मणिकर्ण – प्रकृति की गोद में बसा एक सुरम्य तीर्थ स्थल

पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा की मनाली के दर्शनीय स्थलों की सैर करने के बाद करीब आठ बजे हम लोग कैंप में पहुंचे, इस समय रात का खाना चल ही रहा था सो हमने भी सोचा टैंट में जाने से पहले खाना खा लिया जाय, वैसे भूख हम सब को लग रही थी और कविता तो सुबह से ही भूखी थी, स्वादिष्ट खाना देखकर भूख और बढ़ गई। खाना खाने के बाद कविता तो बर्तन साफ करने चली गई, बच्चे टैंट में चले गए और मैं हमारे साथ शिमला से आई गुजराती फेमिली के साथ अगले तीन दिन की यात्रा के लिए गाड़ी की बात करने में व्यस्त हो गया।

अगले तीन दिनों के लिए हमने दोनो परिवारों के लिए शेयरिंग में नौ सीट वाली गाड़ी का सौदा ट्रेवल एजेंट से किया। तय कार्यक्रम के अंतर्गत अगले दिन सुबह हमें मणिकर्ण जाना था। आज दिनभर कैमरे से हमने फोटो खींचे थे अतः कैमरे की बैटरी खाली हो गई थी सो सबसे पहले कैमरे को चार्ज किया। भोजन कक्ष के पास ही कैंप में एक चार्जिंग पॉइंट बनाया गया था जहां कैमरे, मोबाइल आदि को चार्ज किया जा सकता था, कविता तथा बच्चे तो टैंट में जाकर सो गए और मेरी ड्यूटी लगी थी चार्जिंग पाइंट पर सो करीब एक घंटा बैठकर मैने कैमरा और दोनों मोबाइल चार्ज किए और फिर जाकर सोने की तैयारी की।

सुबह हमें मणिकर्ण के लिए जल्दी निकालना था, अतः कविता और मैं सुबह पांच बजे उठ गए और प्रसाधन की ओर चल दिए वहां हमने देखा की दो बड़े बड़े तपेलों में पानी गर्म हो रहा था नहाने के लिए, यह गर्म पानी सुबह चार बजे से उपलब्ध हो जाता था। कविता और मैनें तो नहा भी लिया लेकिन बच्चों को इतनी सुबह उठाना थोड़ा मुश्किल काम था, थोड़ी आनाकानी के बाद दोनों बच्चे भी नहा धो कर तैयार हो गए। तैयार होकर  हम सभी फूड ज़ोन में आ गए, नाश्ता तैयार था, और साथ ही दोपहर के लिए लंच भी तैयार था। नाश्ते में इडली सांभर और मीठा दलिया था जो की बहुत ही स्वादिष्ट था। इस समय सुबह के सात बज रहे थे और नाश्ता करने के बाद अब हम लोग तैयार थे, हमें साढ़े सात बजे निकालना था और उससे पहले अपने अपने लंच बॉक्सेस में लंच भी पैक करना था, उधर गाड़ी वाले का भी फोन आ गया था की वो गाड़ी लेकर खड़ा है। लाउड स्पीकर पर चाय तथा पैक्ड लंच के लिए बार बार घोषणा हो रही थी। हमने अपने साथ लाए बर्तनों में लंच पैक किया लंच में सुखी आलू की सब्जी और परांठे थे, उसे बैग में रखा और तैयार होकर गाड़ी में आकर बैठ गए। साथ वाले गुजराती परिवार के मौसा जी का काम थोड़ा ढीला था अतः उनकी वजह से थोड़ा लेट हुए और आठ बजे हम मणिकरण के लिए निकल पड़े।

पतली कूहल से आगे तथा भुंतर के करीब एक जगह थी जहाँ रोड के एक तरफ तो ब्यास नदी बह रही थी तो दूसरी तरफ अंगोरा खरगोशों के फार्म्स थे जहाँ पर अंगोरा प्रजाति के खरगोशों को पाला जाता है और उनके रूई जैसे सुन्दर सफेद एवं एकदम महीन बालों से शालें, पर्स तथा अन्‍य सामान बनाए जाते हैं। यहाँ हम लोगों ने गाड़ी रूकवाई, ब्यास नदी के किनारे राफ्टिंग हो रही थी और वहन राफ्टिंग करवाने वालों के कुछ स्टाल्स भी लगे थे, लेकिन हम लोगों को राफ्टिंग नहीं करनी थी, सो हम नदी के किनारे खड़े होकर राफ्टिंग के इस रोमांचक खेल को देखने लगे, तथा कुछ देर बाद फोटोग्राफी शुरू कर दी। कुछ देर फोटो शूट करने के बाद हम अंगोरा खरगोश फार्म्स पर आ गए तथा 10 रु. प्रति व्यक्ति का टिकट लेकर फार्म में खरगोशों को देखने पहुंचे।  कुछ समय यहाँ बिताने के बाद हम लोग अपनी गाड़ी में बैठकर अपनी मंज़िल की ओर बढ़ चले।

