यात्रा की योजना एवं तैयारी:
वैसे तो अब तक घुमक्कड़ पर सोमनाथ के बारे में बहुत कुछ लिखा जा चूका है, लेकिन एक छोटा सा प्रयास करने की मेरी भी इच्छा है, आशा है आपलोगों को मेरा यह प्रयास पसंद आएगा.
हमने अपनी ज्योतिर्लिंग यात्राएं त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग यात्रा के साथ सन 2007 में शुरू की थीं लेकिन उस यात्रा के कोई साक्ष्य हमारे पास मौजूद नहीं होने की वजह से हम उस यात्रा का वर्णन घुमक्कड़ के पाठकों तक नहीं ला पाए फिर 2008 में घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की यात्रा के बाद अब हम अपनी ज्योतिर्लिंग यात्रा के बारे में सोच ही रहे थे की अब कहाँ जाना चाहिए? तभी दिमाग में यह बात आई की क्यों न सोमनाथ जाया जाये? सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन भी हो जायेंगे और साथ में द्वारिका धाम भी हो आयेंगे यानि एक ज्योतिर्लिंग के साथ एक धाम फ्री, और बस मुकेश जी ने योजना बनाने पर काम प्रारंभ कर दिया और हमने यह निर्णय लिया की हमारी यह यात्रा 30 जनवरी से प्रारंभ होकर 5 फरवरी को समाप्त होगी. 30 जनवरी को इसलिए क्योंकि इस दिन हमारी बिटिया संस्कृति का जन्मदिन होता है, अब वह नौ वर्ष की हो गई थी और इससे पहले के उसके सारे जन्मदिन हमने अपने घर में बच्चों की फौज के साथ ही मनाये गए, लेकिन इस वर्ष हमने सोचा की उसके जन्मदिन पर हम तीर्थ यात्रा जायेंगे अतः हमने यह टूर इस दिन के लिए प्लान किया और फिर हमने जबलपुर सोमनाथ एक्सप्रेस में अपना रिजर्वेशन करवा लिया.
यात्रा का आरम्भ:
संस्कृति अपने स्कूल से लौटी और कोलोनी में टॉफी बांटकर आई और शाम के लगभग छः बजे हम लोग अपनी कार से उज्जैन के लिए रवाना हो गए, हमें अपनी ट्रेन में उज्जैन से ही बैठना था. ट्रेन रात को 10 बजे उज्जैन से निकलनेवाली थी और हम लोग लगभग नौ बजे रेलवे स्टेशन पहुँच गए, एक घंटे के इंतज़ार के बाद करीब 10 :10 बजे हमारी ट्रेन उज्जैन से निकल पड़ी.
मुकेश को ट्रेन (रेलवे) का खाना बिलकुल पसंद नहीं है, इसलिए वे अपने ओफ़िशिअल टूर पर भी जब जाते हैं तो कम से कम एक बार का खाना मेरे हाथ का बनवाकर लेकर जाते हैं खासकर उन्हें ट्रेन में मेरे हाथ की आलू मटर की सब्जी या भिन्डी और पुड़ी या परांठे बहुत भाते हैं तो मैं उनकी पसंद का खाना बनाकर साथ लेकर आई थी अतः खाना वगैरह खाकर हम लोग अपनी अपनी बर्थ पर सो गए.
सोमनाथ जाने का मेरा उत्साह अपने चरम पर था क्योंकि एक तो बचपन से किताबों में सोमनाथ मंदिर के बारे में पढ़ते आ रहे थे और दूसरा सारे ज्योतिर्लिंगों में प्रथम ज्योतिर्लिंग के दर्शन के आनंद की लालसा. वैसे मैं कई बार शिव महापुराण की कथा सुन चुकी थी जिसमें कहा जाता है की जो भक्त सोमनाथ के दर्शन करता हैं वह यहाँ से एक नई उर्जा प्राप्त करके अन्य ज्योतिर्लिंगों की यात्रा के लिए प्रेरित होता है, वैसे तकनिकी भाषा में कहूँ तो व्यक्ति रिचार्ज हो जाता है, उसे एक नई एनर्जी मिल जाती है.
