पढाई पूरी करते ही एक टूरिंग जॉब से करियर स्टार्ट हुआ तो आज तक पैर एक जगह टिक ही नहीं पाते। धीरे धीरे अपने अंदर छुपे घुमक्कड़ का अहसास गहराता गया। पिछले १५ सालों मैं ना जाने कितने शहर और न जाने कितने ही बार जाना हुआ मगर ज्यादातर यात्राएं सिर्फ और सिर्फ काम तक ही सीमित रह गयीं। और व्यक्तिगत यात्राओं के बाद भी ऐसे कितने ही स्थान थे जहां चाहते हुए भी घूमने का मौका नहीं मिल पाया।
ऐसा ही एक शहर अमृतसर है जहाँ काम से काम १५ जाने के बाद भी कभी भी स्वर्ण मंदिर जा कर बाबाजी का आशीर्वाद नहीं ले पाया। पिछले ऑफिशियल ट्रिप पर पहली बार स्वर्ण मंदिर गया तो ऐसा अनुभव था जो शब्दों में लिखना तो बहुत ही मुश्किल है फिर भी एक छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ। इस ट्रिप से घर वापस जाते ही वाइफ को बताया तो उन्होंने भी अमृतसर जाने की जोरदार इच्छा जताई। मेरा ५ साल का बेटा भी, जो अभी तक सिर्फ इस शहर का नाम सिर्फ़ सुन पाया था, यहां जाने के प्लान बनाने लगा. वैसे भी ये दोनों ही कभी भी पंजाब नहीं गए थे और हमेशा ये शिकायत करते थे कि न जाने कब वह दिन आएगा जब वह पंजाब की धरती को देख पाएंगे।
आख़िरकार पिछली मार्च में, बेटे के एग्जाम खत्म होने के बाद, हमने अमृसतर जाने का प्लान बनाया। साथ ही साथ १ दिन चंडीगढ़ भी रुकने का प्लान किया. ऑफिस से ४ दिन की छुट्टी ली क्योंकि परिवार के साथ वीक एंड पर जाना तो बहुत ही मुश्किल होता। ख़ास तौर पर अमृतसर जैसे शहर में जहां वीकेंड को होटल मिलना भी मुश्किल हो जाता है। इसलिए यही पक्का हुआ की मंगलवार को जायेंगे और प्लान कुछ ऐसा रहेगा:
१. मंगलवार – दिल्ली से अमृतसर, शताब्दी से, रात अमृतसर रुकना
२. बुद्धवार – दिन में अमृतसर घूमना और शाम को ट्रैन से चंडीगढ़ के लिए निकलना, रात चंडीगढ़ रुकना
३. गुरूवार – चंडीगढ़ घूमना और शाम को शताब्दी से दिल्ली वापस.
फ़टाफ़ट IRCTC की साइट खोल कर टिकट बुक की गयीं. दिल्ली से अमृतसर छोड़ कर बाकी सभी टिकट कन्फर्म बुक हो गयीं. क्योंकि अमृतसर शताब्दी में वेटिंग चल रही थी इसलिए प्लान हुआ की ये टिकट तत्काल में सोमवार को बुक की जाएँगी। दोनों शहरों में होटल और टैक्सी का इन्तेजाम भी हो गया. एक बड़ा बैग और एक छोटे हैंड बैग ले जाने का प्लान रहा ताकि सामान कम से कम रहे और वहां से अगर कुछ खरीदा जाये तो उसके लिए भी बैग में जगह रहे.
