मानसून तो विदा ले चà¥à¤•ा है और ठंड ने हलà¥à¤•ी हलà¥à¤•ी दसà¥à¤¤à¤• à¤à¥€ दे दी है। पर पिछले महिने मानसून की जो अदà¥à¤à¥à¤¤ छटा छतà¥à¤¤à¥€à¤¸à¤—ढ़ जाते हà¥à¤ मैंने देखी उसे आपसे बाà¤à¤Ÿà¥‡ बिना रहा à¤à¥€ तो नहीं जा रहा है। कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ के काम से à¤à¤¿à¤²à¤¾à¤ˆ जाने के दौरान कà¥à¤› à¤à¤¸à¥‡ कमाल के दृशà¥à¤¯ देखने को मिले कि वो कहते हैं ना कि “जी हरिया गया”। जिन दृशà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को मैंने चलती टà¥à¤°à¥‡à¤¨ से अपने मोबाइल कैमरे में क़ैद किया वो रेल से सफ़र के कà¥à¤› यादगार लमहों में से रहेंगे |
वैसे सामानà¥à¤¯ व सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤° कà¥à¤²à¥‰à¤¸ में यातà¥à¤°à¤¾ करते करते मेरा पूरा बचपन और छातà¥à¤° जीवन बीता पर कारà¥à¤¯à¤¾à¤²à¤¯ और पारिवारिक यातà¥à¤°à¤¾à¤“ं की वज़ह से विगत कई वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ से इन दरà¥à¤œà¥‹à¤‚ में यातà¥à¤°à¤¾ ना के बराबर हो गई थी। पर à¤à¤¿à¤²à¤¾à¤ˆ से राà¤à¤šà¥€ आते वक़à¥à¤¤ जब किसी à¤à¥€ वातानà¥à¤•ूल दरà¥à¤œà¥‡ में आरकà¥à¤·à¤£ नहीं मिला तो मैंने ततà¥à¤•ाल की सà¥à¤µà¤¿à¤§à¤¾ को तà¥à¤¯à¤¾à¤—ते हà¥à¤ सà¥à¤²à¥€à¤ªà¤° में आरकà¥à¤·à¤£ करवा लिया। वैसे à¤à¥€ बचपन से खिड़की के बगल में बैठकर चेहरे से टकराती तेज़ हवा के बीच खेत खलिहानों, नदी नालों, गाà¤à¤µà¥‹à¤‚ कसà¥à¤¬à¥‹à¤‚ और छोटे बड़े सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨à¥‹à¤‚ को गà¥à¤œà¤°à¤¤à¤¾ देखना मेरा पà¥à¤°à¤¿à¤¯ शगल रहता था। आज इतने दशकों बाद à¤à¥€ अपने इस खिड़की पà¥à¤°à¥‡à¤® से खà¥à¤¦ को मà¥à¤•à¥à¤¤ नहीं कर पाया। à¤à¤°à¥€ दोपहरी में जब हमारी टà¥à¤°à¥‡à¤¨ दà¥à¤°à¥à¤— सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ पर पहà¥à¤à¤šà¥€ तो हलà¥à¤•ी हलà¥à¤•ी बूà¤à¤¦à¤¾ बाà¤à¤¦à¥€ ज़ारी थी। साइड अपर बरà¥à¤¥ होने से खिड़की पर तब तक मेरी दावेदारी बनती थी जब तक रात ना हो जाà¤à¥¤
à¤à¤¿à¤²à¤¾à¤ˆ से रायपà¥à¤° होती हà¥à¤ˆ जैसे ही टà¥à¤°à¥‡à¤¨ बिलासपà¥à¤° की ओर बढ़ी बारिश में à¤à¥€à¤—े छतà¥à¤¤à¥€à¤¸à¤—ढ़ के हरे à¤à¤°à¥‡ नज़ारों को देखकर सच कहूठतो मन तृपà¥à¤¤ हो गया। मानसून के समय चितà¥à¤° लेने में सबसे जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ आनंद तब आता है जब हरे à¤à¤°à¥‡ धान के खेतों के ऊपर काले मेघों का साया à¤à¤¸à¤¾ हो कि उसके बीच से सूरज की रोशनी छन छन कर हरी à¤à¤°à¥€ वनसà¥à¤ªà¤¤à¤¿ पर पड़ रही हो। यक़ीन मानिठजब ये तीनों बातें साथ होती हैं तो मानसूनी चितà¥à¤° , चितà¥à¤° नहीं रह जाते बलà¥à¤•ि मानसूनी मैजिक (Monsoon Magic) हो जाते हैं। तो चलिठजनाब आपको ले चलते हैं मानसून के इस जादà¥à¤ˆ तिलिसà¥à¤®à¥€ संसार में । ज़रा देखूठतो आप इसके जादू से समà¥à¤®à¥‹à¤¹à¤¿à¤¤ होने से कैसे बच पाते हैं ?
