राजा à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ गà¥à¤«à¤¾
राम मनà¥à¤¦à¤¿à¤° में दरà¥à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ के बाद नंदू हमें राजा à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ की गà¥à¤«à¤¼à¤¾ की तरफ़ ले गया । राजा à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ की गà¥à¤«à¤¼à¤¾ शहर से बाहर की ओर हैं । गà¥à¤«à¤¼à¤¾ के आस-पास शहरी आबादी नहीं है और इलाका सà¥à¤¨à¤¸à¤¾à¤¨ सा है। à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ की गà¥à¤«à¤¼à¤¾ थोड़ी सी ऊंचाई पर है। à¤à¤¸à¤¾ माना जाता है कि राजा à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ ने इन गà¥à¤«à¤¼à¤¾à¤“ं में कई साल तपसà¥à¤¯à¤¾ की थी। यहाठदो गà¥à¤«à¤¼à¤¾ हैं जिनका पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° काफ़ी संकरा है। हम पहले पहली गà¥à¤«à¤¼à¤¾ में गये जिसमें पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ के बाद सीड़ियाठनीचे की तरफ़ ले जाती हैं । गà¥à¤«à¤¼à¤¾ की ऊंचाई लगà¤à¤— 8 फ़à¥à¤Ÿ होगी। गà¥à¤«à¤¼à¤¾ में à¤à¤• बरामदा है जिससे कई छोटे-2 कमरे नà¥à¤®à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ जà¥à¤¡à¥‡ हà¥à¤ हैं । गà¥à¤«à¤¼à¤¾ जमीन से नीचे बने होने के कारण यहाठजलà¥à¤¦à¥€ ही आकà¥à¤¸à¥€à¤œà¤¨ की कमी महसूस होने लगती है और दम घà¥à¤Ÿà¤¨à¥‡ लगता है। इन गà¥à¤«à¤¼à¤¾ में à¤à¤• अजीब सी गंध à¤à¥€ आ रही थी जो शायद धà¥à¤¨à¥€ लगाने से उठने वाले धà¥à¤à¤ जैसी थी। यहाठकई बार कà¥à¤› जोगी किसà¥à¤® के बाबा लोग , यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से दान मिलने की अपेकà¥à¤·à¤¾ में धà¥à¤¨à¥€ लगाकर बैठजाते हैं जिस कारण यहाठऔर à¤à¥€ जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ घà¥à¤Ÿà¤¨ हो जाती है। पहली गà¥à¤«à¤¼à¤¾ अचà¥à¤›à¥€ तरह देखने के बाद हम बाहर आ गये। ताजी हवा में आकर खà¥à¤² कर साà¤à¤¸ ली और फिर दà¥à¤¸à¤°à¥€ गà¥à¤«à¤¼à¤¾ में गये। यह गà¥à¤«à¤¼à¤¾ à¤à¥€ पहले जैसी पर उससे छोटी थी।
राजा à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ ने राज-पाठछोडकर इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर तपसà¥à¤¯à¤¾ कि थी इसलिठइसका नाम उनके नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ है। गà¥à¤«à¤¾ के à¤à¥€à¤¤à¤° गोपीचंदà¥à¤° की मूरà¥à¤¤à¤¿ विराजमान है। यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ à¤à¥€ शीपà¥à¤°à¤¾à¤œà¥€ के तट पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है। इस गà¥à¤«à¤¾ में राजा à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ की समाधि à¤à¥€ बनी हà¥à¤ˆ है। इस गà¥à¥à¤«à¤¾ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने के लिठà¤à¤• संकरा रासà¥à¤¤à¤¾ है। कहा जाता है कि शà¥à¤°à¥€ à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ की तपसà¥à¤¯à¤¾ से à¤à¤¯à¤à¥€à¤¤ होकर इंदà¥à¤° ने उनकी तपसà¥à¤¯à¤¾ à¤à¤‚ग करने के लिठशिला को उनकी ओर फेंका था परंतॠà¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ जी ने उसको अपने पंजंे के सहारे à¤à¤µà¤‚ योगबल से उसे वहीं सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ कर दिया। शà¥à¤°à¥€ à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ के हाथ के पंजे का चिनà¥à¤¹ आज à¤à¥€ यथावत है।
गà¥à¤«à¤¼à¤¾ के साथ ही राजा à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ का मनà¥à¤¦à¤¿à¤° बना हà¥à¤† है। मनà¥à¤¦à¤¿à¤° का बरामदा काफ़ी विशाल व साफ़ सà¥à¤¥à¤°à¤¾ था। थोड़ा समय वहाठरà¥à¤•ने के बाद हम वापिस आटो की तरफ़ चल दिये । मनà¥à¤¦à¤¿à¤° के बाहर à¤à¤• महिला लसà¥à¤¸à¥€ बेच रही थी। लसà¥à¤¸à¥€ काफ़ी पतली थी लेकिन उसकी कीमत à¤à¥€ सिरà¥à¤«à¤¼ 5 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ थी। दो-दो गिलास लसà¥à¤¸à¥€ पीने के बाद , गरà¥à¤®à¥€ में à¤à¥à¤²à¤¸ रहे मन को बडी तसà¥à¤²à¤²à¥€ मिली।
