बात है अगसà¥à¤¤ – 2009 की जब हम आफिस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« के लोगो ने पहाड़ो पर घूमने जाने का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बनाया. इस तरह के घूमने जाने के पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® जब कई लोग साथ मिल कर बनाते हैं तब सà¤à¥€ के अपने – अपने destination होते हैं.अलग –अलग राय. फिलहाल जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ माथा- पचà¥à¤šà¥€ करने की जरूरत नही पड़ी मैने कहा धनोलà¥à¤Ÿà¥€ चलते है पर साथ ही साथ इसमे केमà¥à¤ªà¤Ÿà¥€ फाल ऋषिकेश, मसूरी, सहसà¥à¤¤à¥à¤°à¤§à¤¾à¤°à¤¾, हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° à¤à¥€ उसी रासà¥à¤¤à¥‡ पर हैं तो वहां à¤à¥€ चलेंगे. अगसà¥à¤¤ के महीने मे 15 अगसà¥à¤¤ और जनà¥à¤®à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¤®à¥€ की छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ à¤à¤• साथ मिल रही थी. .इस वरà¥à¤· 14 अगसà¥à¤¤ शà¥à¤•à¥à¤°à¤µà¤¾à¤° के दिन जनà¥à¤®à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¤®à¥€ पड रही थी अगले दिन शनिवार को 15 अगसà¥à¤¤ की छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¥€ थी उसके अगले दिन रविवार था. इस तरह से हम लोगो के पास 3 दिन थे. जैसा कि आमतौर पर इस तरह के टूर पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® मे होता है कà¥à¤› लोग जो कि पहले चलने को तैयार होते हैं वह पीछे हट जाते हैं और कà¥à¤› जà¥à¤¡à¤¼ जाते हैं. कà¥à¤² मिला कर हम 23 लोगो का जाने का पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बना इनमे से कà¥à¤› à¤à¤• के परिवार के सदसà¥à¤¯ à¤à¥€ शामिल थे. 23 लोगो के जाने के लिये à¤à¤• 35 सीटर बस तय कर ली. इससे पहले धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ के टूर मे à¤à¥€ हम लोग बस ले कर ही गये थे, इसलिये 2X2 की पà¥à¤¶ बॅक बस से चलना तय हà¥à¤†. 23000 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ मे बस तय हो गयी.
हर टूर मे कà¥à¤› ना कà¥à¤› नया सीखने को मिलता है. इस बार तय हà¥à¤† रासà¥à¤¤à¥‡ मे खाने – पीने, नाशà¥à¤¤à¥‡ का सामान खरीद कर साथ ले चलेंगे साथ ही साथ पानी की 20 लीटर की दो- तीन बोतले à¤à¥€ बस मे रख लेंगे.
13 अगसà¥à¤¤ को रात 10 बजे बस हमारे नोà¤à¤¡à¤¾ आफिस आ गयी. जà¥à¤¯à¤¦à¤¾à¤¤à¤° सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« के लोग सà¥à¤¬à¤¹ आफिस आते समय ही अपना सामान ले कर आ गये थे. हम तीन लोग थे मैने कहा बस तो मोहन नगर होकर ही जायेगी, (मै राजेंदà¥à¤° नगर मे रहता हूठजो मोहन नगर के बहà¥à¤¤ नजदीक है.) बस को लेकर मेरे राजेंदà¥à¤° नगर घर आ जाना वही पर सब लोग चाय पी कर चलेंगे साथ ही साथ पानी की बोतले और दूसरा सामान à¤à¥€ उसमे रख लेंगे. इस बात से किसी को कोई दिकà¥à¤•त नही थी. बस रात करीब 1 बजे घर पहà¥à¤‚ची पता लगा बस डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° जानबूठकर देर से चला कà¥à¤¯à¥‹à¤•ि बस दिलà¥à¤²à¥€ की थी अगर वह रात बारह बजे से पहले दिलà¥à¤²à¥€ बॉरà¥à¤¡à¤° पार करता तो उसे à¤à¤• दिन का अतिरिकà¥à¤¤ टॅकà¥à¤¸ देना होता है इसलिये सà¤à¥€ डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° रात 