यात्रा हरि के द्वार हरिद्वार की – भाग १

हरिद्वार

मैं ओर बच्चे बैठे बैठे प्रोग्राम बना रहे थे कि पेपर खत्म हो गए हैं, कंहा घूमने चला जाए, बच्चे कहने लगे कि पापा हरिद्वार यंहा से यानिकी मुज़फ्फरनगर से कुल ८९ किलोमीटर हैं, सबसे नज़दीक हैं, ओर हमें वंहा पर गए भी काफी समय हो गया हैं, तो हरिद्वार ही चलते हैं, बच्चो ने ठीक ही कहा था, हमारे मुज़फ्फरनगर से इतना नज़दीक होते हुए भी हम हरिद्वार नहीं जा पाते हैं. जबकि हरिद्वार हिन्दुओ का सबसे बड़ा तीर्थ स्थान हैं. पुरे संसार में हिंदू कंही भी हैं, वो एक बार हरिद्वार जरुर जाना चाहता हैं, ओर मरने के बाद भी उसकी अस्थिया हरिद्वार में ही गंगा जी में प्रवाहित कि जाती हैं.
कुछ हरिद्वार के बारे में
हरिद्वार यानि हरि का द्वार, या हरद्वार कहो यानि भोले कि नगरी. हरिद्वार हिन्दुओ का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल, देव भूमि उत्तराखंड का प्रवेश द्वार. माँ गंगा पहाड़ों से उतरकर हरिद्वार में ही मैदानों में प्रवेश करती हैं. इसलिए हरिद्वार का एक नाम गंगा द्वार भी हैं. हरिद्वार कुम्भ कि भी नगरी हैं. हर १२ साल बाद यंहा पर कुम्भ मेले का आयोज़न होता हैं. जिसमे पुरे भारतवर्ष से साधु संत, सन्यासी, तीर्थ यात्री आते हैं और महीने भर चलने वाले इस आयोजन में, अलग अलग तिथियों में गंगा जी में स्नान करते हैं. जिसे शाही स्नान भी कहते हैं. ये कंहा जाता हैं कि देवासुर संग्राम में जब असुर लोग अमृत लेकर के भाग रहे थे, तब अमृत कि बूंदे जंहा जंहा गिरी थी, वंही पर अमृत कुंड बन गए थे. उन्ही स्थानों पर हर १२ साल बाद कुम्भ मेले का आयोजन होता हैं. हरकी पौड़ी पर भी अमृत कि बूंदे गिरी थी. ये अमृत कुंड हर कि पौड़ी पर स्थित हैं, इसी लिए हरकी पोड़ी पर स्नान करने कि महत्ता हैं. हरिद्वार का एक नाम मायापुरी भी हैं.

