उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के मथà¥à¤°à¤¾ जिले में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¤• छोटा सा नगर है वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ जहाठà¤à¤—वान शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ ने अपने बालà¥à¤¯à¤•ाल का अधिकाà¤à¤¶ समय वà¥à¤¯à¤¤à¥€à¤¤ किया था। यह नगर शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ के जनà¥à¤®à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ मथà¥à¤°à¤¾ से मातà¥à¤° 10 – 15 कोलोमीटर की दूरी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है, जहां राधा-कृषà¥à¤£ के पà¥à¤°à¥‡à¤® रस की अनà¥à¤à¥‚ति शà¥à¤°à¥€ बांके बिहारी मंदिर और पà¥à¤°à¥‡à¤® मंदिर के पà¥à¤°à¤¾à¤‚गण में कदम रखते ही हो जाती है।
धारà¥à¤®à¤¿à¤• यातà¥à¤°à¤¾ करने के नाम पर हमारा परिवार केवल हरिदà¥à¤µà¤¾à¤°, ऋषिकेश, शà¥à¤°à¥€ बालाजी (मेहंदीपà¥à¤°) और वैषà¥à¤£à¥‹ देवी तक ही सीमित रहा है तथा दिलà¥à¤²à¥€ से अतà¥à¤¯à¤‚त ही समीप होने के बावजूद à¤à¥€ हम कà¤à¥€ मथà¥à¤°à¤¾-वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ की यातà¥à¤°à¤¾ न कर सके। किनà¥à¤¤à¥ यमà¥à¤¨à¤¾ à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ के नवनिरà¥à¤®à¤¾à¤£ और हमारी पारिवारिक कार के आगमन के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ अब तो मन में यह आशा बलवती होती गयी की वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ अवशà¥à¤¯ ही जाना है।
à¤à¤• दिन बातो ही बातो में मैंने अपनी माताशà¥à¤°à¥€ और बहना से पूछा की यदि आगामी शनिवार-रविवार को हम वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ की à¤à¤• छोटी सी यातà¥à¤°à¤¾ पर चलने की योजना बनाये तो कैसा रहेगा? विचार सà¤à¥€ को पसंद आया परिणमतः दिनांक 20.07.2013 को हम सà¤à¥€ (ममà¥à¤®à¥€, छोटी बहन, मैं और हमारी कार) तैयार थे अपनी पहली वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ यातà¥à¤°à¤¾ के लिà¤à¥¤ आप सà¤à¥€ को लग रहा होगा की यहाठकार का नाम लेना तो अनिवारà¥à¤¯ नहीं था किनà¥à¤¤à¥ मितà¥à¤°à¥‹ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¾ à¤à¤µà¤‚ सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से परिवार के साथ लमà¥à¤¬à¥€ यातà¥à¤°à¤¾ पर जाने से पूरà¥à¤µ अपनी कार का निरीकà¥à¤·à¤£ करवाना अतà¥à¤¯à¤‚त ही आवशà¥à¤¯à¤• होता है।
पहली बार वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ की यातà¥à¤°à¤¾ करने हेतॠहम सà¤à¥€ लोग अतà¥à¤¯à¤‚त ही उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ थे और अपने इसी उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹ के चलते उस दिन हम तीनो सà¥à¤¬à¤¹ 04.30 बजे से उठाकर जà¥à¤Ÿ गठअपनी पैकिंग करने और नाशà¥à¤¤à¤¾ बनाने में। इन सब कामो को पूरा करते-2 हमें तकरीबन 08 बज गठघर से निकलते हà¥à¤ लेकिन अà¤à¥€ तो पूरा दिन अपने पास था तो यही सोचते हà¥à¤ हमने गाड़ी का इंजन सà¥à¤Ÿà¤¾à¤°à¥à¤Ÿ किया और निकल पड़े à¤à¤• à¤à¤¸à¥‡ सफ़र के लिठजिसका हमें बिलकà¥à¤² à¤à¥€ पूरà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤®à¤¾à¤¨ न था। दिलà¥à¤²à¥€ के दà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• का तो कोई जवाब ही नहीं है पाठको, सà¥à¤¬à¤¹-2 वो à¤à¥€ शनिवार का दिन जव अधिकतर सरकारी और अरà¥à¤§-सरकारी कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ बंद रहते है, à¤à¤¸à¥‡ में à¤à¥€ टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• में रà¥à¤•-2 कर चलना थोडा परेशान करता है, लेकिन अगर मन उतà¥à¤¸à¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ हो और à¤à¤• अनजान सफ़र की सोची हà¥à¤¯à¥€ मंजिल आपके इंतज़ार