इन्दौर – पैदल स्थानीय भ्रमण!

अभी तक आप पढ़ चुके हैं कि बैंक के कार्य से इन्दौर जाने का कार्यक्रम बना तो उस दौरान खाली समय में घुमक्कड़ी करने का संकल्प लेकर मैं किस प्रकार सहारनपुर स्टेशन पर अमृतसर से इन्दौर जाने वाली एक्सप्रेस ट्रेन तक पहुंचा।  मोहन जोदड़ो की खुदाई में निकले अपने टू-टीयर वातानुकूलित डब्बे में अपनी सहयात्रियों को घुमक्कड़ डॉट कॉम के लेखकवृंद से परिचय कराते – कराते इन्दौर जा पहुंचा। इंदौर स्टेशन से गंगवाल बस अड्डे और फिर तीन घंटे तक टैक्सी को कर्फ्यूग्रस्त धार में घुसाने का असफल प्रयत्न करके अन्ततः वापिस इन्दौर आया, होटल में कमरा लिया! नहा-धोकर राजा-बेटा बन कर बैंक जा पहुंचा।  अब आगे !

ये आर.एन.टी. – आर.एन.टी. क्या है?

जब से मुझे पता चला था कि प्रेज़ीडेंट होटल, जिसमें मुझे अपने प्रवास के दौरान रुकना है, आर एन टी मार्ग पर है, मन में उत्सुकता हो रही थी कि भला आर एन टी  से इन्दौर के किस राजा का नाम हो सकता है?  मल्हार राव, तुकोजी राव, अहिल्याबाई जैसे नाम ही बार-बार सुनने में आ रहे थे मगर इनमें से कोई भी नाम फिट नहीं बैठ रहा था।  कई लोगों से पूछा पर सब ने यही कहा कि हर कोई आर एन  टी ही कहता है।   अन्ततः एक समझदार सा इंसान खोज कर उससे पूछा कि “भाईसाहब, ये आर.एन.टी. क्या है” तो उत्तर सुन कर मैं सन्न रह गया क्योंकि उत्तर मिला, रवीन्द्र नाथ टैगोर ! ये तो बगल में छोरा, नगर में ढिंढोरा वाला मामला हो गया था।  खैर। 

 

आर.एन.टी. मार्ग से जावरा कंपाउंड इलाके की दूरी आधा किमी भी नहीं है अतः पैदल चलना बहुत आनन्ददायक अनुभव हो रहा था।  फरवरी का मौसम वैसे भी कस्टम-मेड लग रहा था। हमारी बैंक शाखा सियागंज से जावरा कंपाउंड में अभी हाल ही में स्थानान्तरित हुई थी और मेरी देखी हुई नहीं थी।  पूरी बारीकी से शाखा का निरीक्षण परीक्षण किया गया।  सारे स्टाफ से भी परिचय हुआ।  दोपहर को जब भूख लगने लगी तो बैंक से एक अधिकारी मुझे एक हलवाई की दुकान पर लेगये और चाट खिलाई!  मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इंदौर वासी खाना खाने के समय भी खाना नहीं खाते, बल्कि चाट खाते हैं।  शाम को सारे स्टाफ को होटल में आने का आदेश देकर तक मैं चार बजे वापिस होटल में आ गया। बैंक में बढ़ई काम कर रहे थे, लगातार ठक-ठक से मेरा जी घबराने लगा था।  शाम को छः बजे से साढ़े सात बजे तक स्टाफ की मीटिंग ली गई और फिर उनको विदा करने के बाद सोचा कि अब क्या किया जाये।  कहां जायें?

