पà¥à¤°à¤¿à¤¯ मितà¥à¤°à¥‹à¤‚,
आप जान ही चà¥à¤•े हैं कि हम सहारनपà¥à¤° से कार से दिलà¥à¤²à¥€ और फिर दिलà¥à¤²à¥€ से वायà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से उदयपà¥à¤° पहà¥à¤‚चे, रातà¥à¤°à¤¿ में उदयपà¥à¤° में वंडर वà¥à¤¯à¥‚ पैलेस में रà¥à¤•े, अगले दिन अंबाजी माता मंदिर, जगदीश मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ करते हà¥à¤ माउंट आबू में जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर आ पहà¥à¤‚चे। शाम को sunset point और नकà¥à¤•ी à¤à¥€à¤² घूमे, अगला पूरा दिन à¤à¥€ दिलवाड़ा मंदिर, गà¥à¤°à¥ शिखर, अनादरा पà¥à¤µà¤¾à¤‡à¤‚ट, पीस पारà¥à¤• आदि घूमते फिरते रहे, बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ केनà¥à¤¦à¥à¤° के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ परिसरों के दरà¥à¤¶à¤¨ करते हà¥à¤ शाम को पà¥à¤¨à¤ƒ नकà¥à¤•ी à¤à¥€à¤² पर आगये। रात को जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर में ही रà¥à¤•े और सà¥à¤¬à¤¹ पांच बजे पà¥à¤¨à¤ƒ उदयपà¥à¤° के लिये पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ किया और दस बजे उदयपà¥à¤° में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ किया।

à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ लोक कला मंडल उदयपà¥à¤° में कठपà¥à¤¤à¤²à¥€ शो
अब हमारे पास आज का दिन यानि ३० मारà¥à¤š, ३१ मारà¥à¤š और १ अपà¥à¤°à¥ˆà¤² बाकी बचे थे। १ अपà¥à¤°à¥ˆà¤² को शाम को पांच बजे हमारी वापसी उदयपà¥à¤° à¤à¤¯à¤°à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿ से होनी थी। हमारे विचार से इतना समय उदयपà¥à¤° घूमने के लिये परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ था। फिर à¤à¥€ à¤à¤¸à¤¾ लगता है कि हमने काफी सारे दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ सà¥à¤¥à¤² या तो छोड़ दिये या फिर देखे होंगे तो हमें वहां की कà¥à¤› विशेष मनोरंजक सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ आज शेष नहीं है।  खैर, उदयपà¥à¤° दरà¥à¤¶à¤¨ का शà¥à¤à¤¾à¤°à¤‚ठहà¥à¤† – à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ लोक कला मंडल से जो फतेह सागर लेक के निकट ही à¤à¤• बाज़ार में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। जब बाबूराम ने पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर टैकà¥à¤¸à¥€ रोकी और कहा कि ये à¤à¤• मà¥à¤¯à¥‚ज़ियम है, इसे देख आइये और वापसी में टैकà¥à¤¸à¥€ पारà¥à¤•िंग में आ जाइयेगा तो मैने आधे सोते – आधे जागते, (संकà¥à¤·à¥‡à¤ª में कहें तो ऊंघते हà¥à¤) अपने परिवार को जगाया और कहा कि चलो, मà¥à¤¯à¥‚ज़ियम देख लो तो वे बड़े बे मन से अंगड़ाई लेते हà¥à¤ टैकà¥à¤¸à¥€ में से निकले और टिकट खरीद कर à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ लोक कला मंडल नामक मà¥à¤¯à¥‚ज़ियम में घà¥à¤¸à¥‡! सच कहूं तो हमारे इन तीनों ही सहयातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को लोक कलाओं में कोई विशेष रà¥à¤šà¤¿ नहीं थी और ये सब देखने के लिये मरा मैं à¤à¥€ नहीं जा रहा था।Â
वरà¥à¤· 1952 में à¤à¤• पà¥à¤°à¤–à¥à¤¯à¤¾à¤¤ लोक कलाविदà¥â€Œ सà¥à¤µ. देवीलाल सामर ने इस मà¥à¤¯à¥‚ज़ियम की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की थी और यहां पर टैराकोटा, पतà¥à¤¥à¤°, लकड़ी, मिटà¥à¤Ÿà¥€ आदि से बनी हà¥à¤ˆ कलाकृतियां दिखाई गई हैं।

