नमसà¥à¤•ार मितà¥à¤°à¥‹à¤‚, जैसा कि आपको धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ ही होगा, हम सहारनपà¥à¤° से 27 मारà¥à¤š की सà¥à¤¬à¤¹ उदयपà¥à¤° के लिये निकले थे। गाज़ियाबाद तक कार तक, फिर नई दिलà¥à¤²à¥€ से उदयपà¥à¤° तक à¤à¤¯à¤° डेकà¥à¤•न के विमान से ! पांच दिन तक उदयपà¥à¤° और माउंट आबू घà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡ के लिये हमें मिला हसीन नाम का à¤à¤• टैकà¥à¤¸à¥€ चालक जिसने हमें बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤ªà¥à¤°à¥€ पोल में वंडर वà¥à¤¯à¥‚ पैलेस से परिचित कराया जहां हमें अपने मनपसनà¥à¤¦ कमरे मिले। शाम को हमें सहेलियों की बाड़ी दिखाई, रात को हमें अंबराई रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤‚ट पर ले जाकर छोड़ा जहां हमने राजपूती आन-बान-शान से डिनर लिया और अपने होटल में आकर सो गये।  अब आगे !

अंबाजी माता मंदिर, उदयपà¥à¤° ! हर रोज़ आयेंगे यहां !
सामान टैकà¥à¤¸à¥€ में लाद कर हम होटल के रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर आये और पà¥à¤¨à¤ƒ अपनी बà¥à¤•िंग नोट कराई कि ३० मारà¥à¤š को शाम को आयेंगे और १ अपà¥à¤°à¥ˆà¤² को सà¥à¤¬à¤¹ चैक आउट करेंगे और हमें ये ही कमरे पà¥à¤¨à¤ƒ चाहियें।  वहां से चल कर सबसे पहले अंबा जी माता मंदिर पहà¥à¤‚चे! होटल से संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ पांच मिनट के सफर के बाद ही, उदयपà¥à¤° के à¤à¤• शांत इलाके में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ इस मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ कर मन को बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ लगा। मंदिर में अधिक à¤à¥€à¥œ नहीं थी, पà¥à¤œà¤¾à¤°à¥€ जी के नखरे à¤à¥€ नहीं थे। हमने जो पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ मंदिर के बाहर à¤à¤• दà¥à¤•ान से लिया था, वह वासà¥à¤¤à¤µ में हमारी उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ में ही अंबा माता जी को अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ किया गया। हमारी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी तो यह देख कर बहà¥à¤¤ तृपà¥à¤¤ और धनà¥à¤¯ हो गई अनà¥à¤à¤µ कर रही थीं। आम तौर पर बड़े – बड़े विखà¥à¤¯à¤¾à¤¤ मंदिरों में हमें यही अनà¥à¤à¤µ होता है कि वहां शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं को धकियाया जाता है, पैसे वालों की पूछ होती है, दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये à¤à¥€ पैसे मांगे जाते हैं। जो पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ चà¥à¤¾à¤¯à¤¾ जाता है, वह कà¥à¤› ही घंटों में पà¥à¤¨à¤ƒ मंदिर के बाहर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ दà¥à¤•ानों को बेच दिया जाता है। मंदिरों में à¤à¤—वान के दरà¥à¤¶à¤¨ कम और वà¥à¤¯à¤¾à¤µà¤¸à¤¾à¤¯à¤¿à¤•ता के दरà¥à¤¶à¤¨ अधिक होते हैं तो मन उदास हो जाता है। शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी ने तो निशà¥à¤šà¤¯ कर लिया कि माउंट आबू से लौट कर जितने दिन उदयपà¥à¤° में रà¥à¤•ेंगे, हर सà¥à¤¬à¤¹ इस मंदिर में दरà¥à¤¶à¤¨à¤¾à¤°à¥à¤¥ आया करेंगे।

पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ देना à¤à¤¾à¤ˆ ! अंबा जी माता मंदिर, उदयपà¥à¤°