दà¥à¤°à¥à¤— की बूà¤à¤¦à¤¾ बाà¤à¤¦à¥€ रायपà¥à¤° पहà¥à¤à¤šà¤¨à¥‡ तक गायब हो चà¥à¤•ी थी। सामने था नीला आकाश और पठारी लाल मिटà¥à¤Ÿà¥€ पर जमी दूब से à¤à¤°à¤ªà¥‚र समतल मैदान..
इसी मैदान में मवेशियों को चराता ये चरवाहा छाते की आड़ में जब सà¥à¤¸à¥à¤¤à¤¾à¤¤à¤¾ नज़र आया तो बरबस होठों पर गाइड फिलà¥à¤® का ये गीत कौंध गया..
वहाठकौन है तेरा, मà¥à¤¸à¤¾à¤«à¤¼à¤¿à¤° जाà¤à¤—ा कहाà¤
दम ले ले घड़ी à¤à¤° ये छैयाठपाà¤à¤—ा कहाà¤
रायपà¥à¤° से हमारी गाड़ी अब बिलासपà¥à¤° की ओर बढ़ रही थी। नीला आसमान हमें अलविदा कह चà¥à¤•ा था और अनायास ही काले मेघों के घेरे ने हमें अपने आगोश में जकड़ लिया था। तेज हवाà¤à¤ और बारिश की छींटे तन और मन दोनों à¤à¤¿à¤—ा रहे थे। सहयातà¥à¤°à¥€ खिड़की बंद करने की सलाह दे रहे थे। मन अपनी दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ में रमा कà¥à¤› और ही गà¥à¤¨à¤—à¥à¤¨à¤¾ रहा था |
कहाठसे आठबदरा हो , घà¥à¤²à¤¤à¤¾ जाठकजरा..कहाठसे आठबदरा..
दूर बादलों के पीछे à¤à¤• छोटी सी पहाड़ी नज़र आ रही थी। बादलों की काली चादर के सामने उड़ता शà¥à¤µà¥‡à¤¤ धवल पकà¥à¤·à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का समूह नयनों को जो सà¥à¤•ून पहà¥à¤à¤šà¤¾ रहा था उसे शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ का विसà¥à¤¤à¤¾à¤° दे पाना मेरे लिठमà¥à¤¶à¥à¤•िल है।
ये ना अंत होने वाली हरियाली तो मन में विचार जगा रही थी कि ये हरा रंग कब मà¥à¤à¥‡ छोड़ेगा, मेरा दिल कब तलक à¤à¤¸à¤¾ सà¥à¤– à¤à¥‹à¤—ेगा..:)
सोचता हूठà¤à¤—वन ने जीवन में रंग ना दिठहोते तो ज़िदगी कितनी बेजान और फीकी लगती। रà¤à¤—रेज़ तो चà¥à¤¨à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤ रंगता है पर सबसे बड़ा रà¤à¤—रेज तो ऊपर बैठा है जो पूरी क़ायनात के रंगों को यूठबदलता है कि हर बार उसके नठरूप को देखकर हम दंग रह जाते हैं।
हरे à¤à¤°à¥‡ थल और वरà¥à¤·à¤¾ जल के इस मेल को देख कर मन असीम शांति का अनà¥à¤à¤µ कर रहा था। पà¥à¤°à¤•ृति को नजदीक से महसूस करने की शांति।