सैंट्रल मॉल

गूगलदेव से प्राप्त जानकारी के अनुसार सैंट्रल मॉल आर.एन.टी. मार्ग पर ही था।  खाना मॉल में ही खा लूंगा, यह सोच कर मैं होटल से बाहर सड़क पर निकल आया। हल्की – हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। तभी मुकेश भालसे का फोन आ गया और उन्होंने बताया कि उनका बाहर जाने का कार्यक्रम आगे सरक गया है और अब वह रविवार को मेरा साथ दे सकते हैं।  इससे पहले दो बार पहले भी मुकेश से मेरी बातचीत सहारनपुर में रहते हुए फोन से हुई थी।  व्यक्तिगत परिचय कुछ नहीं था पर यह घुमक्कड़ डॉट कॉम का प्रताप ही कहना चाहिये कि हम दोनों ही एक दूसरे से मिलने के लिये व्याकुल थे।  मैं सड़क पर चलते हुए फोन पर बात करते-करते एक विशालकाय मॉल तक आगया जो कि सैंट्रल मॉल ही सिद्ध हुई!   कमाल है भई!    इसका मतलब गूगलदेव की बात सही थी।   मॉल के प्रवेश द्वार पर खड़े – खड़े ही  मैने मुकेश को बताया कि कल शनिवार को २ बजे तक का बैंक होगा,  उसके बाद मैं पूरी तरह से उनके निर्देशानुसार ही चलूंगा।  यही तय पाया गया कि मैं अगले दिन इन्दौर से अधिकतम तीन बजे धार वाली बस पकड़ कर घाटाबिलोद के लिये चल पड़ूंगा।

हमारी धार शाखा का एक स्टाफ अधिकारी शनिवार को इंदौर शाखा में उपस्थित था और उसे तीन बजे इंदौर से धार स्थित अपने घर के लिये निकलना था। वह और मैं साथ-साथ इंदौर से घाटाबिलोद तक जायेंगे, यह कार्यक्रम मैने अगले दिन सुबह बैंक में पहुंचते ही निश्चित कर लिया था। पर खैर, फिलहाल तो सैंट्रल मॉल की बात करें।

बिना जेब में धेला लिये मॉल दर्शन

I reached Central Mall on foot white talking with Mukesh Bhalse over phone.

I reached Central Mall on foot white talking with Mukesh Bhalse over phone.

सैंट्रल मॉल कैसा था, कहां था?  आर.एन.टी. मार्ग कुल जमा १ किमी लंबी सड़क है जिसके एक छोर पर होटल प्रेज़ीडेंट और दूसरे छोर पर सैंट्रल मॉल है। दोनों छोरों के बीच में अहिल्या बाई होल्कर विश्वविद्यालय है।  सैंट्रल मॉल वाला छोर महात्मा गांधी चौक पर समाप्त होता है।  जब इस चौक का नाम महात्मा गांधी चौक रख दिया गया तो स्वाभाविक रूप से वहां गांधी जी की एक प्रतिभा की भी स्थापना की गई।  यह भी हो सकता है कि पहले प्रतिमा रखी गई हो और फिर चौक का नामकरण किया गया हो।  मैने इस मामले में ज्यादा आर. एंड डी. करने की जरूरत नहीं समझी।  सबसे विचित्र संयोग तो ये देखिये कि जिस सड़क पर ये गांधी जी एक लॉन के बीच में बुत की तरह से खड़े हुए पाये गये, उस सड़क का नाम भी महात्मा गांधी मार्ग ही निकला!  पर खैर, फिलहाल तो सैंट्रल मॉल की बात करें।

Entrance of the Central Mall.

Entrance of the Central Mall.

Display of the Beat LT Car at the Central Mall

Display of the Beat LT Car at the Central Mall

जब मैने मॉल के प्रवेश द्वार की, तथा वहां अपना अंग प्रदर्शन करने के लिये खड़ी हुई नयी नवेली रक्तवर्ण शैवरले बीट एलटी कार की फोटुएं उतारनी शुरु की तो वहां खड़े हुए सुरक्षा कर्मचारी ने मुझे कुछ नहीं कहा। पर जब मैं मॉल में प्रवेश करने हेतु आगे बढ़ा तो उसने बड़े आदर से मुझे कहा कि मैं कृपया मॉल के अन्दर किसी दुकान में चित्र न लूं।  मैने कहा कि दुकान के अन्दर के न सही, बाहर कॉरिडोर के तो ले सकता हूं तो वह बोला, यहां सब दुकान और कॉरिडोर एक ही बात है।  मैने जैंटिलमैन की तरह से पक्का प्रोमिस कर लिया कि फोटो नहीं खींचूंगा।  पर फिर भी अन्दर जो फोटो मैने खींचीं सो आपकी सेवा में प्रस्तुत हैं।

Central Mall, RNT Marg, Indore

Central Mall, RNT Marg, Indore

4th floor of the Central Mall, Indore - almost deserted by this time

4th floor of the Central Mall, Indore – almost deserted by this time.

