श्री कृष्ण की नगरी नाथद्वारा और सांवलिया सेठ की यात्रा

नमस्कार  मित्रो,

ऐसे तो प्रतिवर्ष 1-2 धार्मिक स्थल की यात्रा करता रहता हु और हालाकी ये नियम भी कुछ ही सालो से बनाया है तो कुल मिलाकर घुमने का शौक तो थोडा बहुत है परन्तु लेखकी मेरे सीमा से परे है तो पोस्ट नहीं कर पाया, मेरी यात्राओ में फ़िलहाल सिर्फ धार्मिक स्थल ही शामिल होते है परन्तु जहा जाता भी हु कोशिश करता हु आसपास के क्षेत्र के सभी प्रकार के दार्शनिक और एतिहासिक स्थलों का दौरा कर सकु ,

अभी जनवरी में साऊथ इंडिया का टूर किया तो तिरुपति , रामेश्वरम ,मदुराई, और कन्याकुमारी , चेन्नई को कवर कर लिया , उससे पहले हरिद्वार,मथुरा वृन्दावन फिर उज्जैन ओम्कारेश्वर इसप्रकार ……….लेकिन फ़िलहाल 12 ज्योतिर्लिंगो के दर्शनो की अभिलाषा मन में प्रबल है और जिनमे से 6 के दर्शन की अभिलाषा पूर्ण भी हो गयी है ,फिर भी जब मन करता है तो, और ऊपर वाला डोर खिंच लेता है तो, कही भी निकल पड़ते है

कही भी जाने से पहले मैं घुमक्कर के पोस्ट जरुर देख लेता हु तो मन की उत्सुकता और भी प्रबल हो जाती है और सारी जानकारी भी प्राप्त हो जाती है , इस बार सोचा था की फैमिली के साथ चित्तोरगढ़ के पास सांवलिया सेठ जी (श्री कृष्ण) के दर्शन के लिए चलते है और पास में ही उदयपुर भी घूम लेंगे , सो हमेशा की तरह मैंने घुमक्कर विजिट की और भाई मुकेश भालसे जी की पोस्ट रीड की जो की उन्होंने नाथद्वारा और श्रीनाथ जी की विजिट पे लिखी थी , वो पोस्ट देख और पढ़ के मन में श्रीनाथजी के दर्शन की इच्छा बहुत प्रबल हो गयी और बस मन बना लिया तुरंत ही उनके दर्शन का |श्रीनाथ जी का इतिहास तो उन्होंने लिखा ही था की कैसे वो मथुरा वृन्दावन से यहाँ आकर बसे,

हमलोग दर्शन की अभिलाषा मन में रखते हुए जुलाई 17, 2015 को पहले बारमेर से जोधपुर और फिर सीधे बस द्वारा जोधपुर से श्रीनाथ जी पहुंचे, श्रीनाथजी जोधपुर से उदयपुर वाले रस्ते में उदयपुर से 50 किलोमीटर पहले पड़ता है , जोधपुर से प्राइवेट बस करीब 12 बजे निकली और श्रीनाथ जी पहुंची करीब शाम 5 : 30 बजे , नाथद्वारा बस स्टैंड से मंदिर करीबन 1 km दूर है और ऑटो से आप मंदिर तक पहुँच सकते हो |

Sri_nathji , Courtesy Wikipidea

Sri_nathji , Courtesy Wikipidea


चलते चलते रास्ते में क्लीक किया हुआ भगवान शिव का फोटो

चलते चलते रास्ते में क्लीक किया हुआ भगवान शिव का फोटो

आप चाहे तो धर्मशाला, कोटेज में रूम श्रीनाथजी की ऑनलाइन वेबसाइट से भी बुक करवा सकते है मगर हमने अचानक ही प्रोग्राम बनाया था सो सीधे पहुँच गये वहा , श्रीनाथजी में सभी बजट के होटल और धर्मशाला उपलब्ध है तो रूम लेने में कोई परेशानी नहीं आई |