12 बजे के बाद ही à¤à¤• राजà¥à¤¯ से दूसरे राजà¥à¤¯ का बॉरà¥à¤¡à¤° पार करते हैं. à¤à¤¸à¤¾ धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ टूर मे à¤à¥€ डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने किया था. चाय पी कर सà¤à¥€ आगे के सफर के लिये चल दिये. पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® यह बना था कि पहले दिन हम लोग मसूरी मे रà¥à¤•ेंगे और उसी दिन केमà¥à¤ªà¤Ÿà¥€ फाल घूम आयेंगे. दूसरे दिन धनोलà¥à¤Ÿà¥€ जायेंगे. अगर मसूरी मे होटेल अचà¥à¤›à¤¾ मिल गया तो शाम को वापस आ जायेंगे अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ धनोलà¥à¤Ÿà¥€ मे रà¥à¤•ेंगे और तीसरे दिन सहसà¥à¤¤à¥à¤°à¤§à¤¾à¤°à¤¾, ऋषिकेश और हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° होते हà¥à¤ वापस दिलà¥à¤²à¥€ आ जायेंगे. मसूरी से कà¥à¤› किलोमीटर पहले मौसम à¤à¤•दम सà¥à¤¹à¤¾à¤¨à¤¾ हो गया. à¤à¤®à¤¾à¤à¤® वारिश शà¥à¤°à¥ हो गयी. डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने इस सà¥à¤¹à¤¾à¤¨à¥‡ मौसम मे चाय पीने के लिये बस रोक दी. कà¥à¤› लोग बारिश मे बस से नीचे उतर कर चाय की चà¥à¤¸à¥à¤•ियो के साथ मौसम का आननà¥à¤¦ लेने लगे. वैसे à¤à¥€ सà¤à¥€ दिलà¥à¤²à¥€ की गरà¥à¤®à¤¿à¤¯à¥‹ से à¤à¤¾à¤— कर ही इन जगहो पर आनंद लेने पहà¥à¤‚च जाते हैं.

इंडो-तिबà¥à¤¬à¤¤ पà¥à¤²à¤¿à¤¸ हेड कà¥à¤µà¥‰à¤°à¥à¤Ÿà¤° के पास होटेल के इंतजार मे आफिस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤«
सà¥à¤¬à¤¹ के 8 बजे होंगे जब हमारी बस मसूरी पहà¥à¤‚च गयी. डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने बस को मसूरी के बाहर लाइबà¥à¤°à¥‡à¤°à¥€ चौक वाले मारà¥à¤— से पहले इंडो-तिबà¥à¤¬à¤¤ पà¥à¤²à¤¿à¤¸ हेड कà¥à¤µà¥‰à¤°à¥à¤Ÿà¤° के पास रोक दी और बोला जा कर होटेल देख आओ. अंदर जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समय बस खड़ी नही कर सकता. मैने आफिस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« के 2-3 लडको को होटेल देखने के लिये à¤à¥‡à¤œà¤¾. तब तक सà¤à¥€ बस मे आराम करते रहे कà¥à¤› à¤à¤• बस के आस-पास टहलते रहे. à¤à¤• घंटे से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ समय उन लोगो को गये हो गया पर उनà¥à¤¹à¥‡ कोई होटेल नही मिला. अब मै सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« के दो लोगो के साथ अलग से होटेल ढूढने निकला. जिधर जाता वही फà¥à¤² का बोरà¥à¤¡ मिल जाता. वैसे à¤à¥€ पहाड़ो पर होटेल ढूढना à¤à¥€ इतना आसन नही होता है. सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ लोगो से पूछा और उनके बताये हà¥à¤ जगहो पर गया. पर होटेल मिलना à¤à¤• समसà¥à¤¯à¤¾ बन गया. हमारे जैसे बहà¥à¤¤ से लोग मसूरी की सडको पर अपना सामान लिये हà¥à¤ होटेल की तलाश मे घूम रहे थे. सà¤à¥€ परेशान थे पर करे तो करे कà¥à¤¯à¤¾. यही समसà¥à¤¯à¤¾ सबके सामने थी. मै 3-4 वरà¥à¤· पहले à¤à¥€ यहाठआफिस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« के साथ आया था परंतॠतब होटेल मिलने की कोई समसà¥à¤¯à¤¾ नही आई थी. मसूरी की सडको पर à¤à¥€à¤¡à¤¼ ही à¤à¥€à¤¡à¤¼ नजर आ रही थी मसूरी मे à¤à¤• समसà¥à¤¯à¤¾ और है यहाठहोटेल तो बहà¥à¤¤ हैं पर उनके