पर्वतों का राजा, देवताओं की आत्मा और अन्य न जाने कितने ही नामों से प्रसिद्द भारत की उत्तर दिशा में स्थित पर्वतराज हिमालय सदियों से अपने वैभवशाली स्वरुप को लिए हुए अपनी अप्रतिम सुंदरता के कारण प्रकृति-प्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करता है. प्राकृतिक सौंदर्य, अनेक जलस्रोतों और जीवनदायिनी वनस्पतियों को अपनी गोद में समेटे हुए अनेक जीव-जंतुओं का आश्रय स्थल है पर्वतराज हिमालय. हिमालय का प्रत्येक भाग किसी न किसी विशेषता के लिए जगप्रसिद्ध है.
हिमालय की अनेक पर्वत-श्रृंखलाओं के समूह में धौलाधार पर्वत-श्रृंखला अपने अनोखे सौंदर्य के लिए विश्वप्रसिद्ध है. इसी पर्वत-श्रृंखला से सम्बद्ध हिमाचल प्रदेश के काँगड़ा ज़िले के धर्मशाला में त्रिउण्ड नामक आकर्षक पर्वतारोहण क्षेत्र स्थित है. त्रिउण्ड को त्रियुण्ड, Triund या ट्राउण्ड आदि अन्य नामों से भी उच्चारण किया जाता है. धौलाधार पर्वत-श्रृंखला की गोद में स्थित त्रिउण्ड धर्मशाला के आकर्षण को कई गुना बढ़ा देता है. धौलाधार पर्वत-श्रृंखला के पल-पल परिवर्तित होते मनोहारी एवं आकर्षक दृश्यों का अवलोकन ह्रदय के रोम-रोम को प्रफुल्लित कर देता है. धौलाधार पर्वत-श्रृंखला के अप्रतिम सौंदर्य को निहारने का अति उत्तम स्थल है त्रिउण्ड.

त्रिउण्ड: आकर्षक पर्वतारोहण क्षेत्र
पर्वतारोहण में रूचि रखने वालों को त्रिउण्ड अपनी ओर अनायास ही आकर्षित करता है. त्रिउण्ड पर सायंकालीन सूर्यास्त और प्रातःकालीन सूर्योदय के सम्मोहित कर देने वाले दृश्यों का आनंद लेने तथा सघन, स्वच्छ, प्रदूषण-रहित आकाश में टिमटिमाते तारों को निहारने का अनुभव करने के लिए यहां रात्रि-विश्राम की व्यवस्था भी है. खुले आकाश के नीचे टेंट और कैम्पों में यहाँ रुका जा सकता है.
जिस प्रकार स्वादिष्ट व्यंजनों की चर्चा भूखे व्यक्ति की भूख को ओर अधिक बढ़ा देती है उसी प्रकार त्रिउण्ड के प्राकृतिक सौंदर्य की चर्चा ने घुमक्कड़ों की लालसा को भी बढ़ा दिया होगा. जिन्होंने त्रिउण्ड की घुमक्कड़ी नहीं की है उनके मन में अवश्य ही ये प्रश्न उठ रहे होंगे कि त्रिउण्ड कैसे पहुंचा जाए, किस समय जाया जाये और कहाँ पर ठहरा जाए आदि-आदि. आगे अब इन्हीं विषयों पर कुछ चर्चा की जाये.
वैसे तो पूरे वर्ष देश-विदेश से लाखों की संख्या में सभी आयु वर्ग के महिला-पुरुष पर्वतारोहण की अभिलाषा पूर्ण करने के लिए यहाँ आते हैं लेकिन जनवरी और फरवरी के महीने में अत्यधिक हिमपात होने के कारण त्रिउण्ड पर पहुंचना लगभग असंभव होता है. अतः यह समय त्रिउण्ड पर्वतारोहण के लिए उचित नहीं है.
त्रिउण्ड पर्वतारोहण के लिए धर्मशाला से 9 -10 किलोमीटर दूरी पर मक्लोडगंज ठहरने के लिए उत्तम स्थल है. यहाँ पर सभी वर्ग की आवश्यकता अनुसार विश्राम-स्थल होटल आदि सुलभ हैं.
दिल्ली से त्रिउण्ड वायुमार्ग, रेलमार्ग एवं बस किसी भी माध्यम से आसानी से पहुंचा जा सकता है. गग्गल हवाई अड्डा धर्मशाला से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर है. धर्मशाला से सबसे समीप ब्रॉडगेज रेलवे स्टेशन पठानकोट (85 किलोमीटर) तथा टॉय-ट्रेन द्वारा काँगड़ा रेलवे स्टेशन (17 किलोमीटर) है. इन स्थानों पर पहुँचने पर बस अथवा टैक्सी से मक्लोडगंज पहुंचा आसानी से पहुंचा जा सकता है. बस द्वारा दिल्ली से सीधे मक्लोडगंज के लिए बस उपलब्ध है. दिल्ली से धर्मशाला अथवा कांगड़ा के लिए भी वॉल्वो, डीलक्स और साधारण बस सेवा उपलब्ध है. इन स्थानो पर बस द्वारा रात्रि यात्रा करके प्रातः पहुंचा जा सकता है.
मक्लोडगंज मुख्य चौराहे से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर धर्मकोट के समीप माता गालू दुर्गेश्वरी मंदिर (गालू मंदिर) तक ऑटो-रिक्शा या निजी वाहनों से भी पहुंचा जा सकता है. गालू देवी मंदिर से आगे वाहनों का जाना संभव नहीं है इससे आगे की रोमांचकारी यात्रा पैदल ही की जाती है. पर्वतारोहण का सम्पूर्ण आनंद लेने के लिए मक्लोडगंज से पैदल ही यात्रा आरम्भ की जा सकती है.

