गौरीकुंड – चोपटा – जोशीमठ – बद्रीनाथ (भाग 4)

अगले दिन सुबह 6 बजे उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर और तप्तकुंड में एक बार फिर से स्नान किया और फिर जल्दी से तैयार होकर एक दुकान में चाय पीने के बाद सबने अपना-2 सामान उठाया और बस स्टैंड की ओर चल पड़े। गाड़ी पार्किंग, बस स्टैंड से 600-700 मीटर दूर है लेकिन हमारी टांगे चलने को बिल्कुल तैयार नहीं थी और हम सब इस इन्तज़ार में थे कि कोई गाड़ी सोनपर्याग की ओर जाती हुई मिल जाये और हम उसमें बैठ जाये। तभी हमें एक खाली बस सोनपर्याग की ओर जाती हुई मिल गयी और हम सब उस में सवार हो गये। बस ड्राइवर को 50 का एक नोट देकर गाड़ी पार्किंग पर उतर गये। सारा सामान गाड़ी के उपर रखकर तिरपाल से ढक दिया और फिर अच्छी तरह से रस्सी से बाँध दिया।अब हमारी मंज़िल बद्रीनाथ धाम थी। यहाँ से बद्रीनाथ जाने के लिए दो रास्ते थे पहला उखीमठ, चोपटा होते हुए, दूसरा वापस रुद्रप्रयाग से । हम चोपटा होकर जाना चाहते थे क्योकि चोपटा की प्राक्रतिक सुंदरता के बारे मे काफ़ी कुछ पढ़ रखा था और यह रास्ता छोटा भी था। ड्राइवर को चोपटा होते हुए चलने को कह दिया।

 

गुप्तकाशी से दिखते सीढ़ीदार खेत

गुप्तकाशी से दिखते सीढ़ीदार खेत

मंदाकिनी नदी

मंदाकिनी नदी

सुबह-2 सड़क पर यातायात काफ़ी कम था और हम जल्दी से सोनपर्याग, गुप्तकाशी होते हुए उखीमठ पहुँच गये। उखीमठ से आगे चोपटा के मार्ग पर बढ़ते ही दोनो ओर हरे- भरे पेड़ो का जंगल नज़र आने लगा। यहाँ सड़क काफ़ी अच्छी बनी हुई थी। सड़क के किनारे बनी एक छोटी सी चाय की दुकान पर गाड़ी रोकी और चाय का आर्डर दिया । सुबह सब ने हल्का नाश्ता किया था और भूख भी लग रही थी इसलिए गाड़ी से बिस्कुट और मठ्ठी भी खाने के लिये निकाल लिये। चाय की दुकान पर हमारी गाड़ीं खड़ी देखकर दो-तीन और गाड़ियाँ वहाँ चाय के लिये आकर रुकी। चाय की दुकान के साथ ही नीचे की ओर एक झरना बह रहा था और कुछ लोग वहाँ नहा रहे थे । चाय वाले ने हमें बताया कि सिर्फ़ चार धाम यात्रा के दौरान ही वो अपनी दुकान खोलता है और बाकी समय उसकी यह दुकान बन्द रहती है।

घने जंगल के बीच चाय की दुकान

घने जंगल के बीच चाय की दुकान

आस-पास की हरियाली

आस-पास की हरियाली

मेरी तस्वीर

मेरी तस्वीर

एक झरना

एक झरना

यहाँ से थोड़ी देर के बाद हम आगे के लिए चल दिए। ड्राइवर भी तेज़ी से गाड़ी चला रहा था। इस रास्ते से जाते हुए दो और काफ़ी महत्वपूर्ण पर्यटक स्थल रास्ते में पड़ते हैं जिनकी जानकारी मुझे उस समय नही थी लेकिन बाद में जब मुझे यात्रा ब्लाग पड़ने का चस्का पड़ा तो इनकी जानकारी मिलीं । ये महत्वपूर्ण स्थल हैं देवरिया ताल तथा तुंगनाथ मंदिर व चंद्रशिला । इनके बारे में थोडी सी जानकारी मैं यहाँ अवशय दूँगा ।