वहां से निकल कर अगला पड़ाव था – जगदीश मंदिर ! मैं चूंकि à¤à¤• घंटा पहले यहां तक आ चà¥à¤•ा था अतः मà¥à¤à¥‡ बड़ा अचà¥à¤›à¤¾ सा लग रहा था कि अब मैं अपने परिवार के लिये गाइड का रोल निरà¥à¤µà¤¹à¤¨ कर सकता हूं। परनà¥à¤¤à¥ पहली बार तो मैं मंदिर की सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के नीचे से ही वापिस चला गया था। ऊपर मेरे लिये कà¥à¤¯à¤¾ – कà¥à¤¯à¤¾ आकरà¥à¤·à¤£ मौजूद हैं, इसका मà¥à¤à¥‡ आà¤à¤¾à¤¸ à¤à¥€ नहीं था। मंदिर की सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के नीचे दो फूल वालियां अपने टोकरे में फूल – मालायें लिये बैठी थीं । माला खरीद कर हम सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर बॠचले। à¤à¤¾à¤ˆà¤¸à¤¾à¤¹à¤¬ का कई वरà¥à¤· पूरà¥à¤µ à¤à¤•à¥à¤¸à¥€à¤¡à¥‡à¤‚ट हà¥à¤† था, तब से उनको सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ चà¥à¤¨à¥‡ में असà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ होती है। वह बोले कि मैं टैकà¥à¤¸à¥€ में ही बैठता हूं, तà¥à¤® लोग दरà¥à¤¶à¤¨ करके आओ। मैने कहा कि टैकà¥à¤¸à¥€ में बैठे रहने की कोई जरूरत नहीं।  मà¥à¤à¥‡ à¤à¤• दूसरा रासà¥à¤¤à¤¾ मालूम है मैं आपको वहां से मंदिर में ले चलूंगा। उसमें दो-तीन सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ ही आयेंगी। वह आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯à¤šà¤•ित हो गये कि मà¥à¤à¥‡ इस मंदिर के रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ के बारे में इतनी गहन जानकारी कैसे है। वासà¥à¤¤à¤µ में, जब मैं पैदल घूम रहा था तो à¤à¤• बहà¥à¤¤ ढलावदार रासà¥à¤¤à¥‡ से होकर मैं मंदिर के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° तक आया था। उस ढलावदार रासà¥à¤¤à¥‡ पर à¤à¥€ जगदीश मंदिर के लिये छोटा सा पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° दिखाई दिया था। à¤à¤¾à¤ˆà¤¸à¤¾à¤¹à¤¬ इतनी सारी सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ नहीं चॠसकते थे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उनका घà¥à¤Ÿà¤¨à¤¾ पूरा नहीं मà¥à¥œ पाता परनà¥à¤¤à¥ ढलावदार रासà¥à¤¤à¥‡ पर चलने में कोई दिकà¥à¤•त नहीं थी। मेरी जिस ’आवारागरà¥à¤¦à¥€â€™ को लेकर सà¥à¤¬à¤¹ ये तीनों लोग खफा नज़र आ रहे थे, अब तीनों ही बहà¥à¤¤ खà¥à¤¶ थे। आखिर इसी ’आवारागरà¥à¤¦à¥€â€™Â (जिसे मैं घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ी कहना जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पसनà¥à¤¦ करता हूं) की वज़ह से à¤à¤¾à¤ˆà¤¸à¤¾à¤¹à¤¬ को मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ जो हो गये थे।
जगदीश मंदिर का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ किसी राज मिसà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ या मज़दूर ने नहीं बलà¥à¤•ि मूरà¥à¤¤à¤¿à¤•ारों ने किया है। मंदिर की पूरी ऊंचाई तक सà¤à¥€ दीवारों पर विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ मà¥à¤¦à¥à¤°à¤¾à¤“ं में मानव आकृतियां निरà¥à¤®à¤¿à¤¤ हैं। इस विशाल मंदिर की सà¤à¥€ दीवारों पर कितनी मानव आकृतियां अंकित हैं, यह सही सही गिनती करनी हो तो गà¥à¤‚बद की ऊंचाई तक पहà¥à¤‚चने के लिये मचान बनवानी पड़ेंगी। यदि इन सà¤à¥€ आकृतियों का गहन अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ करना हो तो कई सपà¥à¤¤à¤¾à¤¹ या मास लगेंगे। à¤à¤¸à¥‡ में इन सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° कलातà¥à¤®à¤• मानव आकृतियों को बनाने के लिये कितना समय लगा होगा, कितना धन और परिशà¥à¤°à¤® वà¥à¤¯à¤¯ हà¥à¤† होगा, इसका कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ करना à¤à¥€ कठिन है। उन अनाम कलाकारों के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ हम सिरà¥à¤« शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ से सिर ही à¤à¥à¤•ा सकते हैं। कला को पà¥à¤°à¤¶à¥à¤°à¤¯ देने वाले, उस पर खरà¥à¤š करने की नीयत रखने वाले इन राजपूत राजाओं के पà¥à¤°à¤¤à¤¿ à¤à¥€ धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ जà¥à¤žà¤¾à¤ªà¤¨ करना चाहूंगा! जगदीश मंदिर के बारे में अनेकों वेबसाइट पर सूचनाओं का अथाह à¤à¤‚डार उपलबà¥à¤§ है, तथापि विकीपीडिया से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ जानकारी के अनà¥à¤¸à¤¾à¤°â€¦
