पà¥à¤°à¤¿à¤¯ मितà¥à¤°à¥‹à¤‚,
होशंगशाह के मकबरे से बाहर निकल कर गाइड महोदय ने कार की ओर इशारा किया कि हम सब गाड़ी में बैठें और आगे चलें। कार तक पहà¥à¤‚चे तो मà¥à¤à¥‡ हारà¥à¤Ÿ अटैक होते-होते बचा। कार बनà¥à¤¦ थी और उसकी चाबी अनà¥à¤¦à¤° ही सीट पर पड़ी हà¥à¤ˆ दिखाई दे रही थी। हमने गाइड से कहा कि à¤à¥ˆà¤¯à¤¾, अब पहले तो हमें गाइड करो कि ये कार कैसे खोली जायेगी! कà¥à¤› सà¥à¤Ÿà¥€à¤² का फीटा-वीटा है कà¥à¤¯à¤¾? दरअसल, यदि आपके पास सà¥à¤Ÿà¥€à¤² का फीटा (आप शायद उसे फà¥à¤Ÿà¤¾ कहना चाहेंगे) हो तो शरीफ और ईमानदार लोग अपनी कार का दरवाज़ा खोल सकते हैं पर à¤à¤¸à¤¾ कैसा होता है यह बात मैं इस पबà¥à¤²à¤¿à¤• फोरम पर बताना नहीं चाहूंगा ! खैर, गाइड ने à¤à¤• दà¥à¤•ानदार से लोहे का à¤à¤• तार मांगा, उसे मोड़ा और कार में घà¥à¤¸à¤¾à¤¯à¤¾ और कार का दरवाज़ा खà¥à¤² गया।  कविता ने चाबी कार के अनà¥à¤¦à¤° ही छोड़ देने की लापरवाही के लिये थोड़ी सी खिंचाई मà¥à¤•ेश की की (जिसका हर पतà¥à¤¨à¥€ को हक़ बनता है) जिसे उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने खींसें निपोर कर चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª सह लिया। पांच मिनट के à¤à¥€à¤¤à¤° ही चूंकि हमारी समसà¥à¤¯à¤¾ सà¥à¤²à¤ गई थी अतः किसी का à¤à¥€ मूड खराब नहीं हà¥à¤† था और हम पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ वदन आगे बॠचले।
संकरी सी उस सड़क पर तीन चार किमी चल कर हमें दूर से à¤à¤• बà¥à¤°à¥à¤œ दिखाई देना शà¥à¤°à¥ हà¥à¤†à¥¤Â रासà¥à¤¤à¥‡ में जो – जो à¤à¥€ à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• टाइप के à¤à¤µà¤¨ हमें दिखाई दे रहे थे, हम गाइड से पूछ रहे थे कि à¤à¤ˆ, इनको कब दिखाओगे? वह हमें लारे-लपà¥à¤ªà¥‡ देता रहा कि लौटते हà¥à¤ देखेंगे पर वापसी के समय हम और किसी मारà¥à¤— से वापिस लाये गये।   चलो खैर, अलà¥à¤Ÿà¥€à¤®à¥‡à¤Ÿà¤²à¥€ हम उस à¤à¥€à¤®à¤•ाय à¤à¤µà¤¨ के निकट जा पहà¥à¤‚चे जो दूर से à¤à¤• छोटा सा बà¥à¤°à¥à¤œ महसूस हो रहा था। वहां लिखा था – रानी रूपमती का महल !  वहां हमने थोड़ी देर तक इमली वाले ठेले पर इमली के रेट को लेकर बहस की। ये मांडू की विशेष इमली थी जिसके बारे में मà¥à¤•ेश ने बताया कि ये सिरà¥à¤« यहां मांडू की जलवायॠका ही पà¥à¤°à¤¤à¤¾à¤ª है कि यहां ये इमली उगती है। मैं अपने जनà¥à¤® से लेकर आज तक इमली के नाम पर अपने परचून वाले की दà¥à¤•ान पर जो इमली देखता आया हूं, वह तो छोटे – छोटे बीज होते हैं जिनके ऊपर कोकाकोला रंग की खटास चिपकी हà¥à¤ˆ होती है और बीज आपस में à¤à¤• दूसरे से पेपà¥à¤¸à¥€ कलर के धागों से जà¥à¥œà¥‡ रहते हैं। वह ये तो इमली के फल थे जिनके à¤à¥€à¤¤à¤° बीज होने अपेकà¥à¤·à¤¿à¤¤ थे। बाहर से इस फल पर इतने सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° रोयें थे कि बस, कà¥à¤¯à¤¾ बताऊं = à¤à¤•दम सॉफà¥à¤Ÿ à¤à¤‚ड सिलà¥à¤•ी ! दूर से देखो तो आपको लगेगा कि शायद बेल बिक रही है, पर पास जाकर देखें तो पता चलता है कि इमली के फल की शकà¥à¤²-सूरत बेल के फल से कà¥à¤› à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ है और साथ में रोयें à¤à¥€ हैं! जब रेट को लेकर सौदा नहीं पटा तो हम टिकट लेकर रानी रूपमती के महल या मंडप की ओर बॠचले जो नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ नदी से 305 मीटर की ऊंचाई पर à¤à¤• पहाड़ी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। यह मà¥à¤à¥‡ किसी à¤à¥€ à¤à¤‚गिल से महल या मंडप अनà¥à¤à¤µ नहीं हà¥à¤†à¥¤Â अब जैसा कि पà¥à¤¨à¥‡ को मिला है, ये मूलतः सेना के उपयोग में आने वाली à¤à¤• मचान हà¥à¤† करती थी जिसमें मधà¥à¤¯ में à¤à¤• बड़ा परनà¥à¤¤à¥ नीची छत वाला हॉल व उसके दोनों ओर दो कमरे थे। पर बाद में उसमें विसà¥à¤¤à¤¾à¤° करके ऊपर बà¥à¤°à¥à¤œ व दो गà¥à¤‚बद बनाये गये। ये बà¥à¤°à¥à¤œ वासà¥à¤¤à¤µ में आकरà¥à¤·à¤• पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होती है। ये सब काम सिरà¥à¤« इसलिये कराने पड़े थे चूंकि रानी रूपमती को नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ नदी के दरà¥à¤¶à¤¨ किये बिना खाना नहीं खाना होता था, अतः वह यहां से ३०५ मीटर नीचे घाटी में à¤à¤• चांदी की लकीर सी नज़र आने वाली नरà¥à¤®à¤¦à¤¾ की धारा को देख कर संतोष कर लिया करती थीं और à¤à¤¤à¤¦à¤°à¥à¤¥ नितà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¤à¤¿ यहां आया करती थीं। इसी कारण बाज़ बहादà¥à¤° ने इसमें कà¥à¤› परिवरà¥à¤¤à¤¨ कराकर इसे इस योगà¥à¤¯ कर दिया कि जब रूपमती यहां आयें तो वह रानी से कà¥à¤› अचà¥à¤›à¥‡ – अचà¥à¤›à¥‡ गानों की फरमाइश कर सकें और चैन से सà¥à¤¨ सकें। जैसा कि आज कल के लड़के – लड़कियां मंदिर में जाते हैं तो à¤à¤—वान के दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के अलावा à¤à¤• दूसरे के à¤à¥€ दरà¥à¤¶à¤¨ की अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤·à¤¾ लेकर जाते हैं, à¤à¤¸à¥‡ ही रानी रूपमती और बाज बहादà¥à¤° à¤à¥€ यहां आकर पà¥à¤°à¤£à¤¯ – पà¥à¤°à¤¸à¤‚गों को परवान चà¥à¤¾à¤¤à¥‡ थे। खैर जी, हमें कà¥à¤¯à¤¾!Â