संभवतः तीसरी मंजिल पर जाकर एक ओर खेल कूद की दुकानें और दूसरी ओर खाने पीने के रेस्तरां दिखाई दिये।  जेब में हाथ मार कर देखा तो पता चला कि मेरे सारे पैसे तो होटल में ही छूट गये हैं। अब दोबारा किसी भी हालत में होटल जाने और वापिस आने का मूड नहीं था। पैंट की, शर्ट की जेब बार – बार देखी पर एटीएम कार्ड के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला।  कैमरे के बैग की एक जेब में हाथ घुसाया तो मुड़ा तुड़ा सा १०० रुपये का एक नोट हाथ में आ गया।  उस समय मुझे ये १०० रुपये इतने कीमती दिखाई दिये कि बस, क्या बताऊं !  छोले भटूरे का जुगाड़ तो हो ही सकता था। वही खा कर मॉल से बाहर निकल आया।  सोचा इस बार सड़क के दूसरे वाले फुटपाथ से वापस होटल तक जाया जाये।  सड़क का डिवाइडर पार कर उधर पहुंचा तो एक छोटा सा अष्टकोणीय (या शायद षट्‌कोणीय रहा होगा)  भवन दिखाई दिया जिसकी छत पर एक स्तंभ भी था। सभी दीवारों पर जैन धर्म से संबंधित आकृतियां उकेरी गई थीं।  यह जैनियों की किसी संस्था का कार्यालय था, जिसमें छोटे-छोटे दो कमरे बैंकों ने एटीएम के लिये किराये पर भी लिये हुए थे। एटीएम देख कर मेरी जान में जान आई और मैने तुरन्त कुछ पैसे निकाल लिये क्योंकि मेरी जेब में अब सिर्फ १० रुपये का ही एक नोट बाकी था।

Hexagonal building at MG Road looks great in artificial lights.

Hexagonal building at MG Road looks great in artificial lights.

Engravings on the walls of hexagonal Jain Building on  M.G. Road / RNT Road joint.

Engravings on the walls of hexagonal Jain Building on M.G. Road / RNT Road joint.

Another wall of the same building.

Another wall of the same building.

Intricate engravings depicting Jain Tirthankar.

Intricate engravings depicting Jain Tirthankar.

वर्षा तो रुक चुकी थी पर सड़कें गीली थीं। गीली सड़क पर स्ट्रीट लाइट्स और वाहनों की लाइटें अच्छा दृश्य उत्पन्न कर रही थीं।  वापिस होटल में आया तो टी.वी. चला कर धार से संबंधित समाचार देखे। ’स्थिति दिन भर तनावपूर्ण किन्तु नियंत्रण में’ बताई जा रही थी।  टी.वी. की चैनल उलटते – पुलटते रात के बारह बज गये और अन्ततः मैं सो गया।

After-rain reflections on road add to the glamour  of street lights.

After-rain reflections on road add to the glamour of street lights.

इन्दौर की पैदल घुमक्कड़ी

सुबह छः बजे आंख खुलीं तो खिड़की से बाहर झांक कर अंधेरा ही पाया।  नित्य कर्म से निवृत्त होते होते साढ़े छः बज गये।  फिर सवाल मन में आया कि अब क्या करूं?  लगा कि दिन में तो बैंक में रहना है, अगर इंदौर में घूमना है तो ऐसे ही सुबह या शाम को टाइम निकालना पड़ेगा।  मैं अपने ट्रैक सूट में ही,  हवाई चप्पल पहन कर और कंधे पर कैमरा लटका कर सड़क पर आ गया।   इस लोकल छाप वेश भूषा में  कंधे पर Nikon का DSLR देख कर ज्यादातर लोग मुझे किसी न किसी समाचार पत्र का पत्रकार समझते रहे।  कुछ ने तो पूछा भी कि कौन से पेपर से हूं !  मैने बता दिया – घुमक्कड़ डॉट कॉम से !