कपिल ऋषि का आश्रम भी यहाँ स्थित था, जिससे इसे इसका प्राचीन नाम कपिल या कपिल्स्थान मिला। पौराणिक कथाओं के अनुसार भागीरथ जो सूर्यवंशी राजा सगर के प्रपौत्र (श्रीराम के एक पूर्वज) थे, गंगाजी को सतयुग में वर्षों की तपस्या के पश्चात् अपने ६०,००० पूर्वजों के उद्धार और कपिल ऋषि के श्राप से मुक्त करने के लिए के लिए पृथ्वी पर लाये। ये एक ऐसी परंपरा है जिसे करोडों हिंदू आज भी निभाते है, जो अपने पूर्वजों के उद्धार की आशा में उनकी चिता की राख लाते हैं और गंगाजी में विसर्जित कर देते हैं। कहा जाता है की भगवान विष्णु ने एक पत्थर पर अपने पग-चिन्ह छोड़े है जो हर की पौडी में एक उपरी दीवार पर स्थापित है, जहां हर समय पवित्र गंगाजी इन्हें छूती रहतीं हैं।
हरिद्वार में पंडो के पास हिन्दुओ के पूर्वजो कि वंशावली
वह जो अधिकतर भारतीयों व वे जो विदेश में बस गए को आज भी पता नहीं, प्राचीन रिवाजों के अनुसार हिन्दू परिवारों की पिछली कई पीढियों की विस्तृत वंशावलियां हिन्दू ब्राह्मण पंडितों जिन्हें पंडा भी कहा जाता है द्वारा हिन्दुओं के पवित्र नगर हरिद्वार में हस्त लिखित पंजिओं में जो उनके पूर्वज पंडितों ने आगे सौंपीं जो एक के पूर्वजों के असली जिलों व गांवों के आधार पर वर्गीकृत की गयीं सहेज कर रखी गयीं हैं. प्रत्येक जिले की पंजिका का विशिष्ट पंडित होता है. यहाँ तक कि भारत के विभाजन के उपरांत जो जिले व गाँव पाकिस्तान में रह गए व हिन्दू भारत आ गए उनकी भी वंशावलियां यहाँ हैं. कई स्थितियों में उन हिन्दुओं के वंशज अब सिख हैं, तो कई के मुस्लिम अपितु ईसाई भी हैं. किसी के लिए किसी की अपितु सात वंशों की जानकारी पंडों के पास रखी इन वंशावली पंजिकाओं से लेना असामान्य नहीं है.
शताब्दियों पूर्व जब हिन्दू पूर्वजों ने हरिद्वार की पावन नगरी की यात्रा की जोकि अधिकतर तीर्थयात्रा के लिए या/ व शव- दाह या स्वजनों के अस्थि व राख का गंगा जल में विसर्जन जोकि शव- दाह के बाद हिन्दू धार्मिक रीति- रिवाजों के अनुसार आवश्यक है के लिए की होगी. अपने परिवार की वंशावली के धारक पंडित के पास जाकर पंजियों में उपस्थित वंश- वृक्ष को संयुक्त परिवारों में हुए सभी विवाहों, जन्मों व मृत्युओं के विवरण सहित नवीनीकृत कराने की एक प्राचीन रीति है.
वर्तमान में हरिद्वार जाने वाले भारतीय हक्के- बक्के रह जाते हैं जब वहां के पंडित उनसे उनके नितांत अपने वंश- वृक्ष को नवीनीकृत कराने को कहते हैं. यह खबर उनके नियत पंडित तक जंगल की आग की तरह फैलती है. आजकल जब संयुक्त हिदू परिवार का चलन ख़त्म हो गया है व लोग नाभिकीय परिवारों को तरजीह दे रहे हैं, पंडित चाहते हैं कि आगंतुक अपने फैले परिवारों के लोगों व अपने पुराने जिलों- गाँवों, दादा- दादी के नाम व परदादा- परदादी और विवाहों, जन्मों और मृत्युओं जो कि विस्तृत परिवारों में हुई हों अपितु उन परिवारों जिनसे विवाह संपन्न हुए आदि की पूरी जानकारी के साथ वहां आयें. आगंतुक परिवार के सदस्य को सभी जानकारी नवीनीकृत करने के उपरांत वंशावली पंजी को भविष्य के पारिवारिक सदस्यों के लिए व प्रविष्टियों को प्रमाणित करने के लिए हस्ताक्षरित करना होता है. साथ आये मित्रों व अन्य पारिवारिक सदस्यों से भी साक्षी के तौर पर हस्ताक्षर करने की विनती की जा सकती है.

हरिद्वार का केंद्र व मुख्य स्थान हर की पौड़ी

हम लोग सुबह ५ बजे उठ कर तैयार होकर अस्पताल चौराहे पर पहुंचे, जाते ही हमें राजस्थान परिवहन निगम कि बस जो कि जोधपुर से आ रही थी, मिल गयी, बस में चढ़ते ही बच्चे हँसने लगे, मैंने उनसे हँसने का कारण पूछा तो बोले पापा इस बस में अधिकतर लोग गंजे क्यों हैं, मैंने कहा कि राजस्थान में जब कोई आदमी मरता हैं तो उसकी अश्थिया सुरक्षित रख लेते हैं, और जो कोई भी कभी हरिद्वार जाता हैं तो उन्हें लेकर के आता हैं, और विसर्जन करते हैं. राजस्थान से चलने से पहले ये लोग अपना मुंडन करवा लेते हैं. बस हरिद्वार के पन्त्द्वीप पार्किंग में पहुँच गयी. बस के रुकते ही पंडो की भीड़ बस में चढ गयी, और यात्रियों से पूछने लगी, कंहा के हो, कौन जात हो. यह सुनकर बड़ा अजीब लगा और गुस्सा भी आया. ऐसे ही लोगो की वजह से हिन्दुस्तान में जाति पाति खत्म नहीं हो पा रही हैं. उन्होंने मुझे भी राजस्थान का ही समझा, और मेरी जाति पूछने लगे, मैंने कंहा हिन्दुस्तानी, तो मेरे से लड़ने को आ गए. मैंने चुपचाप निकलने में ही भलाई समझी. ये लोग उत्तराखंड और और पश्चिमी उत्तरप्रदेश से बाहर के लोगो को बहुत बुरी तरह से ठगते हैं. और उनसे दुर्व्यवहार भी करते हैं. खैर पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लोग विशेषकर मुज़फ्फरनगर और मेरठ के लोग इनके काबु में नहीं आते हैं.बस से उतरकर सबसे पहले किसी अच्छे होटल की तलाश शुरू हुई, जंहा से मनसा देवी का रोप वे शुरू होता हैं, वंही पर एक अच्छे होटल में कमरा मिल गया, होटल का नाम मुझे कुछ याद नहीं हैं. ७५०/- में कमरा मिल गया.