टà¥à¤°à¥‡à¤¨ बिलासपà¥à¤° सà¥à¤Ÿà¥‡à¤¶à¤¨ को पार कर चà¥à¤•ी थी। बाहर का दृशà¥à¤¯ बिलासपà¥à¤° को ‘धान का कटोरा’ के नाम से पà¥à¤•ारे जाने की सारà¥à¤¥à¤•ता को वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤ कर रहा था। वैसे अगर आपको दà¥à¤¬à¤°à¤¾à¤œ, काली मूà¤à¤›, मासूरी या जवाà¤à¤«à¥‚ल जैसे नाम सà¥à¤¨à¤¾à¤Šà¤ तो छतà¥à¤¤à¥€à¤¸à¤—ढ़ से तालà¥à¤²à¥à¤• ना रखने से आप थोड़े अचंà¤à¥‡ में जरूर पड़ जाà¤à¤à¤—े। दरअसल ये छतà¥à¤¤à¥€à¤¸à¤—ढ़ में बोठजाने वाले धान की वो किसà¥à¤®à¥‡à¤‚ हैं जो सारे विशà¥à¤µ में अपने सà¥à¤µà¤¾à¤¦ और सà¥à¤—ंध के लिठमशहूर हैं।
आज à¤à¤²à¥‡ ही नीले रंग के अलग अलग शेडà¥à¤¸ मà¥à¤à¥‡ सबसे पà¥à¤°à¤¿à¤¯ हो पर बचपन में धानी छोड़कर कोई दूसरा रंग पसंद ही नहीं आता था। यहाठतो à¤à¤—वन में पूरा कैनवास ही धानि रंग से सराबोर कर दिया था।
और ज़रा देखिठइन जनाब को कैसी तिरछी नज़रों से इस फिज़ा को निहार रहे हैं.. :)
तो बताइठना अगर मैं पà¥à¤°à¤•ृति की इस धानी चà¥à¤¨à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ छटा को देखकर ये गा उठा तो उसमें मेरा कà¥à¤¯à¤¾ कà¥à¤¸à¥‚र? वैसे आप à¤à¥€ गाइठना किसने रोका है :)
रंग उस के बारिश में धà¥à¤² के हैं खिलते और निखरते
हो..उसके ज़मीनों के चेहरों से मिलते और दमकते
उसके अंदाज़ जैसे हैं मौसम आते जाते
उसके सब रंग हà¤à¤¸à¤¤à¥‡ हà¤à¤¸à¤¤à¥‡ जगमगाते
उड़ते बादल के साठमें लहराà¤à¤—ी, मà¥à¤à¥‡ तड़पाà¤à¤—ी
चली जाà¤à¤—ी जैसे बिजà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾
मसà¥à¤¤à¤¾à¤¨à¥€…धानी रे धानी चà¥à¤¨à¤°à¤¿à¤¯à¤¾..
प्रिय मनीष,
भाईजान, किन शब्दों में आपको थैंक यू बोलूं? ये गद्य के अन्दर छिपा कर जो कविता लिख दी है, उसने तो मन ही मोह लिया। चित्रों का तो मैं वैसे भी रसिया हूं ! दस पन्द्रह वर्ष पहले एक बार मानसून में मैं भी दिल्ली से दुर्ग तक की रेल यात्रा कर चुका हूं। जाते समय तो सारे सुन्दर सुन्दर दृश्य रात की काली चादर में छिपे बैठे थे, पर वापसी की ट्रेन अपराह्न ३ बजे थी। ट्रेन चलने के दस पांच मिनट बाद ही हल्की – हल्की बारिश भी शुरु हो गई थी । उस बारिश में भी खिड़की से बाहर गर्दन निकाले – निकाले लैंडस्केप को ऐसे ताकता रहा था कि श्रीमती जी मेरे छोटे भाई से बोलीं, “आपके भइया इतने बड़े हो गये, पर बचपना अब तक नहीं गया !”