रूम बुक करवा कर सोचा की श्रीनाथजी के शयन आरती के दर्शन कर लेते है फिर सुबह मंगला आरती के दर्शन कर सांवलिया सेठ के लिए निकल चलेंगे , मंदिर गये तो बहुत भीड़ वहा थी और किसी ने कहा की अब तो दर्शन बंद होने वाले है तो अति शीघ्र पीछे के रस्ते से अन्दर हो लिए (हालाकि रास्ता एक हो जाता है ) , मगर नहीं साहब भला ऐसे कोई दर्शन देने वाले थे श्रीनाथजी, उनका तो प्लान ही कुछ और था , खैर दर्शन बंद हो चुके थे तो सोचा की सिर्फ मंगला आरती के ही दर्शन कर निकल लेंगे अपने अगले पड़ाव पर |

11 मंदिर के रास्ते में श्रधालुओ की भीड़

11 मंदिर के रास्ते में श्रधालुओ की भीड़

श्रीनाथ जी का मंदिर हवेली नुमा है और इसे श्रीनाथजी की हवेली कहा जाता है मंदिर के पास बहुत अच्छा बाजार लगता है और खाने पिने की सभी प्रकार की चीज़े वहा आपको मिल जाएँगी | यु तो नाथद्वारा राजस्थान में है लेकिन यहाँ राजस्थानियों से ज्यादा गुजरातियों की भीड़ आपको मिलेंगी ! ऐसे तो मैं भी राजस्थानी हु लेकिन मेरा ऐसा मानना है की गुजराती लोग थोड़े शांत स्वभाव के होते है तभी तो वहा इतनी भीड़ होते हुए भी शांति जैसा अनुभव होता है ! खाने की चीजों में भी गुजराती पुट ज्यादा देखने को मिलता है नाथद्वारा में |

हमलोग शाम को जल्दी सो गये ये सोच के की सुबह जल्दी उठ कर सबसे आगे लाइन में लग जायेंगे ताकि दर्शन अच्छे से हो सके और इसके पीछे एक बात और भी थी की मैंने एक भाई साहब का पोस्ट यही घुमक्कर पे भी पढ़ा था और मैंने उसमे कुछ नकारात्मकता बाते अधिक देखी जैसे की “पंडित लोग दर्शन अच्छे से नहीं करने देते तुरंत धक्का दे देते है , मंदिर सिर्फ 15 मिनिट के लिए खुलता है , लोग पैसे लेके दर्शन करवाते है इत्यादि इत्यादि ….और उसके प्रभाव से बिना अलार्म के ही 3 बजे नींद खुल गयी , खैर तैयार हुए और मंदिर गये तो देखा पहले से कुछ लोग वहा मौजूद थे , ऐसे हमारा रूम मंदिर के बिलकुल पास था | यहाँ एक खास बात बताना चाहूँगा की मंदिर के दर्शन टाइम में थोडा बहुत परिवर्तन होता रहता है और दूसरी बात यहाँ कोई धक्का मुक्की हमने नहीं देखि और तीसरी बात कोई पैसा लेके दर्शन करवाने की तकनीक यहाँ अभी तक विकसित नहीं हुई और चौथी बात ये की मंदिर 15 मिनीटो से भी अधिक समय तक खुला रहता है और हां ये दोनों बाते वहा बड़े बड़े अक्षरों में लिखी भी हुई है !

खैर मंदिर के पट खुले , और हम हो लिए अन्दर दर्शन हेतु , श्रीनाथ जी के पुरुष और महिला दोनों की अलग अलग लाइन लगती है और मंदिर में मोबाइल ले जाने की अनुमति बिलकुल भी नहीं है यदि गलती से ले गये तो आपको वही जमा करवाना होगा तभी दर्शन कर सकते हो | खैर दर्शनों में हमारा नंबर भी आ गया और जो दर्शन हुए उसे देखकर पारलोकिक सा अनुभव हुआ ,और क्यों ना हो साहब कहते है की सिर्फ यही पे कृष्ण लौकिक रूप में रहते है, बड़े आराम से मनमोहक मंगला झांकी के दर्शन किये साहब ! मन आनंदित हो गया ! दर्शन कर बाहर आये थोडा आराम किया और फिर लग गये दुबारा लाइन में श्रृंगार झांकी की झलक पाने को , सोचा जब श्रीनाथ जी की मंगला झांकी के दर्शन इतने आकर्षक थे तो उनके श्रृंगार झांकी की क्या बात होगी बस इसी उत्सुकता में हम वापिस करीब 7 :15 बजे फिर दर्शनों के लिए लग गये और इस बार भी श्रीनाथजी ने हमको निराश नहीं किया …वाह क्या दर्शन दिए , यहाँ से निकलने को दिल ही नहीं कर रहा था | बाहर आये तो देखा पोहे और खमन से दुकाने सजी पड़ी है और एक खास बात है दोस्तों यहाँ की , और वो है यहाँ की पोदीने वाली चाय |