à¤à¤œà¥‡à¤‚ट नही है. अगर नैनीताल जाओ तो बस अडà¥à¤¡à¥‡ पर ही ढेरो à¤à¤œà¥‡à¤‚ट होटेल दिलवाने के लिये मिल जाते हैं जिस रेंज का कमरा चाहिये मिल जायेगा. थक हार कर हमलोग वापस बस मे आये. अà¤à¥€ तक हमारी पहली टीम वापस नही आई थी. मैने उन लोगो को फोन मिलाया पता लगा अà¤à¥€ तक होटेल नही मिला है,. इस समय सà¥à¤¬à¤¹ के 11 बज रहे थे. मà¥à¤à¥‡ लगा अब यहाठपर समय खराब करना उचित नही है, धनोलà¥à¤Ÿà¥€ चलते हैं वरà¥à¤¨à¤¾ अगर यहाठके निराश लोग वहां पहà¥à¤‚च गये तब वहां à¤à¥€ नही मिलेगा. यह सोंच कर उन लोगो को वापस बà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ के लिये फोन किया पर वह लोग हार मानाने को तैयार नही थे. बार-बार फोने करने के बाद करीब à¤à¤• घंटे के बाद वह लोग लौटे. अब मैने बस डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° को धनोलà¥à¤Ÿà¥€ चलने के लिये निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ दिये. यहाठसे वापस बस लोटने के लिये डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने बस को मसूरी का à¤à¤• चकà¥à¤•र लगा कर वापस धनोलà¥à¤Ÿà¥€ के लिये चल दिया.
मà¥à¤à¥‡ तो धनोलà¥à¤Ÿà¥€ का रासà¥à¤¤à¤¾ काफी खतरनाक लगा. सड़क मसूरी वाले रासà¥à¤¤à¥‡ की तरह चौड़ी नही थी. पतली सी सरà¥à¤ªà¥€à¤²à¥€ सड़क पर हमारी बस धीमी गति से ही चढ़ाई पर चढ रही थी. बरसात के मौसम होने के कारण हर तरफ हरियाली थी. परंतॠकई सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹ पर सड़क टूटी हà¥à¤ˆ थी. वैसे à¤à¥€ कà¥à¤®à¤¾à¤¯à¥‚ठकाफी हरा-à¤à¤°à¤¾ है.
रासà¥à¤¤à¥‡ मे डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° धनोलà¥à¤Ÿà¥€ जाने का रासà¥à¤¤à¤¾ à¤à¥‚ल गये और बस दूसरे रासà¥à¤¤à¥‡ पर चल दी. काफी आगे जाने पर डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° को अपनी गलती का अहसास हà¥à¤† तब दूसरी तरफ से आते à¤à¤• गाड़ी वाले से पूछने पर पता लगा यह धनोलà¥à¤Ÿà¥€ का रासà¥à¤¤à¤¾ नही है. पहाड़ो पर पतली सी सड़क पर बस को वापस मोड़ना à¤à¥€ आसन काम नही होता है. à¤à¤•-दो किलोमीटर जाने के बाद थोड़ी जगह मिली तब वापस मोड़ कर धनोलà¥à¤Ÿà¥€ के रासà¥à¤¤à¥‡ पर चले. रासà¥à¤¤à¥‡ मे कई लोग जो अपनी कार या टैकà¥à¤¸à¥€ से जा रहे थे रà¥à¤• कर यहाठकी खूबसूरती को निहार रहे थे. करीब 3 बजे बस धनोलà¥à¤Ÿà¥€ से कà¥à¤› किलोमीटर पहले डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने सड़क के किनारे होटेल बने देख कर रोकी और बोला जाकर देख आओ अगर होटेल मे आप लोगो को कमरे मिल जाये. यहाठपर इकà¥à¤•े – दà¥à¤•à¥à¤•े ही होटेल बने थे वह à¤à¥€ छोटे- छोटे, सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« के दो लोगो को लेकर होटेल पता करने चल दिया. होटेल मे कमरे खाली नही थे वापस दस मिनट बाद लौट कर आया देखा सारे लोग बस से उतर कर वहीं सड़क के किनारे बनी दà¥à¤•ानो पर मैगी खाने मे मसà¥à¤¤ हैं. वैसे à¤à¥€ सà¥à¤¬à¤¹ से किसी ने नाशà¥à¤¤à¤¾ तो किया नही था. जो रासà¥à¤¤à¥‡ मे खाने के लिये चिपà¥à¤¸, नमकीन वà¥à¤—ैरह रखी थी वही खाकर बैठे हà¥à¤ थे पर मà¥à¤à¥‡ चिंता हो रही थी की जलà¥à¤¦à¥€ से जलà¥à¤¦à¥€ धनोलà¥à¤Ÿà¥€ पहà¥à¤à¤šà¤¾ जाय, कहीं à¤à¤¸à¤¾ ना हो कि मसूरी की तरह यहाठà¤à¥€ कमरा ना मिले.
