पिछले साल पटना में तीन चार दिन की छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पर जाना हà¥à¤† था। उसी समय ये लेख लिखा था। आज मन किया कि इसे यहाठआप सब के साथ à¤à¥€ बाà¤à¤Ÿ लिया जाà¤à¥¤
कई दिनों से बेटा सवाल कर रहा था कि पापा मंदिर और मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ तो समठआ गया पर ये गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ कà¥à¤¯à¤¾ होता है? पहली कà¥à¤²à¥‰à¤¸ की परीकà¥à¤·à¤¾ में तो सà¥à¤ªà¥‡à¤²à¤¿à¤‚ग रट रटा कर और चितà¥à¤° दिखा कर बेड़ा पार हो गया है पर पटना में इस सवाल की पà¥à¤¨à¤°à¤¾à¤µà¥ƒà¤¤à¤¿ होने से अचानक ख़à¥à¤¯à¤¾à¤² आता है कि अरे अरà¥à¤¸à¤¾ हो गया तख़à¥à¤¤ हर मंदिर साहब (Takht Harmandir Saheb) गठहà¥à¤à¥¤ कà¥à¤¯à¥‚ठना पà¥à¤¤à¥à¤° की जिजà¥à¤žà¤¾à¤¸à¤¾ शांत करने के साथ साथ इस पवितà¥à¤° सà¥à¤¥à¤² की सैर कर ली जाà¤à¥¤
अपà¥à¤°à¥ˆà¤² की तेज दोपहरी है। खाने के बाद à¤à¤• घंटे के आराम के बाद हम निकल पड़े हैं पटना सिटी की ओर। कà¥à¤› ही देर में हम नठपटना के मà¥à¤–à¥à¤¯ मारà¥à¤— बेली रोड (Bailey Road) पर हैं। बेली रोड पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ पटना या नठपटना की पहचान है। चिड़ियाघर, सचिवालय, हाई कोरà¥à¤Ÿ, पà¥à¤²à¥‡à¤¨à¥‡à¤Ÿà¥‹à¤°à¤¿à¤¯à¤®, संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ अपने आंगà¥à¤¤à¤•ों के लिठसब इसी सड़क पर आशà¥à¤°à¤¿à¤¤ हैं।

दीदी जब यहाठपढ़ती थीं तो मैं कॉलेज में à¤à¤• बार किसी खेल पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤—िता को देखने के लिठअंदर गया था और लड़कियों ने मेरी और मेरे दोसà¥à¤¤à¥‹à¤‚ की अचà¥à¤›à¥€ खासी कà¥à¤²à¥‰à¤¸ ले ली थी। बाद में दीदी यहीं पढ़ती है कहकर उनसे जान छà¥à¤¡à¤¼à¤¾à¤•र à¤à¤¾à¤— लिये थे।
उस दिन के बाद फिर कà¤à¥€ कॉलेज के अंदर पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ का साहस नहीं कर पाà¤à¥¤

अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ लेफà¥à¤Ÿà¤¿à¤¨à¥‡à¤‚ट गवरà¥à¤¨à¤° के नाम पर बनी ये सड़क कई साल पहले ही जवाहर लाल नेहरू मारà¥à¤— में तबà¥à¤¦à¥€à¤² हो गई थी पर आम जनता ने कà¤à¥€ बेली रोड को अपनी जà¥à¤¬à¤¾à¤¨ से हटाया नहीं। इस इलाके से गà¥à¤œà¤°à¤¨à¤¾, मेरे पटना के आफिसरà¥à¤¸ हॉसà¥à¤Ÿà¤² में बिताठ१५ सालों की छवियाठको फिर से पà¥à¤¨à¤°à¥à¤œà¥€à¤µà¤¿à¤¤ कर देता है।
सचिवालय के पास ही à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ रेलवे लाइन (शायद १०-१५ किमी लंबी) बेली रोड को कà¥à¤°à¤¾à¤¸ करती है जहाठहमारी गाड़ी रà¥à¤• गई है। बचपन और किशोरावसà¥à¤¥à¤¾ में गà¥à¤œà¤¾à¤°à¥‡ अपने पनà¥à¤¦à¥à¤°à¤¹ सालों के दौरान इस फाटक रहित रेलवे कà¥à¤°à¤¾à¤¸à¤¿à¤‚ग से मैंने कà¤à¥€ किसी गाड़ी को गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ नहीं देखा। पर आज यहाठसे लालू जी की दया से à¤à¤• रेलगाड़ी गà¥à¤œà¤° रही है, जो पटना को दीघा से जोड़ती