होटल से इस बार स्टेशन की दिशा पकड़ी और आधे अंधेरे – आधे उजाले में, सड़क पर कहीं – कहीं रुके हुए पानी से अपने को बचाते हुए, अंदाज़े से स्टेशन की दिशा में बढ़ता चला गया।  आगे एक फ्लाईओवर मिला  उसे छोड़ कर आगे बढ़ा तो रेलवे की बाउंड्री वाल भी आगई जिसके काफी  ऊपर से फ्लाईओवर जा रहा था!  सोचा कि रेलवे लाइन के उस पार जाना है तो फ्लाई ओवर से जाना ही सुरक्षित रहेगा अतः फ्लाईओवर की जड़ में मौजूद सीढ़ियां खोज निकालीं जिन पर चढ़ कर सीधे फ्लाईओवर पर जा पहुंचा।  स्टेशन के उस पार जाकर देखा कि नीचे उतरने के लिये फिर सीढ़ियां मौजूद हैं, अतः फटाफट नीचे उतर आया।  अब मैं स्टेशन की सियागंज वाली दिशा में आ चुका था।  संकरी गली में से निकल कर स्टेशन के मुख्य प्रवेश द्वार तक आ गया।   इस समय मैं अपने आपको वास्कोडिगामा के कम नहीं समझ रहा था। सोचा कि पहले तो रेलवे स्टेशन की आर.एंड डी. की जाये। बस, एक प्लेटफॉर्म टिकट खरीदा और पहुंच गया प्लेटफॉर्म पर!    वैसे मैं अपने सहारनपुर रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म टिकट खरीदने की जहमत नहीं उठाता पर एक अनजाने शहर में रिस्क लेना उचित नहीं लगा, अतः पांच रुपये का खून मंजूर कर लिया।   अमृतसर से इंदौर आने वाली ट्रेन पुनः प्लेटफॉर्म पर पदार्पण कर रही थी  जिसकी बहन मुझे कल यहां तक लाई थी ।    मैं मीटर गेज़ वाली दिशा में जाने के लिये ओवरब्रिज पर चढ़ा, प्लेटफार्म नं० १ पर उतरा और बाहर निकल आया।

Platform No. 1 (Meter Gauge) at Indore Station

Platform No. 1 (Meter Gauge) at Indore Station.

Indore Station as seen from flyover.

Indore Station as seen from flyover.

 

List of Freedom Fighters from Indore. A very good gesture indeed.

List of Freedom Fighters from Indore. A very good gesture indeed.

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A beautiful display at the Indore Railway Station. (Meter Gauge side)

A beautiful display at the Indore Railway Station. (Meter Gauge side)

Entrance to Meter Gauge i.e. Platform No. 1 at Indore Station

Entrance to Meter Gauge i.e. Platform No. 1 at Indore Station

Offfff !  Suresh Kalmadi ! :(

Offfff ! Suresh Kalmadi ! :(

Floor cleaner vehicle. Can clean entire platform within half an hour.

Floor cleaner vehicle. Can clean entire platform within half an hour.

