पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा की मनाली के दर्शनीय स्थलों की सैर करने के बाद करीब आठ बजे हम लोग कैंप में पहुंचे, इस समय रात का खाना चल ही रहा था सो हमने भी सोचा टैंट में जाने से पहले खाना खा लिया जाय, वैसे भूख हम सब को लग रही थी और कविता तो सुबह से ही भूखी थी, स्वादिष्ट खाना देखकर भूख और बढ़ गई। खाना खाने के बाद कविता तो बर्तन साफ करने चली गई, बच्चे टैंट में चले गए और मैं हमारे साथ शिमला से आई गुजराती फेमिली के साथ अगले तीन दिन की यात्रा के लिए गाड़ी की बात करने में व्यस्त हो गया।
अगले तीन दिनों के लिए हमने दोनो परिवारों के लिए शेयरिंग में नौ सीट वाली गाड़ी का सौदा ट्रेवल एजेंट से किया। तय कार्यक्रम के अंतर्गत अगले दिन सुबह हमें मणिकर्ण जाना था। आज दिनभर कैमरे से हमने फोटो खींचे थे अतः कैमरे की बैटरी खाली हो गई थी सो सबसे पहले कैमरे को चार्ज किया। भोजन कक्ष के पास ही कैंप में एक चार्जिंग पॉइंट बनाया गया था जहां कैमरे, मोबाइल आदि को चार्ज किया जा सकता था, कविता तथा बच्चे तो टैंट में जाकर सो गए और मेरी ड्यूटी लगी थी चार्जिंग पाइंट पर सो करीब एक घंटा बैठकर मैने कैमरा और दोनों मोबाइल चार्ज किए और फिर जाकर सोने की तैयारी की।
सुबह हमें मणिकर्ण के लिए जल्दी निकालना था, अतः कविता और मैं सुबह पांच बजे उठ गए और प्रसाधन की ओर चल दिए वहां हमने देखा की दो बड़े बड़े तपेलों में पानी गर्म हो रहा था नहाने के लिए, यह गर्म पानी सुबह चार बजे से उपलब्ध हो जाता था। कविता और मैनें तो नहा भी लिया लेकिन बच्चों को इतनी सुबह उठाना थोड़ा मुश्किल काम था, थोड़ी आनाकानी के बाद दोनों बच्चे भी नहा धो कर तैयार हो गए। तैयार होकर हम सभी फूड ज़ोन में आ गए, नाश्ता तैयार था, और साथ ही दोपहर के लिए लंच भी तैयार था। नाश्ते में इडली सांभर और मीठा दलिया था जो की बहुत ही स्वादिष्ट था। इस समय सुबह के सात बज रहे थे और नाश्ता करने के बाद अब हम लोग तैयार थे, हमें साढ़े सात बजे निकालना था और उससे पहले अपने अपने लंच बॉक्सेस में लंच भी पैक करना था, उधर गाड़ी वाले का भी फोन आ गया था की वो गाड़ी लेकर खड़ा है। लाउड स्पीकर पर चाय तथा पैक्ड लंच के लिए बार बार घोषणा हो रही थी। हमने अपने साथ लाए बर्तनों में लंच पैक किया लंच में सुखी आलू की सब्जी और परांठे थे, उसे बैग में रखा और तैयार होकर गाड़ी में आकर बैठ गए। साथ वाले गुजराती परिवार के मौसा जी का काम थोड़ा ढीला था अतः उनकी वजह से थोड़ा लेट हुए और आठ बजे हम मणिकरण के लिए निकल पड़े।
पतली कूहल से आगे तथा भुंतर के करीब एक जगह थी जहाँ रोड के एक तरफ तो ब्यास नदी बह रही थी तो दूसरी तरफ अंगोरा खरगोशों के फार्म्स थे जहाँ पर अंगोरा प्रजाति के खरगोशों को पाला जाता है और उनके रूई जैसे सुन्दर सफेद एवं एकदम महीन बालों से शालें, पर्स तथा अन्य सामान बनाए जाते हैं। यहाँ हम लोगों ने गाड़ी रूकवाई, ब्यास नदी के किनारे राफ्टिंग हो रही थी और वहन राफ्टिंग करवाने वालों के कुछ स्टाल्स भी लगे थे, लेकिन हम लोगों को राफ्टिंग नहीं करनी थी, सो हम नदी के किनारे खड़े होकर राफ्टिंग के इस रोमांचक खेल को देखने लगे, तथा कुछ देर बाद फोटोग्राफी शुरू कर दी। कुछ देर फोटो शूट करने के बाद हम अंगोरा खरगोश फार्म्स पर आ गए तथा 10 रु. प्रति व्यक्ति का टिकट लेकर फार्म में खरगोशों को देखने पहुंचे। कुछ समय यहाँ बिताने के बाद हम लोग अपनी गाड़ी में बैठकर अपनी मंज़िल की ओर बढ़ चले।
