दà¥à¤¨à¤¿à¤¯à¤¾ का पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤² अपने आप में विशेष ही होता है और उसी तरह वहां पर लगने वाला बाज़ार à¤à¥€ विशेष होता है. यहाठआप खास कर वैसी वसà¥à¤¤à¥à¤à¤‚ देखते हैं, जो वहां के सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ निवासी अपने धरà¥à¤®-पूजा तथा साथ-ही जीवनोपयोग में लाते हैं, जो वहां की संसà¥à¤•ृति से खास जà¥à¤¡à¤¼à¥€ होती हैं. मà¥à¤à¥‡ तो कई बार à¤à¤¸à¥€ जगहों में लगे बाजारों में अधिक ही मजा आता है. मà¥à¤‚बई सà¥à¤¥à¤¿à¤¤ हाजी अली के दरगाह के बारे में तो आप जरूर जानते ही होंगे. ५ जून २०१६ को सà¥à¤µà¤¾à¤¨à¥à¤¤à¤ƒ सà¥à¤–ाय, दरगाह पर मतà¥à¤¥à¤¾ टेकने के बाद, मैं वहां के बाजार का नजारा करने निकला था. आइये आपके साथ बांटता हूà¤, वहां के बाजार की चमक. हो सकता है कि à¤à¤µà¤¿à¤·à¥à¤¯ में आपको à¤à¥€ à¤à¤¸à¥‡ बाज़ारों में रà¥à¤• कर देखने की खà¥à¤µà¤¾à¤¹à¤¿à¤¶ हो उठे या फिर जब आप हाजी अली जाà¤à¤, तो मेरी कहानी याद आये.

हाजी अली
सूफी दरगाहों पर चादर चढ़ाये जाते हैं. अतः कई सारी दà¥à¤•ानें दरगाह पर चढ़ाई जाने वाली “चादरों†की थीं. लाल, हरे और अनà¥à¤¯ चटकीले रंग के यह चादरें à¤à¥€ तकरीबन à¤à¤• जैसी दिखने वालीं हो गयीं है. उन पर हाजी अली दरगाह तथा मकà¥à¤•ा-सà¥à¤¤à¤¿à¤¥ काबा का डिजाईन छपा हà¥à¤† था. पर यदि कोई चाहे तो हथकरघा पर हाथों से बà¥à¤¨ कर तथा उस पर हाथों से अपनी डिजाईन दे कर चादर बनवाà¤. परनà¥à¤¤à¥ à¤à¤¸à¤¾ करने के लिठउसे किसी जानकार की सहायता लेनी होगी. वसà¥à¤¤à¥à¤¤à¤ƒ वहां की दà¥à¤•ानों में तो रोजमरà¥à¤°à¤¾ के इसà¥à¤¤à¥‡à¤®à¤¾à¤² की चादरें ही मिल रही थीं.

चादरों की दà¥à¤•ान
चादर के साथ लोग फूल à¤à¥€ पेश करते हैं. “गà¥à¤²à¤¾à¤¬ के फूल†ही अकà¥à¤¸à¤° मिलते हैं. सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°-सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° गà¥à¤²à¤¾à¤¬ के फूल मनमोहक लगे. समठमें नहीं आता है की धारà¥à¤®à¤¿à¤• पà¥à¤°à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤ ानों के कारण होने वाले अरà¥à¤šà¤¨à¤¾à¤“ं में फूलों के महतà¥à¤¤à¥à¤µ से कितना कारोबार होता है? अब यदि मà¥à¤à¥‡ खेती करने का मन करे, तो मैं खादà¥à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤¨ लगाऊं या फिर फूल. और यदि चà¥à¤¨à¤¨à¤¾ ही है तो फिर फूल ही कà¥à¤¯à¥‹à¤‚ न चà¥à¤¨à¥à¤‚? पर ततà¥à¤•à¥à¤·à¤£ मà¥à¤à¥‡ माखन लाल चतà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦à¥€ की कविता “पà¥à¤·à¥à¤ª की अà¤à¤¿à¤²à¤¾à¤·à¤¾â€ याद आ जाती है. सूफी सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ में “सेहरा†का बड़ा महतà¥à¤¤à¥à¤µ है. लगà¤à¤— सारे रशà¥à¤®à¥‹à¤‚-रिवाज़ों में सेहरा मà¥à¤–à¥à¤¯ लगता है. सेहरा पहनने वाला तथा पहनाने वाला दोनों को आदर की दृषà¥à¤Ÿà¤¿ से देखने की पà¥à¤°à¤¥à¤¾ है. फूलों की दà¥à¤•ानों में खूबसूरत गà¥à¤‚थे हà¥à¤ सेहरे बड़े ताजे और कलातà¥à¤®à¤• थे. सेहरा गूंथना à¤à¥€ à¤à¤• कला हो सकती है. सबके बस की बात नहीं है. à¤à¤•-à¤à¤• नाज़à¥à¤• फूल को घंटो बैठके गूंथना मेरे से तो सच में नहीं हो सकेगा. यही सोच कर मैंने उस कलाकार को मन-ही-मन अपनी पà¥à¤°à¤¶à¤‚सा दी जिसने à¤à¤• सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤° सेहरा सà¥à¤¬à¤¹-ही-सà¥à¤¬à¤¹ तैयार किया था और जो उस दà¥à¤•ान में अपनी ख़ूबसूरती बिखेर रहा था.