पोदीने वाली चाय

पोदीने वाली चाय

हमने भी भाई तीनो चीजों का लुफ्त उठाया , वाकई पुदीने की चाय तो कमाल की निकली यार ! अब तो हमने भी सिख ली साहब, चलो घर चल कर बनायेगे , ऐसा सोच कर हम अपने अगले पड़ाव के लिए आगे बढे और वो था चित्तोर के पास सांवलिया सेठ का मंदिर , हम बस स्टैंड के लिए सोच के निकल ही रहे थे की अचानक मन पलटी खा गया मन में विचार आया की क्यों न हम रूम चेक आउट ना करे और दर्शन कर शाम को वापिस यही आ जाये, और साहब मन की बात टालना इन्सान के बस की बात कहा ! रूम के लॉक लगाया और जरुरत का सामान लिया और चल दिए बस स्टैंड की और, रास्ते में ख्याल आया श्रीनाथजी के प्लान का की वो जो शाम को उसने पट बंद कर दिए थे न और जल्दबाजी में दर्शन नहीं करने दिए उसके पीछे यही कला थी उनकी …………

बस स्टैंड से १० बजे की बस थी चित्तोड की सो बैठ गये उसमे सांवलिया सेठ के लिए…सांवलिया सेठ चित्तोड़ से उदयपुर के रस्ते में मण्डपिया गाव में पड़ता है हाईवे से ठीक 7 km अंदर ,काफी मान्यता भी है, और ख्याति भी इस मंदिर की और चढ़ावे के मामले में भारत में इस मंदिर का नाम भी शायद ३-४ नंबर पर ही आता होगा जिस महीने में हम गये उस महीने में करीब 3 करोड़ का चढावा आया था जिसकी काउंटिंग करने के लिए आस पास बैंक के कमर्चारी मंदिर में आते है ,  दो मंदिर है सांवलिया जी के एक तो वही हाईवे पे ही बना है जोकि पुराना और प्राकट्य सांवलिया जी के नाम से है और दुसरे अंदर जिसके मंदिर का काम भी अभी प्रगति पे है | वैसे सांवलिया सेठ के जाने के लिए उदयपुर और चित्तोड़ से ही सही और सीधा रास्ता पड़ता है लेकिन हमलोग श्रीनाथ जी से गये थे तो थोडा कठिन हो जाता है क्युकी पहले जाओ कपासन फिर वहा से बस बदलो और जाओ हाईवे तक जोकि रास्ता कई गाँवों से होकर जाता है और खराब भी है , खैर जैसे तैसे पहुंचे सावरिया सेठ जी के दर पर करीब शाम को 3 बजे | दर्शन किये ही थे और बाहर निकले की जोरो की बारिश शुरू हो गयी और बारिश भी एसी की थमने का नाम ही नहीं ले रही थी 2 घंटे इन्तजार किया मंदिर में ही फिर थोड़ी हलकी हुई तो बाहर निकले मंदिर से लेकिन साधनों की बहुत कमी भी हो सकती है सेठ के दरबार में ऐसा यहाँ की गवर्मेंट ने साबित किया हुआ है , कुल मिलाकर कुछ खास अरेंजमेंट्स नहीं है, आखिर इतना चढावा आता है मंदिर में तो कुछ व्यवस्था तो सरकार को करना ही चाहिए , खैर बारिश और सेठ जी ने हमें रात वही बिताने पर मजबूर कर दिया, एक रात वही रुके और सुबह नहा धो कर निकले, वापसी पर रस्ते में दुसरे वाले मंदिर के दर्शन लाभ भी ले ही लिए जोकि शायद यदि नहीं रुकते शाम को तो संभव नही हो पाता | बहुत भव्य मंदिर जिसमे अंदर से कांच की कारीगरी है |