मानव आकार के मॉडल जो विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ जनजातियों के पहनावे और सजà¥à¤œà¤¾ को चितà¥à¤°à¤¿à¤¤ करते हैं।
मानव आकार की, कठपà¥à¤¤à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ जैसी मानव आकृतियां जैसे à¤à¥€à¤²à¤¨à¥€, कंजरी वहां शीशे के शोकेस में सजाई गई हैं। यही नहीं लोक नृतà¥à¤¯ की विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ शैलियां, दीवारों को और धरती को सजाने के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ तरीके वहां दिखाये गये हैं। जैसा कि वहां पर लिखा हà¥à¤† था, मोलेला के टेराकोटा की अमà¥à¤¬à¤¾ माता, चामà¥à¤£à¥à¤¡à¤¾, धरà¥à¤®à¤°à¤¾à¤œ और रतना रेबारी की कलातà¥à¤®à¤• मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ हैं. दीवारों पर पेराकोटा से बनी लोक जीवन और पारà¥à¤µà¤¤à¥€ की à¤à¤¾à¤‚की पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¿à¤¤ की गई हैं। इसके अतिरिकà¥à¤¤ यहां तà¥à¤°à¥à¤°à¤¾ कलंगी, रामलीला, रासलीला, गवरी, à¤à¤µà¤¾à¤ˆ नृतà¥à¤¯ की पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ देखी जा सकती हैं। इन में, गवरी नृतà¥à¤¯ नाटिका, जनजातियों के मॉडल, विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ में जनजातियों में पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ मà¥à¤–ौटे, लोक देवी-देवता, मेंहदी के माणà¥à¤¡à¤¨à¥‡, जमीन पर बनाये जाने वाले à¤à¥‚मि अलंकरण, दीवारों पर उकेरी जाने वाली सांà¤à¥€ और विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ अवसरों पर बनाये जाने वाले थापे, जनजाति नृतà¥à¤¯ à¤à¥€à¤²à¥‹à¤‚ का गेर और राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ नृतà¥à¤¯ घूमर, गीदड नृतà¥à¤¯, नाथ समà¥à¤ªà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¯ का अगà¥à¤¨à¤¿ नृतà¥à¤¯ के बारे में विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से जानकारी दी गई है।  वहां से मैं à¤à¤• पैंफलेट लाया था जिसके अनà¥à¤¸à¤¾à¤° इस संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ के वादà¥à¤¯ यंतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में सारंगी, रूबाब, कामायचा बाजोड़ और घूम-घूमकर कराये जाने वाले देवदरà¥à¤¶à¤¨ का माधà¥à¤¯à¤® देवी देवताओं के कलातà¥à¤®à¤• चितणà¥à¤° यà¥à¤•à¥à¤¤ कावड़ विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ राजà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की जनजातियों मे पाये जाने वाले आà¤à¥‚षण, मोर चोपड़ा, बाजोड़, तेजाजी के जीवन पर आधारित चितà¥à¤°à¤¾à¤µà¤²à¥€, पथवारी का मॉडल समेत अनà¥à¤¯ लोक कलाओं का अनूठा संगà¥à¤°à¤¹ है। इसके अलावा पारमà¥à¤ªà¤°à¤¿à¤• धागा कठपà¥à¤¤à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ में सांप-सपेरा, बहà¥à¤°à¥à¤ªà¤¿à¤¯à¤¾, पटà¥à¤Ÿà¥‡à¤¬à¤¾à¤œ, तलवारों की लड़ाई, गेंदवाली, घोड़ा-घà¥à¤¡à¤¼à¤¸à¤µà¤¾à¤°, कचà¥à¤›à¥€ घोड़ी, ऊंट, बंजारा-बंजारी, तबला-सारंगी नरà¥à¤¤à¤•ी, रामायण, मà¥à¤—ल दरबार और संगठित रूप से बाल नाटà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ à¤à¥€ दी जाती हैं।