अगले दिन सुबह उठ कर हम लोग जल्दी ही तैयार हो गये. 7:20 की ट्रैन थी और घर से स्टेशन जाने में सिर्फ 20 मिनट लगते हैं फिर भी टैक्सी थोड़ा जल्दी बुलाई हुई थी। मार्च की उस हलकी ठंडी सुबह हमने 6:15 पर घर से स्टार्ट किया. दिल्ली की खाली सड़कों पर टैक्सी फर्राटे से दौड़ रही थी। देखते ही देखते हम नई दिल्ली स्टेशन की प्लेटफार्म 1 की तरफ वाले गेट पर पहुंचे. टैक्सी वाले को पैसे दे जब नीचे उतरे तो हल्का हल्का उजाला हो चुका था और स्टेशन पर काफी भीड़ थी। बेटे का हाथ पकड़ में गेट की तरफ बढ़ा और अपना लगेज स्कैनर से गुजारा। बेटे ने इसके बारे मैं जानने की उत्सुकता जताई तो उसको स्कैनर के मॉनिटर की तरफ ले जा कर खड़ा किया। 2 मिनट तक वहां अपना ज्ञान बढ़ाने के बाद छोटे साहब मुस्कुराते और शर्माते हुई मेरी तरफ मुड़े तो में और वाइफ भी मुस्कुराए बिना न रह पाए. क्यूंकि ट्रैन 1 न. प्लेटफार्म पर ही आनी थी और हम सीधा इसी प्लेफॉर्म पर पहुंचे थे इसलिए सीढ़ियों की मेहनत से बच गये. ट्रैन आने में थोड़ा टाइम था उसका प्रयोग हमने बेटे को स्टेशन घुमाने में किया। जल्दी ही ट्रैन आने की घोषणा हुई और कुछ मिंटो में ट्रैन रेंगती हुई प्रकट हुई. बेटे के लिए ये फिर एक हैरानी वाली बात थी की ट्रैन बिना इंजन कैसे चल रही है, जबकि ट्रैन दरअसल उल्टा आ रही थी। उनको ये समझाने के बाद हम अपना कोच ढूंढ कर ट्रैन में चढ़े और अपनी सीटों तक पहुंचे। सामन ऊपर रख कर हम थोड़ी देर बैठे। फिर में रास्ते के लिए कुछ स्नैक्स वगैरा लाने नीचे गया. वापस आ कर खिड़की के बाहर से ही कुछ फोटो खींचे और फिर अंदर आ कर सीट पर पसर गाय. सुबह जल्दी उठने के कारण नींद का हल्का सा जोर था।
तभी ट्रैन चलने की घोषणा हुई और जल्दी ही ट्रैन रेंगने लगी। वाइफ और बेटा खिड़की से बाहर देखते रहे और मैं आँखें बंद कर दिन भर की प्लानिंग करने लगा। कुछ देर में शताब्दी की सेवाएं शुरू हुई. पानी की बोतल, अखबार और फिर चाय, इन सबके सोचा की थोड़ा सो लेंगे। पर तभी टीटी जी आ पहुंचे। उनको टिकट देखा कर निबटे तो देखा कि बेटा सो गया था। हमने भी आधा घंटा नींद ली की तभी ब्रेकफास्ट आ गया। पंजाब की यात्रा हो तो छोले कुल्चे से बेहतर कुछ नहीं इसलिए हमने भी वही खाया। हिलती हुई ट्रैन में चाय का कप भी हिल रहा था और बेटा इसे देख देख हंस रहा था। ब्रेकफास्ट कर के सोचा कि कुछ और सोया जाये पर ऐसा हुआ नहीं. ट्रैन अम्बाला पहुंची और छोटे साहब के प्रश्न फिर शुरू हुए। यहाँ से ट्रैन चलने के बाद मेरी कमेंटरी भी शुरू हुई. क्यूंकि बाकी दोनों का पहला ट्रिप था, इसलिए मैंने अपना ज्ञान भर भर के बंट. राजपुरा से पंजाब शुरू होने के बाद तो ये ज्ञान और बढ़ा. NH 1 साथ दौड़ती ट्रैन, दोनों और गेंहूँ से भरे हुई खेत और बादलों की लुकाछिपी, सचमुच बहुत ही अच्छा सफर था. कुछ देर में ट्रैन लुधिअना पहुंची। यहाँ भूख लगने लगी थी तो हमने अपने साथ लए हुई स्नैक्स की तरफ ध्यान