है। दीघा की पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ पहचान बॉटा की फैकà¥à¤Ÿà¥à¤°à¥€ से थी जो अब दानापà¥à¤° से सटे लालू के पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ वाले इलाके के तौर पर हो रही है। लोग कहते हैं इस गाड़ी में टिकट खरीदने की जरूरत नहीं पड़ती। हाल ही में पिता के à¤à¤• मितà¥à¤° घूमने घामने के खà¥à¤¯à¤¾à¤² से इसका टिकट लेने पहà¥à¤à¤šà¥‡ तो टिकट खिड़की पर उà¤à¤˜à¤¤à¤¾ बाबू आà¤à¤–ें फाड़ कर कौतà¥à¤• से देखने लगा कि ये अजूबा सवारी कहाठसे आ गई। पता नहीं अगले साल कà¥à¤¯à¤¾ हो। बिहार में इस चà¥à¤¨à¤¾à¤µ में माहौल à¤à¤¸à¤¾ है कि कहीं लालू जी का ही टिकट ना कट जाà¤à¥¤
नठबने पà¥à¤²à¥‡à¤¨à¥‡à¤Ÿà¥‹à¤°à¤¿à¤¯à¤® और मà¥à¤–à¥à¤¯ कोतवाली को छोड़ते हà¥à¤ हम जा पहà¥à¤à¤šà¥‡ हें पटना के वà¥à¤¯à¤¸à¥à¤¤à¤¤à¤® चौराहे के पास। डाक बà¤à¤—ला के चौराहे पर दिन के समय à¤à¥€ à¤à¥€à¤¡à¤¼ है। बस इतनी कृपा हे कि जॉम नहीं है। वैसे à¤à¥€ इस इलाके के खासमखास मारà¥à¤•ेटिंग कॉमà¥à¤ªà¤²à¥‡à¤•à¥à¤¸ हीरा पà¥à¤²à¥‡à¤¸ (Hira Place) और मौरà¥à¤¯ लोक ( Maurya Lok ) के होने से इस à¤à¥€à¤¡à¤¼ à¤à¤¾à¤¡à¤¼ से निज़ात पाना निकट à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में आसान नहीं है। चौराहे से बेली रोड को छोड़ते हà¥à¤ हम पटना के नृतà¥à¤¯ कला मंदिर से गà¥à¤œà¤° रहे हैं। बचपन के दिनों में रेडिओ सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ से लगे इस अहाते में कà¥à¤› कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤®à¥‹à¤‚ को देखने का अवसर मिला है। इमारत का नवीनीकरण होने से इसमें नई जान आई दीखती है।
चितà¥à¤° सौजनà¥à¤¯ : विकीपीडिया
मौरà¥à¤¯ होटल, संत जेवियरà¥à¤¸, गोलघर बाà¤à¤•ीपà¥à¤° हाई सà¥à¤•ूल, गाà¤à¤§à¥€ संगà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤²à¤¯ के पास से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ हà¥à¤ हम अब पटना के विशाल गाà¤à¤§à¥€ मैदान का चकà¥à¤•र लगा रहे हैं। कà¤à¥€ इसी मैदान में ककà¥à¤·à¤¾ चार में करीब पाà¤à¤š किमी पैदल चलते हà¥à¤ सà¥à¤•ूल की परेड में à¤à¤¾à¤— लेने आया था। वो आधी रात à¤à¥€ यहीं कटी थी जब दशहरा में सालाना होने वाले सांसà¥à¤•ृतिक कारà¥à¤¯à¤•à¥à¤°à¤® में पॉस नहीं मिलने के कारण बाहर बैठना पड़ा था। आज इसी मैदान के बगल में बिसà¥à¤•ोमान à¤à¤µà¤¨ के ऊपर à¤à¤• रिवालà¥à¤µà¤¿à¤‚ग रेसà¥à¤Ÿà¥à¤°à¤¾à¤ खà¥à¤² गया है जो आज के पटना की नई पहचान है।

गाà¤à¤§à¥€ मैदान का चकà¥à¤•र खतà¥à¤® करते ही हम à¤à¤• दूसरी à¤à¤¤à¤¿à¤¹à¤¾à¤¸à¤¿à¤• सड़क की ओर बढ़ रहे हैं जो पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ पटना यानि पटना सिटी का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° है। इस सड़क का नाम है अशोक राजपथ (Ashok Rajpath)। ये सड़क पटना विशà¥à¤µà¤µà¤¿à¤¦à¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के सà¤à¥€ मà¥à¤–à¥à¤¯ शिकà¥à¤·à¤£ संसà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ के लिठपà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ मारà¥à¤— है। इनमें से अधिकांश अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥‹à¤‚ के जमाने के बने हैं। गंगा नदी के समानानà¥à¤¤à¤° चलती ये सड़क बी à¤à¤¨ कॉलेज, पटना कॉलेज, मेडिकल कॉलेज (PMCH),साइंस कॉलेज , इंजीनियरिंग कॉलेज (NIT, Patna) होती हà¥à¤ˆ पटना सिटी की ओर बढ़ जाती है। अशोक राजपथ पर ही दà¥à¤°à¥à¤²à¤ पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥€ पांडà¥à¤²à¤¿à¤ªà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से à¤à¤°à¤ªà¥‚र खà¥à¤¦à¤¾à¤¬à¤–à¥à¤¶ लाइबà¥à¤°à¥‡à¤°à¥€ , बिहार का सबसे पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¤¾ रोमन कैथलिक चरà¥à¤š पादरी की हवेली, और मà¥à¤—ल समà¥à¤°à¤¾à¤Ÿ जहाà¤à¤—ीर के बेटे परवेज़ की बनाई पतà¥à¤¥à¤° की मसà¥à¤œà¤¿à¤¦ à¤à¥€ है। इंजीनियरिंग कॉलेज से आगे का रासà¥à¤¤à¤¾ राज पथ से जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ जन पथ हो जाता है। इसलिठपटना के बाशिंदे à¤à¥€ अपनी इन पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ धरोहरों की ओर बिड़ले ही रà¥à¤– करते हैं। रिकà¥à¤¶à¥‹à¤‚ और ठेलों से पटी सड़क के साथ किरासन तेल पर चलते आटो वसà¥à¤¤à¥à¤¤à¤ƒ आपकी नाम में दम करना वाले मà¥à¤¹à¤¾à¤µà¤°à¥‡ को चरितारà¥à¤¥ कर देते हैं।
छोटी पाटन देवी के मंदिर, गाय घाट के गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ की बगल से होते हà¥à¤ हम जरà¥à¤œà¤° हो रहे करीब 5.5 किमी à¤à¤¾à¤°à¤¤ के सबसे लंबे सेतà¥, महातà¥à¤®à¤¾ गाà¤à¤§à¥€ सेतॠ(जो पटना को उतà¥à¤¤à¤° बिहार से जोड़ता है) के नीचे से गà¥à¤œà¤° रहे हैं। ये पà¥à¤² सरकार को à¤à¤¾à¤°à¥€ राजसà¥à¤µ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है। पर पिछले कà¥à¤› सालों से इसके खंà¤à¥‹à¤‚ में निरंतर आती दरारों से इंजीनियर परेशान हैं।
चितà¥à¤° सौजनà¥à¤¯ : विकीपीडिया
गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के सामने की सड़क तो उतनी ही संकरी है पर राहत की बात ये हे कि गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में गाड़ी रखने की विशाल जगह है। गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के ठीक सामने रà¥à¤®à¤¾à¤²à¥‹à¤‚ की दà¥à¤•ान है इसलिठअगर सर पर साफा बाà¤à¤§à¤¨à¥‡ के लिठगर कोई कपड़ा ना à¤à¥€ लाà¤à¤ हों तो कोई बात नहीं।
वैसे कà¥à¤¯à¤¾ ये पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ आपके दिमाग में नहीं घूम रहा कि à¤à¥‡à¤²à¤®, चेनाब, रावी, सतलज और वà¥à¤¯à¤¾à¤¸ के तटों को छोड़कर, पंजाब से इतनी दूर इस गंगा à¤à¥‚मि में गà¥à¤°à¥ गोविंद सिंह का जनà¥à¤® कैसे हà¥à¤†? इस पà¥à¤°à¤¶à¥à¤¨ का जवाब देने के लिठइतिहास के कà¥à¤› पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ पनà¥à¤¨à¥‹à¤‚ को उलटना होगा।
