हरिदà¥à¤µà¤¾à¤°
मैं ओर बचà¥à¤šà¥‡ बैठे बैठे पà¥à¤°à¥‹à¤—à¥à¤°à¤¾à¤® बना रहे थे कि पेपर खतà¥à¤® हो गठहैं, कंहा घूमने चला जाà¤, बचà¥à¤šà¥‡ कहने लगे कि पापा हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° यंहा से यानिकी मà¥à¤œà¤¼à¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र से कà¥à¤² ८९ किलोमीटर हैं, सबसे नज़दीक हैं, ओर हमें वंहा पर गठà¤à¥€ काफी समय हो गया हैं, तो हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° ही चलते हैं, बचà¥à¤šà¥‹ ने ठीक ही कहा था, हमारे मà¥à¤œà¤¼à¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र से इतना नज़दीक होते हà¥à¤ à¤à¥€ हम हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° नहीं जा पाते हैं. जबकि हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° हिनà¥à¤¦à¥à¤“ का सबसे बड़ा तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ हैं. पà¥à¤°à¥‡ संसार में हिंदू कंही à¤à¥€ हैं, वो à¤à¤• बार हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° जरà¥à¤° जाना चाहता हैं, ओर मरने के बाद à¤à¥€ उसकी असà¥à¤¥à¤¿à¤¯à¤¾ हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में ही गंगा जी में पà¥à¤°à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¤ कि जाती हैं.
कà¥à¤› हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° के बारे में
हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° यानि हरि का दà¥à¤µà¤¾à¤°, या हरदà¥à¤µà¤¾à¤° कहो यानि à¤à¥‹à¤²à¥‡ कि नगरी. हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° हिनà¥à¤¦à¥à¤“ का सबसे बड़ा तीरà¥à¤¥ सà¥à¤¥à¤², देव à¤à¥‚मि उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤°. माठगंगा पहाड़ों से उतरकर हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में ही मैदानों में पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ करती हैं. इसलिठहरिदà¥à¤µà¤¾à¤° का à¤à¤• नाम गंगा दà¥à¤µà¤¾à¤° à¤à¥€ हैं. हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° कà¥à¤®à¥à¤ कि à¤à¥€ नगरी हैं. हर १२ साल बाद यंहा पर कà¥à¤®à¥à¤ मेले का आयोज़न होता हैं. जिसमे पà¥à¤°à¥‡ à¤à¤¾à¤°à¤¤à¤µà¤°à¥à¤· से साधॠसंत, सनà¥à¤¯à¤¾à¤¸à¥€, तीरà¥à¤¥ यातà¥à¤°à¥€ आते हैं और महीने à¤à¤° चलने वाले इस आयोजन में, अलग अलग तिथियों में गंगा जी में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करते हैं. जिसे शाही सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ à¤à¥€ कहते हैं. ये कंहा जाता हैं कि देवासà¥à¤° संगà¥à¤°à¤¾à¤® में जब असà¥à¤° लोग अमृत लेकर के à¤à¤¾à¤— रहे थे, तब अमृत कि बूंदे जंहा जंहा गिरी थी, वंही पर अमृत कà¥à¤‚ड बन गठथे. उनà¥à¤¹à¥€ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥‹à¤‚ पर हर १२ साल बाद कà¥à¤®à¥à¤ मेले का आयोजन होता हैं. हरकी पौड़ी पर à¤à¥€ अमृत कि बूंदे गिरी थी. ये अमृत कà¥à¤‚ड हर कि पौड़ी पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं, इसी लिठहरकी पोड़ी पर सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करने कि महतà¥à¤¤à¤¾ हैं. हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° का à¤à¤• नाम मायापà¥à¤°à¥€ à¤à¥€ हैं.
कपिल ऋषि का आशà¥à¤°à¤® à¤à¥€ यहाठसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ था, जिससे इसे इसका पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ नाम कपिल या कपिलà¥à¤¸à¥à¤¥à¤¾à¤¨ मिला। पौराणिक कथाओं के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° à¤à¤¾à¤—ीरथ जो सूरà¥à¤¯à¤µà¤‚शी राजा सगर के पà¥à¤°à¤ªà¥Œà¤¤à¥à¤° (शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® के à¤à¤• पूरà¥à¤µà¤œ) थे, गंगाजी को सतयà¥à¤— में वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ की तपसà¥à¤¯à¤¾ के पशà¥à¤šà¤¾à¤¤à¥ अपने ६०,००० पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ के उदà¥à¤§à¤¾à¤° और कपिल ऋषि के शà¥à¤°à¤¾à¤ª से मà¥à¤•à¥à¤¤ करने के लिठके लिठपृथà¥à¤µà¥€ पर लाये। ये à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ परंपरा है जिसे करोडों हिंदू आज à¤à¥€ निà¤à¤¾à¤¤à¥‡ है, जो अपने पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ के उदà¥à¤§à¤¾à¤° की आशा में उनकी चिता की राख लाते हैं और गंगाजी में विसरà¥à¤œà¤¿à¤¤ कर देते हैं। कहा जाता है की à¤à¤—वान विषà¥à¤£à¥ ने à¤à¤• पतà¥à¤¥à¤° पर अपने पग-चिनà¥à¤¹ छोड़े है जो हर की पौडी में à¤à¤• उपरी दीवार पर सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है, जहां हर समय पवितà¥à¤° गंगाजी इनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ छूती रहतीं हैं।
हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में पंडो के पास हिनà¥à¤¦à¥à¤“ के पूरà¥à¤µà¤œà¥‹ कि वंशावली
वह जो अधिकतर à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯à¥‹à¤‚ व वे जो विदेश में बस गठको आज à¤à¥€ पता नहीं, पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ रिवाजों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° हिनà¥à¤¦à¥‚ परिवारों की पिछली कई पीढियों की विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ वंशावलियां हिनà¥à¤¦à¥‚ बà¥à¤°à¤¾à¤¹à¥à¤®à¤£ पंडितों जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पंडा à¤à¥€ कहा जाता है दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं के पवितà¥à¤° नगर हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में हसà¥à¤¤ लिखित पंजिओं में जो उनके पूरà¥à¤µà¤œ पंडितों ने आगे सौंपीं जो à¤à¤• के पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ के असली जिलों व गांवों के आधार पर वरà¥à¤—ीकृत की गयीं सहेज कर रखी गयीं हैं. पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• जिले की पंजिका का विशिषà¥à¤Ÿ पंडित होता है. यहाठतक कि à¤à¤¾à¤°à¤¤ के विà¤à¤¾à¤œà¤¨ के उपरांत जो जिले व गाà¤à¤µ पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ में रह गठव हिनà¥à¤¦à¥‚ à¤à¤¾à¤°à¤¤ आ गठउनकी à¤à¥€ वंशावलियां यहाठहैं. कई सà¥à¤¥à¤¿à¤¤à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ में उन हिनà¥à¤¦à¥à¤“ं के वंशज अब सिख हैं, तो कई के मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤® अपितॠईसाई à¤à¥€ हैं. किसी के लिठकिसी की अपितॠसात वंशों की जानकारी पंडों के पास रखी इन वंशावली पंजिकाओं से लेना असामानà¥à¤¯ नहीं है.
शताबà¥à¤¦à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ पूरà¥à¤µ जब हिनà¥à¤¦à¥‚ पूरà¥à¤µà¤œà¥‹à¤‚ ने हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° की पावन नगरी की यातà¥à¤°à¤¾ की जोकि अधिकतर तीरà¥à¤¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤°à¤¾ के लिठया/ व शव- दाह या सà¥à¤µà¤œà¤¨à¥‹à¤‚ के असà¥à¤¥à¤¿ व राख का गंगा जल में विसरà¥à¤œà¤¨ जोकि शव- दाह के बाद हिनà¥à¤¦à¥‚ धारà¥à¤®à¤¿à¤• रीति- रिवाजों के अनà¥à¤¸à¤¾à¤° आवशà¥à¤¯à¤• है के लिठकी होगी. अपने परिवार की वंशावली के धारक पंडित के पास जाकर पंजियों में उपसà¥à¤¥à¤¿à¤¤ वंश- वृकà¥à¤· को संयà¥à¤•à¥à¤¤ परिवारों में हà¥à¤ सà¤à¥€ विवाहों, जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ व मृतà¥à¤¯à¥à¤“ं के विवरण सहित नवीनीकृत कराने की à¤à¤• पà¥à¤°à¤¾à¤šà¥€à¤¨ रीति है.
वरà¥à¤¤à¤®à¤¾à¤¨ में हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° जाने वाले à¤à¤¾à¤°à¤¤à¥€à¤¯ हकà¥à¤•े- बकà¥à¤•े रह जाते हैं जब वहां के पंडित उनसे उनके नितांत अपने वंश- वृकà¥à¤· को नवीनीकृत कराने को कहते हैं. यह खबर उनके नियत पंडित तक जंगल की आग की तरह फैलती है. आजकल जब संयà¥à¤•à¥à¤¤ हिदू परिवार का चलन ख़तà¥à¤® हो गया है व लोग नाà¤à¤¿à¤•ीय परिवारों को तरजीह दे रहे हैं, पंडित चाहते हैं कि आगंतà¥à¤• अपने फैले परिवारों के लोगों व अपने पà¥à¤°à¤¾à¤¨à¥‡ जिलों- गाà¤à¤µà¥‹à¤‚, दादा- दादी के नाम व परदादा- परदादी और विवाहों, जनà¥à¤®à¥‹à¤‚ और मृतà¥à¤¯à¥à¤“ं जो कि विसà¥à¤¤à¥ƒà¤¤ परिवारों में हà¥à¤ˆ हों अपितॠउन परिवारों जिनसे विवाह संपनà¥à¤¨ हà¥à¤ आदि की पूरी जानकारी के साथ वहां आयें. आगंतà¥à¤• परिवार के सदसà¥à¤¯ को सà¤à¥€ जानकारी नवीनीकृत करने के उपरांत वंशावली पंजी को à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ के पारिवारिक सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठव पà¥à¤°à¤µà¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£à¤¿à¤¤ करने के लिठहसà¥à¤¤à¤¾à¤•à¥à¤·à¤°à¤¿à¤¤ करना होता है. साथ आये मितà¥à¤°à¥‹à¤‚ व अनà¥à¤¯ पारिवारिक सदसà¥à¤¯à¥‹à¤‚ से à¤à¥€ साकà¥à¤·à¥€ के तौर पर हसà¥à¤¤à¤¾à¤•à¥à¤·à¤° करने की विनती की जा सकती है.

हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° का केंदà¥à¤° व मà¥à¤–à¥à¤¯ सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ हर की पौड़ी
हम लोग सà¥à¤¬à¤¹ ५ बजे उठकर तैयार होकर असà¥à¤ªà¤¤à¤¾à¤² चौराहे पर पहà¥à¤‚चे, जाते ही हमें राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ परिवहन निगम कि बस जो कि जोधपà¥à¤° से आ रही थी, मिल गयी, बस में चढ़ते ही बचà¥à¤šà¥‡ हà¤à¤¸à¤¨à¥‡ लगे, मैंने उनसे हà¤à¤¸à¤¨à¥‡ का कारण पूछा तो बोले पापा इस बस में अधिकतर लोग गंजे कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ हैं, मैंने कहा कि राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में जब कोई आदमी मरता हैं तो उसकी अशà¥à¤¥à¤¿à¤¯à¤¾ सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ रख लेते हैं, और जो कोई à¤à¥€ कà¤à¥€ हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° जाता हैं तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ लेकर के आता हैं, और विसरà¥à¤œà¤¨ करते हैं. राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ से चलने से पहले ये लोग अपना मà¥à¤‚डन करवा लेते हैं. बस हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° के पनà¥à¤¤à¥à¤¦à¥à¤µà¥€à¤ª पारà¥à¤•िंग में पहà¥à¤à¤š गयी. बस के रà¥à¤•ते ही पंडो की à¤à¥€à¤¡à¤¼ बस में चढ गयी, और यातà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ से पूछने लगी, कंहा के हो, कौन जात हो. यह सà¥à¤¨à¤•र बड़ा अजीब लगा और गà¥à¤¸à¥à¤¸à¤¾ à¤à¥€ आया. à¤à¤¸à¥‡ ही लोगो की वजह से हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨ में जाति पाति खतà¥à¤® नहीं हो पा रही हैं. उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने मà¥à¤à¥‡ à¤à¥€ राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ का ही समà¤à¤¾, और मेरी जाति पूछने लगे, मैंने कंहा हिनà¥à¤¦à¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€, तो मेरे से लड़ने को आ गà¤. मैंने चà¥à¤ªà¤šà¤¾à¤ª निकलने में ही à¤à¤²à¤¾à¤ˆ समà¤à¥€. ये लोग उतà¥à¤¤à¤°à¤¾à¤–ंड और और पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ उतà¥à¤¤à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ से बाहर के लोगो को बहà¥à¤¤ बà¥à¤°à¥€ तरह से ठगते हैं. और उनसे दà¥à¤°à¥à¤µà¥à¤¯à¤µà¤¹à¤¾à¤° à¤à¥€ करते हैं. खैर पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ उतà¥à¤¤à¤°à¤ªà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के लोग विशेषकर मà¥à¤œà¤¼à¤«à¥à¤«à¤°à¤¨à¤—र और मेरठके लोग इनके काबॠमें नहीं आते हैं.बस से उतरकर सबसे पहले किसी अचà¥à¤›à¥‡ होटल की तलाश शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ˆ, जंहा से मनसा देवी का रोप वे शà¥à¤°à¥‚ होता हैं, वंही पर à¤à¤• अचà¥à¤›à¥‡ होटल में कमरा मिल गया, होटल का नाम मà¥à¤à¥‡ कà¥à¤› याद नहीं हैं. à¥à¥«à¥¦/- में कमरा मिल गया.
माठमनसा देवी
वंहा पर कà¥à¤› देर रà¥à¤• कर चाय वाय पीकर के सबसे पहले मनसा देवी की पैदल चढाई शà¥à¤°à¥‚ की. करीब २५ मिनट में हम मनसा देवी पहà¥à¤à¤š गà¤. पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ की दूकान से पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ ख़रीदा, और माता के दरà¥à¤¶à¤¨ किये. यह मंदिर बिलà¥à¤µ परà¥à¤µà¤¤ के शिखर पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं. माता मनसा देवी अपने à¤à¤•à¥à¤¤à¥‹ के मन की सà¤à¥€ इचà¥à¤›à¤¾à¤“ को पूरा करती हैं. यंहा पर à¤à¤• वृकà¥à¤· पर मनौती का धागा à¤à¥€ बाà¤à¤§à¤¾ जाता हैं. हमने à¤à¥€ कà¤à¥€ à¤à¤• धागा बाà¤à¤§à¤¾ था, उसे खोला.