हम सोते रहे और ट्रेन अपने गति से चलती रही, एक एक करके स्टेशन गुजरते रहे, बीच बीच में नींद खुल जाती थी तो खिड़की से झाँक कर देख लिया करते की कौन सा स्टेशन आया है. वैसे मुकेश को तो बस, कार, ट्रेन आदि में नींद आती ही नहीं है, क्योंकि उन्हें घुमने और नई जगहों को देखने का इतना जबरदस्त शौक है की वो पुरे समय खिड़की से झाँक कर बाहर देखने की कोशिश करते रहते हैं, और जैसे ही सुबह की पहली किरण फूटती है उन्हें अपनी मुंह मांगी मुराद मिल जाती है और वे उत्साहित होकर बाहर देखने लगते हैं.
वेरावल से सोमनाथ का सफ़र: कुछ यादगार अनुभव
रात के बैठे हम लोग अगले दिन शाम के पांच बजे के लगभग वेरावल पहुँच गए. वेरावल आते आते जैसे पूरी ट्रेन ही खाली हो गई और ट्रेन के खाली होते ही बच्चों ने कम्पार्टमेंट में उछल कूद मचाना शुरू कर दिया.
वेरावल सोमनाथ से कुछ 8 किलोमीटर पहले एक क़स्बा है, जहाँ ज्यादातर सोमनाथ तीर्थ यात्री ठहरते हैं क्योंकि यहाँ ठहरने के लिए अच्छी धर्मशालाएं तथा होटल्स हैं. पहले कोई भी ट्रेन सोमनाथ तक नहीं जाती थी तथा वेरावल ही ट्रेन का अंतिम स्टेशन हुआ करता था तथा वेरावल से यात्री ऑटो रिक्शा करके सोमनाथ जाया करते हैं, लेकिन अब कुछ सालों पहले इसी ट्रेन को बढाकर सोमनाथ तक कर दिया गया है. यहाँ पर ट्रेन की पटरी ख़त्म हो जाती है, यानी इस रूट पर यह रेलवे का आखिरी स्टेशन है.
मैंने अपने जीवन में पहली बार ट्रेन की पटरी (ट्रेक) को समाप्त (end) होते देखा जहाँ आगे एक पटिये पर तीन क्रोस के चिन्ह लगे थे. वेरावल से सोमनाथ के उस सात आठ किलोमीटर के रास्ते में मुझे बहुत सारी ऐसी चीजें देखने को मिली जो मैंने जीवन में पहली बार महसूस की थी जैसे एक तो मैंने बताया रेल की पटरियां जो ख़त्म हो गईं, दूसरा मैंने नारियल के इतने सारे पेड़ भी एक साथ कभी नहीं देखे थे, तीसरा समुद्र का किनारा होने की वजह से यहाँ सुखी मछलियों की बड़ी जबरदस्त तथा जानलेवा गंध फैली हुई थी, चौथा मैंने कभी नाव या पानी के छोटे जहाज बनते नहीं देखे थे, लेकिन यहाँ वेरावल से सोमनाथ के बीच पुरे समुद्री किनारे पर भरी संख्या में नावें तथा जहाज का निर्माण होते हुए दिखा, और अंत में यह कहना चाहूंगी की मैंने यहाँ पहली बार समुद्र देखा था. यानी यह यात्रा मेरे लिए बहुत यादगार थी जिसमें बहुत सारी जिज्ञासा, कौतुहल, आश्चर्यमिश्रित हर्ष था. मैं तो बस इन नजारों को स्तब्ध होकर देखती रही. लगभग साढ़े पांच बजे हम सोमनाथ पहुँच गये.
सोमनाथ आगमन:
जैसे ही हम लोग सोमनाथ के स्टेशन पर उतरे हमें ऑटो वालों ने घेर लिया. एक ऑटोवाले से हमने बताया की हमें सोमनाथ मंदिर के नजदीक एक दिन के लिए कमरा चाहिए. उसने हमें होटल पर ले जाकर छोड़ा, मुकेश ने ऑटो से उतर कर कमरे तथा सुविधाओं का जायजा लिया. कमरे का किराया था 300 रुपये, और विशेष बात थी की यह होटल हमारी इच्छा के अनुरूप मंदिर से इतने करीब था की शिवम् अकेला ही मंदिर परिसर में चला जाए.