माँ मनसा देवी

वंहा पर कुछ देर रुक कर चाय वाय पीकर के सबसे पहले मनसा देवी की पैदल चढाई शुरू की. करीब २५ मिनट में हम मनसा देवी पहुँच गए. प्रसाद की दूकान से प्रसाद ख़रीदा, और माता के दर्शन किये. यह मंदिर बिल्व पर्वत के शिखर पर स्थित हैं. माता मनसा देवी अपने भक्तो के मन की सभी इच्छाओ को पूरा करती हैं. यंहा पर एक वृक्ष पर मनौती का धागा भी बाँधा जाता हैं. हमने भी कभी एक धागा बाँधा था, उसे खोला.

माँ मनसा देवी मंदिर

मनसा देवी पर तीनो भाई बहन

मनसा देवी पर प्रसाद की दुकान के बाहर

एक फोटो मेरा भी हो जाए


हमारा परिवार

मनसा देवी से गंग नहर के उद्गम का दृश्य

गंगा नहर का उद्गम स्थल ओर झूला पुल


सप्त धारा

मनसा देवी से हरिद्वार नगर ओर गंगा नहर का दृश्य

गंगा जी के ऊपर बना हुआ बाँध भीम गोडा बैराज

माँ चंडी देवी

मनसा देवी के दर्शन करके हम लोग थ्री व्हीलर में बैठ कर माँ चंडी देवी के दर्शन को चल दिए. करीब ३ कीलोमीटर की पैदल चढाई करके हम लोग मंदिर परिसर में पहुंचे. यह मंदिर गंगा जी की नीलधारा को पार करके नील पर्वत के शिखर पर हैं. यह मंदिर कश्मीर के राजा सुचेत सिंह द्वारा १९२९ में बनवाया गया था. यह कहा जाता हैं कि माँ आदि शक्ति ने चंद मुंड नामक राक्षसों का यंही पर संहार किया था. माँ कि मूर्ति आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित है. इस मंदिर के पास ही हनुमान जी की माता अंजनी देवी का भी मंदिर हैं. इन मंदिरों तक रोपवे से भी जाया जा सकता हैं. यंही पर ही एक अच्छा रेस्टोरेंट भी बना हुआ है, जिसमे हमने कुछ पेट पूजा की. फिर रोप वे का टिकट लेकर रोप वे के द्वारा नीचे उतर आये.

चंडी देवी से गंगा जी के ऊपर पुल ओर हरिद्वार का दृश्य

ज़नाब बड़ी खुशी में अजगर अपने गले में डलवा रहे हैं

तरु ने अपने गले में खुशी खुशी अजगर को डलवा लिया, पर जब अजगर ने अपना फन ऊपर को किया तो घबरा गया और चिल्लाने लगा.

जब अजगर ने अपना फन ज़नाब के मुह के ओर किया

चंडी देवी रोप वे

नीचे से ऊपर आती ट्रोली


गंगा जी के बीच में महादेव

गंगा जी के बीचो बीच महादेव की मूर्ती बहुत ही अच्छा दृश्य प्रस्तुत करती हैं और मन श्रद्धा से भर जाता हैं.

शांतिकुंज

माँ चंडी देवी से हम थ्री व्हीलर से शांति कुञ्ज पहुँचते हैं. शांति कुञ्ज हरिद्वार ऋषिकेश मार्ग पर हरिद्वार से ७ किलो मीटर पर स्थित हैं. यह आश्रम आचार्य श्रीराम शर्मा द्वारा स्थापित हैं. जिन्होंने गायत्री परिवार की स्थापना की हैं. आजकल इसके प्रमुख डा. प्रणव पंड्या जी हैं. यंहा पर आयुर्वेदिक वाटिका देखने लायक हैं. यह स्थान हिंदू धर्म और अध्यात्म का प्रमुख केंद्र हैं.

शांतिकुंज का दृश्य


शांतिकुंज – ये मशाल जलती रहेभारत माता मंदिर

शांतिकुंज के पास ही स्थित हैं भारत माता मंदिर, इसकी स्थापना श्री सत्यमित्रानंद जी ने की थी. यह मंदिर ७ मंजिला ऊँचा हैं. और यंहा से दूर दूर माँ गंगा के फैले हुए विस्तार व सप्त धारा के दर्शन होते हैं.इस मंदिर में हिंदू धर्म के सभी प्रमुख अंगों (सनातन धर्म, आर्य समाज, सिक्ख, जैन, बोद्ध आदि ) के व महापुरुषों के दर्शन होते है.

