पिछली रात सोने से पहले तक भी हम लोग ये तय नही कर पाए थे कि अगले दिन का कार्यक्रम क्या रहेगा. लेकिन हमारे साथी पुनीत की ज़ख्मी टाँग को देखते हुए आज की यात्रा जोशिमठ के आस पास ही रखने का विचार था. जोशिमठ के पास सबसे नज़दीक सबसे पहले दिमाग़ मे आया ‘औली’ जो कि यहाँ से मात्र 13 किमी की दूरी पर ही था. औली की ओर जाने के लिए जीप का पता किया तो उस समय यात्रा सीज़न होने की वजह से सिर्फ़ एकाध जीप ही उपलब्ध थी और वो भी पहले से ही फुल हो चुकी थी. अगली जीप के आने का भी कोई पक्का भरोसा नही था. जीप स्टैंड के पास ही एक छोटा सा खाने का ठेला देखकर सोचा ‘चलो नाश्ता ख़त्म होने तक अगर कोई जीप आ गयी तो ‘औली’ नही तो कहीं और सही’. नाश्ता ख़त्म हो गया, पेट भर गया लेकिन कोई भी जीप बिना बुकिंग के औली जाने को तैयार नही थी. जोशिमठ से ही एक रास्ता नीति घाटी मे मलारी की ओर भी जाता है जहाँ ये रास्ता भारत-तिब्बत सीमा पर ख़त्म होता है. इसी रास्ते के बीच मे एक खूबसूरत गाँव है तपोवन जो कि अपने गंधक युक्त गर्म जल के श्रोतों के कारण प्रसिद्ध है. इस जगह की बेमिसाल खूबसूरती के बारे मे मैने कुछ साल पहले अपने किसी रिश्तेदार से सुना था और तभी से यहाँ जाने की तमन्ना दिल मे थी. अपने मित्रों के साथ इस बात को साझा किया तो सभी चलने को एकदम तैयार हो गये. तपोवन की जोशिमठ से दूरी तकरीबन 16 किमी है, गाड़ी तो मिल नही रही थी, सोचा ‘चलो पद यात्रा ही शुरू कर दें, जैसे ही कोई गाड़ी मिलेगी लद जाएँगे’.
सैनिक छावनी से गुज़रते हुए हम लोग आगे चलते जा रहे थे और रास्ते मे आने वाले हर वाहन को इस आशा मे हाथ दिखाते कि कोई आगे तक छोड़ दे, हमें ना सही तो कम से कम हमारे साथ चल रहे ज़ख्मी पुनीत को ही सही. ऐसे मे एक जीप को आते देखकर चेहरे पर खुशी की लहर सी दौड़ गई, पर वो छणभन्गुर साबित हुई क्योंकि उस जीप वाले ने वहाँ गाड़ी रोकी ही नही. इसी बीच एक स्कूटर वाले भाई साब ने गाड़ी रोकी तो हमने पुनीत को उसमे लाद दिया और दीपक व मैं दोनो पद यात्रा करते हुए उस खूबसूरत घाटी के नयनाभिराम दृश्यों का आनंद लेते हुए आगे चलते रहे. आगे चलकर कोई सरकारी सी दिखने वाली गाड़ी रुकी तो हम दोनो दौड़कर उसकी तरफ गये. पास पहुँचे तो गाड़ी के शीशे खोलकर एक विदेशी बुजुर्ग व्यक्ति मोटी सी आवाज़ मे अँग्रेज़ी मे बोला “what do you want?” (क्या चाहिए?) जब हमने उसे अपनी यात्रा के बारे मे बताया तो वो बोला कि वो यहीं पास मे एक सरकारी जल परियोजना मे कार्यरत है और सरकारी गाड़ी मे हमे नही बिठा सकता. हमने उसे धन्यवाद देकर अपनी पद यात्रा जारी रखी.
इतने मे एक यात्री जीप हमारे हाथ दिखाने पर हमारे सामने रुक ही गयी, फिर क्या था हम लोग झट से जीप मे लटक गये और लगभग 2 किमी बाद पुनीत भी हमे सड़क किनारे बैठा मिला. जीप मे धीरे धीरे इतनी भीड़ हो गयी थी कि बाहर के नज़ारे देख पाना भी मुश्किल हो रहा था. खैर थोड़ी ही देर मे हम लोग तपोवन पहुँच गये यहाँ की खूबसूरती वाकई मंत्रमुग्ध कर देने वाली थी. तपोवन से ही खूबसूरत ‘कुआरी पास’ के लिए भी पद यात्रा शुरू होती है, पहले तो हमारे मन मे ‘कुआरी पास’ जाने का विचार आया पर पुनीत की ऐसी हालत देखकर इसे खारिज़ कर दिया गया. लोगों से पूछने पर पता चला कि यहाँ के मशहूर गंधक युक्त गर्म पानी के श्रोत यहाँ पास ही मौजूद मंदिर के आस पास ही थे. तपोवन के आस पास ये गर्म पानी के सोते कई जगह देखे जा सकते हैं.