शुक्रिया सुशांत जी अपने संस्मरण को साझा करने के लिए । वास्तव में बारिश के दिनों में इस इलाके की ट्रेन यात्रा करना प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को करीब से अनुभव करने का लाजवाब मौका है !
beautiful pictures and equally good narration… have only heard about the beauty of Chattisgarh never been there.. it seems need to visit… Loved the pics specially the one with beautiful mauve morning glory flowers in the meadow… thanks.
Thanks DT. The picture u referred is my favourite too !
काफी दिन के बाद आप का लेख पढ़ा, बहुत अच्छा लगा. इंतना सुंदर लिखने का बहुत बहुत धन्यवाद
लेख आपने पसंद किया जानकर प्रसन्नता हुई। बीच में दो महिने जापान में ही चले गए और वापस आने के बाद भी व्यस्तता इतनी रही कि यहाँ आना संभव नहीं हो पाया।
Simply beautiful Manish. :)
Thx Vibha !
HI Mnish,
Mia jab bhi aisi kisi tashveer ko dekhta hu to man ka mayur nachnay lagta hai aur man ko mar kar rah jata hu, kyo ki aisa sapna mera kabhi pura nahi hota kyoki na itna paisa hota na hi waqt saad nahi saath deta hai.Magar aakhir kabhi na kabhi to samay aayega hi ,bas intzaar hai………………
देखिए अनिल जी पैसे से ज्यादा मन की इच्छा ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती है। वो कहते हैं ना कि जहाँ चाह वहाँ राह। बस यही मनोकामना है कि आपकी घूमने की अभिलाषा जल्द ही फलीभूत हो।
अति सुन्दर मनीष जी ,
रेल का सफर लग ही नहीं रहा था .
शुक्रिया विशाल..कुछ चित्र डिब्बे के अंदर के भी लिये थे पर उनकी कहानी कुछ अलग थी। इन ताजे हरे रंगों के विपरीत वहाँ उदासी और मायूसी थी इसलिए उन्हें इस पोस्ट का हिस्सा नहीं बनाया।
मनीष जी इस बेहतरीन संगीतमय प्रस्तुति के लिए आपका हार्दिक आभार! बड़े दिनों के बाद आपकी रचना पढने को मिली. हरे भरे चित्रों और आपकी प्रकृति प्रेम से भरी पंक्तियों ने वाकई सम्मोहित सा कर दिया था…मॉनसून के जादू को आपने अपनी कलम के जादू में बड़ी खूबसूरती से पिरोया है…
यहाँ अपनी अनुपस्थिति का कारण तो ऊपर लिख ही दिया है। शु्क्रिया इस पोस्ट को इतने प्यारे शब्दों में सराहने के लिए।
Long time Manish.
Yet another lyrical post with Dhani color photos. And it was amazing that all were taken with mobcam.
Thanks that you shared it with us.
Thx Jaishree for your word of appreciation. Sleeper Class..Open Window.. Mobile Cam..and the unbelievable natural beauty visible outside. It just made my day on that trip ..
Beautiful post, Manish…missed your presence here.
After reading your lyrical post, I was reminded of “Yah Kaun Chitrakaar Hai”, that lovely song written so elegantly by the poet Bharat Vyas (from Shantaram’s “Boond Jo Ban Gayee Moti”)
हरी हरी वसुंधरा पे नीला नीला यह गगन
के जिस पे बादलों के पालकी उड़ा रहा पवन
दिशाएं देखो रंग भरी चमक रही उमंग भरी
यह किस ने फूल फूल पे किया सिंगार है
यह कौन चित्रकार है …
तपस्वियों सी है अटल यह पर्वतों की चोटियाँ
यह सर्प सी घुमेरदार घेरदार घाटियाँ
ध्वजा सी यह खड़े हुए हैं वृक्ष देवधार के
गलीचे यह गुलाब के बगीचे यह बहार के
यह किस कवी की कल्पना का चमत्कार है
यह कौन चित्रकार है…..