भारत माता मंदिर प्रवेश द्वार

यंहा से हम विभिन्न मंदिरों को देखते हुए हर की पौड़ी पहुँचते हैं काफी भीड़ थी. माँ गंगा में डुबकी लगाकर, व स्नान करके मन पवित्र हो गया. हम लोग जल्दी नहा लेते हैं पर बच्चे लोग बहुत समय लगते है.

हरकी पौड़ी पर बिरला जी द्वारा बनवाया घंटाघर

पवित्र गंगा में स्नान


बच्चे ठन्डे जल में डुबकी लगाकर बाहर निकलने का नाम नहीं ले रहे हैं.

रात के समय हर कि पौड़ी


माँ गंगा जी की आरती , साभार विकिपीडिया

स्नान के बाद माँ गंगा जी की आरती को देखने का सौभाग्य हमें मिला. इसके बाद भूख बहुत लग रही थी, पेट में चूहे कूद रहे थे. मुख्य बाज़ार में स्थित एक होटल में खाने का आनंद लिया, यह होटल अपने खाने के लिए पुरे हरिद्वार में मशहूर हैं. क्या लाजवाब खाना था, मज़ा आ गया. खाना खाने के बाद फिर हर की पौड़ी पहुँच गए और वंहा ठंडी हवाओ का आनंद लेते रहे. करीब दस बजे अपने होटल आ गए, और अपना पड़ कर सो गए.आगे का वृत्तान्त आपको हरी का द्वार हरिद्वार – भाग २ में मिलेगा…..

39 Comments

  • lakshay says:

    bahut hi achchha varnan hai, hardwar ka. aarti ka photo sabse achchha hai. good going guptaji

  • Neeraj Jat says:

    पश्चिमी उत्तरप्रदेश के लोग विशेषकर मुज़फ्फरनगर और मेरठ के लोग इनके काबु में नहीं आते हैं
    बिल्कुल सही बात…. अपन भी मेरठ के हैं और कभी भी इनके कब्जे में नहीं आये।
    आखिरी फोटो वाकई गजब का है। तकनीकी रूप से गजब का फोटो है… कम लाइट में बेहतरीन पिक्चर और वो भी लगातार गतिमान होते हुए पण्डितों का और उससे भी ज्यादा अति वेगवती गंगा का। कोई ब्लर नहीं। तालियां…. जोरदार तालियां।
    ऐसे फोटो केवल कोई सुपरहिट कैमरा और सुपरहिट हाथ ही खींच सकता है।

    • नीरज भाई, मुज़फ्फरनगर और मेरठ के लोग तो कही भी चले जाए छा जाते हैं. और किसी के भी बस में नहीं आते हैं. सराहना के लिए धन्यवाद नीरज भाई.

    • Sanjay Kaushik says:

      भाई नीरज, आपसे एक मदद चाहिए थी,
      मैं मौका लगते ही, गंगोत्री और यमुनोत्री के दर्शन करना चाहता हूँ. आपके कहीं पे एक कमेन्ट को पढ़ कर अंदाजा लगाया था कि आपको इन रास्तों और साधनों का अच्छा ज्ञान है. इसीलिए आपको मदद के लिए चुना .

      क्या चार दिनों मैं ये दोनों संभव हैं ? यदि हाँ तो कैसे ? दूसरा बस अड्डे से रोडवेज मैं जाना चाहूँगा, मेरे ख्याल से यदि आपको पता हो कि कहाँ कि बस कहाँ के लिए पकडनी है तो ये सबसे सस्ता और सबसे तेज साधन होते हैं कहीं पहुँचने का .

      मेरा इमेल “kaushiksanju@yahoo.com” जहाँ आप जबाव छोड़ सकते हैं..

      • Neeraj Jat says:

        कौशिक साहब, आपके पास चार दिन हैं लेकिन आपने यह नहीं बताया कि आप शुरूआत कहां से करेंगे। चलिये मान लेते हैं कि आप पहले दिन की शुरूआत ऋषिकेश से करेंगे।
        ऋषिकेश से सुबह सवेरे जानकीचट्टी के लिये बसें निकलती हैं। रोडवेज बस अड्डे के बगल में ही प्राइवेट बसों का अड्डा है। प्राइवेट बसें जाती हैं जानकीचट्टी। दूरी करीब 250 किलोमीटर है, पहुंचने में शाम हो जायेगी।
        अगले दिन आप यमुनोत्री के लिये पैदल यात्रा शुरू कर सकते हैं। पांच किलोमीटर है, दोपहर तक वापस जानकीचट्टी पहुंच सकते हैं। वहां से कहीं की गाडी मिले या ना मिले, आप तुरन्त देर ना करते हुए किसी बस या जीप से बडकोट पहुंचिये। दो घण्टे लगेंगे, वहां से आपको अगर उत्तरकाशी की बस या जीप मिले तो तुरन्त बैठ जाइये। मेरा अन्दाजा है कि शाम चार बजे तक आपको बडकोट से उत्तरकाशी की गाडी मिल ही जायेगी। दो दिन खत्म।
        तीसरा दिन- सुबह सुबह उत्तरकाशी से निकल पडिये और गंगोत्री पहुंचिये- जीपें और बसें दोनों मिलेंगी। 100 किलोमीटर है, चार घण्टे के करीब लगेंगे। आराम से पूरे दिन गंगोत्री घूमिये। रात को वहीं रुकिये।
        चौथा दिन- आप आराम से ऋषिकेश लौट सकते हैं।
        उत्तराखण्ड के पहाडों में ज्यादातर जीपें और प्राइवेट बसें चलती हैं। रोडवेज बसें कम ही चलती हैं। मेरी सलाह है कि जानकीचट्टी से यमुनोत्री जाने के लिये खच्चर का प्रयोग कीजिये, जल्दी काम हो जायेगा। आखिर आपको उसी दिन उत्तरकाशी पहुंचना है। अगर आप दूसरे दिन उत्तरकाशी नहीं पहुंच पाते हैं तो चिन्ता की कोई बात नहीं है, बडकोट में ही रुक जाइये। अगले दिन सुबह सवेरे पहले उत्तरकाशी और फिर गंगोत्री।
        और हां, मानसून आ गया है। अगर एक दिन रिजर्व में रख सको तो रख लेना। इधर बरसात में भू-स्खलन बहुत होता है। कई कई घण्टे सडक बन्द रहती है।
        यात्रा मुबारक हो।

        • Mahesh Semwal says:

          Jankichatti se Yamnotri 6 kms hai na ki 5 kms. baki sai hai Rishikesh – Yamnotri – Gangotri – Rishikesh 4 din mein ho sakthe hain.

          • Neeraj Jat says:

            सेमवाल जी, मैंने सभी दूरियां अन्दाजे से लिखी हैं। 5 की जगह 6 किलोमीटर होगा, कोई बात नहीं।
            वैसे मैं जब यमुनोत्री गया था, तो हनुमानचट्टी से जानकीचट्टी तक पैदल ही गया था और जानकीचट्टी से एक किलोमीटर पहले एक जगह लिखा था- यमुनोत्री 6 किलोमीटर।
            http://1.bp.blogspot.com/_n4dvGkVExFQ/S-Jg2nwaRFI/AAAAAAAAB-E/OPcqzTNi4D8/s1600/PICT1265.JPG
            उसी के आधार पर मैंने बताया कि जानकीचट्टी से यमुनोत्री 5 किलोमीटर है।

  • Surinder Sharma says:

    प्रवीण जी,
    बहुत अच्छा यात्रा कथन लिखा है , फोटो तो लाजवाब हैं . माता मनसा देवी, एक वृक्ष पर मनौती का धागा बहुत सुंदर वर्णन है . माता मनसा देवी का एक मंदिर चंडीगढ़ के पास भी है. धन्यवाद, वन्देमातरम.

    • धन्यवाद शर्मा जी, माता मनसा देवी के दो मंदिर हैं, एक हरिद्वार में और एक पंचकुला चंडीगढ़ में. दोनों ही मंदिरों की बहुत ही मान्यता हैं. पंचकुला वाला मंदिर शक्तिपीठ हैं, और ९ देवियों की यात्रा में एक प्रमुख मंदिर माना जाता हैं. वन्देमातरम .

  • JATDEVTA says:

    बेहतरीन फोटो सहित लिखा हुआ बढ़िया लेख, एक बार भी नहीं लगा कि कुछ बच गया है, मैंने कभी यहाँ की पूरी आरती नहीं देखी है, बनारस की जरुर देखी है, बिलकुल वैसी ही लगती है,
    इस अजगर के बच्चे /सांप को बच्चे ने गले में डालने की हिम्मत तो की, डरपोक लोग तो इन्हें देख दूर से ही भाग खड़े होते है वो अलग बात है कि उसने अपनी मुंडी ऊपर कर दी थी हां हा हा हा हा हा हो जाता है ऐसा भी

    • संदीप जी राम राम, सराहना करने के लिए धन्यवाद. तरु ने अजगर अपने गले में डलवा तो लिया था, और बोला था चाचा एक फोटो लेलो, जैसे ही अजगर ने अपना मुह ऊपर को किया था तो वो चिल्लाने लगा था, उसी समय ये फोटो ले लिया था. इसीलिए ये दिलचस्प फोटो बन गया था.