मांडू में इन à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ के दरà¥à¤¶à¤¨ करते समय यह सदैव सà¥à¤®à¤°à¤£ रखना चाहिये कि ये लगà¤à¤— छटी शताबà¥à¤¦à¥€ के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ हैं जो परमार राजाओं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनाये गये थे, सैंकड़ों वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ तक तिरसà¥à¤•ृत à¤à¥€ पड़े रहे हैं, न जाने कितने यà¥à¤¦à¥à¤§ और षडà¥à¤¯à¤‚तà¥à¤°à¥‹à¤‚ की गाथाà¤à¤‚ अपने अनà¥à¤¦à¤° समेटे हà¥à¤ हैं। जितने à¤à¥€ विदेशी आकà¥à¤°à¤¾à¤‚ता यहां इस देश में आये हैं – चाहे वे मà¥à¤—ल हों, खिलजी हों, गौरी हों – उनका इतिहास सतà¥à¤¤à¤¾, धन और सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ लोलà¥à¤ªà¤¤à¤¾ का इतिहास रहा है, इन à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ की उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने अपने सिपहसालारों के हाथों मरमà¥à¤®à¤¤ करवाई, अतः वह हिनà¥à¤¦à¥‚ व अफगान – मà¥à¤—ल सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¤à¥à¤¯à¤•ला के नमूने मान लिये गये। हमारे सहारनपà¥à¤° में à¤à¥€ à¤à¤• à¤à¤µà¤¨ मैने देखा जिस की वाहà¥à¤¯ दीवारों पर सदियों पहले से, बेइंतहाशा खूबसूरत, रंग-बिरंगे à¤à¤¿à¤¤à¥à¤¤à¤¿ चितà¥à¤° उकेरे हà¥à¤ दिखाई देते थे। ये à¤à¤µà¤¨ किसी अपरिचित वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ की वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त संपतà¥à¤¤à¤¿ है, यह सोच कर मैने कà¤à¥€ उस à¤à¤µà¤¨ की फोटो नहीं खींचीं यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ मन हमेशा करता रहा। फिर à¤à¤• दिन देखा कि उन सब à¤à¤¿à¤¤à¥à¤¤à¤¿ चितà¥à¤°à¥‹à¤‚ और पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤° को उखाड़ा जा रहा है। तीन चार दिन बाद उस दीवार पर टाइलें लगाई जा रही थीं! बाबा और पिता के देहानà¥à¤¤ के बाद बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ ने à¤à¤µà¤¨ का मालिकाना हक पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ करते हà¥à¤ पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ की इस अमूलà¥à¤¯ निधि को कचरा समठकर फेंक दिया और वहां टाइलें फिट करा लीं ! निशà¥à¤šà¤¯ ही सौ-पचास साल बाद इस à¤à¤µà¤¨ को à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ और यूरोपीय सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¤à¥à¤¯ कला का नायाब नमूना घोषित कर दिया जायेगा।  हमारे गाइड ने à¤à¥€ बार-बार हमें बताया कि मांडू परमार राजाओं दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बसाया गया दà¥à¤°à¥à¤— और राजधानी थी जिसे मांडवगॠकहा जाता था। पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ में तोड़ – फोड़ करके किसी को जामी मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ नाम दे दिया गया तो किसी को अशरà¥à¤«à¥€ महल घोषित कर दिया गया।
मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ इस कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤° के इतिहास को पà¥à¤¤à¥‡ हà¥à¤ यही आà¤à¤¾à¤¸ हà¥à¤† है कि गौरी, खिलजी, अफगान, मà¥à¤—ल आकà¥à¤°à¤¾à¤‚ता यहां आते रहे, अपने पिता और बाबा के मरने की धैरà¥à¤¯à¤ªà¥‚रà¥à¤µà¤• पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤•à¥à¤·à¤¾ न कर पाने के कारण उनकी हतà¥à¤¯à¤¾ करते रहे और उनका सिंहासन हथियाते रहे। यà¥à¤µà¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का अपहरण करके जबरदसà¥à¤¤à¥€ उनको अपने हरम की शोà¤à¤¾ बनाते रहे, दसवीं शती में बसाई गई राजा à¤à¥‹à¤œ की इस नगरी के à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ में अपनी इचà¥à¤›à¤¾ व आवशà¥à¤¯à¤•तानà¥à¤¸à¤¾à¤° तोड़-फोड़ कराते हà¥à¤, अपनी अपसंसà¥à¤•ृति के अनà¥à¤•ूल मनमाने परिवरà¥à¤¤à¤¨ करते रहे और अब ये ’à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯-अफगान-मà¥à¤—ल-खिलजी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¤à¥à¤¯ कला’ के नमूने माने जा रहे हैं। खैर जी, हमें कà¥à¤¯à¤¾?