वाह, क्या बात है!  सामने ही एक कोयले का इंजन सजा कर रखा हुआ था।  उसकी भी आर.एंड डी. की गई।  वहां से आगे बढ़ा तो ग्वालटोली थाना मिल गया।  वहां पर पोहे जलेबी की कई सारी दुकानें थीं।  हे भगवान, इन इंदौर वालों की मति सुधारो !  जब देखो, पोहा – जलेबी !  खैर, सौभाग्य से मुझे दोनों ही आइटम भाते हैं अतः मैंने २४ घंटे के इंदौर प्रवास में तीसरी बार पोहा – जलेबी का भोग लगाया।  वहां से आगे बढ़ा तो खुद को महात्मा गांधी रोड वाले फ्लाईओवर के नीचे पाया। आगे बढ़ा तो दोबारा सैंट्रल मॉल पर आ पहुंचा। रात को यह लाल रंग का मॉल जितना हलचल से भरपूर और ग्लैमरस दिखाई दे रहा था, सुबह उतना ही उजाड़ और उदास! आर एन टी मार्ग को पीछे छोड़ते हुए महात्मा गांधी मार्ग पर ही आगे बढ़ा तो महसूस होने लगा कि इन्दौर मूलतः एक अच्छा, समझदारी से बसाया हुआ शहर है।  हमारे सहारनपुर में तो कहीं फुटपाथ हैं ही नहीं पर यहां फुटपाथ न सिर्फ भरपूर थे अपितु सुन्दर भी थे।  वहीं एक नवग्रह पार्क मिला ।  उसमें प्रविष्ट हुआ तो देखा कि अनेकानेक स्त्री – पुरुष अपना वज़न कम करने की दुराशा में पार्क में तेज़ – तेज़ चक्कर लगा रहे थे। एक ई-लाइब्रेरी भी दिखाई दी जो सुबह के समय बन्द थी।  नवग्रह पार्क छोड़ कर आगे बढ़ा तो पता चला कि मेरी दाईं ओर इंदौर हाई कोर्ट मौजूद है।  ग्रिल के बीच में से कैमरा घुसा कर मुख्य भवन का एक चित्र लिया।  आगे मोड़ पर हाईकोर्ट में प्रवेश हेतु मुख्य द्वार था और बहुत खूबसूरत लॉन दिखाई दे रहा था।  पर सुरक्षा कर्मियों ने अन्दर नहीं जाने दिया।  मैने कहा कि मुख्य भवन के अन्दर थोड़ा ही जा रहा हूं, सिर्फ लॉन तक, पर नहीं, मना कर दिया गया।  यू. पी. हो या एम.पी. – पुलिस सब जगह एक जैसी ही है।

P.S. Gwaltoli outside Railway Station, Indore

P.S. Gwaltoli outside Railway Station, Indore

An important landmark at Indore Railway Station - Triple overhead tanks.

An important landmark at Indore Railway Station – Triple overhead tanks.

The omnipresent poha - jalebi in Indore.

The omnipresent poha – jalebi in Indore.

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Bechare Baapu at M.G. Chowk, Indore.

Bechare Baapu at M.G. Chowk, Indore.

Some children playing at M.G. Chowk !

Some children playing at M.G. Chowk !

ATM at RNT Marg / MG Road crossing. Jain Building.

ATM at RNT Marg / MG Road crossing. Jain Building.

Beautiful Bus stop on M.G. Road with Electronic display system.

Beautiful Bus stop on M.G. Road with Electronic display system.

Ahilya Bai Holkar E-Library at Navgrah Park, M.G. Rd. Indore

Ahilya Bai Holkar E-Library at Navgrah Park, M.G. Rd. Indore

Executive body of E-Library, M.G. Rd., Indore

Executive body of E-Library, M.G. Rd., Indore

Padmashree Dr. S.R. Ranganathan

Padmashree Dr. S.R. Ranganathan

Offices of various Jain institutions in this small building.

Offices of various Jain institutions in this small building.

Navgrah Explained in the Navgrah park.

Navgrah Explained in the Navgrah park.

Bust Statue - Padmashree Dr. S.R. Ranganathan in Navgrah Park.

Bust Statue – Padmashree Dr. S.R. Ranganathan in Navgrah Park.

Navgrah Park - Info about Dr. S.R. Ranganathan.

Navgrah Park – Info about Dr. S.R. Ranganathan.

Jain building as seen from Navgrah Park

Jain building as seen from Navgrah Park

History of the Safed Kothi (E-Library) near Navgrah Park.

History of the Safed Kothi (E-Library) near Navgrah Park.

Indore High Court behind these pillars. M.G. Road, Indore

Indore High Court behind these pillars. M.G. Road, Indore

Indore Bench of Hon'ble High Court, Madhya Pradesh. (Camera inserted between the pillars)

Indore Bench of Hon’ble High Court, Madhya Pradesh. (Camera inserted between the pillars)

Chambers for the advocates of Indore High Court.

Chambers for the advocates of Indore High Court.

Interesting sign boards in front of some bungalow.

Interesting sign boards in front of some bungalow.