मक्लोडगंज का मुख्य चौराहा

माता गालू दुर्गेश्वरी मंदिर (पर्वतारोहण आरम्भ स्थल)

त्रिउण्ड पर्वतारोहण आरम्भ करने से पहले एक निवेदन
त्रिउण्ड पर्वतारोहण पर जैसे-जैसे आप पथ पर आगे बढ़ते जाते हैं मानव-निर्मित वाहनों का कोलाहल और प्रदूषण का तनाव पीछे छूटता जाता है. प्रकृति अपने मनोहारी सौंदर्य पाश में आपको बंधने लगती है. त्रिउण्ड की और बढ़ता प्रत्येक पग आपको प्रकृति के समीप ले जाता है. घने वृक्षों की हरियाली, पर्वतों के उन्नत शिखर, पत्थरों के ऊँचे-नीचे टेढ़े-मेढ़े रास्तों के बीच पक्षियों का मधुर कलरव, सूखे पत्तों के हवा से हिलने की सरसराहट मनो-मस्तिष्क में प्राकृतिक संगीत उत्पन्न करती है. पल पल परिवर्तित होते प्रकृति के दृश्यों के सम्मोहन से अपने आप ही पग आगे आगे बढ़ते जाते है. त्रिउण्ड पर पहुँचते हुए मार्ग में आने वाले देवदार और ओक के घने मनोहारी जंगल आपकी थकान को मिटा देते हैं.