लोक नृतà¥à¤¯ की विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤à¤‚ – à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ लोक कला मंडल, उदयपà¥à¤°
मेरी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी तो सदैव से विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की छातà¥à¤°à¤¾ रही हैं अतः उनको इन सब में विशेष रà¥à¤šà¤¿ नहीं थी अतः हम बिना किसी à¤à¥€ à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ देर रà¥à¤•े आगे बà¥à¤¤à¥‡ रहे। कठपà¥à¤¤à¤²à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ वाले सेकà¥à¤¶à¤¨ में पहà¥à¤‚च कर कà¥à¤› मज़ा आना शà¥à¤°à¥ हà¥à¤† जब हमें à¤à¤• कठपà¥à¤¤à¤²à¥€ शो दिखाया गया। उन लोगों ने बताया कि यहां पर कठपà¥à¤¤à¤²à¥€ बनाना और शो करना सिखाया à¤à¥€ जाता है।
वहां से निकले तो लगà¤à¤— à¤à¤• बजे थे। सबने à¤à¤• दूसरे की ओर देखा और बिना कà¥à¤› बोले, à¤à¤• दूसरे के मà¥à¤°à¥à¤à¤¾à¤¯à¥‡ हà¥à¤ चेहरे देख कर समठगये कि ऊरà¥à¤œà¤¾ का सà¥à¤¤à¤° काफी नीचे आ चà¥à¤•ा है और अब पैटà¥à¤°à¥‹à¤² à¤à¤°à¤¨à¤¾ पड़ेगा। बाबूराम को कहा कि कहीं à¤à¥€ और जाने से पहले खाना खाना है। जब उसने पूछा कि कहां चलें तो हमने उससे ही पूछा कि आसपास में à¤à¤¸à¤¾ अचà¥à¤›à¤¾ रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤‚ट कौन सा है जहां खाना अचà¥à¤›à¤¾ मिल जाये। उतà¥à¤¤à¤° मिला – बावरà¥à¤šà¥€! हमने कà¤à¥€ बचपन में बावरà¥à¤šà¥€ फिलà¥à¤® à¤à¥€ देखी थी और बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¥€ लगी थी तो कहा कि ठीक है, वहीं चलो!  खाना वाकई अचà¥à¤›à¤¾ लगा। खा पीकर जब कà¥à¤› जान में जान आई तो फिर हम निकल पड़े राणा पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª मैमोरियल देखने के लिये जो फतेह सागर à¤à¥€à¤² से लगती हà¥à¤ˆ à¤à¤• पहाड़ी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ को मोती मागड़ी कहा जाता है।

मोती मागड़ी का आकरà¥à¤·à¤• पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° – राणा पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª मैमोरियल

महाराणा पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª मैमोरियल (मोती मागड़ी) ! फवà¥à¤µà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ के पीछे पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ à¤à¥€ दिखाई दे रही है।