राजा à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿
“ महाराज à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ विकà¥à¤°à¤®à¤¸à¤‚वत की पहली सदी से पूरà¥à¤µ में उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ थे। वे उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨ के अधिपति थे। उनके पिता महाराज गनà¥à¤§à¤°à¥à¤µà¤¸à¥‡à¤¨ बहà¥à¤¤ योगà¥à¤¯ शासक थे। उनके दो विवाह हà¥à¤à¥¤ पहले से विवाह से महाराज à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ और दूसरे से महाराज विकà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤à¥à¤¯ हà¥à¤ थे। पिता की मृतà¥à¤¯à¥ के बाद à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ ने राजकारà¥à¤¯ संà¤à¤¾à¤²à¤¾à¥¤ राजा à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ नà¥à¤¯à¤¾à¤¯, नीति, धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤¸à¥à¤¤à¥à¤°, à¤à¤¾à¤·à¤¾, वà¥à¤¯à¤¾à¤•रण के विदà¥à¤µà¤¾à¤¨ होने के साथ पà¥à¤°à¤œà¤¾ और पà¥à¤°à¤•ृति को à¤à¥€ चाहने वाले थे। वे धरà¥à¤® विरोधियों को कड़ी सजा देने से नही चूकते थे। वे धरà¥à¤®à¤¨à¤¿à¤·à¥à¤ , दारà¥à¤¶à¤¨à¤¿à¤• व अमरयोगी à¤à¥€ माने जाते हैं। लेकिन वैरागी होने के पीछे उनके जीवन का यह अहम पà¥à¤°à¤¸à¤‚ग जà¥à¤¡à¤¼à¤¾ है –
राजा à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¥€ जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¥€ और 2 पतà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾à¤‚ होने के बावजूद à¤à¥€ पिंगला नाम की अति सà¥à¤‚दर राजकà¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ पर मोहित हà¥à¤à¥¤ राजा ने पिंगला को तीसरी पतà¥à¤¨à¥€ बनाया। पिंगला के रूप-रंग पर आसकà¥à¤¤ राजा विलासी हो गà¤à¥¤ यहां तक कि वे पिंगला में मोह में उसकी हर बात को मानते और उसके इशारों पर काम करने लगे। किंतॠइसका फायदा उठाकर पिंगला à¤à¥€ वà¥à¤¯à¤à¤¿à¤šà¤¾à¤°à¥€ हो गई और नगर के à¤à¤• कोतवाल से ही पà¥à¤°à¥‡à¤® करने लगी। आसकà¥à¤¤ राजा इस बात और पिंगला के बनावटी पà¥à¤°à¥‡à¤® को जान ही नहीं पाà¤à¥¤
जब छोटे à¤à¤¾à¤ˆ विकà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤à¥à¤¯ को यह बात मालूम हà¥à¤ˆ और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने बड़े à¤à¤¾à¤ˆ के सामने इसे जाहिर किया। तब à¤à¥€ राजा ने पिंगला की चालाकी से रची बातों पर à¤à¤°à¥‹à¤¸à¤¾ कर विकà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤à¥à¤¯ के चरितà¥à¤° को ही गलत मान राजà¥à¤¯ से निकाल दिया।
à¤à¤• समय शà¥à¤°à¥€ गà¥à¤°à¥ गोरखनाथ जी अपने शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ à¤à¥à¤°à¤®à¤£ करते हà¥à¤ उजà¥à¤œà¥ˆà¤¯à¤¿à¤¨à¥€ (वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में उजà¥à¤œà¥ˆà¤¨) के राजा शà¥à¤°à¥€ à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ महाराज के दरबार मे पहà¥à¤‚चे। राजा à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ ने गà¥à¤°à¥ गोरखनाथ जी का à¤à¤µà¥à¤¯ सà¥à¤µà¤¾à¤—त और अपार सेवा की। राजा की अनà¥à¤ªà¤® सेवा से शà¥à¤°à¥€ गà¥à¤°à¥ गोरखनाथ जी अति पà¥à¤°à¤¸à¤¨à¥à¤¨ हà¥à¤ गोरखनाथ जब अपने शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के साथ जाने लगे तो राजा ने उनको शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤ªà¥‚रà¥à¤£ नमन और पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® किया। गोरखनाथ उसके अà¤à¤¿à¤µà¤¾à¤¦à¤¨ से बहà¥à¤¤ ही गदगद हो गà¤à¥¤ तब गà¥à¤°à¥ गोरखनाथ ने à¤à¤• पल सोचा कि इसे