जगदीश मंदिर का मूल नाम जगनà¥à¤¨à¤¾à¤¥ राय मंदिर है, सिटी पैलेस कामà¥à¤ªà¥à¤²à¥‡à¤•à¥à¤¸ में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ इस बहà¥-मंजिला à¤à¤µà¤¨ का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ वरà¥à¤· 1651 में पूरà¥à¤£ हà¥à¤† था। यह महाराणा जगत सिंह जी पà¥à¤°à¤¥à¤® दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनवाया गया था। इस मंदिर की पूरी à¤à¤µà¥à¤¯à¤¤à¤¾ को देख पाने के लिये इससे काफी दूरी पर खड़ा होना पड़ता है – तà¤à¥€ इसकी सà¤à¥€ मंजिलों को आप à¤à¤• साथ सही परिपà¥à¤°à¥‡à¤•à¥à¤·à¥à¤¯ में (perspective) देख सकते हैं। इसका मà¥à¤–à¥à¤¯ गà¥à¤®à¥à¤¬à¤¦ 79 फीट ऊंचा है और उदयपà¥à¤° की skyline का à¤à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ अंग है। बताया जाता है कि इसके निरà¥à¤®à¤¾à¤£ पर उस जमाने में 15 लाख रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ वà¥à¤¯à¤¯ आया था।  पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° पर बने हà¥à¤ दो विशाल हाथी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥à¤“ं का सà¥à¤µà¤¾à¤—त करते पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होते हैं। वहीं सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ गरà¥à¥œ – मानव की à¤à¤• पीतल की आकृति मानों इस मंदिर की रकà¥à¤·à¤¾ कर रही है! इसकी दीवारों पर नृतà¥à¤¯à¤¾à¤‚गनाओं, हाथियों, घà¥à¥œà¤¸à¤µà¤¾à¤°à¥‹à¤‚ और संगीतजà¥à¤žà¥‹à¤‚ की सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° कलातà¥à¤®à¤• आकृतियां उकेरी गई हैं जो इस मंदिर को à¤à¤• अदà¥â€Œà¤à¥à¤¤ गरिमा और सौनà¥à¤¦à¤°à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करती हैं।
जगदीश मंदिर के दरà¥à¤¶à¤¨ करके जब हम बाहर निकले तो पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ 10 बजने को थे। अब हमें अपनी लगà¤à¤— 170 किलोमीटर की लंबी यातà¥à¤°à¤¾ पर (जो राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ राजमारà¥à¤— 76 और 27 से होकर संपनà¥à¤¨ होनी थी), निकलना था अतः अपने – अपने पेट की टंकी फà¥à¤² करने के मूड से खसà¥à¤¤à¤¾ कचौरी की दà¥à¤•ान पर जा पहà¥à¤‚चे जो आस-पास में ही थी और हसीन के बताये अनà¥à¤¸à¤¾à¤° बहà¥à¤¤ सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ कचौरी उपलबà¥à¤§ कराती थी।  कचौरी खा कर, कोलà¥à¤¡ डà¥à¤°à¤¿à¤‚क की बड़ी बाटली, बिसà¥à¤•à¥à¤Ÿ, नमकीन आदि साथ में लेकर हम अपनी यातà¥à¤°à¤¾ पर आगे बà¥à¥‡! हमारी ये यातà¥à¤°à¤¾ बहà¥à¤¤ मनोरंजक रही हो, à¤à¤¸à¤¾ मेरी सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ में नहीं है। कार का सà¥à¤Ÿà¥€à¤¯à¤°à¤¿à¤‚ग मेरे हाथ में होता तो बात कà¥à¤› और ही होती ! राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ राजमारà¥à¤— 76 पर कारà¥à¤¯ चल रहा था कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उसे सà¥à¤µà¤°à¥à¤£à¤¿à¤® चतà¥à¤°à¥à¤à¥à¤œ योजना के अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤—त देश के पà¥à¤°à¤®à¥à¤– राषà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ राजमारà¥à¤— के रूप में विकसित किया जा रहा था। दो लेन के बजाय 4-लेन बनाने में वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤ जे.सी.बी. और टà¥à¤°à¤• रासà¥à¤¤à¥‡ à¤à¤° दिखाई देते रहे। जिन पहाड़ियां के मधà¥à¤¯ में से मारà¥à¤— विकसित किया जा रहा था, वह सब लाल रंग की थीं। लाल पहाड़, लाल सड़क, लाल मिटà¥à¤Ÿà¥€ में से गà¥à¥›à¤°à¤¤à¥‡ हà¥à¤ हमारी सफेद इंडिका टैकà¥à¤¸à¥€ à¤à¥€ लाल हो गई थी और हमारे बालों व वसà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का रंग à¤à¥€ काफी कà¥à¤› लाल हो गया था। ’लाली देखन मैं चली, मैं à¤à¥€ हो गई लाल!â€

à¤à¤• गाड़ी और हम हैं सौ ! अब कà¥à¤¯à¤¾ हो ? कà¥à¤› तो करो !!!

पिंडवारा में राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ परिधान में महिलाà¤à¤‚ !