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रूपमती पैवेलियन के पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° से ऊपर मंडप तक की यातà¥à¤°à¤¾ S आकार की सरà¥à¤ªà¤¿à¤²à¤¾à¤•ार सड़क से होकर पैदल ही पूरà¥à¤£ करनी होती है। जो विदेशी परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• सड़क पर घूमते – फिरते ऊपर जाना चाहते हैं, वह सड़क से जाते हैं और हमारे जैसी à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ जनता जो रेलवे सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर ओवरबà¥à¤°à¤¿à¤œ के बजाय पटरी पार करके दूसरे पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® पर जाने में ही समà¤à¤¦à¤¾à¤°à¥€ मानती है, वह ऊबड़-खाबड़ सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से होकर फटाफट ऊपर पहà¥à¤‚च जाते हैं। शिवम और संसà¥à¤•ृति हमें इसी ऊबड़-खाबड़ सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से ऊपर लेगये कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को वैसे à¤à¥€ बनà¥à¤¦à¤°à¥‹à¤‚ की तरह से उछल-कूद करने में कतई कषà¥à¤Ÿ नहीं होता है। हम ऊपर पहà¥à¤‚च कर अपनी सांसों पर काबू कर ही रहे थे कि मà¥à¤‚डेर से नीचे सड़क पर सैंकड़ों की संखà¥à¤¯à¤¾ में सà¥à¤•ूली बालिकाà¤à¤‚ और बालक पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¬à¤¦à¥à¤§ होकर आते दिखाई दिये जो शायद किसी à¤à¤œà¥à¤•ेशनल टà¥à¤…र के ततà¥à¤µà¤¾à¤µà¤§à¤¾à¤¨ में लाये गये थे। इतने सारे बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ – बचà¥à¤šà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के आगमन से अब ये मंडप à¤à¥à¤¤à¤¹à¤¾ हवेली नहीं, बलà¥à¤•ि à¤à¤• पिकनिक सà¥à¤¥à¤² बन गया था जहां हर किसी के हाथ में à¤à¤• मोबाइल कैमरा नज़र आ रहा था।
इस à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤² का जायज़ा लेने के बाद हम पà¥à¤¨à¤ƒ नीचे पारà¥à¤•िंग तक पहà¥à¤‚चे, इमली वाले से पà¥à¤¨à¤ƒ रेट को लेकर बहस की और कार में बैठकर आगे चल पड़े। अब सड़क के किनारे दाईं ओर हमें दो à¤à¤µà¤¨ दिखाई दिये – à¤à¤• छोटा और à¤à¤• बड़ा ! कार रोक कर देखा कि इमली वालों की ठेलियां यहां à¤à¥€ मौजूद थीं । पà¥à¤¨à¤ƒ उनसे रेट पूछे गये। उन à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ के बारे में पता चला कि वे दाई महल के रूप में जाने जाते हैं। इन à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ की खास बात ये थी ये सड़क से यदि जोर से आवाज़ दें तो उन à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ की ओर से हमारी आवाज़ गूंज कर वापिस लौट आती है। पà¥à¤°à¤µà¥€à¤£ गà¥à¤ªà¥à¤¤à¤¾ जी को यह जानकर विशेष पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ होगी कि हमने वहां ’वनà¥à¤¦à¥‡ मातरमà¥â€Œâ€™ के खूब नारे लगाये और दाइयों ने à¤à¥€ अपने महल में से हमारे नारों का बखूबी पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥à¤¤à¥à¤¤à¤° दिया। अब यह बात जà¥à¤¦à¤¾ है कि वहां अब दाइयां नहीं रहतीं, हमारी आवाज़ उन à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ में से ही लौट कर हमें वापिस मिल रही थी । जब नूरजहां ही नहीं रहीं जो काफी पà¥à¤°à¥‡à¤—à¥à¤¨à¥‡à¤‚ट रहा करती थीं तो दाइयों का ही कà¥à¤¯à¤¾ काम! हां, वहां पर हमें लंगूर काफी अधिक संखà¥à¤¯à¤¾ में दिखाई दिये पर उनको किसी परà¥à¤¯à¤Ÿà¤• से कà¥à¤› लेना देना है, à¤à¤¸à¤¾ लग नहीं रहा था। सामान छीनने à¤à¤ªà¤Ÿà¤¨à¥‡ की उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कोई कोशिश नहीं की !  इस मामले में हमारे लंगूर उन विदेशी आकà¥à¤°à¤¾à¤‚ताओं से कई गà¥à¤¨à¤¾ बेहतर साबित हà¥à¤ जो दूसरों के महल, मंदिर और यà¥à¤µà¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ छीनने में ही अपनी वीरता मानते थे।  जानवर अगर à¤à¥‚खा न हो तो किसी से रोटी à¤à¥€ नहीं छीनता !   इससे पहले कि मांडू दरà¥à¤¶à¤¨ के अपने किसà¥à¤¸à¥‡ को आगे बà¥à¤¾à¤¯à¤¾ जाये, à¤à¤• नज़र इस बोरà¥à¤¡ पर डालिये जो हमें मांडू सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ शà¥à¤°à¥€ राम मंदिर के आंगन में लगा हà¥à¤† मिला था। यह शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® मंदिर इस दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से अà¤à¥‚तपूरà¥à¤µ है कि यह देश का à¤à¤•मातà¥à¤° à¤à¤¸à¤¾ मंदिर है जहां शà¥à¤°à¥€ राम चतà¥à¤°à¥à¤à¥à¤œ रूप में विराजमान हैं। इन मंदिर में यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के ठहरने की सामानà¥à¤¯ सी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ है जो तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो सकती है पर परà¥à¤¯à¤Ÿà¤•ों के लिये नहीं !
यहां से आगे बà¥à¥‡ तो नंबर आया बाज बहादà¥à¤° के महल का ! अब सच कहूं तो या तो मà¥à¤à¥‡ अकà¥à¤² नहीं है कि मैं पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• इमारतों की खूबसूरती को पहचान पाऊं या फिर शायद ये इमारत खूबसूरत थी ही नहीं ! यह à¤à¥€ संà¤à¤µ है कि कà¤à¥€ खूबसूरत रही होगी पर à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ राजा का महल कैसे खूबसूरत बना रह सकता है जो अकबर की फौज के आगमन की आहट सà¥à¤¨ कर ही अपनी तथाकथित पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥‹à¤‚ से à¤à¥€ पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ रानी रूपमती को उसके हाल पर छोड़ कर à¤à¤¾à¤— गया हो? बेचारी रूपमती ने बाज बहादà¥à¤° के à¤à¤¾à¤— जाने के बाद मà¥à¤—ल आकà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤¾à¤“ं के हाथों जितने जà¥à¤²à¥à¤® सहे और अनà¥à¤¤ में à¤à¤• मà¥à¤—ल के हरम में जीवन बिताने के बजाय ज़हर खाकर पà¥à¤°à¤¾à¤£ तà¥à¤¯à¤¾à¤— देना बेहतर समà¤à¤¾, यह सब वरà¥à¤£à¤¨ सà¥à¤¨à¤•र तो पतà¥à¤¥à¤° दिल इंसान के à¤à¥€ आंसू निकल आयेंगे। पर हां, à¤à¤• बात वहà¥à¤¤ विशिषà¥à¤Ÿ थी यहां पर ! यहां हमें à¤à¤• चबूतरे पर बैठा हà¥à¤† à¤à¤• वृदà¥à¤§ मिला जो बांसà¥à¤°à¥€ बजा रहा था। मैने उसकी बांसà¥à¤°à¥€ रिकारà¥à¤¡ की थी जो आपको सà¥à¤¨à¤¾à¤¨à¥‡ का बहà¥à¤¤ मन है। हमारे कहने पर उसने सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ à¤à¤¾à¤·à¤¾ में à¤à¤• गीत गाकर सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾ और फिर वही गीत बांसà¥à¤°à¥€ पर à¤à¥€ बजा कर सà¥à¤¨à¤¾à¤¯à¤¾à¥¤Â   उसकी बांसà¥à¤°à¥€ उस पूरे महल में गूंज रही थी।

मांडू का सच – à¤à¤• कविता जो शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® मंदिर के पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में लिखी थी !

शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® मंदिर के बाहर अशरà¥à¤«à¥€ महल के पास à¤à¤• ढांचा

शà¥à¤°à¥€ राम, लकà¥à¤·à¥à¤®à¤£ व सीता – संà¤à¤µà¤¤à¤ƒ शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® की à¤à¤¾à¤°à¤¤ में अकेली चतà¥à¤°à¥à¤à¥à¤œ पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤®à¤¾

शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® मंदिर में यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिये नियम

बाज़ बहादà¥à¤° के महल में बांसà¥à¤°à¥€ की सà¥à¤µà¤° लहरी !