खैर हमने कमरा बुक करवाया और थके हारे होने की वजह से जल्द ही कमरे की ओर रुख किया. कमरे में आकर हमने फटाफट अपने बैग रखे और होटल वाले से नहाने के लिए गर्म पानी के बारे में पूछा, अब आपके मन में यह प्रश्न आ रहा होगा की इतनी जल्दी नहाने की क्या जरुरत थी तो मैं बताये देती हूँ की हमने होटल में रिसेप्शन पर मंदिर की आरती दर्शन आदि के बारे में पूछा तो हमने पता चला की शाम सात बजे सांध्य आरती होती है, बस फिर क्या था हम सब यहाँ तक की शिवम भी नहाने के लिए तैयार हो गए, जब होटलवाले ने बताया की इस समय गर्म पानी नहीं मिल सकता तो हम सबने ठन्डे पानी से ही नहा लिया, वैसे हमें भगवान् के दर्शनों के नाम से किसी भी प्रकार की थकान या तकलीफ नहीं होती और वैसे भी हम भगवान् के दर्शनों का कोई मौका नहीं छोड़ते. भोले बाबा के दर्शन की इच्छा से सबकी थकान गायब हो गई थी. तो साहब नहा धोकर हम सब मंदिर जाने के लिए तैयार हो गए या कह लीजिये की मंदिर के लिए निकल पड़े. उस समय मंदिर में भीड़ अपेक्षाकृत कम ही थी, एक छोटी सी लाइन लगी थी, हम सब भी उस लाइन में जाकर खड़े हो गए………………….. और अब मैं अपनी कहानी को यहाँ थोडा विराम देती हूँ क्योंकि सोमनाथ से सम्बंधित कुछ प्रमाणिक जानकारी से अवगत करना मैं अति आवश्यक समझती हूँ.
सोमनाथ मंदिर – एक परिचय:
भारत के गुजरात राज्य के जूनागढ़ जिले में प्रभास पाटन नामक गाँव को ही सोमनाथ कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर भगवान् शिव के पवित्र तथा दुर्लभ बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक आदि तथा स्वंभू ज्योतिर्लिंग श्री सोमनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है. सोमनाथ को अनंत देवालय भी कहा जाता है, क्योंकि यह छः बार मुस्लिम शासकों के द्वारा ध्वस्त किया गया तथा हर बार अपने उसी गौरव के साथ फिर से खड़ा किया गया. वर्तमान मंदिर सन 1947 में लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के अथक प्रयासों से निर्मित किया गया है.
सोमनाथ मंदिर का वैभवशाली अतीत:
जय सोमनाथ…………..जय सोमनाथ यह जयघोष गुजरात में सौराष्ट्र के वेरावल बंदरगाह और प्रभास पाटन गाँव के परिसर में गूंजता रहता था. साथ ही साथ मंदिर की सीढियों पर आकर टकराने वाली समुद्री लहरों से निकलनेवाली जय शंकर…जय शंकर…..की धीर गंभीर ध्वनि और सुवर्ण घंटानाद से निकलनेवाली ॐ नमः शिवाय…….ॐ नमः शिवाय……..ध्वनि से सारा मंदिर परिसर भक्तिमय बन जाता था.
मंदिर की यह विशाल सुवर्ण घंटा दो सौ मन सोने की थी और मंदिर के छप्पन खम्भे हीरे, माणिक्य और मोती जैसे रत्नों से जड़े हुए थे. मंदिर के गर्भगृह में रत्नदीपों की जगमगाहट रात दिन रहती थी और कन्नौजी इत्र से नंदा दीप हमेशा प्रज्जवलित रहता था. भंडार गृह में अनगिनत धन सुरक्षित था.
भगवान् की पूजा अभिषेक के लिए हरिद्वार, प्रयाग, काशी से पूजन सामग्री प्रतिदिन लाई जाती थी. कश्मीर से फूल आते थे. नित्य की पूजा के लिए एक हज़ार ब्राम्हण गण नियुक्त किये गए थे. मन्दिर के दरबार में चलने वाले नृत्य गायन के लिए लगभग साढ़े तीन सौ नर्तकियां नियुक्त की गई थीं. इस धार्मिक संस्थान को दस हज़ार गावों का उत्पादन इनाम के रूप में मिलता था.
