तार से आगे कदापि न बढे क्योंकि इतनी गति ही पर्याप्त है आपको अपने गंतव्य स्थान तक पहुँचाने हेतु।
खैर चलिए अब हम आगे बढ़ते है और बात करते है प्रक्रृति की। प्रातः काल की ठंडी-2 बयार हमारे मुख से लेकर ह्रदय तक स्पर्श कर रही थी तथा उससे प्राप्त आनंद का वर्णन करना तो शायद मेरे लिए असंभव हो, आखिर प्रकृति से प्राप्त हर एक वस्तु व् पदार्थ अमूल्य जो होते है तथा जिनका हम लोग बहुत ही निर्ममता से दोहन किये जा रहे है, परिणामतः केदारघाटी जैसी घटनाए जन्म ले रही है।
अब वक्त हो चला था चुंगी कर देने का जिसका संतरी रंग से बना साइन बोर्ड आप को दूर से ही दिखाई दे जाता है। दिल्ली से वृन्दावन तक का चुंगी कर रु 220/- लगता है तथा रसीद देते हुए चुंगी कर्मचारी आपको यह जरूर बताता है की वापसी की रसीद भी अभी कटा लेने पर तकरीबन 10% तक की बचत की जा सकती है। किन्तु उसके लिए आपको समय-सीमा का ध्यान रखना पड़ता है अर्थात अगले 24 घंटे में वापसी निश्चित रूप से करनी है। यहाँ से थोड़ा और आगे बढ़ने के पश्चात खान-पान हेतु रेस्टोरेंट भी उपलब्ध है किन्तु रेट शायद आपको ज्यादा वाजिब न लगे। उदाहरणार्थ चाय का एक कप रु 20/- में मिलता है और चाय का स्वाद तो ऐसा की मानो च्यवनप्राश का तरल रूप पी रहे है। ऐसा शायद इसलिए क्योंकि एक ही बर्तन में चायपत्ती, अदरक और इलायची को बारम्बार उबालने से चाय किसी आयुर्वेदिक पदार्थ का रूप ले लेती है। चाय का प्याला गटकने के साथ ही बारिश की बूंदे रिमझिम-2 बरसने लगी और उसके बाद बारिश का जो दौर आरम्भ हुआ उसका वर्णन तो सभी न्यूज चैनल्स पहले ही कर चुके है। ज्ञात हो की दिनांक 20.07.2013 को दिली सहित अन्य सभी क्षेत्रो में भारी बारिश हुयी थी जो की मानसून सीजन की पहली और सबसे अधिक बारिश थी और जिसने जगह-2 वाटर लोगिंग की समस्या पैदा कर दी थी। अब तो ऐसा लग रहा था जैसे जुलाई माह में ही आकाश और धरती फालगुन मास में आने वाली होली का आनंद ले लेना चाहते हो। दूर-दूर तक चलते वाहनों के हिलते वाईपर और जगमगाती लाल-पीली लाईटे उस बरसते साफ़-सफ़ेद जल में एक अलग ही दृश्य की रचना कर रहे थे।
थोड़ा और समय बीतने के साथ ही हमें अगला साईन बोर्ड दिखायी दिया जिस पर यह अंकित था की वृन्दावन जाने हेतु कृपया बाय़े मुडे। बाय़े मुडते ही आप प्रवेश करते है वृन्दावन के खेतो में जिनके बीचोबीच आने और जाने के लिए एक पक्की सड़क बनी हुयी है जिस पर हर प्रकार का वाहन आसानी से चल सकता है। यह तकरीबन 6-7 किमी लंबा संकरा किन्तु सुगम रास्ता है जो आपको वृन्दावन के मुख्य स्थान (परिक्रमा मार्ग जो की इस्कोन मंदिर के समीप है) तक ले जाता है।
इस मार्ग पर एक छोटा सा पक्का पुल भी है जो की यमुना नदी के ऊपर बना हुआ है तथा यहां से आप यमुना के दर्शन आसानी से कर सकते है बस केवल आपको अपने वाहन को पुल के ऊपर ही एक साइड लगा कर उसकी पार्किंग लाइट आन करनी है। पाठको यमुना नदी का जल यहाँ इतना स्वच्छ है की मेरे जैसे दिल्ली वासी अपनी करनी पर शत प्रतिशत शर्मिन्दा हो जाये।