मंदिर मे दर्शन करने के बाद हम लोग अब एक गरम पानी के छोटे से कुंड रूपी सोते मे स्नान का मज़ा लेने लगे, वाकई तरोताजा करने वाला अनुभव था ये, वो अँग्रेज़ी मे कहते हैं ना ‘Bliss‘ कुछ वैसा ही! लो जी गरम पानी के सोते भी देख लिए और स्नान भी कर लिया, अब क्या? ऐसे मे पिछली रात अपनी दर्शनीय स्थलों वाली किताब मे पढ़े भविष्य बद्री (2744 मी.) की याद आई जो यहाँ से पास ही था, सोचा चलो इसके ही दर्शन कर आएँ. तपोवन से 3 किमी दूर एक छोटा सा गाँव है सलधार जहाँ से भविष्य बद्री की लगभग 5 किमी की पैदल यात्रा शुरू होती है.
पैदल घूमते घामते प्रकृति को निहारते हुए सलधार पहुँचे और सबसे पहले वसुधारा की पद यात्रा से सबक लेकर एक दुकान पर रुककर आगे की यात्रा के लिए कुछ चने और मीठी गोलियाँ रख ली. सलधार से भविष्य बद्री तक का रास्ता ज़्यादातर जगह जंगल के बीच से गुज़रते हुए जाता था जहाँ कई जगह राह मे दो रास्ते सामने आ जाते थे जो हमारी दुविधा का कारण बन बैठते. ऐसे मे कई बार या तो स्थानीय लोगो की मदद से और कई बार बस किस्मत के भरोसे ‘अककड़ बक्कड़’ करके हम लोग जैसे तैसे सुभाईं नामक गाँव तक पहुँचे जहाँ से भविष्य बद्री की दूरी लगभग 1 ½ किमी ही रह जाती है.
यहाँ पहुँचते पहुँचते लगभग अंधेरा सा होने लगा था. गाँव मे पूछतात करते वक्त हमारा सामना एक स्थानीय युवक से हुआ जिसकी आँखे कुछ लाल सी हो रखी थी. हमारे पास आकर पूछने लगा कि हम कौन थे और यहाँ क्या करने आए थे. जब हमने उसे बताया कि हम भविष्य बद्री के दर्शन करने आए थे, तो वो बड़ा खुश हुआ और हमे अपने बारे मे बताने लगा. एक दुकान की ओर बढ़ते हुए उसने हमे अपनी लाल पड़ी हुई आँखो का राज बताया. दरअसल भविष्य बद्री के आस पास के बर्फीले पहाड़ों में एक खास तरह की दुर्लभ जड़ी मिलती है जिसे ‘कीड़ा जड़ी’ या भारतीय वियाग्रा के नाम से भी जाना जाता है और इसका इस्तेमाल ताकत बढ़ाने वाली दवाईयों में किया जाता है. उसके अनुसार इस जड़ी की अंतर्राष्ट्रीय और देसी दोनों बाज़ारों में बड़ी मांग है और इसी वजह से बाज़ार में इसकी अच्छी खासी कीमत मिल जाती है. आमतौर पर जब मई/जून के महीनों में थोड़ी बर्फ पिघलनी शुरू होती है तो इस दौरान काफी संख्या में स्थानीय लोग इस जड़ी की खोज में बर्फीली पहाड़ियों की ओर निकल पड़ते हैं. इसी जड़ी की खोज में ये महाशय भी निकल पड़े थे लेकिन बिना धूप का चश्मा लिए जिस कारण बर्फ में चलने पर इन महाशय की आँखें बर्फ पर पड़ती सूरज की तेज़ किरणों से जल गयी थी. बाद में पता चला कि इस कीड़ा जड़ी की तस्करी पूरी नीति और माणा घाटी में इस सीजन में बड़े पैमाने पर होती है. वैसे ये भाई साहब भी कुछ नशेड़ी प्रवृति के मालूम पड़ते थे, और इनका तकिया कलाम भी बड़ा मजेदार था “मैं देहरादून में काम करता हूँ और मैं 5000 हज़ार कमाता हूँ”, हर थोड़ी थोड़ी देर में इसे दोहराते रहते. हमने रात रुकने की जगह के बारे में पूछ़ा तो इन्होंने बताया कि गाँव के ऊपर दो/तीन आश्रम हैं जहाँ रात बिता सकते हैं.