मनमोहक सेहरा
फिर à¤à¤• दूकान दिखी जिसमें “इतà¥à¤°â€ या “अतर†मिल रहा था. यह इतà¥à¤° फूलों के नैसरà¥à¤—िक तेल को डिसà¥à¤Ÿà¤¿à¤² करके बनाये जाते हैं. मूल रूप से बनने वाले इतà¥à¤°à¥‹à¤‚ में अलà¥à¤•ोहल या और केमिकल नहीं लगाया जाता. पहला इतà¥à¤° कहाठबना? कà¥à¤¯à¤¾ मिशà¥à¤° की सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ ने इसे शà¥à¤°à¥‚ किया? अब यह तो मà¥à¤à¥‡ पता नहीं. पर हाल ही में मैंने पढ़ा था की उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ के कनà¥à¤¨à¥Œà¤œ में सोंधी मिटटी के गंध वाला à¤à¥€ इतà¥à¤° बनाया जाता है जिसकी बड़ी मांग है. मà¥à¤à¥‡ लगता है कि à¤à¤• जमाना à¤à¤¸à¤¾ à¤à¥€ बीता होगा जिसमें अलग अलग शाही खानदान को उनके अलग अलग फूलों से बनने वाले इतà¥à¤° से जोड़ा जाता होगा.

इतà¥à¤°à¥‹à¤‚ की दà¥à¤•ान
आगे आई “टोपी†की दà¥à¤•ान. यह टोपी कहीं à¤à¥€ पीछा नहीं छोड़ती. अंगà¥à¤°à¥‡à¤œà¥€ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ के आने बाद हम लोग तो टोपी या मà¥à¤°à¥‡à¤ ा बांधना à¤à¥‚ल गठहै. अनà¥à¤¯à¤¥à¤¾ हम सब आज अपने अपने यहाठचलने वाले टोपियाठपहनते. यह बात मà¥à¤à¥‡ सरà¥à¤µà¤ªà¥à¤°à¤¥à¤® राजसà¥à¤¥à¤¾à¤¨ में समठमें आई, जहाठमैंने पगड़ियों की विविधता देखि थी और जब मेरा महारासà¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¨ पदà¥à¤§à¤¤à¤¿ से नाशिक में आधिकारिक सà¥à¤µà¤¾à¤—त किया गया तब फिर से दà¥à¤¹à¤°à¤¾à¤¯à¥€ गयी. सामाजिक पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ में हर मनà¥à¤·à¥à¤¯ और कौम दà¥à¤¸à¤°à¥‡ से à¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ दिखना चाहती है. इसी पà¥à¤°à¤•ार टोपियों का à¤à¥€ चयन हो चà¥à¤•ा है. लेसदार, नकà¥à¤•ाशीदार गोल टोपी शायद मà¥à¤¸à¤²à¤®à¤¾à¤¨à¥€ सà¤à¥à¤¯à¤¤à¤¾ से जà¥à¤¡à¤¼ गयी है. हालाà¤à¤•ि टोपियों के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤“ं के मामले में अजमेर के दरगाह के बाज़ार की बात निराली थी. हाजी अली में उतनी वैरायटी नहीं थी.