में बैठी हो तो इन सब से आपका लकà¥à¤·à¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ में कोई अधिक पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ नहीं पड़ता। धीरे-2 नौà¤à¤¡à¤¾ और फिर गà¥à¤°à¥‡à¤Ÿà¤° नौà¤à¤¡à¤¾ में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने के उपरांत मौसम à¤à¥€ समय के साथ अपने मूड में परिवरà¥à¤¤à¤¨ कर रहा था। गà¥à¤°à¥‡à¤Ÿà¤° नौà¤à¤¡à¤¾ का हरियाली से ओत-पà¥à¤°à¥‹à¤¤ मारà¥à¤— जो सीघे परी-चौक तक जाता है तथा गà¥à¤°à¥‡à¤Ÿà¤° नौà¤à¤¡à¤¾ à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ वे की सीमा à¤à¥€ यही से आरंठहोती है, उसकी सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°à¤¤à¤¾ और निरंतर चलते टà¥à¤°à¥ˆà¤«à¤¿à¤• में आप शायद कà¤à¥€ निराश नहीं हो सकते। साफ़ सà¥à¤¥à¤°à¥€ लमà¥à¤¬à¥€ सड़क और उसके दोनों तरफ फैली हरित आà¤à¤¾ आपके सफ़र को और अधिक सà¥à¤•ून à¤à¤°à¤¾ बना देती है। पाठको यहाठविशेष रूप से à¤à¤• बात और आप सà¤à¥€ के समà¥à¤®à¥à¤– बताना चाहूà¤à¤—ा की उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ सरकार ने गà¥à¤°à¥‡à¤Ÿà¤° नौà¤à¤¡à¤¾ à¤à¤•à¥à¤¸à¤ªà¥à¤°à¥‡à¤¸ वे के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ à¤à¤• अतà¥à¤¯à¤‚त ही सà¥à¤—म पथ तैयार किया है जो दिलà¥à¤²à¥€ को आसानी से अलिगढ़, वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨, मथà¥à¤°à¤¾ और आगरा से जोड़ता है। यह पथ न केवल आपके बहà¥à¤®à¥‚लà¥à¤¯ समय की बचत करता है अपितॠआपको अवसर पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करता है अपने मितà¥à¤°à¥‹ वॠपरिवारजनों के साथ खà¥à¤²à¥‡ आकाश के नीचे दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ के शोरोगà¥à¤² और पà¥à¤°à¤¦à¥‚षित वायॠसे रहित कà¥à¤› पल बिताने का जहाठदूर तक विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ कृषि à¤à¥‚मि और उस पर उड़ाते पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का कलरव मातà¥à¤° ही मन को à¤à¤• अलग दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ से जोड़ देता है। किनà¥à¤¤à¥ पाठको यह अवशà¥à¤¯ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखे की इस मारà¥à¤— पर कà¥à¤› à¤à¤¸à¥‡ à¤à¥€ लोग यातà¥à¤°à¤¾ करते है जो केवल अपने गति पà¥à¤°à¥‡à¤® की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ और संतà¥à¤·à¥à¤Ÿà¤¿ हेतॠअपने वाहन को वायà¥à¤¯à¤¾à¤¨ बनाकर उसे बेतहाशा à¤à¤—ाते हà¥à¤ हताशा का शिकार बन जाते है। अतः मेरा आप सà¤à¥€ से यह विनमà¥à¤° निवेदन है की इस पथ पर 100 किमी पà¥à¤°à¤¤à¤¿ घंटा की रफ़à¥à¤¤à¤¾à¤° से आगे कदापि न बढे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि इतनी गति ही परà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ है आपको अपने गंतवà¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ तक पहà¥à¤à¤šà¤¾à¤¨à¥‡ हेतà¥à¥¤
खैर चलिठअब हम आगे बढ़ते है और बात करते है पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¥ƒà¤¤à¤¿ की। पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ काल की ठंडी-2 बयार हमारे मà¥à¤– से लेकर हà¥à¤°à¤¦à¤¯ तक सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ कर रही थी तथा उससे पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ आनंद का वरà¥à¤£à¤¨ करना तो शायद मेरे लिठअसंà¤à¤µ हो, आखिर पà¥à¤°à¤•ृति से पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हर à¤à¤• वसà¥à¤¤à¥ वॠपदारà¥à¤¥ अमूलà¥à¤¯ जो होते है तथा जिनका हम लोग बहà¥à¤¤ ही निरà¥à¤®à¤®à¤¤à¤¾ से दोहन किये जा रहे है, परिणामतः केदारघाटी जैसी घटनाठजनà¥à¤® ले रही है।