4 बजे बस धनोलà¥à¤Ÿà¥€ पहà¥à¤‚ची. देखा यहाठà¤à¥€ इकà¥à¤•े-दà¥à¤•à¥à¤•े ही होटेल बने हà¥à¤ हैं. बस को डà¥à¤°à¤¾à¤‡à¤µà¤° ने . पारà¥à¤• से करीब 500-700 गज पहले ही सड़क के किनारे होटेल बने देख कर रोक दी. अब फिर हम लोग अलग-अलग होटेल मे कमरे की तलाश मे चल दिये.थोड़ी सी ही देर मे सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« के दो लड़के मेरे पास आकर बोले कि चल कर बात कर ले पीछे वाले होटेल मे कमरे हैं. होटेल बाहर से तो काफी बड़ा बना हà¥à¤† था लग रहा था यहाठपर शायद सबको कमरे मिल जाये पर जाकर पूछने पर पता लगा कि इस समय दो बड़े बड़े कमरे खाली हैं. होटेल वाला बोला आप सà¤à¥€ लोग दोनो कमरे मे ठहर सकते हो. दो-तीन बिसà¥à¤¤à¤°à¥‡ अलग से दे दूंगा. अब समसà¥à¤¯à¤¾ यह थी कि आफिस सà¥à¤Ÿà¤¾à¤« के लोग थे सà¤à¥€ का अलग-अलग ढंग का रहन- सहन. à¤à¤• ही परिवार के हो तब तो किसी तरह से काम चला सकते थे. मैने सोंचा अगर यह होटेल छोड़ दिया और दूसरे होटेल मे à¤à¥‹ जगह ना मिली तो रात बस मे गà¥à¤œà¤¾à¤°à¤¨à¥€ होगी उससे अचà¥à¤›à¤¾ है इन दो कमरो मे ही à¤à¤¡à¤œà¤¸à¥à¤Ÿ कर लेते हैं. उन दो बड़े कमरो का किराया बताया 10000 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡. काफी मोल-à¤à¤¾à¤µ के बाद होटेल वाला 9000/ रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ मे राजी हà¥à¤†.
अब मैने कहा , सà¤à¥€ महिलाये, लड़कियां तो à¤à¤• कमरे मे ठहर जाये और सà¤à¥€ जेनà¥à¤Ÿà¥à¤¸ दूसरे कमरे मे रात मे सोà¤à¤‚गे. सà¤à¥€ को यह सà¥à¤à¤¾à¤µ पसंद आया. दोनो कमरो मे à¤à¤• –à¤à¤• डबल बेड और तीन-चार सिंगल बेड थे. थोड़ी सी परेशानी, पर सà¤à¥€ à¤à¤¡à¤œà¤¸à¥à¤Ÿ हो गये.