बाज़ बहादà¥à¤° / रेवा कà¥à¤‚ड और हमारा दावत सà¥à¤¥à¤²
इस महल में हमारे गाइड ने à¤à¥€ à¤à¤• कमरे में हमें खड़ा कर दिया और कहा कि मैं दूसरे कमरे में जाकर à¤à¤• गीत गाउंगा, आप सà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¥‡à¤—ा ! मजबूरी में इंसान कà¥à¤¯à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ नहीं करता, हमें à¤à¥€ ये गीत सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ पड़ा! बाज बहादà¥à¤° के महल से बाहर निकले तो हमें लगा कि इस गाइड का हमें कà¥à¤› लाठनहीं मिल पा रहा है, यह सिरà¥à¤« खानापूरà¥à¤¤à¤¿ में लगा हà¥à¤† है। इसको साथ में रख कर हम वासà¥à¤¤à¤µ में अपने जà¥à¤žà¤¾à¤¨ में कोई वृदà¥à¤§à¤¿ नहीं कर पायेंगे अतः हमने उसे धनà¥à¤¯à¤µà¤¾à¤¦ सहित विदा कर दिया! शायद उसने 250 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ लिये थे मà¥à¤•ेश à¤à¤¾à¤²à¤¸à¥‡ से ! दर असल मांडू में जहां-जहां à¤à¥€ पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ शà¥à¤²à¥à¤• दिया गया सब मेरे मेज़बान महोदय ने ही दिया था, अतः मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› पता नहीं। (à¤à¤¸à¥‡ मेज़बान सिरà¥à¤« हमारे हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ में ही होते हैं।) खैर, महल से बाहर निकले तो सबसे महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ निरà¥à¤£à¤¯, जो निरà¥à¤µà¤¿à¤°à¥‹à¤§ रूप से लिया गया था, वह ये कि सब को à¤à¥‚ख लगी है, अतः फौरन से पेशà¥à¤¤à¤° दसà¥à¤¤à¤°à¤–ान लगा कर शाही मेहमानों के लिये खाना पेश किया जाये! à¤à¤• तरफ बाज़ बहादà¥à¤° का महल, दूसरी ओर रेवा कà¥à¤‚ड, तीसरी ओर à¤à¤• छायादार वृकà¥à¤· के पकà¥à¤•े चबूतरे पर दरी और चादर बिछाई गई और कार में से खाना निकाल कर लाये। यदà¥à¤¯à¤ªà¤¿ कविता हमारी आवशà¥à¤¯à¤•ता से बहà¥à¤¤ अधिक खाना बना कर लाई थीं पर हम ठहरे जनà¥à¤® जनà¥à¤® के à¤à¥‚खे पà¥à¤°à¤¾à¤£à¥€, अतः पूरी और सबà¥à¥›à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर à¤à¤¸à¥‡ टूट पड़े कि à¤à¥‹à¤œà¤¨ की आशा में आस-पास मंडरा रहे तीन कà¥à¤¤à¥à¤¤à¥‡ सोचने लगे कि उनके हिसà¥à¤¸à¥‡ का à¤à¥‹à¤œà¤¨ à¤à¥€ शायद हम लोग ही खा जायेंगे। पर नहीं, कविता जैसी धरà¥à¤®à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤£ नारियों के होते यह कैसे संà¤à¤µ था? मां अनà¥à¤¨à¤ªà¥‚रà¥à¤£à¤¾ के à¤à¤‚डारे में से इन तीनों कà¥à¤¤à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के हिसà¥à¤¸à¥‡ की à¤à¥€ à¤à¤• -à¤à¤• पूरी निकल आई जिसे खाकर शायद कà¥à¤¤à¥à¤¤à¥‹à¤‚ ने à¤à¥€ अपनी à¤à¤¾à¤·à¤¾ में हमें आशीष दिया होगा।
खाना खाकर अपनी मूछों पर ताव देते हà¥à¤ मैं रेवा कà¥à¤‚ड की ओर बà¥à¤¾ तो देखा कि à¤à¤• बहà¥à¤¤ ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° मां-बाप अपने बेइंतहाशा सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के साथ रेवा कà¥à¤‚ड के तट पर अपनी बहà¥à¤¤ सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° सी कार के आस-पास खड़े हैं। उनकी à¤à¤• ननà¥à¤¹à¥€à¤‚ सी, पà¥à¤¯à¤¾à¤°à¥€ सी बिटिया कार की छत से दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ का नज़ारा ले रही थी और उसका बड़ा à¤à¤¾à¤ˆ कार की खिड़की में से à¤à¤¾à¤‚क रहा था। मैने उन बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के पिता से आंखों – आंखों मे ही बात करके अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ ली कि उनके बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ की फोटो लेना चाहता हूं ! मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने ’गो अहैड’ सिगà¥à¤¨à¤² दिया और मैंने उनके कà¥à¤› चितà¥à¤° खींच डाले ! अब आगे कहां जायें?  मà¥à¤•ेश बोले, अब à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ जगह चलते हैं जिसे देख कर आप धनà¥à¤¯ हो जायेंगे !  मैने कहा कि मैं तो आया ही इसलिये हूं कि धनà¥à¤¯ हो सकूं ! बस, कार को पà¥à¤¨à¤ƒ जामी मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ के पास वाली सड़क पर आगे बà¥à¤¾à¤¤à¥‡ हà¥à¤ हम जा पहà¥à¤‚चे – जहाज महल! वाह, à¤à¤ˆ वाह ! कà¥à¤¯à¤¾ अदà¥à¤à¥à¤¤ वासà¥à¤¤à¥à¤•ला का नमूना है ये जहाज महल à¤à¥€ !  मà¥à¤à¥‡ उस समय तो ये समठनहीं आया था कि इसे जहाज महल नाम कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ दिया गया होगा परनà¥à¤¤à¥ सहारनपà¥à¤° आकर जब मांडू के बारे में पà¥à¤¾ तो यह पता चला कि जहाज महल को देखना हो तो सामने तवेली महल से देखना चाहिये। बिलà¥à¤•à¥à¤² à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤¤ होता है कि à¤à¤• जहाज समà¥à¤¦à¥à¤° में लंगर डाले खड़ा है। सà¥à¤µà¤¾à¤à¤¾à¤µà¤¿à¤• ही है कि यदि आपको à¤à¤¸à¤¾ आà¤à¤¾à¤¸ चाहिये तो जहाज महल देखने के लिये आपको वरà¥à¤·à¤¾ ऋतॠमें जाना चाहिये जब वहां पानी की कोई कमी न हो !