अब वकà¥à¤¤ हो चला था चà¥à¤‚गी कर देने का जिसका संतरी रंग से बना साइन बोरà¥à¤¡ आप को दूर से ही दिखाई दे जाता है। दिलà¥à¤²à¥€ से वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ तक का चà¥à¤‚गी कर रॠ220/- लगता है तथा रसीद देते हà¥à¤ चà¥à¤‚गी करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ आपको यह जरूर बताता है की वापसी की रसीद à¤à¥€ अà¤à¥€ कटा लेने पर तकरीबन 10% तक की बचत की जा सकती है। किनà¥à¤¤à¥ उसके लिठआपको समय-सीमा का धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ रखना पड़ता है अरà¥à¤¥à¤¾à¤¤ अगले 24 घंटे में वापसी निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ रूप से करनी है। यहाठसे थोड़ा और आगे बढ़ने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ खान-पान हेतॠरेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤‚ट à¤à¥€ उपलबà¥à¤§ है किनà¥à¤¤à¥ रेट शायद आपको जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ वाजिब न लगे। उदाहरणारà¥à¤¥ चाय का à¤à¤• कप रॠ20/- में मिलता है और चाय का सà¥à¤µà¤¾à¤¦ तो à¤à¤¸à¤¾ की मानो चà¥à¤¯à¤µà¤¨à¤ªà¥à¤°à¤¾à¤¶ का तरल रूप पी रहे है। à¤à¤¸à¤¾ शायद इसलिठकà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि à¤à¤• ही बरà¥à¤¤à¤¨ में चायपतà¥à¤¤à¥€, अदरक और इलायची को बारमà¥à¤¬à¤¾à¤° उबालने से चाय किसी आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¿à¤• पदारà¥à¤¥ का रूप ले लेती है। चाय का पà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¾ गटकने के साथ ही बारिश की बूंदे रिमà¤à¤¿à¤®-2 बरसने लगी और उसके बाद बारिश का जो दौर आरमà¥à¤ हà¥à¤† उसका वरà¥à¤£à¤¨ तो सà¤à¥€ नà¥à¤¯à¥‚ज चैनलà¥à¤¸ पहले ही कर चà¥à¤•े है। जà¥à¤žà¤¾à¤¤ हो की दिनांक 20.07.2013 को दिली सहित अनà¥à¤¯ सà¤à¥€ कà¥à¤·à¥‡à¤¤à¥à¤°à¥‹ में à¤à¤¾à¤°à¥€ बारिश हà¥à¤¯à¥€ थी जो की मानसून सीजन की पहली और सबसे अधिक बारिश थी और जिसने जगह-2 वाटर लोगिंग की समसà¥à¤¯à¤¾ पैदा कर दी थी। अब तो à¤à¤¸à¤¾ लग रहा था जैसे जà¥à¤²à¤¾à¤ˆ माह में ही आकाश और धरती फालगà¥à¤¨ मास में आने वाली होली का आनंद ले लेना चाहते हो। दूर-दूर तक चलते वाहनों के हिलते वाईपर और जगमगाती लाल-पीली लाईटे उस बरसते साफ़-सफ़ेद जल में à¤à¤• अलग ही दृशà¥à¤¯ की रचना कर रहे थे।
थोड़ा और समय बीतने के साथ ही हमें अगला साईन बोरà¥à¤¡ दिखायी दिया जिस पर यह अंकित था की वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ जाने हेतॠकृपया बाय़े मà¥à¤¡à¥‡à¥¤ बाय़े मà¥à¤¡à¤¤à¥‡ ही आप पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करते है वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ के खेतो में जिनके बीचोबीच आने और जाने के लिठà¤à¤• पकà¥à¤•ी सड़क बनी हà¥à¤¯à¥€ है जिस पर हर पà¥à¤°à¤•ार का वाहन आसानी से चल सकता है। यह तकरीबन 6-7 किमी लंबा संकरा किनà¥à¤¤à¥ सà¥à¤—म रासà¥à¤¤à¤¾ है जो आपको वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ के मà¥à¤–à¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ (परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ मारà¥à¤— जो की इसà¥à¤•ोन मंदिर के समीप है) तक ले जाता है।
इस मारà¥à¤— पर à¤à¤• छोटा सा पकà¥à¤•ा पà¥à¤² à¤à¥€ है जो की यमà¥à¤¨à¤¾ नदी के ऊपर बना हà¥à¤† है तथा यहां से आप यमà¥à¤¨à¤¾ के दरà¥à¤¶à¤¨ आसानी से कर सकते है बस केवल आपको अपने वाहन को पà¥à¤² के ऊपर ही à¤à¤• साइड लगा कर उसकी पारà¥à¤•िंग लाइट आन करनी है। पाठको यमà¥à¤¨à¤¾ नदी का जल यहाठइतना सà¥à¤µà¤šà¥à¤› है की मेरे जैसे दिलà¥à¤²à¥€ वासी अपनी करनी पर शत पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤¶à¤¤ शरà¥à¤®à¤¿à¤¨à¥à¤¦à¤¾ हो जाये।