यहाँ मैं एक बात बताना चाहूंगा की अगर आप मणिकर्ण जा रहे हैं तो साथ में एक तौलिया और एक जोड़ी अन्तःवस्त्र जरूर रख लें क्योंकि मणिकर्ण के प्राक्रतिक गर्म पानी के कुण्ड में नहाने में बहुत मजा आता है। हम लोगों ने भी यह सुन रखा था अतः हम अंडरगारमेंट्स और टावेल रखना नहीं भूले। दोनों परिवारों के लिए गाड़ी में पर्याप्त जगह थी सो हम आराम से बैठ गए। सुबह सुबह का समय और खुशनुमा मौसम, बहुत मज़ा आ रहा था इस सफर में। पतली कूहल होते हुए पहले हम कुल्लू पहुंचे, वहां से भुंतर होते हुए मणिकर्ण की ओर बढ़ रहे थे। रास्ता थोड़ा खराब था लेकिन आसपास की खूबसूरत पहाड़ियाँ, नदी और देवदार के लम्बे लम्बे पेड़ मिलकर इतना सुन्दर समा बना रहे थे की उस खराब रोड की ओर हमारा ध्यान ही नहीं जा रहा था, हाथ में कैमरा, मन में ढेर सारी उमंगें और उत्साह लिए हम अपने गंतव्य की ओर बढ़े चले जा रहे थे। चारों ओर इतने सुन्दर नज़ारे थे की समझ में नहीं आ रहा था की किसकी फोटो लें और किसे छोड़ दें, मैं तो लगातार फोटो खींचे जा रहा था. रास्ता कैसे कट गया हमें पता ही नहीं चला और हम मणिकर्ण पहुंच गए। यहाँ थोड़ा ठंडा मौसम था, पर धूप निकली होने से अच्छा लग रहा था।
मणिकर्ण कुल्लू जिले के भुंतर से उत्तर पश्चिम में पार्वती घाटी में व्यास और पार्वती नदियों के मध्य बसा है। यह हिन्दु और सिक्खों का एक तीर्थस्थल है। यह समुद्र तल से 1760 मीटर [छह हजार फुट] की ऊँचाई पर स्थित है और भुंतर में छोटे विमानों के लिए हवाई अड्डा भी है। भुंतर-मणिकर्ण सडक एकल मार्गीय (सिंगल रूट) है, पर है हरा-भरा व बहुत सुंदर।
मणिकर्ण अपने गर्म पानी के लिए भी प्रसिद्ध है। देश-विदेश के लाखों प्रकृति प्रेमी पर्यटक यहाँ बार-बार आते है, विशेष रुप से ऐसे पर्यटक जो चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों से परेशान हों यहां आकर स्वास्थ्य सुख पाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं। खौलते पानी के कुंड मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। इन्हीं गर्म कुंडो में गुरुद्वारे के लंगर के लिए बडे-बडे गोल बर्तनों में चाय बनती है, दाल व चावल पकते हैं। पर्यटकों के लिए सफेद कपड़े की पोटलियों में चावल डालकर धागे से बांधकर बेचे जाते हैं। विशेषकर नवदंपती इकट्ठे धागा पकडकर चावल उबालते देखे जा सकते हैं। उन्हें लगता हैं कि जैसे यह उनकी जीवन का पहला खुला रसोईघर है, जो सचमुच रोमांचक भी है। यहां पानी इतना खौलता है कि भूमि पर पांव जलाने लगते हें । यहां के गर्म गंधक जल का तापमान हर मौसम में एक सामान 95 डिग्री सेल्सियस रहता है।
मणिकर्ण का शाब्दिक अर्थ है, कान की बाली। यहां मंदिर व गुरुद्वारे के विशाल भवनों से लगती हुई बहती है पार्वती नदी, जिसका वेग रोमांचित करने वाला होता है। नदी का पानी बर्फ के समान ठंडा है। नदी की दाहिनी ओर गर्म जल के उबलते स्रोत नदी से उलझते दिखते हैं। इस ठंडे-उबलते प्राकृतिक संतुलन ने वैज्ञानिकों को लंबे समय से चकित कर रखा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यहाँ के पानी में रेडियम है।
कुछ समय इन गर्म पानी के कुण्डों के पास बिताने के बाद हमने शिव मंदिर में भगवान के दर्शन किए और फिर नहाने के लिए चल दिए। चूंकि यहाँ के प्रकृतिक गर्म पानी के कुण्डों का पानी इतना गर्म होता है की इनमें नहाया नहीं जा सकता अतः गुरुद्वारा समिति ने अलग से दो लम्बे चौड़े कुण्ड बनाये है सिर्फ नहाने के लिए, एक पुरुषों तथा दूसरा महिलाओं के लिए. इस कुण्ड में पाइप के द्वारा प्रकृतिक कुण्ड से गर्म पानी लाया जाता है तथा एक अन्य पाइप से उपर से पर्वती नदी का ठंडा पानी छोड़ा जाता हैं, इस गर्म तथा ठंडे पानी के मिश्रण से नहाने लायक गर्म पानी कुण्ड में इकट्ठा होता है, लेकिन फिर भी यह पानी घर पर नहाने के गर्म पानी की तुलना में कुछ ज्यादा गर्म होता है अतः पानी में उतरते ही पहले तो ज्यादा गर्म पानी की वजह से घबराहट होती है और बाहर निकलने का मन करता है लेकिन कुछ देर हिम्मत से अंदर डटे रहने के बाद शरीर इस पानी के अनुकूल हो जाता है।
खाना खाकर हम लोग वापस अपनी अपनी जगह पर गाड़ी में आकर बैठ गए और गाड़ी चल पड़ी… कुछ देर के सफर के बाद भूंतर शहर आया जहाँ से कविता ने एक कुल्लू शॉल के फैक्ट्री काम शो रूम से अपने तथा परिजनों के लिए शौलें खरीदी।