à¤à¤¸à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ दूं, जो अदà¥à¤à¥à¤¤ हो। तà¤à¥€ उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ à¤à¥‹à¤²à¥‡ में से à¤à¤• फल निकाल कर राजा को दिया और कहा यह अमरफल है। जो इसे खा लेगा, वह कà¤à¥€ बूढ़ा नही होगा, कà¤à¥€ रोगी नही होगा, हमेशा जवान व सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° रहेगा। इसके बाद गà¥à¤°à¥ गोरखनाथ तो अलख निरंजन कहते हà¥à¤ अजà¥à¤žà¤¾à¤¤ पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶à¥‹à¤‚ की यातà¥à¤°à¤¾ के लिठआगे बढ़ गà¤à¥¤
उनके जाने के बाद राजा ने अमरफल को à¤à¤• टक देखा, उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपनी पतà¥à¤¨à¥€ से विशेष पà¥à¤°à¥‡à¤® था, इसलिठराजा ने विचार किया कि यह फल मैं अपनी पतà¥à¤¨à¥€ को खिला दूं तो वह सà¥à¤‚दर और सदा जवान रहेगी। यह सोचकर राजा ने वह अमरफल रानी को दे दिया और उसे फल की विशेषता à¤à¥€ बता दी। लेकिन अफसोस! उस सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° रानी का विशेष लगाव तो नगर के à¤à¤• कोतवाल से था। इसलिठरानी ने यह अमरफल कोतवाल को दे दिया और इस फल की विशेषता से अवगत कराते हà¥à¤ कहा कि तà¥à¤® इसे खा लेना। इस अदà¥à¤à¥à¤¤ अमरफल को लेकर कोतवाल जब महल से बाहर निकला, तो सोचने लगा कि रानी के साथ तो मà¥à¤à¥‡ धन-दौलत के लिठà¤à¥‚ठ-मूठही पà¥à¤°à¥‡à¤® का नाटक करना पड़ता है, इसलिठयह फल खाकर मैं à¤à¥€ कà¥à¤¯à¤¾ करूंगा। कोतवाल ने सोचा कि इसे मैं अपनी परम मितà¥à¤° राजनरà¥à¤¤à¤•ी को दे देता हूं, वह कà¤à¥€ मेरी कोई बात नहीं टालती और मà¥à¤ पर कà¥à¤°à¥à¤¬à¤¾à¤¨ रहती है। उसने वह अमरफल अपनी उस नरà¥à¤¤à¤•ी मितà¥à¤° को दे दिया। राज नरà¥à¤¤à¤•ी ने कोई उतà¥à¤¤à¤° नहीं दिया और अमरफल अपने पास रख लिया। कोतवाल के जाने के बाद उसने सोचा कि कौन मूरà¥à¤– यह पापी जीवन लंबा जीना चाहेगा। मैं अब जैसी हूं, वैसी ही ठीक हूं। लेकिन हमारे राजà¥à¤¯ का राजा बहà¥à¤¤ अचà¥à¤›à¤¾ है। धरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¾ है, देश की पà¥à¤°à¤œà¤¾ के हित के लिठउसे ही लंबा जीवन जीना चाहिà¤à¥¤ यह सोचकर उसने किसी पà¥à¤°à¤•ार से राजा से मिलने का समय लिया और à¤à¤•ांत में उस अमरफल की विशेषता सà¥à¤¨à¤¾ कर उसे राजा को दे दिया और कहा, ‘महाराज! आप इसे खा लेना कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि आपका जीवन हमारे लिठअनमोल है।’ राजा फल को देखते ही पहचान गठऔर सनà¥à¤¨ रह गà¤à¥¤ गहन पूछताछ करने से जब पूरी बात मालूम हà¥à¤ˆ, तो राजा को उसी कà¥à¤·à¤£ अपने राजपाट सहित रानियों से विरकà¥à¤¤à¤¿ हो गयी। इस संसार की मायामोह को तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ वैरागी हो गठऔर राज-पाट छोड़ कर गà¥à¤°à¥ गोरखनाथ की शरण में चले गà¤à¥¤ उसके बाद ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वहीं वैरागà¥à¤¯ पर 100 शà¥à¤²à¥‹à¤• लिखे, जो कि वैरागà¥à¤¯ शतक के नाम से पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤§ हैं। उससे पहले अपने शासनकाल में वे शà¥à¤°à¥ƒà¤‚गार शतक और नीति शतक नामक दो संसà¥à¤•ृत कावà¥à¤¯ लिख चà¥à¤•े थे। पाठक जान लें कि ये तीनों शतक आज à¤à¥€ उपलबà¥à¤§ हैं और पठनीय हैं।
योगिराज à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ का पवितà¥à¤° नाम अमरफल खाठबिना अमर हो गया। उनका हृदय परिवरà¥à¤¤à¤¨ इस बात का जà¥à¤µà¤²à¤¨à¥à¤¤ पà¥à¤°à¤¤à¥€à¤• है। वह तà¥à¤¯à¤¾à¤—, वैरागà¥à¤¯ और तप के पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¨à¤¿à¤§à¤¿ थे। हिमालय से कनà¥à¤¯à¤¾à¤•à¥à¤®à¤¾à¤°à¥€ तक उनकी रचनाà¤à¤‚, जीवनगाथा à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨-à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ à¤à¤¾à¤·à¤¾à¤“ं मे योगियों और वैरागियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अनिशà¥à¤šà¤¿à¤¤ काल से गाई जा रही हैं और à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में à¤à¥€ बहà¥à¤¤ दिनों तक यही कà¥à¤°à¤® चलता रहेगा।