वृनà¥à¤¦à¤¾à¤µà¤¨ के परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ मारà¥à¤— में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने (11 बजे) के उपरांत ही आपको बहà¥à¤¤ सारे विदेशी कृषà¥à¤£ à¤à¤•à¥à¤¤ राधे-राधे और हरे कृषà¥à¤£-हरे कृषà¥à¤£ का जाप करते हà¥à¤ दिखाई और सà¥à¤¨à¤¾à¤ˆ पड जाते है। बारिश के पानी का वेग à¤à¥€ उनकी शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ में किसी पà¥à¤°à¤•ार की कमी नही कर पा रहा था। परिकà¥à¤°à¤®à¤¾ मारà¥à¤— पर धीरे-2 आगे बढ़ते हà¥à¤ हमें किनारे सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ शà¥à¤°à¥€ महावर वैशà¥à¤¯ à¤à¤µà¤¨ नामक à¤à¤• धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ दिखाई दी जिसके à¤à¥€à¤¤à¤° गाडी घà¥à¤¸à¤¾à¤¨à¥‡ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ वहां उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ करà¥à¤®à¤šà¤¾à¤°à¥€ ने मातà¥à¤° रॠ600/- में à¤à¤• वातानà¥à¤•ूलित कमरा अगले à¤à¤• दिन के लिठकिराठपर दे दिया। कमरा छोटा था किनà¥à¤¤à¥ साफ़ था और फिर कमरे में रहना à¤à¥€ किसे था हम तो केवल गाड़ी के लिठपारà¥à¤•िंग सà¥à¤ªà¥‡à¤¸ और रातà¥à¤°à¤¿ में सोने के लिठकेवल à¤à¤• उचित सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ चाहते थे। बाकी समय तो हमें घूमते हà¥à¤ बिताना था किनà¥à¤¤à¥ यहाठबारिश ने हमारा सारा पà¥à¤²à¤¾à¤¨ खराब कर दिया और लगातार हो रही बारिश ने हमें मजबूर कर दिया कमरे के अनà¥à¤¦à¤° खà¥à¤¦ को बंद रखने के लिये। अब तो केवल धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ की बलà¥à¤•ोनी ही बची थी जहा से हम बाहर का नजारा देख कर मौसम का लà¥à¤¤à¥à¤«à¤¼ उठा सकते थे।
तकरीबन शाम के चार बजे बारिश का सिलसिला थमने लगा और हम सà¤à¥€ ने बाहर निकलकर शà¥à¤°à¥€ बांकॆ बिहारी जी के दरà¥à¤¶à¤¨ करने के लिठसà¥à¤µà¤¯à¤‚ को तैयार किया। बाहर निकलते ही à¤à¤• साइकिल रिकà¥à¤¶à¤¾ वाले से रॠ20/- पà¥à¤°à¤¤à¤¿ सवारी पर किराया तय हà¥à¤¯à¤¾ जो की दà¥à¤—à¥à¤¨à¤¾ है कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि वापासी में ऑटो रिकà¥à¤¶à¤¾ ने हम से केवल रॠ10 /- पà¥à¤°à¤¤à¤¿ सवारी लिये। पाठको शà¥à¤°à¥€ बांके बिहारी जी के मंदिर पà¥à¤°à¤¾à¤‚गन में कदम रखते ही हमें यह अहसास हो गया था की अब अगले कà¥à¤› कà¥à¤·à¤£à¥‹à¤‚ में जो होने वाला है वैसा शायद ही कà¤à¥€ हमने देखा हो। दूर दूर से आये शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ के à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹ से पूरा मंदिर अटा पडा था, ऊपर से सà¤à¥€ के हाथो वॠसर में रखे हà¥à¤ बड़े-2 सनà¥à¤¦à¥‚क आपको अनà¥à¤¦à¤° जाने से रोक रहे थे। पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤° के नाम पर केवल à¤à¤• संकरी गली थी जिससे लॊग आ à¤à¥€ रहे थे और जा à¤à¥€ रहे थे। साथ ही इस गली में साइड में बैठे पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ (पैडा) वालो की दूकान, उफ़à¥à¤«à¤¼â€¦à¥¤ à¤à¤°à¤¸à¤• पà¥à¤°à¤¯à¤¾à¤¸ करने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ à¤à¥€ हम तीनो मंदिर में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करने से वंचित रह गठऔर उस पर तà¥à¤°à¥à¤°à¤¾ यह की कà¥à¤¯à¤¾ महिला और कà¥à¤¯à¤¾ बà¥à¤œà¥à¤°à¥à¤—-बचà¥à¤šà¥‡, सà¤à¥€ धकà¥à¤•ामà¥à¤•à¥à¤•ी का शिकार हो रहे थे। यह साफ़-साफ़ मंदिर पà¥à¤°à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ की ही गलती है की पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ और निकास की कोई उचित वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¥à¤¥à¤¾ नही की गयी है तथा इस तरफ धà¥à¤¯à¤¾à¤¨ देने की अति आवशà¥à¤¯à¤•ता है। थके-मंदे, पसीने में तर-बतर हम लोगो ने फैसला किया की शà¥à¤°à¥€ बांके बिहारी जी को बाहर से ही हाथ जोड कर पà¥à¤°à¤£à¤¾à¤® करते है और इसà¥à¤•ान मंदिर चलते है।