जनà¥à¤®à¤¾à¤·à¥à¤Ÿà¤®à¥€ का दिन होने के करण मेरी शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी ने वà¥à¤°à¤¤ रखा था. शाम ढल चà¥à¤•ी थी मैने सोंचा कà¥à¤› फल वगैरह ला दू. होटेल से बाहर आकर पूछने पर पता लगा थोड़ा सा आगे बस सà¥à¤Ÿà¥…ंड है वहां पर फल मिल सकते हैं. थोड़ा सा आगे जाने पर à¤à¥€ दà¥à¤•ाने नही नजर आई फिर वहां से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ पहाड़ी लोगो से पूछा, उनका वही जबाव , बस थोड़ा सा आगे चले जाओ. हमारे जैसे लोगो के लिये पहाड़ो पर 100-200 गज चलना ही काफी दूर हो जाता है पर पहाड़ी लोग à¤à¤• किलोमीटर की दूरी à¤à¥€ थोड़ा सा आगे ही बताते है. जैसे-तैसे बस सà¥à¤Ÿà¥…ंड पहà¥à¤à¤šà¤¾. यहाठपर केवल 2-3 दà¥à¤•ाने ही थी जिसमे से à¤à¤• मे थोड़ी सी सबà¥à¤œà¥€, फल रखे थे. फल खरीद कर वापस लौटते समय तक शाम काफी गहरी हो गयी थी. बरसात का मौसम होने के कारण बादलो ने आस-पास का वातावरण ढक दिया था. दूर का साफ नही दिख रहा था. इस समय सड़क पर कोई चहलकदमी नही हो रही थी. मेरे आगे – आगे दो लड़के बाते करते हà¥à¤ जा रहे थे अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ वातावरण मे नीरवता छाई हà¥à¤ˆ थी. मै तेज कदमो से होटेल की तरफ बढ रहा था. à¤à¤¸à¥‡ समय पर पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ बाते याद आ जाती हैं. इससे पिछले वरà¥à¤· मै मà¥à¤•à¥à¤¤à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° गया था. मà¥à¤•à¥à¤¤à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड मे ही à¤à¤• हिल सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ है. यहाठसे नेपाल की तरफ का हिमालय दिखता है. तो बात कर रहा था मà¥à¤•à¥à¤¤à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° की ( बताना आवशà¥à¤¯à¤• हो गया था , कई लोग मà¥à¤•à¥à¤¤à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° के नाम से ग़हà¥à¤° मà¥à¤•à¥à¤¤à¥‡à¤¶à¥à¤µà¤° समà¤à¤¨à¥‡ लगते हैं.) यहाठमै रेड रूफ रिज़ॉरà¥à¤Ÿ मे ठहरा था. रिज़ॉरà¥à¤Ÿ के मलिक मिसà¥à¤Ÿà¤°. पà¥à¤°à¤¦à¥€à¤ª विषà¥à¤Ÿ से बातो ही बातो मे पता लगा की शाम के समय कà¤à¥€-कà¤à¥€ रिज़ॉरà¥à¤Ÿ के सामने ही बाघ आ जाता है. उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ à¤à¤• बाघ की फोटो à¤à¥€ अपने रिज़ॉरà¥à¤Ÿ मे लगा रखी थी जो कि जाड़े के समय उनके रिज़ॉरà¥à¤Ÿ के सामने बैठा हà¥à¤† धूप सेक रहा था. उनके रिज़ॉरà¥à¤Ÿ के पास ही à¤à¤• महिला को होटेल है. बताने लगे कि à¤à¤• दिन शाम का अंधेरा ढल गया था, वह अपनी कार से मेरे रिज़ॉरà¥à¤Ÿ के सामने से गà¥à¤œà¤° रही थी कि तà¤à¥€ अचनक बाघ उनकी कार के सामने आकर खड़ा हो गया. उनà¥à¤¹à¥‹à¤¨à¥‡ ने कार के बà¥à¤°à¥‡à¤• लगाये, बाघ थोड़ी देर तक खड़ा कार को घूरता रहा फिर छलांग मार कर दूसरी तरफ चला गया. इस समय मà¥à¤à¥‡ वही बात याद आ रही थी कि कहीं यहाठपर à¤à¥€ अचनक बाघ आ गया तब कà¥à¤¯à¤¾ करेंगे. चलते समय होटेल वाले से पूछना à¤à¥‚ल गया था कि इस इलाके मे बाघ तो, वह नही है. खैर रासà¥à¤¤à¥‡ मे बाघ तो नही मिला, सकà¥à¤¶à¤² होटेल पहà¥à¤‚च गया. अगर मिल जाता तो गया था शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¤à¥€ जी के खाने का इंतजाम करने और बाघ के खाने का इंतजाम कर बैठता. वापस आकर पहले होटेल वाले से पूछा पता लगा यहाठपर बाघ नहीं है.

होटेल की छà¥à¤¤ पर फोटो शूट , कैमरा नही तो मोबाइल से ही
अगले दिन सà¥à¤¬à¤¹ सà¤à¥€ धनोलà¥à¤Ÿà¥€ घूमने के लिये निकल पड़े. दो-à¤à¤• लोगो ने तो घोड़े की सवारी à¤à¥€ करना शà¥à¤°à¥ कर दी.