त्रिउण्ड पर्वतारोहण मार्ग पर कुछ मनोहारी दृश्य
त्रिउण्ड पर पर्वतारोहण को कठिन तो नहीं कह सकते पर इतना सरल भी नहीं है के आप बिना रुके हुए गंतव्य तक पहुँच जाएँ. प्रारम्भ में कुछ दूर तक तो आसानी से पहुंचा जा सकता है परन्तु अंतिम लगभग दो किलोमीटर का मार्ग कुछ दुर्गम है. कुछ स्थानों पर तो चढ़ना इतना कठिन है की ऊपर चढ़ने से पहले कुछ देर रुककर सोचना पड़ता है के किस तरह आगे बढ़ा जाए. कुछ जगहों पर छोटी पगडंडियां भी आपको मुख्य मार्ग से भटका सकती है. त्रिउण्ड पर पर्वतारोहण करते हुए मार्ग पर भटकने से बचने के लिए अपने आगे और पीछे चलने वाले अन्य पर्वतारोहियों पर विशेष ध्यान रखना चाहिए. मार्ग में अनेक स्थानों पर पर्वतारोहियों की सुविधा के लिए चाय की दुकानें भी हैं. यहाँ से आप अपनी आवश्यकता के अनुसार चाय, बिस्कुट, पानी, नूडल्स आदि अन्य खाने-पीने की सामग्री ले सकते है.

सावधानी और संयम अति आवशक है

त्रिउण्ड की ओर जाते हुए कुछ पर्वतारोही

रिउण्ड की ओर जाते हुए कुछ पर्वतारोह
एक बार त्रिउण्ड पर पहुँचने के बाद जो दृश्य आपकी आँखों के सामने होता है वो आपकी सारी थकान को भुला देता है. त्रिउण्ड से जहाँ एक ओर मनोहारी धौलाधार पर्वत-श्रृंखला को निहारा जा सकता है वहीँ दूसरी ओर धार्मिक आस्था, प्राचीनता और ऐतिहासिकता से समृद्ध कांगड़ा घाटी के दर्शन भी सुलभ होते हैं. त्रिउण्ड से आगे और अधिक ऊंचाई पर अन्य पर्वतारोहण स्थल जैसे स्नोलाइन, लाका ग्लेशियर तथा इंद्रहार पास तक जाने के लिए त्रिउण्ड उपयुक्त विश्राम स्थल है. किसी समय में पदयात्री काँगड़ा से चम्बा तक इस मार्ग से जाते थे.

रिउण्ड शिखर का मनोहारी दृश्य
त्रिउण्ड के शिखर पर पहुँच कर धीरे से आँखों को मूँद कर बैठने पर जिस आनंद का अनुभव होता है उसके आगे संसार के सारे सुख-आनंद तुच्छ लगते है. त्रिउण्ड पर पहुंचना जितना कठिन लगता है वहां के मनोहारी अद्भुत दृश्यों को छोड़कर वापिस आना उससे भी अधिक कठिन हो जाता है. इस प्रकार रोमांचक, अविस्मरणीय त्रिउण्ड पर्वतारोहण का समापन होता है. त्रिउण्ड के मनोहारी दृश्य मनो मस्तिष्क पर जो छाप छोड़ देते हों उन्हें आजीवन भुलाया नहीं जा सकता.

रिउण्ड शिखर पर शान्ति के पल
धर्मशाला और मक्लोडगंज के आस-पास त्रिउण्ड के अतिरिक्त अन्य अनेक आकर्षक दर्शनीय, धार्मिक एवं प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पर्यटन स्थल हैं. त्रिउण्ड पर्वतारोहण के समापन पर रात्रिविश्राम के पश्चात इन स्थलों पर अगले दिन भ्रमण का आनंद लिया जा सकता है. आगामी लेख में इन स्थलों पर चर्चा का प्रयास रहेगा. इसी आशा के साथ घुमक्कड़ी की शुभकामनाएं…
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Very well written post.
Triund is in my wish list. Kindly let us know the distance of the trek and time required.
Thank you Mahesh ji for liking the post and commenting on this.
From Mcleodganj, Galu temple is 2 km and from here main trek is 7 kms.
Wishing your future trip to Triund in advance. Keep travelling…
I have been to McLeod ganj thrice but always (somehow) assumed that Triund is at least a 3 hour difficult trek. You have made Triund much more accessible via your fluid narration and inviting photos. Thank you.
Thank you Nandan ji for your inspirational comment.