अब बात करते है इसà¥à¤•ान मंदिर की। यह मंदिर अपने आप में अतà¥à¤¯à¤‚त ही अनूठा है। यहाठआपको à¤à¤œà¤¨-कीरà¥à¤¤à¤¨ मंडली के रूप में बहà¥à¤¤ सारे विदेशी (अंगà¥à¤°à¥‡à¤œ) शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤²à¥ दिखायी देते है जो हिनà¥à¤¦à¥€ à¤à¤œà¤¨à¥‹à¤‚ को सà¥à¤µà¤¯à¤‚ गाते है और आप को मजबूर कर देते है शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ के रंग में रंग जाने को। विदेशी महिलाठठेठहिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€ संसà¥à¤•ृति में डूबी हà¥à¤¯à¥€ सी लगती है और इस बात का पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ आपको तà¤à¥€ पापà¥à¤¤ हो जाता है जब आप उन के माथे पर लाल बिंदी, हाथो में चूडिया और शरीर पर गोपी वसà¥à¤¤à¥à¤° देखते है। गोपी वसà¥à¤¤à¥à¤° à¤à¤• ख़ास तरह का परिधान है जो लगà¤à¤— साडी का ही रेडीमेड रूप है। विदेशी पà¥à¤°à¥à¤· à¤à¥€ अपने सर के सारे बाल मà¥à¤‚डा कर और सफ़ेद अंगरखा पहन कर लींन है शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ के गà¥à¤£à¤—ान मे। पाठको यह सोच कर ही मेरा मन पà¥à¤°à¤«à¥à¤²à¥à¤²à¤¿à¤¤ हो जाता है की विदेशी परमà¥à¤ªà¤°à¤¾ को तà¥à¤¯à¤¾à¤— कर वरà¥à¤·à¥‹ से यह विदेशी नागरिक हमारे ही देश में हमारी ही संसà¥à¤•ृति की रकà¥à¤·à¤¾ में दिन रात लगे हà¥à¤ है.
इसà¥à¤•ान मंदिर में कà¥à¤› पल बिताने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ अब सà¤à¥€ को à¤à¥‚ख लगने लगी थी सो हमने होटल à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€ में à¤à¥‹à¤œà¤¨ करना तय किया कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि यहाठइस होटल का नाम थोड़ा जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ही पà¥à¤°à¤¸à¤¿à¤¦à¥à¤¦ है। होटल के रेट ठीक-ठाक है किनà¥à¤¤à¥ à¤à¥‹à¤œà¤¨ की गà¥à¤£à¤µà¤¤à¤¾ शायद उतनी अचà¥à¤›à¥€ नही थी जितना लोगो के मà¥à¤– से सà¥à¤¨ रखा था। घूमते हà¥à¤ हमें रातà¥à¤°à¤¿ के दस बज गठऔर नींद à¤à¤¾à¤°à¥€ आà¤à¤–ों से हमने अपनी धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤²à¤¾ की तरफ रà¥à¤– किया।
हमारी धरà¥à¤®à¤¶à¤¾à¤² के केयरटेकर, जो की वयवहार से बहà¥à¤¤ ही नेक और सहायक थे ने हमें बताया की कà¥à¤› ही दूरी पर पà¥à¤°à¥‡à¤® मंदिर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ है जो की दरà¥à¤¶à¤¨à¥€à¤¯ होने के साथ ही कला की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से अतà¥à¤¯à¤‚त ही मनोरम à¤à¥€ है। बस फिर कà¥à¤¯à¤¾ था, अगली पà¥à¤°à¤¾à¤¤à¤ƒ रविवार के दिन हम सà¤à¥€ निकल पड़े पà¥à¤°à¥‡à¤® मंदिर की वासà¥à¤¤à¥à¤•ला के दरà¥à¤¶à¤¨ करने और उसके पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ कला के जिस रूप से हमारा साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•ार हà¥à¤¯à¤¾ वह अविसà¥à¤®à¤°à¤¨à¥€à¤¯ है। मूरà¥à¤¤à¤¿ कला और उन पर रंगों की छटा का अनूठा संगम आपको विसà¥à¤®à¤¯ कारी आà¤à¤¾à¤¸ करा देता है। इस मंदिर में केवल मूरà¥à¤¤à¤¿à¤•ला के माधà¥à¤¯à¤® से ही शà¥à¤°à¥€ कृषà¥à¤£ के जनà¥à¤® से से लेकर कंस वध तक का वरà¥à¤£à¤¨ किया गया है जिसका कोई जवाब नही है। इस मंदिर की खूबसूरती का अंदाजा आप इन फोटो को देखकर लगा सकते है।
पà¥à¤°à¥‡à¤® मंदिर में तकरीबन 2 घंटे बिताने, à¤à¤°à¤ªà¥‡à¤Ÿ à¤à¥‹à¤œà¤¨ करने और रासà¥à¤¤à¥‡ के लिठखाना पैक करवाने के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤ हम सà¤à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ बाजार में लौट आये कà¥à¤› सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ वसà¥à¤¤à¥à¤“ और मिठाईयों का सà¥à¤µà¤¾à¤¦ चखने के लिये। यहां रॠ250/- पà¥à¤°à¤¤à¤¿ किलो की दर से आपको यहाठका मशहूर पैडा मिल जाता है तथा सारा बाजार राधा-कृषà¥à¤£ की तसà¥à¤µà¥€à¤°à¥‹à¤‚ वाली टीशरà¥à¤Ÿ, चादरों, वॠअनेक वसà¥à¤¤à¥à¤“ से à¤à¤°à¤¾ मिलता है।
