दूसरे दिन सुबह अंधेरे में ही उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर और हाथ-मुहँ धोकर एक दुकान में चाय-बिस्कुट खाये और पिट्ठू लाद कर सूर्योदय से पहले ही घाघंरिया से हेमकुंड साहिब को चल पडे। हमें आज रात को ही गोबिंद घाट पहुँचना था यानी कि कुल 7+7+13=27 किलोमीटर चलना था।
गोबिंद धाम और हेमकुंड साहिब के बीच दूरी लगभग सात किलोमीटर है। हालांकि ऐसी खड़ी चढ़ाई चढ़ना बहुत मुश्किल है, लेकिन सपनों की जगह को देखने की इच्छा इस तरह के एक कठिन रास्ते पर चढ़ाई करने के लिए प्रोत्साहित करती है। पहले के दिनों में हेमकुंड साहिब तक पहुंचने के लिए कोई रास्ता नहीं था लेकिन अब हेमकुंड साहिब ट्रस्ट ने एक नियमित रूप से रास्ता बना दिया है।जब हम चढ़ाई शुरू करते हैं, तो यह इतना मुश्किल नहीं लगता है, लेकिन आधा किलोमीटर होने के बाद चढ़ाई इतनी खड़ी हो जाती है कि एक-2कदम के लिए भी बहुत जोर लगता है। लेकिन जहां चाह है, वहाँ एक राह है।गुरु गोबिंद सिंह के तपोभूमि ‘को श्रद्धांजलि अर्पित करने की उत्सुकता सभी कठिनाइयों को आसान बनाती है। उजाला होने तक करीब 1 किमी. चढ़ाई चढ़ ली थी। रास्ते में अन्य यात्री भी मिल रहे थे। थोड़ा और आगे चलते ही रास्ते के दायीं ओर एक विशाल झरना दिखाई दिया जिसमें पानी काफ़ी ऊंचाई से नीचे ग्लेशियर पर गिर रहा था और बहुत आवाज़ हो रही थी मानो झरना सबको अपनी मौजूदगी का एहसास दिला रहा हो। लेकिन यह झरना रास्ते से काफ़ी दुर था और वहाँ पहुँचना आसान नहीं था। गुरुद्वारा गोविंद धाम से श्री हेमकुंट साहिब की ओर तीन किलोमीटर के बाद मुख्य रास्ता दो भागों में बंट जाता है। दांयी तरफ़ वाले रास्ते से आगे हेमकुंड साहिब की ओर चले जाते हैं तो बायीं तरफ़ वाला रास्ता विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटीकी ओर जाता है।
“फूलों की घाटी : जब हम गुरुद्वारा गोविंद धाम से श्री हेमकुंट साहिब की ओर तीन किलोमीटर की यात्रा करते हैं तो आगे एक रास्ता बायीं तरफ़ विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी की ओर जाता है। सन 1982 को इसे राष्ट्रिय-उधान के रूप में घोषित किया है ।इस घाटी मेंहजारों किस्मों की और तरह तरह के रंग और खुशबू के फूल उगते हैं । इस दुनिया में ऐसी और कोई जगह नहीं है जहां इतनी ज्यादा विभिन्न किस्मों के फूल स्वाभाविक रूप से विकसित होते हों। इन फूलों का मानवता की सहायता के बिना हो जाना एक सुखद घटना है। इनफूलों का जीवन उनकी प्रजातियों के अनुसार रहता है. कुछ फूल, खिलने के चौबीस घंटे के भीतर ही मुरझा जातें हैं और कुछ महीनों के लिए खिले रहते हैं। यहाँ सिर्फ इन फूलो को देखना चाहिए, छूने की मनाई है, क्योकि जंगली प्रजाति होने के कारण कोई फूल जहरीला भी होसकता है।