आबू रोड से जब माउंट आबू के लिये पहाड़ी मारà¥à¤— आरंठहोता है तो वहीं पर अपà¥à¤¸à¤°à¤¾ रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤‚ट नाम से à¤à¤• रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤‚ट है। इस रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤‚ट के बोरà¥à¤¡ को पॠकर मैं हंसते-हंसते पागल हो गया। लॉरà¥à¤¡ मैकाले अगर इस बोरà¥à¤¡ को देख लेता तो निशà¥à¤šà¤¯ ही या तो आतà¥à¤®-हतà¥à¤¯à¤¾ कर लेता या फिर इस बोरà¥à¤¡ को बनाने वाले को गोली से उड़ा देता। पर à¤à¤¸à¥‡ मज़ेदार बोरà¥à¤¡ तो हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ के हर à¤à¤¾à¤— में देखे जा सकते हैं। हमारे सहारनपà¥à¤° में à¤à¤• बोरà¥à¤¡ पर मैने लिखा देखा – “फीन†डà¥à¤°à¥‡à¤¸à¤° ।  मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› पलà¥à¤²à¥‡ नहीं पड़ा कि ये फीन कà¥à¤¯à¤¾ बला है। दूसरी तरफ कà¥à¤› और à¤à¥€ लिखा दिखाई दिया जो साफ – साफ नहीं पà¥à¤¾ जा रहा था। धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ से देखा तो “डोल†हेयर लिखा हà¥à¤† महसूस हà¥à¤†! बहà¥à¤¤ सारा दिमाग खरà¥à¤š किया तब जाकर समठआया कि बोरà¥à¤¡ किसी नाई का है जिसने अपनी दà¥à¤•ान का नाम “डॉलà¥à¤«à¤¿à¤¨ हेयर डà¥à¤°à¥‡à¤¸à¤°â€ तय किया था पर उसने पेंटर से लिखवाया – डोल फीन हेयर डà¥à¤°à¥‡à¤¸à¤° !  ’डोल’ और ’फीन’ के बीच में और ’हेयर’ और ’डà¥à¤°à¥‡à¤¸à¤°â€™ के बीच में à¤à¥€ लगà¤à¤— 8 फीट का फासला था।
खैर जी, हमने वहां पर रà¥à¤• कर अपने ऊपर चà¥à¥€ हà¥à¤ˆ रासà¥à¤¤à¥‡ की धूल साफ की, मà¥à¤‚ह – हाथ धोकर à¤à¥‹à¤œà¤¨ गà¥à¤°à¤¹à¤£ किया और फिर शेष बच रही लगà¤à¤— 23 किमी की यातà¥à¤°à¤¾ पूरà¥à¤£ की जो पूरà¥à¤£à¤¤à¤ƒ पहाड़ी मारà¥à¤— पर थी।  अपà¥à¤¨ चूंकि देहरादून के बाशिंदे हैं और मसूरी कई बार सà¥à¤•ूटर, मोटर साइकिल और कार से आते – जाते रहे हैं, अतः हमें यह पहाड़ी मारà¥à¤— कोई बहà¥à¤¤ कठिन पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ नहीं हो रहा था।
माउंट आबू में हम पà¥à¤°à¤œà¤¾à¤ªà¤¿à¤¤à¤¾ बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर परिसर में रà¥à¤•ने का मन बना कर आये थे और इसके लिये सहारनपà¥à¤° से ही अपने बारे में à¤à¤• परिचय पतà¥à¤° लिखवा कर लाये थे। जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर में मैं à¤à¤• बार पहले à¤à¥€ चार दिन तक रà¥à¤• चà¥à¤•ा था और उसके समà¥à¤®à¥à¤– मà¥à¤à¥‡ और कोई à¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ जमता ही नहीं था। दिन में लगà¤à¤— दो बजे हम जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर परिसर में पहà¥à¤‚चे और रिसेपà¥à¤¶à¤¨ पर पहà¥à¤‚च कर वहां बैठे à¤à¤• à¤à¤¾à¤ˆ जी को पतà¥à¤° दिया तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने हमें सोफों की ओर इशारा करते हà¥à¤ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ करने के लिये कहा।   पांच मिनट ही बीते होंगे कि वहां की संचालिका गीता बहिन जी ने सà¥à¤µà¤¯à¤‚ बाहर आकर हमारा सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया और कहा कि à¤à¤• अंतरà¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सेमिनार होने जा रही है अतः विशà¥à¤µ à¤à¤° से अतिथि आ रहे हैं फिर à¤à¥€ आप चिंता न करें, आपके लिये समà¥à¤šà¤¿à¤¤ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ करते हैं। दस मिनट में ही हमें दो कमरे आबंटित कर दिये गये और à¤à¤• à¤à¤¾à¤ˆ हमें हमारे कमरे दिखाने ले गये। टैकà¥à¤¸à¥€ चालक के लिये à¤à¥€ à¤à¤• कमरा उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने टà¥à¤°à¤¾à¤‚सà¥à¤ªà¥‹à¤°à¥à¤Ÿ विà¤à¤¾à¤— में दे दिया जहां पर इस संसà¥à¤¥à¤¾ के दरà¥à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ वाहन चालक रहते हैं। बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ केनà¥à¤¦à¥à¤°à¥‹à¤‚ में समसà¥à¤¤ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ अनà¥à¤¤à¤°à¥à¤°à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€à¤¯ सà¥à¤¤à¤° की है और सब कà¥à¤› निःशà¥à¤²à¥à¤• ही है। वहां बाबा के कमरे में शिव बाबा की à¤à¤• à¤à¤‚डारी यानि, गà¥à¤²à¥à¤²à¤• रखी रहती है। जिसकी जो इचà¥à¤›à¤¾ हो, वह उस में डाल देता है। à¤à¤• गà¥à¤²à¥à¤²à¤• और à¤à¥€ होती है जिसमें à¤à¤¾à¤ˆ – बहनें शिव बाबा (अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤à¥â€Œ परमपिता परमातà¥à¤®à¤¾) को पतà¥à¤° लिख कर उसमें डाल देते हैं। आप अपनी समसà¥à¤¯à¤¾à¤à¤‚, पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚, इचà¥à¤›à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚, पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ आदि पतà¥à¤° के रूप में à¤à¤—वान शिव के साथ शेयर करते हैं। आपके पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨à¥‹à¤‚ के उतà¥à¤¤à¤° आपको सà¥à¤µà¤¯à¤®à¥‡à¤µ ही सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ में मिल जाते हैं।
- दादी (संचालिका) का कमरा
- जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर परिसर की सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ हेतॠपहरेदार से खड़े ये वृकà¥à¤·
- ऊबड़ – खाबड़ रासà¥à¤¤à¥‹à¤‚ पर बनाये गये विशाल ककà¥à¤·
- जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर का सà¥à¤µà¤¾à¤—त ककà¥à¤·
- हमारे कमरे ऊपर पà¥à¤°à¤¥à¤® तल पर !