दिया. लुधिअना से चलने के बाद सतलुज नदी का चौड़ा पाट आया. वाइफ हैरान थीं की इस नदी का पानी इतना सफ़ेद कैसे है जबकि यमुना तो बिलकुल अलग है। इसके बाद फगवाड़ा और फिर जलांधर आया. जालंधर पर ट्रैन काफी खाली हो गए थी। क्यूंकि अब बेटा फिर ऊँघने लगा था तो उसे एक ३ वाली खाली सीट पर लिटा दिया और वह जल्दी सो भी गया। हम दोनों भी १ झपकी लेने लगे. ब्यास पहुँचने से पहले ब्यास नदी के दर्शन हुए. खेतों में हरियाली बढ़ चुकी थी. अपने तय समय से २० मिनट लेट, ट्रैन अमृतसर पहुंची. स्टेशन पर टूरिस्ट्स और ख़ास तौर पर स्कूल ग्रुप्स की बहुत भीड़ थी। हमने टैक्सी बुक की हुई थी जो हमें वाघा बॉर्डर घुमा कर वापस होटल छोड़ने वाली थी।
Day – 1 at Amritsar
टैक्सी में बैठ कर हम स्टेशन से बाहर निकले तो ड्राइवर को लंच के लिए कहीं ले चलने के लिए कहा. हम शहर में ही लंच करना चाह रहे थे पर ड्राइवर का कहना था की हम बॉर्डर की रिट्रीट सेरेमनी के लिए लेट हो जायेंगे। घडी देखि तो पता लगा की अभी तो २ घंटे बाकी हैं पर तब तक ड्राइवर तेजी से शहर के बाहर की तरफ चल चुका था। पूछने पर उसने बताया की बॉर्डर के पास ही एक रेस्टोरेंट है जहां लंच करेंगे।
कुछ देर में हम “सरहद” रेस्टारेंट पहुंचे जो बॉर्डर से थोड़ा ही पहले है. यहाँ हमने फटाफट लंच का आर्डर दिया और जल्दी से लंच किया। हैरानी की बात ये थी कि जो ड्राइवर अभी तक जल्दी जल्दी का शोर मचाये था वो अब आराम से था। ऐसा लगा जैसे वह चाहता ही था की हम यहीं पर खाना खाएं !!!!!
खैर , कुछ फोटो बाद हम बॉर्डर पहुंचे और भीड़ देख कर हमारी हैरानी का ठिकाना न रहा। स्कूल छुट्टियों और सुहाना मौसम होने के कारण ढेर सारे लोग वहां पहुंचे हुए थे। बहुत कोशिस के बाद भी जब हम उस भीड़ में जाने की हिम्मत न जुटा पाये तो सोचा कि रिट्रीट का प्लान कैंसिल कर होटल में आराम किया जाए।
वापस पार्किंग आ कर ड्राइवर को मुश्किल से ढूँढा क्यूंकि की सेना के जम्मेर्स की वजह से वहां मोबाइल फोन नहीं चलते. गाड़ी में बैठ कर ड्राइवर को होटल चलने के लिए बोला। रास्ते में ध्यान आया की क्यों न लॉरेंस रोड जा कर कुलचे छोले खाए जाएं। वाइफ को बताया तो उन्होंने भी हामी भरी। ड्राइवर को बोला तो उन्होंने गाड़ी उसी तरफ घुमा दी। कुछ देर मैं हम कुलचे वाले की दुकान पर थे। कुलचे टेस्ट करने के बाद सीधे होटल की रह पकड़ी। होटल पहुँच कर ड्राइवर को पैसे दिए। उसने अगले दिन का प्रोग्राम पूछा तो उसको सुबह फ़ोन करने के लिए बोला।
होटल रमाडा अमृतसर
हाल गेट के अंदर बना ये होटल एक नयी प्रॉपर्टी है। स्वर्ण मंदिर से सिर्फ १० मिनट और भरवां दा ढाबा से सिर्फ २ मिनट दूर ये होटल बहुत ही बढ़िया जगह स्थित है। चेक इन करते हुए रिसेप्शनिस्ट को रिक्वेस्ट की की हमें सामने वाला रूम दिया जाए जो उसे मान भी लिया. सामने के रूम से फिर भी चलता हुआ रोड दीखता है वर्ना साइड वाले रूम्स तो बाजू वाले घरों की छत की तरफ हैं.