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अंगोरा खरगोश पालन केन्द्र में खरगोश…

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राफ्ट में खाली पीली बैठने का आनंद….

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ब्यास नदी के किनारे..

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ब्यास नदी के किनारे ..

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ब्यास नदी …

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राफ्टिंग ..

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मणिकर्ण की ओर …

यहाँ मैं एक बात बताना चाहूंगा की अगर आप मणिकर्ण जा रहे हैं तो साथ में एक तौलिया और एक जोड़ी अन्तःवस्त्र जरूर रख लें क्योंकि मणिकर्ण के प्राक्रतिक गर्म पानी के कुण्ड में नहाने में बहुत मजा आता है। हम लोगों ने भी यह सुन रखा था अतः हम अंडरगारमेंट्स और टावेल रखना नहीं भूले। दोनों परिवारों के लिए गाड़ी में पर्याप्त जगह थी सो हम आराम से बैठ गए। सुबह सुबह का समय और खुशनुमा मौसम, बहुत मज़ा आ रहा था इस सफर में। पतली कूहल होते हुए पहले हम कुल्लू पहुंचे, वहां से भुंतर होते हुए मणिकर्ण की ओर बढ़ रहे थे। रास्ता थोड़ा खराब था लेकिन आसपास की खूबसूरत पहाड़ियाँ, नदी और देवदार के लम्बे लम्बे पेड़ मिलकर इतना सुन्दर समा बना रहे थे की उस खराब रोड की ओर हमारा ध्यान ही नहीं जा रहा था, हाथ में कैमरा, मन में ढेर सारी उमंगें और उत्साह लिए हम अपने गंतव्य की ओर बढ़े चले जा रहे थे। चारों ओर इतने सुन्दर नज़ारे थे की समझ में नहीं आ रहा था की किसकी फोटो लें और किसे छोड़ दें, मैं तो लगातार फोटो खींचे जा रहा था. रास्ता कैसे कट गया हमें पता ही नहीं चला और हम मणिकर्ण पहुंच गए। यहाँ थोड़ा ठंडा मौसम था, पर धूप निकली होने से अच्छा लग रहा था।

मणिकर्ण  कुल्लू जिले के भुंतर से उत्तर पश्चिम में पार्वती घाटी में व्यास और पार्वती नदियों के मध्य बसा है। यह हिन्दु और सिक्खों का एक तीर्थस्थल है। यह समुद्र तल से 1760  मीटर [छह हजार फुट] की ऊँचाई पर स्थित है और भुंतर में छोटे विमानों के लिए हवाई अड्डा भी है। भुंतर-मणिकर्ण सडक एकल मार्गीय (सिंगल रूट) है, पर है हरा-भरा व बहुत सुंदर।

मणिकर्ण अपने गर्म पानी के लिए भी प्रसिद्ध है। देश-विदेश के लाखों प्रकृति प्रेमी पर्यटक यहाँ बार-बार आते है, विशेष रुप से ऐसे पर्यटक जो चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों से परेशान हों यहां आकर स्वास्थ्य सुख पाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के कुंड मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। इन्हीं गर्म कुंडो में गुरुद्वारे के लंगर के लिए बडे-बडे गोल बर्तनों में चाय बनती है, दाल व चावल पकते हैं। पर्यटकों के लिए सफेद कपड़े की पोटलियों में चावल डालकर धागे से बांधकर बेचे जाते हैं। विशेषकर नवदंपती इकट्ठे धागा पकडकर चावल उबालते देखे जा सकते हैं।  उन्हें लगता हैं कि जैसे यह उनकी जीवन का पहला खुला रसोईघर है, जो सचमुच रोमांचक भी है।  यहां पानी इतना खौलता है कि भूमि पर पांव जलाने लगते हें । यहां के गर्म गंधक जल का तापमान हर मौसम में एक सामान 95 डिग्री सेल्सियस रहता है।