- विशाल हारà¥à¤®à¥‹à¤¨à¥€ हॉल जिसमें 1600 शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾ बैठसकते हैं।
- पानी का पाइप सर पर लटकाये जा रही à¤à¤• राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€ महिला जो यहां माली का कारà¥à¤¯ करती होगी!
बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ केनà¥à¤¦à¥à¤° में रà¥à¤•ने के कà¥à¤› नियम à¤à¥€ हैं जिनका पालन हर किसी से अपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ है। हमें ये नियम पता हैं और सà¥à¤µà¥€à¤•ारà¥à¤¯ हैं – यह इस बात से ही सिदà¥à¤§ हो गया था कि हमारे लिये सहारनपà¥à¤° केनà¥à¤¦à¥à¤° ने à¤à¤• परिचय पतà¥à¤° लिख कर हमें दे दिया था जिसमें हमारे ठहरने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ हेतॠअनà¥à¤°à¥‹à¤§ किया गया था। शांति, पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ और बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤šà¤°à¥à¤¯ का पालन हमसे अपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ था। पवितà¥à¤°à¤¤à¤¾ का अरà¥à¤¥ ये कि हम पà¥à¤¯à¤¾à¤œ, लहसà¥à¤¨, शराब, तंबाखू, गà¥à¤Ÿà¤•ा आदि का सेवन नहीं करते हैं! बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ केनà¥à¤¦à¥à¤° पर जो पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ होते हैं – उनको ककà¥à¤·à¤¾ कहा जाता है और जो पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ देती हैं वे सब शिकà¥à¤·à¤¿à¤•ायें हैं। जो बातें समà¤à¤¾à¤ˆ जाती हैं – उनको à¤à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ ही कहा जाता है। यह सब सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• à¤à¥€ है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इस संसà¥à¤¥à¤¾ का नाम à¤à¥€ ईशà¥à¤µà¤°à¥€à¤¯ विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ है। उनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ जो शिकà¥à¤·à¤¾ दी जाती हैं उनमें से तीन का  परिचय यहां देने का मन है – “ 1- आप यदि मंदिर नहीं जाते तो कोई दिकà¥à¤•त नहीं पर अपने घर का वातावरण इतना शà¥à¤¦à¥à¤§, सातà¥à¤µà¤¿à¤• और पवितà¥à¤° बना लीजिये कि कोई मेहमान आये तो उसे à¤à¤¸à¤¾ आà¤à¤¾à¤¸ हो कि वह मंदिर में पदारà¥à¤ªà¤£ कर रहा है!  2- आपका वà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° à¤à¤¸à¤¾ होना चाहिये कि कोई आपसे मिले तो उसे लगे कि आज à¤à¤• देवता के दरà¥à¤¶à¤¨ हो गये। 3- आप केवल वह चीज़ें खायें और पियें जो आप अपने आराधà¥à¤¯ देवता को पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ के रूप में अरà¥à¤ªà¤¿à¤¤ करना चाहेंगे !  पहले अपने à¤à¤—वान को खिलायें और फिर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ परिवार के साथ बैठकर खायें। यानि, घर में जो कà¥à¤› à¤à¥€ बनायें वह पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ है – इस à¤à¤¾à¤µà¤¨à¤¾ से बनायें।“ शिकà¥à¤·à¤¿à¤•ा महोदया ने विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ दिलाया था कि यदि हम इन तीन बातों को ही अपने जीवन में गà¥à¤°à¤¹à¤£ कर लें और अंगीकार कर लें तो लगà¤à¤— सà¤à¥€ कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ से, कà¥à¤·à¥‹à¤ से और बीमारियों से बचे रहेंगे और इस दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ को à¤à¤• बेहतर सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ बना सकेंगे।
इस जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सरोवर की à¤à¥Œà¤—ोलिक सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿ बहà¥à¤¤ अदà¥â€Œà¤à¥à¤¤ है और सच पूछें तो काफी कà¥à¤› खतरनाक à¤à¥€à¥¤ कहते हैं कि माउंट आबू में जब इस संसà¥à¤¥à¤¾ को अपनी गतिविधियों के विसà¥à¤¤à¤¾à¤° के लिये और बड़े परिसर की आवशà¥à¤¯à¤•ता महसूस हà¥à¤ˆ तो वांछित आकार का कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° वांछित मूलà¥à¤¯ में जो उपलबà¥à¤§ हो सका वह à¤à¤• जंगली कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° था जिसमें पहाड़ियां और खाइयां ही थीं – समतल à¤à¥‚मि कहीं थी ही नहीं! जिस किसी आरà¥à¤•िटेकà¥à¤Ÿ को à¤à¥€ इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में निरà¥à¤®à¤¾à¤£ कारà¥à¤¯ के लिये बà¥à¤²à¤¾à¤¯à¤¾ जाता वही इस संसà¥à¤¥à¤¾ के संचालकों को ’पागल’ बता कर चला जाता था। इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° में जंगली जानवरों का आतंक à¤à¥€ काफी था। बाद में मà¥à¤‚बई के à¤à¤• आरà¥à¤•िटेकà¥à¤Ÿ जो इस संसà¥à¤¥à¤¾ के सदसà¥à¤¯ à¤à¥€ थे, उनको आमंतà¥à¤°à¤¿à¤¤ किया गया और कहा गया कि यहां पर अपने परिसर का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° करना है।  