Devi Ahilya Holkar University at Indore

Devi Ahilya Holkar University at RNT Marg, Indore

अब तक साढ़े आठ से अधिक का समय हो चुका था, अतः अंदाज़े से ऐसी सड़क पकड़ी जो होटल प्रेज़ीडेंट के आस-पास कहीं जा कर निकलने की उम्मीद थी।  पर जब यह सड़क आर.एन.टी. मार्ग पर जा कर खुली तो सामने अहिल्या बाई होल्कर विश्वविद्यालय का मुख्य प्रवेश द्वार दिखाई दिया जो रात को फोन पर बात करते करते मेरी दृष्टि से चूक गया था।  वहां से बाईं ओर की सड़क पकड़ कर दो-चार मिनट में ही अपने होटल तक पहुंचा और बिस्तर पर पसर गया।  इतना पैदल चलने का भला अब कहां अभ्यास रह गया था!  वैसे भी मेरी हवाई चप्पल एक्यूप्रेशर वाली थी जिसमें रबर की ही सही, पर नुकीली कीलों का बिस्तर बना हुआ था।  गीज़र से गर्म पानी लेकर मैने अपने पैरों की तन-मन से खूब सेवा की और उनको दर्पण सा चमकाया।

होटल का मैन्यू कार्ड और उसमें लिखे हुए रेट देख कर मुझे रूम सर्विस का इस्तेमाल करने की इच्छा नहीं थी।  दर असल, मेरी यात्रा का समस्त व्यय बैंक के जिम्मे था और मैं अनावश्यक रूप से बिल बढ़ाने को अनुचित मान रहा था। वैसे तो मैं रास्ते में ही पोहा और जलेबी खा चुका था पर उसके बाद इतने किलोमीटर पैदल चल कर ऐसा लग रहा था कि वह पोहा जलेबी खाये हुए कई घंटे बीत चुके होंगे।  अतः बैंक जाते हुए जावेरा कंपाउंड में ही एक साउथ इंडियन रेस्टोरेंट दिखाई दिया तो वहां उत्थपम और छाछ पीकर मूछों को ताव देता हुआ बैंक जा पहुंचा।

जिस शहर के लोगों को मॉल संस्कृति बहुत भाने लगती है, वहां दवाइयों की दुकानों को भी मॉल ही कहा जाता है।  हमारा बैंक जिस जावेरा कंपाउंड नामक विशाल क्षेत्र में है वहां ’मेडिमॉल’ के नाम से सैंकड़ों दुकानें सिर्फ दवाइयों की ही थीं। मुझे एक व्यक्ति ने बताया कि इस बिल्डिंग कांप्लेक्स में चार सौ से अधिक दुकानें हैं और सभी कैमिस्ट हैं।  मुझे लगा कि अगर इस शहर में खाने के बजाय खस्ता कचौरी और चाट ही खाई जाती है तो दवाई की चार सौ क्या, चार हज़ार दुकानें भी कम पड़ेंगी।

आज मेरे लिये इंदौर शाखा के कुछ महत्वपूर्ण ग्राहकों के साथ मुलाकात तय थी। वह बैठक संपन्न करते करते दो बज गये। बैंक के अधिकारी मुझे पुनः उस कचौरी की दुकान पर लेजाने लगे तो मैने हाथ जोड़ कर क्षमा याचना करके कहा कि मुझे तो दाल- रोटी और सब्ज़ी ही चाहिये। जब मेरे सहकर्मियों ने कहा कि इसके लिये तो होटल प्रेज़ीडेंट ही सबसे अच्छा विकल्प है तो मैने भी कहा कि ऐसा है तो यही सही !  अपने धार वाले सहकर्मी को लेकर बैंक से होटल आया। खाना खाया, आटो पकड़ा और पुनः गंगवाल बस अड्डे पर पहुंचे !  चूंकि धारा १४४ वगैरा हटा ली गई थी और बसें सुबह से ही सामान्य रूप से चल रही थीं, अतः हमें अड्डे से बाहर निकलती हुई धार जाने वाली एक बस दिखाई दी तो लपक कर उसमें चढ़ लिये।  उस बस पर धार नहीं, कुछ और गंतव्य स्थान लिखा हुआ था अतः मैं अकेला होता तो शायद उस बस को छोड़ बैठता परन्तु मेरे साथ एक स्थानीय बैंककर्मी था अतः उसकी जानकारी मेरे भी काम आई।  यह बस अन्य बसों की तुलना में बहुत तीव्रगामी साबित हुई और इसने १ घंटे में ही मुझे घाटाबिलोद उतार दिया।