टोपी की दà¥à¤•ान
इलायचीदाना या मà¥à¤•à¥à¤‚दाना अब सà¤à¥€ जगह मिलने लगे हैं. हाजी अली में इनका पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¨ किस दौर à¤à¤µà¤‚ किस-विधि शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤† होगा, यह à¤à¤• अनà¥à¤¸à¤¨à¥à¤§à¤¾à¤¨ का विषय हो सकता है. मगर मैं यह देख कर हैरान था कि कैसे ये ननà¥à¤¹à¤¾-सा मीठा मीठा दाना लगà¤à¤— सà¤à¥€ धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ में फैल गया है. जहाठà¤à¥€ जाओ, यह जरूर मिलेगा. कà¥à¤¯à¤¾ सरकार को पता à¤à¥€ है कि इसका वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¤¾à¤° कितने टनों का है? कितने लोग इस साधारण से दिखने वाले वसà¥à¤¤à¥ के निरà¥à¤®à¤¾à¤£ में लगे हà¥à¤ है? साथ ही टंगे थे, वो कचà¥à¤šà¥‡ सूत के धागे, जिसे हम “बदà¥à¤§à¥€â€ के नाम से जानते थे. हाथों में या बाहों में धागे बांधना अब à¤à¤• सरà¥à¤µà¤µà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥€ पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ हो गयी है. अब आइये जरा खाने-पीने की सामगà¥à¤°à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ का मà¥à¤†à¤¯à¤¨à¤¾ किया जाये.
पà¥à¤¯à¤¾à¤œà¤¼ के छोटे छोटे तले हà¥à¤ समोसे आपको मिलेंगे à¤à¤•दम दरगाह के सामने वाली दà¥à¤•ान में. वैसे तो वहां बड़ा पाव, पà¥à¤¯à¤¾à¤œà¤¼ की पकोरियां à¤à¥€ मिल रही थीं. पर बीस रà¥à¤ªà¤¯à¥‡ में ६ के हिसाब से मिलने वाले इन समोसों के देख कर मेरे मन में इनका सà¥à¤µà¤¾à¤¦ चखने का खà¥à¤¯à¤¾à¤² आया. पहले तो मà¥à¤à¥‡ मालूम ही नहीं था की ये पà¥à¤¯à¤¾à¤œà¤¼ के समोसे हैं, वो तो जब मैंने खाया तब पता चला. यक़ीनन मैंने समोसे तो सैंकड़ो खाठहोंगे, पर पà¥à¤¯à¤¾à¤œà¤¼ के समोसे सबसे पहले वहीठमिले.

पà¥à¤¯à¤¾à¤œà¤¼ के समोसे
दरगाह से कà¥à¤› दूर पर मà¥à¤à¥‡ दिखा “सोहन हलवाâ€. पहले इसे मैंने अजमेर में देखा था. इसकी शà¥à¤°à¥à¤†à¤¤ का शà¥à¤°à¥‡à¤¯ बादशाह अकबर को जाता है. अजमेर से चले सोहन हलवे को देख कर मैंने दूकानदार से पूछ ही लिया कि यह हलवा कहाठसे आता है? उतà¥à¤¤à¤° सà¥à¤¨ कर आशà¥à¤šà¤°à¥à¤¯ à¤à¥€ नहीं हà¥à¤† कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि उस दूकानदार को सिरà¥à¤« इतना मालूम था कि वो इस हलवे को कहाठसे थोक à¤à¤¾à¤µ में खरीदता था. वहीठपास में मà¥à¤à¥‡ दिखा “करांची हलवाâ€. पà¥à¤²à¤¾à¤¸à¥à¤Ÿà¤¿à¤• की छोटी छोटी लिहाफों से लिपटे हà¥à¤ गà¥à¤²à¤¾à¤¬à¥€ रंग के हलवे के मासूम से दिखने वाले टà¥à¤•ड़े मà¥à¤à¥‡ बहà¥à¤¤ ललचाये. परनà¥à¤¤à¥ मैं चख नहीं पाया. कà¤à¥€ किसी और ज़गह पर इसके खालिस सà¥à¤µà¤¾à¤¦ का आनंद लूà¤à¤—ा. उस पर आलम यह था कि मैंने इस तरह के हलवे का तो नाम à¤à¥€ नहीं सà¥à¤¨à¤¾ था. करांची तो पाकिसà¥à¤¤à¤¾à¤¨ में à¤à¤• मशहूर शहर है. कà¥à¤¯à¤¾ यह हलवा वहां की पैदाइश है? कैसे इसका नाम करांची हलवा पड़ा?