जहाज महल से दिखाई दे रहा कपूर तालाब और बागीचा

पॠलीजिये, कà¥à¤¯à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ लिखा है जहाज महल के बारे में ।
जहाज महल का बारीकी से वासà¥à¤¤à¥à¤•ला के दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•ोण से वरà¥à¤£à¤¨ करना अपने बस की बात नहीं ! काश, निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ सिंह और डी.à¤à¤². इस à¤à¤µà¤¨ के बारे में विसà¥à¤¤à¤¾à¤° से लिखें और हमें समà¤à¤¾à¤¯à¥‡à¤‚ कि किस चीज़ का कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾ महतà¥à¤µ है। शेर – चीतों – तेंदà¥à¤“ं का वरà¥à¤£à¤¨ सà¥à¤¨à¤¨à¤¾ हो तो पà¥à¤°à¤µà¥€à¤£ वाधवा की à¤à¥€ सेवायें ली जा सकती हैं। इस बहॠमंजिला इमारत को हम उलट-पà¥à¤²à¤Ÿ कर हर दिशा से देखते रहे और à¤à¤¸à¥‡ गरà¥à¤¦à¤¨ हिलाते रहे जैसे सब समठमें आ गया हो। मैं तो तीन बार फोटो खींचने के चकà¥à¤•र में à¤à¤¾à¤²à¤¸à¥‡ परिवार से à¤à¤¸à¥‡ बिछड़ गया जैसे रामगॠके मेले में बचà¥à¤šà¥‡ अपने मां-बाप से बिछà¥à¥œ जाते हैं और फिर à¤à¤• बॉलीवà¥à¤¡ की फिलà¥à¤® बन जाती है। पर अफसोस, इससे पहले कि मेरे बिछड़ने को लेकर कोई कहानी लिखी जाती, मà¥à¤•ेश मà¥à¤à¥‡ मिस कॉल दे देते थे कि बंधà¥, कहां हो? तीन बार जब à¤à¤¸à¤¾ हो गया तो उनको समठआ गया होगा कि मेरी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी मेरी अरà¥à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤‚गिनी होने के बावजूद à¤à¥€ मेरे साथ कहीं घूमने कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ नहीं जाना चाहती हैं ! वह बेचारी मà¥à¤à¥‡ कहां ढूंढती फिरेंगी जंगलों और कंदराओं में?
इस परिसर में न केवल जहाज महल मौजूद था, बलà¥à¤•ि हिंडोला महल, चंपा बावड़ी आदि à¤à¥€ थीं । हिंडोला महल के बारे में कहा जाता है कि इसमें à¤à¥‚ले में à¤à¥‚लने जैसा सा आà¤à¤¾à¤¸ होता है। हो सकता है à¤à¤ˆ, होता हो पर मà¥à¤à¥‡ तो नहीं हà¥à¤†à¥¤Â चंपा बावड़ी के बारे में बताया गया कि यहां पानी में चंपा की खà¥à¤¶à¤¬à¥‚ आती थी इसलिये इसका नाम चंपा बावड़ी पड़ गया। इन à¤à¤µà¤¨à¥‹à¤‚ में जल-मल निकासी वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ बहà¥à¤¤ वैजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤• है। मांडू दà¥à¤°à¥à¤— चूंकि ऊंची पहाड़ी पर बसा हà¥à¤† था, वहां पानी का शाशà¥à¤µà¤¤ अकाल न हो, इसके लिये बड़ी समà¤à¤¦à¤¾à¤°à¥€ पूरà¥à¤£ वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ की हà¥à¤ˆ थी जिसे आजकल लोग rainwater harvesting कहते हैं । पानी बरबाद बिलà¥à¤•à¥à¤² न हो, à¤à¤¸à¤¾ पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ किया जाता था।

चंपा बावड़ी की सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर जरा गौर फरमाइयेगा !

हिंडोला महल के बाहर धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ में लीन शिवमà¥â€Œ !
यहां से निकले तो मà¥à¤•ेश ने कहा कि नीलकंठेशà¥à¤µà¤° मंदिर à¤à¥€ यहीं कहीं था, चलिये वह à¤à¥€ देखते हैं। कार में बैठकर आगे निकले तो उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने à¤à¤• दà¥à¤•ान के आगे कार रोक दी और मांडू दरà¥à¤¶à¤¨ नाम से à¤à¤• पà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¿à¤•ा खरीद कर मà¥à¤à¥‡ à¤à¥‡à¤‚ट कर दी! जामी मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ की दूसरी ओर से बस-सà¥à¤Ÿà¥ˆà¤‚ड के सामने से हम निकले तो à¤à¤• और à¤à¤µà¤¨ दिखाई दिया – छपà¥à¤ªà¤¨ महल! हे à¤à¤—वान ! इनà¥à¤¦à¥Œà¤° में छपà¥à¤ªà¤¨ दà¥à¤•ान और यहां छपà¥à¤ªà¤¨ महल और कविता के घर में जाओ तो छपà¥à¤ªà¤¨ à¤à¥‹à¤— ! ये मालवा वाले à¤à¥€ बस !  कार रोक कर मà¥à¤•ेश ने कहा कि अगर देखना चाहें तो देख आइये इसे à¤à¥€ फटाफट, हम कार में ही हैं। मैं तेजी से उस तथाकथित छपà¥à¤ªà¤¨ महल की जीरà¥à¤£ शीरà¥à¤£ सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की ओर लपका – सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के दोनों ओर मूरà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ थीं, उनकी फोटो खींचते खींचते ऊपर पहà¥à¤‚चा तो à¤à¤• सजà¥à¤œà¤¨ बोले कि टिकट ले लीजिये। मैने कहा कि अà¤à¥€ हम लोग जरा जलà¥à¤¦à¥€ में हैं अतः परिवार वालों से पूछ लेता हूं कि देखना चाहेंगे कà¥à¤¯à¤¾à¥¤Â अगर सब लोग हां कहेंगे तो टिकट ले लेंगे। वह बोले कि अगर टिकट नहीं लेना है तो आप फोटो कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ खींच रहे हैं? मैने कहा कि à¤à¤¸à¤¾ कोई नोटिस तो यहां लगा हà¥à¤† मैने देखा नहीं कि बिना टिकट के फोटोगà¥à¤°à¤¾à¤«à¥€ निषिदà¥à¤§ है और अगर निषिदà¥à¤§ है à¤à¥€ तो मà¥à¤à¥‡ पता ही नहीं कि ’निषिदà¥à¤§â€™ का कà¥à¤¯à¤¾ मतलब होता है। और वैसे à¤à¥€, मैं जरा जलà¥à¤¦à¥€ में हूं, à¤à¤• मारने का मेरे पास फालतू टैम नहीं है, अतः बाय-बाय, नमसà¥à¤¤à¥‡, टाटा !

छपà¥à¤ªà¤¨ महल की सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर रखे गये कला अवशेष !