परिसर से तातà¥à¤ªà¤°à¥à¤¯ था – लगà¤à¤— 250 अतिथियों के सà¥à¤–पूरà¥à¤£ आवास के लिये आवासीय परिसर। à¤à¤• इतना बड़ा ऑडिटोरियम जिसमें लगà¤à¤— 1600 शà¥à¤°à¥‹à¤¤à¤¾ 16 à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं में और वातानà¥à¤•ूलित वातावरण में पà¥à¤°à¤µà¤šà¤¨ सà¥à¤¨ सकें!  लगà¤à¤— 2000 वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ हेतॠà¤à¥‹à¤œà¤¨ बनाया जा सके, इतनी बड़ी रसोई जो सौर ऊरà¥à¤œà¤¾ से संचालित हो। 13 सेमिनार à¤à¤• साथ चल सकें इसके लिये 13 गोषà¥à¤ ी ककà¥à¤· जिनमें से पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• में 150 तक वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ à¤à¤¾à¤— ले सकें। à¤à¤• गोलाकार धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ ककà¥à¤· (बाबा का कमरा) जो सौर और वायॠऊरà¥à¤œà¤¾ से संचालित हो और जिसमें किसी à¤à¥€ पà¥à¤°à¤•ार का शोरगà¥à¤² न हो और जिसमें साल à¤à¤° à¤à¤• जैसा तापमान बना रहे !  चौबीसों घंटे अनवरत विदà¥à¤¯à¥à¤¤ आपूरà¥à¤¤à¤¿à¥¤Â à¤à¤• हाई-टैक, लेज़र तकनीक पर आधारित आरà¥à¤Ÿ गैलरी। इसके अतिरिकà¥à¤¤ उपयोग किये गये पानी और ठोस कचरे के लिये टà¥à¤°à¥€à¤Ÿà¤®à¥ˆà¤‚ट पà¥à¤²à¤¾à¤‚ट à¤à¥€ चाहिये जो 2,00,000 लीटर पानी को टà¥à¤°à¥€à¤Ÿ करके दोबारा पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— में लाये जाने योगà¥à¤¯ बना सके। अंतिम इचà¥à¤›à¤¾ ये कि  जो पेड़ जहां पर है, वह वहीं रहे, उसे काटना न पड़े।
जब आरà¥à¤•िटेकà¥à¤Ÿ महोदय से कहा गया कि इस 25 à¤à¤•ड़ के जंगल में यह सब कà¥à¤› चाहिये और दादी (यानि इस संसà¥à¤¥à¤¾ की पà¥à¤°à¤®à¥à¤– संचालिका) की इचà¥à¤›à¤¾ है कि डेॠवरà¥à¤· बाद डायमंड जà¥à¤¬à¤²à¥€ महोतà¥à¤¸à¤µ से पहले यह सब सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ यहां उपलबà¥à¤§ हो जायें तो à¤à¤• ठंडी सांस लेकर आरà¥à¤•िटेकà¥à¤Ÿ महोदय ने कहा कि दादी की इचà¥à¤›à¤¾ हम सब के लिये आदेश है और जब आदेश है तो किनà¥à¤¤à¥ – परनà¥à¤¤à¥ का कोई पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ ही नहीं है। अब तो बस, आज से ही जà¥à¤Ÿ जाना होगा।  आज इस विशाल और à¤à¤µà¥à¤¯ परिसर को देख कर यह विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ करना असंà¤à¤µ सा है कि केवल 18 महीने में à¤à¤• जंगली कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° को इस रूप में परिवरà¥à¤¤à¤¿à¤¤ किया सका ! यदि यह सरकारी पà¥à¤°à¥‹à¤œà¥‡à¤•à¥à¤Ÿ होता तो इस कारà¥à¤¯ को पचà¥à¤šà¥€à¤¸ वरà¥à¤· में à¤à¥€ पूरा करना असंà¤à¤µ होता ! असà¥à¤¤à¥!
दोपहर का à¤à¥‹à¤œà¤¨ तो हम अपà¥à¤¸à¤°à¤¾ रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤‚ट में ले ही चà¥à¤•े थे और 176 किलोमीटर की खराब सड़क पर टैकà¥à¤¸à¥€ की यातà¥à¤°à¤¾ से थकान à¤à¥€ हो रही थी अतः कमरों में जाकर लेट गये। हसीन से कह दिया गया था कि शाम को नकà¥à¤•ी लेक पर घूमने चलेंगे और कल का पूरा दिन माउंट आबू को देखने में खरà¥à¤š किया जायेगा।
सुशांत जी,
धन्यवाद रंगीला राजस्थान दिखाने के लिए। वर्णन और फोटो हमेशा की तरह बहुत खुबसूरत हैं। ब्रह्माकुमारी केन्द्र के बारे में जानकर अच्छा लगा। पर हिन्दु धर्म में जो भी थोड़ा अखवारों में प्रसिद्ध होता है, यह अख़बार वाले पत्रकार पीछे पड़ जाते हैं।
बोर्ड के बारे में कहना चाहूँगा, उस इलाके में हिंदी स्कूल काफी पॉपुलर हैं। जहाँ नाम मात्र इंग्लिश सिखाई जाती है। पेंटर बनना एक आर्ट है, abc सीखी और पैसे कमाने शुरू कर दिए।
धन्यवाद
सुशांत जी बहुत खूब, राजस्थानी संस्कृति को बहुत अच्छा आपने दिखाया हैं, धन्यवाद, वन्देमातरम….