देवरिया ताल: देवरिया ताल उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग जिले में ऊखीमठ- चोपटा मार्ग पर सारी गाँव के पास एक पहाडी पर छोटा सा ताल है। इसके चारों तरफ जंगल हैं। यह समुद्र तल से 2387 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। देवरिया ताल आने वाले पर्यटकों को 150 रुपये प्रति व्यक्ति शुल्क देना होता है। यह शुल्क उत्तराखण्ड का वन विभाग लेता है। लेकिन उत्तराखण्ड के निवासियों के लिये कोई शुल्क नहीं है। ऊखीमठ से मस्तूरा गांव तक नियमित जीपें है। मस्तूरा गांव मुख्य ऊखीमठ- चोपटा मार्ग पर ही है और इस गांव से कुछ किलोमीटर दूर मुख्य मार्ग से हटकर सारी गाँव पड़ता है और एक सडक सारी गांव तक भी आती है। यानी सारी तक अपनी गाडी से आया जा सकता है। सारी गांव तक लोकल जीपें भी आती है लेकिन ये नियमित नहीं हैं ।

देवरिया ताल अपने स्वच्छ पानी के लिये प्रसिद्ध है। यहॉ खाने-पीने के इंतजाम लिये एक दो दुकान भी है। देवरिया ताल इसकी विस्तृत 300 ° चित्रमाला के लिए प्रसिद्ध है। किंवदंती है कि देवता इस झील में स्नान करते थे इसलिए इसका नाम देवरिया ताल है। यह भी माना जाता है कि यह वही जगह है जहां पराक्रमी पांडवों को यक्ष द्वारा पूछे गये प्रश्नों का जबाब देना पड़ा।

देवरिया ताल 1

देवरिया ताल 1

देवरिया ताल 2

देवरिया ताल 2

तुंगनाथ मंदिर व चंद्रशिला : तुंगनाथ मंदिर दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर है। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 3680 मीटर है। यह पंचकेदारों में दूसरे नंबर का केदार है। यह रूद्रप्रयाग जिले में तुंगनाथ पर्वत श्रृंखला में स्थित है। मंदिर 1000 साल से भी पुराना माना जाता है और एक किंवदंती के अनुसार महाभारत महाकाव्य के नायक पांडवों से जुड़ा हुआ है। चोपटा से तुंगनाथ मन्दिर की दूरी चार किलोमीटर है। पक्का पैदल रास्ता बना हुआ है। सभी पंच केदार यात्रा मार्ग में से तुंगनाथ के लिए मार्ग सबसे कम है। चंद्रशिला तुंगनाथ से डेढ किलोमीटर दूर तुंगनाथ पर्वत श्रृंखला में एक चोटी है यह समुद्र के स्तर से 4,000 मीटर (13,000 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। एक कथा का कहना है कि भगवान चन्द्र ने तपस्या में यहाँ काफ़ी समय बिताया. यह शिखर हिमालय की एक शानदार तस्वीर प्रदान करता है, विशेष रूप से नंदा देवी, त्रिशूल, केदार पीक, बन्दर-पूँछ और चौखम्बा चोटियों की।”

चोपटा पहुँचते – पहुँचते हमे अपने बाई ओर वर्फ़ से आच्च्छादित पर्वत श्रखलाएँ दिखने लगी. ज्यो-ज्यो गाड़ी आगे बढ़ रही थी पर्वतो की चोटियाँ स्पष्ट होती जा रही थी। बहुत ही मोहक द्र्श्य था। चोपटा पहुँचने पर गाड़ी ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी। सामने ही तुंगनाथ मंदिर जाने के लिए रास्ता था। सड़क के दोनो ओर वर्फ़ से ढकी चोटियाँ नज़र आ रही थी । चोपटा के बारे मे पढ़ा था , स्विट्ज़रलैंड ऑफ इंडिया है। कोई शक नही हिन्दुस्तान मे चोपटा की प्राक्रतिक सुंदरता नायाब है। कोसानी के बारे मे महात्मा गाँधी ने स्विट्ज़रलैंड ऑफ इंडिया कहा था। वहाँ उन्होने अपना आश्रम भी बनाया परन्तु चोपटा की सुंदरता के आगे कोसानी कहीं नही टिकता है। जो भी चोपटा आता है वह यहाँ की खूबसूरती को भूल नही सकता। यहाँ पर हम लोग लगभग आधा घंटा रुक कर आस पास के नज़ारे देखते रहे। यहाँ की सुंदरता देख कर बार-बार सब कहने लगे बहुत अच्छा किया जो हम इस रास्ते से आए वरना हमे पता ही नही चलता कि कितनी खूबसूरत यह जगह है।