करांची हलवा
वहां के बाजार में “शकरपारा†मिलेगा इसकी तो मैंने कलà¥à¤ªà¤¨à¤¾ à¤à¥€ नहीं थी. मà¥à¤à¥‡ यह बचपन की यादें ताज़ा करने वाली मिठाई लगी. जब मैं अपने घर से छà¥à¤Ÿà¥à¤Ÿà¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के बाद वापस सà¥à¤•ूल की तरफ लौटता तो मेरे साथ घर के बने पकवान-चबेने इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ काफी मातà¥à¤°à¤¾ में होते थे, उसमें यह à¤à¥€ à¤à¤• था. जब सारी निमकियाà¤-ठेकà¥à¤-चूरे इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ ख़तम हो जाते, तो अंत में शकरपारा निकलता था. उस वक़à¥à¤¤ जब मैंने इसे देखा तो अपने आप को किसी तरह संà¤à¤¾à¤² पाया. मैं कà¥à¤¯à¤¾ लिखूं? कà¥à¤¯à¤¾ मैं इस टोकरी में रखे à¤à¤•-à¤à¤• दाने के बदले अपने हज़ार आà¤à¤¸à¥‚ दूà¤, तो कà¥à¤¯à¤¾ चलेगा?

शकरपारा
“बालू-शाहीâ€, “गà¥à¤¡à¤¼à¤ªà¤¾à¤°à¤¾â€ तथा “बूंदी के लडà¥à¤¡à¥‚†à¤à¥€ दिखे. इनमें गà¥à¤¡à¤¼à¤ªà¤¾à¤°à¤¾ ही विशेष था. बालूशाही और बूंदी के लडà¥à¤¡à¥‚ तो अब तक जाने कितनी बार और कितने जगहों पर खा चà¥à¤•ा था कि अब वहां चखने में तो कोई दिलचसà¥à¤ªà¥€ थी नहीं. दिमाग तो तब à¤à¥€ शकरपारा में ही दौड़ रहा था. आखिर इतना शकà¥à¤•र और गà¥à¤¡à¤¼ इस पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ में आता कहाठसे है? याद करने की कोशिश की तो याद आया शिरà¥à¤¡à¥€ से शनि सिगà¥à¤¨à¤¾à¤ªà¥à¤° का वो रासà¥à¤¤à¤¾, जिसके दोनों तरफ ईख के बड़े बड़े खेत देखे थे. गाà¤à¤µ वालों ने सडकों के दोनों तरफ ईख-के-रस की दà¥à¤•ानें लगायीं थीं. हर दà¥à¤•ान का नाम चाहे कà¥à¤› à¤à¥€ हो, पर टाइटल à¤à¤• ही था..â€à¤°à¤¸à¤µà¤‚तीâ€. अपनी जूनून में कà¤à¥€-कà¤à¥€ à¤à¥‚ल à¤à¥€ हो जाती है. खास कर उस वक़à¥à¤¤ जब आपके पास उनà¥à¤®à¥à¤•à¥à¤¤ समय की काफी कमी हो. à¤à¤¸à¤¾ ही मेरे साथ हà¥à¤†. à¤à¤• पीली-सी मिठाई ने आकरà¥à¤·à¤¿à¤¤ तो किया. मैं उसके नजदीक à¤à¥€ गया. उसकी तसà¥à¤µà¥€à¤° à¤à¥€ ली. परनà¥à¤¤à¥ उसका नाम à¤à¥€ नहीं पूछा. अब तसà¥à¤µà¥€à¤° को देख कर इसे मैं à¤à¤• नाम दे रहा हूà¤, “घेवरâ€, कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि ये घेवर के टà¥à¤•ड़े के जैसा ही दीखता है. अब पता नहीं कि सà¥à¤µà¤¾à¤¦ में कैसा होगा? यदि घेवर ही हà¥à¤† तो कहीं पशà¥à¤šà¤¿à¤®à¥€ उतà¥à¤¤à¤° पà¥à¤°à¤¦à¥‡à¤¶ का पà¥à¤°à¤à¤¾à¤µ तो नहीं?