सोमनाथ मन्दिर का इतिहास:
श्री सोमनाथ के इस वैभवसंपन्न पवित्र स्थान पर क्रूर एवं आत्याचारी मुसलामानों ने कई बार आक्रमण किये. कुल मिला कर सोमनाथ मंदिर को छः बार ध्वस्त किया गया तथा लूटा गया. सिलसिलेवार घटनाक्रम निम्न प्रकार से है:
- सोमनाथ का प्रथम मंदिर आदिकाल का माना जाता है जिसे चन्द्र देव ने देव काल में निर्मित करवाया था.
- आदि मंदिर के क्षीण हो जाने पर द्वितीय मंदिर वल्लभी गुजरात के यादव राजाओं द्वारा सन 649 में आदि मंदिर के ही स्थान पर बनवाया गया.
- सन 725 में सिंध के अरब सूबेदार जुनामद ने प्रथम आक्रमण कर अनगिनत खज़ाना लूटा.
- सन 815 में गुर्जर प्रतिहार राजा नागभट्ट ने तीसरा मंदिर बनवाया जिस पर आक्रमण करके गजनी के महमूद ने शुक्रवार दिनांक 11 मई 1025 को सुबह 9 .46 पर मंदिर में स्थित ज्योतिर्लिंग को तोड़ डाला. इस दिन उसने 18 करोड़ का खज़ाना लूटा था.
- सन 1297 में इस मंदिर को एक बार फिर सुलतान अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने लूटा, खसोटा और ध्वस्त किया.
- 1375 में गुजरात के सुल्तान मुज़फ्फर शाह ने इस मंदिर को फिर ध्वस्त किया.
- 1451 में मंदिर एक बार फिर महमूद बेगडा के द्वारा ध्वस्त किया गया.
- और अंत में 1701 में इस मंदिर को मुग़ल शासक औरंगजेब के द्वारा ध्वस्त किया गया एवं लूटा गया.
- वर्तमान मंदिर सन 1947 में लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के अथक प्रयासों से भारत सरकार के सहयोग से निर्मित किया गया, तथा इसके ज्योतिर्लिंग की प्राण प्रतिष्ठा दिनांक 11 मई सन 1951 को सुबह 9 .46 पर की गई. गौरतलब है की यह वही दिनांक तथा समय है जब सन 1025 में महमूद गजनवी ने इस ज्योतिर्लिंग को तोडा था.
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यह तो थी कुछ जानकारी सोमनाथ मंदिर के बारे में अब मैं वापस आपको लिए चलती हूँ मेरी कहानी की ओर……………………………
सोमनाथ मंदिर प्रवेश:
मुकेश और मैं तो बाहर से ही मंदिर की भव्यता और विशालता को देखकर मंत्रमुग्ध हो गए. समुद्र के एकदम किनारे पर विशाल एवं सुन्दर मंदिर, मंदिर परिसर का शांत और सौम्य वातावरण, मंदिर प्रवेश के ठीक पहले अतिसुन्दर एवं वृहद् दिग्विजय द्वार, शाम का समय और दुर दुर तक फैले अंतहीन समुद्र से आती लहरों की कर्णप्रिय ध्वनि, और मंदिर के शिखर पर उन्मुक्त लहराती विशाल ध्वजा सबकुछ मानो एक स्वप्न सा लग रहा था. ऐसी मान्यता है की यदि आप किसी कारणवश मंदिर में नहीं जा पाते हैं तो मंदिर की ध्वजा के दर्शन से ही मंदिर दर्शन का पुण्य प्राप्त हो जाता है.
और फिर जैसे ही हमने मंदिर में प्रवेश किया, मंदिर की आतंरिक साज सज्जा, सुन्दर नक्काशी एवं उत्कृष्ट कारीगरी को देखकर हम हतप्रभ रह गए. और फिर आगे जाकर गर्भगृह में ज्योतिर्लिंग का स्वरुप देखकर तो हम कुछ देर के लिए जैसे सम्मोहित ही हो गए थे. बड़ा ही सुन्दर द्रश्य था जिसका बखान मैं शब्दों में करने में असमर्थ हूँ.