इतिहासकार मानते हैं कि 1666 ई में सिखों के नवें धरà¥à¤®à¤—à¥à¤°à¥ गà¥à¤°à¥ तेग बहादà¥à¤° धरà¥à¤® के पà¥à¤°à¤šà¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤° के लिठपूरà¥à¤µà¥€ à¤à¤¾à¤°à¤¤ की ओर निकले. 1666 ई के आरंठमें वो पटना पहà¥à¤à¤šà¥‡ और अपने अनà¥à¤¯à¤¾à¤¯à¥€ जैतमल (Jaitmal )के यहाठठहरे। पास के इलाके में ही सलिस राय जौहरी की संगत (Salis Rai Johri”s Sangat) थी जिसके करà¥à¤¤à¤¾à¤§à¤°à¥à¤¤à¤¾ घनशà¥à¤¯à¤¾à¤®, गà¥à¤°à¥ का आशीरà¥à¤µà¤¾à¤¦ लेने के लिठउनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने परिवार सहित इस संगत में ले आà¤à¥¤ बाद में गà¥à¤°à¥ तेग बहादà¥à¤° अपनी पतà¥à¤¨à¥€ माता गà¥à¤œà¤°à¥€ को यहाठछोड़ बंगाल और आसाम की ओर निकल पड़े। 23 दिसंबर 1666 को इसी सलिस राय चौधरी संगत में बालक गà¥à¤°à¥ गोविंद सिंह का जनà¥à¤® हà¥à¤†à¥¤
ये गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤• विशाल हिसà¥à¤¸à¥‡ मेॠफैला हà¥à¤† है। मà¥à¤–à¥à¤¯ गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के चारों ओर दूर से आठहà¥à¤ à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹à¤‚ के रहने की वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ है। गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के ठीक सामने और पिछवाड़े में खà¥à¤²à¤¾ हिसà¥à¤¸à¤¾ है जहाठà¤à¤•à¥à¤¤à¤—ण बैठसकते हैं। गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ के मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° को पार कर हम सीधे चल पड़े। नीचे चितà¥à¤° में दिख रहा है पà¥à¤°à¤¾à¤—ण के अंदर से मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° की तरफ का नज़ारा…
तेज धूप में फरà¥à¤¶ बà¥à¤°à¥€ तरह जल रही थी। चपà¥à¤ªà¤² उतारते ही हम छायादार चादर के नीचे बने रासà¥à¤¤à¥‡ की ओर à¤à¤¾à¤—े। संगमरमर की सीढ़ियों पर कदम रखते ही तलवों के नीचे की गरà¥à¤®à¥€ गायब हो गई. बगल से सà¥à¤µà¤¾à¤¦à¤¿à¤·à¥à¤Ÿ हलवे का पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ ले कर हम जनà¥à¤®à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ की ओर बढ़े।
गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ में घà¥à¤¸à¤¨à¥‡ के पहले ही इस पीले रंग के इनकà¥à¤²à¥‹à¤¸à¤° में कà¥à¤› पातà¥à¤° रखे थे और गà¥à¤°à¥à¤®à¥à¤–ी में कà¥à¤› लिखा था। इसका कà¥à¤¯à¤¾ मतलब था ये तो कोई इस लिपि को जानने वाला ही बता सकेगा।
ये है गà¥à¤°à¥ गोविंद सिंह का जनà¥à¤® सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥¤ गà¥à¤°à¥ गोविंद सिंह इस सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर करीब साढ़े छः साल रहे। इस परिसर के ऊपरी कमरों में उनकी सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ से जà¥à¤¡à¤¼à¥€ कई धरोहरें जैसे चपà¥à¤ªà¤²à¥‡à¤‚, उनके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ पà¥à¤°à¤¯à¥à¤•à¥à¤¤ बाण, पवितà¥à¤° तलवार, उनके बचपन का पालना आदि मौजूद है।