Sanwaliaji , Courtesy Wikipidea

Sanwaliaji , Courtesy Wikipidea

प्राकट्य सांवलिया जी के मंदिर का अन्दर का दृश्य

प्राकट्य सांवलिया जी के मंदिर का अन्दर का दृश्य

सांवलिया सेठ मंदिर प्रांगण

सांवलिया सेठ मंदिर प्रांगण

सांवलिया सेठ मंदिर में लगी भक्तो की भीड़

सांवलिया सेठ मंदिर में लगी भक्तो की भीड़

हाइवे से दीखता सांवलिया सेठ मंदिर जाने का रास्ता

हाइवे से दीखता सांवलिया सेठ मंदिर जाने का रास्ता

सुबह चित्तोड़ से उदयपुर की और जाने वाली बस से सीधे पहुंचे उदयपुर और वहा किया एक ऑटो उदयपुर साईट सिन देखने के लिए | ऑटो वाले मांगने को तो 600-700 रुपए मांगते है पर 400 में सौदा तय हो गया और अच्छे से उसने करीब 12 जगह जोकि उसकी डिफ़ॉल्ट लिस्ट में शामिल थी घुमा दी …..नाव की सवारी , उड़न खटोला की सवारी और वहा के मौसम के आनंद ने पुरे सफ़र की थकान उतार दी |

उदयपुर करणी माता मंदिर से

उदयपुर करणी माता मंदिर से

उडन खटोले से उदयपुर

उडन खटोले से उदयपुर

शाम होने को थी और उदयपुर की जानकारी के काफी पोस्ट पहले से ही घुमक्कर पे मौजूद है तो अपने पोस्ट को आगे बढ़ाते हुए उदयपुर से आपको फिर ले चलता हु श्रीनाथ जी के द्वार …….

शाम को फिर बस में सवार होकर हम चल दिए नाथद्वारा की और २ घंटे में बस ने हमें वहा उतार भी दिया| हालाकि शाम को हम फिर न चाहते हुए भी फिर लेट हो गये और श्रीनाथ जी ने फिर वही किया अपने पट बंद कर लिए | हम भी कहा मानने को तैयार थे पक्का मन बना लिया की शयन आरती के दर्शन कर के ही जायेंगे अब तो चाहे कितने ही दिन और रुकना पड़े | एक नजर में आशिक – दीवाना बनाने की अगर कही झांकी है तो वो श्रीनाथ जी में है सच में वापिस आने का मन ही नहीं करता | रात हुई भूख लगी तो मुकेश भाई के पोस्ट से पढ़ी हुई लाइन याद आ गयी की यहाँ मंदिर ट्रस्ट का प्रसाद भी कही मिलता है , जानकारी जुटाई और पहुँच गये हम भी , 20 रुपए में भरपेट खाना मिलता है, लेकिन अधिक दिमाग नहीं लगाऊ तो भी मुझे ये मंदिर ट्रस्ट का काम नहीं लग कर एक रेस्ट्रोरेन्ट टाइप का ही लगा जिसका टाई अप मंदिर के किसी पुजारी से हो बाकी की डिटेल्स नहीं है मेरे पास (इश्वर माफ़ करे)

12 श्रीनाथ मंदिर ट्रस्ट की और से भोजनालय

श्रीनाथ मंदिर ट्रस्ट की और से भोजनालय

अब रुकना ही था तो सुबह का प्लान बनाया, की दिनभर क्या किया जाये तो फिर मुकेश भाई की पोस्ट काम आ गयी और याद आया की गौशाला तो गये ही नहीं अभी तक, तो चलो एक तो गौशाला और कहा जाया जाये ??

चित्तोड़ के पास जाके भी चित्तोडगढ का दुर्ग नहीं देखा इसका मलाल तो था ही तो सोचा क्यों ना इसकी भरी – पूर्ति कुम्भलगढ़ के विश्व प्रशिद्ध किले से देख कर की जाये , बस फिर क्या बन गया प्लान कल का रातोरात ….