बहà¥à¤¤ ही खूबसूरत पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤°à¤¤à¤¿à¤• दà¥à¤°à¤¶à¥à¤¯à¥‹ से à¤à¤°à¤ªà¥‚र धनोलà¥à¤Ÿà¥€ है. होटेल के सामने घाटी से उठते हà¥à¤ बादलो को देख कर दिल बाग़-बाग़ कर उठा. पहाड़ तो सà¤à¥€ जगह à¤à¤• से होते हैं पर सà¤à¥€ जगहो की कà¥à¤› अपनी अलग ही सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ होती है. हमारे साथ दो लड़कियां जो कि मूल रूप से कोसानी की रहने वाली थी. वह à¤à¥€ यहाठकी नैसरà¥à¤—िक सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ देख मंतà¥à¤°à¤®à¥à¤—à¥à¤§ थी.
पास ही ईको पारà¥à¤• था. सà¤à¥€ ईको पारà¥à¤• मे घूमने के लिये 10 रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ टिकट लेकर अंदर पहà¥à¤‚चे. काफी सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° पारà¥à¤• है यह. इस पारà¥à¤• की मà¥à¤–à¥à¤¯ बात यह थी कि पà¥à¤°à¤¾à¤•à¥à¤°à¤¤à¤¿à¤• सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ से à¤à¤°à¤ªà¥‚र यह पारà¥à¤• है. आप अपने आप को पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¤à¤¿ के नजदीक महसूस करते हैं. पारà¥à¤• मे जाने के लिये à¤à¤• रासà¥à¤¤à¥‡ पर अमà¥à¤¬à¤° लिखा है और दूसरे पर धरा, आप किसी à¤à¥€ रासà¥à¤¤à¥‡ से जाये लौट कर वहीं पर मिलेंगे, इस समय बादलो की धà¥à¤‚द से मौसम मे थोड़ी सी ठंडक थी. सà¤à¥€ यहाठआकर बहà¥à¤¤ खà¥à¤¶ थे. पूरी तरह से यहाठके मौसम का लà¥à¤¤à¥à¤« उठा रहे थे. लगà¤à¤— 12 बजे सà¤à¥€ घूम कर होटेल पहà¥à¤‚च गये
इसके बाद मैं आपको ले चलूà¤à¤—ा सहसà¥à¤¤à¥à¤°à¤§à¤¾à¤°à¤¾ और फिर वाया हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° घर वापसी | आशा है घà¥à¤®à¤•à¥à¤•ड़ों को इको पारà¥à¤• का सफ़र अचà¥à¤›à¤¾ लगा होगा | आपके समà¥à¤®à¥à¤– फिर हाजिर होता है दो चार दिनों में | जय हिनà¥à¤¦ |
bahut hi sundar varnan hai dhanoulti ka. dekhiye main bhi 20-10-12 ko chala tha haridwar rishikesh aur mussoori ke lie magar kahin aur pahunch gaya.aapka ye varnan achchha hai aur aapne sahi kia hai likhne se jyada photo lagaya hai photo bahut hi sundar hain aur kam likhe ki kami puri kar de rahe hain .asha hai agla varnan bhi rochak hoga.
राजेश जी
मेरी नजर मे तो फोटो किसी भी लेख को जीवंतता प्रदान करते हैं. मै तो सबसे पहले किसी भी लेख, यात्रा व्रतान्त के सबसे पहले फोटो ही देखता हूँ और बाद मे समय निकाल कर पढता हूँ.
धन्यवाद
प्रिय श्री रस्तोगी जी,
यह बात तो मैं बिना आपके बताये ही समझ गया था कि रास्ते में आपको बाघ नहीं मिला ! अगर मिलता तो यह पोस्ट आपने नहीं, बल्कि बाघ ने लिखी होती – वह भी बड़े मज़े ले-लेकर ! :D
मेरी हार्ड किस्मत कहिये, या नाकारापन की पराकाष्ठा, देहरादून का रहने वाला हूं, देहरादून की बात सुनाता हूं पर आज तक भी कभी धनोल्टी नहीं गया ! क्या करूं, पहले मां-बाप ऐसे मिले जो कभी किसी पहाड़ पर लेकर नहीं गये । ( किसी रिश्तेदार की शादी में भी नहीं ! कारण ? पहाड़ की बसों में हमारे पूरे खानदान को वमन शुरु हो जाती थी !) बाद में श्रीमती जी ऐसी मिल गईं, जिनको घूमने का कोई विशेष शौक नहीं है। वह तो शुक्र करो कि हम घूमने के लिये अपने घरवालों के भरोसे नहीं रहे, जब मौका मिला, चुपके से उड़ लिये! देहरादून में तो अपने घर की छत से जब कभी मसूरी का पहाड़ बर्फ से सफेद हो गया नज़र आता था, तो स्कूटर उठाते, साथ में छोटे या बड़े भाई को भी लेते, घर वालों को बोलते कि अभी थोड़ी देर में आया और उड़न छू ! लौट कर आते थे तो डांट – फटकार भी पड़ती थी और कभी कभी पिटाई भी हो जाती थी !