माठमनसा देवी मंदिर

मनसा देवी पर तीनो à¤à¤¾à¤ˆ बहन

मनसा देवी पर पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤¦ की दà¥à¤•ान के बाहर

à¤à¤• फोटो मेरा à¤à¥€ हो जाà¤

हमारा परिवार

मनसा देवी से गंग नहर के उदà¥à¤—म का दृशà¥à¤¯

गंगा नहर का उदà¥à¤—म सà¥à¤¥à¤² ओर à¤à¥‚ला पà¥à¤²

सपà¥à¤¤ धारा

मनसा देवी से हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° नगर ओर गंगा नहर का दृशà¥à¤¯

गंगा जी के ऊपर बना हà¥à¤† बाà¤à¤§ à¤à¥€à¤® गोडा बैराज
माठचंडी देवी
मनसा देवी के दरà¥à¤¶à¤¨ करके हम लोग थà¥à¤°à¥€ वà¥à¤¹à¥€à¤²à¤° में बैठकर माठचंडी देवी के दरà¥à¤¶à¤¨ को चल दिà¤. करीब ३ कीलोमीटर की पैदल चढाई करके हम लोग मंदिर परिसर में पहà¥à¤‚चे. यह मंदिर गंगा जी की नीलधारा को पार करके नील परà¥à¤µà¤¤ के शिखर पर हैं. यह मंदिर कशà¥à¤®à¥€à¤° के राजा सà¥à¤šà¥‡à¤¤ सिंह दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ १९२९ में बनवाया गया था. यह कहा जाता हैं कि माठआदि शकà¥à¤¤à¤¿ ने चंद मà¥à¤‚ड नामक राकà¥à¤·à¤¸à¥‹à¤‚ का यंही पर संहार किया था. माठकि मूरà¥à¤¤à¤¿ आदि शंकराचारà¥à¤¯ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ है. इस मंदिर के पास ही हनà¥à¤®à¤¾à¤¨ जी की माता अंजनी देवी का à¤à¥€ मंदिर हैं. इन मंदिरों तक रोपवे से à¤à¥€ जाया जा सकता हैं. यंही पर ही à¤à¤• अचà¥à¤›à¤¾ रेसà¥à¤Ÿà¥‹à¤°à¥‡à¤‚ट à¤à¥€ बना हà¥à¤† है, जिसमे हमने कà¥à¤› पेट पूजा की. फिर रोप वे का टिकट लेकर रोप वे के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ नीचे उतर आये.