जिन पाठकों को नहीं पता होगा, उनकी जानकारी के लिये बताना उचित रहेगा कि घाटाबिलोद एक छोटा कस्बा है जो इन्दौर – धार राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक ५९ पर स्थित है और इसे इन्दौर और धार के लगभग मध्य में माना जा सकता है।  मुकेश घाटाबिलोद से चार किमी और आगे (धार की ओर) सेजवाया नामक ग्राम में स्थित रुचि स्ट्रिप्स लि. नामक कंपनी में गुणवत्ता नियंत्रण अधिकारी हैं और कंपनी के द्वारा निर्मित आवासीय कालोनी में कंपनी द्वारा ही प्रदत्त अपार्टमैंट में अपने प्यारे से परिवार के साथ रहते हैं।   मुझे उम्मीद थी कि दो-एक घंटे मुकेश से मुलाकात करके मैं इन्दौर वापिस आ जाऊंगा, पर फिर भी अपने कैमरे वाले बैग में मैने रात के मतलब के कपड़े रख लिये थे ताकि  यदि वहीं रुकने का मूड बना तो असुविधा न हो।   मेरी और मुकेश की आयु में पर्याप्त अंतर है अतः मेरा साथ उनको कितना रुचिकर रहेगा, मुझे पता नहीं था अतः मैं मानसिक रूप से होटल में ही वापिस आने की तैयारी से ही गया था।

एक्सप्रेस टाइप की बस मिल जाने के कारण मैं समय से पहले ही घाटाबिलोद पहुंच गया था।  मुकेश भालसे को मेरे साढ़े पांच बजे से पहले पहुंच पाने की कोई आशा नहीं थी।  मैने फोन किया तो उन्होंने कहा कि मैं वहीं बस स्टैंड के आस-पास रुकूं और वह मुझे लेने आ रहे हैं।   वह अपने उच्च अधिकारी से अनुमति लेकर मुझे लेने आयेंगे।  इस पर  मैने कहा कि यदि एक-आधा किमी की ही दूरी है तो कोई जरूरत नहीं है, मैं पैदल ही आराम से पहुंच सकता हूं, पर उन्होंने कहा कि नहीं, मैं वहीं रुकूं क्योंकि रास्ता पैदल आने लायक नहीं है।

घाटाबिलोद बस स्टैंड के पास ही एक शासकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय और उसमें मां सरस्वती का एक मंदिर बना हुआ दिखाई दे रहा था।  एक प्रतिमा स्वामी विवेकानन्द की भी थी।  मुझे लगा कि ये तो कोई अपनी ही विचारधारा के लोगों द्वारा संचालित संस्था है।   जिज्ञासावश मैने उसमें प्रवेश किया और मां सरस्वती की प्रतिमा का चित्र लेने लगा।  तभी कुर्ता धोती जैकेट पहने हुए एक दाढ़ीवाले सज्जन आये और बोले कि अगर चित्र लेना चाहते हैं तो मैं मंदिर का द्वार खोल देता हूं, आप आराम से चित्र ले लें।  दो-चार चित्र लेने के बाद परिचय हुआ । उन्होंने बताया कि वह इस विद्यालय के प्रधानाचार्य हैं।  कुछ और भी अध्यापक वहां थे, उन सब से परिचय हुआ, मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार की कर्मठता की काफी सारी प्रशंसा उनके श्रीमुख से सुनी।  जब मैने कहा कि सड़कों की हालत तो  यहां बहुत खराब है तो उन्होंने बताया कि ये सरकार सड़कों के निर्माण को ही सबसे अधिक प्राथमिकता दे रही है और बहुत तेज़ी से सड़कों का जाल पूरे मध्यप्रदेश में बिछाया जा रहा है।  यह सड़क भी आज टूटी हुई दिखाई दे रही है, परन्तु दो महीने में शायद पूरी नई बन चुकी होगी।