अरुण,
सर्वप्रथम आपका घुमक्कड़ पर स्वागत है। आपकी पहली पोस्ट सराहनीय है, छायाचित्र तथा लेख दोनों ही रोचक लगे।
एक सलाह देना चाहूँगा, यदि आप फोटो पर अनुशीर्षक (केप्शन) दे ही रहे हैं तो फिर वाटरमार्क देने की जरुरत नहीं है। केप्शन लिखने में भी सुधार की गुंजाइश है, जैसे आपने इस्कोन मंदिर के झूमर को केप्शन दिया है वृंदावन।
घुमक्कड़ पर लिखते रहें। धन्यवाद।
मुकेश जी,
सर्वप्रथम आपको धन्यवाद कहना चाहूंगा जो आपने छोटे भाई की रचना को पसंद किया और उसे सराहा भी।
आपके द्वारा अंकित की गयी त्रुटी के विषय में केवल इतना ही कहना चाहूंगा की चित्रों में अनुशीर्षक मैंने अवश्य दिए थे किन्तु वाटरमार्क शायद घुमाक्कर द्वारा अंकित किये गए है। अंततः अनेक भूलो द्वारा अर्जित सदज्ञान को ही अनुभव कहते है, अतः आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता मुझे भविष्य में भी पड़ती रहेगी।
मेरी प्रथम पोस्ट को सर्वप्रथम पढ़ने और मुझे प्रेरित करने हेतु आपका एक बार फिर से धन्यवाद। कृपया स्नेह बनाए रखे।
अरुण
Hi Arun
Welcome to Ghumakkar!!!
Very nice post with beautiful pics.
This year, we too visited the same place i.e. Mathura, Gokul, Vrindavan. Agra etc. And a few of my articles are also available on Ghumakkar.
While reading your post, it seems remembering all those moments once again.
अवतार जी,
आपके द्वारा की गयी सराहना मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि मैंने आपके अधिकाँश लेख पढ़े है जिनमे लैंसडाउन, मथुरा, अजमेर शरीफ, आदि लेख मुझे भी काफी पसंद आये थे। यदि वास्तविकता की तह तक जायेंगे तो मुझे यह स्वीकारने में कोई आपत्ति नही है की आपकी रचनाओ और उनमे प्रयोग की गयी लेखन शैली को पढ़ कर ही मैं घुमक्कर पर लिखने हेतु उत्प्रेरित हुआ था अन्यथा अभी तक तो केवल कार्यालय की पत्रिका की में ही छोटे-मोटे लेख लिख लिया करता था।
कृपया प्रेम बनाए रखे। धनयवाद
अरुण
Very well written and detailed post. Photos so good. Your car also beautiful. Thanks a lot.
Surinder Sir,
Thanks a lot for blessing me with full hands through your comments on my article.
Arun
Very well written !
सेमवाल जी,
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आशा करता हूँ की भविष्य में भी आपसे अपना पहाडी प्रेम प्राप्त होता रहेगा।
अरुण
अवतार जी,
आपके द्वारा की गयी सराहना मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि मैंने आपके अधिकाँश लेख पढ़े है जिनमे लैंसडाउन, मथुरा, अजमेर शरीफ, आदि लेख मुझे भी काफी पसंद आये थे। यदि वास्तविकता की तह तक जायेंगे तो मुझे यह स्वीकारने में कोई आपत्ति नही है की आपकी रचनाओ और उनमे प्रयोग की गयी लेखन शैली को पढ़ कर ही मैं घुमक्कर पर लिखने हेतु उत्प्रेरित हुआ था अन्यथा अभी तक तो केवल कार्यालय की पत्रिका की में ही छोटे-मोटे लेख लिख लिया करता था।
कृपया प्रेम बनाए रखे। धनयवाद
अरुण
Surinder Sir,
Thanks a lot for blessing me with full hands through your comments on my article.
Arun
एक शानदार लेख और उतने ही सुंदर चित्र..वृंदावन घुमाने के लिए धन्यवाद,एक्सप्रेस वे पर लगभग हर गाड़ी की स्पीड 130 से उपर ही रहती है..जबकि एक्सप्रेस वे की बनावट ऐसी है की पुराने टायर इतनी गति मे जल्द ही गर्म हो कर फटने की संभावना रहती है..पर शायद लोग ये जानकर् भी अंजान बन जाते है..खैर …..एक बार फिर से धन्यवाद वृंदावन घुमाने के लिए…
राकेश जी,
प्रसंशा के लिए धन्यवाद और हां आपके द्वारा किये गए चायल वर्णन के हम भी कायल हो गए है।
कृपया प्रेम बनाये रखे।
अरुण
Arun Ji..Welcome on Ghumakkar..