चंडी देवी से गंगा जी के ऊपर पà¥à¤² ओर हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° का दृशà¥à¤¯

ज़नाब बड़ी खà¥à¤¶à¥€ में अजगर अपने गले में डलवा रहे हैं
तरॠने अपने गले में खà¥à¤¶à¥€ खà¥à¤¶à¥€ अजगर को डलवा लिया, पर जब अजगर ने अपना फन ऊपर को किया तो घबरा गया और चिलà¥à¤²à¤¾à¤¨à¥‡ लगा.

जब अजगर ने अपना फन ज़नाब के मà¥à¤¹ के ओर किया

चंडी देवी रोप वे

नीचे से ऊपर आती टà¥à¤°à¥‹à¤²à¥€

गंगा जी के बीच में महादेव
गंगा जी के बीचो बीच महादेव की मूरà¥à¤¤à¥€ बहà¥à¤¤ ही अचà¥à¤›à¤¾ दृशà¥à¤¯ पà¥à¤°à¤¸à¥à¤¤à¥à¤¤ करती हैं और मन शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ से à¤à¤° जाता हैं.
शांतिकà¥à¤‚ज
माठचंडी देवी से हम थà¥à¤°à¥€ वà¥à¤¹à¥€à¤²à¤° से शांति कà¥à¤žà¥à¤œ पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ हैं. शांति कà¥à¤žà¥à¤œ हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° ऋषिकेश मारà¥à¤— पर हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° से ॠकिलो मीटर पर सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं. यह आशà¥à¤°à¤® आचारà¥à¤¯ शà¥à¤°à¥€à¤°à¤¾à¤® शरà¥à¤®à¤¾ दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¿à¤¤ हैं. जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने गायतà¥à¤°à¥€ परिवार की सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ की हैं. आजकल इसके पà¥à¤°à¤®à¥à¤– डा. पà¥à¤°à¤£à¤µ पंडà¥à¤¯à¤¾ जी हैं. यंहा पर आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦à¤¿à¤• वाटिका देखने लायक हैं. यह सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ हिंदू धरà¥à¤® और अधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤® का पà¥à¤°à¤®à¥à¤– केंदà¥à¤° हैं.

शांतिकà¥à¤‚ज का दृशà¥à¤¯

शांतिकà¥à¤‚ज – ये मशाल जलती रहेà¤à¤¾à¤°à¤¤ माता मंदिर
शांतिकà¥à¤‚ज के पास ही सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हैं à¤à¤¾à¤°à¤¤ माता मंदिर, इसकी सà¥à¤¥à¤¾à¤ªà¤¨à¤¾ शà¥à¤°à¥€ सतà¥à¤¯à¤®à¤¿à¤¤à¥à¤°à¤¾à¤¨à¤‚द जी ने की थी. यह मंदिर ॠमंजिला ऊà¤à¤šà¤¾ हैं. और यंहा से दूर दूर माठगंगा के फैले हà¥à¤ विसà¥à¤¤à¤¾à¤° व सपà¥à¤¤ धारा के दरà¥à¤¶à¤¨ होते हैं.इस मंदिर में हिंदू धरà¥à¤® के सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤®à¥à¤– अंगों (सनातन धरà¥à¤®, आरà¥à¤¯ समाज, सिकà¥à¤–, जैन, बोदà¥à¤§ आदि ) के व महापà¥à¤°à¥à¤·à¥‹à¤‚ के दरà¥à¤¶à¤¨ होते है.

à¤à¤¾à¤°à¤¤ माता मंदिर पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ दà¥à¤µà¤¾à¤°
यंहा से हम विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ मंदिरों को देखते हà¥à¤ हर की पौड़ी पहà¥à¤à¤šà¤¤à¥‡ हैं काफी à¤à¥€à¤¡à¤¼ थी. माठगंगा में डà¥à¤¬à¤•ी लगाकर, व सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ करके मन पवितà¥à¤° हो गया. हम लोग जलà¥à¤¦à¥€ नहा लेते हैं पर बचà¥à¤šà¥‡ लोग बहà¥à¤¤ समय लगते है.

हरकी पौड़ी पर बिरला जी दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ बनवाया घंटाघर

पवितà¥à¤° गंगा में सà¥à¤¨à¤¾à¤¨
बचà¥à¤šà¥‡ ठनà¥à¤¡à¥‡ जल में डà¥à¤¬à¤•ी लगाकर बाहर निकलने का नाम नहीं ले रहे हैं.

