दोस्तों पिछले कुछ अरसे से में घुमक्कड़ का लगातार पाठक रहा हूँ पर यहाँ पर लिखने की कोशिश पहली बार कर रहा हूँ, वैसे तो घुमक्कड़ी का आनंद हमने कई बार उठाया है पर कभी सोचा ना था की आपनी घुमक्कड़ी को शब्दों में पिरोने की गुस्ताखी भी करूँगा, पर यहाँ पर आप सभी महान घुमक्कड़ों के अनुभवों को पड़ने के बाद थोड़ी हिम्मत जुटा रहा हूँ कुछ लिखने की, आपको शायद मेरे लेख में फोटो की कमी खले क्युकी फोटो खीचने की मामले में हम थोड़े से अनाड़ी है और खुबसूरत जगहों पर भी सिर्फ आपने परिवार की फोटो खीचते रहते है, पर भविष्य की यात्राओ में एक अच्छे घुमक्कड़ की तरह नेसर्गिक सुन्दरता की फोटो लेने की कोशिश जरुर करूँगा।
बरसो पुरानी बात है, जब २८ जून २०११ के रात के ढाई बजे हर तरफ घनगोर अँधेरा जगमग हो रहा था और वीरान सडको पर सिर्फ कुत्तो का शोर सुने दे रहा था में आपनी बड़ी दीदी के घर (वैशाली गाजियाबाद) पर जीजा जी के साथ बातचीत में मशगुल था की तभी अचानक एक अद्भुत घटना घटी और मैंने मजाक में जीजा जी से मनाली चलने की बात कही। बस फिर क्या था मजाक में कही बात को कुछ ही पलों में हमने बड़ी गंभीरता से ले लिया और जाने का बजट बनाने में जुट गए, अरे भाई किसी भी यात्रा के लिए जेब में तरी होना भी तो जरुरी है ना।
आपने दीदी और जीजाजी की पुरानी मनाली यात्रा (जो की उन्होंने वॉल्वो बस के द्वारा करी थी) के अनुभव आधार पर ये तय करा गया की एक तो बस का किराया बहुत ज्यादा होता है ऊपर से आप आपनी पसंद की जगह पर रुक भी नहीं सकते, उसके अलावा बस तक आने जाने की परेशानी और मनाली में फिर से घुमने के लिए टैक्सी की जरुरत, सो इन सब से बचने के लिए घर से ही टैक्सी करके चला जाये। पर मुझे यह बात नहीं जची और मैंने कहा की टैक्सी का खर्च भी तो बहुत होगा उससे तो आच्छा है की खुद ही ड्राइव करके आपनी गाड़ी से चले जिस पर मेरी दीदी ने कहा की मम्मी और पापा नहीं मानेगे तो उन्हें मानाने की जिम्मेदारी मैंने ले ली।
उसके बाद हम सब ने सुबह इस पर बात करने का सत्य बचन देकर सोने का फैसला करा, लेकिन अपने छोटे से मजाक की इतनी सारी रुपरेखा बनती देख मुझे रात भर नींद ही नहीं आई और में खुली आँखों से सुबह तक मनाली के सपने देखता रहा। सुबह उठकर आपनी श्रीमती जी (जो की घर पर आगरा में थी) को फ़ोन पर आपने उच्च विचारो से अवगत कराया तो उन्होंने हमेशा की तरह मजाक मानकर कह दिया की ठीक है हमारे घर बापसी पर इसके बारे में बात करेंगे, घर आने पर जैसे तैसे हमने मम्मी जी और पापा जी से अपनी गाड़ी (मारुती वैगनआर) को खुद चला कर मनाली जाने की अनुमति ले ली और जाने का जो शुभ मुहूर्त निकलवाया वो था ०७ जुलाई २०११ का पवित्र दिन।
दूसरी मुख्या अड़चन थी कार्यालय से छुट्टी लेना जिसके लिए हमें ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी . अपने इस यात्रा के स्वप्न के सच होने की प्रतीक्षा कर रहे थे की तभी एक दिन हमारी फ़ोन पर बात हमारे परम मित्र पावा जी (जो की फरीदाबाद में रहते है और हम से उम्र में मात्र १५-१८ बर्ष बड़े है) से हुई जिन्हें हमने आपने प्लान के बारे में बताया, तो उन्होंने तुरंत ही फ़ोन पर हमारी पहले डाट लगा दी की इतने लम्बे रास्ते ड्राइव करना ठीक नहीं है पर हमारे ना मानने पर हमें एक आदेश दिया की एक काम करना आपनी वैगनआर मुझे फरीदाबाद में दे जाना और मेरी फोर्ड फिगो (टॉप मॉडल जो की उन्होंने १ साल पहले ही ली थी) ले जाना क्युकी फिगो डीजल गाड़ी है जो की हमें वैगनआर के पेट्रोल के खर्च से बहुत सस्ती पड़ेगी।