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प्रधानाचार्य जी की धर्मपत्नी तब तक सब के लिये चाय ले आई थीं।  मुकेश का पुनः फोन आया कि वह मोटर साइकिल पर आ रहे हैं और विद्यालय से ही मुझे पिक अप कर लेंगे अतः मैं यहीं रुका रहूं।  मुझे लग रहा था कि मैं मुकेश को पहचानूंगा कैसे?  मैने उनके कुछ चित्र घुमक्कड़ साइट पर ही देखे थे।  पर जब वह सामने आकर खड़े हुए तो बिना नाम की पुष्टि किये ही हम गले लग गये।  उन्होंने मुझे अपनी मोटर साइकिल पर पीछे बैठाया और सेजवाया के लिये चल पड़े।

असली कहानी तो अब शुरु होने जा रही है दोस्त !

29 Comments

  • Mukesh Bhalse says:

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  • Saurabh Gupta says:

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  • bahuth sunder varnan !

  • abhishek kashyap 'trainman' says:

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  • Abheeruchi says:

    Hello Sushant ji,

    Accha laga apki post padhke. Photos are really beautiful.

    Central Mall ke 5th floor pe Rajasthani Style “Chokhi Dhani ” ka modernised mall version hai.Uska naam hai “Village” . Kabhi Jaaye to try kar sakte hai. Waise Indore me hi isi tarah ki ek aur jagah hai “Nakhrali Dhani” Rau me. Mai use jaroor recommend karungi agar aap next time jaayenge Indore . Nakhrali Dhani Shaam ko jaane ke liye bahut hi badhiya jagah hai.Rajasthani Khana bhi bahut tasty hai.

    Waiting for next post….Keep writing

    • Thank you Abhee,

      I have to be extra alert for my health so don’t venture much into spicy treats. Basically I love sweets far more than spicy dishes. So, when I go there with my wife, she will enjoy all these things much more !

      Thank you for liking the post.

  • I just came back from Indore city……through your post.
    Very nice description of a city…at night & in the morning.
    If I will have a chance to visit Indore in future, will definitely remember this.

    Nice to note that two unknown faces of ‘ghumakkars’ are eagerly waiting to meet each other…will wait for the exciting stories to come.

    • Dear Amitava,

      Thank you very much for coming to the posts and taking pains to leave your comments here. There are lots of things remaining to be told about Indore / Dhar / Mandu. Will take my own time to bring all of those things for the enjoyment of my ghumakkar friends.

  • Nandan Jha says:

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  • Rakesh Bawa says:

    Sushant Ji, Namaskar.

    Your post was absolutely tasty like the Khasta Kachoris of Rajasthan . Ihave heard that Indire is fast food capital of India so you must have indulged in some despite your digestive system . Isn,t it? Waiting for Mandy where the beautiful song ‘NAAM GUM JAYEGA ‘ was picturised on Hema Ji and Jeetendra Ji.

    • Dear Rakesh Bawa,

      Thank you very much for the tasty comment. I didn’t know that ??? ??? ??????, ????? ?? ??? ?????? was shot at Mandu only. Thank you for the information.

  • Ritesh Gupta says:

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  • Nirdesh Singh says:

    Hi Sushantji,

    Enjoying Indore with you. The steam locomotive and your bogie has the same vinatge, so why is the bogie still running? But then Bansalji is too busy these days to answer that!

    Nice to have two Ghumakkars chilling out.

    Thanks for sharing a totally different take on a city.

  • rastogi says:

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      • rastogi says:

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  • from the Pictures of sweet shop (The omnipresent poha jalebi in Indore). I recognize the both person. We ,too, went to this shop for breakfast on our Omkareshwar-Mahakaleshwar Trip. Then, None of us was familiar with Poha .We were surprised to see people eating dried yellow rice with Jalebi. We asked this person about this dish. He replied ‘Poha”.
    We ordered for pranthas, now he was surprised . He asked us to wait and when we get it ,taste was so spicy that none us finish single pranthas.

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    Nice write up with excellent pics.
    Thanks

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