रात के समय हर कि पौड़ी

माठगंगा जी की आरती , साà¤à¤¾à¤° विकिपीडिया
सà¥à¤¨à¤¾à¤¨ के बाद माठगंगा जी की आरती को देखने का सौà¤à¤¾à¤—à¥à¤¯ हमें मिला. इसके बाद à¤à¥‚ख बहà¥à¤¤ लग रही थी, पेट में चूहे कूद रहे थे. मà¥à¤–à¥à¤¯ बाज़ार में सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ à¤à¤• होटल में खाने का आनंद लिया, यह होटल अपने खाने के लिठपà¥à¤°à¥‡ हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° में मशहूर हैं. कà¥à¤¯à¤¾ लाजवाब खाना था, मज़ा आ गया. खाना खाने के बाद फिर हर की पौड़ी पहà¥à¤à¤š गठऔर वंहा ठंडी हवाओ का आनंद लेते रहे. करीब दस बजे अपने होटल आ गà¤, और अपना पड़ कर सो गà¤.आगे का वृतà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥à¤¤ आपको हरी का दà¥à¤µà¤¾à¤° हरिदà¥à¤µà¤¾à¤° – à¤à¤¾à¤— २ में मिलेगा…..
bahut hi achchha varnan hai, hardwar ka. aarti ka photo sabse achchha hai. good going guptaji
धन्यावाद लक्ष्य जी.
पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लोग विशेषकर मुज़फ्फरनगर और मेरठ के लोग इनके काबु में नहीं आते हैं
बिल्कुल सही बात…. अपन भी मेरठ के हैं और कभी भी इनके कब्जे में नहीं आये।
आखिरी फोटो वाकई गजब का है। तकनीकी रूप से गजब का फोटो है… कम लाइट में बेहतरीन पिक्चर और वो भी लगातार गतिमान होते हुए पण्डितों का और उससे भी ज्यादा अति वेगवती गंगा का। कोई ब्लर नहीं। तालियां…. जोरदार तालियां।
ऐसे फोटो केवल कोई सुपरहिट कैमरा और सुपरहिट हाथ ही खींच सकता है।
नीरज भाई, मुज़फ्फरनगर और मेरठ के लोग तो कही भी चले जाए छा जाते हैं. और किसी के भी बस में नहीं आते हैं. सराहना के लिए धन्यवाद नीरज भाई.
भाई नीरज, आपसे एक मदद चाहिए थी,
मैं मौका लगते ही, गंगोत्री और यमुनोत्री के दर्शन करना चाहता हूँ. आपके कहीं पे एक कमेन्ट को पढ़ कर अंदाजा लगाया था कि आपको इन रास्तों और साधनों का अच्छा ज्ञान है. इसीलिए आपको मदद के लिए चुना .
क्या चार दिनों मैं ये दोनों संभव हैं ? यदि हाँ तो कैसे ? दूसरा बस अड्डे से रोडवेज मैं जाना चाहूँगा, मेरे ख्याल से यदि आपको पता हो कि कहाँ कि बस कहाँ के लिए पकडनी है तो ये सबसे सस्ता और सबसे तेज साधन होते हैं कहीं पहुँचने का .
मेरा इमेल “kaushiksanju@yahoo.com” जहाँ आप जबाव छोड़ सकते हैं..
कौशिक साहब, आपके पास चार दिन हैं लेकिन आपने यह नहीं बताया कि आप शुरूआत कहां से करेंगे। चलिये मान लेते हैं कि आप पहले दिन की शुरूआत ऋषिकेश से करेंगे।
ऋषिकेश से सुबह सवेरे जानकीचट्टी के लिये बसें निकलती हैं। रोडवेज बस अड्डे के बगल में ही प्राइवेट बसों का अड्डा है। प्राइवेट बसें जाती हैं जानकीचट्टी। दूरी करीब 250 किलोमीटर है, पहुंचने में शाम हो जायेगी।
अगले दिन आप यमुनोत्री के लिये पैदल यात्रा शुरू कर सकते हैं। पांच किलोमीटर है, दोपहर तक वापस जानकीचट्टी पहुंच सकते हैं। वहां से कहीं की गाडी मिले या ना मिले, आप तुरन्त देर ना करते हुए किसी बस या जीप से बडकोट पहुंचिये। दो घण्टे लगेंगे, वहां से आपको अगर उत्तरकाशी की बस या जीप मिले तो तुरन्त बैठ जाइये। मेरा अन्दाजा है कि शाम चार बजे तक आपको बडकोट से उत्तरकाशी की गाडी मिल ही जायेगी। दो दिन खत्म।
तीसरा दिन- सुबह सुबह उत्तरकाशी से निकल पडिये और गंगोत्री पहुंचिये- जीपें और बसें दोनों मिलेंगी। 100 किलोमीटर है, चार घण्टे के करीब लगेंगे। आराम से पूरे दिन गंगोत्री घूमिये। रात को वहीं रुकिये।
चौथा दिन- आप आराम से ऋषिकेश लौट सकते हैं।
उत्तराखण्ड के पहाडों में ज्यादातर जीपें और प्राइवेट बसें चलती हैं। रोडवेज बसें कम ही चलती हैं। मेरी सलाह है कि जानकीचट्टी से यमुनोत्री जाने के लिये खच्चर का प्रयोग कीजिये, जल्दी काम हो जायेगा। आखिर आपको उसी दिन उत्तरकाशी पहुंचना है। अगर आप दूसरे दिन उत्तरकाशी नहीं पहुंच पाते हैं तो चिन्ता की कोई बात नहीं है, बडकोट में ही रुक जाइये। अगले दिन सुबह सवेरे पहले उत्तरकाशी और फिर गंगोत्री।