यहां से चले तो कुछ देर बाद कुल्लू पहुंचे, कुल्लू से हमारे साथी गुजराती परिवार को दिल्ली के लिए हिमाचल परिवहन की बस का टिकट बुक करवाना था अतः हमने यहाँ गाड़ी रूकवाई तथा बुकिंग करवाने के बाद हम वापस कुल्लू से अपने कैंप की ओर चल दिए। कुल्लू में शहर से थोड़ा सा बाहर निकलकर माता वैष्णौ देवी का तीन चार मंज़िला एक बहुत ही सुन्दर तथा विशाल मंदिर है जो की देखने लायक है, अगर आप कुल्लू जा रहे हैं तो इस मंदिर के दर्शन अवश्य करें। इस मंदिर में की गई लकड़ी की बारीक नक्काशी आपको अचंभित कर देगी, इस मंदिर के अंदर एक शिव मंदिर तथा एक शनिदेव का मंदिर भी है।
कुछ ही देर में हम पतली कूहल गांव पहुंच गए जहाँ एक स्थान पर पहाड़ी फलों की बहुत सारी दुकानें लगी थी, कविता को इन फलों में चेरी बहुत पसंद आई थी सो हमने चेरी का एक किलो का पेकेट खरीदा।
कुल्लू से निकलकर शाम 6 बजे के लगभग कैंप पहुंच गए। कैंप में इस समय शाम का चाय स्नेक्स चल रहा था सो हम भी टैंट में ना जाकर यहीं बैठकर चाय नमकीन का आनंद उठाने लगे…..
Mukesh Jee,
Thanks for sharing nice post accompanied with beautiful pictures. I have visited this place in 2001. It seems many things have changed.Then there was no ponds in Gurudwara campus . Hot water pond was opposite to Gurudwara on other end of Parvati. Like Garm gufa ,there was also a Thandi (cold ) Gufa in Gurudwara campus whose floor was chilled.
Naresh jee,
Thank you very much for your nice comment and highlighting the changes there so far.
Thanks.
Dear Mukesh Ji,
A well narrated post with beautiful pics. Sulphur spring in Manikarn is famous and I also saw the cooking of rice during my visit there. Kullu is really Kullu. Nice and beautiful. Beas River looks awesome. Photographs are praiseworthy and write up is as usual very interesting.
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Thanks for sharing.
Thank you very much Anupan ji for your valuable remarks.
Thanks.
I visited on Manikaran Shahab on 18 Aug 2014, really a beautiful place.
Thanks Vivek for your remarks.
nice post,very good pics.
Thanks Ashok Sir for your lovely comments.
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Hi Mukesh ji
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Very comprehensive log, Mukes Bhai.
We were there in 2008 and I can very well remember the drive from Kullu to Kasol, full of trees as you rightly observed. Just before Manikarn, there is a place called ‘Kasol’ which is kind of become a ghetto of foreign nations (Israel etc) and is popular among the green community. When we went, there was no motorable road to Malana but I am told that now there is one, which goes very close to it.
I think, apart from Hemkunt Sahib in Uttrakhand near Valley of Flowers, this Gurduwara is located among most picturesque setup. Thanks again for refreshing our memories.
BTW, I do not remember every coming across a phrase like “??????, ???????, ??? ???????”.. hehe. I think ??? is mostly used for other things.
Nandan,
Thank you very much for your all time encouraging and nice comment.
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Mukeshjee, Enjoyed reading your report which brought back our memories of trip in July 2008. Nagar Palace stay and drive from Nagar to Manikaran was beautiful. Shivaji Temple and Gurudwara was serene. There is a also a small trek to Bijli Mahadev on the way which I enjoyed very much.
Dear Nagar ji,
Thank you very much for your kind words. We couldn’t visit Naggar, though it was only 8 km from our camp. We visited Bijli Mahadev and it was really awesome.
Thanks.
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After taking your bath in hot water, you became unwell becauseyou had overstayed in the hot sulpher water which according to some people should not be more than 10 mintes