राजा à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ का अनà¥à¤¤à¤¿à¤® समय राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में बीता। उनकी समाधि अलवर जिले के à¤à¤• सघन वन में आज à¤à¥€ विदà¥à¤¯à¤®à¤¾à¤¨ है। उसके दरवाजे पर à¤à¤• अखणà¥à¤¡ दीपक जलता रहता है। उसे à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ की जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿ सà¥à¤µà¥€à¤•ार किया जाता है। à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ महान शिवà¤à¤•à¥à¤¤ और सिदà¥à¤§ योगी थे और अपने à¤à¤¾à¤ˆ विकà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤à¥à¤¯ को पà¥à¤¨à¤ƒ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ कर अमर हो गà¤à¥¤ विकà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¦à¤¿à¤¤à¥à¤¯ उनकी तरह ही चकà¥à¤°à¤µà¤°à¥à¤¤à¥€ निकले और उनके सà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨à¤•ाल में विकà¥à¤°à¤® संवत की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ हà¥à¤ˆ, जिसका शà¥à¤à¤¾à¤°à¤‚ठआज à¤à¥€ चैतà¥à¤°à¤®à¤¾à¤¸ के नवरातà¥à¤° से आरंठहोता है।â€
à¤à¤°à¥à¤¤à¥ƒà¤¹à¤°à¤¿ की गà¥à¤«à¤¼à¤¾ के साथ से ही à¤à¤• पैदल मारà¥à¤— गढकालिका मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की ओर चला जाता है, लेकिन हमें नंदू ने पहले ही बता दिया था कि हम लोग उस तरफ़ ना जायें कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वो हमें गढकालिका मनà¥à¤¦à¤¿à¤° सड़क मारà¥à¤— से आटो में लेकर जायेगा।
यहाठघà¥à¤®à¤¨à¥‡ के बाद हम आकर फिर से नंदू के आटो में आकर बैठगये और वो हमे अगले सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ गढकालिका व à¤à¥ˆà¤°à¥‹à¤‚ मनà¥à¤¦à¤¿à¤° की तरफ़ ले गया जिसका वरà¥à¤£à¤¨ हम अगली पोसà¥à¤Ÿ में करेंगें ।














Nice post. Specially the story of king Bhratahari was interesting.
Thanks.
Thanks Mukesh Ji..
नरेश जी बहुत बढ़िया वर्णन किया है आपने अपनी इस यात्रा का. राजा भ्रतहरि के बारे में जो जानकारी आपने दी है वो काफ़ी रोचक है, घूमते रहिए और ऐसे ही लिखते रहिए !
Thanks Pardeep is for your sweet words..
Nice post with good details. In my childhood I used to listen various nirguns about Raja Bhartrihari sung by various sadhu – sanyasi. Those days i didn’t get the meanings but those melodious folk songs are still near to my heart.Some of the photos could have been better.
Thanks Ashok ji for your encouraging words..
Thank you Naresh for educating us about Raja Bhrthari. Sometimes I think that we have such rich (and often complex) legacy of these incidents but we are not doing a great job at preserving this. May be logs like these would keep them on. thank you.
Thanks Nandan Ji..
Hi Naresh,
Now you are unearthing real gems in a seemingly well trodden circuit.
Amazing story of King Bhatrihari – seems like a namesake movie was made in 1944!
A little research provided another story – http://myworld-2005.blogspot.in/2009/03/king-bharthari.html
Apparently Baital used to tell the king’s stories to Vikram.
So who finally ate the fruit?!
Thanks Nirdesh Ji..
Few movies have been made on this subject in different languages .
और सच कहूँ , वो फल मैंने नहीं खाया !
Thanks for sharing the less travelled place.
Interesting story regarding king Bhrathari !
Thanks Mahesh ji for your kind words..