और हां, मानसून आ गया है। अगर एक दिन रिजर्व में रख सको तो रख लेना। इधर बरसात में भू-स्खलन बहुत होता है। कई कई घण्टे सडक बन्द रहती है।
यात्रा मुबारक हो।
Jankichatti se Yamnotri 6 kms hai na ki 5 kms. baki sai hai Rishikesh – Yamnotri – Gangotri – Rishikesh 4 din mein ho sakthe hain.
सेमवाल जी, मैंने सभी दूरियां अन्दाजे से लिखी हैं। 5 की जगह 6 किलोमीटर होगा, कोई बात नहीं।
वैसे मैं जब यमुनोत्री गया था, तो हनुमानचट्टी से जानकीचट्टी तक पैदल ही गया था और जानकीचट्टी से एक किलोमीटर पहले एक जगह लिखा था- यमुनोत्री 6 किलोमीटर।
http://1.bp.blogspot.com/_n4dvGkVExFQ/S-Jg2nwaRFI/AAAAAAAAB-E/OPcqzTNi4D8/s1600/PICT1265.JPG
उसी के आधार पर मैंने बताया कि जानकीचट्टी से यमुनोत्री 5 किलोमीटर है।
प्रवीण जी,
बहुत अच्छा यात्रा कथन लिखा है , फोटो तो लाजवाब हैं . माता मनसा देवी, एक वृक्ष पर मनौती का धागा बहुत सुंदर वर्णन है . माता मनसा देवी का एक मंदिर चंडीगढ़ के पास भी है. धन्यवाद, वन्देमातरम.
धन्यवाद शर्मा जी, माता मनसा देवी के दो मंदिर हैं, एक हरिद्वार में और एक पंचकुला चंडीगढ़ में. दोनों ही मंदिरों की बहुत ही मान्यता हैं. पंचकुला वाला मंदिर शक्तिपीठ हैं, और ९ देवियों की यात्रा में एक प्रमुख मंदिर माना जाता हैं. वन्देमातरम .
बेहतरीन फोटो सहित लिखा हुआ बढ़िया लेख, एक बार भी नहीं लगा कि कुछ बच गया है, मैंने कभी यहाँ की पूरी आरती नहीं देखी है, बनारस की जरुर देखी है, बिलकुल वैसी ही लगती है,
इस अजगर के बच्चे /सांप को बच्चे ने गले में डालने की हिम्मत तो की, डरपोक लोग तो इन्हें देख दूर से ही भाग खड़े होते है वो अलग बात है कि उसने अपनी मुंडी ऊपर कर दी थी हां हा हा हा हा हा हो जाता है ऐसा भी
संदीप जी राम राम, सराहना करने के लिए धन्यवाद. तरु ने अजगर अपने गले में डलवा तो लिया था, और बोला था चाचा एक फोटो लेलो, जैसे ही अजगर ने अपना मुह ऊपर को किया था तो वो चिल्लाने लगा था, उसी समय ये फोटो ले लिया था. इसीलिए ये दिलचस्प फोटो बन गया था.
प्रवीण जी,
तरु के अजगर के साथ दोनों फ़ोटोज़ ने इस पोस्ट में जान डाल दी है. रोमांच भय तथा हास्य से मिश्रित ये तस्वीरें सचमुच लाजवाब हैं. पहले फोटो में बड़ी ही निडरता से अपने गले में अजगर को डलवा लेना तथा दुसरे फोटो में अजगर के सर ऊपर उठाने से तरु की सिट्टी पिट्टी गम हो जाना, बड़ा ही मनोरंजक लगा.
आपने हरिद्वार में स्थित बाबा रामदेव के पतंजलि योग पीठ के बारे में कुछ नहीं बताया. शायद आप अपनी अगली पोस्ट में इसे जगह देंगे.
शांतिकुंज तथा गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पंड्या इंदौर के हैं तथा उन्होंने यहाँ के MGM मेडिकल कॉलेज से M.D. मेडिसिन गोल्ड मेडल के साथ प्राप्त की है. उन्होंने अध्यात्मिक जीवन को महत्व देते हुए U.S. मेडिकल सर्विस की नौकरी को ठुकरा कर गायत्री परिवार ज्वाइन किया. वे गायत्री परिवार के पूर्व प्रमुख पं. श्री राम शर्मा के दामाद तथा मुख्य शिष्य भी हैं.
मुकेश जी सराहना करने के लिए धन्यवाद. ये आप ने अच्छी जानकारी दी हैं की डा. पंड्या इंदौर के हैं. मुकेश जी ये यात्रा उस समय की हैं जब हमने ब्लोगिंग की शुरुआत नहीं करी थी. और पतंजलि योगपीठ हम लोग जा भी नहीं पाए थे. इसलिए बाबा रामदेव के बारे में कुछ नहीं लिख पाए. अब हमारी जो भी यात्राये होगी वो पुरी तरह से जानकारी उसमे देने की कोशिश करेंगे. फिर एक बात और भी हैं, की हरिद्वार यंहा से सिर्फ ८८ किलोमीटर हैं. हमारे यंहा एक कहावत हैं की, घर का जोगी जोगना, शायद इसी कारण से हरिद्वार के बाबाओं को हम लोग इतना भाव नहीं देते हैं.
प्रवीन जी…राम राम जी….|
हरी के हरिद्वार की जय…..! कई बार हरिद्वार की यात्रा कर चुका हूँ….हर बार नया सा ही लगता हैं….मन ही नहीं भरता यहाँ से ….जी करता हैं की अविरल बहती गंगा जी के किनारे घाट पर बैठे ही रहो…और शाम की गंगा आरती का शमा तो की कुछ अलग होता हैं |
जानकारों युक्त लेख के साथ फोटो भी अच्छे लगे ….खास कर गंगा आरती का…..|