मोती मागड़ी से फतेह सागर लेक का आकरà¥à¤·à¤• दृशà¥à¤¯
यहां हमें महाराणा पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª की à¤à¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ और à¤à¤• अनà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾ धनà¥à¤°à¥à¤§à¤° à¤à¥‹à¤²à¤¾ की दिखाई दी। विशाल काय फवà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बना हà¥à¤† था, पर दोपहर में वह चल नहीं रहा था। दो चार फोटो खींच कर हम वहां से वापसी के लिये चले तो पहाड़ी रासà¥à¤¤à¥‡ से बाईं ओर फतेह सागर à¤à¥€à¤² का बड़ा सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° दृशà¥à¤¯ देख कर बाबूराम को गाड़ी रोकने के लिये कह कर फोटो खींचने के इरादे से मैं उतर गया और अपने घरवालों की नाराज़गी की चिनà¥à¤¤à¤¾ किये बगैर इधर – उधर की फोटो खींचता रहा।
कà¥à¤› दृशà¥à¤¯ अपने कैमरे में कैद करने के बाद आगे बà¥à¥‡ तो वीर सà¥à¤¥à¤² के नाम से à¤à¤• और संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ मिला सो हम सब वहां कà¥à¤¯à¤¾ है, यह देखने के लिये गाड़ी से उतर गये ।  इस संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ का मà¥à¤–à¥à¤¯ आकरà¥à¤·à¤£ यह है कि यहां पर राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ योदà¥à¤§à¤¾à¤“ं का परिचय दिया गया है, साथ ही हलà¥à¤¦à¥€à¤˜à¤¾à¤Ÿà¥€ के मैदान का विशाल मॉडल बना हà¥à¤† था।   हम चूंकि हलà¥à¤¦à¥€à¤˜à¤¾à¤Ÿà¥€ जाने का समय नहीं निकाल पा रहे थे, अतः हलà¥à¤¦à¥€à¤˜à¤¾à¤Ÿà¥€ का यह 3-D मॉडल देख कर ही संतà¥à¤·à¥à¤Ÿ हो लिये।
- वीर सà¥à¤¥à¤², उदयपà¥à¤° का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° – यह à¤à¤• अचà¥à¤›à¤¾ संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ है।

हलà¥à¤¦à¥€à¤˜à¤¾à¤Ÿà¥€ के यà¥à¤¦à¥à¤§ सà¥à¤¥à¤² का मॉडल – वीर सà¥à¤¥à¤², उदयपà¥à¤°

वीर पà¥à¤°à¤¸à¥‚ता पनà¥à¤¨à¤¾ धाय जिसने अपनी सनà¥à¤¤à¤¾à¤¨ की बलि दे कर à¤à¥€ राणा की जान बचाई !
वहां से आगे बà¥à¥‡ तो दोनों महिलाओं ने कहा कि बस, घूम – घूम कर थकान हो रही है। यहां उदयपà¥à¤° में बाज़ार नहीं है कà¥à¤¯à¤¾?  इशारा समà¤à¤¤à¥‡ हà¥à¤ बाबूराम उनको हाथीपोल नामक à¤à¤• बाज़ार में ले आया जहां आकर दोनों महिलाओं के चेहरे पर कà¥à¤› रौनक वापस लौटी। घंटा à¤à¤° कà¥à¤› दà¥à¤•ानों में à¤à¤•मारी कर के, बिना कà¥à¤› खरीदे जब ये वापस कार तक आईं तो काफी पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ थीं। उनको कà¥à¤› सामान पसनà¥à¤¦ तो आया था पर और कà¥à¤› दà¥à¤•ानों पर रेट वगैरा की पà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ करने के इरादे से वापिस आ गई थीं। मेरी à¤à¥€ जान में जान आई।  मेरी जेब वहीं की वहीं सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ थी।
अगला पड़ाव था – शिलà¥à¤ª गà¥à¤°à¤¾à¤®! शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® उदयपà¥à¤° में १३० बीघा पठारी कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¤«à¤² में, आंचलिक लोक कलाओं को पà¥à¤°à¥‹à¤¤à¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¨ देने के लिये बसाया गया à¤à¤• विशाल परिसर है जो पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ मीडिया रिपोरà¥à¤Ÿ के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° अपने शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® परà¥à¤µ के लिये बहà¥à¤¤ खà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¤¿ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ कर रहा है। मधà¥à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶, राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨, गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤, महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤° और गोवा पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶à¥‹à¤‚ के सहयोग से विकसित इस शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® में गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ जन-जीवन ही नहीं बलà¥à¤•ि à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ अरà¥à¤¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की à¤à¥€ विशद à¤à¤¾à¤‚की देखने को मिलती है। à¤à¤• परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• के रूप में इसे दो-à¤à¤• घंटे में न तो ठीक से देखा जा सकता है और न ही समà¤à¤¾ जा सकता है।  यदि आप वासà¥à¤¤à¤µ में à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥à¤¯ जन-जीवन को समà¤à¤¨à¤¾ चाहते हैं, उस पर शोध करने के इचà¥à¤›à¥à¤• हैं तो आपको १४ दिसंबर से ३१ दिसंबर तक शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® में ही रहना चाहिये। खास कर २१ दिसंबर से ३१ दिसंबर तक तो यहां पर शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® महोतà¥à¤¸à¤µ का अà¤à¥‚तपूरà¥à¤µ आयोजन होने लगा है जिसे देखना सà¥à¤µà¤¯à¤‚ में à¤à¤• सà¥à¤®à¤°à¤£à¥€à¤¯ अनà¥à¤à¤µ होगा। हम लोग तो टूरिसà¥à¤Ÿ थे, शोधारà¥à¤¥à¥€ नहीं अतः शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® का à¤à¤• चकà¥à¤•र लगा कर, कà¥à¤› फोटो खींच कर बाहर निकल आये पर मेरा मन है कि à¤à¤• बार कà¥à¤› दिन के लिये उदयपà¥à¤° पà¥à¤¨à¤ƒ जाऊं और इस बार पूरा समय शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® में ही बिताऊं। तथापि, अपने खींचे हà¥à¤ कà¥à¤› चितà¥à¤° आप सब की सेवा में पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ हैं जो सामानà¥à¤¯ दिनों में वहां के जीवन की कà¥à¤› बानगी तो दे ही सकते हैं।

शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® का नकà¥à¤¶à¤¾ जो पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर लगा हà¥à¤† पाया गया।

शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® में राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨, मधà¥à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶, महाराषà¥à¤Ÿà¥à¤°, गà¥à¤œà¤°à¤¾à¤¤ और गोवा के गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ जन-जीवन की à¤à¤¾à¤‚की देखने को उपलबà¥à¤§ है।

सामानà¥à¤¯ सा दिखने वाला हथकरघा जो कà¥à¤¶à¤² हाथों में हो तो कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾à¤¤à¥€à¤¤ हसà¥à¤¤à¤¶à¤¿à¤²à¥à¤ª के नमूने देता है।

ये गà¥à¤°à¤¾à¤®à¥€à¤£ महिला हमें सारे रासà¥à¤¤à¥‡ परेशान करती रही !

हमें आते देख कर इस परिवार ने राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ नृतà¥à¤¯ – नाटिका का पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ आरंठकर दिया ।

अबला नहीं, सबला हूं मैं ! मà¥à¤‚ह में कटार लिये यही कह रही है ये राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ नरà¥à¤¤à¤•ी !

à¤à¤• ही सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर सà¥à¤¥à¤¿à¤° बैठे – बैठे ये कैसा नृतà¥à¤¯ था – आप खà¥à¤¦ देखो और जान जाओ !

शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® में हाट à¤à¥€ है जहां आप वहीं पर बनाई गई वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ खरीद à¤à¥€ सकते हैं।

घर की सजà¥à¤œà¤¾ के लिये किसी Interior Decorator को लाखों रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ देने आवशà¥à¤¯à¤• नहीं। सिरà¥à¤« सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ बोध काफी है।

हाथ में दो चपटे पतà¥à¤¥à¤° लेकर इतनी करà¥à¤£à¤ªà¥à¤°à¤¿à¤¯ ताल को जनà¥à¤® दे सकते हैं ये राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ गायक !

यहां पर देश à¤à¤° से कलाकार आकर दिसंबर में शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® महोतà¥à¤¸à¤µ में अपनी कला का पà¥à¤°à¤¦à¤°à¥à¤¶à¤¨ करते हैं।

Amphi-theatre को हिनà¥à¤¦à¥€ में कà¥à¤¯à¤¾ कहते हैं DL जी? 800 दरà¥à¤¶à¤• कà¥à¤·à¤®à¤¤à¤¾ का थियेटर !

जरा हमें à¤à¥€ तो सिखाओ, ये साड़ी कैसे बनाई ?

पूरे आरà¥à¤•ेसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¾ का जà¥à¤—ाड़ घर में ही – ससà¥à¤° जी ढोलक बजायें, पà¥à¤¤à¥à¤°à¤µà¤§à¥ डांस करे ! In-house facilities !