फूलों की घाटी एक हिमनदों का गलियारा है जो लंबाई में आठ किलोमीटर और चौड़ाई में दो किलोमीटर है. यह समुद्र के स्तर से ऊपर 3,500 मीटर से लगभग 4000 मीटर के ढलानों पर है. अपने नाम के अनुसार ही, घाटी में मानसून के मौसम के दौरान विभिन्न किस्मों केफूलों से कालीन बिछ जाता है. इस अनूठी पारिस्थिति में उगनेवाली कई प्रजातियों में से, हिमालय क्षेत्र की नीली अफीम, मानसून के दौरान खिलने वाली प्रिमुला और आर्किड की असामान्य किस्मे दर्शकों के बीच सबसे लोकप्रिय हैं। भारत और अन्य देशों के वैज्ञानिक इनफूलों और जड़ी बूटियों पर उपयोगी दवाएं बनाने के लिए काम कर रहे है।
इस फूलो की घाटी पर एक विदेशी महिला, मिस जोन्स ,जो लन्दन के शाही बागीचो की पर्यवेक्षक थी एक बार रानीखेत के पादरी की पत्नी मिसेस स्मिथ के साथ सन 1922 में भ्रमण करती हुई पहाड़ी पर चढकर इस घाटी में उतर आई थी , फूलों की इस घाटी पर वो इतनामोहित और मंत्रमुग्ध हो गयी थी कि उसने घाटी में फूलों का अध्ययन करने के लिए यहां रहने मन बना लिया। उसने प्रत्येक फूल का अध्ययन व विश्लेषण किया और सबको एक वनस्पति नाम दिया।उसने सभी फूलों की विशेषताओं का उल्लेख किया और फूलों का एकविश्वकोश तैयार किया। उसकी किताबों ने इस घाटी को विश्व प्रसिद्ध बना दिया। वह छह महीने के लिए इस घाटी में रुकी थी और उसे यह जगह इतनी पसंद आई की वो हर साल यहाँ आती रही । एक दिन उसका पैर यही फिसल गया जिसके कारण उसकी म्रृत्यु हो गई ।आजभी इस महिला की यहाँ समाधि बनी हुई है। उसकी समाधि इस घाटी का एक और अभिन्न अंग बन गयी है”।
हम दांयी तरफ़ वाले रास्ते से आगे हेमकुंड साहिब की ओर बढ़ गए। जब हमने थोडी दूरी और खत्म की तो घने जंगलों का क्षेत्र समाप्त हो गया। पूरे रास्ते में कई दुकाने है जहां चाय मिलती है, कई लोग आलू के पराठों का मज़ा ले रहे थे ।एक पराठा 30 रु. में साथ में दही औरबिसलरी बाटल 30 रु. में, चाय 15 रु.में! खाने का सामान काफी महंगा था । जैसे-2 हम उपर की तरफ़ जा रहे थे वैसे-2 खाने –पीने का सामान काफी महंगा होता जा रहा था और आखिर में एक जगह बिसलरी बाटल 70 रु. में, चाय 25 रु.में! थोडा और चलने के बाद ग्लेशियर शुरु हो गये।
घोड़े वाले यात्रियों को ग्लेशियर शुरु होते ही उतार देते हैं क्योंकि इससे आगे घोड़ों के फ़िसलने का खतरा बहुत बढ जाता है। नरेश सरोहा, हरिश गुप्ता और सीटी ने आज चढ़ाई के लिये घोड़े किये थे और वो हमसे आगे थे लेकिन ग्लेशियर पर चढ़ना शुरु होते ही वो तीनो हांफने लगे। हम लोगों ने उनको एक दुकान पर चाय पीते देखा लेकिन हम वहाँ रुके नहीं और लगातार आगे बढ़ते गये। अब आखिरी दो किलोमीटर ग्लेशियर पर ही चढ़ना था जो काफ़ी मुश्किलों भरा था। कई जगह तो दोनो तरफ़ 6 फ़ुट उँची बरफ़ की दीवार थी और बीच सेग्लेशियर को काटकर रास्ता बनाया हुआ था।
सोनु और सतीश आज भी सबसे आगे थे और सबसे पहले हेमकुंड साहिब पहुँच गये थे, उनके बाद मैं और शुशील सुंदर और आकर्षक दृश्यों को देखते हुए वहाँ पहुँचे । हम सुबह 5:15 बजे निकले थे और 9:45 बजे तक हेमकुंड साहिब पहुँच गए ,कैसे पहुंचे ,यह हम ही जानते है।