राम राम जी राम राम, रितेश जी, आप ठीक कहते हो, पता नहीं क्या बात हैं हरिद्वार में, गंगा जी के किनारे बैठे हुए घंटो हो जाते हैं, मन नहीं करता हैं उठने को, सराहना करने के लिए धन्यवाद. जय गंगा मैय्या
bhahut khub !
धन्यवाद महेश जी.
Praveen Gupta ji, the most beautiful photos I have seen in a Ghumakkar post for some time. Haridwar and the temple darshans came alive through your pictures.
वेंकट जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद, आपकी सराहना करने से हमें आगे लिखने के लिए और घुमक्कडी के लिए बल मिलता है. धन्यवाद पुनः .
प्रवीण कुमारजी ,
पहली बात हरिद्वार, हरद्वार ,गंगाद्वार के बारे में बहुत से बेहेतेरिन लेख लिखे गए है . लेकिन मुझे उनमे सबसे अच्छा आपका लेख लगा है. बहुत बढ़िया चित्र है . खास तौर पे गंगा आरती वाला . यह आपने कहाँ से लिया , बोट में बैठक या फिर नदी पार करके ?? और हर की पौड़ी पर १२ माह इतनी ही भीड़ रहती है क्या ??
विवरण भी बहुत मस्त था.मजा आ गया. अंजना देवी और चंदा देवी की यात्रा भी बहुत खूब थी और चित्र काफी बढ़िया.भारत माता वाह वाह! और शिव की मूर्ती बहुत खूब . अजगर किसे तरु के गले में डाला था ?
बस एक बात है प्रवीण जी आप अगर तारीख और महीना भी डाल दे आपके लेख में तो और भी परफेक्ट हो जायेगा .
हरिद्वार के दर्शन के लिए धन्यवाद.
विशाल जी धन्यवाद बहुत बहुत, आरती वाला फोटो मैंने सामने से लिया था. हर की पोड़ी पर तो मेरे भाई १२ के १२ महीने यही हाल रहता हैं. विशेषकर शनिवार और रविवार में तो बहुत बुरी हालत होती हैं. ये फोटो शनिवार को शाम को लिया था. तरु ने अजगर खुद ही फोटो खिचवाने के लिए मस्ती में अपने गले में डाला था. मेरे से इसमें गलती हुई तारीख नहीं लिख पाया. यही कोई १२-१३ मई २००८ की तारीख थी.
विशाल जी मैं माफ़ी चाहूँगा, वह आरती वाला फोटो विकी पेडिया से लिया हुआ हैं. दरअसल इस पोस्ट में मेरी हेल्प मेरे भतीजे तरु ने की थी. इस लिए थोड़ा सा संदेह रहा हैं. इसलिए ये गलती हुई हैं. धन्यवाद
आप सभी को जय राम जी की,
गुप्ता जी बहुत अच्छा लिखा है, फोटो भी बहुत अच्छे हैं. शांति कुञ्ज को कभी गए नहीं हैं, हाँ बाकि सारे मंदिर जरूर देखे हुवे हैं. “कौशिक” हूँ, पंडित हूँ, सो पेटू तो होना ही है, इसीलिए एक जगह आके सुई अटक गई, आपने ये तो कह दिया की “होटल मैं खाना खाया, खाना पूरे हरिद्वार मैं मशहूर है”, लेकिन ये नहीं बताया होटल कौन सा है और कहाँ है ?
और गंगा मैया की आरती से याद आया, आरती पे आपने भीड़ तो देख ही ली, जब मैंने पहली बार माँ गंगा की आरती में पहुंचे तो मेरे बच्चे और उनकी मम्मी साथ थी, उन्हें तो मैंने पुल के उपर बैठा दिया, लेकिन मेरी वहां से तसल्ली नहीं हो पा रही थी और हर की पौड़ी पे उस समय जगह मिलना असंभव सा ही होता है “सो मैंने उस दिन पूरी आरती गंगा मैया की गोद मैं बैठकर (मैं गंगाजी के बीच मैं पहुँच के नीचे टूटी हुई ईंट में पाँव फंसा के खड़ा रहा पूरी आरती होने तक) देखी थी. हरियाणा का हूँ ना, यहाँ इतने “जाट” तो सभी होते हैं..
वैसे मैं लगभग हर महीने पूर्णिमा हरिद्वार में “हर की पौड़ी” पे गंगा स्नान की कोशिश करता हूँ और माँ गंगा, कोशिश सफल भी कर देती हैं, सो होटल का नाम बताना ताकि “गंगा स्नान” के साथ साथ आपका होटल भी ट्राई किया जा सके..
जय हो गंगे मैया की, हर हर गंगे…
भाई मेरे वह होटल मुख्य बाज़ार में हैं, और पेशावरिया या बहावाल्पुरी के नाम से हैं शायद. आप किस्मत वाले हो जो हर महीने गंगा मैय्या में स्नान करते हो. हम तो मुज़फ्फर नगर में होते हुए नहीं जा पाते हैं.सराहना करने के लिए बहुत ही धन्यवाद..
जानकारी से परिपूर्ण लेख प्रवीण जी | पण्डे हर जगह के ऐसे ही हैं , इस बारे में पहली भी काफी बात हो चुकी है इसलिए ज्य्दादा नहीं जोडूंगा | आपका खुद की जाति को हिन्दुस्तानी बोलना प्रशंशा के योग्य है |
क्योंकि आप हरिद्वार से इतना करीब रहतें है, क्या एक दिन का ट्रिप निजी वाहन से करना में ज्यादा आसानी रहती ?