सोहन हलवा
अगली दà¥à¤•ान “घरों को सजाने वाली वसà¥à¤¤à¥à¤“ं†की थी. कà¥à¤°à¤†à¤¨ की आयतें और असूलों को बयान करती हà¥à¤ˆà¤‚. इनमें दो तरह के डिजाइनों ने मà¥à¤à¥‡ आकृषà¥à¤Ÿ किया. à¤à¤• मैं दोनों हथेलियों को फैला कर रहमत की दà¥à¤† मांगे जाने का डिजाईन था तो दूसरी में दो-दो दो-मà¥à¤à¤¹à¥€ तलवार का डिजाईन था. इस दो-मà¥à¤à¤¹à¥€ तलवार को जाफरानी नेज़ा à¤à¥€ कहते हैं. मà¥à¤—लों के समय यह बहà¥à¤¤ ही पà¥à¤°à¤šà¤²à¤¿à¤¤ हà¥à¤† था. धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤² चाहे कोई à¤à¥€ हो, यदि उसमें परिवार का पà¥à¤°à¤µà¥‡à¤¶ है, तो बचà¥à¤šà¥‡ à¤à¥€ होंगे. आम-तौर पर छोटे बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ को ना तो सूफिजà¥à¤® और ना ही किसी à¤à¥€ “-इजà¥à¤®â€ से मतलब है. उनका तो बस यही होता है की घà¥à¤®à¤¾à¤¨à¥‡ ले गठहो तो कà¥à¤¯à¤¾ खरीदोगे? और यदि मचल गठतो कà¥à¤› न कà¥à¤› तो खरीदना ही पड़ेगा. इसीलिठमैंने देखा है कि हरेक धारà¥à¤®à¤¿à¤• सà¥à¤¥à¤²à¥‹à¤‚ पर लगने वाले बाज़ारों में से à¤à¤• हिसà¥à¤¸à¤¾ इन ननà¥à¤¹à¥‡ शैतानों का जरूर होता है, हालाà¤à¤•ि ये कोई वासà¥à¤¤à¤µ के शैतान तो जरा à¤à¥€ नहीं होते.

बचà¥à¤šà¥‹à¤‚ के खिलोने
अगली दà¥à¤•ान मà¥à¤à¥‡ मिली “घड़ियों†की. ससà¥à¤¤à¥€, सà¥à¤¨à¥à¤¦à¤°; पर टिकाऊ की गारंटी नहीं. यहीं आ कर मà¥à¤à¥‡ समाज के विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨ आरà¥à¤¥à¤¿à¤• तबकों का अनà¥à¤à¤µ हà¥à¤†. यह घड़ियाठà¤à¥€ तो किसी-न-किसी को खà¥à¤¶à¤¿à¤¯à¤¾ देती होंगी. कोई तो खà¥à¤¶ हो जाता होगा. या फिर कई दिनों तक आसरा देख कर à¤à¤• à¤à¤¸à¥€ ससà¥à¤¤à¥€ घड़ी खरीद पता होगा. मेरे देश की कितनी तहें हैं इसका तो फैसला ही अब तक नहीं हà¥à¤†.
à¤à¤• और दूकान जो आजकल चल पड़ी है, वो है “लड़कियों के बैगों†की. इनà¥à¤¹à¥€à¤‚ बैगों में सारा यूनिवरà¥à¤¸ समां सकता है. कब और किसे, कौन सा बैग पसंद आ जाठइसका अंदाज़ तो शायद कोई à¤à¥€ नहीं लगा सकेंगे, हालाà¤à¤•ि सबके समà¥à¤®à¤¾à¤¨ मैं मà¥à¤à¥‡ à¤à¤¸à¤¾ नहीं सोचना चाहिà¤. मोबाइल बैग, सà¥à¤²à¤¿à¤‚ग बैग, बैग के अनà¥à¤¦à¤° का बैग इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ देख कर मैं मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤¯à¥‡ बगैर नहीं रहा. परनà¥à¤¤à¥ अगर कोई सà¥à¤¤à¥à¤°à¥€ साथ में न हो, तो à¤à¤¸à¥‡ दà¥à¤•ानों के बाहर जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ देर खड़े हो कर रिसरà¥à¤š करना तो जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ ही खतरनाक था, जबतक की आप सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही दूकानदार न हों. अतः मैं वह से चल पड़ा. वैसे, अजमेर का बाज़ार इस वसà¥à¤¤à¥ के लिठà¤à¥€ काफी बड़ा है. यहाठतो उतनी विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾ नहीं थी.

बैगों की दà¥à¤•ान
हमारा देश काफ़ी बड़ा और विà¤à¤¿à¤¨à¥à¤¨à¤¤à¤¾à¤“ं से à¤à¤°à¤¾ हà¥à¤† है. कहीं तो केले दरà¥à¤œà¤¼à¤¨ से मिलते हैं और कहीं किलो से. उसी पà¥à¤°à¤•ार पूरी-हलवा कहीं तो पà¥à¤²à¥‡à¤Ÿ से मिलेंगे तो कहीं किलो से और कहीं गिन कर. बचपन में मैं à¤à¤• बार बकà¥à¤¸à¤° गया था. यह करीब १९८५ की बात थी. वहां मैंने पहली बार किलो के मोल से पूरी खरीदी थी. कà¥à¤¯à¤¾ बड़े-बड़े साइज़ की पूरियां थीं. उसके बाद हज़रत निजामà¥à¤¦à¥à¤¦à¥€à¤¨ (नई दिलà¥à¤²à¥€) में २ फ़ीट के डायमीटर वाला पूरी चखा था. फिर हाजी अली में देखा २ फ़ीट डायमीटर वाली पूरियां – सूजी के हलवे के साथ. इनके सामने बकà¥à¤¸à¤° की पूरी तो बहà¥à¤¤ छोटी थी. खाने का मन था, पर पेट में जगह नहीं थी. अतः चल पड़ा.

२ फ़ीट डायमीटर की पूरी
साधारणतया जब आप किसी à¤à¤¸à¥‡ इलाके से गà¥à¤œà¤°à¤¤à¥‡ हैं जो जंगलों और वादियों के बहà¥à¤¤ नजदीक हो, तो वहां सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ रूप से उतà¥à¤ªà¤¾à¤¦à¤¿à¤¤ फल इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ जरूर मिलते हैं. परनà¥à¤¤à¥ हाजी अली जैसे मशहूर सà¥à¤¥à¤¾à¤¨ पर मà¥à¤à¥‡ “ईमली†बिकते हà¥à¤ मिलेंगे, à¤à¤¸à¤¾ मैंने नहीं सोचा था. मà¥à¤¹à¤ में पानी आ गया. दà¥à¤•ानदारिन à¤à¥€ मà¥à¤¸à¥à¤•à¥à¤°à¤¾à¤¯à¥‡ बगैर नहीं रह सकी, जब मैंने उसके खोमचे का फोटो खीचने का आगà¥à¤°à¤¹ किया. उसने सोचा कि पता नहीं ये कैसा आदमी है, जिसने कà¤à¥€ ईमली नहीं देखा. और मैंने à¤à¥€ इससे सहमती जतायी की मानो मैंने पहले कà¤à¥€ ईमली नहीं देखा. बगल की दà¥à¤•ानदारिन तो लगà¤à¤— खिलखिला कर हà¤à¤¸ पड़ी, जब मैंने उसके बेरों की तसà¥à¤µà¥€à¤° लेनी चाही. पता नहीं उसने मराठी में कà¥à¤¯à¤¾ कहा और अपने मन में कà¥à¤¯à¤¾ सोचा? शायद उसके तरà¥à¤£ जीवन में पहला à¤à¤¸à¤¾ मनà¥à¤·à¥à¤¯ आया होगा, जिसने उसके “बेर†से à¤à¤°à¥‡ खोमचे की तसà¥à¤µà¥€à¤° ली हो. à¤à¤¾à¤·à¤¾ की कठिनाई और समय का अà¤à¤¾à¤µ, ये दोनों नहीं होते तो मैं कà¥à¤› देर बैठकर à¤à¤• ईमली और à¤à¤• बेर खा कर उनसे उनके वà¥à¤¯à¤µà¤¸à¤¾à¤¯ के बारे में जरूर पूछता. पर ये à¤à¥€ हो सकता है कि तसà¥à¤µà¥€à¤° तो बहà¥à¤¤à¥‹à¤‚ ने ली हो, पर हासà¥à¤¯à¤ªà¥à¤°à¤¦ मैं ही होऊंगा, इसीलिठवो हà¤à¤¸ पड़ी हो. इसीलिठमैं और आगे चला गया.