वातानà¥à¤•ूलित घर से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ मज़े हैं यहां इस à¤à¥‹à¤‚पड़ीनà¥à¤®à¤¾ घर में ।

इतना बड़ा आंगन? ये 10 जनपथ नहीं, राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ के शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® नामक गांव की कहानी है।
शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® से हम बाहर निकले तो बाबू ने पास में ही, न जाने किस पारà¥à¤• में गाड़ी ले जाकर खड़ी कर दी। ( हम शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® में घà¥à¤¸à¥‡ à¤à¤• सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से थे और निकले कहीं और से पर ये बाबू हमें दोनों जगह कैसे मिल गया, ये आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ की बात है à¤à¥€, और नहीं à¤à¥€ ! )  बीच में à¤à¤• फवà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾, अचà¥à¤›à¤¾ हरा – à¤à¤°à¤¾ लॉन, अचà¥à¤›à¥‡ – अचà¥à¤›à¥‡ चेहरे थकान मिटाने के लिये काफी उपयà¥à¤•à¥à¤¤ सिदà¥à¤§ हà¥à¤à¥¤Â घास पर लेटे रहे, कोलà¥à¤¡-डà¥à¤°à¤¿à¤‚क पीते हà¥à¤ चिपà¥à¤¸ खाते खाते घंटा à¤à¤° वहीं बिताया।

उदयपà¥à¤° में शिलà¥à¤ªà¤—à¥à¤°à¤¾à¤® से बाहर नज़दीक ही कोई पारà¥à¤• !