चलो खैर ये सब हमारी वीरता के किस्से तो ठीक ही हैं, पर आपकी फोटुएं अति सुन्दर रहीं ! धनोल्टी के मनभावन दृश्य दिखाने हेतु आभार !
singhal sahab bas wah-wah. kya kisi ke blog ko padhu,jisne aapko padh lia ekbaar,wo to aapka mureed ho hi jayega. aapke comment bhi aise aate hain,thik waisa hi jaisa pehle ke jamane me operation se pehle no2(shayad gas ka yahi chemical name hai) gas sunghaya jata tha.
सुशांत जी
सही कह रहे है अगर बाघ मिल जाता फिर तो वही यह कहानी कह रहा होता.
बाघ की बात पर एक किस्सा याद आ गया. मै एक कम्पनी मे सर्विस करता था उसके मेनेजिंग डाइरेक्टर किसी बात पर चीफ accountant सोनी जी से पूछने लगे, आप अगर जंगल मे जा रहे हो और अचानक शेर आ जाये तब आप क्या करोगे. सोनी जी बोले तब मेरे करने को कुछ होगा ही नही जो कुछ करेगा शेर ही करेगा.
मजा आया आपके कमेन्ट पढ कर
वैसे फोटो तो और भी कई डाले थे पर नंदन जी ने कहा थोड़े फोटो ही ठीक रहेंगे.
मेरे ब्लॉग पर वहां के और फोटो हैं
http://rastogi-yatra.blogspot.in/2012/10/blog-post_19.html
धन्यवाद
बहुत खूब रस्तोगी जी
बहुत अच्छा विवरण है और अच्छे फोटो. काश मैं भी आप जैसा विवरण कर पता हिंदी में. एको पार्क धनौल्टी कि पोस्ट बहुत बार घुमाक्कर पर आ चुकी है लेकिन हर बार देखने अंड पढ़ने में अच्छी ही लगती है. अब उत्तराखंड में आने का बहुत मन है पता नहीं भोलेनाथ कब बुलाते है.
धन्यवाद
dear vishal
हिन्दी के चक्कर मे ना पडो, आप इंग्लिश मे बहुत अच्छा लिख लेते हो, दूसरी बात यह है कि अगर हिन्दी मे अमरनाथ की पोस्ट लिख रहे होते तो वह अब तक चल रही होती. काफी समय एडिट करने मे लग जाता है. हम जिस शब्द की लिखना चाहते हैं साफ्टवेयर उसको वैसा लिखता नही है. इस तरह से बार-बार उसे सुधारना पड़ता है. इस चक्कर मे कुछ ना कुछ शब्द छूट जाते हैं.
वैसे धनोल्टी है बहुत खूबसूरत पर शांत जगह, शहर की कोलाहल से दूर.
बहुत ही खूब , धनोल्टी कई बार जाना हुआ , सबसे बाड़िया रुकने की जगह गढ़वाल मंडल का होटेल है जो बिल्कुल ईको पार्क से लगा हुआ है कुछ साल पहले तक तो वहाँ पर बस एक बड़ा खाली पार्क था जहाँ अब ईको पार्क है | धनोल्टी तक गये ही थे तो सुरकंडा देवी के दर्शन भी कर आते आप |
धन्यवाद महेश जी
यह बात वहां से लौटने के बाद पता लगी. अगली बार कभी गया तब अवश्य जा उंगा . आप तो कई बार गये हैं तब तो आपको भी लगता होगा कि यह एक खूबसूरत हिल स्टेशन है.
रस्तोगी जी….