पहली यात्रा में प्रीतम प्यारे और इस बार हसीन ….क्या बात है. सदा की तरह रोचक वर्णन सुशांत जी… और ये thumbnail वाला idea भी नई खोज है
@SilentSoul : Welcome back home. We had been missing you badly. And yes, thank u for liking it.
@Praveen Gupta : वन्दे मातरम् प्रवीण गुप्ता जी ! मुझे लगता है कि हम पश्चिमी उ. प्र. वालों की अपनी कोई संस्कृति नहीं है वरना तो देश के हर हिस्से में बड़ी अच्छी अच्छी बातें सीखने को मिलती हैं।
॒@Surinder Sharma : बहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी ! आपका कहना बिल्कुल सही है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में हिन्दी ही महत्वपूर्ण है। राजस्थान में, जिसे रेतीले टीलों का प्रदेश कहा जाता है, रंग बिरंगे कपड़े पहन कर लोग मनभावन रंग बिखेर देते हैं।
Very colorful travel tale accompanied with fairyland like pictures.
Temple is very beautiful.
शुक्रिया सुशांत जी, इस खुबसूरत लेख को साझा करने के लिए. मंदिर मन की शांति के लिए जाया जाता है, मंदिरों में इस तरह के व्यवसायीकरण और भीड़ भाड़ के कारण, अब अधिकतर कम भीड़ भाड़ वाले मंदिरों में जाने में ही आनंद आता है जहाँ कम भीड़ के कारण बाज़ारीकरण भी कम ही होता है…बढ़िया फोटोज! और माउंट आबू में रुकने के लिए एक अच्छे ठिकाने की जानकारी देने के लिए साधूवाद…रुकने के साथ कुछ ज्ञान प्राप्ति भी हो जाये तो सोने पे सुहागा!
Thank you, Sushant, for showcasing the architectural grandeur of the Jagdish temple. If one looks at the 6th picture from the top, one is instantly reminded of the Qutub Minar which was built in the early part of the 13th century. The same artistry can be seen on the walls of the Jagdish temple built over 400 years later. It is surprising that these skills have survived for such a long time in what must have been a very hostile and non-conducive environment. It is rather sad that most of the architecture of the pre-Sultanate era of North India does not exist today. They must have been really magnificent.
I totally agree with you when you say that commercialism has had a detrimental effect on the spiritual experience of pilgrims. Great to know that there are still temples where spirituality still prevails.
The Gyan Sarovar looks world class. The brief given to the architects was highly challenging and it is amazing that they have been able to carry it out in such a short time, that too without cutting down a single tree. Thanks once again.
सुशांत जी , हम लोग अपनी पहचान, अपनी संस्कृति को बिलकुल भूल चुके हैं, हम क्या थे, क्या हैं, और क्या हमारा भाविष्य हैं बिलकुल भूल चुके हैं, हमारे लिए केवल अपनी जाति ही प्रमुख रह गयी हैं. हम लोग तो ये भी भूल गए हैं की हम हिंदू, आर्य हैं. भारत के हर क्षेत्र की अपनी पहचान , अस्मिता हैं, उन्हें पहचान और अस्मिता पर गर्व हैं. उनके पास अपने नायक हैं, पर हमारे पास कोई नहीं हैं, हम अपने नायक राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर को भी भूल गए हैं. उनके जन्मस्थान पर विदेशियों ने अपने धर्म स्थल खड़े कर दिए, उन्हें भी हम आज़ाद नहीं करा सकते..धिक्कार हैं हम पर…वन्देमातरम…
बिल्कुल सही कहा प्रवीण जी ! मुझे तो लगता है कि जब हालात बहुत बेकाबू से होने लगें तब यह समझ लेना चाहिये कि अब परिवर्तन की घड़ी निकट ही आ रही है।
अजब सी छपपटाहट, कसक मन में, और है असह्य पीड़ा !
समझ लो, साधना की अवधि पूरी है !
अरे घबरा न मन, चुपचाप सहता जा,
सृजन में दर्द का होना जरूरी है !
जब भी मन बहुत उद्वेलित होता है, स्व. कन्हैया लाल नन्दन जी की ये पंक्तियां बहुत सहारा देती हैं।
प्रिय सुशान्त जी….
बहुत ही अच्छा वर्णन किया आपने उदयपुर के बारे में ….फोटो भी बहुत अच्छे लगे | उदयपुर मेरा अच्छे से घूमा हुआ है….जगदीश मंदिर को भूल ही नहीं सकता हैं….मैंने भी जगदीश मंदिर के कुछ अच्छे फोटो लिए थे और लिखा भी यहाँ के बारे में जो इस लिंक से आपको मिल जाएगा
( https://www.ghumakkar.com/2012/01/03/udaipur-a-beautiful-travel-destination%E0%A4%9D%E0%A5%80%E0%A4%B2%E0%A5%8B%E0%A4%82-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%A8%E0%A4%97%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%89%E0%A4%A6%E0%A4%AF%E0%A4%AA%E0%A5%81%E0%A4%B0/ )
हम लोग आबू से उदयपुर NH76 से ही होकर आये थे उस समय यह हाइवे बन चुका था …बड़ा ही शानदार रोड हैं….| ब्रह्माकुमारी केन्द्र के बारे में जानकर अच्छा लगा….|
उदयपुर को फिर स्मरण कराने के लिए धन्यवाद….