वृन्दावन के परिक्रमा मार्ग में प्रवेश करने (11 बजे) के उपरांत ही आपको बहुत सारे विदेशी कृष्ण भक्त राधे-राधे और हरे कृष्ण-हरे कृष्ण का जाप करते हुए दिखाई और सुनाई पड जाते है। बारिश के पानी का वेग भी उनकी श्रद्धा में किसी प्रकार की कमी नही कर पा रहा था। परिक्रमा मार्ग पर धीरे-2 आगे बढ़ते हुए हमें किनारे स्थित श्री महावर वैश्य भवन नामक एक धर्मशाला दिखाई दी जिसके भीतर गाडी घुसाने के पश्चात वहां उपस्थित कर्मचारी ने मात्र रु 600/- में एक वातानुकूलित कमरा अगले एक दिन के लिए किराए पर दे दिया। कमरा छोटा था किन्तु साफ़ था और फिर कमरे में रहना भी किसे था हम तो केवल गाड़ी के लिए पार्किंग स्पेस और रात्रि में सोने के लिए केवल एक उचित स्थान चाहते थे। बाकी समय तो हमें घूमते हुए बिताना था किन्तु यहाँ बारिश ने हमारा सारा प्लान खराब कर दिया और लगातार हो रही बारिश ने हमें मजबूर कर दिया कमरे के अन्दर खुद को बंद रखने के लिये। अब तो केवल धर्मशाला की बल्कोनी ही बची थी जहा से हम बाहर का नजारा देख कर मौसम का लुत्फ़ उठा सकते थे।
तकरीबन शाम के चार बजे बारिश का सिलसिला थमने लगा और हम सभी ने बाहर निकलकर श्री बांकॆ बिहारी जी के दर्शन करने के लिए स्वयं को तैयार किया। बाहर निकलते ही एक साइकिल रिक्शा वाले से रु 20/- प्रति सवारी पर किराया तय हुया जो की दुगुना है क्योंकि वापासी में ऑटो रिक्शा ने हम से केवल रु 10 /- प्रति सवारी लिये। पाठको श्री बांके बिहारी जी के मंदिर प्रांगन में कदम रखते ही हमें यह अहसास हो गया था की अब अगले कुछ क्षणों में जो होने वाला है वैसा शायद ही कभी हमने देखा हो। दूर दूर से आये श्री कृष्ण के भक्तो से पूरा मंदिर अटा पडा था, ऊपर से सभी के हाथो व् सर में रखे हुए बड़े-2 सन्दूक आपको अन्दर जाने से रोक रहे थे। प्रवेश द्वार के नाम पर केवल एक संकरी गली थी जिससे लॊग आ भी रहे थे और जा भी रहे थे। साथ ही इस गली में साइड में बैठे प्रसाद (पैडा) वालो की दूकान, उफ़्फ़…। भरसक प्रयास करने के पश्चात भी हम तीनो मंदिर में प्रवेश करने से वंचित रह गए और उस पर तुर्रा यह की क्या महिला और क्या बुजुर्ग-बच्चे, सभी धक्कामुक्की का शिकार हो रहे थे। यह साफ़-साफ़ मंदिर प्रशासन की ही गलती है की प्रवेश और निकास की कोई उचित व्यवस्था नही की गयी है तथा इस तरफ ध्यान देने की अति आवश्यकता है। थके-मंदे, पसीने में तर-बतर हम लोगो ने फैसला किया की श्री बांके बिहारी जी को बाहर से ही हाथ जोड कर प्रणाम करते है और इस्कान मंदिर चलते है।
अब बात करते है इस्कान मंदिर की। यह मंदिर अपने आप में अत्यंत ही अनूठा है। यहाँ आपको भजन-कीर्तन मंडली के रूप में बहुत सारे विदेशी (अंग्रेज) श्रद्धालु दिखायी देते है जो हिन्दी भजनों को स्वयं गाते है और आप को मजबूर कर देते है श्री कृष्ण के रंग में रंग जाने को। विदेशी महिलाए ठेठ हिन्दुस्तानी संस्कृति में डूबी हुयी सी लगती है और इस बात का प्रमाण आपको तभी पाप्त हो जाता है जब आप उन के माथे पर लाल बिंदी, हाथो में चूडिया और शरीर पर गोपी वस्त्र देखते है। गोपी वस्त्र एक ख़ास तरह का परिधान है जो लगभग साडी का ही रेडीमेड रूप है। विदेशी पुरुष भी अपने सर के सारे बाल मुंडा कर और सफ़ेद अंगरखा पहन कर लींन है श्री कृष्ण के गुणगान मे। पाठको यह सोच कर ही मेरा मन प्रफुल्लित हो जाता है की विदेशी परम्परा को त्याग कर वर्षो से यह विदेशी नागरिक हमारे ही देश में हमारी ही संस्कृति की रक्षा में दिन रात लगे हुए है.