चोपटा 1

चोपटा 1

चोपटा 2

चोपटा 2

चोपटा 3

चोपटा 3

चोपटा से चमोली का रास्ता हरे-भरे जंगलो से घिरा हुआ है। इस रास्ते पर ज़्यादा वाहन नही चल रहे थे। हमलोग दोपहर तीन बजे चमोली पहुँच गये। हमे उम्मीद थी कि अगर हम 5 बजे तक जोशीमठ पहुँच जाए तो बद्रीनाथ जाने का मार्ग खुला मिल जाएगा। फिर हमे रास्ते मे कहीं ना रुक कर सीधे बद्रीनाथ पहुँच जाएँगे। चमोली से बद्रीनाथ का मार्ग काफ़ी चौड़ा था और ड्राइवर भी तेज़ी से गाड़ी चला रहा था। रास्ते मे ट्रैफिक जाम की थोड़ी बाधा के बावजूद हम लोग 5 बजे जोशीमठ पहुँच गये। अभी बद्रीनाथ जाने का मार्ग खुला था. हमारी गाड़ी के निकलने बाद ही बद्रीनाथ जाने के लिए रास्ता बंद कर दिया गया। जोशीमठ से आगे का मार्ग संकरा है इस कारण दो –दो घंटे के इंटरवल से जोशीमठ से बद्रीनाथ जाने का मार्ग खोला जाता है.

रास्ते में लिया गया फ़ोटो

रास्ते में लिया गया फ़ोटो

रास्ते में लिया गया फ़ोटो

रास्ते में लिया गया फ़ोटो

रास्ते में लिया गया फ़ोटो

रास्ते में लिया गया फ़ोटो

चमोली शहर

चमोली शहर

जोशीमठ के पास रास्ते मे ट्रैफिक जाम

जोशीमठ के पास रास्ते मे ट्रैफिक जाम

चमोली से कुछ आगे ही सड़क के किनारे अलकनंदा पर कुछ अन्य विध्धुत परियोजनाओ पर काम चल रहा था। जोशीमठ से आगे बढ़ते ही हमे सड़क के किनारे लगे हुए J.P. के सैकड़ो बोर्ड नज़र आने लगे. हर एक बोर्ड पर बड़ा-बड़ा .” NO DREAM TOO BIG” लिखा हुआ था। ऐसा लग रहा था, अब हम किसी की प्राइवेट एस्टेट मे से होकर गुजर रहे है। ज्यो-ज्यो हम विष्णु प्रयाग की ओर बढ़ रहे थे अलकनंदा मे जल कम होता जा रहा था। विष्णुप्रयाग के पास तो अलकनंदा मे जल ही नही नज़र आ रहा था. बाद में विष्णुप्रयाग पहुँचने पर पता लगा की यहाँ पर Jaypee ने अपनी विध्धुत परियोजना लगाई हुई है और इस कारण अलकनंदा का जल विष्णु प्रयाग मे रुका हुआ है । विष्णुप्रयाग से पहले जब हम गोबिन्द धाम पहुँचे तो वहाँ ट्रैफिक जाम लगा हुआ था। गोबिन्द धाम से ही हेमकुण्ड साहिब की यात्रा शुरू होती है जहाँ हमारा वापसी में जाने का प्रोग्राम था। सड़क से नीचे की ओर गाड़ियों के लिये पार्किंग बनी हुई है जो पुरी तरह से भरी हुई थी। मुख्य सड़क के दाएँ और बायें की खाली जगह को भी पार्किंग के लिये प्रयोग में लाया हुआ था लेकिन फिर भी हेमकुण्ड साहिब के ज्यादा यात्रियों के कारण गाड़ियों की संख्या भी ज्यादा थी जो ट्रैफिक जाम का कारण बनी हुई थी । कुछ ज्यादा स्मार्ट लोगों के कारण, जो थोडी सी जगह मिलते ही अपनी गाड़ी तेज़ी से चलाकर आगे ले जाकर आगे खड़ी गाड़ी के बराबर लगा रहे थे, समस्या बद से बदतर होती गयी। ऐसे मह्त्वपूर्ण स्थान पर पुलिस की मौजूदगी ना के बराबर थी जो हमें काफ़ी हैरान कर रही थी।

 