बहुत ही अच्छी रही आपकी धनोल्टी की यात्रा , विवरण भी अच्छा लगा …..साथ ही साथ फोटो भी सुन्दर लगे ….|
आपका पहला दिन तो होटल ढूढने में ही लग गया…..होटल तो काफी महंगा मिला…….क्या धनोल्टी में सस्ते होटल भी हैं ?
देहरादून और मसूरी घूम चुका हूँ पर धनोल्टी आज तक नहीं जा पाया ……अब इस तरफ गया तो धनोल्टी जरुर जाउगा….|
इको पार्क बहुत अच्छा लगा….ऐसा ही एक इको पार्क कौसानी में भी बन रहा हैं…..|
लेख के लिए धन्यवाद….
रीतेश जी
सारा खेल डिमांड और सप्लाई का है , जहां छुट्टी पड़ी लोग अपनी – अपनी कारे लेकर निकल पड़ते हैं. इस ट्रिप के बाद हमने निश्चय कर लिया था कि इस तरह की छुट्टियो पर हिल स्टेशन नही जायेंगे.
Dear Kamalansh, lovely account of a lovely place. The images of the place make it seem ethereal.
Initially I wanted to write my comment in Hindi but after reading your advice to Vishal (हिन्दी के चक्कर मे ना पडो), I decided to stick to my strength and write in English.
dear mr. narayan
यह सच है कि विशाल की अमरनाथ यात्रा एक धारावाहिक की तरह प्रकाशित हुई थी अगर यही वह इंग्लिश मे लिख कर हिन्दी मे कन्वर्ट करते तो बहुत समय खराब होता..
वैसे पोस्ट प्सांद आने के लिये बहुत धन्यवाद
Very nice post with beautiful pics…Fog waale pics bahut acche hai
hi abhee
सच तो यह है कि फोटो से हमे हल्का सा आभास होता है उस जगह की सुन्दरता की. जब हम अपनी आंखो से उस द्रश्य को देखते है तब ही हमे पता चलता है कि कितनी सुन्दर जगह है. ऐसे ही जब मैने पहले बार केदारनाथ मे केदार पर्वत को देखा , वह भुलाये नही भूल सकता
Dear Kamlanshji,
Nice account of Dhanaulti!
But what puts cherry on the cake are the comments by Sushantiji!
Regards,
Nirdesh
hi nirdesh
thanks a lot
रस्तोगी जी – मेरे हिसाब से इतना बड़ा ग्रुप जब हो तो होटल पहले से तय करके चलना चाहिए | शायद आप मसूरी का भी पूरा लुत्फ़ उठा पाते और थोडा आराम ज्यादा रहता पर शायद इस तरह से एक साथ रहने से आपस में सोहाद्र और समझ बढ़ी होगी | वो कहते हैं आजकल कि ‘टीम बिल्डिंग’ हो गया होगा तो अंत भला तो सब भला |
धनोल्टी वाकई में बड़ी खूबसूरत जगह है | मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि पीक सीजन में कहीं भी जाने पर काफी झाम रहता है | धन्यवाद |
नंदन जी
इस ट्रिप से पहले भी हम आफिस स्टाफ के लोगो ने मसूरी, नैनीताल व्गैरह के ट्रिप किये थे पर पहली बार इस तरह की परेशानी हुई और यही बात धनोल्टी मे मैने अपने बस ड्राइवर से पूछी तो कहने लगा ” आज से तीन-चार पहले कितनी कारे दिल्ली मे थी और अब कितनी हो गयी हैं. अब तो जहां दो-तीन दिन की छुट्टी पड़ी और लोग अपनी – अपनी कारे लेकर निकल पड़ते हैं हिल स्टेशन की तरफ. ” मुझे भी उसकी बात सही लगी ज्यादातर भीड़ और कारे दिल्ली – NCR की ही वहां पर थी.
पर एक बात तो है जब हम एक बड़े ग्रुप मे जाते हैं तब जो मजा आता है वह अकेले जाने मे नही.
बहुत सुंदर जगह है धनौल्टी, हम भी कुछ महीने पहले अगस्त में घूमकर आये हैं. बढ़िया पोस्ट और सुंदर फोटो हैं.
dear deependra
अगस्त के महीने मे आप गये हैं तब तो सुबह के समय घाटी से उठते हुए बादलो का खूसूरत नजारा देखने को मिला होगा.