हमने यहॉ पहुँचने से पहले रास्ते मे दुर्लभ ब्रह्म कमल भी देखा। वैसे तो कमल पानी में खिलने वाला एक फूल है लेकिन इस क्षेत्र में इस ब्रह्म कमल को चट्टानों पर पाया जाता है।
हेमकुंड साहिब:
हेमकुंड साहिब समुद्र स्तर से 4329 मीटर की ऊचाँई पर स्थित है। सिखों के पवित्र तीर्थ, हेमकुंट साहिब और झील चारों तरफ़ बर्फ से ढकी सात पहाड़ियों से घिरे हुए है। झील के चट्टानी किनारे वर्ष के अधिकांश समय बर्फ के साथ ढके रहते है, लेकिन जब बर्फ पिघल जाती है,तोयहाँ पौराणिक पीले व हरे, ब्रह्मा कमल (परमेश्वर के फूल) चट्टानों पर उग आते हैं ।यह स्थान अपनी अदम्य सुंदरता के लिये जाना जाता है और यह सिखों के सबसे महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है। यह पवित्र स्थल गुरु गोबिंद सिंह जी के यहाँ आने से पहले भी तीर्थ माना गया है।इस पवित्र स्थल को पहले लोकपाल , जिसका अर्थ है ‘विश्व के रक्षक’ कहा जाता था। इस जगह को रामायण के समय से मौजूद माना गया है। लोकपाल को लक्ष्मण के साथ संबद्ध किया गया है यह कहा जाता है कि लोकपाल वही जगह है जहां श्री लक्ष्मण जी, अपनी पसंदीदाजगह होने के कारण, ध्यान पर बैठ गये थे। इस जगह को सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिंद सिंह के साथ भी संबद्ध किया गया है ऐसा कहा जाता है कि अपने पहले के अवतार में गोविन्द सिंह जी ध्यान के लिए यहॉ आये थे. गुरु गोबिंद सिंह जी ने अपनी आत्मकथा ‘बिचित्र नाटक’में जगह के बारे में अपने अनुभव का इस तरह से उल्लेख किया है।
अब मै अपनी कथा बखानो ॥ तप साधत जिह बिधि मुहि आनो
हेम कुंट परबत है जहां ॥ सपत स्रिंग सोभित है तहां
सपत स्रिंग तिह नामु कहावा ॥ पंडु राज जह जोगु कमावा ॥
तह हम अधिक तपसिआ साधी ॥ महाकाल कालिका अराधी ॥
इह बिधि करत तपिसआ भयो ॥ द्वै ते एक रूप ह्वै गयो ॥
अब मैं खुद की कहानी कहता हुँ,जब मैं गहरे ध्यान में लीन था तब भगवान ने मुझे इस दुनिया में भेजा
सात चोटियों के साथ लग रहा एक बहुत प्रभावशाली हेमकुंट नाम का पहाड़ है।
यह पहाड़ सप्त (सात)- नुकीला पहाड़ है, जहां पांडवों ने प्रचलित योग किया था।
वहाँ मैंने गहरे ध्यान में बहुत तपस्या की और महाकाल व काली की आराधना की।
इस तरह, मेरा ध्यान अपने चरम पर पहुंच गया और मैं भगवान के साथ एक बन गया।
हेमकुंड संस्कृत (“बर्फ़”) हेम और कुंड (“कटोरा”) से व्युत्पन्न नाम है । हेमकुंट साहिब गुरुद्वारा एक छोटे से स्टार के आकार का है तथा सिखों के अंतिम गुरू, गुरु गोबिंद सिंह जी, को समर्पित है। श्री हेमकुंट साहिब गुरूद्वारा के पास ही एक सरोवर है। इस पवित्र जगह को अमृतसरोवर (अमृत का तालाब) कहा जाता है। यह सरोवर लगभग 400 गज लंबा और 200 गज चौड़ा है। यह चारों तरफ़ से हिमालय की सात चोटियों से घिरा हुआ है। इन चोटियों का रंग वायुमंडलीय स्थितियों के अनुसार अपने आप बदल जाता है। कुछ समय वे बर्फ़ सी सफेद,कुछ समय सुनहरे रंग की, कभी लाल रंग की और कभी-कभी भूरे नीले रंग की दिखती हैं।