सोमनाथ मंदिर आरती: अतुलनीय, अकल्पनीय, अमूल्य
सोमनाथ की आरती शहनाई, शंख, नगाड़े एवं घंटियों की ध्वनि के साथ होती है, एक विशेष बात यह है की इस आरती में शब्द नहीं होते सिर्फ संगीत होता है और ऐसा संगीत जो एक नास्तिक के मन में भी अगाध श्रद्धा उत्पन्न करने में सक्षम है. कर्णप्रिय ध्वनि, वातावरण में फैली गुग्गल की खुशबू, भक्ति से सराबोर जनमानस, दीयों की मद्धिम रौशनी, महादेव का अनवरत अभिषेक सबकुछ स्वप्नलोक की तरह……..और मन में यह तीव्र उत्कंठा की यह स्वप्न कभी भी समाप्त न हो, यह आरती ऐसे ही चलती रहे. यहाँ मैं आपलोगों को यह बता देना चाहती हूँ की मुकेश के मन में शिव जी के प्रति असीम श्रद्धा के बीज यहीं सोमनाथ मंदिर में इसी माहौल में अंकुरित हुए थे, और उन्हें पहली बार भगवान शिव की सत्ता से साक्षात्कार की अनुभूति हुई. मैं ठगी सी शिव के ज्योतिर्लिंग को अपलक निहार रही थी, और महसूस कर रही थी की ज्योतिर्लिंग से ज्योति की रश्मियाँ निकल कर मेरे शरीर में मेरी आत्मा में प्रवेश कर रही हैं. संस्कृति एवं शिवम् भी उस वातावरण में रम से गए थे. कुछ देर में यह चमत्कारी आरती समाप्त हुई और हम श्रद्धा की बेड़ियों से बंधे हुए अनमने से मंदिर से बाहर आये.
रात के सन्नाटे को चीरती मंदिर की दीवारों से टकराती समुद्र की लहरों की वे आवाजें एक अद्भूत वातावरण निर्मित कर रहीं थीं. कुछ समय तक तो हम मंदिर के प्रांगण में ही लगी बेन्चों पर बैठ कर इस अद्भूत नज़ारे का अवलोकन करते रहे और समुद्र की लहरों को आते जाते देखते रहे. कुछ देर के बाद उठकर हम बाहर की ओर सजी पूजन सामग्री तथा अन्य वस्तुओं की छोटी छोटी दुकानों जो बहुधा हर बड़े मंदिर के परिसर में होती हैं में थोड़ी बहुत खरीददारी के उद्देश्य से प्रवेश किया. फिर कुछ देर में भूख ने अपना प्रभाव दिखाया और हम भोजन की तलाश में कोई अच्छा रेस्टारेंट ढूंढने लगे, जो हमें कुछ ही देर में मिल गया. हमने गुजरती थाली आर्डर की और खाना खाकर हम वापिस अपने होटल आ गए.
चूँकि हमें सुबह भगवान का अभिषेक करना था अतः होटल लौटते समय हमने पुरोहित जी से अभिषेक के लिए बात कर ली एवं सुबह सात बजे का समय तय कर लिया. होटल पहुंचकर सुबह जल्दी उठने के उद्देश्य से मोबाइल में अलार्म लगाया, चूँकि सुबह जल्दी उठाना था और दिनभर की थकान के कारण हम सब तुरंत ही सो गए.
अब इस श्रंखला की इस पहली कड़ी को मैं यहीं समाप्त करने की अनुमति चाहती हूँ……………..तब तक आप लोग भी थोडा ब्रेक ले लीजिये…………अगली कड़ी में आप लोगों को कुछ और जानकारी दूंगी इस पावन जगह के बारे में. पाठकों की प्रतिक्रिया का इंतज़ार बेसब्री से रहेगा.
(नोट: कुछ चित्र गूगल से साभार लिए गए हैं.)
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SS jee, there are at least 2 places called Aurangabad in India and one of them is a major city.
Just a little bit of history……Jahangir was the son of Akbar and Princess Hira Kumari of Amber, so he was half Rajput and half Mughal. Aurangzeb was born to Shah Jahan and Princess Manmati of Jodhpur. So, he was 3/4th Rajput and 1/4 Mughal. So, Aurangzeb, as far as his genes were concerned was mainly Rajput with a trace of Mughal blood. Notwithstanding his Hindu roots, Aurangzeb was the most bigoted and fanatical of the Mughal Emperors.
Naming roads or airports or cities after certain people does not mean that they are loved by the people. Such acts are dictated by the needs of political expediency, SSji, as you very well know. No amount of rewriting history can wash away the blood stained hands of this evil tyrant.