सुबह मंगला के दर्शन किये और बस स्टैंड गये वहा पता किया यदि कोई बस जाती हो तो , जी हां एक बस जाती है नाथद्वारा से 7:30 बजे केलवाडा तक जोकि कुम्भलगढ़ से केवल 7 km दूर है और यहाँ से प्राइवेट टेक्सी करनी पड़ती है | कुम्भलगढ़ जाने वालो के लिए सलाह ये ही रहेगी की यदि हो सके तो उदयपुर से कोई टूर पैकेज में इसे शामिल करे अथवा कोई टैक्सी बुक करले तो बेहतर रहेगा ,क्युकी किले तक ले जाने और लाने के लिए कोई कोमन साधन वहा नहीं होता है ….मेरे केस में एक तो अचानक प्रोग्राम बनने से जानकारी का अभाव और ऊपर से मैं बजट कोंसियस भी ठहरा, तो प्राइवेट साधन तो मैं तब ही करता हु जब कोई और विकल्प ना हो , अब किसी ने गुमराह कर दिया की 7 km दूर है और खूब साधन भी है तो बस निकल पड़े बस से हमलोग …….वहा पहुंचे तो पता चला की सिर्फ 7 km के टेक्सी वाले 300 रुपए मांगते है तो थोडा खला भी | कुछ देर बमुश्किल 10 मिनिट ही रुके की एक फेमिली और हमारी तरह आ गयी जोकि किला देखने जाना चाहती थी , बस फिर क्या हो गया अपना काम तो …फॉर व्हीलर में बैठे हुए और पहाड़ की हरियाली को देखते हुए कब किला आ गया पता ही नहीं चला ! किले की दिवार को देख कर वाकई ताजुब्ब होता है की कैसे उस ज़माने में इतना कठिन काम राणा ने कैसे करवाया होगा केवल वो वक्त ही जानता होगा या फिर राणा | दीवारे बहुत मोटाई में है और करीब 36 km तक लम्बी है इसी खासियत की वजह से इस दुर्ग का नाम गिनीज बुक में दर्ज है | कहते है की राणा का ये काम हो नहीं पा रहा था तो राणा किसी पवित्र व्यक्ति से मिले और उन्होंने राणा को सलाह दी की यदि कोई पवित्र व्यक्ति अपनी प्राणों की बलि इस कार्य के लिए दे तो ये काम पूरा हो सकता है तब किसी भले व्यक्ति ने अपने प्राणों की आहुति दी तब कही जाकर राणा ये निर्माण कार्य करवा पाने में सफ़ल हो सका |

कुम्भलगढ़ स्थित शिव लिंग

कुम्भलगढ़ स्थित शिव लिंग

कुम्भलगढ़ किले का निचे से लिया गया एक फोटो

कुम्भलगढ़ किले का निचे से लिया गया एक फोटो

कुम्भलगढ़ प्रवेश द्वार

कुम्भलगढ़ प्रवेश द्वार

खैर किले को पूरा देख हम वापिस निचे आये तो फिर वही संकट साधनों का , अब वापिस निचे कैसे जाए क्युकी वहा किले के स्टैंड पे स्टैंड वाले किसी वाहन को खड़े नहीं रहने देते तो वो वापिस निचे चले जाते है , हालाकि मैंने उस वक्त उस ड्राईवर के मोबाइल नंबर तो ले लिए थे लेकिन उस अस्त्र का प्रयोग तो अंतिम क्षणों में ही करना था न , तो स्टैंड वाले भैया से बात ही कर रहा था की एक कपल ने सुन लिया जोकि वहा फोटो सैसेन कर रहा था , उन्होंने कहा की हम लोग बस अभी निचे जा रहे है आपको ड्राप कर देंगे …….जय श्रीनाथजी की ……..केलवाडा से साधन की कोई प्रोब्लम नहीं है बस मिल जाती है लेकिन निष्कर्ष यही है की जब भी जाओ अपना साधन लेके जाओ ….

किला देखकर वापिसी में हम लोगो ने गौशाला जाने का विचार बनाया जोकि नाथद्वारा बस स्टैंड से करीब 2 km दुरी पर ही है तो अच्छा रहेगा की यही से ऑटो करके गौशाला चला जाये Rs 80 में आने जाने का प्रोग्राम ऑटो वाले से सेट हुआ | गायो के लिए चारा भी ले लिया जोकि ऑटो वाला अपने आप दिलवा लाता है चारा मिक्स होता है उसमे सब मिला हुआ होता है | गौशाला पहुंचे तो वहा बहुत सारी गाये है लेकिन हमारी नजर एक विशेष कामधेनु गाय को खोज रही थी ये भी मुकेश भाई की पोस्ट से पढ़ा था | पूछने पर ग्वाल ने मना कर दिया की वो सिर्फ शाम 6 बजे ही बाहर आएगी , काफी मिन्नते करने के बाद भी साहब वो तो नहीं माना, खैर वापिस आ गये साहब, बेमन से और करते भी क्या भला | तो बात ये है की यदि कोई जाए तो या तो शुबह या तो शाम को ही वहा जाये तो ठीक रहता है मगर जाए जरुर|