ऊंट की सवारी नहीं सही तो ऊंट के साथ फोटो ही सही !
जब सूरà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥à¤¤ हो गया तो महिलाओं को फिर हà¥à¥œà¤• उठी कि बाज़ार चलते हैं। बाबू कà¥à¤› à¤à¤‚पोरियम में ले कर गया पर हम हर जगह यही शक करते रहे कि पता नहीं, कैसा सामान होगा, पता नहीं कितना महंगा बता रहे होंगे। मैने à¤à¤• बार à¤à¥€ शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी को जिद नहीं की कि ये सामान अचà¥à¤›à¤¾ है, खरीद लो! हम लोगों ने पहले ही तय कर रखा था कि यदि हम में से कोई कà¥à¤› खरीदना चाहेगा और दूसरा मना कर देगा तो वह चीज़ नहीं खरीदी जायेगी। इसके बाद पà¥à¤¨à¤ƒ हाथी पोल आये और शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी ने दो जयपà¥à¤°à¥€ रजाइयां खरीद ही डालीं जो वज़न में बहà¥à¤¤ हलà¥à¤•ी थीं और पैक होने के बाद उनका आकार à¤à¥€ बहà¥à¤¤ कम रह गया था !
खाना पà¥à¤¨à¤ƒ बावरà¥à¤šà¥€ में ही खा कर हम वापिस होटल वंडरवà¥à¤¯à¥‚ पैलेस में पहà¥à¤‚च गये जहां हमारे नाम के दोनों कमरे बà¥à¤• थे।  अगला दिन हमने तय कर रखा था – सिटी पैलेस, बागौर की हवेली, नेहरू पारà¥à¤•, और नाथदà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ मंदिर देखने के लिये।
सुशांत जी, नया साल मुबारक हो! हमेशा की तरह बढ़िया विवरण और जबरदस्त फोटोज. शिल्पग्राम को आपकी नज़र से देखकर अच्छा लगा…फोटोज तो थोक के भाव हैं आज…:)…मजा आ गया…
विपिन जी,
आपको और आपके परिवार व मित्रों को भी नव-वर्ष की शुभ – कामनायें । पोस्ट तक आने, पढ़ने और इसे पसन्द करने के लिये धन्यवाद । :)
सब से पहले, नया साल मुबारक हो, आप को और आपके परिवार के सब सदस्यों को।
घुमक्कड़ में 2012 का आखरी पोस्ट आप ही का है। हमेशा की तरह बहुत बढ़िया विवरण और बेहतरीन तस्वीरें। Rajasthan is indeed a tourist’s paradise. Shilpagram looked awesome, showcasing a lifestyle that will disappear soon. It is essential that we preserve our ancient traditions and culture through such efforts. Great to see the memory of the great patriot, Rana Pratap enshrined in such a befitting manner.
“Amphi-theatre को हिन्दी में क्या कहते हैं DL जी?” आप तो मज़ाक कर रहे हैं, सुशांत जी, कहाँ राजा भोज और कहाँ गंगू तेली?
फिर भी, आप का हुकुम सर माथे पर…….”अर्ध चंद्राकारी रंगस्थल” कैसा रहेगा?
डीयर डी.एल.,
मुझे पता था कि मेरे प्रश्न का कुछ न कुछ लाजवाब उत्तर अवश्य मिलेगा। आभार ! ऑक्सफोर्ड प्रेस को लिखे दे रहा हूं कि “अर्द्धचंद्राकारी रंगशाला” नाम फाइनल कर दिया गया है! अगर आप शिल्पग्राम की वेबसाइट देखेंगे तो आपको 21 से 31 दिसंबर के दौरान चलने वाले महोत्सव की सैंकड़ों फोटो दिखाई देंगी ! मुझे भी बड़ा आश्चर्य हुआ उनको देख कर कि यहां पर इतनी जबरदस्त सांस्कृतिक गतिविधियां चलती हैं। 2007 के पहले ऐसा कुछ नहीं होता था।
Happy New Year 2013, Nice to see water in Rajesthan, may be other people can learn water Management.
Thanks
“ये ग्रामीण महिला हमें सारे रास्ते परेशान करती रही “! इस वाक्य को लिखने के बाद का वाकया बताएं कि कहां कहां पड़ी और अभी तक दर्द कहां कहा हो रहा हे
हे – हे – हे ! अब क्या बतायें साइलेंट सोल जी ! राज़ को राज़ ही रहने दें ! वैसे ये बात सही है, पाप जल्दी ही धो लिये गये थे!
सुशांत जी राजस्थान की सुन्दर लोककलाओ को आपने बखूबी दिखाया हैं. राजस्थान, मेवाड़, उदयपुर, आबू आदि के बारे में आपका लेखन और चित्रण बहुत ही सुन्दर हैं, वन्देमातरम….
प्रिय सुशान्त जी….
सबसे पहले आपको और आपके परिवार को नवीन वर्ष २०१३ की हार्दिक शुभकामनाएं …|
आपका लेख हमेशा की तरह बहुत बढ़िया और जानकारी पूर्ण लगा और सुन्दर फोटोओ ने लेख को और भी अधिक आकर्षक बना दिया …| हम लोग मोती मगरी (मेरे ख्याल से इसका सही नाम तो यही हैं), लोककला मंडल और शिल्प ग्राम नहीं गए थे पर आपके लेख ने इस कमी को पूरा कर दिया और हमे लगा की इस अच्छी जगह को नहीं छोड़ना चाहिये था |
शिल्पग्राम से बाहर नज़दीक ही कोई पार्क का नाम “सुखाड़िया सर्किल पार्क” हैं….जो सहेलियों के बाड़ी के पास ही हैं |