समुद्र तल से 14210 फुट की ऊंचाई पर स्थित इस अमृत सरोवर की एक झलक पाने के लिए हम हेमकुंट साहिब गुरूद्वारा के पीछे की तरफ़ गये। हिमालय की चोटियों से घिरी झील लगभग पूरी तरह जमी हुई थी सिर्फ़ किनारों के पास ही पानी था और उस पानी के ऊपर भीबर्फ़ तैर रही थी । पुरा द्र्श्य इतना सुन्दर था कि उसे शब्दों में बयान करना बहुत मुश्किल है। शायद नीचे दी हुई तस्वीरों से कुछ बयां हो जाये।
ठंड के मारे हमारा वैसे ही बुरा हाल था इसलिये हमने वहाँ नहाने का विचार त्याग दिया और सिर्फ़ हाथ मुँह धोने का निश्चय किया। जैसे ही हमने पानी में हाथ डाला, सरोवर के पानी ने कयामत ढाह दी,एकदम बर्फ़ सा पानी, क्योंकि किनारों पर भी बर्फ़ थी और सरोवर में भीबर्फ़। लेकिन हमने भी हार नही मानी और तसल्ली से मुँह हाथ धो लिये और गुरूद्वारे की तरफ़ चल दिये। चारों तरफ़ बर्फ़ होने से चलना भी मुश्किल हो रहा था और लोग बार-बार फ़िसल कर गिर रहे थे। हम लोग सावधानी से चलते हुए गुरूद्वारे में प्रवेश कर गये।
अब कुछ तस्वीरें हेमकुंट साहिब गुरूद्वारे के अदंर की……
गुरूद्वारे में प्रवेश करते ही मन को काफ़ी शकुन मिला। गुरूद्वारे में गुरुबानी का पाठ चल रहा था और अन्दर का वातवरण गर्माहट से भरा था। पूरे गुरूद्वारे में कम्बल बिछे हुए थे तथा काफ़ी कम्बल तीर्थयात्रियों के ओढने के लिए भी रखे हुए थे। हम भी मात्था टेकने के बाद वहाँ कम्बल ओढ कर बैठ गये और गुरुबानी का पाठ सुनने लगे। हम आधा घंटा वहाँ बैठे रहे और जब सब साथी गुरूद्वारे में पहुँच गये तो हम प्रशाद लेकर वहाँ से बाहर आ गये। बाहर निकलते ही लगंर में चाय और खिचडी का गरम-2 प्रशाद मिल रहा था, प्रशाद ग्रहण करके गुरूद्वारे के साथ ही मौजूद लक्ष्मन मन्दिर में गये और फिर वापसी के लिये निकल लिये। हमे अभी 19-20 किलोमीटर नीचे उतरना था और आज शाम को गोबिन्द घाट पहुँचना था।
मैं और शुशील सबसे पहले चले और हमारे पीछे -2 सोनु एवं सतीश की जोड़ी आ रही थी, बाकी साथी उनसे पिछे थे। हम काफ़ी तेजी से नीचे उतरते गए और लगभग दो घंटे में घाघंरिया पहुँच गये और वहाँ पहुँच कर मैंने और शुशील ने गुरुद्वारा गोविंद धाम में लगंर खाने का निशचय किया। हम दोनो गुरुद्वारे में चले गये और थोड़े इन्तज़ार के बाद लगंर हाल में प्रवेश कर गये। लगंर खाने के बाद हमने गुरुद्वारे से चाय भी पी ली। इस इन्तज़ार और खाने-पीने की प्रकिया में एक घंटा लग गया। कोई अन्य साथी हमें गुरुद्वारे में नहीं मिला था इसलिये हमने अन्दाजा लगाया कि सभी लोग आगे जा चूके होंगे । खाने-पीने और थोड़े आराम के बाद हम तरोताजा महसुस कर रहे थे इसलिये एक बार फिर तेजी से नीचे उतरने लगे। सुंदर और आकर्षक दृश्यों को देखते हुए ,प्रकृति का आनंद लेते हुए और रास्ते में खाते-पीते हमगोबिन्द घाट कि ओर बढ़ते गये और लगभग शाम 6:30 बजे गोबिन्द घाट पहुँच गये और आज 27 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर ली। आज हमारे उतरने की औसतन गति तीन किलोमीटर प्रति घंटा थी।