बस फिर क्या था आपने मित्र के ऐसे ममता मयी प्यार के आगे हम कुछ भी न कह पाए और ४ जुलाई २०११ को आपनी श्रीमती जी के साथ आपनी धन्नो में सवार होकर दीदी के घर के लिए आगरा से वैशाली गाजियाबाद चल दिए। ५ जुलाई २०११ को में और जीजा जी फरीदाबाद मेरे मित्र पावा जी के घर गए और आपनी धन्नो को देकर पावा जी की बसंती को आपने साथ ले आये।
जीजा जी की नाईट शिफ्ट होने के कारन ७ जुलाई की सुबह ५ बजे हम पाँच लोगो का मनाली के लिए प्रस्थान होना था। । पाँच लोग ??? अरे मेरी ८ महीने की भांजी भी तो थी न “पीहू”…. ६ जुलाई की शाम को जीजाजी के ऑफिस जाने के बाद से ही दीदी और हमारी पत्नी जी जाने की पैकिंग और रस्ते में खाने के लिए मठरी (4 दिन के हिसाब से रास्ते में हल्का फुल्का खाने को) बनाने में लग गयी। प्रोग्राम कुछ इस तरह से था की सुबह जीजा जी ऑफिस से थके हुए आयेंगे इसीलिए सुबह ड्राइव में करूँगा और वो पीछे की सीट पर आराम कर लेंगे। पर हुआ कुछ ऐसा की जाने की ख़ुशी में रात २ बजे तक तो मुझे ही नींद नहीं आई थी और दीदी और श्रीमती जी तो पता नहीं कब तक तैयारी में ही लगी रही।
सुबह लगभग ६ बजे, हम घर से निकल कर आनंद विहार पहुचे गाड़ी में सिर्फ ₹ १००० का डीजल डलवाया क्युकी बाकि का हम अम्बाला से खरीदने वाले थे। पर ये क्या गूगल देवता की मदत से जो रास्ते का नक्शा मैंने निकल था वो तो में घर पर ही भूल गया और जी टी रोड तक पहुचने का रास्ता मुझे नहीं पता था इसीलिए हम दिल्ही में ही रास्ता भटक गए। इसे कहते है सर मुड़ते ही ओले पड़ना ……
बरहाल किसी तरह हम पूछते हुए जी. टी. रोड तक पहुच गए पर इसमें समय बहुत ख़राब हुआ, भीड़ की कमी और अच्छे रास्ते के कारन गाड़ी चलने में मुझे बड़ा मजा आ रहा था, सुबह का मौसम भी बहुत आच्छा था, और में भी पावा जी की गाड़ी के साथ भी आपना सामंजस्य बिठा चुका था, सुबह लगभग साढ़े आठ बजे पीहू की नींद खुल गयी जिसे की हमने सुबह सोते हुए ही गाड़ी में लिटा दिया था और उसके सुबह के विविध भारती प्रसारण के साथ ही जीजा जी की भी आँख खुल गयी जिनमे आभी तक सही से नींद भी नहीं आयी थी। शानदार रोड पर नियमित रफ़्तार पर “बसंती’ चली जा रही थी।
घर से निकले हुए हमें लगभग ३ घंटे हो चुके थे और अब कुछ नाश्ते की पुकार पेट से निकल कर जुबा पर आने लगी थी, पर इस की तैयारी हमारी दीदी और श्रीमती जी ने घर पर ही कर ली थी यहाँ तक की उन्होंने पहले दिन का दोपहर का खाना भी बना कर रख लिया था। सो आब बारी थे नाश्ते की जिसमे की हमें गरमा गर्म चाय, ब्रेड सैंडविच और 4 दिन के हिसाब से बनायीं गयी मट्ठी मिली। नाश्ता करने की बाद बसंती तो फिर से हवा से बात करने लगी लेकिन हम चारो (पीहू के अलावा) को कुछ कमी सी लग रही थी इसीलिए हमने उस कमी को दूर करने के लिए मट्ठी के डब्बे को आगे वाली सीटो के बीच हैण्ड ब्रेक के पास रख लिया और करनाल पहुचने के आसपास हमें एहसास हुआ की ४ दिन चलने वाली मट्ठी का डब्बा ४ घंटे में खाली हो चुका है।