मणिकर्ण का शाब्दिक अर्थ है, कान की बाली। यहां मंदिर व गुरुद्वारे के विशाल भवनों से लगती हुई बहती है पार्वती नदी, जिसका वेग रोमांचित करने वाला होता है। नदी का पानी बर्फ के समान ठंडा है। नदी की दाहिनी ओर गर्म जल के उबलते स्रोत नदी से उलझते दिखते हैं। इस ठंडे-उबलते प्राकृतिक संतुलन ने वैज्ञानिकों को लंबे समय से चकित कर रखा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यहाँ के पानी में रेडियम है।

मणिकर्ण में बर्फ भी खूब पड़ती है, मगर ठंड के मौसम में भी गुरुद्वारा परिसर के अंदर बनाए विशाल स्नानागार में गर्म पानी में आराम से नहाया जा सकता है, जितनी देर चाहें, मगर ध्यान रहे, अधिक देर तक नहाने से चक्कर भी आ सकते हैं। पुरुषों व महिलाओं के लिए अलग-अलग प्रबंध है। गुरुद्वारे में एक गर्म गुफा भी है, यहाँ का तापमान लगभग 40 डिग्री के आसपास होगा। आयुर्वेद के मान से ‘शुष्क स्वेदन ‘ का लाभ मिलता है। यहां लेटने से वात रोगों में लाभ होता है।
दिलचस्प है कि मणिकर्ण के तंग बाजार में भी गर्म पानी की आपुर्ति की जाती है, जिसके लिए विशेष रुप से पाइप भी बिछाए गए हैं। अनेक रेस्त्राओं और होटलों में यही गर्म पानी उपलब्ध है। बाजार में तिब्बती व्यवसायी छाए हुए हैं, जो तिब्बती कला व संस्कृति से जुडा़ सामान और विदेशी वस्तुएं उपलब्ध कराते हैं। साथ-साथ विदेशी स्नैक्स व भोजन भी।
गुरुद्वारे के विशालकाय किलेनुमा भवन में ठहरने के लिए पर्याप्त स्थान है। छोटे-बड़े होटल व कई निजी अतिथि गृह भी हैं। मणिकर्ण में बहुत से मंदिर और एक गुरुद्वारा है।  सिखों के धार्मिक स्थलों में यह स्थल विशेष स्थान रखता है। गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब गुरु नानकदेव की यहां की यात्रा की स्मृति में बना था। कहा जाता है की गुरु नानक ने भाई मरदाना और पंच प्यारों के साथ यहां की यात्रा की थी। इसीलिए पंजाब से बडी़ संख्या में लोग यहां आते हैं। पूरे वर्ष यहां दोनों समय लंगर चलता रहता है।
यहाँ पर भगवान राम, भगवान कृष्ण, भगवान विष्णु, और भगवान शिव के मंदिर हैं।  हिंदू मान्यताओं में यहां का नाम इस घाटी में शिव के साथ विहार के दौरान पार्वती के कान (कर्ण) की बाली (मणि) खो जाने के कारण पडा़। एक मान्यता यह भी है कि मनु ने यहीं महाप्रलय के विनाश के बाद मानव की रचना की थी। यहां रघुनाथ मंदिर भी है। कहा जाता है कि कुल्लू के राजा ने अयोध्या से भगवान राम की मू्र्ति लाकर यहां स्थापित की थी। यहां शिवजी का भी एक पुराना मंदिर है। इस स्थान की विशेषता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुल्लू घाटी के अधिकतर देवता समय-समय पर अपनी सवारी के साथ यहां आते रहते हैं।
संसार से विरला, अपने प्रकार के अनूठे संस्कृति व लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था रखने वाला अद्भुत ग्राम मलाणा का मार्ग भी मणिकर्ण से लगभग 15  किमी पीछे जरी नामक स्थल से होकर जाता है। मलाणा के लिए नग्गर से होकर भी लगभग 15 किमी. पैदल रास्ता है।
गाड़ी वाले ने गाड़ी पार्क कर दी और हम लोग चल दिए इस सुन्दर तीर्थ स्थल के दर्शनों के लिए। कुछ दूर पैदल चलने के बाद अब हम पार्वती नदी पर बने पैदल पुल पर आ गए जिसे पार करने के बाद हमें गुरुद्वारे में प्रवेश करना था। जैसे ही पुल पर पहुंचे, वहां के नज़ारे देखकर अचंभित हो गए. दोनों ओर उंचे उंचे पहाड़ों के बीच अपने प्रचंड वेग से बहती कल कल करती पार्वती नदी, जिसके किनारे पर नदी से एकदम सटा हुआ गुरुद्वारा भवन और गुरुद्वारे की दीवार से सटा शिव मंदिर, गुरुद्वारे के ठीक नीचे उबलते हुए गर्म पानी का कुण्ड जिसके पानी के अत्यधिक गर्म होने का अंदाजा नदी के किनारे तथा गुरुद्वारा भवन के नीचे से उठ रहे धुएं से आसानी से लगाया जा सकता है। अद्भुत, आश्चर्य, घोर आश्चर्य… पार्वती नदी में बहता बर्फ जैसा ठंडा पानी और उसी नदी से लगे गर्म पानी के कुण्ड में उबालता हुआ पानी…. प्रकृति का अनोखा जादू…. मैं तो इस नज़ारे को देखकर दंग रह गया।
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पार्वती नदी …

