Romanch in Mount Abu, Romance in Udaipur, Part 4
Day 4 –Udaipur Journey completed (and back to boredom) The checkout time in hotel was 11. So I asked them to take care of…
Read MoreDay 4 –Udaipur Journey completed (and back to boredom) The checkout time in hotel was 11. So I asked them to take care of…
Read Moreआगे बढ़े तो छत से झांकने पर एक और प्रांगण दिखाई दिया। बताया गया कि यहां रवीना टंडन की शादी हुई थी। जरूर हुई होगी, हमें तो निमंत्रण मिला नहीं था शादी का, हमारी बला से! सच पूछो तो रवीना शादीशुदा है या कुंवारी है – हमें इसमें भी कोई रुचि नहीं है। हमारे लिये तो हमारी अपनी श्रीमती जी ही रवीना, ऐश्वर्या, माधुरी, सीता, सावित्री, गार्गी, विद्योत्तमा, तिलोत्तमा सब कुछ हैं। (यह लाइन मैने उनको पढ़वाने के लिये ही लिखी है!)
सिटी पैलेस को समझना हो तो आप कुछ कुछ यूं समझें कि ये एक लंबाई में बनाया हुआ महल-कम-दुर्ग-कम-होटल-कम-संग्रहालय है। अगर आप 49,999 रुपये तथा उस पर विलासिता कर यानि luxury tax और VAT दे सकते हैं तो आप फतेह प्रकाश पैलेस या शिव सागर पैलेस होटल में से किसी एक होटल में एक रात रुक भी सकते हैं। अगर आप सोनिया गांधी के दामाद हैं और रातोंरात अरबपति बन चुके हैं तो आप अपने बच्चों का विवाह भी इन HRH Heritage hotels में से किसी एक में आयोजित कर सकते हैं। पर अगर आप 30 रुपये में सिटी पैलेस म्यूज़ियम देखने आये हैं तो आप शानदार हवेलियां देखिये, कमरों में सजाये हुए पंखे, बिस्तरे, मूढ़े आदि देखिये, अद्भुत वास्तुकला देखिये, अंग्रेज़ पर्यटकों को निहारिये, 200 रुपये कैमरे के लिये देकर फोटो वगैरा खींचिये और संकरी गली से बाहर निकल लीजिये।
Read Moreवहां से निकल कर अगला पड़ाव था – जगदीश मंदिर ! मैं चूंकि एक घंटा पहले यहां तक आ चुका था अतः मुझे बड़ा अच्छा सा लग रहा था कि अब मैं अपने परिवार के लिये गाइड का रोल निर्वहन कर सकता हूं। परन्तु पहली बार तो मैं मंदिर की सीढ़ियों के नीचे से ही वापिस चला गया था। ऊपर मेरे लिये क्या – क्या आकर्षण मौजूद हैं, इसका मुझे आभास भी नहीं था। मंदिर की सीढ़ियों के नीचे दो फूल वालियां अपने टोकरे में फूल – मालायें लिये बैठी थीं । माला खरीद कर हम सीढ़ियों पर बढ़ चले। भाईसाहब का कई वर्ष पूर्व एक्सीडेंट हुआ था, तब से उनको सीढ़ियां चढ़ने में असुविधा होती है। वह बोले कि मैं टैक्सी में ही बैठता हूं, तुम लोग दर्शन करके आओ। मैने कहा कि टैक्सी में बैठे रहने की कोई जरूरत नहीं। मुझे एक दूसरा रास्ता मालूम है मैं आपको वहां से मंदिर में ले चलूंगा। उसमें दो-तीन सीढ़ियां ही आयेंगी। वह आश्चर्यचकित हो गये कि मुझे इस मंदिर के रास्तों के बारे में इतनी गहन जानकारी कैसे है। वास्तव में, जब मैं पैदल घूम रहा था तो एक बहुत ढलावदार रास्ते से होकर मैं मंदिर के प्रवेश द्वार तक आया था। उस ढलावदार रास्ते पर भी जगदीश मंदिर के लिये छोटा सा प्रवेश द्वार दिखाई दिया था। भाईसाहब इतनी सारी सीढ़ियां नहीं चढ़ सकते थे क्योंकि उनका घुटना पूरा नहीं मुड़ पाता परन्तु ढलावदार रास्ते पर चलने में कोई दिक्कत नहीं थी। मेरी जिस ’आवारागर्दी’ को लेकर सुबह ये तीनों लोग खफा नज़र आ रहे थे, अब तीनों ही बहुत खुश थे। आखिर इसी ’आवारागर्दी’ (जिसे मैं घुमक्कड़ी कहना ज्यादा पसन्द करता हूं) की वज़ह से भाईसाहब को मंदिर के दर्शन जो हो गये थे।
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