गौशाला

गौशाला

गौशाला के अंदर खड़ी गाये

गौशाला के अंदर खड़ी गाये

गौशाला से वापिस आने पर थोडा विश्राम किया और इस बार हम शाम के दर्शन किसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहते थे सो पहुँच गये टाइम पर और खूब दर्शन किये साहब , भाव विभोर हो गये , जो आनंद की प्राप्ति हुई की शब्दों में बताना असम्भव है | उसके बाद एक दुसरे मंदिर जो की विठ्ठल मंदिर के पीछे के गेट से निकलते ही है उसके दर्शन किये , और फिर आये मदन मोहन जी के मंदिर में दर्शन करने , सब पास पास में ही है |

मदन मोहन मंदिर के अंदर घूमते पालतू कछुए

मदन मोहन मंदिर के अंदर घूमते पालतू कछुए

दर्शन करने के पश्चात थोडा विश्राम किया और शाम को निकले भूख मिटाने तो रास्ते में देखा की कुछ लोग दोने में कुछ लेके बैठे है पूछने पे पता चला की ये राजभोग का प्रशाद है और मंदिर के अंदर से आया है , बस भूख मिटाने के लिए इससे अच्छा और हो भी क्या सकता था 20 रुपए में उसने थोड़ी सी रबड़ी , मुंग , दाल , और घी वाले चावल दिए जो की एक व्यक्ति के लिए पर्याप्त है यदि प्रशाद के हिसाब से देखे तो |

खाना खा के हम वापिस अपने रूम पे आ गये और प्लान बनाया सुबह वापसी का , सोचा जाने से पहले क्यों ना एक बार फिर मंगला के दर्शन किये जाये, सुबह जल्दी उठे रेडी हुए और जल्दी से मंदिर पहुंचे तो देखा की आज की झांकी का समय है 6:15 का इन्तजार किया,  दर्शन हुए फिर निकले बस स्टैंड की और, बस में बैठे और पहुँच गये अपने गन्तव्य पर एक बार फिर यहाँ आने की चाह लेकर….

तो इस प्रकार एक भव्य नगरी और श्रीनाथजी के दर्शन कर हम धन्य हुए | मेरे हिसाब से हर वैष्णव धर्मी और श्री कृष्ण के अनुयायी को इस नगरी में जरुर पधारना चाहिए , यकींन मानो बहुत अच्छा लगेगा | पोस्ट के अंत में मुकेश भाई को धन्यवाद जिनके पोस्ट से काफी महत्वपूर्ण जानकारिया प्राप्त हुई | भाषा की अशुद्धियो और गलतियों को नजरअंदाज करे , फिर मिलते है अगले पोस्ट में तब तक के लिए “जय श्री कृष्णा”

7 Comments

  • Nandan Jha says:

    Dear Hemant – Good to see this published and apologies for the delay. I think you go to Nathdwara on your wish but return only when Krishna wants :-). But you made good of all the time you had.

    I do hope that Mukesh gets to read this.

  • Uday Baxi says:

    Dear Hemant

    A very good post with nice pictures.

    Thanks for sharing..

    Hope to read more posts by you soon..

    • पुष्पेंद्र सिंह says:

      मेरी जिंदगी की पहली दिल को छू लेने वाली पोस्ट अब मेरा भी मन कर रहा है में कब दर्शन के लाभ ले पाऊंगा, खेर आपकी पोस्ट से दर्शन का लाभ लिया बहोत भावुक हो गया में

  • Naresh Sehgal says:

    Good Post having lot of information and nicely captured pictures. Thanks for sharing.
    Keep traveling and keep writing.

  • om prakash laddha says:

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  • Hemant says:

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  • Rashmi says:

    Eagerly waiting for this trip.

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