हरमंदिर साहब, अकाल तख्त और जलियांवाला बाग दर्शन
घंटाघर के प्रवेश द्वार से पुनः अंदर कदम रखा तो सिक्ख संग्रहालय नज़र आया। सोचा कि चलो, इसे भी देख लिया जाये। हॉल में प्रवेश करते ही दाईं ओर ऊपर जाने के लिये सीढ़ियां थीं । ऊपर पहुंचा तो लिखा मिला, “फोटो खींचना मना है जी।“ पहले तो बड़े ध्यान से एक – एक चित्र को देखना और उसके नीचे दिये गये विवरण को पढ़ना शुरु किया पर फिर लगा कि इतने शहीदों का वर्णन पढ़ते-पढ़ते मैं भी जल्दी ही शहीदों की लिस्ट में अपना नाम लिखवा लूंगा। हे भगवान ! इतने शहीद यहां और इनके अलावा उन्नीस सौ के करीब जलियांवाला बाग में! अब मुझे इस बात का कोई आश्चर्य नहीं हो रहा था कि अमृतसर में हर सड़क का नाम किसी न किसी शहीद के नाम पर ही क्यों है?
शहीदों के चित्र देखते देखते अंतिम कक्ष में पहुंचा तो देखा कि नवीनतम शहीदों की पंक्ति में बेअंत सिंह और सतवंत सिंह के भी बड़े – बड़े तैल चित्र लगे हुए हैं। पहचाने आप? बेअंत सिंह और सतवंत सिंह वे दोनों अंगरक्षक थे जिन्होंने अंगरक्षक के रूप में प्रधानमंत्री की सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने सिर पर लेकर भी निहत्थी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की थी। मन में सहसा विद्रोह की भावना ने सर उठाया। फिर देखा कि एक तैल चित्र और लगा हुआ है जिसमें गोलों – बारूद की मार से क्षत-विक्षत लगभग खंडहर अवस्था में अकाल तख्त का चित्र था। अकाल तख्त की यह दर्दनाक स्थिति आपरेशन ब्लू स्टार के समय आतंकवादियों को अकाल तख्त से बाहर निकलने के लिये विवश करने के दौरान हुई थी। एक आम भारतीय की तरह मेरा भी मानना है कि अकाल तख्त की ऐसी कष्टकर, वेदनाजनक स्थिति के लिये यदि भारतीय सेना को दोषी माना जाता है तो वे लोग भी कम से कम उतने ही दोषी अवश्य हैं जिन्होंने भिंडरवाले को अकाल तख्त में छिप कर बैठने और वहां से भारतीय सेना पर वार करने की अनुमति प्रदान की थी। अकाल तख्त की पवित्रता तो उसी क्षण भंग हो गई थी जब उसमें हथियार, गोले और बारूद लेकर भिंडरवाले और उसके अन्य साथियों ने प्रवेश किया और इस बेपनाह खूबसूरत और पवित्र भवन को शिखंडी की तरह इस्तेमाल किया। वैसे जो लोग राजनीति की गहराइयों से परिचित हैं उनका कहना है कि भिंडरवाले भी तो कांग्रेस का ही तैयार किया हुआ भस्मासुर था जिसे कांग्रेस ने अकाली दल की काट करने के लिये संत के रूप में सजाया था। अस्तु !
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