अब हम पà¥à¤¨à¤ƒ कार को ले चले नीलकंठेशà¥à¤µà¤° के दरà¥à¤¶à¤¨ के लिये। रासà¥à¤¤à¥‡ में à¤à¤• सूखी हà¥à¤ˆ नदी के पà¥à¤² पर से गà¥à¥›à¤° रहे थे तो मैने कहा कि “वाह, कà¥à¤¯à¤¾ सीन है!” बस, मà¥à¤•ेश ने वहीं पूरी ताकत से बीच सड़क पर बà¥à¤°à¥‡à¤• मार दिया। हमारे पीछे à¤à¤• मोटर साइकिल आ रही थी, बेचारा बाइक वाला सà¥à¤µà¤ªà¥à¤¨ में à¤à¥€ नहीं सोच सकता था कि हम à¤à¤¸à¥‡ चलते चलते बीच सड़क पर गाड़ी रोक देंगे अतः वह रà¥à¤• नहीं पाया तो जोर से कार में अपनी बाइक दे मारी ! अब गलती तो अपनी ही थी, उसे कà¥à¤¯à¤¾ कहते? बाहर निकल कर देखा तो कार का बंपर पिचका हà¥à¤† देख कर मà¥à¤•ेश का à¤à¥€ मूड पिचक गया। मैने à¤à¤• ईंट लेकर बंपर को अंदर की ओर से बाहर धकेला तो वह तà¥à¤°à¤¨à¥à¤¤ वापिस ओरिजिनल शकà¥à¤² में आगया। आजकल कारों में पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• के बंपर आने लगे हैं जो चोट सहने के बजाय अंदर घà¥à¤¸ जाते हैं। हमारे पड़ोसियों के घर में à¤à¥€ à¤à¤• कà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ था। रात को कोई अजनबी आवाज़ सà¥à¤¨ कर वह तà¥à¤°à¤‚त अपने मालिकों की खाट के नीचे घà¥à¤¸ कर अपनी पीठरगड़ने लगता था और पड़ोसियों की आंख खà¥à¤² जाती थी। डर कर ही सही, कà¥à¤¤à¥à¤¤à¤¾ जगा तो देता था। यही हाल आजकल के बंपरों का है। खैर, हमारी कार के बंपर में बस à¤à¤• खरोंच सी रह गई थी सो मà¥à¤•ेश को थोड़ी सी डांट पड़ी (किसने डांटा, ये मैं नहीं बताऊंगा, ये अनà¥à¤¦à¤° की बात है!) और हम सब खà¥à¤¶à¥€-खà¥à¤¶à¥€ आगे चल पड़े।
नीलकंठेशà¥à¤µà¤° मंदिर सड़क से नीचे सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से उतर कर जाना होता है, सड़क से गà¥à¤‚बद आदि दिखाई नहीं देता।  अतः à¤à¤• बारगी तो पता ही नहीं चलता कि हम मंदिर पीछे छोड़ आये हैं। कà¥à¤› आगे जाकर फिर लौटे और मंदिर का रासà¥à¤¤à¤¾ पहचान कर मà¥à¤•ेश ने गाड़ी पà¥à¤¨à¤ƒ रोकी और हम सब सीà¥à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ उतर कर नीचे मंदिर में पहà¥à¤‚चे। मंदिर के पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿà¤«à¤¾à¤°à¥à¤® से à¤à¥€ नीचे लोहे की सीà¥à¥€ से उतर कर शिवलिंग की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की गई है जहां à¤à¤• पंडित जी धूनी जमाये बैठे थे। बाहर आंगन में à¤à¤• कà¥à¤‚ड था, जिसमें यदि पानी पूरा à¤à¤° चà¥à¤•ा हो तो à¤à¤• सरà¥à¤ªà¤¾à¤•ार आकृति से होकर पà¥à¤¨à¤ƒ नीचे जाता रहता है। बचà¥à¤šà¤¾ लोगों को इस सरà¥à¤ªà¤¾à¤•ार आकृति से घूम घूम कर पानी का जाना बड़ा à¤à¤¾ रहा था अतः इसी खेल में लगे हà¥à¤ थे। मंदिर की दीवार पर उरà¥à¤¦à¥‚ / फारसी / अरबी में कà¥à¤› लिखा हà¥à¤† था जो हम पॠनहीं सकते थे। पर घर आकर à¤à¤• विवरण मिला है – कह नहीं सकता कि यह इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ पंकà¥à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का हिनà¥à¤¦à¥€ रूपानà¥à¤¤à¤° है या कहीं और à¤à¥€ कà¥à¤› लिखा हà¥à¤† था।
तवां करदन तमामी उमà¥à¤°, मसरूफे आबो गिल । के शायद यकदमे साहिब दिले, ईजां कà¥à¤¨à¤¦ मंजिल॥
(अपनी तमाम उमà¥à¤° मिटà¥à¤Ÿà¥€ और पानी के काम में इसी à¤à¤• आशा के साथ गà¥à¥›à¤¾à¤° दी कि
कोई सहृदय मनà¥à¤·à¥à¤¯ यहां कà¥à¤·à¤£ à¤à¤° के लिये विशà¥à¤°à¤¾à¤® करे ! )

मंदिर की दीवारों पर उतà¥à¤•ीरà¥à¤£ संदेश ! पता नहीं ये संदेश जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ हैं या मंदिर !

पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ ले लो जी पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ ! पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦, इमली, शरीफा, फूल सब कà¥à¤› इस महिला के पास उपलबà¥à¤§ है।

मंदिर तक पहà¥à¤‚चने के लिये इन सीà¥à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से नीचे उतरना होता है।
अब शाम होने लगी थी और थकान à¤à¥€ काफी हो गई थी, अतः बिना कहीं और रà¥à¤•े हमने वापसी की यातà¥à¤°à¤¾ शà¥à¤°à¥ की। धार पहà¥à¤‚चे तो मà¥à¤•ेश और कविता की इचà¥à¤›à¤¾ थी कि मैं उनके घर पर ही रà¥à¤•ूं और अगले दिन धार शाखा वहीं से चला जाऊं। परनà¥à¤¤à¥ इंदौर के होटल में मेरा सामान रखा हà¥à¤† था और अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ धार आना हो तो à¤à¥€ होटल से चैक आउट करके ही पà¥à¤¨à¤ƒ धार आना चाहिये था ताकि होटल का बिल अनावशà¥à¤¯à¤• रूप से न बà¥à¤¤à¤¾ रहे। मेरी विवशता को समà¤à¤¤à¥‡ हà¥à¤ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ इनà¥à¤¦à¥Œà¤° जाने वाली à¤à¤• तीवà¥à¤°à¤—ामी बस में बैठा दिया जो टूटी फूटी सड़क पर मंथर गति से चलती हà¥à¤ˆ रातà¥à¤°à¤¿ ८ बजे तक मà¥à¤à¥‡ इंदौर ले आई।
अब मेरे पास सिरà¥à¤« डेॠदिन का समय बाकी था यानि पूरा सोमवार और आधा मंगलवार ! इन दोनों दिनों में मैने कà¥à¤¯à¤¾-कà¥à¤¯à¤¾ किया, कहां – कहां घूंमा – यह सारा विवरण लेकर पà¥à¤¨à¤ƒ आपकी सेवा में हाजिर होऊंगा। तब तक के लिये पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® !
चित्रों के द्वारा पूरा इतिहास उकेर दिया हैं आपने धन्यवाद, वन्देमातरम, राम राम…
Vande Mataram, Ram Ram !