जब लोगों का धैर्य ज़बाब देने लगा तो बहुत से लोगों ने एकठ्ठा होकर ट्रैफिक को खुद सँभालना शुरू किया और काफ़ी मश्क्कत के बाद ट्रैफिक सुचारू हो सका। हम लोग शाम के 5:30 बजे जाम में फ़से थे और निकलते -2 रात के दस बज गये और हमारा आज शाम/रात को बद्रीनाथ धाम दर्शन करने का पहले से तय कार्यक्रम फ़ेल हो गया। हनुमान चट्टी से आगे का रास्ता काफ़ी खतरनाक था और रात में ऐसे लैंड स्लाइडिंग एरिया से निकलते हुए काफ़ी डर भी लग रहा था । हम लोग भगवान को याद करते-2, रात 11:30 बजे के करीब बद्रीनाथ धाम पहुँच गये। इतनी कठिन और दुर्गम चढाई के बाद एक विशाल नगर बसा देखकर खुशी भी हुई और हैरानी भी। वहाँ पहुँचने के बाद ठ्हरने के लिये कमरो की तलाश शुरु कर दी। मैं और हरिश गुप्ता बाकी सभी लोगों को गाड़ी पर छोड़कर कमरे ढूढ़ने लगे । यात्रा सीजन शबाब पर होने के कारण यहाँ भी कमरा मिलने में काफ़ी मुश्किल हो रही थी, 15-20 मिनट के बाद 5 बेड का एक कमरा 1800 रुपये प्रति दिन के हिसाब से ले लिया और सामान कमरे मे रख दिया। एक तो कल केदारनाथ की एक ही दिन में 28 किलोमीटर कि चढाई / उतराई और आज लगातार 16 घंटे गाड़ी में, उस पर आज दोपहर का खाना भी नही खाया था और रात का खाना भी मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी कयोंकि इस समय खाने की कोई भी दुकान खुली नही थी, लगता था भगवान हमारी परीक्षा ले रहा था। सबके शरीर की ऐसी की तैसी हो रखी थी और सब को भुख लग रही थी इसलिये हाथ-मुँह धोकर, आपातकालीन स्थिति के लिये बैग में मौजुद बिस्कुट और मठ्ठी खाये और सुबह जल्दी उठ्ने का आलर्म लगा कर हम सब सो गये ।

23 Comments

  • Very nice.
    Mandakini river, Deoriataal, Chopta…Pictures are too good…

    I am jealous of all of you who keep on posting your trip to such beautiful places and I am not able to go there…and so many places are in my wishlist…just pray to God to save my knees till I visit all these places…

    waiting for your next

  • Vipin says:

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  • Nandan Jha says:

    A very long and arduous drive Naresh Jee. You were in-time to cross the gate at Joshimath and I was hoping that you would reach BN in time for a good dinner.

    Details around Chopta and Dewaria tal are very useful. Thanks for taking us along.

  • SilentSoul says:

    beautiful travelogue and captivating fotos… did you go to Devaria Taal ? how you shot fotos of this taal?

  • Ritesh Gupta says:

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  • Harish Bhatt says:

    Very nice and down to earth narration Naresh Ji… The pictures are also very nice….

  • Thanks Harish bhai..

  • Naresh

    This is one of the best series I have read here . It is very informative. Whenever I will go here I will once again go through your posts. Thanks for sharing.

  • Vishal Ji ,
    thanks for liking the series..
    Jai Bhole ki..

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  • rajesh priya says:

    bilkul sahi ,chopta jaisi khubsurat jagah mujhe nahi lagta,uttarakhand me koi aur hai.mujhe lagta hai gandiji ne chopta ke baare me suna nahi hoga varna kousani ko switzerland nahi kehte.(mera maksad bapu ke pasand ko challenge karna nahi hai,meri rai me chopta behtarin jagah hai)main 2009 me chopta me raat gujara tha,tab wahan bijli nahi thi, chhote-2 hotel the jo battery se chalnewali emergency light dee thi.ab pata nahi wahan bijli aaee hai ya nahi? aapke post me bahut maza aa raha hai, mere tour ka revival ho raha hai.

  • rastogi says:

    dear naresh
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  • Rastogi Ji,
    Thanks for going through the Post.
    Sir, you are right, I read your post and but I write only that part in my post which I also saw and common ….Like JP sign boards.. If I have not read your post , I would not mentioned them .
    I accepts that some lines or words may be inspired by your post..
    Thanks Rastogi Ji..

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