हम लोग गाँव से लगभग आधा किमी दूर ही आये थे कि हमें एक आश्रम दिखाई दिया. यहाँ पहुँचने पर हमने अपना परिचय दिया और स्वामीजी को अपनी यात्रा के बारे में बताया तो उन्होंने बिना कुछ कहे, हमें हमारा रात गुजारने का कमरा दिखा दिया. यहाँ आश्रम में तीन/चार साधू पहले से रुके हुए थे जो सब अलग अलग जगह से आये थे, कोई हरियाणा से तो कोई बैंगलोर से सब अपने अपने हिसाब से ज्ञानी. इन ज्ञानी संतों के सानिध्य में कुछ समय बिताकर हम लोग भी धन्य हो गए. इनकी लोगों की चर्चा के दौरान हमें साधू जीवन और खासकर नागा व अघोरियों के बारे में कई रोचक बातें पता चली. यहाँ हमारी मुलाकात बैंगलोर से आये एक साधक से भी हुई जो अपने बच्चों के विदेश जाने के बाद संन्यास ग्रहण करके हमेशा के लिए हिमालय की हसीं वादियों में चले आये. उन्होंने हमें बताया की भविष्य बद्री का खुबसूरत इलाका सीजन के समय सेब की बगीचों से इस कदर भरा रहता है कि इन्हें खाने वाला तक कोई नहीं होता, इसके आलावा इन जंगलों में जंगली जानवरों खासतौर पर भालुओं की भी भरमार रहती है. यहाँ इन साधुओं के साथ रहना वाकई एक ज्ञानवर्धक और रोमांचक अनुभव था. रात को सामूहिक भोजन के बाद हम लोग अपने कमरे में सोने चले गए…अगले लेख में दर्शन खुबसूरत ‘भविष्य बद्री’ के…
beautiful and perhaps FOG about Tapovan. Tapovan is in my wish list and if god permits i would one day visit upto niti village.
tks for sharing & waiting for Bhavishya Badri
SS Ji, welcome back! Apart from God’s permit you perhaps would also need authority permit…:)…we were recently planning to go into Malari Valley but the program was dropped, we will see it next year probably…thanks for liking the post
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Vipin, it was a real pleasure to read your post and the pictures are great too. Looks like you guys have had a lot of fun and it is infectious. Tapovan looks really beautiful. Even the captions are lovely, especially “?? ???? ??? ?????” and “?????? ?? ???? ?????? ??? ?? ?????? ????”
Waiting for the darshan of Bhavishya Badri.
Great to hear that you could also have fun with us through this post, DL Ji (sorry it seems difficult to call you DL)…Thank you very much for admiring the post…you will have to wait till next year for darshan of Bhavishya Badri…:)…as the post will come on 2 Jan, i guess…
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I thought that I was the only guy to post the same entry twice; now that Nandan has done it, I am assured that it has something to do with some software glitch and not incompetence on my part, :-)
:-). Actually I was just being lazy. My first comment had a typo so instead of ‘updating’ it, I decided to write a new one and would then have deleted the older one.
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Dear Vipin,
Very enjoyable Garhwal Ghumakkari!
Thanks Nirdesh Ji for liking the post…
Very good post.
I went to Joshimath 2 times but not much information was available about Tapovan etc.
So next time Tapovan is a must go …
Comments from a ghumakkar like you is really encouraging, Praveen Ji. Niti Valley is still very much untouched by the travellers keeping it’s beauty intact & raw…a delight for the nature lovers!
very good post ,nicely narrated and accompanied with beautiful photographs..
A bit new on ghumakkari world ..
Last year we went to Kedar Nath, Badri Nath and Hemkunt Saheb in month of June. the program was so tight that we could not visit Mana Village, which was on our radar. We lost 8-10 hrs in severe traffic jam, first before Joshi Math and than at Govind Ghat and finally we returned from Badrinath ji without going to Mana Village.
if God permits , surely visit Tapovan, Adibadri, Mana and Vashudhara falls in next visit..
Jai Bhole Nath..
A bit new (myself ) on ghumakkari world .
Thank you Naresh Ji for your kind words…would love to hear your experiences on your ghumakkari to these lovely places…
Superlative description supported by terrific visuals. “???? ??? ?? ???? ???? ????? ???? ! ???? ???????? ????, ??? ????? ???? !”
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hindi padkar acha laga foto sare hi bahut ache he