Babu Rajendra Prasad had himself performed the ????? ?????????? of the jyotirlingam in the reconstructed Somnath Temple. What he said on this occasion is worth repeating; “The Somnath temple signifies that the power of reconstruction is always greater than the power of destruction”
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Agreed fully DL, i was just teasing big Jaat LOL. Yes I agree with Kavitaji, your knowledge in all fields is so immense.
In India not many people knew abut Iceland, but you immediately brought up issue of Geo-thermal energy, which surprised me. In all posts your addendums are really very interesting and full of wisdom.
@ Kavita Bhalse : will you tell why you people dont go on long tours by your own cars… I would never travel by train/bus if I have a car or even a bike
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Thanks, Kavitajee. It is much easier to comment than to write, so I am happy leaving the hard work in the capable hands of writers like you.
@Nandan/Vibha…are you listening? Commentator of the month/year awards :-)
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Dear kavita jee extremely good post with great description . majaa aa gayaa. somnath ka darshan raat ke baaraa baje ke baad kar rahaa hoon. bahaar gayaa tha……………….
About Somnath temple I want to add something regarding mythology .
1) Moon God made that temple in Gold first and then it was
2) Ravana who made it in silver and then it was
3 ) Lord Krishna who made it in wood.
I have seen above info in many internet searches and finally last in January 2012 I went there and from Somnath Trust Museum also I found the same info.
Thanks for Somnath Darshan ………………
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Dear Kavita ,,
This post is very simple as well as detailed as you only………………………………This post reflects yours and Mukesh’s personality in many ways…………..
Somnath as I know is a very beautiful place but everytime when I view something about it , its always new and exciting ……………
Thanks for lovely trip and waiting for next.
Where is Mukesh?? I am waiting for his post also………………Alarm for Mukesh ….wake up !!!!!!!!
Sonali jee welcome to Ghumakkar dot com ! Ek kahani aapki taraf se bhi ho jaye ???
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hiiii chachu very nice chchi told me to see this so i had seen……….
Adarsh,
Thanks you very much for reading the post and liking. Keep visiting on ghumakkar.com.
Thanks.
okk send me msg on fb when u post new story i will see the stories……
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Rajendra Babu remains one of the most respected and admired Administrators of modern India. Probably Nehru had a reason of doing what he did or may be he made a mistake. Rajendra Babu did what he thought right. Later JP was another guy who is often cited as the ‘Best PM India never had’ and now finally I have high regard of Nitishji (as he is loving called back home). :-). So much for Rajya-Prem. I should stop now.
@ DL – Yes, we are reading. :-). When I was talking to Mukesh as part of ‘Featured Author Interview’, Mukesh stressed upon the good-energy an encouraging and rich comment brings to the Author and readers of Ghumakkar. Comments like yours add ‘Chaar Chaand’ to the beauty of the prose and Mukesh suggested that we should look at having something like ‘Comment of the Month’ or ‘Top x comments of the month’.
We discussed internally and everyone agreed that its a great idea. It would specifically motivate those people who are not Authors but are regular readers (like Ashok, Stone, Tridev) and make valuable contribution. We are of the opinion that we would strengthen the ‘Featured Author’ Process. Currently it is taking a non-trivial effort. Once it is on a auto-pilot mode, we would certainly invest in this area. Thank You for your call, it greatly matters :-) so please keep them coming.
@ Nandan-I was just kidding; being a member of the ghumakkar family is in itself a huge privilege and the biggest reward too. When authors put in a lot of effort in producing a blog, the least we can do is clap and show our appreciation. And, maybe, offer some constructive criticism too. One of the huge attractions on ghumakkar is the lively and healthy debate which take place in the comments section. There is inevitably a diversity of opinions which adds a yummy tadka to the flavour of the debate.
Good post, Good write up and nice pictures.
Adarsh,
Thank you very much for liking the post and your sweet comments.
Thanks.
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very bright past but not a good present ; hoping to be for a glorious future.
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Kavita JI ko sadar naman jai bhole ki
Aapka lekh padakar laga Jo halchal ho rahi thi unka uttar mil gaya kyoki 21 June ko me bhi bhole k darbar m Jane ka wait kar raha hu mujhe aapke sare yatra smarn bahut ache lage jai bhole ki