  • Mukesh Bhalse says:

    प्रवीण जी,
    तरु के अजगर के साथ दोनों फ़ोटोज़ ने इस पोस्ट में जान डाल दी है. रोमांच भय तथा हास्य से मिश्रित ये तस्वीरें सचमुच लाजवाब हैं. पहले फोटो में बड़ी ही निडरता से अपने गले में अजगर को डलवा लेना तथा दुसरे फोटो में अजगर के सर ऊपर उठाने से तरु की सिट्टी पिट्टी गम हो जाना, बड़ा ही मनोरंजक लगा.
    आपने हरिद्वार में स्थित बाबा रामदेव के पतंजलि योग पीठ के बारे में कुछ नहीं बताया. शायद आप अपनी अगली पोस्ट में इसे जगह देंगे.
    शांतिकुंज तथा गायत्री परिवार के प्रमुख डॉ. प्रणव पंड्या इंदौर के हैं तथा उन्होंने यहाँ के MGM मेडिकल कॉलेज से M.D. मेडिसिन गोल्ड मेडल के साथ प्राप्त की है. उन्होंने अध्यात्मिक जीवन को महत्व देते हुए U.S. मेडिकल सर्विस की नौकरी को ठुकरा कर गायत्री परिवार ज्वाइन किया. वे गायत्री परिवार के पूर्व प्रमुख पं. श्री राम शर्मा के दामाद तथा मुख्य शिष्य भी हैं.

  • मुकेश जी सराहना करने के लिए धन्यवाद. ये आप ने अच्छी जानकारी दी हैं की डा. पंड्या इंदौर के हैं. मुकेश जी ये यात्रा उस समय की हैं जब हमने ब्लोगिंग की शुरुआत नहीं करी थी. और पतंजलि योगपीठ हम लोग जा भी नहीं पाए थे. इसलिए बाबा रामदेव के बारे में कुछ नहीं लिख पाए. अब हमारी जो भी यात्राये होगी वो पुरी तरह से जानकारी उसमे देने की कोशिश करेंगे. फिर एक बात और भी हैं, की हरिद्वार यंहा से सिर्फ ८८ किलोमीटर हैं. हमारे यंहा एक कहावत हैं की, घर का जोगी जोगना, शायद इसी कारण से हरिद्वार के बाबाओं को हम लोग इतना भाव नहीं देते हैं.

  • Ritesh Gupta says:

    प्रवीन जी…राम राम जी….|
    हरी के हरिद्वार की जय…..! कई बार हरिद्वार की यात्रा कर चुका हूँ….हर बार नया सा ही लगता हैं….मन ही नहीं भरता यहाँ से ….जी करता हैं की अविरल बहती गंगा जी के किनारे घाट पर बैठे ही रहो…और शाम की गंगा आरती का शमा तो की कुछ अलग होता हैं |
    जानकारों युक्त लेख के साथ फोटो भी अच्छे लगे ….खास कर गंगा आरती का…..|

    • राम राम जी राम राम, रितेश जी, आप ठीक कहते हो, पता नहीं क्या बात हैं हरिद्वार में, गंगा जी के किनारे बैठे हुए घंटो हो जाते हैं, मन नहीं करता हैं उठने को, सराहना करने के लिए धन्यवाद. जय गंगा मैय्या

  • Mahesh Semwal says:

    bhahut khub !

  • venkatt says:

    Praveen Gupta ji, the most beautiful photos I have seen in a Ghumakkar post for some time. Haridwar and the temple darshans came alive through your pictures.

    • वेंकट जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद, आपकी सराहना करने से हमें आगे लिखने के लिए और घुमक्कडी के लिए बल मिलता है. धन्यवाद पुनः .

  • प्रवीण कुमारजी ,

    पहली बात हरिद्वार, हरद्वार ,गंगाद्वार के बारे में बहुत से बेहेतेरिन लेख लिखे गए है . लेकिन मुझे उनमे सबसे अच्छा आपका लेख लगा है. बहुत बढ़िया चित्र है . खास तौर पे गंगा आरती वाला . यह आपने कहाँ से लिया , बोट में बैठक या फिर नदी पार करके ?? और हर की पौड़ी पर १२ माह इतनी ही भीड़ रहती है क्या ??
    विवरण भी बहुत मस्त था.मजा आ गया. अंजना देवी और चंदा देवी की यात्रा भी बहुत खूब थी और चित्र काफी बढ़िया.भारत माता वाह वाह! और शिव की मूर्ती बहुत खूब . अजगर किसे तरु के गले में डाला था ?
    बस एक बात है प्रवीण जी आप अगर तारीख और महीना भी डाल दे आपके लेख में तो और भी परफेक्ट हो जायेगा .
    हरिद्वार के दर्शन के लिए धन्यवाद.