Very nice post..Photos are too good.
We, too ,have visited Vrindavan,Mathura and Agra last year but still it is not pen down on Ghumakkar.
this post has just refreshed my memories .
सहगल जी,
घुमाक्कर के माध्यम से आप जैसे सभी अनुभवी पाठको द्वारा मेरे यात्रा वृतांत को मिले स्नेह के लिए मैं आप सभी का अत्यंत आभारी हूँ।
कृपया स्नेह बनाये रखे।
अरुण
प्रिय अरुण, इन पावन नवरात्रों में घुमक्कड़ के इस पवित्र मंच, मस्त धरातल, मनचले माहौल तथा बुद्धिजीवी परिवार में आपका हार्दिक स्वागत है, मथुरा-वृन्दावन तो कई बार, बार-बार जाने का मौका मिला मगर ‘प्रेम मंदिर’ के दर्शन नहीं किये, आपने चित्रों द्वारा इतने अच्छे दर्शन करवाए की पूरा घुमक्कढ़.कॉम कृष्णमय हो गया. आशा है भविष्य में आपके यात्रा स्मरण जल्दी-२ पढने को मिलेंगे.
धन्यवाद.
त्रिदेव जी,
श्री राधा कृष्ण जी की कृपा से ही यह संभव हो सका की अपने वृन्दावन यात्रा वृतांत के रूप में आप जैसे पाठको के ह्रदय में मुझे स्थान प्राप्त हुआ।
कृपया स्नेह बनाये रखे।
अरुण
Welcome aboard Arun.
Very happy to see your work here. You are right that after Yamuna Expressway, Agra, Mathura are other cities are now much more closer to Delhi. Regarding the speed-limit, I feel that they should allow at least 120 KMPH (if not 130-140) on this road since the quality of the tar is really world class. Since we do not see these kind of roads (esp in UP),it is hard for us to fancy that one can actually drive at 120 safely.
The log has come out well.
Please also sign-up for a gravatar/profile-pic. Wishes.
नंदन जी,
आपके द्वारा की गयी सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।
यमुना एक्सप्रेस वे पर 120 किमी/प्रघ की रफ़्तार से यात्रा करना कोई अधिक कठिन कार्य नही है किन्तु कई बार वाहन के टायर इतनी गति के अनुकूल नही बने होते तथा उनके फटने और फिसलने की संभावना अधिक होती है। अत्यधिक गति होने के कारण कई बार चालक सावधानी पूर्वक निर्णय नहीं ले पाते और ब्रेक लगाने या फिर लेंन बदलने के दौरान गलती कर बैठते है।
आखिरकार अपनी सुरक्षा के साथ-साथ हमें अन्य लोगो की सुरक्षा का भी ध्यान रखना होता है।
धनयवाद
अरुण
Hi Arun,
Welcome Aboard!
Yes, the Yamuna Expressway has made things a lot easier. Now only if they could build the service road so that I could get to my village even faster. You can thank me for helping build the road on about 2 acres of our farmland!
Monsoon is enjoyed even more with the car windows down!
Your experience at Bankey Bihari temple is the reason I avoid going to temples – I just cant take the crowds and jostling and zero arrangments.
I have never heard of the Prem Mandir – the photos are pretty.
Enjoyed the post and hope to read more of your posts.