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पार्वती नदी पर पैदल पुल….

खैर, कुछ देर कुदरत के इस तिलिस्म को निहारने के बाद हम ईश्वर के दर्शनों के लिए गुरुद्वारे की ओर बढ़ चले। गुरुद्वारे में दर्शन से पहले सर पर रखने के लिए रुमाल भी यहीं एक बक्से में उपलब्ध थे। अपनी सम्पूर्ण श्रद्धा, आस्था के साथ हमने भगवान नानकदेव के दर्शन किए और फिर गर्म गुफा में प्रवेश किया, गर्म गुफा गुरुद्वारे में स्थित है जो की गर्म पाने के स्त्रोत के ठीक उपर बनी होने के कारण एकदम गर्म रहती है. इस गर्म गुफा को पार करना भी अपने आप में एक अनूठा अनुभव है।
यहां से निकल कर हम शिव मंदिर पहुंचे जहाँ प्राकृतिक गर्म पानी के दो कुण्ड थे जिनमें पानी उबल रहा था और इस उबलते पानी से गंधक की तेज गंध उठ रही थी।  इन कुण्डों के चारों ओर लोग भीड़ लगा कर खड़े थे और कुदरत के इस करिश्मे को आश्चर्य से निहार रहे थे, कुछ लोग धागे से बंधी चांवल तथा चने की पोटलियाँ भी इस कुण्ड में डाल कर बैठे थे। पास ही में ये पोटलियाँ बिक रहीं थी, चांवल की दस रु. में और चने की बीस रु. में। हमने भी चावल की एक पोटली खरीदी और शिवम को गर्म कुण्ड के पास पोटली पकड़ा कर बैठा दिया, कुछ दस मिनट में ही ये चांवल पक गए थे। हमने इन पके हुए चावलों की पोटली अपने साथ रख ली, लंच के साथ खाने के लिए।
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गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब

कुछ समय इन गर्म पानी के कुण्डों के पास बिताने के बाद हमने शिव मंदिर में भगवान के दर्शन किए और फिर नहाने के लिए चल दिए। चूंकि यहाँ के प्रकृतिक गर्म पानी के कुण्डों का पानी इतना गर्म होता है की इनमें नहाया नहीं जा सकता अतः गुरुद्वारा समिति ने अलग से दो लम्बे चौड़े कुण्ड बनाये है सिर्फ नहाने के लिए, एक पुरुषों तथा दूसरा महिलाओं के लिए. इस कुण्ड में पाइप के द्वारा प्रकृतिक कुण्ड से गर्म पानी लाया जाता है तथा एक अन्य पाइप से उपर से पर्वती नदी का ठंडा पानी छोड़ा जाता हैं, इस गर्म तथा ठंडे पानी के मिश्रण से नहाने लायक गर्म पानी कुण्ड में इकट्ठा होता है, लेकिन फिर भी यह पानी घर पर नहाने के गर्म पानी की तुलना में कुछ ज्यादा गर्म होता है अतः पानी में उतरते ही पहले तो ज्यादा गर्म पानी की वजह से घबराहट होती है और बाहर निकलने का मन करता है लेकिन कुछ देर हिम्मत से अंदर डटे रहने के बाद शरीर इस पानी के अनुकूल हो जाता है।

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गर्म पानी के कुण्ड में खौलता पानी ..