इस्कान मंदिर में कुछ पल बिताने के पश्चात अब सभी को भूख लगने लगी थी सो हमने होटल भारती में भोजन करना तय किया क्योंकि यहाँ इस होटल का नाम थोड़ा ज्यादा ही प्रसिद्द है। होटल के रेट ठीक-ठाक है किन्तु भोजन की गुणवता शायद उतनी अच्छी नही थी जितना लोगो के मुख से सुन रखा था। घूमते हुए हमें रात्रि के दस बज गए और नींद भारी आँखों से हमने अपनी धर्मशाला की तरफ रुख किया।
हमारी धर्मशाल के केयरटेकर, जो की वयवहार से बहुत ही नेक और सहायक थे ने हमें बताया की कुछ ही दूरी पर प्रेम मंदिर स्थित है जो की दर्शनीय होने के साथ ही कला की दृष्टि से अत्यंत ही मनोरम भी है। बस फिर क्या था, अगली प्रातः रविवार के दिन हम सभी निकल पड़े प्रेम मंदिर की वास्तुकला के दर्शन करने और उसके पश्चात कला के जिस रूप से हमारा साक्षात्कार हुया वह अविस्मरनीय है। मूर्ति कला और उन पर रंगों की छटा का अनूठा संगम आपको विस्मय कारी आभास करा देता है। इस मंदिर में केवल मूर्तिकला के माध्यम से ही श्री कृष्ण के जन्म से से लेकर कंस वध तक का वर्णन किया गया है जिसका कोई जवाब नही है। इस मंदिर की खूबसूरती का अंदाजा आप इन फोटो को देखकर लगा सकते है।
प्रेम मंदिर में तकरीबन 2 घंटे बिताने, भरपेट भोजन करने और रास्ते के लिए खाना पैक करवाने के पश्चात हम सभी स्थानीय बाजार में लौट आये कुछ स्थानीय वस्तुओ और मिठाईयों का स्वाद चखने के लिये। यहां रु 250/- प्रति किलो की दर से आपको यहाँ का मशहूर पैडा मिल जाता है तथा सारा बाजार राधा-कृष्ण की तस्वीरों वाली टीशर्ट, चादरों, व् अनेक वस्तुओ से भरा मिलता है।
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Hi Arun
Welcome to Ghumakkar!!!
Very nice post with beautiful pics.
This year, we too visited the same place i.e. Mathura, Gokul, Vrindavan. Agra etc. And a few of my articles are also available on Ghumakkar.
While reading your post, it seems remembering all those moments once again.
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Very well written and detailed post. Photos so good. Your car also beautiful. Thanks a lot.
Surinder Sir,
Thanks a lot for blessing me with full hands through your comments on my article.
Arun
Very well written !
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Surinder Sir,
Thanks a lot for blessing me with full hands through your comments on my article.
Arun
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Arun Ji..Welcome on Ghumakkar..
Very nice post..Photos are too good.
We, too ,have visited Vrindavan,Mathura and Agra last year but still it is not pen down on Ghumakkar.
this post has just refreshed my memories .
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Welcome aboard Arun.
Very happy to see your work here. You are right that after Yamuna Expressway, Agra, Mathura are other cities are now much more closer to Delhi. Regarding the speed-limit, I feel that they should allow at least 120 KMPH (if not 130-140) on this road since the quality of the tar is really world class. Since we do not see these kind of roads (esp in UP),it is hard for us to fancy that one can actually drive at 120 safely.
The log has come out well.
Please also sign-up for a gravatar/profile-pic. Wishes.
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Hi Arun,
Welcome Aboard!
Yes, the Yamuna Expressway has made things a lot easier. Now only if they could build the service road so that I could get to my village even faster. You can thank me for helping build the road on about 2 acres of our farmland!
Monsoon is enjoyed even more with the car windows down!
Your experience at Bankey Bihari temple is the reason I avoid going to temples – I just cant take the crowds and jostling and zero arrangments.
I have never heard of the Prem Mandir – the photos are pretty.
Enjoyed the post and hope to read more of your posts.
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