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अमृतसर – रामतीरथ – श्री गुरुरामदास प्रकाश पर्व – घर वापसी

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सीढ़ियां उतर कर उस सूखे सरोवर को पगडंडी के रास्ते पार करके मैं सामने वाली उस बस्ती में पहुंचा तो लगने लगा कि किसी दूसरी ही दुनिया में पहुंच गया हूं। यह कहना ज्यादा सही लगता है कि वह सरोवर एक टाइम मशीन था, जिसमें प्रवेश किया तो कलयुग था पर जब उस पार जाकर मशीन से बाहर निकला तो त्रेतायुग में आ गया था। सीता मैया की झोंपड़ी जिसमें वह रहती थीं, रसोई जिसमें वह खाना बनाया करती होंगी, वह सरोवर जिसमें स्नान-ध्यान चलता होगा, वह कुआं जो सीता मैया के लिये उनके अनन्य सेवक हनुमान जी ने खोद कर दिया था, सब कुछ ऐसा लग रहा था कि बस! शब्दों में व्यक्त कर पाना मेरे लिये कठिन हो रहा है। पराकाष्ठा यह है कि सीता मैया की रसोई के पास सरोवर की सीढ़ी पर एक झुमका पड़ा दिखाई दिया तो मन में एकदम ख्याल आया कि शायद ये झुमका उस समय से यहीं पड़ा हुआ है जब रावण द्वारा हरण कर लेने के बाद वह आकाश मार्ग से लंका ले जाये जाते समय रास्ते में यह सोच कर अपने आभूषण गिरा रही थीं कि शायद इनको देख कर किसी को उनका अता-पता मिल सके ।

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सरधना– मैरी का चर्च, बेगम सुमरू और उनका राजप्रासाद

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गेट के निकट ही गाड़ी दीवार से सटाकर खड़ी कर हम अपना कैमरे का बैग और पानी की बोतल लिए एंट्री को तैयार थे, लेकिन गेट पर तैनात दो लोगों ने रोकते हुए साफ़ पूछा कि “क्या आप लोग कैथोलिक हैं?”, हम प्रश्न के लिए तैयार नहीं थे, फिर भी हमने दृढ़ता से उनके प्रश्न का नकारात्मक उत्तर देते हुए अपनी सम्बद्धता स्पष्ट की. पर उसने हमें साफ़ तौर से एंट्री देने से मना कर दिया. कारण: संडे के दिन १२ बजे तक का समय प्रार्थना के लिए निर्धारित है और उसमे केवल क्रिस्चियन ही जा सकते हैं. और भी तमाम लोग एंट्री की अपेक्षा में वहां मौजूद थे.

कुछ देर बाद फिर से प्रयास करने पर गेटमैन ने एंट्री दे दी हालाँकि अभी १२ बजने में लगभग २० मिनट शेष थे.

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