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शिव मंदिर

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गर्म पानी कुण्ड से उठता धुआँ

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मणिकर्ण का एक मनोहारी दृश्य

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कुण्ड में चावल पकाता शिवम….

हम तो पूरी व्यवस्था के साथ नहाने का मन बना कर ही आए थे, सो कपड़े उतार कर मैं शिवम को गोद में लेकर कुण्ड में उतर गया, उधर कविता तथा संस्कृति भी महिलाओं के कुण्ड पर पहुंच गईं नहाने के लिए, लेकिन हमारे साथ आए गुजराती परिवार के लोग नहाने के लिए राजी ही नहीं हो रहे थे आखिर काफी देर की मशक्कत के बाद मैने उस परिवार के दो सदस्यों को नहाने के लिए कुण्ड में उतार ही लिया। शुरू में पानी कुछ ज्यादा गर्म लगा लेकिन थोड़ी देर बाद ही मजा आने लगा। नीचे कुण्ड में गर्म पानी और कुण्ड के बीचो बीच उपर से पाइप से ठंडा पानी गिर रहा था, अतः सारे लोग घूम फिर कर उस ठंडे पानी के पाइप के पास ही इकट्ठा हो जाते थे।
कुल मिला कर बहुत आनंद आ रहा था, शायद नहाने का इतना मज़ा मैने पहले अपने जीवन में पहले कभी नहीं लिया था। करीब एक घंटे से ज्यादा देर उस पानी में बिताने के बाद जब हम बाहर निकले तो अजीब सा एहसास होने लगा, हम सभी को तेज चक्कर आने लगे और तेज सर दर्द तथा उल्टी जैसा एहसास होने लगा, ऐसा लग रहा था जैसे हम कुछ देर में गिर पड़ेंगे। यह शिकायत सभी लोग कर रहे थे, परिवार के सदस्यों तथा साथियों ने कुछ देर बैठने की सलाह दी तो हम लोग वहीं कुण्ड के किनारे ही निढाल होकर बैठा गए…….ये क्यों हुआ मुझे आज तक पता नहीं चला अगर किसी पाठक को इसका कारण मालूम हो तो कृपया मुझे अपनी टिप्पणी के द्वारा जरूर बताएं ….शायद गंधक की अधिक मात्रा की वजह से ?
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नहाने के लिये गर्म पानी का कुण्ड और उपर पाईप से गिरता ठंडा पानी…

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गुरुद्वारा परिसर

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रास्ते में एक हिमाचली घर…..

अब वक्त था इस सुन्दर तथा रोमांचक प्राकृतिक, धार्मिक स्थान से  विदा लेने का अतः दोपहर के करीब 3 बजे हम अपनी गाड़ी में सवार होकर हम वापस भूंतर की ओर चल दिए। अब हमनें भूख लग रही थी अतः रास्ते में पार्वती नदी के किनारे वाले सड़क के विपरीत हमने ड्राइवर को गाड़ी रोकने को कहा तथा नीचे उतर कर एक अच्छी जगह देखकर गोल घेरा बनाकर बैठ गए तथा कैंप से पैक करके लाया गया खाना निकाला और शुरू हो गए।
यहां हमने मणिकर्ण के गर्म कुण्ड में पकाए चावल भी सब्जी के साथ खाए जो की बहुत स्वादिष्ट लगे, यह खाना भी हमारे लिए एक पिकनिक की तरह हो गया था तथा हमने इस वन्य भोज का भरपूर आनंद उठाया।
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जंगल में मंगल

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पार्श्व में पार्वती नदी …

खाना खाकर हम लोग वापस अपनी अपनी जगह पर गाड़ी में आकर बैठ गए और गाड़ी चल पड़ी… कुछ देर के सफर के बाद भूंतर शहर आया जहाँ से कविता ने एक कुल्लू शॉल के फैक्ट्री काम शो रूम से अपने तथा परिजनों के लिए शौलें खरीदी।

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ब्यास नदी के किनारे बसा कुल्लू शहर