    • विशाल जी धन्यवाद बहुत बहुत, आरती वाला फोटो मैंने सामने से लिया था. हर की पोड़ी पर तो मेरे भाई १२ के १२ महीने यही हाल रहता हैं. विशेषकर शनिवार और रविवार में तो बहुत बुरी हालत होती हैं. ये फोटो शनिवार को शाम को लिया था. तरु ने अजगर खुद ही फोटो खिचवाने के लिए मस्ती में अपने गले में डाला था. मेरे से इसमें गलती हुई तारीख नहीं लिख पाया. यही कोई १२-१३ मई २००८ की तारीख थी.

    • विशाल जी मैं माफ़ी चाहूँगा, वह आरती वाला फोटो विकी पेडिया से लिया हुआ हैं. दरअसल इस पोस्ट में मेरी हेल्प मेरे भतीजे तरु ने की थी. इस लिए थोड़ा सा संदेह रहा हैं. इसलिए ये गलती हुई हैं. धन्यवाद

  • Sanjay Kaushik says:

    आप सभी को जय राम जी की,

    गुप्ता जी बहुत अच्छा लिखा है, फोटो भी बहुत अच्छे हैं. शांति कुञ्ज को कभी गए नहीं हैं, हाँ बाकि सारे मंदिर जरूर देखे हुवे हैं. “कौशिक” हूँ, पंडित हूँ, सो पेटू तो होना ही है, इसीलिए एक जगह आके सुई अटक गई, आपने ये तो कह दिया की “होटल मैं खाना खाया, खाना पूरे हरिद्वार मैं मशहूर है”, लेकिन ये नहीं बताया होटल कौन सा है और कहाँ है ?

    और गंगा मैया की आरती से याद आया, आरती पे आपने भीड़ तो देख ही ली, जब मैंने पहली बार माँ गंगा की आरती में पहुंचे तो मेरे बच्चे और उनकी मम्मी साथ थी, उन्हें तो मैंने पुल के उपर बैठा दिया, लेकिन मेरी वहां से तसल्ली नहीं हो पा रही थी और हर की पौड़ी पे उस समय जगह मिलना असंभव सा ही होता है “सो मैंने उस दिन पूरी आरती गंगा मैया की गोद मैं बैठकर (मैं गंगाजी के बीच मैं पहुँच के नीचे टूटी हुई ईंट में पाँव फंसा के खड़ा रहा पूरी आरती होने तक) देखी थी. हरियाणा का हूँ ना, यहाँ इतने “जाट” तो सभी होते हैं..

    वैसे मैं लगभग हर महीने पूर्णिमा हरिद्वार में “हर की पौड़ी” पे गंगा स्नान की कोशिश करता हूँ और माँ गंगा, कोशिश सफल भी कर देती हैं, सो होटल का नाम बताना ताकि “गंगा स्नान” के साथ साथ आपका होटल भी ट्राई किया जा सके..

    जय हो गंगे मैया की, हर हर गंगे…

    • भाई मेरे वह होटल मुख्य बाज़ार में हैं, और पेशावरिया या बहावाल्पुरी के नाम से हैं शायद. आप किस्मत वाले हो जो हर महीने गंगा मैय्या में स्नान करते हो. हम तो मुज़फ्फर नगर में होते हुए नहीं जा पाते हैं.सराहना करने के लिए बहुत ही धन्यवाद..

  • Nandan Jha says:

    जानकारी से परिपूर्ण लेख प्रवीण जी | पण्डे हर जगह के ऐसे ही हैं , इस बारे में पहली भी काफी बात हो चुकी है इसलिए ज्य्दादा नहीं जोडूंगा | आपका खुद की जाति को हिन्दुस्तानी बोलना प्रशंशा के योग्य है |

    क्योंकि आप हरिद्वार से इतना करीब रहतें है, क्या एक दिन का ट्रिप निजी वाहन से करना में ज्यादा आसानी रहती ?

    • नंदन जी धन्यवाद, हरिद्वार में सब से ज्यादा समस्या पार्किंग की होती हैं. और हरिद्वार में लोकल सवारी बहुत ही सस्ती हैं. और मुज़फ्फरनगर से हर ५ मिनट में बस मिल जाती हैं. इसलिए सार्वजानिक परिवहन ही ठीक रहता हैं.

  • Monty says:

    पंडो के बारे में सुना तो बड़ा ही आश्चर्यजनक लगा..

    ये तो सुना और देखा है की वो लोग पीढियों का हिसाब किताब रखते है…

    पर बस में घुस कर लोगो के साथ बदतमीजी करते है ये पहली बार सुना है.

  • कभी कभी थोड़ा बहुत कही न कही से हेल्प लेनी भी पड़ती हैं.