Bahut badhiya.aage bhi padhna challenge.
good description and nice photos. Happy to see Sharifa. (प्रसाद ले लो जी प्रसाद ! प्रसाद, इमली, शरीफा, फूल सब कुछ इस महिला के पास उपलब्ध है।)
Thanks
Thanks Sharma Ji.
Wow, Amazing tour
Dear Sandeep Bhatia,
Thank you for visiting to this post and for leaving your comment.
Bahut badhiya.
प्रिय सुशान्त जी….
अद्भुत वर्णन मांडू का , पढ़कर वहाँ की सभी प्रकार की स्थिति का सम्पूर्ण बोध हो गया…प्रत्येक खूबसूरत चित्र मांडू की कहानी को विस्तारित कर रहे हैं….|
आपके इस लेख पर आकार मुझे बहुत अच्छा लगा….धन्यवाद
धन्यवाद रितेश !
वाह सुशांत जी, पिछले लेख में मांडू का ट्रेलर और इसमें पूरी फिल्म…मजा आ गया भई…पैसा वसूल पोस्ट….उम्मीद है निर्देश भाई या और कोई भाई (या कोई घुमक्कड़ लेखिका…) आपके लेख से प्रेरित होकर मांडू जाकर इन सदियों पुरानी इमारतों के इतिहास को अपनी कलम के जादू से जीवंत जरुर करेगा…..जैसा कि आपने अपने कैमरे से बखूबी किया है…हमेशा की तरह उत्कृष्ट फोटोग्राफी और मनोरंजक व ज्ञानवर्धक लेखन…साझा करने के लिए शुक्रिया…
बहुत बहुत धन्यवाद विपिन जी ! मैं यदि किसी इतिहासकार घुमक्कड़ की कलम से लिखा गया मांडू दर्शन पढ़ सकूं तो निश्चय ही बहुत अच्छा लगेगा !
Hi Sushantji,
For architectural appreciation of monuments, I am a fan of Varun Shiv Kapur.
If possible read his Mandu account – http://sarsonkekhet.blogspot.in/search/label/mandu
Dear Nirdesh,
Indeed, I found Varun Shiv Kapur a really dedicated researcher. Now I am following him. Details provided by him about Mandu are really amazing.
Hi Vipin,
We will go in the monsoons and spend at least 2 days in Mandu.
Until then you cna do further research by visiting this link – http://sarsonkekhet.blogspot.in/search/label/mandu
प्रिय विपिन,
आपका कमेंट पढ़ कर बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद ।
आदरनीय सुशांत जी
एक बार फिर आपकी सशक्त लेखनी को मेरा प्रणाम.
हमारे यहाँ कहावत है की सभी दूर गए और मांडू नहीं गए तो बार बार माँ के गर्भ में आना पड़ता है और जन्म लेना पड़ता है. आप तो मांडू हो आये और बार बार के गर्भ बंधन से मुक्त हो गए साथ ही साथ जिस जिस ने भी आपका ये लेख पड़ा और सुन्दर नयनाभिराम फोटो का आनंद लिया वे सभी भी इन बन्धनों से मुक्त हो गए. आपके इस पुण्य कार्य की जीतनी तारीफ की जाये वो कम है
भूपेंद्र सिंह रघुवंशी
प्रिय श्री भूपेन्द्र सिंह रघुवंशी,
आपकी मनोहारी भावनाओं के लिये कृतज्ञ हूं ! मुझे पता नहीं था कि मांडू दर्शन का महात्म्य इतना अधिक है। यह तो संयोग ही है कि वहां इन्दौर जाकर मुझे मुकेश भालसे मिले और उन्होंने मांडू चलने के लिये मुझे प्रेरणा दी! ऐसे में यदि पुण्य का कोई वास्तविक अधिकारी है तो वह मुकेश भालसे और उनका परिवार ही है।
quite informative post.beautiful pics.
Thank you Ashok Sharma Ji.
Hi Sushantji,
Now I feel better. I think this post has given Mandu the due it deserves. Enjoyed the post immensely. Mandu was like Sainik Farms of Delhi where every rich person – king – wanted a weekend/summer/monsoon palace.
You were lucky to find water in the pool (Kapoor Talab) facing Jahaj Mahal. Jahaj Mahal is indeed beautiful.
The lore of Roopmati brings hordes to Roopmati Mahal, otherwise there is not much there.
Nice mix of photos, maps and people angle to the post.
And thanks for mentioning me in the post – I am not a historian/art appreciator as you are making me out to be. Just learning like everyone else. There is a 20 year old kid in Delhi doing amazing historical interpretation of monuments – http://pixels-memories.blogspot.in/2013/05/quli-khans-tomb-new-delhi.html#comment-form
Thanks for sharing.
Dear Nirdesh Ji,
More than anything else, such comments from my stranger ghumakkar friends are the motivation for me to keep writing. How much I would love to meet you and others. Recently, I was in Delhi / Ghaziabad / Gurgaon and had the good fortune to be with Amitava for the full day.
I can visualise Mandu in monsoon with greenery and water embellishing it beyond recognition. Indore is one such place where I would be visiting again and again and this time if I happen to be there, it would be in those months only.
Thanks again.
A very good & informative post equally supported by brilliant photographs. Can’t say whenever I will make the visit of Mandu but you have shown the Mandu here with wonderful story.
Thanks for sharing.
Dear Saurabh Gupta,
It is a matter of great joy for me that you liked the post and photographs. Please keep coming in future also. Thanks a ton.
सुशांत जी
बहुत ही सुन्दर एवं रोचक वर्णन पढने को मिला है। साथ ही साथ खुबसूरत फोटोग्राफी ने चार चाँद लगा दिए हैं।
प्रिय श्री रस्तोगी जी,
आपकी स्नेहपूर्ण टिप्पणी के लिये हार्दिक आभार !
सुशांत जी ,
आपके इस लेख में शब्दों से ज्यादा तो आपकी फोटोग्राफी बोल रही थी जिसने सारी कहानी को कई नए आयाम दिए है ।बहुत ही सुन्दर और मनोरंजक ढंग से आपने सारे विवरण दिए है। पढ़कर मज़ा आ गया।
मांडू तो है ही मालवा की ऐतिहासिक राजधानी और साथ ही साथ प्राकृतिक सुन्दरता से परिपूर्ण। यह जानकार अच्छा लगा की घुमक्कर के माध्यम से कई परिवार आपस में घूमने के लिए प्रेरित हो रहे है। में फिर से आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ ….और कहीं न कहीं शायाद मेरे मांडू जाने का लिटरेचर आपका यह लेख ही रहेगा।।।।।।
धन्यवाद
प्रिय श्री शेखावत,
यह तो मैं भी मानता हूं कि एक बात को कहने के लिये यदि १००० शब्द चाहियें तो वही बात एक फोटो आसानी से कह देता है। (यह बात अलग है कि फोटो को भी १००० बाइट्स तो चाहियें ही उस बात को कहने के लिये !) मुझे सिर्फ लिखना पड़े और फोटो की अनुमति न हो तो भी इतना ही बुरा लगेगा जितना उस स्थिति में यदि मुझे सिर्फ फोटो की अनुमति हो, लेखन की नहीं !!!! दोनों का संतुलन बना रहे, तभी मैं खुश रह पाता हूं !