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कुल्लू

यहां से चले तो कुछ देर बाद कुल्लू पहुंचे, कुल्लू से हमारे साथी गुजराती परिवार को दिल्ली के लिए हिमाचल परिवहन की बस का टिकट बुक करवाना था अतः हमने यहाँ गाड़ी रूकवाई तथा बुकिंग करवाने के बाद हम वापस कुल्लू से अपने कैंप की ओर चल दिए। कुल्लू में शहर से थोड़ा सा बाहर निकलकर माता वैष्णौ देवी का तीन चार मंज़िला एक बहुत ही सुन्दर तथा विशाल मंदिर है जो की देखने लायक है, अगर आप कुल्लू जा रहे हैं तो इस मंदिर के दर्शन अवश्य करें। इस मंदिर में की गई लकड़ी की बारीक नक्काशी आपको अचंभित कर देगी, इस मंदिर के अंदर एक शिव मंदिर तथा एक शनिदेव का मंदिर भी है।

Kullu bus stand..

कुल्लू बस स्टैंड

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श्री वैष्णो देवी मंदिर कुल्लू

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ब्यास नदी

कुछ ही देर में हम पतली कूहल गांव पहुंच गए जहाँ एक स्थान पर पहाड़ी फलों की बहुत सारी दुकानें लगी थी, कविता को इन फलों में चेरी बहुत पसंद आई थी सो हमने चेरी का एक किलो का पेकेट खरीदा।

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पहाड़ी फल

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ब्यास नदी

कुल्लू से निकलकर शाम 6 बजे के लगभग कैंप पहुंच गए। कैंप में इस समय शाम का चाय स्नेक्स चल रहा था सो हम भी टैंट में ना जाकर यहीं बैठकर चाय नमकीन का आनंद उठाने लगे…..

आज के लिए इतना ही, अगली पोस्ट में आपको लेकर चलूंगा …..रोहतांग की ओर, तब तक के लिए हेप्पी घुमक्कड़ी …

21 Comments

  • Mukesh Jee,
    Thanks for sharing nice post accompanied with beautiful pictures. I have visited this place in 2001. It seems many things have changed.Then there was no ponds in Gurudwara campus . Hot water pond was opposite to Gurudwara on other end of Parvati. Like Garm gufa ,there was also a Thandi (cold ) Gufa in Gurudwara campus whose floor was chilled.

    • Mukesh Bhalse says:

      Naresh jee,
      Thank you very much for your nice comment and highlighting the changes there so far.

      Thanks.

  • Dear Mukesh Ji,

    A well narrated post with beautiful pics. Sulphur spring in Manikarn is famous and I also saw the cooking of rice during my visit there. Kullu is really Kullu. Nice and beautiful. Beas River looks awesome. Photographs are praiseworthy and write up is as usual very interesting.

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    Thanks for sharing.

  • I visited on Manikaran Shahab on 18 Aug 2014, really a beautiful place.

  • Ashok Sharma says:

    nice post,very good pics.

  • Sachin Tyagi says:

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  • Avtar Singh says:

    Hi Mukesh ji

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    • Mukesh Bhalse says:

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  • Nandan Jha says:

    Very comprehensive log, Mukes Bhai.

    We were there in 2008 and I can very well remember the drive from Kullu to Kasol, full of trees as you rightly observed. Just before Manikarn, there is a place called ‘Kasol’ which is kind of become a ghetto of foreign nations (Israel etc) and is popular among the green community. When we went, there was no motorable road to Malana but I am told that now there is one, which goes very close to it.

    I think, apart from Hemkunt Sahib in Uttrakhand near Valley of Flowers, this Gurduwara is located among most picturesque setup. Thanks again for refreshing our memories.

    BTW, I do not remember every coming across a phrase like “??????, ???????, ??? ???????”.. hehe. I think ??? is mostly used for other things.

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    • Mukesh Bhalse says:

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  • Bapu Nagar says:

    Mukeshjee, Enjoyed reading your report which brought back our memories of trip in July 2008. Nagar Palace stay and drive from Nagar to Manikaran was beautiful. Shivaji Temple and Gurudwara was serene. There is a also a small trek to Bijli Mahadev on the way which I enjoyed very much.

    • Mukesh Bhalse says:

      Dear Nagar ji,

      Thank you very much for your kind words. We couldn’t visit Naggar, though it was only 8 km from our camp. We visited Bijli Mahadev and it was really awesome.

      Thanks.

  • ANAND VISHU says:

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    • Mukesh Bhalse says:

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  • SHASHI KANT SHARMA says:

    After taking your bath in hot water, you became unwell becauseyou had overstayed in the hot sulpher water which according to some people should not be more than 10 mintes

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