रूम में आ कर हम लोग आराम करने लगे. लगभग ४ बज चुके थे। प्लान किया कि शाम ६:३० तक निकलेंगे गोल्डन टेम्पल के लिए. १ घंटा सोने के बाद हमने चाय पी और फिर नहा धो कर स्वर्ण मंदिर के लिए पैदल ही निकल पड़े। अगले १० मिनट मैं हम गोल्डन टेम्पल थे। शाम होने की वजह से मौसम बहुत ही खुशनुमा था. न तो गर्मी थी और न ही ठण्ड। अपने जूते जोड़ाघर मैं दे कर मैंने अपने और बेटे के लिए रुमाल लिया और सर पर बाँध लिया. वाइफ के पास दुपट्टा था ही। अपने पैरों को धो कर हमने सवांरा मंदिर में प्रवेश किया।
गेट से अंदर जाने के बाद असीम शांति का अनुभव हुआ। वहाँ काफी लोग थे फिर भी भीड़ बहुत ज्यादा नहीं थी। हम लोग दर्शन की लाइन में लग गए जो बहुत ही शांत तरीके से धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी। जल्दी ही हमारा नंबर आया। दर्शन कर हमने प्रशाद लिया और अकाल तख़्त के दर्शन भी किये। उसके बाद हम करी देर वहीँ बैठे रहे. फिर कुछ फोटो खींच कर गुरु का लंगर की तरफ बढे। लंगर में भर पेट खाना खाने के बाद हम तृप्त हुए. मेरे बेटे ने पहली बार ऐसे पंगत में बैठ कर लोगों को खाना खाते हुए देखा।
लंगर के हम एक बार फिर अंदर आये और काफी देर तक सरोवर के किनारे बैठे रहे. तकरीबन १०:३० पर हम वापस होटल के लिए चले. रास्ते में वाइफ ने बोले की हम कल सुबह फिर एक बार वापस आएंगे और वह दिन में भी हरिमंदिर देखना चाहती हैं।
चलते चलते भरवां डा ढाबा पर रुक कर और थोड़ी थोड़ी फिरनी खा कर हम लोग वापस होटल पहुंचे. चाहे हम सुबह के जल्दी उठे हों, चाहे शरीर कितना भी थका हुआ था, पर मन इतना शांत और प्रसन्न था की ये यात्रा बिलकुल सफल हो चुकी थी।
दिन भर के फोटो दोबारा देखने के बाद और अगले दिन का प्लान बनाने के बाद हम लोग सो गये.
Day 2 at Amritsar
पहले दिन सुबह जल्दी उठने के कारण दिन भर थकान रही इसलिए ज्यादा नहीं घूम पाये। लेकिन कल रात पूरी नींद लेने के बाद आज हम ज्यादा फ्रेश थे। होटल में ब्रेकफास्ट करने के बाद चेकआउट किया और लगेज उनके क्लॉक रूम में रखवा दिया। फिर दिन की शुरुआत स्वर्णमंदिर से की। हलके हलके बादलों की वजह से मौसम बहुत ही खुशनुमा था। एक बार फिर स्वर्णमंदिर जा कर और घर के लिए प्रशाद खरीद कर हम वहां से निकले।
अगला पड़ाव जालिआंवाला बाग़ था जोकि स्वर्णमंदिर से कुछ ही क़दमों की दूरी पर है। किताबों में पढ़ी हुई और टीवी पर देखी हुई इस त्रासदी के स्थान पर आना एक अनोखा ही अनुभव होता है। दीवारों पर अभी भी गोलियों के निशान हैं। वो कुआं जिसमें न जाने कितने ही लोग कूद गए थे , अब एक चारदीवारी से घिरा हुआ है। थोड़ी देर वहां रुक कर हम लोग वापस बाजार की और चले। देखा तो १ बजने वाला था और भूख भी लग आई थी। एक रिक्शा रोक कर हम “केसर दा ढाबा” की तरफ चल पड़े। तंग गलियों में स्थित ये ढाबा तकरीबन १०० साल पुराना है और इसके खाने का कोई जवाब नहीं।
घी से भरी हुई दाल मखनी और सब्जी के साथ फिर से घी में डूबी रोटी खा कर और सिर्फ एक लस्सी को हम ३ लोग मुश्किल से ख़त्म कर पाये। अमृतसर आने पर यहाँ का खाना खाना तो बनता ही है। यहाँ ये जरूर लिखना चाहूँगा कि ये ढाबा पूरी तरह शाकाहारी है।
खाने के बाद बाजार से खरीदारी हुई और फिर हम होटल आ गए। वहां फ्रेश हो कर और एक एक चाय पी कर हम लोग स्टेशन की तरफ चले। स्टेशन पहुँचने पर देखा की दिल्ली शताब्दी जाने ही वाली थी और हमारी चंडीगढ़ की ट्रैन प्लेटफार्म पर लगने वाली थी। ट्रैन आते ही हम अपनी सीटों पर फ़ैल गए। हमें चंडीगढ़ रात १० बजे पहुंचना था और अगला दिन भी काफी व्यस्त रहने वाला था।
चंडीगढ़ में बिताया अगला दिन और वापसी की यात्रा – अगले भाग में
great post.