“ये ग्रामीण महिला हमें सारे रास्ते परेशान करती रही “ अरे भाई ..आपको परेशान करने का तो इनका हक बनता हैं जी….|
लेख के लिए धन्यवाद….
प्रिय रितेश,
नूतन वर्षाभिनन्दन ! पोस्ट पढ़ने और पसन्द करने के लिये धन्यवाद । तो अब मैं कह सकता हूं कि मैंने सुखाड़िया सर्किल पार्क भी देखा है। गुड !
सुशांत जी,
सर्वप्रथम आपको नववर्ष की इतनी शुभकामनाएं की आपसे सम्हाले न सम्हले। नए वर्ष में आप सदा हँसते मुस्कुराते तथा प्रसन्न रहें और हमें भी गुदगुदाते रहें। शिल्पग्राम का बड़ा ही मनोहारी विवरण एवं चित्रण ………………..
धन्यवाद प्रिय मुकेश । आपकी शुभ कामनायें हमारे परिवार के लिये बहुत बहुमूल्य हैं। आपको शिल्पग्राम अच्छा लगा, उम्मीद है, सिटी पैलेस भी भायेगा।
Great pictures and great description about this Shilpgram. We went to Udaipur some years ago but entirely missed it or may be it is new place.
Dear Praveen Wadhwa,
Thanks for liking. I don’t know the year when Shilpgram had started. But it is there since 2007 at least when we had gone there. December end is the most eventful week here. Having 5 days at our disposal also helped us see even offbeat places. If one has gone there for two days only, one may not want to waste a few hours walking through village huts and haats unless particularly interested in that!
@Praveen Gupta Ji ! वन्दे मातरम् ! भगवान आपको इस सिरीज़ को पढ़ते रहने लायक धैर्य प्रदान करें ! ह-हा-ह-हा !
@Surinder Sharma Ji. Very true. At least Udaipur, instead of spoiling its water resources, is managing them ably. But may be, it is Nature’s bounty only ! I have heard entirely different story about Jaipur where a river has been converted into an unauthorised housing colony after its water gradually dried up !
प्रिय सुशांत ,
हम लोग भी लोक कला मंडल इस तरह की मंशा लेकर गए और हालांकि सब कुछ देखा, कठपुतली वाला शो भी देखा पर आपका विवरण पढ़ कर तो अपने ऊपर अब ग्लानी सी हो हो रही है । करीब करीब थु थु टाइप्स । क्या लिखतें हैं आप , भले एक पैम्फलेट था आपके पास पर इतना सुगठित संवाद लोक कला मंडल का शायद पहले कभी न हुआ हो । वाह वाह है इसके लिए जनाब ।
हम लोग भी शिल्प ग्राम नहीं गए क्योंके ऐसा पता चला की दिसम्बर में ही सही समय है जाने के लिए अन्यथा व्यर्थ है , आपके द्वारा इसके दर्शन हो गए । अगर आप की रूचि इस विषय पर है और परेशानी से बचना है तो एक बार भोपाल में मानव संग्रालय का दौरा करें , दिलकुश हो जाएगा बिना हसीन के भी ।
एम्फी का शायद मतलब होता है, “दोनों तरह का” । एक ऐसी रंगशाला जहाँ पर दोनों प्रकार के नाटक /शो हो सकें , शायद इंडोर एज वेल एज आउटडोर । पूर्ण चंद्रकार वाले एम्फी भी होतें हैं , बाकी डी एल ने कह दिया है तो वही मान लेंगे ।
आल इन आल बढ़िया , ज्ञान और रूचि वर्धक लेख । साधुवाद ।
आपका प्रिय ,
नंदन
एक आवश्यक भूल सुधार !
प्रिय महेश भालसे ने मेरे उक्त विवरण में एक त्रुटि की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए बताया है कि “मोती मागड़ी से फतेह सागर लेक का आकर्षक दृश्य” शीर्षक से जो चित्र है, वह वास्तव में दूधतलाई झील का है और इसके पीछे फतेह सागर झील नहीं बल्कि लेक पिछोला है। आयु के इस दौर में पांच वर्ष पुरानी यात्रा को आप मित्रों के लिये पुनः याद करने का प्रयास करते – करते कहीं कहीं स्मृति दगा दे गई लगती है। वास्तव में कैमरे द्वारा फोटो को दिये गये नंबरों से पता चलता है कि ये फोटो मैने सिटी पैलेस से बाहर आने के बाद और विंटेज कार वाले गार्डन में जाने से पहले खींची थी। इसके बाद हम एक गार्डन में घूमे फिरे थे जिसे सज्जन सिंह गार्डन कहते हैं शायद ! इसका सीधा सा अर्थ यह है कि यह मोती मागड़ी से उतरते वक्त लिया हुआ चित्र नहीं है।
महेश भालसे को हार्दिक आभार ! :)
Hi Sushantji,
Thanks for introducing me to an unknown side of Udaipur. Udaipur seems to have something for everyone – forts, lakes, handicrafts and the surrounding hills and scenery.
Udaipur is in my to do list.
Great photos and engrossing travelogue as always.