नंदन जी धन्यवाद, हरिद्वार में सब से ज्यादा समस्या पार्किंग की होती हैं. और हरिद्वार में लोकल सवारी बहुत ही सस्ती हैं. और मुज़फ्फरनगर से हर ५ मिनट में बस मिल जाती हैं. इसलिए सार्वजानिक परिवहन ही ठीक रहता हैं.
पंडो के बारे में सुना तो बड़ा ही आश्चर्यजनक लगा..
ये तो सुना और देखा है की वो लोग पीढियों का हिसाब किताब रखते है…
पर बस में घुस कर लोगो के साथ बदतमीजी करते है ये पहली बार सुना है.
कभी कभी थोड़ा बहुत कही न कही से हेल्प लेनी भी पड़ती हैं.
प्रवीण गुप्ता जी,
आप अन्दाजा नहीं लगा सकते कि मुझे कितना गुस्सा आ रहा है आप पर। मतलब आपको पता ही नहीं है कि जो फोटो आप लगा रहे हैं, वो आपने खींचा है या किसी और ने। हेल्प जरूर लेनी पडती है, लेकिन आभार, एहसान भी कोई चीज होती है। आप ब्लॉग पर भी लिखते हैं, घुमक्कड पर भी लिखते हैं, लेकिन आपकी यह लापरवाही क्षमा के योग्य नहीं है। …ना।
मैंने अपने पहले कमेण्ट में मेरठ मुजफ्फरनगर के अलावा केवल उस एक फोटो का ही जिक्र किया था। आपके बाकी फोटो और उस आखिरी फोटो में अन्तर साफ दिख रहा है और इसीलिये मैंने उसी फोटो की तारीफ की।
अब एक बात सम्पादकों से ,
नवीन गुप्ता का कमेण्ट हटाना नहीं चाहिये था। भले ही उन्होंने अभद्र भाषा का प्रयोग किया हो। बल्कि उसमें करेक्शन करके कमेण्ट की मूल भावना को ही छाप देना था। इससे यही सिद्ध होता है कि हम केवल तारीफ ही सुनना चाहते हैं। आलोचकों को भी मौका दो।
और आखिर में नवीन गुप्ता से,
ये तो आप भी जानते हैं कि आपने आलोचना के साथ- साथ अभद्र भाषा का भी प्रयोग किया है। पहली बात तो ये है कि कोई अपनी आलोचना नहीं सुनना चाहता, ऊपर से उसे आलोचना के साथ साथ गाली भी मिल रही हो तो क्या कहने…
आपसे अनुरोध है कि आलोचना करते रहिये लेकिन शान्त दिमाग से। …कूल…
आपने मुझे चोर लुटेरा कहा है… तुम्हारी कितनी भैंस खोल कर भाग गया मैं? बता देना भईया… एक एक भैंस का हिसाब दे दूंगा।
भाइयो मेरे से इस पोस्ट में एक गलती हुई हैं जिसके लिए मैं माफ़ी चाहता हू. दरअसल इस पोस्ट में मैंने थोड़ी हेल्प अपने बच्चो और तरु आदि की भी ली थी. वह आरती वाला फोटो एक मैंने भी लिया था. बच्चो ने वो फोटो न डाल कर के विकिपीडिया से दूसरा फोटो डाल दिया . जबकि मै ये समझता रहा वो फोटो मैंने लिया हैं. इस बात के लिए मैं फिर एक बार सभी लोगो से, और घुमक्कड से क्षमा चाहता हू. धन्यवाद.
@ प्रवीण जी – फोटो का क्रेडिट ठीक कर दिया गया है |
Also certain comments have been curated, as you have rightly pointed.
नीरज जी एक बार फिर से मैं क्षमा चाहता हूँ. आप लोग, संदीप जी ब्लॉग्गिंग और घुमक्कडी में हमारे गुरु हो, और शिष्यों से गलती हो जाती हैं. कृपया क्षमा करना. और मैंने तो आप को कुछ भी नहीं कहा हैं. फिर ये चोर लुटेरा वाली बात कहा से आ गयी हैं.
गुप्ता जी,
उस कमेण्ट को इस बार गौर से पढना। मैंने उसमें तीन अलग-अलग लोगों को सम्बोधित करके उनसे अलग-अलग बातें कही हैं। चोर लुटेरा मुझे नवीन ने बताया था, मैंने उसे ही कहा है। आपको मैंने कुछ नहीं कहा।
धन्यवाद नीरज जी.
@ Navin, @ Neeraj – Please exercise restraint and maintain decorum. We would be curating some of the contents of your comments. It is a public forum, lets treat each other with respect. Praveen has already agreed the oversight and in the best interest, lets bury the issue and move on.
बढिया फोटो प्रवीण जी ………….गलतियां इन्सान से होती हैं और ये प्रतीक हैं कि आप जिंदा हैं मुर्दा नही ……….आगे बढो
बहुत ही अच्छा विवरण और फोटो हैं. मनसा देवी और चंडी देवी पर पहाड़ के ऊपर से गंगा , गंग नहर और सड़क बहुत ही सुंदर दिखाई पद रहे हैं. अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी.
नमस्कार सभी को…
कही से फोटो ले लेना .. किसी और से ली गयी जानकारी दे देना .. गलत नहीं है.. यदि मूल स्रोत्र का उल्लेख कर दिया जाए तो..
आपका वर्णन और फोटोज सभी अच्छे लगे ..
हार्दिक धन्यवाद..