सहà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¥à¤°à¥€ परà¥à¤µà¤¤-शà¥à¤°à¥ƒà¤‚खला के जंगल जामà¥à¤¨, आम इतà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¿ फलदार वृकà¥à¤·à¥‹à¤‚ से à¤à¤°à¥‡ पड़े है. सà¥à¤¥à¤¾à¤¨à¥€à¤¯ जनजातीय लोग जंगलों में से फल ले कर उसे शेरोन में बेचते है. जामà¥à¤¨ का सीजन था. अतः जामà¥à¤¨ यहाठà¤à¥€ मिल रहा था. अंत में जब खीर-ककड़ी के खोमचे शà¥à¤°à¥‚ हà¥à¤ तो मà¥à¤à¥‡ लगा कि अब सैर समापà¥à¤¤ हो गयी. अंत में à¤à¤• बात और- हाजी अली में अहाते के अनà¥à¤¦à¤° की दà¥à¤•ान में नारियल à¤à¥€ मिलता है. इस दरगाह पर नारियल चढ़ाना मानà¥à¤¯ है.
बक्शी साहब,
नहीं निगाह में मंजिल तो जुस्तजू ही सही, नहीं विसल मयस्सर तो आरज़ू ही सही।
हर एक पकवान के प्रति उत्सुकता तो थी किन्तु चखने में विवशता, कुछ ऐसा ही प्रतीत हो रहा है आपकी पोस्ट पढ़कर और आज आपने घुमक्कड़ी को एक नया सा ही रुख दे दिया है। आप हाजी अली में शीश नवाने के साथ-साथ वहां की संस्कृति से भी रूबरू होकर आये जो अपने आप में ही अद्भुत है। किसी भी जाती विशेष की सभ्यता के विषय में जानने के लिए अगर उनके खान-पान का विश्लेषण किया जाये तो बहुत कुछ तो वैसे ही पता चल जाता है। आपकी इस जायकेदार पोस्ट को पढ़ते हुए कहीं न कही मुझे ‘हाईवे ऑन माय प्लेट’ और ‘जायका इण्डिया का’ सरीखे ट्रेवल शोज का भी ध्यान आ गया जिन्हे समय आभाव के कारण देखे काफी समय बीत चुका है। खैर पोस्ट हर बार की तरह लाजवाब थी।
धन्यवाद अरुण,
तुम्हारी टिप्पणी पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. तुम्हें पोस्ट पसंद आया, यह जान कर भी ख़ुशी हुई. यह बात सच है कि खान-पान, पहनावे-उढावे, कला-रीती-रिवाजों इत्यादि से मिल कर ही कोई संस्कृति विकसित होती है. इसी वजह से मैंने हाजी अली दरगाह के बाज़ार के बारे में लिखा था.
फिर से धन्यवाद.
उदय.
Mr. Bakshi–Please kindly write in English. Everyone doesn’t understand Hindi .
Mr. Arun Singh–Please kindly write in English. Everyone doesn’t understand Hindi .
Nice ! But not for N.veg. though tempting .
Dear Hiralal ji
Non-veg was also there, but dishes were like common full meal-type. On that occasion I was interested in writing about something unique, e.g. Karanchi Halwa, Sohan halwa, poori of the size of two feet diameter, etc. But one day, in some other post, I will definitely write about certain special meal type dishes of any unique place.
Regards
bahut hi umda tarike se likha apne. hum sabhi in bazaro ki chahal pahal se aakarshit hote hai, pr unka shabd chitran karna aur vo bhi thoda gudgudane, thoda darshnik, thoda parytkiya, itna asaan nahi. Jo dekha use likhna aur jo mahsoos kiya use likhns, in dono me sahi talmel bithana ek kala hai. Badhai..
dear Jaishree ji
hausla afjai ke liye aapko bahut-bahut dhanyavaad. Mujhe yeh jaan kar bahut khushi hui ki aapko yeh lekh pasand aayaa.
Phir se dhanyavaad.
Let me start with a confession. I have never been to Haji Ali Dargah at Mumbai and I must have been to Mumbai, many times (15 times, probably more). I was there a few months back too. So note to myself, next time I am in the city, I should find a way to visit the Dargah.
Now to the food and social commentary of the market. Very beautifully done and very engaging.
Karchi Halwa (even though it is more of a Barfi) is also called Bombay Halwa. I do not know the story behind the name, but may be Karachi-Mumbai was a high traffic sea route before 1947 so may be it came from Karchi.
That big poori is very common in melas, esp in those place where a significant audience is among Muslims. I have seen it at Nauchandi Mela (Meerut) as well at Moradabad Mela.
All in all, a very sweet and savoury treat.
Thanks for your detailed comments. Whenever you plan to come to Mumbai, please do visit Haji Ali (if time permits). Please do intimate your plans at Mumbai so that I can arrange a meeting too.
Regards