    • Neeraj Jat says:

      प्रवीण गुप्ता जी,
      आप अन्दाजा नहीं लगा सकते कि मुझे कितना गुस्सा आ रहा है आप पर। मतलब आपको पता ही नहीं है कि जो फोटो आप लगा रहे हैं, वो आपने खींचा है या किसी और ने। हेल्प जरूर लेनी पडती है, लेकिन आभार, एहसान भी कोई चीज होती है। आप ब्लॉग पर भी लिखते हैं, घुमक्कड पर भी लिखते हैं, लेकिन आपकी यह लापरवाही क्षमा के योग्य नहीं है। …ना।
      मैंने अपने पहले कमेण्ट में मेरठ मुजफ्फरनगर के अलावा केवल उस एक फोटो का ही जिक्र किया था। आपके बाकी फोटो और उस आखिरी फोटो में अन्तर साफ दिख रहा है और इसीलिये मैंने उसी फोटो की तारीफ की।

      अब एक बात सम्पादकों से ,
      नवीन गुप्ता का कमेण्ट हटाना नहीं चाहिये था। भले ही उन्होंने अभद्र भाषा का प्रयोग किया हो। बल्कि उसमें करेक्शन करके कमेण्ट की मूल भावना को ही छाप देना था। इससे यही सिद्ध होता है कि हम केवल तारीफ ही सुनना चाहते हैं। आलोचकों को भी मौका दो।

      और आखिर में नवीन गुप्ता से,
      ये तो आप भी जानते हैं कि आपने आलोचना के साथ- साथ अभद्र भाषा का भी प्रयोग किया है। पहली बात तो ये है कि कोई अपनी आलोचना नहीं सुनना चाहता, ऊपर से उसे आलोचना के साथ साथ गाली भी मिल रही हो तो क्या कहने…
      आपसे अनुरोध है कि आलोचना करते रहिये लेकिन शान्त दिमाग से। …कूल…
      आपने मुझे चोर लुटेरा कहा है… तुम्हारी कितनी भैंस खोल कर भाग गया मैं? बता देना भईया… एक एक भैंस का हिसाब दे दूंगा।

  • भाइयो मेरे से इस पोस्ट में एक गलती हुई हैं जिसके लिए मैं माफ़ी चाहता हू. दरअसल इस पोस्ट में मैंने थोड़ी हेल्प अपने बच्चो और तरु आदि की भी ली थी. वह आरती वाला फोटो एक मैंने भी लिया था. बच्चो ने वो फोटो न डाल कर के विकिपीडिया से दूसरा फोटो डाल दिया . जबकि मै ये समझता रहा वो फोटो मैंने लिया हैं. इस बात के लिए मैं फिर एक बार सभी लोगो से, और घुमक्कड से क्षमा चाहता हू. धन्यवाद.

  • Nandan Jha says:

    @ प्रवीण जी – फोटो का क्रेडिट ठीक कर दिया गया है |

    Also certain comments have been curated, as you have rightly pointed.

  • नीरज जी एक बार फिर से मैं क्षमा चाहता हूँ. आप लोग, संदीप जी ब्लॉग्गिंग और घुमक्कडी में हमारे गुरु हो, और शिष्यों से गलती हो जाती हैं. कृपया क्षमा करना. और मैंने तो आप को कुछ भी नहीं कहा हैं. फिर ये चोर लुटेरा वाली बात कहा से आ गयी हैं.

    • Neeraj Jat says:

      गुप्ता जी,
      उस कमेण्ट को इस बार गौर से पढना। मैंने उसमें तीन अलग-अलग लोगों को सम्बोधित करके उनसे अलग-अलग बातें कही हैं। चोर लुटेरा मुझे नवीन ने बताया था, मैंने उसे ही कहा है। आपको मैंने कुछ नहीं कहा।

  • Nandan Jha says:

    @ Navin, @ Neeraj – Please exercise restraint and maintain decorum. We would be curating some of the contents of your comments. It is a public forum, lets treat each other with respect. Praveen has already agreed the oversight and in the best interest, lets bury the issue and move on.

  • बढिया फोटो प्रवीण जी ………….गलतियां इन्सान से होती हैं और ये प्रतीक हैं कि आप जिंदा हैं मुर्दा नही ……….आगे बढो

  • बहुत ही अच्छा विवरण और फोटो हैं. मनसा देवी और चंडी देवी पर पहाड़ के ऊपर से गंगा , गंग नहर और सड़क बहुत ही सुंदर दिखाई पद रहे हैं. अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी.

  • Anubhav says:

    नमस्कार सभी को…
    कही से फोटो ले लेना .. किसी और से ली गयी जानकारी दे देना .. गलत नहीं है.. यदि मूल स्रोत्र का उल्लेख कर दिया जाए तो..
    आपका वर्णन और फोटोज सभी अच्छे लगे ..
    हार्दिक धन्यवाद..

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