मà¥à¤–à¥à¤¯ दà¥à¤µà¤¾à¤° से दिखती हà¥à¤ˆ गà¥à¤°à¥à¤¦à¥à¤µà¤¾à¤°à¥‡ की पूरी इमारत। फिलाहल इसकी गà¥à¤‚बद में कà¥à¤› काम चल रहा था।
और ये हैं हमारे सà¥à¤ªà¥à¤¤à¥à¤° जो सामने के खà¥à¤²à¥‡ पà¥à¤°à¤¾à¤—ण में कबूतरों के साथ चितà¥à¤° खिंचाने के लिठजलते तलवों की परवाह किठबिना दौड़े चले आà¤à¥¤
तो जब à¤à¥€ पटना आà¤à¤ तो इस पवितà¥à¤° सà¥à¤¥à¤² की सैर अवशà¥à¤¯ करें और अगर खास इसी को देखने आ रहे हों तो पटना सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर ना उतर कर अगले सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पटना साहेब पर उतरें। वहाठसे ये मातà¥à¤° à¤à¤• किमी की दूरी पर है।
वाह वाह मनीष, आपका आलेख पढ़ कर आनंद आ गया| महेश जी के लेख और अब यह वृतांत पढ़ कर पटना काफ़ी करीब लगने लगा है| बिहार कुछ समय से विकास में पिछड़ गया था, बस यही तमन्ना है की अब विकास की सूपरफास्ट एक्सप्रेस पकड़ ले|
पटना वमेन्स कॉलेज और पटना – दीघा को जोड़ने वाले किस्सेपढ़ कर बहुत मज़ा आया|
शुक्रिया मनीष !
Dear Manish,
I have been to this post earlier also through your blog. Thanks a lot for refreshing the memories once again. I want to visit Patna , Budh Gaya & Vaishali along with family, lets see when the wish will be completed.
Prof. Sab (Manish Khamesra) – How you type in Hindi ?
Mahesh
I asked same question a few post earlier and either Nandan or Manish suggested me to use,
http://www.quillpad.in/hindi/
I realized, its in-fact very easy to use. So please go ahead and enjoy ;-)
thanksssss Sir
मैंने आपका वो लेख पढ़ा। पाटन देवी के मंदिरों में शायद बहुत छोटे में गया हूँगा। आपने वहाँ फिर दर्शन करा दिए। वैसे बचपन से मुझे पटना में सबसे ज्यादा आकर्षण गोल घर का रहा है और आज भी सबसे पहले बाहर से आए किसी पर्यटक को मैं वही दिखाना पसंद करता हूँ।
My father was posted at Patna for about 5-6 years. His office was at ‘Ashok Rajpath’ (Publications Division) and my visits to Patna mostly meant spending evenings at Gandhi Maidaan. I haven’t explore Patna in great detail (done the tourist circuit thing though) in my many visits in the past.
I guess next time, I drive down to my hometown , I would try to take a break of couple of days at Patna and probably drive back via Gaya.
Thanks a lot Manish.
I think Patna Sahib, Patna Museum & Gol Ghar are the must see monuments of Patna. There was also a scheme for tourist boat with restraunt in River Ganges but I am not sure whether it is fully functional. But two days will be sufficient to cover Patna in totality.
Excellent writeup in Hindi.
Patna and Bihar are going through a change hopefully this time it will be a good one.
Thx Abhishek !