घुमक्कड़ ने बहुत सारे मित्र दे दिये हैं और अब नन्दन ऐसे मुफीद मौके की ताक में हैं जब वह हम सब के ऋण को encash कर सकें! :D अतः सावधान !
तनावांत जी, कुसुम खेमानी की “कहानी सुनाती यात्राऐं” नामक पुस्तक का लिखना, आपके यात्रा वृतांत पढकर सार्थक हो जाता है, शब्दों की तारतम्यता और किस्सागोईनुमा शैली न केवल घुमक्कड़ी करवाती है वरन् हर रस के गद्य लेखकों (प्राचीन-आधुनिक) से परिचय- भ्रमण भी करवाना नहीं भूलतीं, इस घुमक्कड़ी के मंच पर मेरे कुछ मित्र अपनी घुमक्कड़ी को हमेशा-हमेशा के लिए जीवंत कर देते हैं, निर्देश सिंह जब संज्ञाशून्य खंडहरों का उल्लेख करते हैं तो उन्हें ख़ुद बा ख़ुद नाम मिल जाता है, विपिन जब पराशर झील के रास्ते में पहाडी ळङ्की से बात करते हैं तो उसकी सादगी हर पाठक को बता देती है कि गरीब के घर में जगह हो न हो मगर दिल में अथाह जगह होती है, परवीन वाधवा जब घुमक्कड़ी पर निकलते हैं तो प्रकृतिप्रदत्त, जिसे हम गल्ती से घास-फूस/खर-पतवार समझते हैं उसके भी चिकित्सा-महत्व को समझाते हु़ई चलते हैं, इस परिवार के लिए सर्वेश्वर सक्सेना की पंक्तियों के साथ मेरी सदैव शुभकामनाएँ हैं : तुम एक यात्रा हो, जहां कुछ छूटनें का अर्थ कुछ मिलना है, जहां हर थकान एक नई स्फूर्ति है, जहां हर अनुभूति ईश्वर की मूर्ती है….
लेख पर अति विलंब के लिए क्षमा, मांडू-मंथन तथा लावण्यामूर्ती कविता भाल्से परिवार-परिचय के लिए आप बधाई के पात्र हैं.
आदरणीय त्रिदेव जी,
आपका कुछ कुछ परिचय अब तक अपने झगड़ालू सखा श्री श्री १०००८ जी से पा चुका हूं ! कुसुम खेमानी की पुस्तक तो मुझे पढ़ने को मिली नहीं है क्योंकि मेरे किसी मित्र के घर में मुझे यह पुस्तक रखी हुई मिली ही नहीं ! मांग कर पुस्तक पढ़ने में जो आनन्द है, वह खरीदी हुई पुस्तक को पढ़ने में कभी नहीं आ सकता क्योंकि अपनी खरीदी हुई पुस्तक को भी कोई न कोई लेकर जायेगा और वापिस नहीं करेगा। ऐसे में दूसरे की किताब लाकर पढ़ना और फिर वापिस करना भूल जाना सबसे उत्तम प्रकृति वात्स्यायन ने बताई है, ऐसा मुझे मेरे कुछ अनपढ़ मित्रों ने बताया है! बचपन में एक पोस्टर अक्सर कार्यालयों, दुकानों में लगा हुआ दिखाई दिया करता था जो मुझे याद आरहा है – I give credit, you not pay, I get mad. You give credit, I not pay, you get mad. Better you get mad!
आपके कमेंट पर कमेंट करने के लिये जितनी बुद्धि चाहिये, वह मैं कहां से लाऊं ? अतः यह सब बकवास लिख डाली है जिसे उम्मीद है आप झेल ही लेंगे !
झगड़ालू …..???
सुधरोगे या नही…या माशटरनी से डंटवाऊं ???
छलनी कहे सुई से …तेरे पेट में छेद
मैने तो गुरुजी आपका नाम भी नहीं लिया और आप ने ’झगड़ालू’ कहते ही अपने आप को तुरन्त पहचान लिया, तनिक भी देरी नहीं की ! My Lord, may this point be noted. अब इस के बाद कुछ कहने को बाकी रह जाता है क्या? ही-ही-ही-ही ! हू – हू – हू !!
राजनीति में आप काफी सफल रहेंगे…क्योंकि हरकतें काफी मिलती है…खड़े हो जाओ इस बार सहारनपुर से
सुशांत जी,
बहुत सुन्दर पोस्ट। मैं गिरिराज की बात से सर्वथा सहमत हूँ की पोस्ट में शब्दों से ज्यादा चित्र बोल रहे थे। समाधी में लीन शिवम का श्वेत श्याम चित्र मुझे बहुत सुन्दर लगा, छाया चित्रकारी के मामले में तो ऐसा लगता है जैसे आपके हाथ में जादू है।आपका वर्णन पढ़कर तथा चित्र देखकर मांडू के उस टूर की सारे यादें ताज़ा हो गईं।
प्रिय मुकेश जी,
आपकी पोस्ट मैने श्रीमती जी को पढ़वा दी और कहा कि मेरी जिस फोटोग्राफी की तुम इतनी आलोचना करती हो, देखो मेरे दोस्त उसे कितना पसन्द करते हैं ! इस पर वह बोली कि ……. छोड़िये ! अब क्या बताऊं !
परमप्रिय एस.एस. जी,
चुनाव में खड़े होने और जीतने के लिये और भी बहुत सारे दुर्गुण होने चाहिये, जो सौभाग्य या दुर्भाग्य से मुझ में नहीं हैं। इस अकेले दुर्गुण से मैं चुनाव में खड़ा होने की हिम्मत नहीं कर पा रहा हूं ! फिर भी, आपकी इच्छा है तो जमानत की राशि की RTGS कर दीजियेगा जो जब्त होनी ही होनी है। :)
Dear Sushant – While you and your name sake SS debate on future centre-of-power, let me find a solitary moment to sneak it and put my ‘Thank You’ note. Those ‘Imlis’ really look like ‘Bel’.
When I visited it few years back, I could see hordes of ASI sponsored activities, including the quick-n-dirty short-cut to the Mahal. Guess most of the restoration has happened.
I hope to meet you someday. Warmly – Nandan
Dearest Nandan,
Yes, I look forward to meeting you some day in near future.
Thanks for the ‘Thank You’ sticky note found in your comment. I have to go again to Indore in very near future and it seems to be a very nice time to visit that place. However, I am not sure if I would have time to go anywhere this time. There is everything official about the impending trip.
I had brought an imli to Saharanpur which was gifted to me by Shivam Bhalse. When my wife broke the shell open to locate the contents of it, it was almost empty. Don’t know if God Ji played some trick with me or the imliwali. :)
aapane bahot khup jankari di he. dhanvad.