Thank you Ghosh Ji…
?????? ?? ????? ???? ?? ????? ?? ????? ?? ??? ??. ?????? ?? ?????? ?????? ????????? ??? ???? ?????? ?????? ?? ??? ???? ?? ???? ???? ??. ???? ?? ??? ?? ??? ?? ?? ?? ?? ?? ?? ???? ???? ?? ????-???? ?? ????? ?? ???? ???? ????? ?? ??? ??????? ???? ??, ????? ?? ???? ???????? ?? ???? ???????? ???? ??.
??? ????? ???? ?? ?????? ?? ??? ???? ???? ???? ?? ????????
???? ????? ??????????? ?? …….
Thank you so much Arun Ji for reading this long post & giving your valuable comments..
I will definitely mention said details in my future posts.
Meanwhile, Lunch at “Sarhad” costed us approx Rs. 1000 (For 2.5 people), Ramada Hotel tariff was Rs. 3000 for 1 night with breakfast, and Lunch at “Kesar” costed us Rs. 500.
Bharwan da dhaba is also equally priced as Kesar. 1 should try Breakfast at Kanha’s Poori also.
???? ?? ?????? ???? ?????? ??.
?????? ????? ?? ?? ?????? ??? (?????? ??????) ?? ????? ?? ??? ????? ?? ?????? ??. ???? ?????? ?????? ?? ???? ????? ???? ?? ?????? ?????? ????? ?? ???.
????? ????? ???? ?? ??? ???????.
Thank you so much Munesh Ji,
This was indeed a great journey.
Welcome to Punjab,Beautiful defined visit Sir……but a shortcoming……u have not uploaded any your own/family photograph n u also missed to visit historical Durgiana Temple. Nice clips n awaiting next writings.Regards.
Dear Dr. Gandhi,
Thank you for encouraging words. & your input is well accepted. Will try to add pics hence forth.
Durgiana temple was missed due to lack of time & probably this will be reason of our next visit to this holy city.
Next part is almost ready & should be complete soon.
Warm regards
Pravesh
?????? ??????? ?????, ???? ???? ?? ????????? ??????
Long time, Pravesh. Good to see your story on Amritsar. I share your views on Atari Border, there are indeed a lot of people and that is fine since people would want to witness the evening parade but there is a lack of ‘crowd management’ and that leads to all the chaos.
Ambarsar is always heavenly. Thank you.
When do we go to Chandigarh ?
Thank you Nandan,
Yes, it took really really long to write this post. Some times work & family commitments make your passion as last priority.
However, I am back with lot many experiences & a promise to share all of these, with fellow ghumakkars.
Next part should be complete very soon.
Love the way your have mentioned Amritsar, – “Ambarsar”.
Regards,
Pravesh
?????? ?? ??? ?????? ?? ??? ?? ??? ?? ?? ??? ?? ?? ???? ??? ??? . ???? ?? ???? ?? ???? ??? ???? ??????? ?? ???? ?? ??? ????
Thank you Mr. Laddha,
Kesar Dhaba is approx 100 years old & is situated near “passey wala Chowk”. It is so famous that if you ask a rickshaw puller just by name, he will take you there. No need to tell address.
Dhaba has a big dinning place & equally big kitchen also. They use only Desi Ghee for all the preparations. Daal makhni, Paneer dishes, Mix veg & baingan ka bharta are one of the best sold dishes.
Must visit, if you are in Amritsar…
Regds