Manish,
Being out of touch with Hindi,I managed to go through the the whole piece.The slow reading ,and at little audible voice which I could hear myself ,was to take full “Maza” of the dish you have offered.Your style…”April KI TEZ DOPEHAR”..”Sarak Ki oar burh rehay hain”(I wonder if my Roman is right? Wish I could write in Hindi) “Tez dhoop mein fursh buri terha jul…” Your way of expressing reminded me like it was a LIVE commentary of slow march of the procession going on, making the listener walk in step with you.
I read it little loudly the second time to my grand-daughter,sitting behind me,and she was in Patna walking through Bailey road to Courts and finally to the “hot burning ground of the the holy place;even though we have never been to Patna
“Aap nein sama bandh diya” Janab
आपकी टिप्पणी पढ़ी । जानकर खुशी हुई कि मेरा आलेख आपके दिल से महसूस किया। किसी भी यात्रा विवरण में अगर हम पाठक को उस जगह को कुछ हद तक ही सही वहाँ पहुँचा पाएँ तो प्रयास सार्थक महसूस होता है।
जतिंद्र जी हिंदी में लिखना अब बहुत कठिन नहीं रह गया है। हि्दी के कई सॉफ्टवेयर जैसे Baraha IME, Takhti, आदि आपको नेट पर आसानी से मिल जाएँगे। ये सारे साफ्टवेयर अंग्रेजी के फोनेटिक की बोर्ड के सिंद्धांत पर चलते हैं। जैसे ब लिखने के लिए b, स लिखने के लिए s। हाँ कुछ keys अलग होती हैं जो इस्तेमाल करते करते समझ आती हैं।
ऊपर मनीष खामसेरा ने जो लिंक दी है वो Quillpad की है । उसका प्रयोग के लिए किसी साफ्टवेयर को डाउनलोड करने की जरूरत नहीं है। आप online रहते हुए उसका प्रयोग कर सकते हैं। ऐसा ही एक टूल गूगल का भी है।
http://www.google.com/transliterate/
यहाँ आप रोमन में हिंदी लिखिए खुद बा खुद वो देवनागरी में बदल जाएगा।
Hi Manish,
This was one of its kind brief.
Congratulations to you for posting such a nice experience.
Keep it up.
शुक्रिया प्रवेश !
मनीष बाबू,
अब आपके इस अविस्संनरीय आलेख के बारे में, मैं चाहते हुए भी अडेक्वेट शब्द नहीं ढूंड पा रहा हूँ.
ऐसा आलेख पड़ने का सौभाग्या बहुत कम मिलता है.
मैं कभी भी पटना नहीं गया हूँ. आप का आलेख पढ़ कर ऐसा लग रहा है की मैं अभी अभी पटना से लौटा हूँ.
आपके अगले आलेख का इंतेज़ार रहेगा
पटना मेरी किशोरावस्था का शहर रहा है। ज़िंदगी के पन्द्रह साल यहीं गुजारे हैं मैंने इसलिए यहाँ की इमारतों से मेरी व्यक्तिगत यादें जुड़ी हैं जिनमें से कुछ को आपके सम्मुख रख पाया हूँ। आपको मेरा ये प्रयास रुचिकर लगा जानकर प्रसन्नता हुई।
very gud
Thx…
Really, the content you have written here Manish is way too good. wakai dilchasp and pictures provided here are really awesome.
Loads of appreciation for u!
Firstly I want to clarify that as mentioned in the post some of the pictures of High Court, Gandhi Maidaan, PWC, Biscoman. Gandhi Setu are not taken by me. I used them to support my narrative.
You loved the content, I am not surprised. Because its our city. Isn’t it ?
Dear Manish,
Today, I read your post again because Patna is on my wish list now – thanks to an invitation from a friend to visit the historical city.
I can’t understand why all Hindi comments are being rendered in garbled state these days. It can’t be fault of wordpress because many other wp sites are fully supportive to the Hindi Unicode fonts. I complained about it to the team also but may be Hindi is no more their area of concern! Nandan! Are you reading this or not?
Well, I am bookmarking this post because I would be needing all the details soon. Thank you for explaining Patna in such a lucid manner. Bye for now.
Yes Sushant Sir. I am. Not been able to spend time to figure out the reason. We had to move Ghumakkar to a new host (and then again to another one) and this thing broke in between. Would try to fix.