करनाल पार करने की बाद मौसम बड़ा ही आच्छा हो चुका था, काफी घने काले बादल छाये हुए थे और ठंडी तेज हवा भी चल रही थी, मैंने गाड़ी साइड में खड़ी करी और आपनी श्रीमती जी के साथ कुछ फ़ोटो खीचने के लिए गाड़ी से बहार आ गया। लेकिन ये क्या आभी फ़ोटो खीचना शुरू ही करा था की ये घनघोर घटा तेज बारिश के रूप में हमारे सफ़र को और खुशनुमा करने के लिए बरसने लगी, अब हुआ ये की एक तो में वैसे ही ८०-९० से ऊपर गाड़ी चलने की कभी कोशिश तक नहीं करता हु और बारिश के बाद तो मेरी गाड़ी की रफ़्तार और भी थोडा कम हो गयी. जिसकी बजह से हमें अम्बाला पहुचने में बहुत समय लगा।
अम्बाला पहुचने तक बारिश और तेज हो चुकी थी जिसकी बजह से शहर में कई जगह पानी भर गया था, हमारा सबसे पहला उद्देश्य गाड़ी में डीजल भरबाना था इसीलिए हमने एक पेट्रोल पंप जो की शहर के मध्य था वहा से गाड़ी का टैंक फूल करवाया और उसी पेट्रोल पंप से बन्नूर वाला रास्ता पूछा, बताये रास्ते के अनुसार हम पेट्रोल पंप से बहार निकलकर राजपुरा बाले रास्ते की तरफ चले जहा पर हमें टोल टैक्स के बूथ से ठीक पहले सीधे हाथ पर मुड़ना था, पर ये क्या हम जैसे ही राजपुरा बाले रास्ते की तरफ चले सामने सड़क पर पानी ऐसे भरा था जैसी की कोई छोटी नदी बह रही हो हमें अब इस छोटी नदी को पार करना था पर इस नेक कार्य के लिए मैंने गाड़ी की कप्तान वाली गद्दी आपने जीजा जी को सौप दी। जीजा जी ने भी बखूभी इस साहसिक कार्य को अंजाम दिया कुछ ही दूर चलने पर हमें वो टोल प्लाजा दिखयी दिया जहा से की हम सीधे हाथ की तरफ मुड़ गए।
यहाँ के आगे सिंगल रूट था पर वो काफी चौड़ा था और वहाँ गाड़ी चलाने में कोई दिक्कत नहीं थी दोनों तरफ खेत और बीच में वो रास्ता बड़ा ही सुन्दर लग रहा था जहा से हम खरड़ होते हुए रोपड़ जाने वाले मुख्या मार्ग पर कुराली टोल प्लाजा के पास पहुचे, टोल लेने के बाद मुश्किल से ५-१० मिनट ही चले होंगे की फिर से एक और टोल प्लाजा आया जहा पर फिर से हमें टोल कटबाना पड़ा। कुछ समय के बाद हम रोपड़ जिसे की अब रूपनगर कहते है पहुच गए थे पर हम शहर में ना जाकर मुख्या मार्ग से ही सीधे हाथ की तरफ मुड़ गए, दोपहर लगभग १२:३० से १ बजे का समय हो रहा होगा भूख जोरो से लग रही थी इसीलिए हमारे घर से लाये हुए खाने को खाने के लिए रुकने की कहा गया, पर जीजा जी बोले की पहले ही काफी लेट है इसीलिए ऐसे ही चलती गाड़ी में खा लेंगे। खाना तो चलती गाड़ी में खा लिया पर खाना खाने के बाद क्युकी सुबह से ही सफ़र कर रहे थे इसीलिए एक अच्छे ढाबे पर चाय पीने के लिए हमने गाड़ी रोक दी।
वहाँ चाय पीने के दोरान पता लगा की वहाँ से “नैना देवी” का मंदिर पास में ही है, तो सर्व सहमति से निर्णय लिया गया की पहले नैना देवी के दर्शन कर लेते है फिर आगे का सफ़र तय करा जायेगा. ढाबे से निकलने के बाद हमारा अगला उद्देश्य नैना देवी का मंदिर था, थोड़ी देर में शायद आनंदपुर साहिब से आगे निकलने पर हमें पहाड़िया मिलनी शुरू हो गयी जिन्हे देखकर हम सभी की ख़ुशी का कोई ठीकाना ही नहीं था, पहाड़ियो पर गाड़ी तो जीजा जी चला रहे थे पर अब हम भी पीछे की सीट पर सतर्क मुद्रा में बेठ कर ध्यान आगे के रास्ते पर लगाये हुए थे और सुन्दर नजरो का आनंद लिए जा रहे थे।
