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पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- जरूरी जानकारी, नक्शा और खर्चा

पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- जरूरी जानकारी, नक्शा और खर्चा

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पिण्डारी ग्लेशियर उत्तराखण्ड के कुमाऊं मण्डल में बागेश्वर जिले में स्थित है। यहां जाने के लिये सबसे पहले हल्द्वानी पहुंचना होता है। हल्द्वानी से…

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पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- छठा दिन (खाती-सूपी-बागेश्वर-अल्मोडा)

पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- छठा दिन (खाती-सूपी-बागेश्वर-अल्मोडा)

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पिछले चार दिनों से मैं इसी खाती-सूपी वाले रास्ते की जानकारी जुटाने में लगा था और अपेक्षा से ज्यादा सफलता भी मिल रही थी। सफलता मिल रही हो तो इंसान आगे क्यों ना बढे। सुबह खा-पीकर हमने भी सूपी वाला रास्ता पकड लिया। हालांकि मैं और अतुल तो एक ही पलडे के बाट थे, जबकि हल्दीराम का झुकाव दूसरे पलडे यानी बंगाली की ओर था। बंगाली एक गाइड देवा के साथ था। देवा ने इस सूपी वाले रास्ते से जाने से मना कर दिया। देवा की मनाही और हमारे जबरदस्त समर्थन के कारण हल्दीराम बीच में फंस गया कि जाट के साथ चले या बंगाली के। आखिरकार बंगाली भी हमारी ओर ही आ गया जब उसने कहा कि इस बार कुछ नया हो जाये। धाकुडी वाले पुराने रास्ते के मुकाबले सूपी वाला रास्ता नया ही कहा जायेगा। देवा को मानना पडा।

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कफनी ग्लेशियर यात्रा- पांचवां दिन (द्वाली-कफनी-द्वाली-खाती)

कफनी ग्लेशियर यात्रा- पांचवां दिन (द्वाली-कफनी-द्वाली-खाती)

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तभी सामने कुछ दूर सफेद सी आकृति दिखीं। सोचा गया कि वे तम्बू हैं। चलो, वहां तक चलते हैं। जाकर देखा तो तम्बू वम्बू कुछ नहीं था, बल्कि कुछ प्लास्टिक का मलबा सा पडा था। गौर से देखने पर पता चला कि यह फाइबर है यानी एक तरह का मजबूत प्लास्टिक। कम से कम सौ मीटर के घेरे में यहां वहां बिखरा पडा था यह मलबा। इसमें लकडी के दरवाजे भी थे जो आदमकद थे। दिमाग खूब चलाकर देख लिया कि यह बला क्या है। आखिरकार नतीजा निकला कि यहां कभी कोई हेलीकॉप्टर गिरा होगा, यह उसका मलबा है।

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पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- चौथा दिन (द्वाली-पिण्डारी-द्वाली)

पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- चौथा दिन (द्वाली-पिण्डारी-द्वाली)

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हिमालय की ऊंचाईयों पर एक खास बात है कि दोपहर बाद बादल आने लगते हैं। ये बादल कहीं बंगाल की खाडी या अरब सागर से नहीं आते बल्कि यही बनते हैं। होता यह है कि जैसे ही सुबह होती है तो मौसम बिल्कुल साफ-सुथरा होता है। जैसे जैसे दिन चढता है, वातावरण में गर्मी बढती है तो हवा भी चलने लगती है। बस यही गडबड हो जाती है। हवा चलती है तो पर्वत इसे मनचाही दिशा में नहीं चलने देते बल्कि नदी घाटियों में धकेल देते हैं जहां से हवा नदियों के साथ धीरे धीरे ऊपर चढती जाती है। जितनी ऊपर चढेगी, उतनी ही ठण्डी होगी और आखिरकार संघनित होकर धुंध का रूप ले लेती है और बादल बन जाती है। बादल बनते बनते दोपहर हो जाती है।

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पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- तीसरा दिन (धाकुडी-खाती-द्वाली)

पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- तीसरा दिन (धाकुडी-खाती-द्वाली)

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ग्यारह बजे हम खाती गांव पहुंच जाते हैं। सुन्दरढूंगा और पिण्डारी दोनों घाटियों में खाती से आगे कोई गांव नहीं है। इसकी यही खासियत इसे एक समृद्ध गांव बनाती है। पिण्डारी, कफनी और सुन्दरढूंगा तीनों यात्रा मार्गों पर खातियों का ही वर्चस्व है। ये लोग कुमाऊं-गढवाल की परम्परा का निर्वाहन करते हुए अपने नाम के साथ गांव का नाम ‘खाती’ भी जोडते हैं। मान लो मैं खाती गांव का रहने वाला हूं तो मेरा नाम होता नीरज खाती। गांव के सभी लोग ग्लेशियर यात्रा से ही जुडे हुए हैं हालांकि आधुनिकीकरण की हवा भी चल रही है। हमारे साथ चल रहे बंगाली घुमक्कड का गाइड देवा और हमारा पॉर्टर प्रताप सिंह भी खाती के ही रहने वाले हैं। आगे रास्ते में हमें जितने भी लोकल आदमी मिलेंगे, सभी खाती निवासी ही होंगे। एक बात और बता दूं कि सुन्दरढूंगा ग्लेशियर जाने का रास्ता यही से अलग होता है। सुन्दरढूंगा जाने के लिये रहने-खाने का सामान ले जाना पडता है जो खाती में आराम से मिल जाता है।

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पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- दिल्ली से धाकुडी

पिण्डारी ग्लेशियर यात्रा- दिल्ली से धाकुडी

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बैजनाथ से आने वाली गोमती नदी के पुल को पार करके थोडा सा आगे जाने पर भराडी स्टैण्ड आता है। यहां से भराडी के लिये जीपें मिलती हैं। भराडी सौंग जाने वाली सडक पर कपकोट से करीब दो किलोमीटर आगे एक कस्बा है। भराडी में फिर दोबारा जीपों की बदली करके सौंग वाली जीप में जा बैठते हैं। जहां बागेश्वर से भराडी तक बढिया सडक बनी हुई है, वही भराडी से आगे सौंग तक महाबेकार सडक है। वैसे बागेश्वर से सीधे सौंग तक और उससे भी आगे लोहारखेत तक के लिये जीपें मिल जाती हैं

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