करीब 1000 इसवी के आसपास के खजुराहो के मंदिर हैं, मुझे मालूम नहीं की आप अभी तक उस तरफ गए हैं की नहीं, अगर नहीं तो निश्चित तौर पर जाएँ । जगदीश मंदिर के बाद आप उसे और अच्छे से सराह पायेंगे । सुबह सवेरे की घुमक्कड़ी काम आयी , बढ़िया है । इस बहाने दो चार उपदेश हम लोगों ने भी पी लिए , :-) । लाल से याद आया, “लाल देह लाली लसे, अरुधर लाल लंगूर, वज्र देह , दानव दालान , जय जय जय कपिसुर ” । आप हमारे लिए हनुमान जी ही हैं तो दूर परदेश के बारे में इत्मीनान से बता रहे हैं, कभी कभी लगता है की पूरा पर्वत सामने खड़ा है । अस्तु :
ब्रह्माकुमारी के बारे में थोडा बहुत सुना है, ऐसा होता है न की दूर परिवार का एक सदस्य ब्रह्माकुमारी समुदाय का सदस्य होता है तो अक्सर शादियों, समारोह मिलनों पर लोग इस बारे में बिना किसी जानकारी के लम्बी लम्बी बातें करतें हैं । आज आपके थ्रू सही बात पता चली । अगर चिट्ठी न हो तो क्या रहना संभव है ?
फाइनली , अगर समय और रूचि साथ दे, तो एक लेख ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के ज्ञान सरोवर परिसर पर हो जाए । सीरियसली ।
@Nandan : प्रिय नन्दन ! आपके मजेदार कमेंट न मिलें तो लगता है खाना खाने के बाद गाज़र के हलवे की प्रतीक्षा में सूखा जा रहा हूं ! ब्रह्माकुमारी विश्वविद्यालय ने मुझे बहुत प्रभावित किया है यद्यपि उनकी अनेकों अवधारणाओं में से दो-एक ऐसी हैं, जो मैं आज भी स्वीकार नहीं कर पाता हूं ! वैसे तो वो खुले हृदय से हर किसी का स्वागत करते हैं – उनके परिसर को देखने के लिये, उनके विचारों, उनकी संस्था के उद्देश्यों को समझने के लिये जो भी उत्सुक हो, उसका स्वागत किया जाता है पर इस बात में मुझे संशय है कि वहां बिना किसी पूर्व परिचय के रात्रि में रुकने दिया जायेगा या नहीं ! बहुत सारे लोग सिर्फ इसलिये वहां रहना चाहते होंगे कि वहां पर खाना-पीना, रहना-सहना, घूमना-फिरना सब निःशुल्क है। वहां पर सैंकड़ों महिलायें भी होती हैं अतः सुरक्षा की भी उनको चिन्ता हो ऐसा स्वाभाविक है। वह इतना तो अवश्य ही चाहेंगे कि आपके नाम की संस्तुति आपके शहर का सेवा केन्द्र करे ताकि कुछ unpleasant surprises से बचा जा सके। ज्ञान सरोवर के बारे में मैं अलग से भी एक पोस्ट देने का प्रयास करूंगा, ऐसा करके मुझे बहुत खुशी होगी।
खजुराहो मैं गया हूं ! दर असल, 1980-83 के मध्य में मेरी नियुक्ति झांसी में थी । उस समय बैंक के एक मित्र के साथ मैं गया था। ब्लेक एंड व्हाइट 2 रील यानि 72 फोटो हम दोनों खींच कर लाये भी थे परन्तु सुबह 10.30 पर बस से पहुंचे और शाम को 4.30 पर वापसी की बस पकड़ ली थी अतः सब कुछ स्वप्न जैसा सा लगता है। उस समय की फोटो भी पास में नहीं हैं। दोबारा जाने का प्लान बन रहा है पर अभी तिथि निश्चित नहीं है।
Ritesh Gupta : भाई, आपकी मजेदार लेख-श्रृंखला मैं पढ़ चुका हूं ! आप इतना विस्तार से और इतने अच्छे ढंग से सब कुछ लिख चुके हैं कि अब कुछ हट कर लिखना मेरे लिये चुनौतीपूर्ण हो गया है। आपको पोस्ट अच्छी लगी, जानकर खुशी हुई !
DL : Thanks for the delightful comment. Invariably, all of your comments become an integral part of the original post. I feel that in todays’ engineering colleges where architecture is a subject, the emphasis is on the modern, Italian architecture and not the Indian traditional architecture. There is just one paper on Indian architecture. As regards sculpting human forms on the walls, it is simply out of question these days. I have heard that in Dayalbagh, Agra a magnificent temple is in progress since several decades. I haven’t visited it yet and don’t know if there are human forms on the walls or not. Floral patterns are definitely there.
Gyan Sarovar, Madhuban, Shanti Van and various other complexes are definitely world class. People are coming there from different parts of the world on regular basis. Shanti Van is a city it its own right – having its own power-generation, fleet of buses, trucks, their own 4-colour offset printing division, audio-visual studios, hospitals and dispensaries, ultra-modern kitchens etc.