कुदरत की इस पवित्रता को तुम निहार लो
इसके गुणों को अपने मन में तुम उतार लो
चमकालो आज लालिमा अपने ललाट की
कण कण से झनकती तुम्हे छबी विराट की
अपनी तोह आँख एक है उसकी हज़ार है
यह कौन चित्रकार है…..
I was quite busy first preparing my trip of Japan (20 June-4 th Aug) which was almost 7 weeks long. Even after coming back there were lot of pending works to be done. Anyways the song u quoted is apt for this post.
Dear DL,
Thanks a ton for writing this all time favourite song of mine here as a comment. I badly needed the full lyrics but didn’t know where to find them. This song + Sundarkand are partly the reasons why I love Mukesh as a singer and include him as my most favourite singer. Really, while travelling in Chhattisgarh Express back from Durg, I was mesmerized by the natural scenery. God is really the greatest of artists.
Sushant Singhal
बड़ा ही काव्यमय वातावरण निर्मित हो गया है, ऐसे में मेरा कवी ह्रदय भी मचल रहा है कुछ कहने को…………………
दिन में देखो सूरज निकला रात में चमके तारे,
ये तो हैं सौंदर्य गगन के लगते कितने प्यारे,
कभी टिमकते तारे दीखते कभी चांदनी रात,
ऐसा लगता है जैसे हो जनम-जनम का साथ,
सूरज तो प्रकाश देकर करता नवयुग का उजियारा,
शाम को ढलता सूरज देखो लगता कितना प्यारा,
धरती पर हरियाली आये जब बादल गरज के बरसे,
सोच – सोच मन तड़प उठे बादल होने को तरसे,
कही सुनहरी धुप खिली है कही बरसते बादल,
कही हवा बर्फीली है कही सुखा धरती का आँचल,
रहते हैं सब एक गगन में अलग -अलग ये सारे,
मनभावन, मनमोहक ये सूरज, चाँद, सितारे,
ये तो हैं सौंदर्य गगन के लगते कितने प्यारे.
मुकेश जी प्रकृति की ये सुंदरता तो आम आदमी को कवि बना दे फिर आप जैसा कवि हृदय अपने आप को कैसे रोक पाएगा?
मनीष जी, काफी दिनों बाद दिखे पर पूरे मूड में दिखे | तो लेखक के साथ साथ पाठक गन भी मस्ता चुकें हैं इस धानी में , बहुत बढ़िया | कभी छत्तीसगढ़ जाने का अवसर नहीं मिला , हालांकि झारखण्ड और रांची घूमना हो पाया है पर रायपुर के बारे में बहुत कुछ सुना है | चावल की किस्मों के जानकारी पूर्ण रूप से नयी थी |
कुछ हटमल टैग्स के कारण ले आउट ख़राब हो गया था तो उसे दुरुस्त कर दिया गया है |
कमेंट्स के जवाब की प्रतीक्षा में | जय हिन्द |
पहले जापान जाने की तैयारियाँ, फिर जापान की वज़ह से सात हफ्ते गायब रहने के बाद वापस आने पर भी व्यस्तता बनी रही इसलिए यहाँ आना संभव नहीं हुआ।
जब ये पोस्ट प्रकाशित हुई तब मैं दक्षिण महाराष्ट्र में था। वहाँ से निकला तो मसूरी में एक ब्लॉगर कांफ्रेंस में चला गया जहाँ हिंदी में ट्रैवेल ब्लागिंग पर मुझे बोलना था। कल ही लौटा हूँ
रेल, स्लीपर कोच, मानसून और विंडो सीट. मुझे तो आपसे ईर्ष्या हो रही है. :) बहुत अच्छा लिखा है आपने.
are sir,
kya baat hai,
kya likha hai koi kavi lagte hain.
kya photo lete hai.
kamal hain