गोबिन्द घाट पहुँच कर हमें सोनु एवं सतीश अलकनंदा के पुल पर बैठे मिले। वे हमसे 10 मिनट पहले ही पहुँचे थे लेकिन बाकी लोग अभी पिछे ही थे। हमने गोबिन्द घाट गुरूद्वारे में ठहरने के लिये कमरे का पता किया लेकिन सभी कमरे भरे हुए थे। वहाँ मौजूद कुछ अन्य होटलों में भी यही हाल था , तीर्थयात्रियों की अधिकता के कारण सभी होटल पूरी तरह से भरे हुए थे। जब यात्रा सीजन अपने चरम पर हो , उस समय यात्रा करने का यही नुक्सान रहता है। सभी चीजें आपको दुगने-तिगने दाम पर मिलती हैं और कई बार मिलती ही नहीं । हम चारों थक हार कर,अलकनंदा के पुल के पास बैठ अपने बाकी साथियों का इन्तज़ार करने लगे। गुप्ता जी और नरेश सरोहा ने वापिसी के लिये भी घोड़े किये थे, लेकिन इसके बावज़ूद वे काफ़ी लेट पहुँचे। जब सभी लोग आ गये तो एक-दो जगह और कमरे का पता किया लेकिन नतीज़ा वही रहा। फिर हम सब अपनी गाड़ी के पास पहुँचे और अपने-2 पिठू बैग गाड़ी में रखकर खाना खाने के लिये एक भोजनालय में गये। जब खाना खा चूके तो फिर वही समस्या कि अब सोयेंगे कहाँ? शर्मा जी, गुप्ता जी, सोनु और नरेश सरोहा तो सोने के लिये गाड़ी में चले गये। दो लोग पिछली सीटों पर ,एक बीच की सीट पर और एक आगे ड्राईवर के साथ वाली सीट पर सो गये। एक बंद चाय की दुकान के बाहर बरामदे में दो तख्त बिछे थे, एक पर सीटी अपने बेटे के साथ और दुसरे पर शुशील सो गया। बस मैं और सतीश बच गये थे , हमने गाड़ी से दरी (carpet) निकाली (जिसे हम अम्बाला से साथ लाये थे) और उसे पार्क कि हुई गाड़ीयों के बीच एक खुली जगह देख कर बिछा लिया और उस पर लेट गये लेकिन अधिक थकावट व काफ़ी गरमी के कारण नींद नहीं आ रही थी, उस पर मच्छरों ने काट-2 कर बुरा हाल कर दिया। काफ़ी देर मच्छरों से मुकाबला करते-करते जैसे ही नींद की झपकी आई तो बारिश शुरु हो गयी। हमारे बाकी साथी तो छत के नीचे थे और सो रहे थे पर हम दोनो खुले में थे इसलिये दोनो उठ कर बैठ गये, अब कहाँ जायेगे ? घुमक्कडी कि एक और परीक्षा … तभी बारिश बंद हो गयी लेकिन बादलों को देखकर लग रहा था कि बारिश फिर आयेगी। हमारे पास कोई दूसरा उपाय नहीं था इसलिये हम फिर वहीं सो गये। लगभग आधा घंटे के बाद जोर से बारिश शुरु हो गयी और हम अपनी दरी उठाकर, बारिश में ,खानाबदोश की तरह,किसी सुरक्षित स्थान को तलाशने लगे और एक चार मजिंला भवन, शायद होटल था, जिस की पार्किंग उपर सड़क के साथ थी और कमरे नीचे कि ओर थे, के बरामदे में पहुँच गये। रात के दो बज रहे थे और सब सो रहे थे। हमने भी बरामदे में अपनी दरी बिछाई और सो गये।
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Raghuwanshi ??, ????? ????? ???? ?? ???? ???? ???