सिंह साहब,
अब तो आपको दो बार धनयवाद कहना पडेगा, एक आपकी सराहना के लिए और दूसरा आपके भूदान हेतु।
बारिश की फुहारो का आनंद लेने हेतु हमारा मन भी लालायित था किन्तु जल का वेग इतना अधिक था की शीशा खोलने का साहस हम नहीं कर सके। आप यही से दृश्य की कल्पना कर सकते है की तकरीबन 180 किमी चलने के उपरान्त भी गाड़ी पर धूल का एक कण तक नही था। अपितु टायर भी कीचड़ रहित थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था की मानो अभी-2 सर्विस से आयी हो।
श्री बांके बिहारी मंदिर में कुछ प्रशासनिक अव्यवस्था तो थी किन्तु उससे अधिक श्रध्दालुओ का उत्साह भी मुझे नजर आ रहा था। और फिर हो सकता है की प्रभु की इच्छा हो की हम एक बार फिर से उनके दर्शनों हेतु वृन्दावन यात्रा पर जाये।
वैसे प्रेम मंदिर वास्तुकला के क्षेत्र में उत्कृष्ट है और मैं आशा करता हूँ की आप सपरिवार वहा जाकर एक सुखद समय व्यतीत करे।
कृपया स्नेह बनाए रखे। धन्यवाद।
अरुण
अरुणजी
आपकी पहली पोस्ट और इस शानदार यात्रा के लिए बधाई। सभी छाया चित्र अच्छे आये है विशेषकर प्रेम मंदिर के तो बहुत ही सुन्दर आये है। इसी प्रकार यात्रा करते रहिये और लिखते रहिये
लद्ध्हा जी,
सराहना के लिए धन्यवाद। चित्रांकन अच्छा तो हुआ है किन्तु आपसे एक बात सांझा करना चाहूंगा की यात्रा पर निकलने से पूर्व रात्रि को हमने अपना डिजिटल कैमरा चार्जर पर लगाया हुआ था और सुबह उसकी बैटरी फुल चार्ज हो जाने के उपरान्त उसे कवर करके फ्रिज के ऊपर यह सोच कर छोड़ दिया की चलते हुए हाथ में पकड़ लेंगे। किन्तु अपने उत्साह के चलते हम कैमरा घर पर ही छोड़ आये और लगभग तीन किलोमीटर बाद हमें इसका आभास हुआ।
अंततः सभी चित्र मोबाइल द्वारा क्लिक किये गए और श्री राधा कृष्ण जी की कृपा से चित्रांकन के प्रति सभी पाठको का स्नेह प्राप्त हो रहा है।
धन्यवाद,
अरुण
वृन्दावन एक चुम्बकीय आकर्षण लिए हुए है , जो एक बार हो आता है उसका बार – बार मन वहां जाने को करता है। सबसे अच्छा लगता है जब वहां सभी राधे – राधे कह कर संबोधित करता है। एक रिक्शेवाल भी हटो – बचो न कह कर राधे – राधे ही कहता है।
बहुत सुन्दर वर्णन और सुन्दर फोटो।
कमालांश जी,
वृन्दावन के स्थानीय लोगो की शायद यह परम्परा है की वह अपने हर कार्य में राधे-राधे का जाप करते रहते है। अन्य धार्मिक स्थानों पर जाकर मैंने यह अनुभव किया है की अधिकांशतः स्थानीय लोग धर्म के नाम पर यात्रियों को गुमराह करते है किन्तु यहाँ तो मात्र राधा कृष्ण बोलने से ही आपको अपार स्नेह की प्राप्ति हो जाती है। हमारी धर्मशाला के संरक्षक ने भी हमें राधे-राधे बोल कर ही विदा किया था।
आपकी सराहना हेतु धन्यवाद।
अरुण
अरुण जी,
आज घुमक्कड़ पर आपका लेख पढ़ने का अवसर मिला, सबसे पहले तो इस परिवार में आपका स्वागत है ! आपने अपने पहले लेख में ही बहुत अच्छे से वर्णन किया है, भाल्से जी की बात से मैं सहमत हूँ ! आपने लेख में प्रेम-मंदिर और बांके बिहारी मंदिर के बहुत ही अच्छे चित्र प्रस्तुत किए है, पर इन दोनों मंदिरों के व्याख्या की कमी खली ! लेख को ख़त्म करते हुए आपने थोड़ी जल्दबाज़ी दिखा दी है, आशा है जल्द ही आपके और लेख भी पढ़ने को मिलेंगे ! खूब घुमककड़ी कीजिए और ऐसे ही लिखते रहिए !
प्रदीप जी,
आपकी सराहना हेतु धन्यवाद।
वृन्दावन में स्थित सभी मंदिर केवल कृष्ण भक्तो की आस्था का ही परिणाम मात्र है जिसकी व्याख्या को मैंने लेख के शीर्षक “वृन्दावन जहां कण कण में कृष्ण बसते है” के रूप में आप सभी पाठको के समक्ष प्रस्तुत किया है। यहाँ उपलब्ध मंदिरों के प्रति स्थानीय लोगो में अपनी अलग-2 श्रद्धा व्याप्त है जिसकी सुन्दरता को महसूस करने के उपरांत मैं अधिक व्याख्या नही कर पाया।
और हाँ, जल्दबाजी में अपनी कट-पेस्ट की गलती के कारण मैं अपने लेख की अंतिम पंक्तिया आप लोगो के समक्ष प्रस्तुत नही कर सका जो की इस प्रकार थी –
सुबह के ग्यारह बज चुके थे और वक्त हो चला था अपनी धर्मशाला में जाकर गाडी लेकर दिल्ली की तरफ वापिस चलने का। धर्मशाला के संरक्षक और कर्मचारी ने निस्वार्थ भाव से हमें पूर्ण रूप से सहयोग किया और बदले में उन्होंने कहा श्री राधे-राधे। शायद यह वहां के स्थानीय लोगो की परम्परा ही है की हर वक्त हाथो में श्री कृष्ण नाम की माला और मुख पर राधे-राधे का निरंतर जाप करते रहना, मानो इसी से उनकी प्राण वायु का संचार होता हो। इसी सोच के साथ हमने भी श्री राधे-राधे बोलते हुए अपनी गाड़ी को दिल्ली की तरफ दौडाना शुरू कर दिया जहां एक कौतुहल से परिपूर्ण शहर हमारी राह देख रहा था।