थोड़ी देर में हम पूछते पाछते नैना देवी के मंदिर के नीचे तक पहुच गए थे जहा पर गाड़िया बड़ी ही बेतरतीब से पार्क करी हुई थी, वहाँ मूलत जो पार्किंग थी वो बड़ी ही सीधी सी पहाड़ी पर ऊपर जाकर थी जहाँ गाड़ी चढ़ाने की हिम्मत दिखने की हमने सोचा तक नहीं और वही पहाड़ी के नीचे ही और गाडियो की तरह ही हम भी आपनी गाड़ी एक तरफ खड़ी करके और सामने दुकान पर बेठी एक आंटी को कुछ पैसे देकर गाड़ी की देखभाल करने का बोल कर नंगे पैर माता के दर्शन को चल दिए।
सामने से देखने पर कुछ दुकानो के छोटे से झुण्ड की तरह दिखने वाले रास्ते से होते हुए हम आगे बढ़े तो मंदिर तक पहुचने के लिए सीडिया शुरू हो जाती है, वही ऊपर की तरफ चढ़ते हुए ही हमें कुछ भक्त देवी माँ की बड़ी सी छड़ी लेकर देवी के दरबार में जाते हुए दिखे जो की बड़े ही सुन्दर माँ के भजन गाते हुए जा रहे थे।
भवन तक पहुचने के लिए लगभग ७०० सीडिया चढ़ना पड़ता है जिन्हे चढ़ने में हमारी जो हालत हुई वो में बता नहीं सकता, जैसे तैसे हम ऊपर भवन तक पहुचे वहाँ पर दर्शनों के लिए लम्बी लाइन लगी हुई थी जिसमे खड़े होने के थोड़ी देर बाद हमारा भी भाग्य उदय हुआ और हमें माँ के दर्शन का लाभ मिला। माँ के दर्शन के बाद हम लोगो ने मंदिर के पीछे ही लंगर में प्रशाद ग्रहण करा और वापस नीचे उतरने लगे। नैना देवी के मंदिर और दर्शनों में हमें कुल मिलकर लगभग २.५ से ३ घंटे का समय लगा । लगभग ५ बजकर १५ मिनट पर हम फिर से अपनी वसंती में सवार होकर आपनी अगली और मुख्या मंजिल मनाली की तरफ चल दिए।
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Welcome aboard Jitendra.
Your story is finally up here, after a lot of hard work from you. By 5 you are at Naina Devi so I am guessing that you are not going to reach Manali anytime soon :-). I was last there on this route (till Karoli, on the way to Jahu in HP) in July and now one doesn’t need to go to Chandigarh for Ropar.
Look forward to next part, soon. Wishes.
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welcome to Ghumakkar. nice post, interesting way of narrative.
Hi Jitendra ji
Congrats for your Ist post.
A very nice and sincere effort to write this travelogue, which quite reflects in each word of it.
Keep it up in this interesting way.
Content is nice and descriptive, but I too endorse the advice given by Mukesh Bhalse ji, correct spellings are very necessary to enjoy a good piece of writing.
I hope, you will take it in a positive way and try to correct the mistakes, before sending it to Ghumakkar.
Thanx for sharing.
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laddha jee,
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https://www.ghumakkar.com/manali%E2%86%92beautiful-hill-town-of-himachal-pradesh/
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https://www.ghumakkar.com/agra-to-manali-via-noidadelhi-by-car-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%B9%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%B8%E0%A4%AB%E0%A4%BC%E0%A4%B0-%E0%A4%AE%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A5%80/
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