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Very nice post… learned a lot about the famous Gurudwara… You have a very natural story telling style…thanks
Thanks ‘ desi Traveler’
Yes ,My style of story telling is ‘Desi’ and pure..
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Ritesh Gupta ??, ?????? ????? ?? ???? ????????
Very engaging story telling. Just like SS, even this was a first time for me to see such clear and well-taken pics of Amriti Sarovar, the way to Hemkunth Sahib. Thank you.
There is a Guruduwar in Sector 18, Noida, Uttar Pradesh which has the same roof-design as Hemkunth Sahib. I guess this is a pretty different then the regular designs. Any insights ?
27 in a single day and then not a place to pass the night would have been pretty hard. I guess, all pilgrimages are hard. Salute. Thank you.
Thanks Nandan Ji..
The Gurdwara, the house of prayer of the Sikhs, is recognized throughout the world not only as a prominent symbol of the Sikh faith but also for its distinct style of architecture. Although certain gurdwaras adapt an architectural identity similar to the style prevalent in the country in which they are built, on the whole – they are unified in terms of architectural characteristics. The gurdwara at Hemkunt, however, is singularly unique. Its location in the lofty Himalayas, at a height of 15,210 ft., makes it the only gurdwara to be built at such an altitude. Its design, which was done keeping in mind the location and climate, makes it the only pentagonal gurdwara in the world. Further, the gurdwara at Hemkunt- the tapasthan of Dusht Daman – imparts it a high degree of respect.
More details available at http://shrihemkuntsahib.com/design_archi.html
Naresh Ji,
Thoroughly enjoying the series, however, this post is a gem. The pictures and the information given is really useful. The Brahm kamal and Amrit sarovar pics need special mention. The excerpt from Guru Granth Sahib is a nice touch. As others have pointed out, your narration is very natural and engaging.
Thanks for sharing.
Thanks Tarun ji for encouragement ..
Hemkund Sahib is located in the Himalayas at an elevation of 4632 meters (15,200 ft) as per the Survey of India. Source http://en.wikipedia.org/wiki/Hemkund , but at many places it is given as 4320 m above sea level.
Nice Post, wish one day I’d make it there.
Thanks Parveen ji..
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Thanks Pankaj
After visiting Kedarnath and a long drive to Badrinath, we were so tired that many of us have dropped the idea of visiting Hemkund sahib but after the little brawl at Badrinath,no one resist and all went to Hemkund sahib.
raha nahi ja raha hai,lagatar padhta ja raha hun aur is adwitiya yatra ka aanand le raha hun.jheel ke photo to adbhut aaye hain.jab tasveer me itni khubsurat lag rahi hai to sakchhaat dekne me kitna aakarshak hoga ,kalpana kar ke hee aap se thori jalan hone lagi hai. I shapath, lajawab hai ye post.
Thanks Rajesj ji for liking the post..
The lake is one of the most beautiful lake I have ever seen. The other one is SheshNag lake .
Naresh Ji,
Thoroughly enjoying the series,and this post is the gem.
Well described Hemkund journey..
Thanks Ajay Ji,
Really Enjoyed the post. Pictures of Amrit sarovar are awesome .
Thanks Mandeep ji..
Naresh Ji. What is best time to visit the Hemkund Sahib ?Pls Guide
We went in June and found the lake frozen but the season was at peak and everything was costly. if you go late , all snow of the lake melts but due to less pilgrims rate are at lower end.
choice is yours ..
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Thanks Akash bhai…
Oh.. so difficult terrain… and costly too…..but at the end you find a Heaven..
Pictures of Amrit sarovar are awesome…beyond this world..
Thanks…
you are true . it is a heaven on earth..
Sorry,
please read you are right in place you are true..
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thanks for encouragement, Saurabh Gupta ji